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* अहिंसा-वाणी* सब को सोचना है कि इस महान् भी तरक्की हुई है। पहले देश के एक कार्य को किस तरह किया जा सकता छोर से दूसरे छोर तक जाने में है। हमें यह सोचना पड़ेगा कि संसार जितना समय लगता था उससे बहुत की समस्यायें क्या हैं तथा उन्हें कम समय में आज सारे संसार की सुलझाने के लिये हमारे पास समुचित यात्रा हो सकती है। संसार के साथ साधन हैं या नहीं और यदि हैं तो . हमारा सम्पर्क बढ़ गया है। इस उनका उपयोग किस तरह किया कारण किन्हीं देशों में लड़ाई शुरू जाय ?
होने पर उसका परिणाम संबंधित संसार की वर्तमान परिस्थिति--- देशों पर ही नहीं, सब देशों पर कुछ
संसार तीब्र गति से बढ़ रहा है। न कुछ होता ही है। इसलिये अब विविध खोजें हो रही हैं। प्रयोग संकुचित दृष्टि से एक जाति, समाज, चल रहे हैं। इन सबका उद्देश्य मानव देश की दृष्टि से विचार करने से जाति के सुख को बढ़ाना बताया काम नहीं चल सकता । समस्त मानव जाता है। लेकिन सुख के साधन समाज को दृष्टि में रखकर विचार बढ़ने पर भी मनुष्य जाति के सुखों करना होगा। में वृद्धि नहीं हो सकी है। विषमता, पिछले महायुद्धों से तथा उनके शोषण, अशान्ति, कलह, और युद्ध परिणामों से संसार का विचारक आज पहले से भी अधिक तीव्र हो वर्ग क्षुब्ध हो उठा है । उनका मानना गये हैं, पहले की लड़ाइयों की अपेक्षा है कि संसार में बिना शान्ति कोई राष्ट्र संहार अधिक होता है । कष्ट अधिक सुखी नहीं हो सकता। हारने वाला सहने पड़ते हैं और मानव जाति को तो दुःखी बनता ही है, जीतने वाले अधिक आपत्तियाँ सहनी पड़ती हैं। की स्थिति भी अच्छी नहीं रहती। पहले लड़ाइयों में लड़ने वालों को ही इसलिये संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्वशान्ति परिणाम भुगतने पड़ते थे, आज सम्मेलन आदि संस्थाओं के द्वारा निरपराध करोड़ों लोगों को परिणामों विश्वशान्ति के प्रयत्न हो रहे हैं। की आंच लगती है। विज्ञान की लेकिन विश्वयुद्ध रोकने के प्रयत्नों के खोजों ने विनाश के साधनों में इतनी सफल होने में विचारकों को शंका वृद्धि कर दी है कि एक छोटा-सा है। जब तक लड़ाई का मूल कारण बम लाखों का नाश कर सकता है। नष्ट नहीं होता तब तक लड़ाई बंद
जहाँ लड़ाइयाँ चलती हैं, वहाँ करने का प्रयत्न व्यर्थ है । इन युद्धों के की प्रजा को ही नहीं, दुनिया भर के मूल में व्यक्तिगत कलह-द्वेष या झगड़े लोगों को उसके परिणाम भुगतने रहते हैं। इनसे हर रोज नुकसान तो पड़ते हैं, क्योंकि वाहन के साधनों में संसार को उठाना ही पड़ता है, इन्हीं