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________________ * अहिंसा-वाणी * के ऋषभदेव विशेषांकों में व्यय हो चुओं ने संयमी जीवन धारण किया गई है। मिशन के पास कोई निधि और अनेक शाकाहारी बने । नहीं है। अतः सहयोग देकर उसे (१७) आवश्यकतायें आगे बढ़ाइये। मिशन का 'अखिल विश्व' नाम (१६) प्रचार का परिणाम । सार्थक हो एवं लोक की सची सेवा मिशन प्रचार का अच्छा परिणाम हो, इसलिए निम्न आवश्यकताओं दृष्टिगोचर होने लगा है। भारत की पूर्ति होना आवश्यक है :में वे जैन युवक एवं अजैन बन्धुगण, (१) भारत में दिल्ली, बम्बई जो जैन सिद्धान्त से अपरिचित थे आदि स्थानों एवं विदेशों में लन्दन, और उसके नाम से मह बिचकाते न्यूयार्क आदि नगरों मे मकान खरीद थे, अब जैनधर्म का अध्ययन करने कर जैन केन्द्र खोले जावें; जिनमें के लिये ऋजु हुये हैं। उनमें श्रद्धा पुस्तकालय, औषधालय, सभा भवन और ज्ञान पिपासा जागृत हुई है। और प्रार्थना मन्दिर हों। विदेशों में जैनसिद्धांत का ज्ञान भी (२) भारत के किसी भी केन्द्र फैलने लगा है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्मे- में 'अहिंसा विश्वविद्यालय की स्थालनों में अब जैन धर्म की गिनती पना की जावें। 'प्रमुख' Major धर्मों में की जाने (३) जैन विद्वानों और त्यागी लगी है। मिशन काये का एक परि- महानुभावों का मिशन सभी देशों में णाम यह भी हुआ कि अंग्रेजी चीनी, अहिसा धर्म का प्रचार करने के लिये जरमन आदि भाषाओं में भी जैन भेजा जावे। विद्वानों को विशेष रूप साहित्य उपलब्ध हुआ है। विश्व में प्रचारक तैयार किया जावे। . साहित्य में जैनधर्म विषयक मौलिक . (४) श्री मैथ्यू मैक्के, श्री लोथर रचनायें रची गईं और अहिंसा ,वेन्डल आदि नवदीक्षित जैन बन्धुओं सिद्धांत का ऊहापोहात्मक विवेचन को भारत बुलाकर जैनधर्म की विशेष भी किया गया। हिन्दी में भी नया शिक्षा दी जावे तथा. उन्हें World साहित्य सिरजा गया। देश-विदेश Missionary विश्व - प्रचारक के छात्रों एवं विद्वानों में अन्वेषण नियुक्त किया जावे। ( Research ) के लिये जैन इसके अतिरिक्त एक जैन शिक्षा सिद्धांतों को अपनाया तथा न्यूमेक्सि- कोर्स चालू किया जावे, जिससे को के विश्वविद्यालय आदि में जैन- जिज्ञासु लोग घर बैठे डाक द्वारा फिलासफी का अध्ययन सुविधा से जैनधर्म और अहिंसा संस्कृति का होने लगा है। इंगलैंड, इटली, अमे- ज्ञान प्राप्त कर सके। इस कोर्स की रिका जरमनी आदि में कई मुमु- रूप रेखा विद्वज्जन बनावें । यह श्राव
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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