Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबंगसुत्ताणि [खण्ड..] ओवाइयं * रायपसेणियं जीवाजीवाभिगमे वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निग्गंथं पावयणं aari तुलसी अमृत महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में उवंग सुत्ताणि ४ ( खण्ड १ ) ओवाइयं • रायपसेणियं • जीवाजीवाभिगमे थाना प्रमुख : आचार्य तुलसी संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, आर्थिक सहयोग : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्बत् २०४४ (दीपावली) ई० १९८७ पृष्ठांक :८०० मूल्य ४००/ मुद्रक : मित्र परिषद् कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Acārya Tulsi Amrit Mahotsava Year Niggantbam Parayanan UVANGA SUTTANI IV (PART 1) OVĀIYAM, RĀYAPASEŅIYAM . JĪVĀJIVÄBHIGAME (Original Text Critically Edited) Vācana-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editor YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher : JAIN VISHYA BHARATI Ladnun-341 306 Managing Editor : Shrichand Rampuria, By Munificence : Shri Ramlal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication: Vikram Samvat 2044 (Dipāvali 1987 A.D. Pages : 800 Price i 400/ Printers JAIN VISHYA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladnup (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्णसम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे। संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ । मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है: संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन " मुनि मधुकर " मुनि हीरालाल शब्दकोश : संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । प्राचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पणा पुरिसो सुदवखो, प्राणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पप्रोगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुष्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं प्रागमयुद्धमेव, लवं सुलद्ध णवणीयमच्छं। सज्झाय-सज्माण रयास निच्छ, जयस्स तस्स पणिहाणपुष्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रत-सध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस धारा, गणे समस्ये मम माणसे वि। जो हेउभूम्रो स्स पकायणस्स, कालुस्स तस्स पणिहाणपुरुवं । जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत शुत सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है १. आगम-मुक्त ग्रंथमाला मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण । २. आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला --- मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकर करण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला - आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला - आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण | प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं (१) दसवेलियं तह उत्तरज्झयणाणि (२) आयरो तह आधारचूला (३) निसीहज्झयणं (४) उक्वाइयं (५) समवाओ (६) अंगसुतानि ( खं० १ ) -- इसमें आचारांग सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग --ये चार अंग समाहित हैं । (७) अंगसुताणि ( खं० २ ) -- इसमें पंचम अंग भगवती प्रकाशित है । (८) अंगसुत्ताणि ( खं० ३ ) -- इसमें ज्ञाताधर्मकथा, उपायकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाकये ६ अंग हैं । (2) नवसुत्ताणि ( खं० ५ ) - इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं' उत्तरज्झयणाणि, नंदी, गदराई, दसओ, कप्पो, ववहारो, निसीहझयणं-ये नो आगम ग्रन्थ हैं । उक्त में से प्रथम पांच ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं एवं अंतिम चार ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुए हैं । द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं - 1) दसवेआलियं Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सूयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से प्रथम दो ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं और अंतिम तीन ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुए हैं। दसवेआलियं का द्वितीय संस्करण भी जन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुया है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्यमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० १) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी ग्रन्थमाला में केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला के संस्करण के रूप में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' अन्य का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। प्रस्तुत प्रकाशन उवंगसुत्ताणि, खंड १ मे (१) ओवाइयं (२) रायपसेणियं और (३) जीवाजीवाभिगमे--..इन तीन उपांग आगमों का पाठान्तर सहित मूलपाठ मुद्रित है। साथ ही साथ इन तीनों उपांगों की संयुक्त शब्दसूची भी अन्त में संलग्न कर दी गई है। भूमिका में इन ग्रन्थों का संक्षेप में परिचय प्राप्त है, अत: यहां इस विषय पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा(१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगो)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व. जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर । (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता। (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है । इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रमालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है । मुद्रणालय के स्थापन में मित्र-परिषद्, कलकता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्था को अनेक धन्यवाद। यह ग्रन्थ आचार्य तुलसी अमृत-महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित हो रहा है । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्यश्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विधेचक हैं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी । इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। __ इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। जैन विश्व भारती १६-११-८७ लाडनूं (राज.) श्रीचंद रामपुरिया कुलपति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत पुस्तक में तीन ग्रन्थ हैं--ओवाइयं, रायपमेणियं और जीवाजीवाभिगमे । प्रोवाइयं औपपातिकका पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। यह सूत्र वर्णनकोश है। इसलिए अन्य आगमों में स्थान-स्थान पर 'जहा ओववाइए' इस प्रकार का समर्पण-वचन मिलता है। उन आगमों के व्याख्याकारों द्वारा अपने व्याख्या-ग्रन्थों में अवतरित पाठ तथा कहीं-कही समर्पण-सूत्रों के पाठ औपपातिक के स्वीकृत पाठ में नहीं मिलते हैं। वे पाठ वाचनान्तर में प्राप्त हैं। समर्पण-वचन पढ़ने वालों के लिए यह एक समस्या बन जाती है। प्रस्तुत आगम का पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर ही नहीं, किन्तु अन्य आगमों व व्याख्या-ग्रन्थों में प्राप्त अवतरणों व समर्पणों के आधार पर भी निर्धारित होना चाहिए था। किन्त समग्र अवतरणों व समर्पणों का संकलन हए बिना वैसा करना संभव नहीं। इस विषय में कुछ संकलन हमने किया हैभगवई ७१७५ एवं जहा ओववाइए जाव ७.१७६ एवं जहा उववाइए (दो बार) ७१६६ जहा कूणिओ जाव पायच्छिते ६।१५७ "जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे !" "एवं जहा ओववाइए जाव ति विहाए"। १५८ "जहा ओववाइए जाव सत्यवाह" । "जहा ओदवाइए जाव पत्तियकुंडग्गामे" । ६१६२ ओववाइए परिसा यण्णओ तहा भाणियब्वं । ६।२०४ "जहा ओववाइए जाव गगणतलमणुलिहती"। "एवं जहा ओबवाइए तहेव भाणियन्वं"। २०४ जहा मोववाइए जाव महापुरिस" २०८ जहा ओववाइए जाव अभिनंदता २०६ एवं जहा ओववाइए कपिओ जाव निग्गच्छइ १११५६ जहा ओववाइए १९६१ जहा ओववाइए कूणियस्स ११३८५ जहा ओववाइए जाव गहणयाए Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११८८,१६८ ११११३८ ११११५४ ११११५६ ११।१५६ ११११६६ १२१३२ १३३१०७ १४११०७ १४.११० १५६१८६ १५११८६ २५१५६६ २५२५७० २५॥५७१ एवं जहेव ओववाइए तहेव जहा ओक्वाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणधरे एवं जहा दढप इण्णस्स एवं जहा दढपइण्णे जहा ओववाइए जहा अम्मडो जाव बंभलोए एवं जहा कणिओ तहेव सव्व जहा कुणिओ ओववाइए जाव पज्जुवासइ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तब्धया एवं जहा ओववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं जहा ओक्वाइए जाव सुद्धेसणिए जहा ओववाइए जाव लहाहारे जहा ओक्वाइए जाव सव्वगाय भगवई वृत्ति पत्र ७ पत्र ११ पत्र ३१७ पत्र ३१८ पत्र ३१६ पत्र ४६२ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४७६ पत्र ४७६ पत्र ४८१ पत्र ४८२ पत्र ५१६ पत्र ५२० पत्र ५२१ औपपातिकात् सव्याख्यानोऽत्र दृश्यः औषपातिकवद्वाच्या "एवं जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवम् "एवं जहा उववाइए जाव" इत्यनेनेदं सूचितम् "जहा चेव उवबाइए" ति तत्र चैवमिदं सूत्रम् "जहा उववाइए" ति तत्र चेदं सूत्रमेवं लेशतः "जहा उबवाइए" ति तदेव ले शतो दय॑ते "एवं जहा उक्वाइए" तत्र चैतदेवं सूत्रम् जहा उबवाइए" ति चेदमेवं सूत्रम् "जहा उववाइए परिसावन्नओ" ति यथा कौणिकस्यौपपातिके "जहा उववाइए" ति एवं चैतत्तत्र "जहा उववाइए" ति अनेन यत्सुचितं तदिदम् "जहा उववाइए" ति करणादिदं दश्यम "एवं जहा उववाइए"त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम "जहा उववाइए" इत्येतस्मादतिदेशादिदं दश्यम् "एवं जहा उववाइए" इत्येतत्करणादिदं दृश्यम् "एवं जहेवे" त्यादि एवम्' अनतरशतेनाभिलापेन यथोपपातिके सिद्धानधिकृत्य संहननायुक्तं तथैवेहापि वाक्यपद्धतिरोपपातिकप्रसिद्धाऽध्येता पत्र ५२१ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र ५४२ 'जहा उववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे"त्ति यथोपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो........ पत्र ५४५ "जहा दढपइन्ने" ति यर्थापपातिके दढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चवम पत्र ५४५ "एवं जहा दढपइन्नो' इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् पत्र ५४८ ''जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् पत्र ५४६ "जहा अम्मडो" ति यथोपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः पत्र ५६३ "एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशन दृश्यम्पत्र ५६३ "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् पत्र ६६६ नावं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाम्मडपरिव्राजककथानक इति । पत्र ६२४ "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् पत्र ६२४ 'जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् पत्र ६२४ "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् ज्ञातावृत्ति पत्र २ वर्णकनन्थोत्रावसरे वाच्यः--- विवागसुयं १३ . जहा दढपइण्णे २।१।३६ बहा दढपइण्णे २१० जहा दढपइण्णे रायपसेणियं असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए क्त्तव्वया भोववाइयगमेणं नेया सू०६८८ एगदिसाए जहा उपवाइए जाव अप्पेगतिया रायपसेणिय वृत्ति सम्प्रत्यस्या नगर्या वर्णकमाह- (यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं) पृ० ८ यावच्छन्दकरणात् "स दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते” इत्याद्यौपपातिकग्रन्थप्रसिद्ध वर्णकपरिग्रहः अशोकवरपादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया। पृ० २७ यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवीवर्णकः समवसरणं चौपपातिकानुसारेण ताव द्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम् पृ० ३० यावच्छब्दकरणात् "आइकरे तित्थगरे" इत्यादिक: समस्तोपि औपपातिकग्रन्थ प्रसिद्धो भगवतद्वर्णको वाच्यः, स चातिगरीयानिति न लिख्यते, केवलमीपपातिक ग्रन्थादवसेयः पृ० ३६ बहवे उग्गा भोगा इत्याद्यौपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसातव्यं यावत् समग्रापि राजप्रभतिका परिणत्पर्युपासीना अवतिष्ठते Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० ११६ पृ० २५८ जंबुद्दीपण्णत्ती २१६५ २१८३ ३। १७८ " जंबुद्दीवपण्णत्ती वृत्ति शा० वृ० पत्र १४ 21 }" " 12 "" " शा० वृ० पत्र १४३ 27 शा० वृ० पत्र १५४ शा० वृ० पत्र १५५ पत्र २ पत्र २ पत्र २ पत्र ३ "पत्र ३ शा० वृ० पत्र २६४ शा० वृ० पत्र ३२५ सूरपण्णत्ती वृत्ति पत्र २ १६ एवं जहा उषवाइए तहा भाणियव्वं" इति एवं यथा श्रपपातिके ग्रन्थे तथा वक्तव्यम् । तच्च एवं इत्यादिरूपा धर्मकथाऔपपातिकग्रन्थादव सेया एवं जाव णिग्मच्छर जहा ओववाइए जाव आउल बोलबहुलं एवं जहा ओवाइए रुच्चेव अणगारवणओ जाव उड्ढ जाणू एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स "वणओ" त्ति ऋद्धस्तिमितसमृद्ध इत्यादि औपपातिकोपाङ्गप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्यः चिरातीतमित्यादिर्वर्गकस्तत्परिक्षेषि वनखण्डवर्ण सहित ओपपातिकतोऽवसेयः "वृण्णओ" ति अत्र राजा "महिमवन्तमहन्ते" त्यादिको राज्ञाश्च "सुकु. मालपाणिपाये" त्यादिको वर्णकः प्रथमोपगप्रसिद्धोऽभिधातव्यः यथा च समवसरणवर्णक तथोपपातिकस्थादव से यं "तए गं मिहिलाए णयरीए शिघाडगे त्यादिकं "जाव" पंजलिउडा पज्जुवासंती” ति पर्यन्तमोपपातिक गतमवगन्तव्यम् एवोपाङ्गादव गन्तव्यमिति "यथोपपातिके" एवं यथा प्रथमोपागे गमश्चार्य निपातः, औपपातिक पपातिके सर्वोणगारवर्णकस्तथाऽत्रापि वाच्यः कियद्यावदित्याह -- ऊर्ध्वजानुनी येषां ते ऊर्ध्वजानवः अत्र यावत्पदसंग्राह्यः "अप्पेगइया दोमासपरिआया" इत्यादिकः औपपातिकग्रन्थो विस्तरमयान्न लिखित इत्यवसेयम् एवमुक्तक्रमेण औपपातिकगमेन - प्रथमोपाङ्गगतपाठेन तावद् वक्तव्यं यावत्तस्य राज्ञः पुरतो महाश्वाः वृक्षवर्णनं प्रथमोपाङ्गतो ऽवसेयम् यावच्छब्देनोपपातिकग्रन्थप्रतिपादितः समस्तोपि वर्णकः आइन्नजणसमूहा" इत्या दिको द्रष्टव्यः तस्यापि चैत्यस्य वर्णको वक्तव्यः स चौपपातिकग्रन्थादवसेयः तस्य राज्ञः तस्याश्च देव्या औपपातिकग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्यादवसेयम् "बहवे जग्गा भोगा" इत्याद्योपपातिक अन्योक्तम् अत्र यावच्छन्दादिदमोपपातिकग्रन्थोक्तं द्रष्टव्यम् Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रपण्णत्ती हस्तलिखित वृत्ति पत्र थू पत्र ५ पत्र ५ पत्र ५ पत्र ६ उबंगा १११४१ २४१३ दसाओ १०१२ १०।१४-१६ दसा. हस्त. वृत्ति वृत्ति पत्र ११ औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्यः स च ग्रन्थगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिका दवसेयः औपपातिकग्रन्थोक्तो वेदितव्यः तस्य राज्ञस्तस्याश्च देव्या औपपातिक ग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्थादव सेयम् "बहवे उग्गा भोगा" इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसेयम् जहा दढपण्णी जहा दढपणो सू० ३२ सू० ३३ सू० ३६ सू० ४० 2 रावण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सको रेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उक्वाइयगमेणं नेयब्वं जाव पज्जु वासइ द० ५५ ह०वृ० पत्र ११ द० ५२६ वृ० पत्र ११ द० १०।२ ह०वृ० पत्र २५ " तस्य वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि ग्रन्थेऽभिहितस्तथा" द० १०१२ ह०वृ० पत्र २५ विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या द० १०१३ ह०वृ० पत्र २५ आदिकरः यावत्करणात् " मोपपातिक ग्रंथादवसे यः -- पातिकग्रन्थप्रतिपादितः समस्तोपि वर्णको वाच्यः स चेह ग्रंथगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिकादवसेयः । दसा. ५३४ चैत्यवर्णको भणितव्यः सोप्यौपपातिकग्रन्थादवसेयः औपपातिकोक्तं पाठसिद्धं सर्वमवसेयं......... द० १०।६ ह्०वृ० पत्र २६ जावत्ति यावत्करणात जणवूहेइ वा उग्गा भोगा - इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तम् — द० १०।१४.१६ ह०वृ०पत्र २८ उववातियगमेणीति औपपातिकग्रंथोक्तकौणिक वंदन गमनप्रकारेणायमपि निर्गतः ५० १० २१ ह०वृ० पत्र २६ इहावसरे धर्म्मकथा औपपातिकोक्ता भणितव्या अन्य आगमों में ओवाइयं के सूत्र : ओवाइयं भगवई 'समस्तो औपपातिक ग्रन्थप्रसिद्धो केवल २५।५५६-५६३ २५/५६४-५६८ २५।५७६-५७६ २५५८२-५६८ राय० जंबु ० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ४४ सू०६४ ओवाइयं भगवई राय जंबु० सू० ४३ २५१६००-६१२ २५२६१३.६१८ ६।२०४ सू० ४६-५५ ३।१७८ सू० ६५ ३१९७९ समर्पण सूत्र संक्षिप्त पद्धति के अनुसार औपपातिक में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं :जाव-उदए जाव भीगे (११७) एवं जाव— अपडिविरया एवं जाव (१६१) सेसं तं चेव--परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव (१५७) एवं-एवं उवज्झायाणं थेराणं (१६) अभिलावेणं-एवं एएणं अभिलावेणं (७३) एवं तं चेव-सगडं वा एवं तं चेव भाणियन्वं जाव णण्णत्थ गंगामटियाए (१२३) भाणियध्वं—एवं चेव पसत्यं भाणियव्वं (४०) ____ कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियव्यो जाव सिविय (१०) णेयव्वं-- त चेव पसत्थं णेयत्वं । एवं चेव वइविणओ वि एएहि पएहि चेव णेयच्यो (४०) शब्दान्तर और रूपान्तर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र १ कुंकड "मुसुंदि °मुसंढि °वंक चक्क भत्त कीला °खीला तुरग दरिसणिज्जा दरिसणीया (क, ख) कालागरु कालागुरु कहग कहक (क, ख, म) निकुरंबभूए °णिउरंबभुए (ख) दरिसणिज्जा दरसणिज्जा गुलइय गुलुइय গলি अभंतर (क) बाहिर बहिर णीवेहि णितेहि कुक्कुड हत्त तुरंग morrorrrrxxx ururu Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ 'हलधर' "हलहर' भुयगीसर अकरंड्य' *च्छर गुप्फे 'वीणं जया 44 आयावाया परवाया ओमोयरिया बारसभत्ते चउद्दस' (ग) सोलस चउमासिए 'भोइत्ति दव्वाभि एतस्स 'पउत्ते उसण्ण' भूयईसर (क, ख, ग) अकरंदु (क, ख) 'थर 'गोफे 'पीडेणं (क, ख) जदा (क) आदावाया परवादा अवमोयरिया बारसमभत्ते बारसमेभत्ते चोहसम (क, ख) घोद्दसमे सोलसम सोलसमे' घउम्मासिए 'भोईत्ति दवमि इंतस्स 'पजुत्ते घोसण्ण (क, ग) (ग) दसणावरणीय "बीती "तोयवट्ठ (क) 'पण्णिय वहस्सती (ग) 'किरीडधारी (ख) महाफलं (क, ख, ग) गतगता (क) पच्चोरुभंति (ग) पाडिएक्कपाडिएक्काई(ख) पतोद-लट्टि पयोत्त-सद्धि ETEEEEEEEEEEEEEEEEEntrates दरिसणावरणिज्ज "वीची तोयपट्ठ 'वण्णिय विहस्सती "तिरीडधारी महप्फलं गयगया पच्चोरुहति पाडियक्कपाडियक्काई पोय-लदि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " 23 か 71 " ܙ " ار 33 " 22 31 13 1) " 13 21 " " " ६३ ६३ " ६३ ६३ 2, १०५ ,,, ११७ " ६४ ૬૪ ६४ , १५८ १५६ " १६४ १७० १७५ ६७ ६८ ७१ ८२ ८२ ८६ ६० ६२ ६२ ६५ ६७ १६५ अभिहि 'मिसिमित 'सुसि लिट्ट 'वी इयंगे कूवग्गाहा 'तुरगाणं सखिखिणी 'मुइंग भट्टितं "कोंच" वइर •णिघस वैयणिज्जं से जे से जाओ 'उरियाओ कुक्कुइया 'अहव्वण अलाउ चरिमेहि 'वेंटिया भूइ अणगारा तेल्ला वय' ग. १ पट्टिया २० अभंगेहि 'मिस मिसंत 'सुस लिट्ट वीजियंगे कूतुयग्गाहा तुरंगाणं सकिंकिणी" 'मुदंग' भट्टतं "कुंच" वज्ज 'निकस' वेदणिज्जं सेज्जे सेज्जाओ पुरियाओ कोकुइया "अथव्वण" लाउ चरमेहि 'वंटिया भुई (ग) (क, ग) (ग) (ग) (क) (ग, वृ) (ख) (क, ग) (क, ख (क, ख) (क, ग) ( ख, ग ) (क, ख, ग ) (ग) (क) प्रति- परिचय (क) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४० तथा पृष्ठ ८० है । प्रत्येक पत्र ११ | | | इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में ४ से १३ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४६ तक अक्षर हैं । पत्र के चारों ओर सुक्ष्माक्षरों में टीका लिखी हुई है । प्रति सुन्दर, कलात्मक तथा पठित मालूम होती है । प्रति के अंत में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है : (क, ख, ग ) अणकारा (क, तिल्ल ( क ) ; तेल (ख) (क, ख, ग ) ( क, ख ) वइ° पत्तिट्ठिया इति श्री उववाईसूत्रं समाप्तं ॥ ग्रन्थ १९६७ ॥ छ। संवत् १६२३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ दिने । आगरा नगरे | पातिसाह श्री अकबर जलालदीन राज्य प्रवर्त्तमाने ॥ श्री बृहत् खरतर गच्छालंकार श्री पूज्यराज ६ जिनरि. घसूरिविजयराज्ये पंडित श्रीलब्धिवर्द्धन श्री Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मुनिभिरुपातिका नाम उपाय लिखापितं ॥४॥ वाच्यमानं चिरं नयात् ॥ शुभं भवतु || लेखकवाचकयोः ॥ श्री ॥ 1 (ख) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ५६ तथा पृष्ठ ११८ है प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा ४|| इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ से २ तक पंक्तियों है। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। पाठ के ऊपर-नीचे दोनों ओर राजस्थानी भाषा का अर्थ है । प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है H श्री उबाई उपांग पढमं समतं ॥ पंथा १२२५ || || || || श्री || ।। संवत् १६६५ वर्षे पोष मासे शुक्लपक्षे सप्तमी तिथौ श्री सोमवारे | श्री श्री विक्रम नगरे | महाराजाधिराज महाराजा' श्री रायती विजयराजे पं० कम्र्मसिंह लिपीकृता ॥ छ 1 (ग) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोटी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४६ से ४८ तक अक्षर हैं प्रति के अन्त में है--- उदाईयं समतं । ग्रन्धाय १२०० शुभमस्तु ||७|| श्री लिखा है किन्तु संवत नहीं दिया है। पर पत्र, अक्षर तथा चित्रों के आधार से यह प्रति १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए । 1 (बु) हस्तलिखित वृत्ति की प्रतिः यह श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ७५ तथा पृष्ठ १५० हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५५ से ६० तक अक्षर हैं । प्रति १० इंच लम्बी तथा ४ इंच चौड़ी है प्रति शुद्ध तथा स्पष्ट है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है- शुभं भवतु || कल्याणमस्तु | लेखकपाठकयोश्च भद्रं भवतु ॥ छ ॥ संवत् १९१६ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि भोमे लिखितं ॥ श्रीः ॥ यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा ॥ तादृशं निखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा ॥ मम दोषो न दीयते ॥ छ ॥ छ ( वृ०पा० ) वृत्ति-सम्मत पाठान्तर कुछ विशेष हस्तलिखित वृत्ति तथा मुद्रित वृत्ति में वाचनान्तर पाठ सदृश नहीं है। हमने मूल आपार हस्तलिखित वृति को माना है। रायपसेणियं प्रस्तुत सूत्र का पाठ निर्णय हस्तलिखित आदशों तथा वृत्ति के बाजार पर किया गया है। सूर्याभ के प्रकरण में जीवाजीवाभिगम और प्रतिज्ञ के प्रकरण में औरपालिक सूत्र का भी उपयोग किया है। वृत्तिकार ने स्थान-स्थान पर वाचनाभेद की प्रचुरता का उल्लेख किया है। वृत्तिकाल में पाठभेद की समस्या उग्र थी, उत्तरकाल में वह उग्रतर हो गई। फिर भी हमने उपलब्ध साधन सामग्री का सूक्ष्मक्षिका प्रयोग कर पाठ निर्धारण किया है। अधिकार की भाषा मे कोई नहीं कह सकता कि यह पाठ-निर्धारण सर्वात्मना त्रुटि रहित है, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि इस कार्य में तटस्थता और धृति का सर्वात्मना उपयोग किया गया है। प्रस्तुत सूत्र की पाठपूति अत्यन्त श्रम साध्य हुई है। पाठपूति से सूत्र का शरीर बृहत् हुआ है। साथ-ही-साथ पाठ-बोध की सुगमता और कथावस्तु की सरलता बढ़ी है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मतुड गाइ मउ. शब्दान्तर और रूपांतर ध्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दष्टि से महत्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८ मउड धेयं °धेज्ज णादि (क,ख,ग,च) उकिट्ठाए ओकिट्ठाए (छ) पढ़े वळे (ख,ग); मट्ठ (च) णाइय जातिय (क,ख,ग,घ,च,छ) हंत (च) अभिवंदए अभिवंदते आयंस' आतंस (घ,च) मिउ (क,ख,ग) पासाईए पासातीए (क,ख,ग,घ) अतीव अतीत तिसोवाण तिसोमाण° (क,ख,ग,च) महालतेणं महालएणं (ख,ग,घ) वेमाणिएहि वेमाणितेहिं (क,ख,ग,घ) विरचिय विरतिय (क,ख,ग,च) वायाणं वाइयाण (क,ख,ग,छ) वाययाणं (घ) ओणमति तोनमंति (क,घ) मर मिर (क्वचित्) 'टाणं 'ताणं (क,च,छ) ११८ मत्थए मत्थते (क,ख,ग,घ) जएणं विजएणं जतेणं विजतेणं (क,ख,ग,घ) बहुईओ बहुगीओ (क,ख,ग,घ) बहुगीतो (च,छ) " १२६ दार' वार (क,ख,ग,च,छ;) बार (घ) 'कवेल्लुयाओ 'कवेलुयातो (क,ख,ग,घ) १३५ संकलाबो संखलाओ (क्वचित्) पगंठगा पकंठगा (घ,च) साए पहाए पएसे साते पहाते पतेसे (क,ख,ग,घ, ७५ ७६ ७७ १३७ च,छ) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ १७३ १७३ २१ 'बिटा २४५ चरियासु चलियासु ६६५ १५६ सम्वोउय सव्वोउत° (क,ख,ग,ध) पिणद्ध विनद्ध (घ) तिठाण तित्थाण. (क,ख,ग,घ,च,छ) आईणग आदीणग (क,ख,ग,घ) उड्ढे उद्घ (क) 'वेइया वेतिया (क,ख,ग,घ,च,छ) १९७ फलएसु °फलतेसु (क,ख,ग,घ,च,छ) तमओ तगो (क); ततो (छ) २२८ बेंटा क,ख,ग,छ; बेठा (च) सुविरइ-रयत्ताणे सुइरइ-रइत्ताणे (क,ख,ग,घ,छ) २६२ कडुच्छुयं कडुच्छ्यं (क,ख,ग,ध) (क,ख,ग) पीय पील (क,ख,ग) ६८३ विद वंद (घ) ६८७ 'पूहे (क,ख,ग) 'परिभाइत्ता परिभागेत्ता (क,ख,ग,घ,च,छ) कोट्ठयाओ कोट्ठाओ (क,घ) ७२० अगिलाए अइलाए (क,च) अओ अयो (क,ख,ग); अय° (घ) भिच्चा ७६० किसिए कसिए (क,ख,ग,घ,छ) वाउकायस्स बाउयागस्स (क,ख,ग,घ,च,छ) ७८७ भिक्खुयाण भिछुयाणं (घ, च) , ७६१ प्पभोगेण प्पयोगेण प्रति-परिचय (क) यह प्रति सरदारशहर 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' से प्राप्त है। इसके ४६ पत्र तथा ९८ पृष्ठ है। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर है यह प्रति वि० सं०१६७१ की लिखी हई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त है...-- नमो जिणाणं जियभवाणं णमोसुय देवयाए भगवईए णमो पण्णत्तीए भगवईए णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्स शोभए । छ : रायपसेण इयं समत्तं । छ । ग्रंथा २०७६ समथितमिदं सूत्र छ संवत् १६७१ वर्षे भाद्रवा सुदि ११ । आगे भी पष्पिका है पर उस पर हड़ताल फेरी हुई है। (ख), (ग) पत्र क्रमशः ५५, ६१ । ये दोनों प्रति 'क' प्रति के सदश ही हैं। (घ) यह प्रति यति कनकचन्दजी पाली (मारवाड़) की है। इसके पत्र ५४ व पृष्ठ १०८ हैं। ७५४ भेच्चा ७७१ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४६-४८ अक्षर हैं । यह प्रति वि०म० १५६६ की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में निम्न पुष्पिका है छ।। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः श्री संघस्य च ।। सं. १५६६ वर्षे चैत्र सुदि २ तिथौ अद्येह श्रीमदणहिल्लपत्तने श्री बृहतुखरतरगच्छे श्रीवर्धमानसूनिसंताने श्री जिनभद्रसुरिपट्टानुक्रमेण श्री जिनहंससुरिराज्ये वाचनाचार्यजयाकारगणिशिष्य वा० धर्मविलासणिवाचनार्थ भ० वस्तुपालभार्यया लीली श्रावकया। पुत्ररत्न भ० सालिगपुमुखपरिवार स श्रीकया सू श्रेयार्थ च लेखितं श्री राजप्रश्नीयोपांग। ब) यह प्रति पूनमचन्द बुद्धमल दुधोडिया, छापर (राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है। इस प्रति के ४२ पत्र तथा ८४ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ५४ तक अक्षर हैं। प्रथम दो पत्रों में २ चित्र हैं। लिपि सुन्दर पर अशुद्धि बहुल है। यह प्रति अनुमानित सोलहवीं शताब्दि की है। यह प्रति भी उपरोक्त दुधोड़िया, छापर (राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है इस प्रति के पत्र ४१ व पृष्ठ ८२ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५७ से ६० अक्षर हैं। लिपि साधारण पर शुद्ध है। अन्त में लिखा है-लिपि सं० १६६५ वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी शुक्र बब्बेरकपुरे पं० लब्धि कल्लोलगणिनालेखि । (a) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है । इसके ५२ पत्र तथा १०४ पृष्ठ हैं ! प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच तथा चौड़ाई ४।। इंच है। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६५ से ७० तक अक्षर हैं । यह प्रति वि० सं० १६०५ में लिखी हुई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त हैं इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपांगवृत्तिका समथिता ॥ समाप्तमिति । प्रत्यक्षरगणनया ग्रन्थाग्रं ॥छ।। ।।छ। प्रत्यक्षर गणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितं । सप्तत्रिशत्शतान्यत्र । श्लोकानां सर्व संख्यया: ।। ग्रन्थाग्रं श्लोक ३७०० ॥छ।। श्री ॥ संवत् १६०५ वर्षे श्रावण सुदि १३ भौमे पतन वास्तव्यं ।। पं० रद्रासुजिगनाथ लिखितं ।। शुभं भवतु ।। जीवाजीवाभिगमे प्रस्तुत सूत्र का पाठ निर्णय हस्तलिखित आदर्शों तथा वत्ति के आधार पर किया गया है। मलयगिरि की वृत्ति प्राचीन आदर्श के आधार पर निर्मित है इसीलिए ताडपत्रीय आदर्श और वत्ति का पाठ समान चलता है। इस विषय में ३१२१८, ४५७, ५७८, ८२६ सूत्र तथा इनके पाद टिप्पण द्रष्ट व्यं है । अर्वाचीन आदों में पाठ का इतना बड़ा अन्तर मिलता है यह बहुत ही विमर्शनीय और अन्वेषणीय है। जीवाजीवाभिगम के आदर्शों में पाठ की एक समानता नहीं रही है इसकी सूचना जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के वत्तिकार शान्तिचन्द्र ने भी दी है। १. जम्बुद्वीपप्राप्ति वृत्ति पत्र १०८ अत्र चाधिकारे जीवाभिगमसूत्रादर्श क्वचिदधिकपदम् अपि दृश्यते तत्तु वृत्तावत्याख्यातं स्वयं पर्यालोच्यमानमपि न नार्थप्रदमिति न लिखितं, तेन तत् सम्प्रदायादवगन्तव्यं, तमन्तरेण सम्यक पाठशुद्धैरपि कर्तुमशक्यत्वादिति । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने कल्पवृक्ष के विवरण का पाठ जीवाजीवाभिगम से उद्धत किया है। चतुथं कल्पवृक्ष के स्वरूप वर्णन में उन्होंने कणग निगरण' पाठ उदधत किया है। उसका अर्थ किया है सुवर्ण राशि।' जीवाजीवाभिगम की बत्ति में 'कणग निगरण' पाठ व्याख्यात है--"कनकस्य निगरण कनकनिगरणं गालितं कनकमिति भावः । लिपि-परिवर्तन के कारण पाठ परिवर्तन हआ है। आदर्शों में 'कूडागारटु' पाठ मिलता है । मुद्रित तथा हस्तलिखित वृत्ति में भी 'कूटागाराद्यानि' पाठ उपलब्ध होता है। __ जीवाजीवाभिगम की वृत्ति में यह ब्याख्यात नहीं है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति में इसकी व्याख्या मिलती है-'कुटाकारेण --शिखराकृत्याढ्यानि" आचार्य मलयगिरि ने आदर्शगत पाठभेद का स्वयं उल्लेख किया है। वृत्तिकार ने जिन गाथाओं को अन्यत्र कहकर उद्धृत किया है । अर्वाचीन आदशों में दे गाथाएं मूल पाठ में समाविष्ट हो गई १५ वत्ति में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका का उल्लेख मिलता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के व्याख्याकार मलयगिरि के उत्तरवर्ती ही हैं। इसलिए यह उल्लेख प्रक्षिप्त है अथवा मलयगिरि के सामने उसकी कोई प्राचीन व्याख्या रही है यह अन्वेषण का विषय है। कहीं-कहीं वृत्ति में भी कुछ विमर्शनीय लगता है ! 'सिरिवच्छ' पाठ की व्याख्या वृतिकार ने 'श्रीवक्ष' की है। प्रकरण की दृष्टि से 'श्रीवत्स होना चाहिए। मूल टीकाकार और मलयगिरि के सामने पाठभेद तथा अर्थ भद की जटिलता रही है और मायाकारों के समय में इस विषय में कुछ चर्चाएं भी होती रही हैं। इस विषय में वत्ति का एक उल्लेख बहुत ही ऐतिहासिक महत्त्व का है। वृत्तिकार ने लिखा है कि यह सूत्र विचित्र अभिप्राय वाला होने के कारण दुर्लक्ष्य है। इसकी व्याख्या सम्यक् सम्प्रदाय के आधार पर ही ज्ञातव्य है। सूत्र १. जम्बूद्वीप वृ० ५० १०२—"कनकनिकरः सुवर्ण राशिः।" २. जीवाजीवाभिपम वृ० प० २६७ ! ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृ० ५० १०७ देखें जीवाजीयाभिगम ३१५६४ का पादटिप्पण । ४. (क) जीवाजीवाभिगम व० प ३२१ "इह बहुषा सूत्रेषु पाठभेदाः परमेतावानेव सर्वत्राप्यर्थो नार्थभेदान्तरमित्येतद्व्याल्यानुसारेण सर्वेप्यनुगन्तव्या न मोग्षव्यमिति ।" (ख) जीवा० वृ० ५० ३७६ इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सुआणि बहुषु पुस्तकेषु ततो यथाऽवस्थितवाचनामेदप्रतिपत्यर्थगलितसूत्रोधरणार्थ चैवं सुगमान्यपि विवियन्ते। ५. जीवा वृ०१० ३३१, ३३३, ३३४ तथा ३८२०, ८३०, ८३४, ८३७ के पादटिप्पण द्रष्टव्य हैं । ६. जोवाभिगम वृ०प० ३८२ क्वचित्सिहादीनां वर्णनं दृश्यते तद् बहुषु पुस्तकेषु न दृष्टमित्युपेक्षित अवश्यं चेत्तद्वयाख्यानेन प्रयोजनं तहि जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति टोका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तद व्याख्यानस्य कृतत्वात्। ७. जीवा जीवाभिगम वृ०५० २७१--- 'श्रीवृक्षणांकितं -लामिछितम् वृक्षो येषां ते श्री वृक्षलाञ्छित वक्षसः" । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ के अभिप्राय को जाने बिना मनमाने ढंग से व्याख्या करना उनकी अवहेलना करना है। सूत्र की आशातना या अवहेलना न हो इस दृष्टिकोण ने पाठ और अर्थ की परम्परा को सुरक्षित रखने में काफी योग दिया है फिर भी वृद्धि की तरतमता और लिधिप्रमाद के कारण पाठ और अर्थ में परिवर्तन हुआ है। पाठ को विविधता के कारण हमें भी पाठ के निर्धारण में काफी श्रम करना पड़ा है। पाठान्तर और उनके टिप्पणों से उसका अंकन किया जा सकता है। ता संकेतित प्रति संक्षिप्त पाठप्रधान है, जैसे १:४१ सूत्र से .-"ताई भंते कि पुडाइं आहारैति अपु मोयमा पुट्ठा णो अपु । आगा णा अणोगा अणंतर। णवरं अणूई नि आ बायराई पिआ उड्ढं वि इ आदि पि इ सविसए णो अविस आणुपुटिव णो अणामपुटिव आच्छदि वाघातं प सिय तिदिसि क । नो वष्णतो काला नी गंधती सु २ सतो नो फासहो ते पाराणं विपरिणामेत्ता अपुव वण्ण गुण ष्क उप्पाएत्ता आतसरीर खेतीगाढ़े पागले सध्यप्पणत्ताए आहारमाहारंति"। लिपि-दोप के कारण "कि तिदिसि के स्थान में "कतिदिसि" (क)। 'ता' का अनेक जगह पाठान्तर नहीं लिया है, वहां पाठ बहुत संक्षिप्त है। शब्दान्तर और रूपान्तर ११ जिणक्खायं जिणखायं (ख) जिणखातं (ता) अणुवीइ अणुवीतियं (क,ख) रोएमाणा रोतमाणा (ता) संधयण संघतण सण्णाओ सग्णातो जोगुवओगे जोगुवतोगे कोहकसाए कोहकसाते ११२१ कण्हलेस्सा किण्हलेस्सा (ग,ट) श२६ आणपाणु आणपाण' (ट) १।७२ छीरविरालिया छिरविरालिया (क) छिरिविरालिया (ख) १।१४ १. जीवाजीवाभिगम वृ०५० ४५० -- "सूत्राणि हामूनि विचित्राभिप्रायतया दुर्लक्ष्याणीति सम्यक्संप्रदायादवसातव्यानि, सम्प्रदायश्च यथोक्तस्वरूप इति न काचिदनुपपत्तिः, न च सूत्राभिप्रायमज्ञात्वा अनुपपत्ति सद्भावनीया, महाशातनायोगतो महाऽनर्थप्रसक्तेः सूत्रकृतो हि भगवन्तो महीयांसः प्रमाणीकृताश्च महीयस्तरस्तकालवत्तिभिरन्यविद्भिस्ततो न तत्सूत्रेषु जनागप्यनुपपत्तिः, केवलं सम्प्रदायावसाये यत्नो विधेयः ये तु सूत्राभिप्रायभज्ञात्वा यथा कविइनुपपत्तिमुद्भावयन्ते ते महतो महीयस प्राशा. तयन्तीति दीर्घतरसंसारभाजः, आह च टीकाकारः - "एवं विचित्राणि सूत्राणि सम्यक्संप्रदायादवसेयानीत्यविज्ञाय तदभिवाय नानुपपत्तिचोदना कार्या, महाशातनायोगतो महाऽनर्थप्रसंगादिति" एवं च ये सम्प्रति दुषमानुभावतः प्रवचनस्थोपप्लवाय धूमकेतव इवोस्थिताः सकलकाल सुकराब्यच्छिन्नसुविधिमार्गानुष्ठातृसुविहिलसाधुषु मत्सरिमस्तेऽपि वृद्धपरम्परायातसम्प्रदायादवसेयं सूत्राभिप्रायमपास्योत्सूत्रं प्ररूपवतो नहाशासनाभाज. प्रतिपत्तव्या अपकर्णयितव्याश्च दूरतस्तत्ववेदिभिरिति कृतं प्रसङ्गेन", Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ थीह ११७३ १११०० १।१०१ १।११६ २०५६ २१६० २०७४ २०६२ २।२४१ २११४६ तहप्पगारा दुआगइया आहारो पलिओदमाई अब्भहियाई फुफुअग्गि वासपुहत्तं एतासि वणस्सति जोयण आवबहुले अबाधाए जे णं इम असीउत्तरं अडहत्तरे किण्हपुड बाहल्लेणं केरिसगा ३१५ ३१६ ३१४८ ३१७३ (ता) ३१७७ ३१७७ ३०० ३२६४ ३३६६ ३१११८ ३३११८ ३३११६ छिरियविरालिया (ग,ट); छीरवीराली (ता) थिभु तहप्पकारा (क,ख,ग,ट) दुयागतिया आधारो (ता) पलितोवमाई (क,ख,ग,ट) अब्भधियाई फुफअग्गि (क); पुफअग्गि वासपुधत्तं (क); वासपुहुत्तं एतेसि (क,ख,ग,ट); एगासि (ता) वणप्फई (क,ख,ग) जोतण अवबहुले (क); आवबहुले आबाधाए (क,ख,ट) जेणिमं आसीउत्तरे अडसत्तरी (ग); अठ्ठत्तरे (ता) किण्णपुड (क,ग.) पाहलेणं (ता) केरिसता (क,ख,ग) फुडिग* (ता) (मवृ) उसुणवेदणिज्जेसु विरइय (क,ग,ट) एकाहं (ख,ग,ट) तत्थ (क,ख,ग,ट); यत्थ जंबूणतमया (क); जणतामया (ग,ट,ता) ओवारियलयण (क,ख,ग,ट,त्रि;) उवकारिवलयणे थंभुगमय (क,ग) धूमवडियाओ उधितिय (क,ख); उविश्य बादालोस बातालीसं केतिलासे (ख); कइलासे (ग,ट,त्रि) इऊयाल (क); ऊयाल (ख,ता;) इगुयालं (ग) फुडित स्फुटित' उसिणवेदणिज्जेसु विरचिय एमा एत्थ जंबूणदमया ज्वगारियालयणे ३१२३४ ३१३२३ ३।३७१ ३३३७२ ३२४१२ ३१५६३ ३३७३३ ३१७५० ३१७४८ ३१७६४ खं भुम्गय धूवडियाओ ओविय बापालीसं (ता) केलासे एगुणयालं Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ता) ३१७६८ इगयालीसं एयालीसं (क,ख,ट); एगयालीसं (ग) इतालीसं ३१८२६ तेणठ्ठणं एएणठेणं (ग,त्रि) ३।८३८.१३ मणुस्साणं मणूसाणं (ता) ३२८४० कयाइ कदायी ३०८४१ बलाहका बलाहता (ता) बादरे विज्जुकारे वातरे विज्जुतारे (ता) बादरे थणियसहे वातरे थणितसद्दे (ता) ३३९४१ नदीओई वा णिहोति वा गंदीति वा णिधयोति वा (ता) ३८६० सूपक्कखोयरसेइ सुपिक्कखोतरसेति ३१८७७ खोदवरणं खोयवरणं (क,ख,ग,ट,त्रि) २९४६ खोदसरिसं खोतोदसरिसं ३१९६८ हेदिपि हट्ठिपि (ग,ट,ता); हिंडपि ३११००७ सव्व हेटिल्लं सव्वहेट्ठिमयं (ता) ३।१००७ सव्वोवरिल्लं सम्वुप्परिल्लं ३११००७ सम्वभितरिल्लं. सन्वन्भंतरं ५१३७ णिओदा णिोता (ता) "णिओदजीवा णिगोदजीवा (क,ख,ग,ट,त्रि) °णिओदजीवा 'णिओयजीवावि (क,ख,ग,ट,त्रि) ६।११ अणाइए अणादीए (ता) ६।२८ सकासाई सकसादी ६।१३१ ओहिदसणी अवधिदसणी (ग,त्रि) ओधिदंसणि (ता) प्रति परिचय (क) (मलपाठ) पत्र ६४ संवत् १५७५ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ६४ व पृष्ठ १८८ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ५३-५६ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १३॥ इंच व चौडाई ५ इंच है। यह अति सुन्दर लिखी हुई है। अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है-- संवत १५७५ वर्षे आश्विनमासे कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ भगुवासरे पत्तननगरमध्ये मोढजातीय जोशी वीलसुत लटकणलिखितम् ।छ। यादर्श पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते ॥शा शुभं भवतु, लेखक-पाठकयोः कल्याणमस्तु छ । छ । श्री। श्री। छ । ग्रं० ५२०० (ख) (मलपाठ) पत्र ८० पूर्वलिखित सरदारशहर की है। इसके पत्र ८० व पृष्ठ १६० हैं । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ६१ करीव अक्षर है। इसकी लम्बाई १२ इंच व चौड़ाई ४ इंच है। ५१५४ ५:५८ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रति' प्राचीन है व बहुत जीर्ण है, अन्त में लिपि संवत् नहीं है परन्तु अनुमानतः १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (ग) (मूलपाठ) पत्र ६० सचित्र यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय की है। इसके पत्र १० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में ६३ करीब अक्षर लिखे हुए हैं। इसकी लम्बाई ११॥ इंच व चौडाई ४॥ इंच है। प्रति के आदि पत्र में तीर्थकर देव की प्रतिमा का सुनहरी स्याही में सुन्दर चित्र है । प्रति बहुत सुंदर लिखी हुई है। प्रति' के मध्य 'बाबडी' व उसके मध्य लाल बिन्दु हैं। इस प्रति के अन्त में पुष्पिका व लिपि संवत नहीं है परन्तु अनुमानतः १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए यह प्रति ताडपत्रीय प्रति' व टीका से प्रायः मेल खाती है। 'ता' ताडपत्रीय फोटो प्रिन्ट (जैसलमेर भण्डार) यह प्रति टीका से प्रायः मिलती है। इसमें तीसरी 'प्रतिपत्ति' के १०५ सूत्र से ११५ सूत्र तक के पत्र नहीं हैं। (ट) (टब्बा) लिपि संवत् १८०० यह प्रति संघीय ग्रन्थालय लाडनूं की है। यह प्रति कालूगणी द्वारा पठित (पारायणकृत) है व उनके द्वारा स्थान-स्थान पर पाठ संशोधन भी किया हुआ है । जीवाजीवामिगम टीका (हस्तलिखित) यह प्रति 'श्रीचन्दजी गणेशदासजी गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र २५० व पृष्ठ ५०० हैं। प्रत्येक पत्र में पंक्ति १५ अक्षर ६५ करीब है। लम्बाई १०४४३ लिपि सं० १७१७, प्रति की लिपि सुन्दर है। सहयोगानुमति जैन-परंपरा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्विगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गये थे, वे इस लंबी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गये हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थदृष्टिसमन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन हैं। हमारी इम प्रवृत्ति में अध्यापन-कार्य के अनेक अंग हैं --पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं। प्रस्तुत ग्रन्थ के ओवाइयं तथा रायपसेणियं के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी तथा जीवाजीवाभिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी और मुनि हीरा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लालजी ने श्रम और निष्ठापूर्वक योग दिया है। जीवाजीवामिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि छत्रमल जी, मनि बालचंदजी, मुनि हंसराजजी और मुनि मणिलाल जी का भी सहयोग रहा है। ओवाइयं की शब्द सुची मूनि श्रीचन्दजी तथा रायपसेणियं और जीवाजीवाभिगमे की भूनि हीरालालजी ने तैयार की है। प्रफ संशोधन के कार्य में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी और साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी व समणी कुसुम प्रज्ञा का सहयोग रहा है। ओवाइयं तथा रायपसेणियं का ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहन लालजी "आमेट" ने तैयार किया है। इस ग्रन्थ के प्रथम दो परिशिष्ट मुनि हीरालालजी ने तैयार किए है। पाठ के पुननिरीक्षण के समय भी मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं। कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हए में इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता आगमविद और आगम संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। __ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया/कुलपति-जैन विश्व भारती/प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील है। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भरती के अध्यक्ष खेमचन्दजी सेठिया और मंत्री श्रीचन्द बैंगाणी का भी योग रहा है । संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद जैन विश्व भारती के अन्तर्गत अनेकान्त शोधपीठ के डायरेक्टर नथमल टांटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिये समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार पूति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। -~-युवाचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली अक्षय तृतीया १ मई, १९८७ नई दिल्ली Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक का नाम उबंगसुत्ताणि है। इसम बारह उपांगों का पाठान्तर तथा संक्षिप्तपाठ सहित मूलपाठ है। इसके दो खण्ड हैं। थम खण्ड मे तोल उपांग हैं:--- १. ओवाइयं २. रायपसेणियं ३. जीवाजीवाभिगमे । द्वितीय खंड में नौ उपांग हैं१. पण्णवणा २. जंबुद्दीवपण्णती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओं कप्पियाओj ६. कप्पवडिसियाओ ७. पुफियाओ ८. पुप्फचुलियाओ ___६. वहिदसाओ प्राचीन व्यवस्था के अनुसार आगम के दो वर्गीकरण मिलते हैं। १. अंगप्रविष्ट २. अंगबाह्य उपांग नाम का वर्गीकरण प्राचीनकाल में नहीं था। नन्दीसूत्र में उपांग का उल्लेख नहीं है। उससे पहले के किसी आगम में उपांग की कोई चर्चा नहीं है । तत्वार्थभाष्य में उपांग का प्रयोग मिलता है। उपलब्ध प्रयोगों में सम्भवतः यह सर्वाधिक प्राचीन है। अंग और उपांग को संबन्ध योजना तत्वार्यभाष्य में उपांग शब्द का उल्लेख है, किन्तु उसमें अंगों और उपांगों का सम्बन्ध चर्चित नहीं है । इसकी चर्चा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति तथा निरयावलिका के वृत्तिकार श्रीचन्द्रसूरि द्वारा रचित सुखबोधा सामाचारी नामक ग्रन्थ में मिलती है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति के अनुसार अंगों और उपांगों की सम्बन्ध-योजना इस प्रकार है:अंग उपांग आचारांग औपपातिक सुत्रकृतांग राजप्रश्वीय स्थानांग जीवाजीवाभिगम समवायांग प्रशापवा भगवती जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १. तत्त्वार्थभाष्य १/२०: तस्य च महाविषवत्वात्तस्ताननधिकृत्य प्रकरणसामप्त्यपेक्षमंगोपांगनानास्वम् । २. सुखबोधा सामाधारी, पृष्ठ ३४ । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अन्तकृतदशा अनुत्तरोपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकश्रुत दृष्टिवाद चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति निरयावलिका [कल्पिका ] कल्पावतसिका पुष्पिका पुष्पचूलिका वृष्णिदशा' १. ओवाइयं नाम बोध प्रस्तुत आगम का नाम ओवाइयं [औपपातिक] है। इस का मुख्य प्रतिपाद्य उपपात है। समवसरण इसका प्रासंगिक विषय है। मुख्य प्रतिपाद्य के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का नाम 'ओवाइयं किया गया है। इसका संस्कृत रूप औषपातिक होता है। प्राकृत नियम के अनुसार दकार का लोप करने पर 'ओववाइय' का 'ओवाइय' रूप बन गया। नंदी सुत्र में यही नाम उपलब्ध होता है। विषय-वस्तु औपपातिक का मुख्य विषय पुनर्जन्म है । उपपात के प्रकरण में अमुक प्रकार के आचरण से अमुक प्रकार का आगामी उपपात होता है, यही विषय चचित है। उपोद्घात प्रकरण में अनेक वर्णक हैं—नगरी वर्णक, चैत्य वर्णक, उद्यान वर्णक, राज वर्णक आदि-आदि । इन वर्णकों से प्रस्तुत सूत्र वर्णक सूत्र बन गया । इन्हीं वर्णकों के कारण अनेक समर्पणों में इसका उपयोग हुआ है। व्याख्या ग्रंथ औपपातिक का प्रथम व्याख्या ग्रन्थ नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिकृत वत्ति है। उसके प्रारम्भिक प्रलोक से यह ज्ञात होता है कि अभयदेवसूरि को इस वृत्ति से पूर्व कोई अन्य वृत्ति प्राप्त नहीं थी। उन्होंने अन्य ग्रन्थों का अवलोकन कर इसका निर्माण किया था। स्वयं उन्होंने लिखा है श्रीबद्ध मानमानम्य, प्रायोऽन्यग्रन्थवीक्षिता । औपपातिकशास्त्रस्य, व्याख्या काचिद्विधीयते ।। वृत्तिकार ने कुछ स्थलों पर पूर्वज आचार्यों के अभिमतों का उल्लेख भी किया है१. स्नानाद्वा पाण्डुरीभून गात्रा इति वृद्धा: [वृत्ति, पृ० १७१] । २. चर्णिकारस्त्वाह | वृत्ति १०२२४॥ ३. अस्य च वृद्धोक्तस्त्राधिकृतगाथाविवरणस्यार्थं भावार्थः । वृत्ति, पृ० २२५] १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १,२ । २. नन्दी, सूत्र ७६ । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह वृत्ति न बहुत विस्तृत है और न अति संक्षिप्त । इसके मध्यम आकार में विवेचनीय स्थल अधिकांशतया व्याख्यात हैं।' प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। वतिकार ने प्रथम सूत्र की व्याख्या में लिखा है.इस सूत्र में बहुत वाचनाभेद है। जो वृद्धिगम्य होगा उसकी मैं व्याख्या करुंगा।' सम्भवतः इतने वाचनान्तर किसी अन्य सूत्र में प्राप्त नहीं हैं। यदि वृत्तिकार ने इनका संकलन नही किया होता तो ये लुप्त हो जाते। __वृत्ति के अन्त में त्रिश्लोकी प्रशस्ति है : उसमें वृत्तिकार ने अपने गुरु श्री जिनेश्वरसूरि, चन्द्रकुल तथा रचनास्थल--अहिलपाटकनगर और वृत्ति के संशोधक द्रोणाचार्य का उल्लेख किया है चन्द्रकुल-विपुल-भूतल-गुगप्रवर-वर्धमानकल्पतरोः । कुसुमोपमस्य सूरेः, गुणसौरभ-भरित-भवनस्य ॥११॥ निस्सम्बन्धविहारस्य सर्वदा श्रीजिनेश्वराह्वस्य । शिष्येणाभयदेवाख्यसूरिणेयं कृता वृत्तिः।।२।। अणहिलपाटकनगरे श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पण्डितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ।।३।। इसका दूसरा व्याख्या-ग्रन्थ स्तबक है । यह विक्रम की अठारहवीं शती का है। इसके कर्ता संभवतः धर्मसी मुनि हैं। २. रायपसेणियं नाम बोध प्रस्तुत सूत्र का नाम रायपसेणियं' है। पं० बेचरदास दोशी ने प्रस्तुत सूत्र का नाम 'रायपसेणइयं' रखा है। उन्होंने सिद्धसेनगणी द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनकीय' और मुनि चन्द्रसूरि द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनजित' को इसका आधार माना है। प्रस्तुत सुत्र का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख नंदी सूत्र में मिलता है। वहां इसका नाम 'रायपसेणिय' है। नंदी की चणि और उसकी हरिभद्रसूरि तथा आचार्य मलयगिरि कृत वृत्तियों में इसकी व्याख्या नहीं है । आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत सूत्र के विवरण में 'राजप्रश्नीय' नाम का उल्लेख किया है। राजा प्रदेशी ने केशीस्वामी से प्रश्न पूछे थे। प्रस्तुत सूत्र में उनका वर्णन है । अतः इसका नाम 'राजप्रश्नीय' है। १. औपपातिक, वृत्ति, पृ० २ : इह च बहवो वाचनाभेदा दृश्यन्ते, तेषु च यमेवावभोरस्यामहे तमेव व्याख्यास्यामः। २. रायपसेण इयं, प्रवेशक, पृ० ६,७ । ३. नंदी, सू० ७७। ४. (क) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० १: अथ कस्माद् इदमुपाङ्गं राजप्रश्नीयाभिधानमिति ? उच्यते, इह प्रदेशिनामा राजा भगवतः केशिकुमारश्रमणस्य समीपे यान् जीवविषयान् प्रश्नानकार्षीत, यानि च तस्मै केशिकुमारश्रमणो गणभृत् व्याकरणानि ध्याकृतवान् । (ख) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २ राजप्रश्नेषु भवं राजप्रश्नीयम् । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ विषय- वर्णन की दृष्टि से मलयगिरि की व्याख्या उचित है और उसके आधार पर उनके द्वारा स्वीकृत नाम भी अनुचित प्रतीत नहीं होता, किन्तु शब्दशास्त्रीय दृष्टि से उनके द्वारा स्वीकृत नाम समालोच्य है | पं० बेचरदासजी ने उसकी समालोचना की है। उनका तर्क है- 'प्रश्न शब्द का प्राकृत रूप पण्ह' और 'पसिण' होता है, किन्तु 'पसेण' नहीं होता । उच्चारण शास्त्र की वैज्ञानिक रीति से 'परिण' तक का परिवर्तन ही उचित नहीं लगता है । प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से भी 'पण' रूप घटित नहीं होता । इसे आर्ष रूप मान तो फिर शुद्धाशुद्ध प्रयोग की मर्यादा ही टूट जाएगी ।" पण्डितजी का तर्क बलवान् है फिर भी अमीमांस्य नहीं है। हमारी दृष्टि के अनुसार-[१] 'पसेणिय' का मूल रूप 'पसिणिय' [सं० प्रश्नित ] है । इकार का एकार होना उच्चारण शास्त्र की दृष्टि से असंगत नहीं है । यह परिवर्तन अनेक स्थानों में मिलता है । उदाहरण के लिए कुछ शब्द यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं: पिणीणं णिव्वाणं जिन्बुती तिगिच्छियं बिटा f तिकालं पेहुणेणं व्वाणं णेती तेगिच्छियं बेंटा बे [दे० ] [सं० निर्वाणम् ] [सं० निर्वृत्तिः ] [सं० चिकित्सितम् ] [सं०] वृत्तम् ] तेकाल [२] आगम-सूत्रों तथा प्राचीन ग्रन्थों में 'रायपसे जिय' पाठ उपलब्ध है । 'रायपसेणइय' पाठ कहीं भी उपलब्ध नहीं है। नंदी सूत्र में 'रायपसेणिय' नाम मिलता है । इसका उल्लेख पहले किया जा चुका है। पाक्षिक सूत्र में भी 'रायप्पसेणिय' पाठ मिलता है ।' पाक्षिक सूत्र के अवचूरिकार ने भी इसका संस्कृत रूप 'राजप्रतियं' किया है ।' [सं० द्वि] [सं० त्रिकालम् ] [३] प्रसेनजित् का प्राकृत रूप 'पसेणइय' बनता है। स्थानांग में पांचवें कुलकर का नाम 'पसेणइय' है । * अन्यत्र भी अनेक स्थलों में यह मिलता है । प्रस्तुत सूत्र का विषयवस्तु यदि राजा प्रसेनजित् से संबद्ध होता तो इसका नाम 'रायपसेणइयं' होता, किन्तु इसकी विषयवस्तु राजा पएसी से संबद्ध है । इस दृष्टि से भी 'रायपसेणइय' नाम संगत नहीं है। दीघनिकाय में पायासी राजा प्रसेनजित् के सामंत रूप में उल्लिखित है । किन्तु प्रस्तुत सूत्र में राजा प्रसेनजित् का कोई उल्लेख नहीं है । अतः रायपसेणइयं' नाम का कोई आधार प्राप्त नहीं होता । १. रायपसेणइयं, प्रवेशक, पू० ६ २. पाक्षिकसूत्रम् पु० ७६ ३. पाक्षिकसूत्रम्, अथचूरि, पृ० ७७ राशः प्रदेशि नाम्नः प्रश्नानि तान्यधिकृत्य कृतमध्ययनम् - राजप्रश्नियम् । ४. ठाणं, ७७६२ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयवस्तु के आधारपर रायपएसियं' नाम की कल्पना की जा सकती है। किन्तु इसका कोई प्राचीन आधार प्राप्त नहीं है। राजा प्रदेशो के प्रश्न प्रस्तुत सूत्र की रचना के आधार रहे हैं, इसलिए इसका नाम 'रायपसेणिय' ही होना चाहिए। व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत सूत्र के व्याख्या-ग्रंथ दी हैं.---[१] वृत्ति और [२] स्तबक [टब्बा, बालावबोध ] । बत्ति संस्कृत में लिखित है और स्तबक गुजराती मिश्रित राजस्थानी में । वृत्ति के लेखक सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरि हैं और स्तबककार हैं पार्श्वचन्द्रगणी [ १६ वी शती और मुनि धर्मसिंह (१८ वीं शती] । स्तबक संक्षिप्त अनुवाद ग्रन्थ है । प्रस्तुत सुत्र के रहस्यों को स्पष्ट करने वाला व्याख्या ग्रन्थ वास्तव में वृत्ति ही है । वृत्तिकार ने सूत्र के सब विषयों को स्पष्ट नहीं किया है, फिर भी उन्होंने अनेक स्थलों में अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी हैं। वत्तिकार को वृत्ति-निर्माण में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई पाठ-भेद की थी। इसका उन्होंने स्थान-स्थान पर उल्लेख किया है। वर्तमान कठिनाइयों के आधार पर वृत्ति दो भागों में विभक्त हो गई । पूर्वभाग में वृतिकार ने सुगमपदों की पोशाख्या की है। उत्तरभाग में केवल विषमपदों की व्याख्या की है। अतएव पूर्वभाग की व्याख्या विस्तृत और उत्तरभाग की संक्षिप्त है । पूर्वभाग को विस्तृत व्याख्या के उन्होंने दो हेतु बतलाए हैं--- १. विषय की नवीनता २. पाठ-भेद की प्रचुरता उत्तरभाग की संक्षिप्त व्याख्या के भी तीन हेतु बतलाए हैं१. पाठ की सुगमता २. पूर्व व्याख्यातपदों की पुनरावृत्ति ३. पाठ-भेद की अल्पता। वत्तिकार ने लौकिक विषयों को लौकिक कला के निष्णात व्यक्तियों से जानने का अनुरोध किया है। राजप्रश्नीय और जीवाभिगम में अनेक स्थलों पर प्रकरण की समानता है। दोनों के व्याख्याकार आचार्य मलयगिरि हैं । इसलिए उनके समप्रकरणों की वृत्ति में भी प्रचुर समानता है। बत्तिकार को जीवाभिगम की मूल टीका प्राप्त थी । उसका वृत्तिकार ने प्रस्तुत वृत्ति में स्थान-स्थान १. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २०४, २४१, २५६ २. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २३६ : इह प्राक्तनो ग्रन्थः प्रायोऽपूर्वः भूयानपि च पुस्तकेषु वाचनाभेदस्ततो माऽभूत् शिष्याणां सम्मोह इति क्वापि सुगमोऽपि यथावस्थितवाचनामप्रदर्शनार्थ लिखित, इत ऊध्वं । प्रायः सुगमः प्राग्व्याख्यातस्वरूपश्च न च वाचना-भेदोऽप्यतिबादर इति स्वयं परिभावनोयः, विषमपदण्याख्या तु विधास्यते इति । ३. वही, पृ० १४५ : एते नर्तनविषयः अभिनयविधयश्च नाट्यकुशलेम्यो वेदितव्यः। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर उल्लेख किया है। एक स्थान पर जीवाभिगम-णि का भी उल्लेख किया है। वृत्ति का ग्रन्थ परिमाण तीन हजार सात सौ श्लोक है: प्रत्यक्षरगणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । सप्तत्रिशच्छतान्यत्र श्लोकानां सर्वसंख्यया ।। १. (क) रायपसेणियवृत्ति पृ० १०० आह च जीवाभिगममूलठीकाकृत्-विजयदूष्यं वस्त्रविशेषः इति । (ख) वही, पृ० १५८ आह च जीवाभिगममूलटीकाकारः अर्गलाप्रासादा यत्रार्गला नियम्पन्ते इति । जीवाभिगममुलटीकाकारेण-... आवर्तनपीठिका योन्द्रकीलको भवति इति । (ग) वही, पृ० १५६ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् ---कूटो माड़भागः उच्छयः शिखरम् इति । आह च ---जीवाभिगममूलटीकाकृत्-अंकमयाः पक्षास्तदेकदेशभूता एवं पक्ष बाहवोऽपि अष्टव्या इति। (घ) वही, पृ० १६० उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण ओहाडणी हारग्रहणं ? महत् क्षुल्लकं च पुंछनी इति । (च) वही, पृ० १६१ ___ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् - नैषिकी निषीदनस्थानम् इति ! (छ) वही, पृ० १६८ आह च जीवाभिगममूलटीकारः प्रकण्ठो पीठविशेषी इति । (ज) वही, पृ० १६६ उक्तं च जीवाभिगममूलटोकायाम् ---प्रासादावतंसको प्रासादविशेषौ इति । (झ) वही, पृ० १७६ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम्- मनोगुलिका नाम पीठिका" इति । (ट) वही, पृ० १७७ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण-हयकण्ठौ-हयकण्ठप्रमाणो रत्नविशेषौ एवं सर्वेऽपि कण्ठा वाच्या इति। (8) वही, पृ० १८० उक्तं च जीवाभिगममूलटाकायाम् --तैलसमुद्गको सुगन्धितेलापारौ ! (३) वही, पृ० १८६ जीवाभिगममूलटीकायामपि ४६ ---"उप्पित्थं श्वासयुक्तम्" इति । (8) वही, पृ० १६५ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् दगमण्डपाः स्फाटिका मण्डपा इति । (त) वही, पृ० २२६ जीवाभिगममूलटीकाकारः-"बिब्बोयणा-उपधानकान्युच्यन्ते" इति । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति के प्रारंभ में वृत्तिकार ने भगवान् महावीर को नमस्कार किया है और गुरु के आदेश से राजप्रश्नीय सूत्र के विवरण की सूचना दी है:... प्रणमत-बीरजिनेश्वरचरणयुगं परमपाटलच्छायम् । अधरीकृतमतवासवमुकुटस्थितरलरुचिचक्रम् ॥ राजप्रश्नीयमहं, विवृणोमि यथाऽगमं गुरुनियोगात् । तत्र च शक्तिमशक्ति, गुरवो जानन्ति का चिन्ता !|१|| वृत्ति की परिसमाप्ति में वृत्तिकार ने गुरु को विजयकामना और पाठक की ज्ञानकामना की है-- अधरीकृतचिन्तामणि-कल्पलता-कामधेनुमाहात्म्याः । विजयन्तां गुरुपादाः विमलीकृतशिष्यमतिविभवाः । राजप्रश्नीयमिदं गम्भीरार्थ विवृण्वता कुशलं । यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती। ३. जोवाजीवाभिगमे नामबोध प्रस्तुत आगम का नाम जीवाजीवाभिगमे है। इसमें जीव और अजीव इन दो मुलभुत तत्त्वों का प्रतिपादन है। इसलिए इसका नाम जीवाजीवाभिममे रखा गया है। इसमें नो प्रतिपत्तियां [प्रकरण] हैं। इनमें जीवों के संख्यापरक वर्गीकरण किए गए हैं। 'संसारीजीव के दो प्रकार...स और स्थावर। संसारीजीव के तीन प्रकार ---स्त्री, पुरुष और नपुंसक। संसारीजीव के चार प्रकार ने रयिक, तिर्यञ्च, मनूष्य और देव । संसारीजीव के पांच प्रकार ---एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय. त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । संसारीजीव के छह प्रकार---पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पति कायिक और सकायिक। संसारीजीव के सात प्रकार--नैरयिक, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देव और देवी। संसारीजीव के आठ प्रकार-प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नै रयिक, प्रथम समय तिर्यञ्च, अप्रथम समय तिर्यञ्च । प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य प्रथम समय देव, अप्रथम समय देव । संसारीजीव के नौ प्रकार -पृथ्वी काधिक, अपकाधिक, तेजस्कायिक वाधकायिक, वनस्पति कायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । ९. संसारीजोव के दस प्रकार---प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय प्रथम समय द्वीन्द्रिय, अप्रथम समय द्रीन्द्रिय । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 प्रथम समय त्रीन्द्रिय. अप्रथम समय त्रीन्द्रिय प्रथम समय चतुरिन्द्रिय, अप्रथम समय चतुरिन्द्रिय प्रथम समय पञ्चेन्द्रिय, अप्रथम समय पञ्चेन्द्रिय । नौवीं प्रतिपत्ति के आठवें सूत्र से अन्त तक सर्व जीवाभिगम का निरूपण किया गया है। वह वर्गीकरण भिन्न दृष्टि से किया गया है, उदाहरणस्वरूप—जीव के दो प्रकार सिद्ध और असिद्ध। जोव के तीन प्रकार सम्यक्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यक्मिथ्यादृष्टि । प्रस्तुत आगम में अवान्तर विषय विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इसमें भारतीय समाज और जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। स्थापत्य कला की दष्टि से पदभवरवेदिका और विजयद्वार का वर्णन बहुत महत्त्वपूर्ण है ! प्रस्तुत आगम मे आदेशों का संकलन मिलता है। एक विषय में स्थ विरों के अनेक मत थे। मत के लिए आदेश शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत आगम उत्तरवर्ती ग्रन्थ है। इसलिए इसमें स्थविरों के अनेक मतों का संकलन मिलता है । वृत्तिकार ने आदेश का अर्थ प्रकार किया है।' तात्पर्यार्थ में अनेक मतों का संकलन भी सिद्ध होता है। जीवा० २/२० में चार आदेशों का संकलन है। २/४८ में पांच आदेश उपलब्ध हैं । वृत्तिकार ने लिखा है कि पांच आदेशों में कौन सा आदेश समीचीन है, इसका निर्णय अतिशय ज्ञानी ही कर सकते हैं। सूत्रकार स्थविरों के समय में वे अतिशयज्ञानी उपलब्ध नहीं थे इसलिए सुत्रकार ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं किया, केवल उपलब्ध आदेशों का संकलन कर दिया। रचनाकार प्रस्तुत आगम की रचना स्थविरों ने की है। इसका आगम के प्रारंभ में स्पष्ट निर्देश है।। व्याख्या प्रन्थ प्रस्तुत आगम की दो व्याख्याएं उपलब्ध हैं एक आचार्य हरिभद्र कृत और दूसरी आचार्य मलयमिरिकृत । आचार्य हरिभद्रकृत टीका संक्षिप्त है, मलय गिरिकृत टीका बहुत विस्तृत है। मलयगिरि ने अपनी वृत्ति में 'इतिवद्धाः' तथा मूलटीका, मूलटीकाकार और चणि का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है । १. जीवजीवाभिगम वृ० ५० ५३ "आदेश शब इह प्रकारवाची" आदेसोत्ति पगारो "इतिवचनात, एकेन प्रकारेण, एक प्रकारमधिकृत्येतिभावार्थ:" २. वही व० ५० ५६ "अमीषां च पञ्चानामादेशानामन्यतमादेशसमीचीनतानियोऽतिशयज्ञानिभिः सर्वोत्कृष्ट-श्रुतलब्धि-संपन्न; कर्तुं शक्यते, ते च सूत्रकृतप्रतिपत्तिकाले नासीरन्निति सूत्रकृन्न निर्णयं कृतवानिति"। ३. जीवाजीवाभिगमे ११--इह खलु जिणमयं जिणाण मयं जिणाण लोमं जिणप्पणीतं जिणपरूवियं जिणक्खायं जिणाणचिण्णं जिणपगत्तं जिणदेसियं जिणपसत्वं अणु वीइ तं सहहमाणा तं पराियमाणा तं रोएमाणा येरा भगवन्तो जीवाजीवाभिगमे णामझयणं पण्णवइंस"। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'इतिवृद्धाः इयं च व्याख्या मूलटीकानुसारेण कृता।' "उक्तञ्च मूलटीकायाम्"।' "आह च मूलटीकाकृत्" "ताइच मुलटीकाकृता वैविक्त्येन न व्याख्याता इति संप्रदायादवसेयाः"५ "मूलटीकाकारणाव्याख्यानात्" "माह च मूलटीकाकारः".-"उक्तं चुणी" "आह च मूलटीकाकारः"----"उक्तञ्च मूलटीकाकारेण" ।' उक्तं मूलटीकायाम् "आह च मूलटीकाकार: "उक्तं च मूलटीकायाम्"" "आह च मूलटीकाकारः “आह च मुलटीकाकारः"" "उक्तं च मूलटीकायां" "उक्तं च मूलटीकाकारेण"१५ "आह च मूलटीकाकार:"-"णिकास्त्वेवमाह"१६ "आह च मूलटीकाकारः"-"आह च चूर्णिकृत्"" "सक्तं च मूलटीकायां"--"जीवाभिगम मूलटोकायां"१८ "आह च मूलटीकाकारोपि"-"आह च चूणिकृत्"१९ "तथा चाह मूलटीकाकारः३० "आह च मूलचूर्णिकृत्"२१ "मूलटीकाकारोप्याह"चूर्णिकारोप्याह"२२ "आह चूर्णिकृत्"२१ "तथा चाह मूलटीकाकारः"१९ "आह च चूणिकृत्"२५ “उक्तं चूणौ "आह च मूलटीकाकार:"१७ “आह चूणिकृत् आह च टीकाकार:२८ "भूलटीकाकारेणापि"२९ 'आह च मूलटीकाकार" १. वृ० प० २७ ६. वृ० ५० १४१ १७. ३०प० २१०।। २. वृ० प० ६४ १०, ११. वृ० ५० १४२ १८. वृ०प० २१४ ३. वृ० १० १०६ १२.३० ५० २७७ १६.३०प० ३२१ ४. वृ० ५० १२२ १३. वृ०प०१४ २०. ० ० ३५४ ५, ६. वृ० ५० १३६ १४. वृ०प० २०४ २१. ३०५० ३६६ ७. वृ० प०१३७ १५. वृ०५० २०५ २२. व० ५० ३७० ८. वृ० ५० १८० १६. वृ० ५० २०९ २३. ५० ५० ३८४ २४. वृ०५०४३८ २५. ३० प० ४४१ २६. वृ० प० ४४२ २७.० ५० ४४४ २८.३०प० ४५० २६. ५० ५० ४५२ ३०.३०प० ४५७ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूर्ति इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तरहस्य पकडने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है । विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्षमानता ही पाई है। इनकी कार्यः क्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा। उन सबको मैं आशीर्वाद देता है कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो। अपने शिष्य-साधु-साध्वियों के सहयोग से पाठ संशोधन का बृहत् कार्य सम्यग् रूप से सम्पन्न हो सका है, इसका मुझे परम हर्ष है । आचार्य तुलसी अक्षय तृतीय, १ मई १९८७ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली नई दिल्ली Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume consists of three agamas-Oväiyam, Rāyapaseṇiyam and Jīvājīvābhigame. EDITORIAL OVAIYAM The text of Aupapātika sutra has been constituted on the basis of the manuscripts and the vrati. The references to different ancient versions in this sūtra are in abundance. It is a repository of descriptions. That is why we find at various places the instruction-jaha ovaväte (as in Ovaváia), referring to similar describers of the other agamas Neither the commentaries of those agamas nor their authentic texts of the latter contain the describers accepted in the Aupopatika. Those describers, however, are available in other versions. It poses a problem for those who study the describers. The text of this Agama must be determined not only on the basis of adarsas and vriti but also on the basis of the describers available in the agamic commentaries and the texts of the other agamas. But it is difficult to do so without the compilation of the totality of describers. Some of the describers are as follows: Bhagavai : 7/175 evam jaha ovaväe jäva 7/176 evam jahä uvavâie, evath jaha uvavāie 7/196 jaha kupio java payacchitte 9/157: "jaha ovaväie java egabhimuhe" "evam jaha ovaväje jäva tivihäe" 9/158 "jaha ovaväie java satthavaha" "jaha ovavšie java khattiyakupḍaggǎme" 9/162 ovavâie parisă vappao taha bhāniyavvath 9/204: "jaha ovaväie java gaganatalamanulihant!" "evam jahā ovavšie taheva bhāniyavvam" 9/204 jaha ovaväie java mahāpurisa 9/208 jahi ovaväje java abhinandată 9/209 evath jaha ovaväie kupio java piggacchai 11/59 jaha ovavāie 11/61 jaha ovaväie küpiyassa 11/85 jaha ovaväie java gahanaya Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11/88 : 198 : evam jaheva ovavāie taheva 11/138 : jabā ovavě je taheva allapasālā taheva majjapaghare 11/154 : evam jaha dadhapainpassa 11/156: evam jahā dachapainge 11/159 : jahā ovavāie 11/169 : jahi ammado jāva bambhaloe 12/32 : evam jahā kūnio taheva savvam 13/107 : jahā kupio ovavāie jāva pajjuvāsai 14/107 : evan jahă ovavăje jāva årāhagā 14/110 : evam jahā ovavāje ammadassa vattavvayā 15/186 : evam jahä ovavă ie dadhappaippavattavvaya 15/189 : evam jahă ovavāie jāva savvadukkhāpamantam 25/569 : jahā ovavãie jāva suddhesanie 25/570 : jaha ovavāie jāva lühāhāre 25571 : jahň ovavaie jāva savvagaya Bhagavai Viti: patra 7 : aupapātikāt savyakhyāno'tra drsyah , 11:aupapātikavadvācyā ,,317 : “eva jahā uvayāie" tti tatra cedam sūtramevam... 318 : "evam jahā uvaväje jāva" ityanenedam sücitam......... 319 : "ja há ceva uvayāie" tti tatra caivamidam sūtram....... 462 : jahā uva vāie" tti tatra cedam sūtramevan leśatab......... 463 : "jahä uvavaie" tti tadeva leśato darsyate......... 463 : "evam jahā uvaväje" tatra caitadevam sūtram......... 463 : "jahā uvavāie" tti cedamevami sūtram......... 463 : "jabā uvavāie parisävannao" tti yathā kaunikasyaupapātike 476 : "jahā uvaväie" tti evam caitattatra...... 479 : "jahā uvavaje" iti anena yatsūcitar tadidam...... 481 : jahā uvavāie" ttı karanādidam děsyam...... „ 482: "evan jahā uvavāie" rti anena yatsūcitar tadidam...... 519: "jahā uvavaie" ityetasmädatideśadidam drśyam...... ,, 520 : "evam jaha uvavāie" iiyetatkaraņādidam drśyam...... 521 : "evam jaheve" tyādi "evam", anantara daršitenābhilāpena yathau pa pājike siddhänadhikftya sarihananādyuktam tathaivehāpi...... „521 : vākyapaddhatiraupapātikaprasiddha dhyetā...... „ 542 : "jahā uvavāie taheva altapasālā taheva majjanaghare" iti yathau. papātike ţţaņasālă vyatikaro...... ,,545 : "jabā dadhapainne" tri yathaupapātike drohapratijño'dhītastathā' yar vaktavyah taccaivam...... ,,545 • "evam jahā dad hapainno" ityanena yatsūcitam tadevam drśyam...... ,,548 : "jahā uvavāie" ityanena yatsücitam „ 549 : jaha ammado" iti yathaupapătike ammado'dhitastatha'yamiha yacyah Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ q patra 563 : "evam jahā uvayāle jāva årāhaga" tti iha yavatkaraņādidamarthato tra 563 : "exana arsyam.. diná yatsūc ,, 563: "evam jabe" tyādinā yatsūcitam...... „696 : "evam jahä uvavõie” ityādi bhāvitamevāmmadaparivrăjakakatha naka iti ,,924 : "ja hā uvaväie" tti anenedarí súcitam...... ,,924 : "jahă uvavaje" tti anenedam sūcitam ..... , 924 : "jaha uvavaje" tti anenedam sūcitam...... Jñátävytti „ 2: "varņakagrantho’trāvasare vācyab...... Vivāgasuyam 1/1/70 : jahā dadhapainne 2/1/36 : jaha dadhapainne 2/10/1 : jaha dadhapainde Rayapaseniyam sätra 3,4 : asoyavarapäyave pudbavisilapattae vattavvayā ovaväiyagamepam neya 688 : egadisāe jahå uvavõie jāva appegatiyā Rāyapaseniya vrut page 3 : sampratyasyā nagaryā varpakamāha-(Here Aupapătika has not been mentioned) ,, 8: yāvacchabdakararāt "saddje kittie nde sacchatte" ityädyaupapätika granthaprasiddhavarộnakaparigrahan ,, 10 : aśokayarapâdapasya pệthivišitāpatakasya ca vaktavyatā aupapātika granthānusāreņa jõeya , 27 : yāvacchabdakaraņādrājavarnako devīvarpakah samavasaranam caupapātikānusāreņa tāvadvaktavyaṁ yāvatsamaya sarapan samāp tam „30 : yāvacchabaakaraņāt "ājkare titthagare" ityādikaḥ samastopi aupapātikagranthaprasiddho bhagavadvarnako vācyaḥ, sa cātiga riyāniti na likhyate, kevalamaupapātikagranthādavaseyaḥ » 39 : babave uggă bhogā ityādyaupapātikagranthoktam sarvamavasatay yam yavat samagrāpi rājaprabhștikā parişatparyupāsinä avatişthate „116 : "evam jahā uvayāie tahā bhāņiyavvan" iti evaṁ yathā aupapâtike granthe tathā vaktavyam. tacca evam ,,288 : ityadirüpå dharmakıthāaupapätikagranthāda vaseyä Jambuddivapannatti 2165: evam jāva niggacchai jahi ovavâie jāva āulabolabahulam 2/83 : evam jahâ ovavāje sacceva añagāravannao jāva uddhañjāņu 3/178 : evam ovayāiyagamepan jāva tassa Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jambudditapannatti Viti : Sā. Vr. patra 14 : "vannao" tti rddhastimit asamțddhā ityādi aupapātikopāngaprasiddhaḥ samasto’pi varrako drastavyaḥ cirātītamityādirvarņakastatpariksepi vanakhandavarna kasahitaaupapātikato'vaseyah "vannao" tti atra räjño "mahayāhimavantamahante" tyādikorājñāśca “sukumā)apāņīpāye" tyādikovarnakaḥ prathamopangaprasiddho'bhidhātavyah yathā ca sa mavasaraṇavarna kan tathaupapātikagranthādavaseyam "tae nam mihilāe naya. ie singhādage” tyadikan “jāva' pañjaliudā pajjuvāsanti' ti paryant amaupapātikagatamavagantavyam... evo pārgādavagantavyamiti „,143 : "yathaupapātike" evaṁ yathā prathamopāüge... nipātah, aupa pātikagamaścāyam ,,154 : yathaupapätike sarvo nagäravarnakastathä'träpi vacyah 155 : kiyadyāvadityāha-ürdhvan jānuni yeşām te urdhvajānavaḥ..... atra yāvatpadasaṁgrāhyah "appegaiyā domāsapariāyā” ityādikaḥ aupa pātikagrantho vistarabhayānna likhita ityavaseyam ..264 : evamuktakramera aupapātikagamena prathamopāngagatapāthena tävad vaktavyam yāyattasya räjñaḥ purato mahāśvāḥ „, 325 : výkşavarnanam prathamopāngato'vaseyam Surapannatti Vri patra 2 : "yāvacchabdenaupapātikagranthaprasipāditah samasto'pí varnakah äinnajanasamühā” ityadiko drasta vyah ., 2: tasyāpi caityasya varnako vaktavyah sa caupapätikagranthädava seyah 2: tasya rājñaḥ tasyāśca devyā aupapātikagranthokto var ako'bhidh.. tavyah „ 2: samavasaraṇavarnanam ca bhagavata aupapātikagranthādavaseyam ,, 3: "bahave uggā bhogā” ityādya upapātikagranthovaktam „ 3:atra yāvacchabdadidamaupapātikagranthoktam drastavyam Candrapannatri (Ms. Vrtti) patra 5 : aupapātikagranthaprasiddhaḥ samasto'pi varnako drastavyah sa ca granthagauravabhayānna likhyate kevalamitata evaupapātikādava seyaḥ „ 5: aupapātikagranthokto veditavyaḥ „ 5: tasya rājñastasyāśca devyā aupapātikagranthokto var ako'bhidhä tavyah . 5: samavasara navarnanam ca bhagavata aupapātikagranthädavaseyam ,, 6: "bahave uggá bhoga" iyādyaupapātikagranthoktam sarvamava seyam Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Uvanga 1/141 jaha dadhapainpo 2/13 jaha dadhapainoo Dasão 10/2 rayavannao evah jaha ovavätie java ceilaņāe 10/14-19 sakorentamalladamepam chattepamh dharijjamapetam uvavalyagameņam neyavvath jāva pajjuvásai...... Dasă. (Ms. Vrtti) Vitti patra 11 aupapatikagranthapratipaditab samasto'pi varṇako väcyaḥ sa ceha granthagauravabhayanna likhyate kevalah tata evaupapatik davaseyab. Dasa, 5/4 D. 5/5, Ms. Vrtti patra 11: caityavarpako bhapitavyab sopyaupapātikagranthadavaseyab D. 5/6, Ms. Vittipatra 11: aupapatikoktam pathasiddhath sarvamavaseyamh...... D. 10/2, Ms. Vrttipatra 25: D. 10/2, Ms. Vrttipatra 25: D. 10/3, Ms. Vrttipatra 25: D. 10/6, Ms. Vrttipatra 26: D: 10/14-19, Ms. Vittipatra 28: .. D. 10/21, Ms. Vrttipatra 29: 55 "tasya varpako yatha aupapatikanāmnigranthe'bhihitastatha" 33 YX 33 vistaravy khya tüpapatikánusäreņa vācyā...... adikarab yavatkaranät... samasto aupapātikagranthaprasiddho... kevalamaupapätikagranthädavaseyab... Sutras of Oviyarh in other agamas: Ovaiyam Bhagaval Sutra 32 25/559-563 33 25/564-568 36 25/576-579 40 25/582-598 43 44 64 .5 "> javatti yavatkaranät janavühei vä......ugga bhoga......ityādyaupapatikagranthoktam uvavatiyagameṇīti aupapatikagranthoktakauņikavandanagamanaprakarepäуamapi nirgataḥ ihavasare dharmmakatha aupapätikokta bhabitavya 25/600-612 25/613-618 9/204 Raya. Sū. 49-55 Jambu, 3/178 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y ► 65 - 3/180 » 66 3/179 The Describer süfras The Describer sútras take several concise forms in the Aupapatika. These are : jāva : udae jāva jhime (117) evaṁ jāva : apačivirayā evam jāva (161) sesam tam ceva : paralogassa ärāhagā sesam tam ceva (157) evam : evam uvajshāyānaño therāņam (16) abhilâvetan : evam eenam abbilăveņam (73) evam tam ceva : sagadam vă evan tam ceva bhāniyavvam jāva Dappattha gangāmattiyae (123) bhāniyayvam : evam ceva pasatthar bhäņiyavvam (40) kandamanto eesis vannao bhâriyavvo jāva siviya (10). ņeyavvam : tam ceva pasattham peyavvan. evam ceva vaivipao vi eehim paehim ceva peyavvo. (40) Variant words and forms The variant words and forms as approved by Grammar and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint. Hence they have been distinguished from the variant readings and are given below : Sutra 1 kukkuda kuńkada (kha) musundhi musandhi (ka, kha) varka ovakka (ga) bhattao hatta (ka) kila khila (ka, kha) Oturagao oturanga (ka) darisanijjā darisanlyā (ka, kha) kālágaru kālāguru (ka) kahaga kahaka (ka, kha, ga) onikurambabhue niurambabhūe (kha) darisanijjā darasanijja (ka, kha) gulaiya guluiya (ka) abbhintara abbhantara (ka) bāhira bahira nivehim nitehim haladhara "halahara (vr) 'haņue "haņue (ka) bhuyagisara bhuyaisarao (ka, kha, ga: akaranduyao akaranduyao (ka, kha) Occharuo otharu (ga) (ka) (ve) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sutra 19 ,, 19 21 26 26 31 >> 32 *** در 99 31 39 13 93 34 " 40 43 33 43 43 44 46 "" 93 "" "" "7 ور 33 35 32 "" t, $2 52 52 » 58 59 ***** 32 *******888888 " "" 46 », 63 49 50 ,, 63 63 63 64 64 64 67 ,, 68 » 71 gupphe "vidhenam jaya āyāvāyā paravaya omoyarıya barasabhatte cauddasa soiasa caumāsie 'bhoitti davyabhi entassa *pautte usanna° rel darisapavarapijja °vici toyapattham vapniya vihassat! tirldadhart mahapphalam gayagaya paccoruhanti "susilittha" *vliyange küvaggaha "turaganath sakhinkhiçi "gophe" "pidhe nam jadä *muinga bhaṭṭittam *konca ǎdāvāyā paravādā avamoyariyā barasamabhatte barasamebhatte coddasama" coddasame solasama solasame caummāsie "bhoitti davvabhi intassa pajutte osanna ruy! damhsapavarapiya padiyakkapāḍiyakkājṁ pāḍiekkapāḍiekkäim paoya-lajthith patoda-laṭṭhim payotta-latthim abbhithgehim "misimisanta" *viti "toyavattham "pappiya" vahassati kirldadhari mahāphalaṁ gatagată paccorubhanti abbamgehith mismisanta "susalittha 'vijiyange kütuyaggähä *turang pam sakinkinl *mudanga bhaṭṭattam kufica ga) (ka, kha) (ka) (ga) (ga) (VT) (ka) (ga) (ka, kha) (ga) (ka, kha) (ga) (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (ka, ga) (ga) (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (kha) (ka, kha, ga) (ka) (ga) (kha) (ka) (ga) (ka) (ga) (ka, ga) (ka) (ga) (ka) (ka) (ga) (ka) (82, VT) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 82 >> 86 » 90 ,, 92 23 37 2, 92 ., 95 ,, 97 ,, 105 » 117 23 158 159 33 "; 164 " 170 vaira pighasa veyapijjam se je se jão "uriyão kukkuiyā "ahavvapa alău carimehimh "veniţiya bhūj anagārā tellä ,, 175 ,, 195 Description of the Manuscripts vaya ga. 1, pailthiya vajja nikasa vedanjjjath sejje sejjão *puriyão kokuiya athavvana läu caramehim *vantiy bhüre anakārā tela vai° pattiṭṭhiya (kha) (kha) (ka, ga) (ka, kha) () This was obtained from Gadhaiya Library, Sardarshahar, through Shri Madanchandji Gauthi. It contains 40 leaves and 80 pages. Each leaf is 11-3/4" long and 4-1/2" wide. There are 4 to 13 lines in each leaf, each line containing 40 to 46 letters. Commentary is inscribed in very small letters in the margin on all sides. The manuscript is beautiful, artistic and appears to have been used and read. The following eulogy is given at the end of the copy (ka, kha) (ka, ga) (kha, ga) (ka, kha, ga) (ga) (ka) (kha) (ka, kha ga) (ka, ga) (ka) (kha) (ka, kha, ga) (ka, kha) "iti i uvavālsūtram samaptam. grantha 1167. cha. Samvat 1623 varse phalguna sudi 3 dine. Agra nagare. pâtisäha tri Akbara Jalaludina rajya pravartamane. śri vihat kharataragacchalankara śrī pūjyarāja śrī 6 Jinasinghasûrivijayarajye pandita śrī Labdhivardhanamunibhirupapätikä näma upangaṁ likhāpitam. cha. vācyamanam ciraṁ nandyāt. Subham bhavatu lekhakavacakayoḥ, śr." () This manuscript was also obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 59 leaves and 118 pages. Each page is 10-1/4" long and 4-1/2" wide. There are 7 to 9 lines in each leaf and each line contains 40 to 45 letters. The upper and lower margins of the page contain the translation of the text in Rajasthani language. The following eulogy by the scribe appears at the end of the manuscript "śrī uvai upangam padhamam samattam. granthägram 1225. cha. śrī. Samvat 1665 varse pausa mase śuklapakse saptam tithau śrī somaväsare. śrl ári vikrama nagare maharajadhiraja mahārāja śri rayasinghj vijayaraje pandita karmasinghena lipīkstā. cha." Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Yε (T) This manuscript was also obtained through Sri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. Each page contains 26 leaves and 52 pages. Each page is 10-1/2" long and 4-1/2" wide. Each page contains 15 lines with 46 to 48 letters in each line. The manuscript concludes with"uvaiyam samattam, granthagra 1200, Subhamastu cha. fri," but the year is not mentioned therein. Looking at its leaves, letters and illustrations, the copy must be belonging to the 17th century. (T) This manuscript of the vṛtti was obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It has 75 leaves and 150 pages. Each leaf contains 13 lines with 55 to 60 letters in cach line. The size of the leaf is 10-1/4"x4-1/4". The manuscript is revised and clear. In the eulogy the following is inscribed-"Subham bhavatu, kalyāṇamastu. lekhakapāthakayośca bhadram bhavatu, cha. samvat 1996 varse Märgashrga sudi 1, bhaume likhitam, cha sri yadrom pustake drstvä, tädṛśum likhitam mayayadi buddhamaluddham vá, mama dogo na diyatell cha, cha. (..) Variant readings based on the Vitti There are no identical readings of different versions in the special manuscript of the vrti and the printed vṛtti. We have taken the manuscript vrti as authoritative. Rayapaseniyam The text of this sütra has been determined on the basis of manuscripts and the Vrtl. Jiväjiväbhigama and Aupapätika-sutras have also been used for determining the texts of the Süryabha and the Drdhapratifña chapters respectively. The commentator has mentioned the abundance of variant readings in different versions at every step. At the time of composing the commentary it posed a serious problem, but in later times it assumed still more serious dimensions. Even then we have revised the text by analysing the available material very minutely. None can claim that the revision of this text is totally flawless but this much can be asserted that we have maintained utmost neutrality and patience in our attempt to perform the task. The construction of the text of this sutra has exacted vast labour, and resulted in the enlargement of the body of the sutra, as also in the intelligibility of the text and the tastefulness of the subject-matter. Variant words and forms The variant words and forms as approved by grammatical rules and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint, so they have been distinguished from the variant readings and are given below Sutra No. 8 mauda matuḍa (ka) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ dheyam (ka) na; ukitthae patthe naiya hanta abhivandae ayarisao miuo pāsāie ativa tisovāņa mahalatenam venāņiehim viraciya ovāyānam 75 oņamanti mau °țānam matthae jaenam vijaeņam dheijam ņādio (ka, kha, ga, ca) okitthāe (cha) vatthe (kha, ga) Imaţthe (ca) ņātiya (ka, kha, ga, gha, ca cha) handa (ca) abhivandate (cha) ätansa (gha, ca) mauo (ka, kha, ga) pāsātie (ka, kha ga, gha) atīta (ca) tisomånao (ka, kha, ga, ca) mahalaenam (kha, ga, gha) vemānitehim (ka, kha, ga, gha) viratiya (ka, kha, ga, ca) vãiyāņam (ka, kha, ga, cha) yāyayānam (gha) ton amanti (ka, gha) miu (kvacit) tåņam (ka, ca, cha) matthate (ka, kha, ga, gha) jatenaṁ vijatenam (ka, kha, ga, gha) bahugio (ka, kha, ga, gha) bahugito (ca, cha) (vāra (ka, kha, ga, ca, cha) bāra (gha) okaveluyāto (ka, kha, ga, gha) sankhalão (kvacit) pakanthagā (gha, ca) sāle pahāte patese (ka, kha, ga, gha, ca, cha) savvoutao (ka, kha, ga, gha) vinaddha (gha) titthāna (ka, kha,ga,gha, ca, cha) ādinaga (ka, kha, ga, gha) uddham (ka) 'vetiyā (ka, kha, ga, gha, ca, cha) ophalatesu (ka, kha, ga, gha, ca, cha) 118 124 bahuio 129 dārao 130 135 137 "kavelluyao sarkalão paganthagā sãe pahāe paese 154 159 173 173 185 189 197 197 savyouyao pinaddha tithāņa āīnaga udoham Oveiya phalaesu Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 219 tato pilao 6 687 706 720 aoo 760 tao tago (ka) (cha) 228 binţă benţă (ka kha, ga, cha) bethā (ca) 245 suvirai-rayattäge suirai-raittape (ka, kha, ga, gha, cha) 292 kaducchuyam kaducchayam (ka, kba, ga, gha) 654 cariyāsu caliyāsu (ka, kha, ga) 664 piya (ka, kha, ga) ovinda vandao (gha) yühe pühe (ka, kha, ga) oparjbhäittă paribhägettă (ka, kha, ga, gha, ca, cha) kotthayão kotthão (ka, gha) agilāe aile (ka, ca) 754 ayoo (ka, kha, ga) aya (gha) 755 bhiccă bheccā (gha) kisie kasie (ka,kha, ga,gha, cha) > 771 vāukāyassa vāuyāgassa (ka, kha, ga, gha, ca, cha) » 787 bhikkhuyāṇam bhichuyānam (gha, ca) , 791 oppaogena oppayogena (gha) Description of the Manuscript () This manuscript was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 49 leaves and 98 pages. Each leaf is 10-1/2 x 4-1/2”, with 13 lines in each leaf and 50-55 letters in each line. It was scribed in V.S 1671 and the following is its colophon : "namo jiņapam jiyabhayāņam namosuya devayae bhagavale namo pannattie bhagavale namo bhagavao arahao pasassa passe supasse passavanīņabhoe. cha. Räyapasenaiyam samattañ. cha. granthāgram 2079 samarthitamidan sutram. cha. samyat 1671 varse bhādravă sudi 11" This colophon runs still further, but this faint portion is coloured with yellow. (a) They contajn 55 and 61 leaves respectively. (T) Both of them are similar to the manuscript (#). (9) This manuscript belongs to Yati Kana kachandji of Pali (Marwar). Its size is 10' x 41'. It contains 54 leaves and 108 pages, with 13 lines in each page and 46 to 48 letters in each line. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ It was scribed in V.S 1566. The followirg colophon is appended at the end of the manuscript : “cha. subham bhavatu lekhaka-pathakayoḥ śi sanghasya ca. sarvat 1566 varse caitra sudi 2 tithau adyeha srimadanahillapattane Śrī vrhat-kharataragacche śri Vardhamānasūrisantāne śrī jinabhadra sūripattānukramena śri jinahamsasürirajye väcana charyajayākäjaganišişya vä. dharma-vilāsaganivāc anārtham bha. Vastupalabhāryayā liliśravikayā. Putraratna bha, sāliga pumukhaparivära saśríkayä suśreyārtham ca lekhitam śri Räjapraśniyopāngam. (9) This manuscript was obtained from the collection of Punamchand Buddhamal Dudheria of Chhapar (Rajasthan). Each leaf is 12" x 5". There are 42 leaves and 84 pages in this copy, with 15 lines in each page and 48 to 54 letters in each line. Two illustrations are given in the first two pages. The script is beautiful but abounds in mistakes. Approximately it belongs to the sixteenth century. (3) This manuscript also was obtained from the collection of Punamchand Buddhamai Dudheria of Chhapar (Raj.) It contains 41 leaves and 82 pages, with 15 lines in cach page and 57 to 60 letters in each line. The script is ordinarily fair but flawless, It ends with the following colophon--"lipi saṁvat 1665 varse kārtika māse śukla pakşe saptami śukre Babberakapure pandita Labdhikallolaganinā lekhi.” (T) It was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. Its size is 101 X4}". It contains 52 leaves and 104 pages, with 17 lines in each page and 65 to 70 letters in each line. This manuscript was scribed in V.S. 1605 and ends with the following colophon : "iti malayagiriviracitā tåjapraśniyopāngavsttikä samarthitā. samāptam iti. pratyakşaragananayā {ranthägrań. cha, cha. pratyakşaragananāto granthamānari viniścitam. saptatrimśatšatányaira. ślokánām sarvasam khyayāḥ, cha, granthāgram sloka 3700, cha. Gri. sarvat 1605 varṣe śrāvana sudi 13, bhaume pattana västavyam, pandita Rudrasuta Jiganātha likhitam. śubham bhavatu. JIVĀJIVĀBHIGAME The text of this sütra has been revised on the basis of manuscripts and its vtti. The vrtti by Malayagiri is based on old adarsa, hence the texts of paim leaf and the vsiti are identical. The sūiras 3218, 457, 578, 826 together with their footnotes may be consulted in this connection. A great variety of readings in the relatively later editions provides ample room for deliberation and research Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * The fact regarding the dissimilarity of readings in the manuscripts of Jivajivabhigama has also been pointed out by Santicandra, the commentator of Jambudvipaprajñapti. Upadhyaya Santicandra has quoted the text about the description of the Kalpavrksa from Jivājīvābhigama. In describing the fourth Kalpavrksa be has quoted the reading Kanaga-nigarana" which he explains as 'the heap of gold." In the Vṛtti of Jivājīvābhigama the term 'Kanaganigaranam' has been explained as 'Kanakasya nigaranam, kanaka-nigaranam, galitaṁm, kanakamiti bhavaḥ". The change in script has led to change in reading. We find the reading "Kūḍāgāraftha" in some manuscripts. In the printed editions as well as the hand-written copy we find the reading 'Katägärädyāni". It has not been explained in the Vrtti of Jivajivabhigama. Of course, it has been explained in the Vrtti of "Jumbudvipaprajñapti"-"Kajäkäreṇa-sikharākṛtyädhyant." Acarya Malayagiri has himself mentioned the variant readings of the manuscripts. The verses, which the commentator quotes from other sources, have been included in the original text in comparatively recent manuscripts." In the Vriti we find the mention of the commentary on Jambudvipa-prajñaptl. The commentators of Jambudvipa-prajñapti definitely belong to a period later than that of Malayagiri. Hence it is a matter worthy of investigation whether this mention is an interpolation or whether Malayagiri had really got with him some old commentary of Jambudvipa-prajñapti. At some places the vṛtti contains a lot of matter worth deliberation. The commentator has explained the term "Sirivacchu as śrivṛkşa. Looking to the context it should be Srivatsa." 1. Jambudvipaprajñapti Vrtti. p. 108: atra cadhikāre jiväbhigamasutradarse kvacidadhikapadam api dṛśyate tattu vṛttavatyākhyatam svayam paryalocyamanamapi na narthapradamiti na likhitam, ten tat sampradayāda vagantavyam, tamantarena samyak päthaśuddherapi kartumasakyatvaditi. 1. Jambudvipa Vr. patra 102: kanakanikaraḥ suvarparāśih. 2. Jivajivabhigama, Vr. p. 267. 3. Jambudvipaprajñapti Vr. p. 107: See the footnote of Jiväjivabhigama, 3/594. 4. (a) Ibid. Vr. p. 321: iba bahudha sūtreşu păţhabhedāḥ parametāvāneva sarvatrapyartho narthabhedantaramityetadvyäkhyānusärena sarvepyanugantavya na mogghavyamiti. (b) Ibid. Vr. p. 376: "iha bhūyan pustakeşu vācanābhedo galitāni ca sūtrāņi bahuşu pustakeşu tato yathavasthitavacanābhedapratipattyartham galitasūtroddharaṇārtham caivam sugamanyapi vivriyante. 5. Ibid, Vrtti p. 331, 333, 334, 334; 3/820, 830, 834, 837: The footnotes are worth seeing. 6. väbhigama, Vitti p. 382: kvacit simhādinām varnanam drsyate tad bahuşu pustakeşu na drştamityupekşitam, avasyam cettadvyäkhyaaena prayojanam tarhi Jambudvipaprajñapli tīkā paribhavaniyā tatra savistaram tadvyäkhyānasya kṛtatva. 7. Ibid., vrtti p. 271: "Srivkapakitap-ladcaitam vrksɔ yeşim te sivrksatanchita vaksasab." Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The original commentator and Malayagiri had before them the intricacies of variant readings and different expositions ard in the times of later commentators also such discussions were often held. In this connection, a topic mentioned in the viti is of historical importance. The commentator writes that this sūtra is obscure on account of the peculiarity of aim and purpose. It can he explained only on the basis of the right tradition and solid ground. It is cheer repudiation of the sútra if it is explained carelessly and wbimsically, Due care had been taken that the sütra may not be repudiated or wrongly interpreted. Consequently, attempt was made to preserve the text and its meaning. Even then due to variation in intelligence and scribe's carelessness discrepancies in readings and expositions have taken place. On account of the variant readings we had to take great pajus in arriving at the correct text. The reader can estimate the labour involved by the variant readings and notes thereon appended in the edition. The manuscript marked "ta" is an abridged version of the text, e.g. the awing sūtra 1/41-1&im bhante kim pudam āhārenti apu goyamā putihä no apu. ogā no anogā anantaro pavaram aņuim pi ā bāyarāim pia uddham vi i ādin pi i savisae no avisae äņupuvvim no aņānupuvvim äcchaddi vāghātam pa siva tidisi ska. no vanpato kālā ni gandhato su 2 rasato no phāsaho tesim porä. na vipariņāmettä apuyva vapņa guna ska uppãetta ätasarira khettogadhe poggale savvappanattāe āhāramāhārenti,” Due to the flaw in script the reading like koridisim (ka) has found place in place of kistidisim. We have not accepted the readings of the al manuscript in many places, because they are too much abridged. Variant words and forms Jinakkayam Jinakhāyam Jinakhātam asuvii asuvītiyam (ka, kba) roemāņā rotamāņā (tā) 1/14 sanghayağa sanghatana 1. Ibid., Výtti p. 450 : sūtrāni hyamūoi vicitrābhiprāyataya durtakşyāṇiti samyaksampradayādavasātavyāni, sampradayaśca yathoktasvarūpa iti na kāçidanupapattis, na ca sūtrabhiprāyamajñātvā anupapattirudbhavaniya, mahastanäyogato maha'narthaprasak teh, sütrakto hi bhagavanto mahiyansah pratānikstāśca mahiyastaraistatkalavarttibhiranyaicvid adbhistato na tatsutresu manāgapyaDupapattib, kevalam sampradāyāvasāye yatno vidheyah. ye tu sūträbhiprāyamajñātvā yathakathañcidanupapattimudbhāvayante te mahato mahiyasa aśätayantiti dirghatārasamsārabhājah, āha ca ţikākāraḥ--"evam vicittàņi sūtraņi samyaksampradayādavaseyānītyavijñāya tadabhipråyam nānupapatticodanā kāryā, mahāśāta nāyogato maba'narthaprasangaditi" evam ca yo samprati duşşamānubhavatah pravacanasyopaplavāya dhūmaketavs ivotthitah sakalakalasukarăvyavacchinnasuvidhimärgánuşthätssuvihitasadhusu matsariņaste'pi víddhaparamparayātasampradāyādavaseyam sutrābhiprāyamapāsyotsūtram prarūpayanto mahāśátanabhäjah pratipattavyapakarnayitavyāśca dūratastattvavedibhiriti kytam prasangena". 1/1 (kha) (ta) Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 sanno joguvaoge kohakase kanhalessä ānapāņuo cbīraviraliya (ka) (ka) (ka) 1!19 1/21 1/26 1/72 (ga, ţa) (k) (kha) (ga, ta) (ta) (ka) (ka, kha, ga, ţa) (ga) 1/73 1/100 1/101 1/119 2/59 2160 2/74 thihū tahappagara duāgaiya ahāro paliovamaim abbbahiyaim phumphuaggi (tā) (ka, kha, ga, ta) (ga) 2192 vāsapuhattam 2/241 etāsi (ka) (ga) (ka) (ga, ļa) (ka, kha, ga, ta) (tā) (ka, kha, ga) (ka) (ka) 2/149 3/5 sannāto joguvatoge kohakasāte kiphasessä ānapāņa chiravirajiya chirivirāliyā chirivaviralia chīravitāli thibhu tahappakārā duyagatiya adhäro palitovamāim abbhadhiyāim phumphaaggi pumphaaggi vāsapudhattam vāsapuhuttam etesi egāsi vaņapphai jotana ayabahule āvabah ule ābādhe jenimam asiuttare adasatiari atthuttare kindapuda pāhalenam kerisata phudigao sphutitao usunavedanijjesu viraiya ekāhan tattha yattha jambūnatamaya iambūnatāmaya vaņassatio joyanao āvabahule 316 3/33 (ka, kha, ta) (tā) 3/48 3/73 3/77 abādhāe je pam imam asīuttaram adahattare (tā) (ga) (ta) (ka, ga) (tā) 3177 3/80 3/94 3/96 kinhapuda bāballenam kerisagā phudita (ka, kha, ga) 3/118 3/118 3/119 3/234 usiqavedanijjesu viraciya egāham ettha (ma, vr) (tā) (ka, ga, ta) (kha, ga, ta) (ka, kha, ga, ta) (tā) (ka) (ga, ta, tâ) 3/323 jambūņadamaya Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/371 3/372 3/412 3/593 3/733 3/750 3/748 31794 31798 (tā) 3/829 3/838/13 3/840 3/841 31841 (ta) uvagāriyālayane ovāriyalayane (ka, kha, ga, ta, tri) uvakāriyalayaņe (ta) khambhuggaya thambhuggaya (ka, ga) dhūvadhaçiyão dhūmadhadiyao (ka, kha) oviya uvvitiya (ka, kha) uvviiya (ga) bāyālisam bādālisam (tā) bāyālīsam bātálisam (tā) kelāse ketilāse (kha) kailāse (ga, ţa, tri) egunayālam iūyalam (ka) āyālam (kha, tā) iguyālam egayālisam eyālisam (ka, kha, ta) egayālīsam (ga) itālisam teņaţthenam eenattheņam (ga, tri) manussāpam manūsānam kayā; kadāyi balāhakā balāhatā bādare vijjukāre vătare vijjutāre (ta) badare thaniyasadde vātare thañitasadde (tā) nadi oi vă nihiti vā pandīti ya nidhayoti vā supakkakhoyarasei supikkakhot araseti (tā) khodavarannam khoyavarannam (ka, kha, ga, ta, tri) khodasarisam khotodasarisam (tā) hctthimpi hatthimpi (ga, ļa, tā) hitthampi (tri) savvahetthillam savvahethimayam savvovarillam savvupparillam (ka, kha, ta) savvabbhimtarillam savvabbhantaram (ta) ņiodā niotā °ņiodajīyā nigodajīvā (ka, kha, ga, ța, tri) oņiodajīvā onioyajīyāvi (ka, kha, ga, ţa, tri) aņāie anădie (tā) sakāsāi sakasādt ohidamsani avadhidamsaņi (ga, tri) odhidamsani 3/841 3/860 3/877 3/949 31998 3/1007 3/1007 3/1007 5/37 5/54 5/58 9/11 9/28 9/131 (tā) Description of the Manuscript Original text : leaves 94; samvat 1575; Hand-written. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ This Ms. belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaia Library, Sardarshahar. It contains 94 leaves and 188 pages with 15 lines in each page and 53-56 letters in each line. Its size is 13' 5'. It is beautifully scribed. The following is the eulogy at the end : "Samvat 1575 var se āśvinamāse kssrapakşe trayodaśyām tithau bhguvāsare pattananagaramadhye mochajātiya Joši vitthalasuta latakanalikhitam. cha. yādssam pustake drstam, tädssam likhitam mayă/yadi suddhamasuddham va mama doso na diyate 1/1/[ śubham bhavatu lekhaka-pāthakayoh kalyānamastu. cba. cha. Śrī. śīī. cha. granthāgra 5200. (C) Original text : leaves 80. This Ms. belongs to Sardarshahar mentioned above. It contains 80 leaves and 160 pages, with 15 lines in each page and nearly 61 letters in each line. Its size 12" x 41". The Ms. is very old and tattered. The scribing year is not mentioned at the end, but most probably it must belong to the 16th century, (T) Original text : leaves 90. Illustrated. It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 90 leaves and 180 pages with 15 lines in each page and about 63 words per line. Its size is 11t'x4'. On the first page there is beautiful illustration in golden ink of the image of the Tirthankaradeva. It is very beautifully scribed. In the centre there is bavadi and in the middle of that there is a red circular spot. There is no puspika and scribing year at the end of the ms., but most probably it belongs to the 16th century. It almost tallies with the palmleaf manuscript and the commentary. (AT) Palmleaf photo-print of Jaisalmer Bhandāra. This copy mostly tellies with the commentary. It does not contain the pages containing the sūtras 105-115 of the third pratipatti. (2) car : Scribing year 1800. It belongs to the Order's Library, Ladnun. It had been thoroughly studied by Acārya Kájūgani (the eighth pontiff) and the text had been corrected by him at various places. Jīvājivābhigama ţikā (Hand-written) It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 250 leaves, and 500 pages with 15 lines per page and about 65 letters per line. Its size is 10" x 4-1/4'. The scribing year is sativat 1717. The scaipt is very beautiful. Acknowledgements Jainisam has a long tradition of councils held for compiling the texts of the Āgamas. Ere 1500 years from today there had been four councils on Agama. After Devarddhigaņi no well-planei Agini council was held. The Agamas Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ compiled at that time fell into disorder during this long internal. So a wellorganised council was the need of the hour to revise the Āgamas again. Acārya Tulsī tried his best for a general consensus on Agama-editing but it could not materialise. Lastly it was decided that if our editing of Agamas is research-oriented, unbiased and punctilious, it will be universally accepted. On this consideration we started our work of holding the council for critically editing the Agamas. Acāryasri Tulsi is the chief of this vacanã. Vacană means "teaching”, that comprises so many activities like search of the correct text, translation, critical and comparative study, and so on. In all these activities the active cooperation, guidance and encouragement from the Acāryasri is always available to us. It was our forte for undertaking such onerous task. Instead of expressing my gratitude to the Acāryasri and thereby feeling relieved from the burden of his gratefulness, I feel it better to require more energy through his blessings and become heavier for taking up the next assignment. In editing the texts of Ovõiyam and Rāyapaseniyam of this book Muni Sudarshan, Muni Madhukara, Muni Hiralal and in editing the text of jivājīvābhigame Muni Sudarshan & Muni Hiralal have worked with diligence and perseverance. Muni Chatramal, Muni Balchand, Muni Hansraj and Muni Manilal have also lent remarkable cooperation is editing the text of Jivājīvābhigame. Word index of Oväiyam has been prepared by Muni Shrichand and that of Rāyapaseniyam and Jivājīvābhigame by Muni Hiralal. Muni Sudarshan, Muni Hiralal and Sādhvi Siddhaprajñā, and Samaņi Kusumaprajñā actively cooperated in correcting the proofs of the book. The general get-up of Ovãiyam and Rāyapaseniyam has been prepared by Muni Mohanlal "Amet". The first two indexes have been prepared by Muni Hiralal. In the revision of the text also he was remarkably helpful. While evaluating their cooperation in the accomplishment of this assignment 1 express my gratefulness to all of them. The services of Late Madanchand Gauthi, who had a deep insight into the Agamas and who helped me in editing the text of the Agamas, cannot be forgotten at this stage. If he had been alive, he would have been very happy at this achievemnt, Shri Shrichand Rampuria, Kulapati, Jain Vishva Bharati and the Managing Editor of Agama Literature, has been actively involved in the Agama work from the very beginning. He is fully-determined and working hard to reach the Agama literature to the laymen. Having relieved himself of his well-set Advocate's job he has been devoting most of his time to the Agama programme. Shri Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Khemchand Sethia, President and Shri Shrichand Bengani, Secretary of Jain Vishva Bharti have also actively cooperated in this task. The English rendering of the Editorial and the Introduction were done under the supervision of Dr. N. Tatia and Dr. V. P. Jain by Shri R.S. Soni & Samaņis Chinmayaprājñā and Ujjvalaprajñā have also been actively associated with it. It is simple formality to mention the names of those proceeding in the same direction with the same speed for a common goal. Really it is a sacred duty for us and we have all fulfilled it. -Yuvācārya Mahāprajña Adhyātma Sadhana Kendra, Mebrauði, Delhi. Akşaya Tstiya, Ist May, 1987. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION The present book is Uvangasuttani. It contains the original text of twelve Upāngas with variant readings and abbreviated texts. It has two parts. The first part contains three Agamas (1) Oviyam, (2) Rāyapaseniyam and (3) Jivājīvâbhigame. The second part contains nine agamas : (1) Pannavana, (2) Jambuddivapannatli, (3) Candapannatti, (4) Surapannati, (5) Nirayāvaliyao (Kappiyao), (6) Kappavadisiydo (7) Pupphiyão, (8) Pupphacüliyão, (9) Vanhidasão. In the ancient tradition we find the following two classifications of the āgamas : (1) Arigapravişğa and (2) Angabahya. There was no such categorisation as Upanga in the old tradition. Nandisätra bears no mention of any Upanga. In any older agama too, Upānga has not been mentioned. The Tattvärthabháşya uses this word for the first time, which is the earliest in the available texts." Relation between Anga and Upanga Tattvārthasūtra mentions the word Upanga, but it does not indicate any relationship between them. We find it mentioned in the vrti of Jambūdvīpaprajñapti and the Sukhabodha Sāmācāri at page 34, composed by Shrichandra Sūri, the commentator of Nirayāvalika. According to Jambūdvipaprajñapti, the interrelationship between angas and upängas is shown as under :Anga Upanga Acárāöga -Aupapātika Sūtraktärga -Rájapraśniya Sthânẵnga -Jivajtvábhigama Samavāyanga -Prajiapana Bhagavati --Jambūdvipaprajtapti Jñatādharmakatha -Candraprajāapti Upåsakadaśă -Suryaprajšapti AntakȚddaśa -Nirayāvalika( Kalpika) Anuttaropapātikadasă --Kalpāvatansika 1. Tattvārthabhāsya, 1/20 : tasya ca mahāvisayatvättăastanarthanadhikstya prakaranasamăptya peksamangopădgan&nātvam. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Praśnavyākarapa -Puspika Vipāka śruta - Puşpacủlika Dşstivāda -Vrşpidašā! 1. Ovaiyam Nomenclature The present agama is called Ovõiyam (Aupapātikā). Its main theme is udapāta. Samavasarana is its incidental treatment. On the basis of the main theme treated herein, it is known as Ovãiyam (Skt. Aupapāt ika). On deleting Jetters "va” as per the Prakrit Grammar Rule, we get ovāiyam form in place of ovavăiyam. We come across the same name in the Nandisutra. Subject-Matter The main theme enunciated in the Aupapātika is 'rebirth, that so and so upapăta (instantaneous rebirth) takes place because of such and such conduct. The exordium consists of many types of descriptions of town, monastery, garden, king etc. The present sūtra has come to be known as a Varņaka (describer) sūtra because of these descriptions and has been used in various epilogues for this reason. Commentaries The first commentary of the Aupapātika is the vitti by Abhayadeva Sūri, the commentator of the nine agamas. The introductory verse shows that Abhayadeva Súri had got no other earlier vpiti in front of him. He composed this vrtti with the help of other texts. He himself mention : Śrīvarddhamānamānamya prāyo'nyagranthaviksitā / aupapātikaśāstrasya vyakhyā kācidvidhīyate 11 The commentator has mentioned the views of the foregoing åcāryas at - several places. 1. Snānādvă pāņdurībhūtagătrā iti vrddhāb/(Vștti p. 171) 2. cūrņikārastvāha/(Vịtti p. 224) 3. asya ca vfddhoktasyādhik tagāthavivaranasyärtham bhāvarthah/ (Vrtti p. 225) This commentary is neither too elaborate not too abridged. Its medium size contains most of the points worth discussing. The Oväiyam contains numerous variant readings. Abhayadeva has des. cribed the first sūtra thus-"This sūtra is abundant in variant readings. I shall deal with only what is intelligible."3 Most probably such variant readings do 1. Jambüdvipaprajñapti, Sänticandriya Yrtti, patra 1, 2. 2. Nandīsūtra, 76. 3. Aupapātika, yrtti, page 2: jha ca bahavo vācapabhedā drśyadio, teşu ca yamevāvabhotsyåmahe tameva vyākhyāsyāmah. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ not appear in any other sūtra. If the commentator had not compiled them, they would have passed into oblivion. The commentary ends with an eulogy in three verses, in which the commentator mentions the names of his guru-Shri Jineśvara Süri, of the Candra lineage, and the place of composition- Anahilapā takanagar and Droņācārya who revised the Vštti: candrakula-vipula-bhūtala-yugapravara-vardhamānakalpataron / kusumopamasya süreh gusasaurabha-bharita-bhavanasya !! nissambandhavihārasya sarvada śrljineśvarahvasya / šişyeņābhayadevākhyasūripeyam kştā vsttih | anahilapāțakanagare śrímaddroņākhyasūrimukhyena / panditagupena guravatpriyeņa samsodhitā ceyam Il The second commentary on the Ovaiya is 'Stabaka', which was probably composed by Muri Dhamasi and belongs to the eighteenth century of the Vikram era 2. Rayapaseniyam Nomenclature This sutra is called Rāyapaseniyam. Pt. Bechardas Doshi has named it as Rayapasenaiyam, stating that it is based on the 'Rajaprasenakiya' referred to by Siddhasenagani and Rajaprasenajita referred to by Muni Candrasuri.1 The earliest mention of this sūtra is found in Nandisútra, under the name Rāyapaseniya. The name has not been explained in the Nandi cūrni and its commentaries by Haribhadrasūri and Acātya Malayagiri who has named it as Rājapraśniya' while dealing with it. King Pradeśī had asked some questions to Kesisvámi. The present sūtra contains replies to the questions and hence the name 'Rajapraśniya'.3 From the point of view of treatment of the subject-matter, Malayagiri's commentary is quite in order and the name does not sound awkward or improper on that account. But lexicographically the name is open to criticism, specially by Pt. Bechardas who contends that --"the word 'praśna' takes the forms 'punha' and 'pasina' in Prakrit, and not the form 'pasena'. There is no form as 'pasena' according to Prakrit grammar. If we recognise it 1. Răyapasenaiyam, praveśaka, Page 6 & 7. 2. Nandi, sūtra 77. 3. (a) Rāyapasenya vftti, page 1 : atba kasmäd idam upangam rajaprašolyābhidhanamiti? ucyate, iha pradesinamā rājä bhagavataḥ keśikumāraśramanasya samipe yan jivavisayan praśnánakārşit, yāni ca tasmai kesikumāraśramanoganabhri vyākaranäni vyäkfiavān. (b) Rāyapaseniya Vğiti, page 2: rājaprašnesu bhavam rājapraśniyam, Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ qr as an authoritative form (arsa), all rules about the correct or wrong usage of words in Prakrit would have been set to naught.1 Pt. Bechardas's contention may be valid, but it is not irrefutable. In our view (1) The original form of 'paseniya' is 'pasiniya' (Skt. praśnita). In pronun ciation, assumption of the form ' by 'e' is quite consistent. We find such departure elsewhere too. For example : pihupiņam pivvāṇam nivvutl tigicchiyam bință bi tikālam pehuneṇam Devvāṇam nevvuti tegicchiyam benţă be tekālam (2) In the Agama-sutras and old scriptures we find the text as rayapaseniya". The usage 'rayapasepaiya' is not available anywhere. In the Nandisutra we come across 'rayapaseniya' as mentioned earlier. In 'Pakṣika sūtra' too, 'rayappaseniya' occurs. The composer of the avacri of Pakşika sütra gives its Sanskrit form as 'rajapraśniyam"." (Dell) (Skt. nirvanam) (Skt. nirvittiḥ) (Skt. cikitsitam) (Skt. vṛttam) (Skt. dvi) (Skt. trikålam) (3) Prasenajit takes the form 'pasenaiya' in Prakrit In the Sthananga sutra the fifth kulakara is named as 'pasepaiya". This form is available at various other places too. If the subject-matter of the present sutra had been related to King Prasenajit, the name could have been "Rayapasenaiyam". But in fact the subject-matter relates to King Paes!; hence the form "rayapasepalya" is not compatible. In the Dighanikaya King Pāyāsī is mentioned as a feudal lord to Prasenajit. But here we find no mention of King Prasenajit. Therefore the usage 'Rayapasenatyam' has no basis. From the point of view of the subject-matter we may conjecture about the name 'Rayapaesiyam', but there is no basis for such a conjecture. King Pradesi's quesies form the basis of the composition of the sutra in question. Therefore its name must be 'Rayapaseniya' and none else. Commentaries Its two commentaries are named as (i) vṛtti, and (ii) stabaka Jabba or 1. Rayapasenaiyam, pravesaka, page 6. 2. Püksikasütram. page 76. 3. Pākşikasūtram Avacuri, page 77: Rajñaḥ pradesi nämnaḥ praśnāni, tänyadhikṛtya kitam adhyayanam-rajapraśniyam. 4. Thanam, 7/62 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ bālāvabodha). The former is in Sanskrit while the latter is in the admixture of Rajasthani and Gujarati. Výtti was composed by the renowned annotator Ācārya Malayagiri while the stabaka was written jointly by Pārsvacandragapi (16th Century) and Muni Dharmasingh (18th Century). Stabaka is a short piece of translation but viti is the real commentary which ciarifies the underlying meaning of the sutra. Although the writi has not been able to explain the whole theme, yet the commentator has provided valuable information at various places. The author had to face many obstacles in writing the vriti, the most difficult of them being the variations in text. He has mentioned this difficulty at several places. To surmount these obstacies the yoti has been bifurcated in two parts: (i) The first part : for commentary of intelligible words, and (ii) the later part : for commentary of technical terms. Thus the first part is quite extensive, while the later part is brief. The causes of detailed treatment in the first part are twofold: (a) Novelty of the subject matter. (b) Abundance of variant readings. Likewise the later part has been treated in brief due to the following reasons: (a) Intelligibility of the text. (b) Repetition of the terms already explained. (c) Small number of variant readings.? The commentator desires us to learn the mundane topics from the experts of that art.Both Rājapraśniya and Jivābhigama bear identical topics at various places. Acārya Malayagiri is the commentator of both of them. That is why the topics of the commentaries are largely identical. The commentator had obviously got the original commentary of Jivābhigama, which fact has been mentioned time and again in this commentary. 1. Rayapaseniya Vetti, p. 204,241,259. 2. Rayapaseniya Vrtti, page 239 : iba prāktano granthaḥ prāyo'pūrvah bhūyidapi ca pustakesu vācapabhedastato mā'bhūt sisyānām sammoha iti kväpi sugamo'pi yathavasthitavācanākramapradarśanartham likhita. ita ürdhvam tu prāyaḥ sugamah prāgvyakhyātasvarūpasca na ca vācanabhedo pyatibādara iti svayam paribhāvanīyaḥ, vişamapadavyakhya tu vidhäsyate ita. 3. Ibid., page 145: ete nartanavidhayah abhinayavidhayaśca națyakusalebhyo veditavyäh. 4. (a) Ibid, page 100 āba ca jīvābhigamamülaţikäkrt vijayadāsyam vastraviśesah iti. (b) Ibid, page 158: äha ca jivăbhigamamülaţikākārah argalāprāsāda yaträrgala niyamyante iti, Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ At one stage Jiyābhigama cūrni has also been mentioned. Vrtti contains 3700 ślokas :pratyakşaragañanāto granthamānam viniścitam / saptatrimsacchatānyatra flokānām sarvasankhyaya // At the very outset, the commentator remembers Lord Mahavira reverentially and with guru's permission proceeds with the commentary on the Rājapraśnīya sutra -- prañamata virajineśvaracaranayugam paramapātalacchāyam / adharikštanatavāsavamukuțasthitaratnarucicakram II tājapraśniyamaham vivśnomi yathā'gamam guruniyogāt / tatra ca Śaktimaśaktim guravo jánanti kā cintā // At the end, the commentator prays for the victory of his preceptor as also attainment of knowledge for the reader :-- adharikstacintāmaņi-kalpalatā-kämadhenu-māhātmyåḥ / vijayantämn gurupādāḥ vimalikytaśışyamativibhaväh || räjapraśniyamidan gambhīpārtham vivȚnvatā kuśalam/ yadavāpi malayagiriņā sādhujanastena bhavatu krti //!! jivābhigamamălaţikākārena-măvarttanapithika yat rendrakilako bhavati iti. (c) Ibid, page 159 : āha ca jīvābhigamamulaţikakrt-kūto mādabhagah ucсhayah śikharang iti. aha ca --jivābhigamamulaţikakrt-ankamayah paksāstadekadeśabhūtā evam paksa bähavo'pi drstavyā iti. (d) Ibid, p. 160: uktanca jīvābhigamamulaţikäkarepa ohädapi haragrahapam? mabat kşullakam ca punchani' iti. (e) Ibid, p. 161: äha ca jīvābhigamamülaţikäkrt--naisedhiki nişidanastbånam iti. (1) Ibid. p. 168 : āha ca jivābhigamamūlatīkākārah---prakapthau pichavićeşi iti. (g) Isid, p. 169: uktañ ca jivabhigamamülatikāyām-prāsădāvatamasakau präsādavićeşau iti. (h) Ibid, p. 176: uktañ ca jīvābhigamamūłatikāyām--manogulikā nāma pithikā iti. (1) Ibid, p. 177: uktañ ca jivābhigamamulaţikākārena--haya kanthau--hayakanthapramānau ratnaviš sau evam sarve'pi kanthă văcyā iti. () 1bik, p. 180: oktañ ca jīvābhigamamülatikāyām--tailasamudgakau sugandhitailadharau. (k) Ibid, p. 189: jīvābhigamamulaţikāyāmapi (46)-uppittham śyāsayuktam iti. (1) Ibid, p. 195: oktañ ca jivābhigamamūlaţikāyām-dagamandapāb-sphățikā mangapā iti, (m) Ibid, p. 226: jīvābhigamamūlajikākārah-bibboyanā upadhānakāpyucyanfe it... Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JIVĀJIVĀBHIGAME Nomenclature The āgama under review is Jīvājīvābhigame. Jiva and ajiva-the two basic tattvas have been dealt with herein, hence it has been named as Jīvājīvā. bhigama. It contains nine chapters in which the sentient beings have been numerically classified :--- 1. Two kinds of mundane beings--mobile and immobile. 2. Three kinds of mundane beings--woman, man and eunuch. 3. Four kinds of mundane beings--heilish-beings, animals, men and gods. 4. Five kind of mundāne beings--one-sensed, two-sensed, three-sensed, four sensed and five-sensed. 5. Six kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air bodied, vegetation-bodied and mobile-bodied beings. 6. Seven kinds of mundane beings-hellish, male animals, female animals, men, women, gods and goddesses, 7. Eight kinds of pundane beings---first time hellish, second time hellish, first time animal, second time animal, first time man, second time man, first time god, second time god. 8. Nine kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air bodied, vegetation-bodied, two-sensed, three sensed, four-sensed and five-sensed. 9. Ten kinds of mundane beings-One time one-sensed, second time one-sensed, one time two-sensed, second time two-sensed, one time three-sensed, second time threesensed, one time four-sensed, second time Tour-sensed, first time five-sensed, second time five-sensed. The whole of Jivābhigama has been dealt with upto the end of the eighth sütra of the ninth pratipatti. This classification is based on various other criteria, e.g., two kinds of sentient beings-emancipated (siddha) and nonemancipated (asiddha). A sentient being has three other categories too--one possessing right Vision, perverted vision and right-cum-perverted vision. In this agama secondary subjects are available in abundance, which provide detailed information about Indian society and life. From the architectural point of view the description of 'padmavara' (lotus) altar and 'vijuyadvára' (gate of victory) is very important. The agama is a compilation of various adešas (view-points). The sthaviras Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ held divergent views on single topics. The word adeśa was used for a viewpoint. This agama is supplementary in nature. Hence it embodies various view-points of the sthaviras. The commentator uses adeśa in the sense of "kinds". In essence the compilation of various viewpoints is clearly proved. In Jiväjivabhigame, 2/20, we find four adeśas whereas in 2/48 there are five. The commentator is of the view that only the extraordinarily gifted persons can pass a judgment as to which of five alesas is proper. There were no such gifted persons during the period of the sthaviras, hence the commentator has obviously abstained from expressing his own views on the subject. He has simply compiled the available adelas. The sthaviras are the authors of this agama. This is clearly indicated at the beginning of the agama." Commentaries Two commentaries are available on this sūtra-one by Acarya Haribhadra, and the other by Acarya Malayagiri. The former is concise whereas the latter is quite cloborate. Malayagiri's vṛtti contains the ascription "iti vṛddhāḥ" as well as the mention of the original text, the commentator and the curni at several places: £ " "iti vṛddhab 'iyam ca vyakhya mülaṭīkānusärena kṛtā "uktafica mülaṭīkāyām" "aha ca mülaṭikäkit *tai ca mulaṭīkākṛtä vaiviktyena na vyakhyātā iti sampradayādavaseyāḥ** 'mülatkäkäreṇāvyākhyānāt aha ca malaṭkākāraḥuktam cürpau 'àha ca mulat!kükärab-uktam mülaṭīkākārena' 1. Jiväjivabhigama, Vrtti p. 53: "adeśa sabda iha prakāravāci"-adesotti pagaro'iti vacanãt, ekenaprakāreņa, ekaprakāramadhikrtyetibhāvārthab". 2. Ibid., p. 59: amişăm ca pañcānāmādeśānāmanyatamādeśasamīcīnatānirṇayo'tiśayajñānibhiḥ sarvotkṛṣṭaśruta labdhisampannairvā kartum sakyate te ca sūtrakṛtpratipattikāle nāsīranniti sūtrakṛona nirnayam kṛtavāniti”. 3. Jiväjivabhigame, 1/1: "iha khalu jinamayam jinanumayam jipanulomam jigappagitam jinaparūviyam jipakkhāyam Jānucinoam jipapagpatam jinadesiyam jinapasatthen apuvli tam saddahamāņā tam pattiyamāṇā tam pattiyamanā tam roemana thera bhagavanti jīvājivābhigamne pāmajjbayanam panavaimsu". 4. Vrtti, p. 27 5. D. 64 6. p. 109 7. p. 122 "1 " 8. 9. 10. 11. " " 33 p. 136 p. 136 p. 137 p. 180 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fuktar mūlaţikāyam' ‘äha ca mulațīkākäraḥ2 fuktam ca mülatīkāyām" 'âha ca mūlaţikäkāraḥ'i *aha ca mulaţikākärah ‘uktañca múlatikāyām" ‘uktañca mülaţikēkārena" 'äha ca mülaţikäkārah', 'cūrņikăstvevamāha's *äha ca mulațīkākārah' "aha ca cúrnikȚt": ‘uktanca mülaţikāyām', 'Jīvābhigama mülaţikāyām 10 'äha ca mulaţikākāro'pi'. 'āna ca cürņiksto!1 ‘tathā cāna mūlatīkākārah:12 'äha ca mülacūrni krt 13 'mülatīkåkāro'pyāha......cũrņikäro'pyāhald 'ha cūrņikst'5 'tathä сāha mülatīkākāraḥ 18 ‘äha ca cürņikrt'17 ‘uktañ cūļņau’18 ‘äha ca mülatīkākaraḥ’is ‘āha cūrņikft áha ca tīkākāraḥ 20 ‘mūlațīkākāreņāpi 21 'ha ca mülatīkākāraḥ:22 Fulfilling the assignment The credit of editing this text goes to a great extent to Yuvācārya Maháprajña, because the work has been accomplished through his perseverance day and night, otherwise this onerous task was difficult to be finalised He is basically inclined towards yoga. Therefore it is easy for him to maintain his equipoise (concentration). Not only that, being engrossed in the study of the Agamas in a routine manner he has developed a keen intellect in grasping the inner mysteries of things. The credit of his intellectual development goes to his humbleness, diligence and total surrender to his preceptor. He has been displaying such inclination since childhood. Since he came over to me, this 1. VȚtti, p. 141 12. Vrtti, p. 354 2. p. 142 13. P. 369 3. p. 142 14. , p. 370 4. , p. 277 15: „ p. 384 5. , p. 186 16. . 438 6., p. 204 17. , p. 441 7. , P 205 18. p. 442 8. , p. 209 19., p. 444 9., p. 210 20., p. 450 10., p. 214 21. , p. 452 11. p. 321 22. . p. 457 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ learning has been gradually increasing. I am quite satisfied with his capacity to work and his dutifulness. Seve.al other saints have cooperated in revising the text of this agama. I heartily bless them and wish that their work-born capacity should develop all the more. My joy knows no bounds to see that the gigantic task of text revision has been successfully brought to completion through the cooperation of my disciples -the monks and nuns of the order. - Ācārya Tulsi Adhyātma Sadhana Kendra, Mehrauli-New Delhi, Akşaya Tștiya, 1st May, 1987 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम ओवाइयं समोसरण-पयरणं सूत्र १ से १ पृ०१ से २१ चंपानयरी-बण्णग-पदं १, पुण्णभद्दचे इय-वण्णग-पदं २, वणसंड-वण्णग-पदं ३, असोगपायव-वण्णगपदं ८, पुढविसिलापट्टय-वणग-पदं १३, कूणिय राय-वण्णग-पदं १४, धारिणोदेवी-वष्णग-पदं १५, पवित्ति-वाउय-पदं १६, महावीर-वण्णग-पदं १६, पवित्ति-वाउयस्स निवेदण-पदं २०, सविहिणमोत्य-पदं २१, भगवओ उवागम-पदं २२, समण-वण्णम-पदं २३, निग्गंथ-वण्णग-पदं २४, थेर-वष्णग-पदं २५, अणगार-वण्णग-पदं २७, अपडिबंध-विहार-पदं २८, तवोवहाण-वण्णग-पदं ३०, अणगार-वण्णग-पदं ४५, भवणवासि-वण्णग-पदं ४७, वाणमंतर-वष्णग-पदं ४६, जोइसिय. वण्णग-पदं ५०, वेमाणिय-वण्णग-पदं ५१. परिसा-निगमण-पदं ५२, पवित्ति-वाउयस्स निवेदणपदं ५३, सविहि-णमोत्थ-पदं ५४, बलवाउय-निद्देस-पदं ५५, हत्थिवाउय-निद्देस-पदं ५६, जाणसालिय-निद्देस-पदं ५८, णय रगुत्तिय-नि हेस-पदं ६०, बलवाउयरस निवेदण-पदं ६२, कणियसज्जा-पदं ६३, परिकरसज्जा-पदं ६४, कूणियस्स निगमण-पदं ६५, आसीवयण-पदं ६८, कुणिय-पज्जुवासणा-पदं ६६, देवी-पज्जुवासणा-पदं ७०, धम्मदेसणा-पदं ७१, धम्मपडिवत्ति-पदं ७८, परिसा-पडिगमण-पदं ७६, कूणिय-पडिगमण-पदं ८०, देवी-पडिगमण-पदं ८१ । ओवाइय-पयरणं सूत्र १२ से १९५ पृ०५१ से ७७ गोयम-वष्णग-पदं ८२, कम्मबंध-पदं ८४, रइय-उववाय-पदं ८७, वाणमंतर-उववाय-पदं ८८, जोइसिय-उववाय-पदं ६४, कंदप्पिय-उववाय-पदं ६५, परिवायग-चरिया-पदं १६, अम्मडअंतेवासि-पदं ११५, अम्मड-चरिया-पदं ११८, दढप इण्ण-पदं १४१, देवकिब्बिसिय-उववाय-पदं १५५, सहस्सार-उववाय-पदं १५६, आजीवयाण अच्चुय-उवाय-पदं १५८, समणाणं आभिओगिय-उववाय-पदं १५६, णिण्हगाणं गेवेज्ज-उववाय पदं १६०, देस-विरय-वण्णग-पदं १६१, सव्वविरय-वष्णग-पदं १६३, केवलिसमुग्घाय-पदं १६६, जोग-निरोह-पदं १८१, सिद्ध-वष्णग-पदं १८३, ईसीपभारापुढवी-वण्णग-पदं १६२, सिद्ध.वष्णग-पदं १६५ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत-निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठ-पूर्ति के द्योतक हैं। पाठ-पूर्ति के प्रारम्भ में भरे बिन्दु और समापन्न में रिक्त बिन्दु ० का संकेत किया गया है । देखे, पृष्ठ ८, सू ८ ' ' यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है। ० पाठ में संलग्न दिया गया एक बिन्दु अपूर्ण पाठ होने का सूचक है। देखें, पृष्ठ ३, पाठान्तर १२, पृ० ११६. सूत्र १४२ [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिह्न आदशों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें, पृ० २२, सूत्र ३२ x क्रोस पाठ नहीं होने का द्योतक है। देखें, पृ० १ पाठान्तर ६ जाव आदि पर जो अंक है वे पूर्ति आधार स्थल के द्योतक है। जैसे-पृ०६, पाठान्तर १५ पृ० १०२ सूत्र ६६ पाठान्तर का अंक ६ पृ० ६७, सूत्र ४५, पाठान्तर का अंक ५ पृ० ११५, सूत्र १३६, पाठान्तर का अंक १४ पृ० ११६, सूत्र १४२, पाठान्तर का अंक २ पृ० १२५, सुत्र १२६, पादटिप्पणांक १,२,३ आदि सं० पा० संक्षिप्त पाठ नाघु० नायाधम्मकहाओ वृत्ति जं० पुवृ० जंबुद्दीवपण्णत्ती पुण्यसागरीयवृत्ति , शावृ० ॥ ॥ शान्तिचन्द्रीयवृत्ति " होवृ० , , हीरविजयवृत्ति राय० वृ० रायपसेणियं वृत्ति राय० सू० रायपसेणियं सूत्र मो०सू० मोवाइयं सूत्र उत्त० उत्तरज्झयणाणि भ० भगवती पण्ण. पण्णवणा जी० जीवा जीवाजीवाभिगमे जंबु० जंबू० जंबुद्दीवपणती पाहा. पण्हावागरणं Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं चंपानयरी-वण्णग-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था--रिद्ध-स्थिमिय'-समिद्धा 'पमुइय-जणजाणवया आइण्ण-जण-मणूसा' हल-सयसहस्स-संकिट्ठ-'विकिट्ठ-लट्ठपण्णत्त'-सेउसीमा कुक्कुड-संडेय-गाम-पउरा 'उच्छु-जव-सालिकलिया" गो-महिस-गवेलगप्पभूया' 'आयारवंत -चेइय-जुवइविविहसण्णिविठ्ठवहुला" उक्कोडिय-गायगंठिभेयर. भड"-तक्कर-खंडरक्खरहिया खेमा णि रुवद्दवा" सुभिक्खा बीसत्थसुहावासा" अणेगकोडि१. स्थमिय (क, ख, ग,) । फलितो भवति । २. पमुइयजणुज्जाणजणवया (वृपा)। ११. 'अरहंतचे इयजणवइविसण्णिविट्ठबहुला' इति ३. मणुस्सा (नावृ पत्र १) । पाठान्तरं प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: ४. वियह (नाव पत्र १); विगिट्ठ (जं० पुव पत्र । पुवृ पत्र ३, ही पत्र ८, इतिवृत्तिद्वयेपि ३); विअट्ठ (जं० ही पत्र ८)। व्याख्यातमस्ति । 'सूवयागचित्तचेइयजूयचिइ५. वियलट्ठ (ग)! सण्णिविट्ठवहुला' इति पाठान्तरं प्रस्तुतसूत्रस्य ६. पण्णत्ता (क); 'पण्णत्त' त्ति योग्यीकृता वृत्तौ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: हीवृसङ्केतितायां वृत्ताबीजवपनस्य (वृ); सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र वेव व्याख्यातमस्ति। रायपसेणइयवृत्ती २६३) अस्य पदस्य व्याख्या एवं उपलभ्यते- (पृ० ४)-'आयारवंत-चेइय-जुवइविसिट्ठप्रज्ञया-विशिष्टकर्मविषयबुद्दया आप्ते-प्राप्ते सषिणविद्रबहला' इति पाठो व्याख्यातोस्तिअतीव सुष्टु परिकम्मिते इति भावः । आकारवन्ति सुन्दराकारानि चैत्यानि युवतीनां ७. कुंकुड (ख)। च पण्यतरुणीनामिति भावः, विशिष्टानि ८. सालियकलिया (क); उच्छुजवसालिमालि- सन्निविष्टानि, सन्निवेशपाटका इति भावः, णीया (वृपा); रायपसेण इयवृत्तौ एष पाठो बहुलानि बहूनि यस्यां सा तथा । नास्ति व्याख्यातः। १२. भेयय (क, ग,); गाहगंठिभेयय (वृपा)। ६. गवेलप्पभूया (क)। १३. रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० ४) एतत्पदं नास्ति १०. 'आकारवन्ति सुन्दराकाराणि, आकारचित्राणि व्याख्यातम् । वा' इति वृत्तिव्याख्यानात् 'आयारवंत' इति १४. निरुवया (ख, ग, नाव) । मूलपाठः, 'आयारचित्त' इति पाठभेदश्च १५. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती ज्ञाताधर्मकथायाः वृत्ती Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं कोडुबियाइण्ण-णिव्यसुहा नड-णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-कहग-पवग-लासगआइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिय-अणेगतालाय राणुचरिया आरामुज्जाण-अगडतलाग-दीहिय-वप्पिणि गुणोववेया उव्विद्ध-विउल-गंभीर-खायफलिहा चक्क-गय-मुसुढिओरोह-सयग्घि-जमलकवाड-घणदृप्पवेसा धणकडिलवंकपागारपरिक्खित्ता कविसीसगवट्टरइय-संठियविरायमाणा अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-तोरण-उण्णय -सुविभत्तरायमग्गा छेयायरिय-रइय-दढफलिह-इंदकीला विवणि-वणियछित्त-सिप्पियाइण्ण-णिन्यसुहा' 'सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-पणियावण-विविहवत्थुपरिमंडिया" सुरम्मा नरवइ-पविइण्ण-महिवइपहा अणेगवरतुरग-मत्तकुंजर-रहपहकर"-सीय-संदमाणियाइण्ण-जाण-जुग्गा विमउल-णवणलिणि-सोभियजला "पंडुरवर-भवण-सण्णिमहिया१९ उत्ताणगनयण-पेच्छणिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ पुण्णभद्दचेइय-यण्णग-पदं २. तीसे णं चंपाए णयरीए वहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नाम चेइए होत्था-चिराईए" पुवपुरिस-पण्णत्ते पोराणे" सदिए कित्तिए णाए सच्छत्ते सज्झए जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः हीरविजयवृत्तौ च 'पापण्डिनां भिधीयते तत्र च छेकशिल्पिकाकीर्णेति गहस्थानां च' इति व्याख्यागतं विद्यते । जम्बू- व्याख्येयम् (व)। द्वीपप्रज्ञप्तेः पुण्यसागरवृत्तौ तु 'पासंडिगिहत्थ- ८. निवुयसुहा (ग)। वीसत्थसुहावासा' इति मूलपाठः उल्लिखि- ९. 'विविहवेसपरिमंडिया (ग); विविहवसुपरि. तोस्ति । सुहवासा (क)} मंडिया (रायवृ पृ०६, जं० पुल पत्र ४, हीव १. कोडुंबियाइण्ण (क, ग)। पत्र ६); पुस्तकान्तरेधीयते-सिंघाडगतिग२. विलंबय (ग)। चउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु पणियावण३. वप्पिण (क, ग, नाव, जं पुत्र, शावृ)। विविवेसपरिमंडिया (वृ)। ४, उप अप इत इत्येतस्य शब्दत्रयस्य स्थाने १०. पवरकर (ग)। शकन्वादिदर्शनादकारलोपे उपपेतेति भवति ११. रायपसेणइयवृत्ती पंडरवरभवणपंतिमहिया' (व) । अतोने सर्वेषु प्रयुक्तादर्शषु 'नंदणवण- इति पाठो लिखितोस्ति । सन्निभप्पगासा' इति पाठो दृश्यते । जम्बूद्वीप- १२. उत्ताणनयण (क, ख, ग, नावृ पत्र ३)। प्रज्ञप्तेः हीरविजयवृत्तावपि एष लभ्यते, प्रस्तुत- १३. चिराइए (ग); चिर:--चिरकालः आदि:सूत्रस्य वृत्ती अस्य पाठान्त रत्वेन उल्लेखोस्ति, निवेशो यस्य तच्चिरादिकम् (व); ज्ञाताधर्मज्ञाताधर्मकथाया वृत्तौ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः पुण्य- कथाया वृत्तौ (पत्र ४) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: सागरवृत्तौ च नैष लभ्यते, तेनासो पाठान्तरत्वेन पुण्यसागरवृत्ती (पत्र ४) च 'चिरादिक' इत्येव स्वीकृतः । व्याख्यातमस्ति, किन्तु तस्याः हीरविजयवृत्ती ५. मुसंढि (रायवृ पृ० ५, जं० पुवृ पत्र ४, ही (पत्र ११) 'चिरातीतं' इत्यपि व्याख्यातपत्र ६)। मस्ति-चिरकाले भूतभूयः काले आदिनिवेशो ६. समुण्णय (ख, ग) । यस्य तच्चिरादिकं चिरकालोतीतो यस्मात्तच्चि७. वणिच्छित्त (ख, ग, नाव पत्र ३, राय व पृ० रातीतं वा चिराचिरकालीनपर्यायप्राप्तानति ६); वाचनान्तरे छत्तशब्दस्य स्थाने छेय शब्दो- ऋम्य गच्छतीति चिरातिगं वा चिरकालीनेष Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पवरणं सघंटे सपडागाइपडागमंडिए' सलोमहत्थे कयवेय दिए' लाउल्लोइय-महिए गोसीससरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णापं चंगुलितले उवचियवंदणकल से' वंदणघड-सुकय-तोरण- पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त-विउल-वट्ट-वग्धा रिय-मल्लदामकलावे 'पंचवष्ण-सरससुरभि - मुक्क" - पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु-पव रकुंदुरुक्क-तुरक्क' -धूव-मघमघेत'- गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नडणट्टग- जल्ल- मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-पवग-कहगलासग-आइक्खग-लंख-मंख तूण इल्ल-तुंववीणिय- भुयग मागहपरिगए बहुजण जाणवयस्स' विस्य कित्ति बहुजणस्स आहुस्स आहुणिज्जे पाहुणिज्जे अच्चणिज्जे बंदणिज्जे नमसणिज्जे पूय णिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सणिहियपाsिहेरे 'जाग सहस्सभाग-पडिच्छए. बहुजणो अच्चेइ आगम्म पुष्णभद्दं" चेइयं पुष्णभद्दं" चेइयं ॥ वणसंड-वण्णग-पदं ३. सेणं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वससंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते || ४. से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे गिद्धे गिद्धोभासे तिब्वे तिब्वोभासे किन्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए मिद्धे गिद्धच्छाए तिव्वे तिब्वच्छाए घणकडियकडच्छाए" रम्मे श्रेष्ठमित्यर्थः । स्वीकृतपाठे 'चिरातीत' मिति व्याख्यातमभिप्रेतमस्ति । १४. पुराणे ( नावृ पत्र ४, रायवृ पृ० ८ जं० पुवृ० पत्र ५) । १५. वित्तिए ( क, ख, ग, वृ, नावू ) कित्तिए ( वृपा ) ; रायपसेणइयवृत्तावपि कित्तिए' इति पदं लिखितमस्ति । १. सपडाए पडागाइपडागमंडिए (वृपा ) | २. वयद्दीए ( क ) ; वयड्डिए (ख, जं० पुवॄ पत्र ५ ) । ३. बहुष्वादर्थेषु 'उवचियचंदणकलसे' इत्यपि पाठो दृश्यते किन्तु 'वंदण' स्थाने 'चंदण' इति पाठो जात: वृत्तौ वन्दनकलशा: माङ्गल्यघटाः इति व्याख्यातमस्ति, अनेन 'वंदणकलसे' इत्येव पाठ: सिद्ध्यति । ४. पंचविसरिस ( क ); ज्ञाताधर्मकथायाः वृत्तौ ( पत्र ४) 'सरस' इति पदं व्याख्यातं नैव दृश्यते । ५. तुरुक्क (नावृ पत्र ४, जं० पुवृ पत्र ५ ) ६. 'मघंत (क, ख ) । ७. सुगंधव रगंधिए (ख) 1 ८. जणवयस्स ( ग ) । ६. क्वचिदिदं न दृश्यते ( वृ) जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तेः पुण्यसागरवृत्तावपि एतत्पदं नैव दृश्यते । १०. जागभागदाय सहस्सपङिच्छए (वृपा ) । ११, १२. पुण्णभद्द (क ) । १३. घणकडिकडच्छाए ( क, ख ); कडच्छए (ग); जीवाजीवाभिगमवृत्ती ( पत्र १८७ ) 'घणकडित डच्छाए' इति पाठ: मूलपाठरूपेण 'घणकडिकडच्छाए' इति च पाठान्तररूपेण व्याख्यातास्ति इह शरीरस्य मध्यभागे कटिस्ततोन्यस्यापिमध्यभागः कटिरिव कटिरित्युच्यते, कटिस्तटमिव कटितटं धना अन्यान्यशाखानु प्रवेशतो निबिडा कटितटे मध्यभागे छाया यस्य स धनकटितटच्छायः मध्यभागे निबिडतरच्छाय इत्यर्थ:, क्वचित्पाठ: 'घनकडिकच्छाए' इति, तत्रायमर्थः कटः सञ्जातोस्येति कटितः कटान्तरेणोपरि आवृत इत्यर्थः कटितश्चासौ कटश्च कटितकट: घना — निबिडा कटितटस्येवाधोभूमी छाया यस्य स घन Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं महामेहनिकुरवभूए । ५. से' णं पायवे मूलमंते कंमते खंधमंते तयामते सालमते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमते फलमंते वीयमते' अणुपुब-सुजाय-मइल-वट्टभावपरिणए ‘एक्कखंधी अणेगसाला" अणेगसाह-प्पसाह-विडिमे अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अगेज्झ-घण-विउल-बद्ध [वट्ट ?] कटितकटच्छायः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २८) हीरविजयवृत्तौ (पत्र १२) चापि एवमेवास्ति। १. निकुरुंबभूए (जं० ही पत्र १२) । २. अभयदेवसूरिणा प्रस्तुतसूत्रस्थवृत्तौ ज्ञाताधर्मकथाया: वृत्तौ (पत्र ६) च ते णं पायवा, पिडिम गीहारिम' इति सूत्रद्रयं बहुवचनान्तं सुध-बरहिण' इति सूत्र एकवचनान्तं व्याख्यातमस्ति । मलयगिरिसूरिणा जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (पत्र १८७) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २६) च त्रीण्यपिसूत्राणि बहुवचनान्तानि ध्याख्यातानि सन्ति । अभयदेवसूरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ वाचनान्तरस्य उल्लेखः कृतोस्ति--एतान्येव वक्षविशेषणानि वनपण्डविशेषणतया वाचनान्तरेऽधीतानि । एतस्य वाचनान्तरस्थाधारेण त्रिष्वपि सूत्रेष एकवचनान्त पाठः स्वीकृतः । आदर्शगतः पाठ एवमस्ति---ते गं पायवा मूलमंतो कदमतो खंधमंतो तयामंतो सालमतो पवालमंतो पत्तमंत्तो पुप्फमतो फलमंतो बीयमंतो अणब्व-सुजाय-रुइल-वद्रभावपरिणया अणेगसाह-प्पसाह-विडिमा अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अगेज्म-घण-विउल-बद्ध-(बट्ट ?) खंधा अच्छिद्दपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणइइपत्ता निय-जरठ-पंडुपत्ता णवहरिय-भिसंत-पत्तभारंधयोरगंभीरदरिसणिज्जा उवणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लव-कोमल उज्जलचलंतकिसलय-सूकूमालपवाल सोहियवरंकू रग्गसिहरा णिच्च कुसुमिया णिच्च माइया णिच्च लवइया णिचं थवइया णिच्चं गृलइया णिच्च गोच्छिया णिच्च जमलिया णिच्च जुवलिया णिच्चं विणमिया णिच्चं पणमिया (णिच्वं सुविभत-पिडि-मंजरि-वडेंसग-धरा?) णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय-जमलियजवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत-पिडि-मंजरि-बडेसंगधरा । पिडिम-णीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभि-मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंता णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगघरगसुहसे उके उबहुला अणेग रह-जाण-जुग्ग-सिविय-पविमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। ३. 'हरियमंता' इति क्वचिद् दृश्यते (व)। ४. अणुपुचि (ग, राय वृ० १०) ५. 'क' प्रती एक्कखधा अणेगसाला' 'ग' प्रती एक्कखंधा' इति पाठभेदाः लभ्यन्ते । वृत्तौ एतत्पाठद्वय मपि नास्ति व्याख्यातम् । ज्ञाताधर्मकथाया वृत्तावपि (पत्र ५) नानयोव्याख्या विद्यते । रायपसेणइय वृतौ (पृ० १०) जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (पत्र १८७) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २६) च 'एगखंधी' इति पाठो व्याख्यातोस्ति –ते पादपाः प्रत्येक मेकस्कन्धाः, प्राकृते चास्य स्त्रीत्वमिति एगक्खंधी। ६. ज्ञाताधर्मकथाया: वत्तौ (पत्र ५) अभयदेवमरिणा प्रस्तुतपाठो व्याख्यातस्तत्र वद्र' पदमेव व्याख्यात मस्ति-विपुलो विस्तीर्णो वृत्तश्च स्वन्धो येषां ते तथा मलयगिरिणा जीवाजीवाभिगमस्य वृत्तौ (पत्र १८७) रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० १३) च 'वृत्तस्कन्धा' इति व्याख्यातमस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्ती (पत्र २६) 'बद्ध वृत्त' इति पदद्वयमपि नास्ति व्याख्यातम् । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं खंधे' अच्छिदृपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते' निद्धय'-जरढ-पंडपत्त-णवहरियभिसंत-पत्तभारंधयार-गंभीरदरिसणिज्जे उवणिगय -णव-तरुण-पत्त-पल्लव-कोमल उज्जलचलंतकिसलय-सुकुमालपवाल-सोहियवरंकुरग्गसिहरे णिच्चं कुसुमिए णिच्चं माइए' णिच्चं लवइए णिच्चं थवइए णिच्च गुलइए णिचं गोच्छिए णिच्चं जमलिए णिच्च जुवलिए णिच्चं विणमिए णिच्चं पणमिए [णिच्चं सुविभत्त-पिडि-मंजरि"-वडेंसगधरे ? ] णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थव इय-गुलइय-गोच्छिय- जमलिय - जुवलिय - विणमिय - पण मियसुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरे ।। ६. सुय-वरहिण-मयणसाल-कोइल-कोहंगक'"-भिंगारग" कोंडलग-जीवंजीवग-गंदीमुहकविल-पिंगलक्खग-कारंडक". चक्कवाय- कलहंस-सारस-अणेगसउणगणमिहणविरइयसदुपण इयमहरसरणाइए सुरम्मे संपिडियदरियभमर-महुयरिपहकर-परिलितमत्तछप्पयकुसुमासवलोल-महुरगुमगुमंतगुंजतदेसभाए 'अभितरपुप्फफले बाहिर-पत्तोच्छण्णे पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छन्न-पलिच्छन्ने'" 'साउफले निरोयए अकंटए'"५ ‘णाणाविहगुच्छ-गुम्म१. वाचनान्तरेऽत्रस्थानेधिकपदान्येव दश्यते- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्ताबपि (पत्र पाईण-पडीणाययसाला उदीण-दाहिण- २५) एषोस्ति व्याख्यातः, तत्र औपपतिकस्य विच्छिण्णा ओणय-नय-पणयविप्पहाइयओलंबप- उल्लेखो विद्यते---औपपातिकादौ तु 'विभत्तलंबलंबसाहप्पसाहविडिमा अवाईणपत्ता पिडिमंजरीवडिसगधराओ' इति पाठः । संकअणुइण्णपत्ता । लितपाठे एष पाठो विद्यते, तेन पृथक् पाठेपि २. अणईयपत्ता (ख, ग); अणीइपत्ता (जं० शाव एष युक्तोस्ति । पत्र २६)। ६. पिंड (ग)। ३. निद्धय (ख); निद्धय (ग)। १०. कोभंगक (औपपातिकवृत्ति हस्तलिखित); ४. औपपातिकस्य अप्रयुक्तादर्श पंडुरपत्ता' कोरक (जी० ३।२७५, रायवृ० पृ० १५, इत्यपि पाठो लभ्यते। ___ जं० शावृ० पत्र ३०)। ५. उवविणिग्गय (राय वृ०पृ० १४, जी० ३१२७४, ११. भिंगारक (क, ख); भिंगार (ग)। ___ जं० शावृ पत्र २६, हीवृ पत्र १३)। १२. कडिलका (ख); कोंडल (ग)। ६. मुकुलिता (राय वृ० पृ० १५, जीवृ पत्र १८२ १३. कारंड (क, ख); कारंडग (ग)। जं० शावृ० पत्र २५); मुकुलिता मयूरिता १४. एतानि त्रिण्यपि क्वचिद् वृक्षाणां विशेषणानि (ज• हीवृ० पत्र १३)। दृश्यन्ते (बू)। ७. रायपरेणइयवृत्तौ (पृ० १५) जीवाजीवाभिगम १५. निरोया अकंटया साउफला निद्धफला (जी० वृत्तौ (पत्र १८२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्ति- ३३२७५); रायपसेणइयवृत्ता (पृ० १६) वपि चन्द्रीयवृत्ती (पत्र २५) च 'पडि-मंजरि' इति एतानि चत्वारि पदानि एतेनैव क्रमेण व्याख्यापाठो व्याख्यातोस्ति। तानि सन्ति । नीरोगका:....."अकण्टका:..... ८. कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठः आदर्शोष नोपलभ्यते, स्वादुफला:, स्निग्धफला इत्यपि क्वचित् (जं० वत्तावपि नास्ति व्याख्यातः, किन्तु रायपसे- शाव पत्र ३०); साउफले मिट्ठफले निरोयए णझ्यवृत्तौ (पृ० १५) जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (नावृ० पत्र ६); प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ (पत्र १८२) च एष पाठो व्याख्यातोस्ति, 'साउफले' ति मिष्ठफलः इति व्याख्यातमस्ति । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं मंडवगसोहिए" 'विचित्तसुहके उभूए" वावी-पुक्खरिणी'-दीहियासु य सुनिवेसियरम्मजालहरए। ७. 'पिडिम-णीहारिमं सुगंधि" सुह-सुरभि-मणहरं च महया गंधद्धणि' मुयंते णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगघरग-सुहसेउकेउवहुले 'अणेगरह-जाण-जुग्ग-सिविय-पविमोयणे" सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। असोगपायव-वण्णग-पदं ८. तस्स णं वणसंडस्स वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पण्णत्तेकुस-विकुस-विसुद्ध-रुक्खमूले मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामते सालमते पवालमते पत्तमंते पुप्फमते फलमंते वीयमंते अणुपुत्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए अणेगसाह-प्पसाह-विडिमे अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अम्गेज्झ-घण-विउल-बद्ध [वट्ट ? ] खंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निळ्य-जरढ-पंडुपत्ते णवहरियभिसंत-पत्तभारंधयार-गंभीरदरिसणिज्जे उवणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लव-कोमल उज्जलचलंतकिसलय-सुकुमालपवालसोहियवरंकरग्गसिहरे णिच्चं कसमिए णिच्चं माइए णिच्चं लबहए णिच्चं थवइए णिच्चं गुलइए णिच्चं गोच्छिए णिच्च जमलिए णिच्च जुवलिए णिच्चं विणमिए णिच्चं पणमिए [णिच्चं सुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरे" ?] णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइयगुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडसगधरे । १. मंडवगरम्मसोहिए (ग); क्वचित् 'णाणाविह- रीए णाणासउणगणमिहुणसुमहुरकण्णसुहपलत्त गुच्छगुम्ममंडवगरम्मसोहिए' रम्मेत्ति क्वचिन्न- सहमहुरे (व)। रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० १०) दृश्यते (वृ)। एष पाठो ग्रन्थान्तरप्रसिद्धपाठरूपेण व्याख्यातो २. विचित्तसुहसे उके उबहुले (वृपा); विचित्तसुह- दश्यते----'दूरुपयकंदमूलवट्टलट्रसंधि - असिलिट्र के उबहुले (जी० ३१२७५; जं० शावृपा० पत्र घणमसिणसिणिद्धक्षणपुब्बिसुजायणिरुवहतोब्दि द्वपवरखंधी अणेगणरपवरभुयअगेज्झे कुमुमभर३. पुक्खरणी (क, ख, ग)। समोणमतपत्तलविसालसाले महुकरिभमरगण४. पिडिम णीहारिमं सुगंधि (क); पिंडिमणीहा- गुमुगुमाइयणिलितउड्दुतसस्सिरीए णाणासउणरिमसुगंधि (ख, ग)। गणमिहुणसुमहुरकण्णसुहपलत्तसद्दमहुरे कुसवि५. गंधद्धणि (ख, ग)। कुसविसुद्धरुक्खमूले पासाइए दरिसणिज्जे ६. सुहसे उकेउबहुला (रायवृ० पृ० १७, जी० । अभिरूवे पडिरूवे ।' अस्य वाचनान्तरस्य ३१२७६)। रायपसेणियवत्तिगतपाठस्य च अध्ययनेन एतत ७. अणेगसगड - रह-जाण-जुग्ग-सीया-संदमाणिय- स्पष्टं भवति-लिपिदोषेण पाठाना परिवर्तनं पडिमोयणा (जी० ३।२७६) । जातम्, वत्तिकारैरपि यादशा: पाठा लब्धास्ता८. अशोकपादपवर्णके क्वचिदिदमधिकमधीयते- दशा व्याख्याताः । उदाहरणरूपेण चिन्हाङ्कित दूरोवगयकंदमूलवट्टलट्ठसंठियसिलिट्ठपणमसिण- पाठानां वाचनान्तरपाठस्तुलना कार्या। निद्धजायनिरुवह उव्विद्धपवरखंधी अणेगणरप- १. सं० पा०---कंदमंते जाव पविमोयणे । वरभुयागेज्में कुसुमभरसमोणमंतपत्तलविसाले १०,११. द्रष्टव्यं पञ्चमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । महुरिभमरगणगुमगुमाइयनिलितउड्डितसस्सि Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पय रण पिडिम- नीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभि मणहरं च महया गंधण मुयंते णाणाविहगुच्छ गुम्म मंडवगघरग- सुहसे उके उबहुले अणेग रह जाण - जुग्ग-सिविय°- पविमोयणे सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरू परूिवे || ६. से णं असोगवरपायवे अण्णेहि बहूहि तिलएहि लउएहिं छत्तोवेहि सिरीसेहि सत्तिवण्णेहिं दहिवणेहिं लोहि धवेहि चंदणेहि अज्जुणेहि णीवेहि कुडएहि कलंबेहि फणसेहि दाडिमेहि' साहिं तालेहि तमालेहि पियएहि पियंगूहिं पुरोवगेहि राय रुक्खेहि मंदिरुखेहिं सत्रओ समता संपरिक्खित्ते || १०. ते णं तिलया लउया' "छत्तोवा सिरीसा सत्तिवण्णा दहिवण्णा लोद्धा धवा चंदणा अज्जुणा णीवा कुडया कलंवा फणसा दाडिमा साला ताला तमाला पियया पियंगू पुरोवगा रायरुक्खा° मंदिरुवखा कुस - विकुस - विसुद्ध - रुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो' जाव" " णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय- गुलइय-गोच्छिय- जमलिय जुवलिय-विणमियपर्णा मय- सुविभत्त- पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरा । पिडिम- नीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभि मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंता णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगघरग-सुहसे उके उवहुला अणेगरह जाण - जुग्ग - सिविय - पविमोयणा" सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ११. ते णं तिलया लउया जाव" मंदिरुक्खा अण्णाहि" वहूहिं पउमलयाहिं णागलयाहि असोगलयाहिं चंपगलयाहि चूयलयाहि वणलयाहि वासंतियलयाहिं अइमुत्तयलयाहि कुंदलयाहि सामलयाहि सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । ताओ णं पउमलयाओ 'जाव सामलयाओ" णिच्च कुसुमियाओ जाव" वडेंसगधराओ" पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ ॥ १. परिमोयणे ( ख ) 1 २. अण्णेहिय ( ग ) ३. बउएहि (क); बकुलैः (वृ.) । ४. सत्तवण्णेहिं ( रायवृ० पृ० १२) । ५. कलं बेहि सव्वेहिं (क. ख ) ; सव्वेहिं (ग, वृ ) ; जीवाजीवाभिगमे ( ३३३८८) तद्वृत्तौ च तथा रायसेइयवृत्ता ( पृ० १२) वुद्धृते प्रस्तुत सूत्रपाठे 'सब्वेहि' एतत्पदं नैव दृश्यते । ६. X ( क, ख ) । ७. रायपसेजियवृत्ता ( पृ० १२) बुद्ध ते पाठे एतत्पदं नैव दृश्यते 1 जीवाजीवाभिगमे (३1३८८) च अस्य स्थाने 'पारावय' इति पदं लभ्यते । ८. सं० पा०लउया जाव णंदिरुक्खा । ६. सं० पा० - कंदमंतो एएसि वण्णको भाणियव्वो जाव सिविथ । १०. ओ० सू० ५ । ११. परिमोयणा ( ख, ग ) । १२. ओ० सू० १० । १३. अण्णेहि (क, ग ) ; अण्णेहिय ( ख ) 1 १४ X ( क, ख, ग ) ; रायपसेणइयवृत्ता ( पृ० १८ ) बुद्ध ते औपपातिकपाठे चिह्नाङ्कितः पाठो विद्यते । तदाधारेणासी मूले स्वीकृतः, उक्त क्रमेणाप्यसौ युज्यते । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३६०) पि एतत्संवादी पाठो दृश्यते । १५. ओ० सू० ५ । १६. वडियधरीयो (क, ग); वडिसयधारीओ (ख) । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं तं सव्व १२. तस्स' णं असोगवरपायवस्स उवरि बहवे अट्ठ अट्ठ मंगलगा पण्णत्ता, जहा --- सोवत्थिय - सिरिवच्छ- नंदियावत्त' - वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ दप्पणा रयणामया अच्छा सण्हा लम्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पा समीरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरि बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सहा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयामलगंधिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरि बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा पउमहत्थगा कुमुयहत्थगा' नलिणहत्थगा सुभगहत्थगा सोगंधियहत्थगा पुंडरीयहत्थगा महापुंडरीयहत्थगा सयपत्तहत्थगा सहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ पुढविसिलापट्ट वण्णग-पदं १३. तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा 'ईसि खंध * - समल्लीणे", एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते -- विवखंभायाम' - उस्सेह - सुप्पमाणे किण्हे 'अंजणग-वाण- कुवलय" १. वृत्तिकृता एतत् सूत्रं वाचनान्तरत्वेन उदृङ्कितम् — इह लतावर्णनान्तरमशोकवर्णकं पुस्तकान्तरे इदमधिकमधीयते । रायपसेणइयसूत्रे (३, ४) ओवाइयगमेणं इति संक्षिप्तपाठीस्ति तस्य वृत्तौ मलयगिरिणा एतत्पूर्ण सूत्रं व्याख्यातमस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ अभयदेवसूरिणा ये ये पाठाः वाचनान्तरत्वेन उट्टकितास्ते भगवत्यादिसूत्राणां वृत्तौ मूलपाठवेन व्याख्याताः सन्ति । तेन ज्ञायते अभयदेवसूरिणा ये आदर्शाः प्रमाणीकृतास्ते मूलपाठरूपेण अन्ये च वाचनान्तररूपेण उट्टङ्किताः । २. क्वचिद् 'नंदावत्त' इति पाठ: ( रायवृ पृ० १६) । ३. 'कुसुमहत्यय' त्ति पाठान्तरं ( वृ) । ४. खंधी ( क ) 1 ५. मलयगिरिणा रायपणइयवृत्तौ ( पृ० २२ ) 'ईसि खंध - समल्लीणे' इति पाठ: 'पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते' इति पाठानन्तरं व्याख्यातः - एको महान् पृथ्वीसिलापट्टक प्रज्ञप्तः, कथम्भूत इत्याह 'ईसि खंध - समल्लीणे' इत्यादि, इह स्कन्धः स्थुडमित्युच्यते तस्याशोकवरपादपस्य यत् स्थुडं तत् ईषद् मनाक् सम्यग्लीनस्तदासन्न इत्यर्थः । प्रस्तुतसूत्रे अभयदेवसूरिणा पूर्वमेव व्याख्यात: --- ' ईसि खंघ-समल्लीणे' मनाक् स्कन्धासन्न इत्यर्थः । ' एत्थ णं महं एक्के' इत्यत्र 'एत्थ णं' ति शब्दः अशोकवरपादपस्य यदधोत्रेत्येवं सम्बन्धनीयः । रायपसेणइय सूत्रस्य समायोजना अधिकं सङ्गतास्ति । ६. अतः पाठ: प्राय: रायपसेणइयवृती व्याख्यातः स्वीकृतपाठाद्भिन्नोस्ति । वाचनान्त रपाठेन तस्य साम्यमस्ति - विक्खंभायामसुप्पमाणे किण्हे अंजणगघणकुवल यहलह रकोसेज्जसरिसो आगास के सकज्जलकक्केय इंदनीलअयसिकुसुमप्यासे भिगंजणभंगभेयरिगनील गुलियगवलाइरेगे भमरनिकुरंबभूए जंबूफल असणकुसुमबंधनीलुप्पलपतनिकरमरगयासास गनयणकीयासिवण्णे णिढे घणे अज्भुसिरे रूवगपडिरूवरादरिस णिज्जे आयंसतलोवमे सुरम्मे सीहासणसंठिए सुरूवे मुत्ताजालखइयंतकम्मे आइणगरूप-र-नवणीय तुलफासे सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिवे । ७. अंजणवाणकुवलयघणकुवलय ( क ) । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं हलधरकोसेज्जागास-केस-कज्जलंगी खंजण-सिंगभेद-रिट्ठय-जंबूफल-असणग-सणबंधणणीलुप्पलपत्तनिकर-अयसिकुसुमप्पगासे मरगय-मसार-कलित-णयणकीयरासिवण्णे णिद्धधणे अट्ठसिरे आयंसय-तलोवमे सुरम्मे ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालगकिण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर' - वणलय-पउमलयभत्तिचित्ते' आईणग-रूय-बूर-णवणीयतुलफासे सीहासणसंठिए पासादीए दरिस णिज्जे अभिरूवे पडिरूवे॥ कुणियराय-वण्णग-पदं १४. तत्थ णं चंपाए णयरीए कूणिए णामं राया परिवसइ-महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध-दीहराय-कुल-वंस-सुप्पसूए णिरंतरं रायलक्खणविराइयंगमंगे 'वहुजण-वहुमाण-पूइए सव्वगुण-समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ-सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरें के उकरे णरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्धे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिण्ण-विउल-भवण-सयणासणजाण-वाहणाइण्णे बहुधण-बहुजायस्वरयए आओग-पओग-संपउत्ते विच्छड्डिय-पउरभत्तपाणे वहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए पडिपुण्ण-जंतकोस-कोट्ठागाराउधागारे वलवं दुब्बलपच्चामित्ते ओहयकंटयं निहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं ओहयसत्तुं नियसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं निज्जियसत्तुं पराइयसत्तुं ववगयदुभिक्खं मारिभय-विप्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं 'पसंत-डिव-डमरं रज्ज पसासेमाणे" विहरइ ।। धारिणीदेवी-वण्णग-पदं १५. तस्स णं कोणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था-सुकुमाल-पाणिपाया 'अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा"२ लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्णसुजाय-सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार" कंत-पिय-दसणा सुरूवा करयल-परिमिय-पसत्थतिवली-वलिय-मज्झा 'कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा" कोमुइ"-रयणियर-विमल-पडिपुण्ण- सोम१. रासिदित्ते (ख)। २. X (वृ)। ७. पुरिसवरपुडरीए (ख, रायवृ• पृ० २५) । ३. भित्तिचित्ते (व)। ८. राउहधरे (रायव० पृ० २६)। ४. रुय (ख, वृ)। ६. अप्पडिकंटयं (रायवृ० पृ० २६) । ५. वाचनान्तरे पुन: सिलापट्टकवर्णकः किञ्चिद- १०. 'पसंताहिय-डमरं' ति क्वचित्पाठः (वृ)। न्यथा दृश्यते-अंजणगणकुवलयलहरकोसेज्ज- ११. पसाहेमाणे (क, ग, वृपा)। सरिसे आगासकेसकज्जलकक्केयणइंदणीलअय- १२. अहीणपंचिदियसरीरा (क); क्वचित्तुसिकुसुमप्पगासे भिगंजणसिंगभेयरिद्वगनील- अहीणपुण्णपंचिदियसरीरा (वृ) । गुलियागवलाइरेगभमरनिकुरंबभूए जंबूफल- १३. 'सोम्माकार (व)। असणकुसुमबंधननीलुप्पलपतनिगरमरगयासास- १४. कुंडलल्लिहिय (क); कुंडलोल्लिखितपीनगनयणरासिवण्णे निद्ध धणे अज्झसिरे रूबग- गंडलेखा (वपा)। पडिरूवरिसणिज्जे मुत्ताजालखइयंतकम्मे १५. कोमुई (क); कोमुईय (ख); सर्वासु प्रतिषु 'कोमुइ सोमवयणा' अयं पाठः पूर्व वर्तते, Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोवाइयं वयणा सिंगारागार-चारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-'विहिय-[चिट्ठिय' ?'] विलाससललिय-संलाव-णिउण-जुत्तोवयार-कुसला' 'सुंदरथण-जघण-वयण-कर-चरण-नयणलावण्ण विलासकलिया" पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा कोणिएण' रणा भिभसारपुत्तेण सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इट्टे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी' विहरइ ।। पवित्ति-वाउय-पदं १६. तस्स णं कोणियस्स" रण्णो एक्के पुरिसे विउल-कय-वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेइ ।। १७. तस्स णं पुरिसस्स वहवे अण्णे पुरिसा दिण्ण-भति-भत्त-वेयणा' भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेति ॥ १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोणिए राया भिभसारपुत्ते' वाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेगगणणायग-दंडणायग"-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय"-मंति-महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम - सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय- संधिवालसद्धि संपरिवुडे विहरइ ।। महावीर-वण्णग-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे 'कुंडलुल्लिहियगंडलेहा' इतिः पाठः पश्चात् 'सुकुमालपाणिपाया अहीणपडिपुण्णपंचेंदियवर्तते । सरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माण१. वृत्तिकृता विहितं-चेष्टितम्' इति व्याख्या- पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरगा' इत्यादि तम् । ५१ सूत्रस्य वाचनान्तरे 'चेट्टिय' इति वर्णको वाच्यः जावत्ति यावत्करणात् 'चेल्लणाए पदमुपलभ्यते । रायपसेणइयवती (पृ० २६) सद्धि अणुरते अविरत्ते इठे सद्दफरिसे रसरूवसमुद्धृते पाठेपि 'चेट्ठिय' इति पदं दृश्यते, गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुसम्भाव्यते अत्रापि प्राचीनलिप्या विद्यमानं ब्भवमाणे विहरइ' इति पदकदम्बकपरिग्रहः 'चिट्रिय' इति पदं अर्वाचीनलिप्यां विहिय' विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या नेह मिति रूपे प्रावर्तितमभूत् । विस्तरभिया प्रतन्यते । किन्तु चेल्लणायाः २. कुसला बिबोट्ठी (क) वर्णने नैष पाठः सङ्गच्छते । 'सेणिएणं सद्धि ३. X(क, ख, ग, वृ); क्वचिदिदमन्यद अणुरत्ता अविरत्ता' इत्यादिपाठपद्धति: समीदृश्यते-सुंदरथण - जघण-वयण - कर-चरण- चीना भवेत् । नयण-लादग्णविलासकलिया (व) । ५. ४ (५)। ४. दशाश्रुतस्कंधस्य दशम्या दशाया द्वितीय ६. पच्चणुब्भवमाणी (क, ग)। सूत्रस्य व्याख्यायां वृत्तिकृता भिन्नपद्धतिकः ७. कूणियस्स (क, ख) । पाठः समुद्धृतः----तस्य देवी समस्तान्तःपुर- ८. वेदणा (क) । प्रधाना भार्या सकलगुणसमन्विता चेल्लणा ६. भंभसारपुत्ते (क); भिभिसारपुत्ते (१)। नाम्नी तस्या वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि १०. x (क, ख, ग)। ग्रंथेऽभिहितस्तथाभिधातव्यः, स चायं-- ११. कोडंबिय (क, ख, म)। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-मयरणं पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए जीवदए दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पsिहयवरनागदसणधरे विट्टछउमे' जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वष्णू सव्वदरिसी सिवमयल मरुयमणं तमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे - भुयमोयग भग - नेल- कज्जल- पहट्ठभमरगण-गिद्ध-निकुरुब- निचिय-कुंचिय- पयाहिणावत्तमुद्धसिरए दालिमपुप्फपगास तवणिज्जसरिस-निम्मल - सुणिद्ध'-केसंत-केस भूमी धण- निचियसुबद्ध-लक्खणुन्नय - कूडागारनिभ-पिडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे णिव्वण-सम-लट्ठमट्ठ- चंदद्धसम - णिडाले उडुवइप डिपुण्ण-सोमवयणे अल्लीणपमाणजुत्तसवणे सुसवणे' पीणमंसल - कवोल सभाए 'आणामियचावरुइल- किण्हब्भराइ तणु-कसिणणिद्धभमुहे" अवदालियपुंडरीयणय कोयासिय धवल-पत्तलच्छे गरुलायतउज्जु-तुंग-णासे ओय विय-सिल-प्पवालविफल-सणिभाह रोट्ठे पंडुरससिसयल - विमलणिम्मलसंख-गोक्खीर- फेण-कुंद - दगरयमुणा लिया- धवलदंतसेढी अखंडदंते अप्फुडियदंते अविरलदंते सुणिद्धदंते सुजायदंते एगदंतसेढी विव अगदंते हुयवहणिद्धंत धोय-तत्त तवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहे अवट्ठिय-सुविभत्तचित्तमंसू मंसलसंठिय-पसत्थ- सद्दूल- विउलहणुए चउरंगुल-सुप्पमाण-कंबुवर- सरिसगीवे १. विट्टछउमे अरहा जिणे केवली सत्तहत्थुस्सेहे समचउरंस संठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघणे अणुलोमवाउवेगे कंकग्गहणी कवोपरिणामे सउणिपोसपिट्ठत रोरुपरिणए पउमुप्पलगंधसरिसनिस्साससुरभिवयणे छवि निरायंकउत्तम सत्यअ इसे यनिरुवमपले ( पाठान्तरेण -- तले ) जल्ल मल्ल कलंक सेय रयदोस वज्जियस रीरनिरुवलेवे छाया उज्जोइयंगमंगे घण निचिय सुबद्धलक्खणुण्णयकू डागा रनिभपिडियग्गसिरए सामलिबोंडघणनिचियच्छोडियमिउ विसयपसत्य सुहुमलक्खणसुगंधसुन्दरे.... (वृ) । वृत्तिकृता 'संपाविउकामे' इति पाठस्य व्याख्यानन्तरं लिखितमस्ति - 'जिणे जाणए' इत्यादि विशेषणानि क्वचिन्न दृश्यन्ते, दृश्यन्ते पुनरिमानि- 'अहं' त्ति (वृत्ति पत्र २६) अत्र वृत्तिकृता न स्पष्टीकृतं वाचनान्तरे कियन्ति विशेषणानि दृश्यन्ते । 'भुयमोय ' इति पाठस्य व्याख्यावसरे वृत्तिकृता लिखितम् - अधिकृतवाचनायां भुजमोचक शब्दादारभ्यैवेदमधीयते ( 'दारभ्यचेद' - मुद्रित वृत्ति) न सामलीत्यादि । किन्तु एतेन 'अरहा' इत्यतः प्रारभ्य 'सामलि" वाक्यांशपर्यन्तं पाठो १३ वाचनान्तरेस्ति इति न स्पष्टं भवति । तथापि अधिकृतवाचना भुजमोचकशब्दादेव 'प्रतीयते' अन्यथा शरीरवर्णकविशेषणानां द्विरुक्तता स्यात् । प्रतिपाठावलोकनेनापि एतन्मतं समर्थितं भवति । विट्टछउमे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिष्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सत्तहत्थुस्सेहे समच उरंससंठाणसं ठिए वज्जरि सहसंघयणे सरीरे निरुवलेवे छाया उज्जोइयंगभंगे जल्ल मल्लकलंक सेय रहियसरीरे सिवमयल.... (क) 1 वियट्टछउ मे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वष्णू सब्वदरिसी सत्तहत्थुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहना रायसंघयणे जल्लमल्लकलंक से रहियसरीरे सिवमयल.... ( ख ) | २. सिद्धि ( क ) । ३. x ( क, ख ) । ४. वाचनान्तरे तु दृश्यते-- 'आणामियचाव रुइलकिण्हब्भराइसठियसंगयआयय सुजायभमुए' (वृ) । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं वरमहिस-वराह-सीह-सदुल-उसभ-नागवरपडिपुण्ण विउलक्खंधे 'जुगसन्निभ-पीण-रइयपीवर-पउट्ठसंठिय'-सुसिलिट्ठ'-विसिट्ठ-घण-थिर-सुबद्ध - संधि-पुरवर - फलिह - वट्टियभुए' भु यगीसर-विउलभोग-आयाण-पलिहउच्छूढ-दीहवाहू" रत्ततलोवइय-मउय-मंसल-सुजायलक्खणपसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरकोमलवरंगुली आयंव-तंव-तलिण-सुइ-रुइल-णिद्धणखे चंदपाणिलेहे सूरपाणिलेहे संखपाणिलेहे चक्कपाणिलेहे दिसासोत्थियपाणिलेहे 'चंद-सूर-संखचक्क-दिसासोत्थियपाणिलेहे" कणग-सिलायलुज्जल-पसत्थ-समतल-उवचिय-विच्छिण्णपिहुलवच्छे सिरिवच्छंकियवच्छे अकरंडुय-कणग-रुयय-निम्मल-सुजाय-निरुवयदेहधारी सण्णयपासे संगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाइय-पीण-रइय-पासे उज्जुय-सम-सहियजच्च-तणु-कसिण-णिद्ध-आइज्ज-लडह-रमणिज्जरोमराई झस-विहग-सुजाय-पीण-कुच्छी 'झसोयरे सुइकरणे "गंगावत्तग-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रविकिरणतरुण-वोहिय-अकोसायंतपउम-गभीर-वियडणाभ" साहय-सोणद-मुसल-दप्पण-णिकरियवरकणगच्छरुसरिस-वरवइर. वलियमझे पमुइयवर-तुरग-सीहवर"-वट्टियकडी 'वरतुरग-सुजाय-सुगुज्झदेसे" आइण्णहउव्व-णिरुवलेवे वरवारण-तुल्ल-विक्कम-विलसियगई गयससण-सूजाय-सन्निभोरू सामुग्ग"णिमग्ग-गूढजाणू एणी-कुरुविंद"-वत्त-वट्टाणुपुव्वजंघे संठिय-सुसिलिट्ठ"-गूढगुप्फे सुप्पइट्ठियकुम्मचारुचलणे अणुपुब्वसुसंहयंगुलीए" उण्णय-तणु-तंव-णिद्धणक्खे रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमाल-कोमलतले अट्ठसहस्सवरपुरिसलक्खणधरे" आगासगएणं चक्केणं, आगासगएणं १. सुसंठिय (ख, ग)। १०. झसोयरे सुइकरणे पउमवियाडणाभे (क); २. सुसलिट्ठ (क); सलिट्ठ (वृ.) ।। झसोदरपउमवियडणाभे (वृपा) । ३. वट्टियबाहू (वृ); वाचनान्तरे--"पुरवरफलिह- ११. विउडणाभे (क, ख) वियडणाहे (व)। वट्टियभूए' इत्येतावदेव भुजविशेषणं दृश्यते। १२. सीहअइरेग (बृपा)। (०)। १३. वाचनान्तरे तु 'पसत्थव रतुरगगुज्झदेसे' (व) । ४. पलिउच्छूद्ध (क); फलिहउच्छूट (ग, वृपा)। १४. समुग्ग (ग)। ५. वाचनान्तरे-'युगसन्निभपीन रतिदपीवरपउट्ठ- १५. कूरुविद (क, ख)। ___ संठियसुसिलिट्ठविसिट्ठधणथिरसुबद्धसंधि' (वृ)! १६. सुसलिटुविसिट्ठ (क); सुसिलिट्ठविसिट्ठ (ख) । ६. क्वचित् तु दृश्यते---'पीवरवट्टियसुजायकोमल १७. अणुपुव्वसुसाहयपीवरंगुलीए (ब)। - वरंगुली' (व) १८. वाचनान्तरेधीयते--- नगनगरमगरसागरचक्क७. वाचनान्तरेऽधीयते-रविससिसंखवरचक्कसोस्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहे 'अणेगवरलक्खण कवरंकमंगलंकियचलणे विसिट्ठरूवे हुयवहनिभूमत्तिमपसत्थसुइरइयपाणिलेहे' (वृ) । जलियतडितडियतरुणरविकिरणसरिसतेए अणा८. वाचनान्तरे तु वक्षोविशेषणान्येवं दश्यन्ते--- सवे अममे अकिंचणे छिन्नसोए निरुवलेबे 'उवचिय - पुरव रकवाडविच्छिन्नपिहुलवच्छे, ववगयपेमरागदोसमोहे निम्मंथस्स पवयणस्स 'कणयसिलायलुज्जलपसत्थसमतलसिरिवच्छरइ देसए सत्थनायगे पइट्टावए समणगपई समणयवच्छे' (वृ)। गविंदपरिवढिए चउत्तीसबुद्धवयणाइसेसपत्ते ६. 'अट्ठसहस्सपडिपुण्णवरपुरिसलक्खणधरे' त्ति पणतीससच्चवयणाइसेसे (व); 'क' आदर्श क्वचिद् दृश्यते (व); 'क, ख आदर्शयोरपि पि एष पाठो लभ्यते। एष पाठो दश्यते । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-परणं छत्तेणं, आगासियाहि चामराहि, ' आगासफालियामएणं' सपायवीढेणं सीहासणेणं, धम्मज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं, चउद्दसहि समणसाहस्सीहि, छत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धि संपरिवडे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए नयरी बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंप नगर पुण्णभद्दं चेइयं समोसरिउकामे || पवित्ति-वाउयस्तनिवेदण-पदं २०. एणं से पवित्ति' - वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ- तुट्ठ-चित्तमादिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्मे कय- कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चंपाए णयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोणिस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिभसारपुत्ते' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि ' कट्टु एणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी - जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं कखंति, जस्स णं देवापिया दंसणं पीहंति", जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं पत्यंति', जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं अभिलसंति, जस्स णं देवाणुप्पिया णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ठ-तुट्ठ े• चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण 'हियया भवंति से णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे चंपाए गयरीए उवणगरग्गामं उवागए चंप नगर पुण्णभद्दं चेइयं समोसरिजकामे । 'तं एयं णं" देवाणुप्पियाणं पियट्ट्याए पियं णिवेदेमि, पियं भे भवउ ॥ स विहि-मोत्यु-पदं २१. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते तस्स पवित्ति-वाउयस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा जिसम्म हट्ठ- तुट्ठ" "चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाण● हियए " वियसिय- वरकमल-णयण - वयणे पर्यालय- वरकडग- तुडिय - केऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतरइयवच्छे" पालंब - पलंवमाण- घोलंतभूसणधरे ससंभ्रमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहास - जाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भट्ठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता" पाउयाओ ओमुयइ, १. सेयव रचामराहि (ख) 1 १०. एतेणं ( क ) : एएणं ( ख ) । २. आगासफलियाम एवं (क, ग ); आगासगएणं ११. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियए । फलियामएणं ( ख ) । ३. पउत्ति (क, वृ)। ४. मंगललाई (ग, वृ ) | ५. भंभसारपुत्ते ( ग ) । ६. अंजुलि (क ) | ७. पेहेंति (ख) 1 ८. पीच्छंति (क); पिच्छंति ( ख ) । ६. सं० पा०-हट्ठट्ठ जाव हियया । १५ १२. 'धाराय नीवसुरहिकुसुम व चंचुमालइयऊसवियरोमकूचे' इदं च विशेषणं क्वचिदेव दृश्यते (वृ) । १३. विराइयवच्छे ( ख ) । १४. क्वचिदिदं पादुकाविशेषणं दृश्यते - वेरुलियवरिअं जणनि उणोवियमिति मिसितमणिरयण - मंडियाओ (कृ) । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं ओमुइत्ता' एगसाडियं उत्तरासंग करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभए अंजलिमउलियहत्थे' तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणु धरणितलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेई', निवेसेत्ता ईसिं पच्चूण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल परिग हियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-णमोत्थ णं अरहताण भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं' पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीण अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदसणधराणं वियदृछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं मुत्ताणं मोयगाणं बुद्धाणं बोयाणं सवण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स' 'सहसंबुद्धस्स पुरिसोत्तमस्स पुरिससीहस्स पुरिसवरपुंडरीयस्स पुरिसवरगंधहत्थिस्स अभयदयस्स चक्खुदयस्स मग्गदयस्स सरणदयस्स जीवदयस्स दीवो ताणं सरणं गई पइटठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्रिस्स अप्पडिहयवरनाणदंसणधरस्स वियदछउमस्स जिणस्स जाणयस्स तिण्णस्स तारयस्स मुत्तस्स मोयगस्स बुद्धस्स बोहयस्स सवण्णुस्स सव्वदरिसिस्स सिवमयलमख्यमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तमं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं° संपाविउकामस्स ममं धम्मायरियस्स धम्मोपदेसगस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए", पासई" मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्ति-वाउयस्स अठ्ठत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासी-जया णं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे इहमागच्छेज्जा इह समोसरिज्जा इहेव चंपाए गयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा तया णं मम एयमझें निवेदिज्जासि त्ति कटु विसज्जिए" ।। भगवओ उवागमण-पदं २२. तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल१. तथेदमपि 'अवहट्ट पंच रायककुहाई, तं जहा- (क, ख)। खगं छत्तं उपफेसं वाहणाओ वालवीयणं' १. संपत्ताणं नमोजिणाणं (क, ख) । (व);'क' आदर्शपि एष पाठो लभ्यते । 8. सं० पा०—तित्थगरस्स जाव संपाविउकामस्स २. मउलियम्गहत्थे (ख)। १०. इहमागए (ख, ग)। ३. णिनेमि (क); णमेइ (ख); णिमेइ (ग)। ११. पासउ (क, ख, ग)। ४. सं० पा०—करयल जाव कटु । १२. चेइए अरहा जिणे केवली समणगणपरिबुडे ५. अरिहंताणं (ख)। ६. सयंसंबुद्धाणं (क, ख, ग)। १३. एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ ७. गंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोग- ति वाचनान्तरे वाक्यम् (वृ) । हियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरगं कोमलुम्मिलियंम अहपंडुरे' पहाए रत्तासोगप्पगास - किसुय सुयमुह - गुंजद्ध - रागसरिसे कमला रडवोह उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते' जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुणभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि हित्ता' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || समण- वण्णग-पदं २३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवाओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो - अप्पेगइया उग्गपव्वइया भोगपव्वइया राइण्ण णाय कोरव्व खत्तियपव्वइया भडा जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्ठी इब्भा अण्णे य बहवे एवमाइणो उत्तमजाइ-कुल- रूव-विणयविण्णा वण्ण- लावण्ण- विक्कम- पहाण-सोभग्ग-कंतिजुत्ता 'बहुधण धण्ण- णिचयपरियाल - फिडिया" परवइगुणाइरेगा इच्छियभोगा सुहसंपल लिया किंपागफलोवमं च मुणियविसयसोक्खं, जलबुब्बुयसमाणं कुसग्ग-जल बिंदुचंचलं जीवियं य णाऊण, अद्धवमिगं रयमिव पग्गलग्गं संविधुणित्ताणं, चइत्ता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धणं एवं --- धणं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं रज्जं रठ्ठे पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिलप्पवाल- रत्तरयणमाइयं संत-सार-सावतेज्जं, विच्छडुइत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइया -- अप्पेगइया अद्धमासपरियाया अप्पेगइया मासपरियाया अप्पेगइया दुमासपरियाया अप्पेगइया तिमासपरियाया जाव अप्पेगइया एक्कारसमासपरियाया अप्पेगइया वासपरियाया अप्पेगइया दुवासपरियाया अप्पेगइया निवासपरियाया अप्पेगइया अणेगवासपरियाया - संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणा विहरंति || निग्गंथ-वण्णग-पदं २४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो - अप्पेगइया आभिणिवोहियणाणी" "अप्पेगइया सुयणाणी अप्पेगइया ओहिणाणी अप्पेगइया मणपज्जवणाणी अप्पेगइया केवलणाणी अप्पेगइया मणबलिया अप्पेiser arबलिया अप्पेगइया कायबलिया' अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्या अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया १. अहापंडरे ( क ) ; अहापंडुरे ( ख ) । २. जलते असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्टगंसि परत्याभिमु पलियंक निसन्ने अरहा जिणे केवली समणगणपरिबुडे ( क ) ; 'संपलियंकनिसन्ने' इदं च वाचनान्तरपदम् (वृ ) । ३. ओगिण्हित्ता आगासगएणं चक्केणं जाव सुहंसुहेणं विहरमाणे ( क ) 1 ४. परिवार (ग.) । ५. बहुघणघणणिचय (वृपा) । - परिवारठिइगिहवासा १७ ६. आचारचूलायां (१५।१३) 'दाय' इति पाठः स्वीकृतोस्ति प्रस्तुतप्रकरणे एष एव पाठ: समीचीनः प्रतीयते किन्तु प्रस्तुतसूत्रादर्शेषु 'दाय' इति पाठ: क्वापि नोपलब्ध:, तेन 'दाणं' इति पाठ: स्वीकृत: । ७. सं० पा०--- आभिणिबोहियणाणी जाव केवलीणाणी । ८. नाणबलिया दंसणबलिया वाचनान्तराधीतं चेदं विशेषणत्रयम् (बु) । चारितबलिया' Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं खेलोसहिपत्ता 'अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता" अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया वीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी' अप्पेगइया संभिण्णसोया अप्पेगइया खीरासवा अप्पेगइया महुयासवा अप्पेगइया सप्पियासवा अप्पेगइया अक्खीणमहाणसिया' अप्पेगइया उज्जूमई अप्पेगइया विउलमई अप्पेगइया विउव्वणिडिढपत्ता अप्पेगइया चारणा अप्पेगइया विज्जाहरा अप्पेगइया आगासाइवाई अप्पेगइया कणगावलिं तवोकम्म पडिवण्णा' अप्पेगइया एगावलि तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया खुडागं सीहनिक्की लियं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया भद्दपडिम तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया महाभद्दपडिमं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया सव्वओभद्दपडिमं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया आयं विलवद्धमाणं तवोकम्मं पडिवण्णा अप्पेगइया मासियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया दोमासियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया तेमासियं भिक्खुप डिम पडिवण्णा जाव अप्पेगइया सत्तमासियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया पढमसत्तराइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया वीयसत्तराइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया तच्चसत्तराइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया राईदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया एगराइयं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया अट्ठअट्ठमियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया गवणवमियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया दसदसमियं भिवखुपडिमं पडिवण्णा' अप्पेगइया खुडियं मोयप डिमं पडिवण्णा अप्पेग़इया महल्लियं १. एवं जल्लोसहिपत्ता विप्पोसहिपत्ता आमोसहि- वृत्तो एकादश्या: प्रतिमाया व्याख्या इत्थमस्तिपत्ता सम्वोसहिपत्ता (क, ग)। एकादशी अहोरात्रप्रमाणा-अहोरात्रिकी। २. पयाणुसार (क, ख) । द्वादश्या व्याख्या तत्रैवेत्थमस्तिएकरात्रि३. 'महाणसीया (वृ)। दिवा- एकरात्रिप्रमामा । अत्र रात्रिदिवा ४. आगासाबासी (क, ख) । शब्दादपि रात्रिरेव ग्राह्या, अन्यथा एक५. पडिवण्णगा (वृ)। रात्रिकी इत्यस्य विरोधात् ।' अत्र वृत्तिकृता ६. "वद्धमाणकं (क, ख)। द्वितीयः पाठः समीचीनो नोपलब्ध इति प्रति७,८. अहोराइंदियं (क, ख, ग)। एक्कराइंदियं भाति । इत्थं प्रतीयते क्वचिद् 'अहो' शब्द (क, ख, ग); अर्थदृष्ट्या उभावपि पाठौ न । आसीत् क्वचिच्च 'दिवा'। प्रतिलिपिषु जायसंगच्छेते । प्रथमे पाठे 'अहो' 'दियं' द्वावपि मानासु द्वयोरेक त्रयोगो जातः । तथैव 'राइयं' शब्दौ दिवसवाचिनो स्तः। द्वितीये पाठे दियं' इत्यत्रापि पूर्वप्रतिमाया: 'राइंदियं' पाठानुसृतिशब्दोधिकोस्ति । तेनास्माभिर्वत्तिगतः पाठः र्जाता। स्वीकृतः । एकादश्या: प्रतिमायाः कृते राई 8. क्वचिदिहस्थाने-भद्रा सुभद्रा महाभद्रा सर्वतोदियं' तथा द्वादश्या: प्रतिमायाः कृते एगराइयं' भद्रा भद्रोत्तराश्च भिक्षुप्रतिमाः पठ्यन्ते, तदनु सारी पाठ इत्थं जायते-'भद्दपडिम पडिवण्णा पाठो लभ्यते । समवायाङ्ग (१२११) उक्त- सुभद्दपडिम पडिवण्णा महाभपडिम पडिवण्णा प्रतिमयोः कृते 'अहोराइया' तथा 'एगराइया' सबओभद्दपडिमं पडिवण्णा भददुत्तरपडिम पाठः प्राप्यते । दशाश्रुतस्कन्ध (७।३१,३२) पडिवण्णा ।' (व)। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-पय रणं मोयपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया जवमज्झं चंदपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया वइरमज्झं चंदपडिमं पडिवण्णा' - संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति ॥ -वण-पदं २५. तेंणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो -- जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा बलसंपण्णा स्वसंपण्णा विणयसंपण्णा णाणसंपण्णा दंसणसंपण्णा चरितसंपण्णा लज्जासंपण्णा लाघवसंपण्णा ओयंसी तेयंसी बच्चंसी जसंसी, जियकोहा' जियमाणा जियमाया जियलोभा जिइंदिया जियणिद्दा जियपरीसहा जीवियासमरणभय-विप्प मुक्का, वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणापहाणा चरणप्पहाणा णिग्गहपहाणा निच्छयपहाणा अज्जवप्पहाणा मद्दवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जप्पहाणा मंतष्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चपहाणा सोप्पहाणा, चारुवण्णा लज्जा तवस्सी जिइंदिया सोही अणियाणा अप्पोसुया अवहिल्लेसा अप्पडिलेसा सुसामण्णरया दंता - इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरति ॥ २६. तेसि गं भगवंताणं 'आयावाया वि" विदिता भवंति 'परवाया वि" विदिता भवंति, आयावायं जमइत्ता नलवणमिव मत्तमातंगा अच्छिदपसिणवागरणा रयणकरंडगसमाणा कुत्तियावणभूया परवाइपमद्दणा" दुवालसंगिणो समत्तगणिपिडगधरा सव्वक्खरसण्णिवाइणो सव्वभासाणुगामिणो अजिणा जिणसंकासा जिणा इव अवितह वागरमाणा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति ॥ १६ अणगार-वण्णग-पदं २७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण- भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिया उच्चार पासवण खेल-सिंघाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मणगुत्ता वयगुत्ता काय १. वाचनान्तराधीतमथ पदचतुष्कम् - 'विवेगपडिमं पडिवण्णा विसग्गपडिमं पडिवण्णा उवहाणपडिमं पडिवण्णा पडिली पडिमं पडिवण्णा' (वृ) । २. जियको (क) अग्रे सर्वत्र 'एकार:' । ३. क्वचिदेवं च पठ्यते--- ' बहूणं आयरियाणं बहूणं उवज्झायाणं बहूणं हित्थाणं पव्वइयाणं च दीवो ताणं सरणं गई पट्टा' (वृ) । ४. आयवाणी ( वृ) ५. परवादा (ग); परवारणी ( वृपा ) ! ६. नलवणा इव ( बृपा ) ! ७. परवाइयपमद्दणा (वृ) । ८. परवाईहि अणोक्ता इत्यादि चोहसपुच्ची' इत्यन्तं वाचनान्तरं परवाईहि अणोक्कता अण्णउत्थि एहि अणोद्धसिज्जमाणा विहरंति 'अप्पेगइया आयारधरा । वृत्तिकृत्ता 'अप्पेगइया... सुगमामि' इति लिखितम्, तदाधारेण एषा पाठपद्धतिः सम्भाव्यते- 'अप्पेगइया आयारधरा एवं सूयगड - ठाण- समवायविवाहपण्णत्ति नायाधम्मक हा उवासगदसाअंत गडदसा - अणुत्तरोववाइयदसा - पण्हावागरणदसा - विवागसुयधरा एगारसंगधरा दुबालसंगधरा नवपुब्वी दसपुब्बी चोट्सपुथ्वी ( वृ) । ६. जिणो (क, ख ) । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं गुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा' निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखों इव निरंगणा', जीवो विद अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिदिया, पुखरपत्तं व निरुवलेवा, ग़गणमिव निरालंबणा, अणिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया', सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं व सुद्धयिया, खगाविसाणं' व एगजाया, भारंडपक्खी' व अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, वसभो इव जायत्थामा, सीहो इव दुद्धरिसा, वसुंधरा इव सव्वफासविसहा, सुहुययासणो इव तेयसा जलंता॥ अपडिबंध-विहार-पदं २८. नत्थि ‘णं तेसिं" भगवंताणं कत्थइ पडिबंधे। [से य पडिबंधे चउविहे भवइ, तं जहा"-दब्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ-सचित्ताचित्तमीसिएसु" दव्वेसु । खेत्तओ--गामे वा णयरे वा रणे वा खेत्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा । कालओ-समए वा आवलियाए वा २ 'आणापाणुए वा थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा १. वाचनान्तरे 'अकोहे' त्यादीन्येकादशपदानि कान्तरे विशेषणानि सर्वाण्येतानीदं चाधिकम् दश्यन्ते-'अकोहा अमाणा अमाया अलोभा 'आदरिसफलगा इव पायडभावो'- इति संता पसंता उवसंता परिणिव्या अणासवा गृहीतम्, प्रतिषु विशेषणमिदं जच्चकणगं' अग्गंथा छिण्णसोया' (वृ); सूत्रकृताङ्गे- अतोनन्तरमस्ति । द्रष्टव्यं अंगसूत्ताणि भाग (२।२१६४) प्येष पाठो विद्यते । १: परिशिष्ट २ आलोच्यपाठ तथा वाचना२. संख (क, ग)। ३. निरंजणा (ग)। ८. तेसि णं (क, ख)। ४. तेयंसि (ख, ग)। ६. पडिबंधे भवइ (ग, व)। ५. खग्गिविसाणं (क्वचित्) । १०. वाचनान्तरे पुन: 'तं जहा' इत्यतः परंगमान्तं ६. भारंडपक्खी (ख, वृ)। (सूत्र २८, २६ पर्यन्तं) यावदिदं पठ्यते-- तकृता 'कंसपाईव मुक्कतोया' इत्यादिपदानां अंडए इ वा पोयए इ वा 'अंडजे इ वा बोंडजे व्याख्या द्वितीयाचाराङ्गस्य भावनाध्ययनान्तर्ग इवा' इत्यत्र पाठान्तरे उग्गहिए इ वा पग्गतसङ्ग्रहगाथे अनुसृत्य कृतास्ति, तथा वाचना- हिए वा जणं दिसं इच्छंति तं णं तं णं न्तरेपि तथैव पाठो लब्धः-निरुवलेपतामेवो दिसं विहरंति सुइभूया लघुभूया अणप्पगंथा पमानैराह-वक्ष्यमाणपदानां च भावनाध्यय (व); सूत्रकृताने (२।२।६६) प्येतादृश: नाद्युक्ते इमे संग्रहगाथे पाठो विद्यते--अंडए इ वा पोयए इ वा कसे संखे जीवे, गयणे वाए य सारए सलिले । उग्गहे इ वा पग्गहे इ वाजण्णं जण्णं दिसं पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ इच्छंति तण्णं तण्णं दिसं अपडिबद्धा सुइभुया कुंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे । लहभूया अप्पगंथा संजमेणं तवसा अप्पाणं चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥ भावमाणा विहरति । उक्तगाथानुक्रमेण तानि पदानि व्याख्यास्यामः, ११. 'मीसएसु (क, ख, ग)। वाचनान्तरे इत्थमेव दृष्टत्वादिति (वृ० पृ० १२. सं० पा०-आवलियाए वा जाव अयणे । ६७); वृत्तिकृता सर्वेषां विशेषणानामन्ते पुस्त न्तर। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरण २१ मासे वा अयणे वा अण्णयरे वा दीहकालसंजोगे। भावओ-कोहे वा माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा। एवं तेसि ण भवई] । २६. तेणं भगवंतो वासावासवज्जं अट्ठ गिम्ह-हेमंतियाणि मासाणि गामे एगराइया जयरे पंचराइया वासीचंदणसमाणकप्पा समलेठ्ठकंचणा समसुहदुक्खा इहलोगपरलोगअप्पडिबद्धा संसारपारगामी कम्मणिग्घायणछाए अब्भुट्ठिया विहरंति ॥ तवोवहाण-वण्णग-पदं ३०. तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं इमे एयारूवे सभितर-बाहिरए तवोवहाणे होत्था', तं जहा--अभितरए वि' छबिहे, बाहिरए वि छबिहे ।। ३१. से कि तं बाहिरए ? बाहिरए छविहे, तं जहा-अगसणे ओमोयरिया भिक्खायरिया रसपरिच्चाए कायकिलेसे पडिसलीणया ।। ३२. से किं तं अणसणे ? अणसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इत्तरिए य आवकहिए य । से' किं तं इत्तरिए ? इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-चउत्थभत्ते, छट्ठभत्ते, अट्ठमभत्ते, दसमभत्ते, बारसभत्ते, चउद्दसभत्ते, सोलसभत्ते, 'अद्धमासिए भत्ते" मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिए भत्ते । से तं इत्तरिए। से किं तं आवकहिए ? आवकहिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे ? पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--वाघाइमे य १. दशाश्रुतस्कन्धस्य पर्युषणाकल्पे (७६) अन्या- तेन तत्र तत्र स्थले सूत्रसंख्या विपर्ययो न न्यपि पदानि दृश्यन्ते-पेज्जे वा दोसे वा कलहे स्यात् इत्याशङ्कयैव एतत्परिवर्तनमशक्यमस्ति । वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा ७. x (क, ख, ग)। अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले ८. पायवगमणे (क)। ६. स्थानाने (२१४१५,४१६) भगवत्या उत्तरा२. कोष्ठकत्तिपाठो व्याख्यांश: प्रतीयते । ध्ययने च भिन्ना पाठपरम्परा लभ्यते--पाओ३. वाचनान्तरे-'जायामायावित्ति' 'अदुत्तरं वा' वगमणे दुविहे पण्णते, तं जहा-नीहारिमे य, (ब); सूत्रकृताङ्गे (२।२।६६) प्येतादृशः अणीहारिमे य। नियम अपडिकम्मे । भत्तपाठो विद्यते--तेसि णं भगवंताणं इमा एया- पच्चवखाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-नीहारिमे रूवा जायामायावित्ती होत्था' । य, अणीहारिमे य। नियमं सपडिकम्मे (भ. ४. X (क)। २५१५६२, ५६३); अहवा सपरिकम्मा ५. बाहिरए तवे (ख, ग)। अपरिकम्मा य आहिया। नीहारिमणीहारी ६. भगवत्यां (२३५६०) प्रतिप्रश्नस्य सूत्रसंख्या आहारच्छेओ य दोसु वि (उत्त० ३०११३) स्वतंत्रा विद्यते । प्रस्तुतसूत्रे प्रतिविषयस्य भगवत्याराधनाया: भक्तप्रत्याख्यानस्य 'सविएकव सूत्रसंख्यास्ति । अयं भेदः यद्यपि समालो- चारं अविचार' इति भेदद्वयं कृतमस्तिच्योस्ति, तथापि नात्र परिवर्तनं क दुविहं तु भत्तपच्चक्खाणं सविचारमध अविचार शक्यम् । प्रस्तुतसूत्रस्य अनेकानि सूत्राणि अने (२०६५)। केषु आगमेषु साक्ष्यरूपेण उट्टङ्कितानि वर्तन्ते, वा। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं निवाघाइम य ! णियमा अप्पडिकम्मे । से तं पाओवगमणे । से किंतं भत्तपच्चक्खाणे ? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-वाघाइमे य निव्वाघाइमे य । णियमा सपडिकम्मे । से तं भत्तपच्चक्खाणे। [से तं आवकहिए' ? } । से तं अणसणे ॥ ३३. से किं तं ओमोदरियाओ? ओमोदरियाओ दुविहा पण्णत्ताओ, तं जहादव्वोमोदरिया य भावोमोदरिया य । से कि तं दव्वोमोदरिया ? दब्वोमोदरिया दुविहा पण्णता, तं जहा-उवगरणदव्वोमोदरिया य भत्तपाणदव्योमोदरिया य । से किं तं उवगरणदव्वोमोदरिया ? उवगरणदब्बोमोदरिया ति विहा पण्णत्ता, तं जहा-एगे वत्थे, एगे पाए, चियत्तोवकरणसाइज्जणया । से तं उवगरणदव्वोमोदरिया। से किं तं भत्तपाणदव्वोमोदरिया ? भत्तपाणदव्वोमोदरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा--अट्ठ कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते' कवले आहारमाहारेमाणे' अप्पाहारे, दुवालस कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे अवड्ढोमोदरिए, सोलस कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे दुभागपत्तोमोदरिए, चउवीसं कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे पत्तोमोदरिए, 'एक्कतीसं कुक्कूडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे किंचूणोमोदरिए", बत्तीसं कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे पमाणपत्ते, एत्तो एगेण वि घासेणं' ऊणयं आहारमाहारेमाणे समणे णिग्गंथे णो पकामरसभोइ त्ति वत्सव्वं सिया । से तं भत्तपाणदव्वोमोदरिया । से तं दव्वोमोदरिया। से किं तं भावोमोदरिया? भावोमोदरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अप्पकोहे, अप्पमाणे, अप्पमाए, अप्पलोहे, अप्पसद्दे, अप्पझंझे से तं भावोमोदरिया । से तं ओमोदरिया।। ३४. से किं तं भिक्खायरिया ? भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णता, तं जहादव्वाभिग्गहचरए खेत्ताभिग्गहचरए कालाभिग्गहचरए भावाभिग्गहचरए उक्खित्तचरए मिक्खित्तचरए उक्खित्तणिक्खित्तच रए णिक्खित्तउदिखत्तचरए वट्रिज्जमाणचरए साहरिज्जमाणचरए उवणीयचरए अवणीयच रए उवणीयअवणीयचरए अवणीय उवणीयचरए संसट्ठचरए असंसट्ठचरए तज्जायसंसठ्ठचरए अण्णायचरए मोणचरए' दिठ्ठलाभिए अदिठ्ठलाभिए पुट्ठलाभिए अपुट्ठलाभिए भिक्खलाभिए अभिक्खलाभिए अण्णगिलायए ओवणिहिए परिमियपिंडवाइएसद्धेसणिए संखादत्तिए । से तं भिखारिया ॥ ३५. से किं तं रसपरिच्चाए ? रसपरिच्चाए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहानिन्विइए, १. एतन्निगमनं भगवत्यां (२५१५६३) द्रष्टव्यं व्यवहारस्य (८1१७) पादटिप्पणम् । उपलभ्यते । अत्रापि अपेक्षितमस्ति, परन्तु ५. गासेणं (क)। आदर्शेषु नोपलभ्यते । ६. अप्पझझे अप्पतुमंतुमे (भ० २५५३८) । २. कुक्कड' (क); कुक्कुडि (क्वचित्)। ७. मोणचरए दिट्ठचरए अदिट्ठचरए (ख,ग) । ३. आहारेमाणे (ग)। ८. पिंडलाभिए (ख, ग)। ४. चिन्हाङ्कितः पाठः भगवत्या (७।२४) ६. निव्वीए (क, ख); निन्दीयए (व); नोपलभ्यते । तदवत्तावपि नास्ति व्याख्यतः । निवि गितिए (भ०२५२५७०) Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं पणीयरसपरिच्चाए, आयविलए', आयामसित्थभोई, अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहार, पंताहारे, लूहाहारे 1 से तं रसपरिच्चाए । ३६. से कि तं काय किलेसे ? कायकिलेसे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा---ठाणठ्ठिइए' उक्कुडयासणिए पडिमट्ठाई वीरासणिए नेसज्जिए' आयावए अवाउडए अकंडयए अणिठ्ठहए सव्वगायपरिकम्म-विभूस विप्पमुक्के । से तं कायकिलेसे ॥ ३७. से किं तं पडिसलीणया ? पडिसलीणया चउविहा पण्पत्ता, तं जहा-. इंदियपडिसलीणया कसायपडिसलीणया जोगपडिसलीयणया विवित्तसयणासणसेवणया। से कि तं इंदियपडिसंलीणया ? इंदियपडिसलीणया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहासोइंदियविसयप्पया रनिरोहो वा सोइंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, चक्खिदियविसयप्पयारनिरोहो वा चक्खिदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, घाणिदियविसयप्पयारनिरोहो वा घाणिदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, जिभिदियवियप्पयारनिरोहो वा जिभिदिय विसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, फासिदियविसयप्पयारनिरोहो वा फासिदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा । से तं इंदियपडिसंलीणया। से किं तं कसायपडिसलीणया? कसायपडिसंलीणया चउम्विहा पण्णत्ता, तं जहाकोहस्सुदयनिरोहो' वा उदयपत्तस्स वा कोहस्स विफलीकरणं, माणस्सुदयनिरोहो वा उदयपत्तस्स वा माणस्स विफलीकरणं, मायाउदयणिरोहो वा उदयपत्ताए वा मायाए विफलीकरणं, लोहस्सुदयणिरोहो वा उदयपत्तस्स वा लोहस्स विफलीकरणं । से तं कसायपडिसंलीणया। से कि तं जोगपडिसलीणया? जोगपडिसलीणया तिविहा पण्णत्ता, तं जहामणजोगपडिसलीणया वइजोगपडिसलीणया कायजोगपडिसलीणया। से किं तं मणजोगपडिसलीणया? मणजोगपडिसलीणया-अकुसलमणणिरोहो वा, कुसलमणउदीरणं वा । से तं मणजोगपडिसंलोणया। से किं तं वइजोगपडिसंलीणया? वइजोगपडिसंलीणया-अकुसल वइणिरोहो वा, कुसलवइउदीरणं वा । से तं वइजोगपडिसलीणया । से कि तं कायजोगपडिसलीणया ? कायजोगपडिसंलीणया-जण्णं सुसमाहियपाणिपाए कुम्मो इव गुत्तिदिए सव्वगायपडिसंलीणे" चिट्ठ। से तं कायजोगपडिसंलीणया । १. आयंबिलिए (वृ)। ७. वा, मणस्स वा एगत्तीभावकरणं (भ० २५। २. लुक्खाहारे (क); लूहाहारे तुच्छाहारे (वृपा)। ५७७) । ३. ठाणाइए (ग, वृपा); ठाणातिए ८. वा, वईए वा एगत्तीभावकरणं (भ० (ठाणं १४२); ठाणादीए (भ० २५१५७१) ! २५१५७७) ३ ४. 'दंडायए लगंडसाई' ति क्वचिद् दृश्यते (व)! ६. सुसमाहिय-पसंत-साहरियपाणिपाए ५. 'धुयकेसमंसुलोम' ति क्वचिद् दृश्यते (वृ)। २५१५७८) । ६. कोहोदय (ख, ग)। १०. अल्लीण-पल्लीणे (भ० २५५७८)। (५० Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ओवाइयं [से तं जोगपडिसलीणया ?"] से कि तं विवित्तसयणासणसेवणया ? विवित्तसयणासणसेवणया-जण्णं आरामसु उज्जाणेसु देवकुलेसु सहासु पवासु 'पणियगिहेसु पणियसालासु'' इत्थी-पसु-पंडगसंसत्तविरहियासु वसहीसु फासुएसणिज्ज पीढफलगसेज्जासंथारगं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । से तं विवित्तसयणासणसेवणया ?] से तं पडिसलीणया। से तं बाहिरए तवे ।। ३८. से कि तं अभितरए तवे ? अभितरए तवे छविहे पण्णत्ते, तं जहा'पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सग्गो" ॥ ३६. से किं तं पायच्छित्ते ? पायच्छित्ते दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवठ्ठप्पारिहे पारंचियारिहे । से तं पायच्छित्ते ।। ४०. से किं तं विणए ? विणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा--णाणविणए दंसणविगए चरित्तविणए मणविणए वइविणए कायविणए लोगोवयारविणए। से किं तं णाणविणए ? णाणविणए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणविणए सुयणाणविणए ओहिणाणविणए मणपज्जवणाणविणए केवलणाणविणए। से तं णाणवणिए। से किं तं दंसणविणए ? दंसणविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--सुस्सूसणाविणए य अणच्चासायणाविणए य । से कि तं सुस्सूसणाविणए ? सुस्सूसणाविणए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा--अब्भुट्ठाणेइ वा, आसणाभिग्गहेइ वा, आसणप्पयाणंति' वा, सक्कारेइ वा, सम्माणेइ वा, किइकम्मेइ वा, अंजलिप्पग्गहेइ वा, एंतस्स अभिगच्छणया, ठियस्स पज्जुवासणया, गच्छंतस्स पडिसंसाहणया। से तं सुस्सूसणाविणए। से किं तं अणच्चासायणाविणए ? अणच्चासायणाविणए पणयालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा–अरहंताणं अणच्चासायणा अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणा आयरियाणं अणच्चासायणा एवं उवज्झायाणं थेराणं कुलस्स गणस्स संघस्स किरियाणं संभोगस्स आभिणिवोहियणाणस्स सुयणाणस्स ओहिणणस्स मणपज्जवणाणस्स केवलणाणस्स. एएसि चेव भत्ति-वहुमाणेणं, एएसि चेव वण्णसंजलणया। से तं अणच्चासायणाविणए । से तं दसणविणए। १. एतनिगमनं भगवत्या (२५१५७८) उपलभ्यते । अत्रापि अपेक्षितमस्ति परन्तु आदर्शषु नोपलभ्यते । २. X (भ० २५५५७६)। ३. पंडगविवज्जियासु (भ० २५५५७६) । ४. पायच्छित्तं विणओ, देयावच्चं तहेव सज्भाओ। झाणं विउसग्गो, (क,ख) । ५. भगवत्यां (२१५८५) पदानां क्रमभेदो लभ्यते--सक्कारे इ वा सम्माणे इ वा किइकम्मे इ वा अन्भदाणे इ वा अंजलिपग्गहे इ वा आसणाभिग्गहे इ वा आसणाणुप्पदाणे इ वा, एतस्स पच्चुग्गच्छाणया ठियस्स पज्जुवासणया, गच्छंतस्स पडिसंसाहणया । ६. आसणप्पयाणाति (ख, ग)। ७. अणुगच्छणया (क, ख) । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं __ से किं तं चरित्तविणए ? चरित्तविणए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-सामाइयचरित्तविणए छेदोवठ्ठावणियचरित्तविणए परिहारविसुद्धिचरित्तविणए' सुहुमसंपरायचरित्तविणए अहक्खायचरित्तविणए । से तं चरित्तविणए। से किं तं मणविणए ? मणविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा---पसत्थमणविणए अपसत्थमणविणए। से किं तं अपसत्थमणविणए ? अपसत्थमणविणए जे य मणे सावज्जे सकिरिए सकक्कसे कडुए णिठुरे फरुसे अण्हयक रे छेयकरे भेयकरे परितावणकरे उद्दवणकरे भूओवघाइए तहप्पगारं मणो णो पहारेज्जा । से तं अपसत्थमणविणए। से किं तं पसत्थमण विणए ? पसत्थमण विणए "जे य मणे असावज्जे अकिरिए अकक्कसे अकडए अणिटठरे अफरुसे अणण्हयकरे अछेयकरे अभयकरे अपरितावणकरे अणदवणकरे अभूओवघाइए तहप्पगारं मणो पहारेज्जा। से तं पसत्थमणविणए। से तं मणविणए। __से कि तं वइविणए ? वइविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पसत्थवइविणए अपसत्थवइविणए। से किं तं अपसत्थवइविणए ? अपसत्थवइविणए जा य वई सावज्जा सकिरिया सकक्कसा कड्या पिठुरा फरुसा अण्हयकरी छेयकरी भेयकरी परितावणकरी उद्दवणकरी भूओवघाइया तहप्पगारं वई णो पहारेज्जा ! से तं अपसत्थवइविणए। से कि तं पसत्थवइविणए ? पसत्थवइविणए जा य वई असावज्जा अकिरिया अकक्कसा अकडया अणि?रा अफरुसा अणण्हयकरी अछेयकरी अभेयकरी अपरितावणकरी अणुद्दवणकरी अभूओवघाइया तहप्पगारं वई पहारेज्जा । से तं पसत्थवइविणए । से तं वइविणए। ___ से कि तं कायविणए ? कायविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--पसत्थकायविणए अपसत्थकायविणए। से किं तं अपसत्थकायविणए ? अपसत्थकाय विणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहाअणाउत्तं गमगे अणाउत्तं ठाणे अणाउत्तं निसीदणे अणाउत्तं तुयट्टणे अणाउत्तं उल्लंघणे अणाउत्तं पल्लंघणे अणाउत्तं सबिदियकायजोगजुजणया। से तं अपसत्थकायविणए। से किं तं पसत्थकायविणए ? पसत्यकायविण ए “सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-आउत्तं गमणे आउत्तं ठाणे आउतं निसीदणे आउत्तं तुयट्टणे आउत्तं उल्लंघणे आउत्तं पल्लंघणे १. परिहारविशुद्ध (क) । सेत्त पसत्थमणविणए । अग्ने सूत्रत्रयेपि सप्तव २. स्थानाङ्गे (७।१३१-१३४) भगवत्यां (२५॥ भेदा विद्यन्ते । ५८९-५६३) च मनोवागविनययोः प्रकारभेदो ३. सं० पा०-तं चेव पसत्थं नेयव्वं, एवं चेव लभ्यते । उदाहरणरूपेण-से कि तं पसत्थमण- वइविणओवि एएहि पएहि चेव णेयचो। विणए ? पसत्यमणविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं ४. सब्विदियजोगजजणया (ठाणं ७:१३६, भ० जहा –अपावए असावज्जे अकिरिए निरुव- २५१५६६) । केसे अहवकरे अच्छविकरे अभूयाभिसंकणे। ५. सं० पा०--एवं चेव पसत्यं भाणियन्वं । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ओवाइयं आउत्तं सबिदियकायजोगजंजणया । से तं पसत्थकायविणए । से तं कायविगए। से किं तं लोगोवयारविणए ? लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-अब्भासवत्तियं परच्छंदाणवत्तियं कज्जहेउं कयपडिकिरिया' अत्तगवेसणया देसकालण्णुया सव्वत्थेसु अप्पडिलोमया । से तं लोगोवयारविणए । से तं विणए । ४१. से किं तं वेयावच्चे ? वेयावच्चे दसविहे पण्णत्ते तं जहा-आयरियवेयावच्चे उवज्झायवेयावच्चे सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे तवस्सिवेयावच्चे थेरवेयावच्चे साहम्मियवेयावच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे संघवेयावच्चे । से तं वेयावच्चे ।। ४२. से किं तं सज्झाए ? सज्झाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-बायणा पडिपुच्छणा' परियट्टणा अणुप्पेहा धम्मकहा । से तं सज्झाए ।। ४३. से कि तं झाणे ? झाणे चउन्विहे पण्णत्ते, तं जहा-अट्टे झागे रुद्दे झाणे धम्मे झाणे सुक्के झाणे ॥ अट्टे झाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--अमणुग्ण-संपओग-संपउत्ते तस्स विप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ, मणुण्ण-संपओग-संपउत्ते तस्स अविप्पओग-सतिसमण्णागए यावि भवइ, आयंक-संपओग-संपउत्ते तस्स विप्पओग-सतिसमण्णागए यावि भवइ, परिजुसिय-कामभोग-संपओग-संपउत्ते तस्स अविप्पओग-सतिसमण्णागए यावि भवइ। अट्टस्स गं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णता, तं जहा-कंदणया सोयणया तिप्पणया विलवणया। ___ रुद्दे झाणे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा–हिंसाणु बंधी मोसाणुबंधी तेणाणुबंधी' सारक्खणाणुबंधी। रुहस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-ओसण्णदोसे बहुदोसे' अण्णाणदोसे आमरणंतदोसे । धम्मे झाणे चउविहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा-आणाविजए अवायविजए विवागविजए' संठाणविजए । धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-आणारुई णिसग्गरुई 'उवएसरुई सुत्तरुई। १. कयपडिकइया (ठाणं ७।१३७, भ० २५! ५९७)। २. स्थानाङ्गे (१०.१७) भगवत्यां (२१५६८) च पदानां क्रमभेदो विद्यते । ३. पुच्छणा (क)। ४. परिदेवणता (ठाणं ४१६२); परिदेवणया (भ० २५१६०२) । ५. तेथाणुबंधी (भ० २५६६०३) ! ६. बहुलदोसे (भ० २५॥६०४); भगवतीवृत्तौ (पत्र ९३६) 'बहुदोसे' इति पाठो व्याख्यातोस्ति-'बहुदोसे' त्ति बहुष्वपि सर्वेष्वपि । ७. विवादविजए (ग)। ८. सुत्तरुई ओगाहरुई (ठाणं ४।६६); सुत्तस्यी ओगाढस्यी (भ० २५४६०६); स्थानाङ्गे भगवत्यां च 'उवएसरुई' पदस्य स्थाने 'ओगाढरुई' इति पदं लभ्यते। उत्तराध्ययने (२८1१६) स्थानाङ्गस्य दशमे (१०४) स्थाने 'उवएसरुई' इत्येव लभ्यते । भगवत्यां Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरण २७ धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा-वायणा पुच्छणा परियट्टणा धम्मकहा। धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–'अणिच्चाणुप्पेहा असरणाणुप्पेहा एगत्ताणुप्पेहा संसाराणुप्पेहा"। सुक्के झाणे चउन्विहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा-पुहत्तवियक्के सवियारी एगत्तवियश्के अवियारी 'सुहुम किरिए अप्पडिवाई समुच्छिण्णकिरिए अणियट्टी"! सुक्कस्स' णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा- 'विवेगे विउसग्गे अव्वहे असम्मोहे"। ___ सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा-खंती मुत्ती अज्जवे महवे । सुक्क स्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- 'अवायाणप्पेहा असुभाणुप्पेहा अणंतवत्तियाणुप्पेहा विपरिणामाणुप्पेहा" । से तं झाणे ।। ४४. से किं तं विउस्सग्गे ? विउस्सग्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वविउस्सग्गे य भावविउस्सग्गे य । से किं तं दवविउस्सग्गे ? दव्वविउस्सग्गे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा–'सरीरविउस्सग्गे गणविउस्सग्गे उवहिविउस्सग्गे भत्तपाणविउस्सग्गे। से किं तं भावविउस्सग्गे ? भावविउस्सग्गे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-कसायविउस्सग्गे संसारविउस्सग्गे कम्मविउस्सग्गे। अवगाढरुचेर्यो वैकल्पिकोर्थः कृतस्तेन अनयो. लक्षणानां आलम्बनानां च व्यत्ययो लभ्यते-- ईयोः पदयोरेकार्थत्वमवसीयते--अथवा सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पणत्ता, 'ओगाढ' त्ति साधप्रत्यासन्नीभूतस्तस्य साधू- तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे । पदेशाद् रुचिरवगाढरुचिः । सुक्कस्स णं माणस्स वत्तारि आलंबणा १. एगाणुप्पेहा अणिच्चाणुप्पेहा असरणाणुप्पेहा पण्णत्ता, तं जहा-अव्वहे, असंमोहे, विवेगे, संसाराणुप्पेहा (ठाणं ४।६८); एकतागुप्पेहा विउस्सग्गे । असौ व्यत्ययश्च चिन्तनीयोस्ति । अणिच्चाणुप्पेहा असरणाणुप्पेहा संसाराणुप्पेहा स्थानाङ्गे (४१७०,७१) उत्तरवर्तिसाहित्ये च (भ० २५६०८)। सर्वत्रापि प्रस्तुतसूत्रसम्मता परम्परा अनुस्यू२. अत्र द्वे परम्परे उपलभ्येते । प्रस्तुतसूत्रे तास्ति । उत्तराध्ययने (२९७३) च सूक्ष्मकिय-अप्रति- ४. अव्वहे असम्मोहे विवेगे विउस्सग्गे (ठाणं ४॥ पाति, समुच्छिन्नक्रिय-अनिवृत्ति इति पाठो ७०)। लभ्यते । स्थानाङ्गे (४१६६) भगवत्यां (२५. अणंतवत्तियाणुप्पेहा विप्परिणामाणुप्पेहा ६०६) च सूक्ष्मक्रिय-अनिवृत्ति, समुच्छिन्न- असुभाणुप्पेहा अवायाणुप्पेहा (ठाणं ४१७२, क्रिय-अप्रतिपाति इति पाठो दृश्यते । उत्तर- भ० २५६१२) । वतिग्रन्थेषु प्रायः प्रस्तुतसूत्रपरम्परैव अनुसृता ६. गणविउसग्गे सरीरविउसग्गे (भ० २५॥ दृश्यते । ३. भगवत्या (२५१६१०,६११) शुक्लध्यानस्य Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अोवाइयं से कि तं कसायविउस्सग्गे ? कसायविउस्सग्गे च उव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-कोहकसायविउस्सग्गे माणकसायविउस्सग्गे मायाकसायविउस्सग्गे लोहकसाय विउस्सग्गे । से तं कसायविउस्सग्गे। से कि तं संसारविउस्सग्गे ? संसारविउस्सग्गे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–णेरइयसंसारविउस्सग्गे तिरियसंसारविउस्सग्गे मणुयसंसारविउस्सग्गे देवसंसारविउस्सग्गे। से तं संसारविउस्सग्गे। से कि तं कम्मविउस्सग्गे ? कम्मविउस्सग्गे अविहे पण्णत्ते, तं जहा–णाणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे दरिसणावरणिज्जकम्म विउस्सग्गे वेयणीयकम्मविउस्सग्गे मोहणीयकम्मविउस्सग्गे आउयकम्म विउस्सग्गे गोयकम्मविउस्सग्गे अंतरायकम्मविउस्सग्गे । से तं कम्मविउस्सग्गे । से तं भावविउस्सग्गे । [से तं अभितरए तवे ?] ।। अणगार-वण्णग-पवं ४५. 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अणगारा भगवंतो'--अप्पेगइया आयारधरा' 'अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपण्णत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसाधरा अप्पेगइया अणुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया विवागसुयधरा, अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियट्टति अप्पेगइया अणुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ णिव्वेयणीओ चउबिहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ ४६. संसारभउविग्गा' जम्मण-जर-मरण-करण-गंभीर-दुक्ख-पक्खभिय-पउर-सलिलं संजोग-विओग-वीचि-चिंता-पसंग-पसरिय-वह-बंध-महल्ल-विउल - कल्लोल-कलण-विलवियलोभ-कलकलेंत-वोलबहुलं अवमागण-फेण-तिवखिसण-पुलंपुलप्पभूय'-रोगवेयण-परिभवविणिवाय-फरुसधरिसणा-समावडिय-कढिणकम्मपत्थर-तरंग-रंगत-निच्चमच्चभय-तोयपटठं कसाय-पायाल-संकुलं भवसयसहस्स-कलुसजल-संचयं पइभयं अपरिमियमहिच्छ-कलुसमइवाउवेग-उद्धम्ममाणदगरयरयंधकार-वरफेण-पउर-आसापिवास-धवलं मोहमहावत्त-भोगभममाण - गुप्पमाणुच्छलंत - पच्चोणिवयंतपाणिय - पमायचंडबहुदुद्रुसावय- समाहयुद्धायमाणपब्भार-घोरकंदियमहारव-रक्त-भेरवरवं अण्णाणभमंतमच्छ-परिहत्थ-अणिहुतिदियमहामगरतुरिय-चरिय-खोखुब्भमाण-नच्चंत - चवल-चंचल-चलंत-घुम्मत-जल-समूहं अरइ-भय १. ते णं इत्यादि (क)। २. सं० पा०–आयारधरा जाव विवागसुयधरा। ३. अतः परं वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशोस्ति- 'तत्थ-तत्थ तहि-तहिं देसे-देसे गच्छाच्छि गुम्मामुम्मि फुडाफुडिं' । 'ख,ग' आदर्शयोरपि एष पाठो लभ्यते । ४. बहुविहाओ (क)। ५. भवोव्विग्गा (क); भउम्विग्गाभीया (ख,ग) : ६. पलुपणप्पभूय (वृपा)। ७. तरंग (क)। ८. उद्धव्वमाण (ख,वृपा); उद्धन्धमाण (ग)। ६. सुप्पमाणुच्छलंत (वृ)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-पयरणं २६ विसायसोग-मिच्छत्त-सेलसंकडं अणाइसंताण-कम्मबंधणकिलेसचिखल्ल-सूदुत्तारं अमरगर-तिरिय-णिरयगइ'-गमण-कुडिलपरियत्त-विउल-वेलं चउरंतमहंतमणक्यग्गं रुद संसारसागरं भीमदरिसणिज्ज तरंति धिइ-धणिय-निप्पकंपेण तुरियचवलं' संवर"-वेरग्गतुंग-कूवय-सुसंपउत्तेणं णाण-सिय-विमलभूसिएणं सम्मत्त-विसुद्ध-लद्ध-णिज्जामएणं धीरा संजमपोएण सीलकलिया पसत्थज्झाण-तक्वाय-पणोल्लिय-पहाविएणं उज्जम-ववसायगहिय-णिज्जरण-जयण-उवओग-णाण-दसणविसुद्धवयभंड-भरियसारा जिणवरवयणोवदिट्ठमग्गेण अकुडिलेण सिद्धि-महापट्टणाभिमुहा समणवरसत्थवाहा सुसुइ-सुसंभास-सुपण्हसासा गामे-गामे एगरायं णगरे-णगरे पंचरायं दूइज्जता जिइंदिया णिब्भया गयभया सचित्ताचित्तमीसएसु दम्वेसु विरागयं गया 'संजया विरता" मुत्ता लहुया णिरवकंखा साहु णिहुया चरंति धम्मं ।। भवणवासि-वण्णग-पदं ४७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउन्भवित्था-काल-महाणीलसरिस-णीलगुलिय-गवल-अय सिकुसुमप्पगासा वियसिय-सयवत्तमिव पत्तल-निम्मल"-ईसीसियरत्ततंव-णयणा गरुलायत-उज्जु-तुंगणासा ओयविय"सिल-प्पवाल-विवफलसण्णिभाहरोहा पंडुर-ससिसयल-विमल-णिम्मल-संखगोखीर-फेण-दगरय-मुणालिया-धवलदंतसेढी हुयवह-णिद्धत-धोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहा अंजण-घण-कसिण-रुयग-रमणिज्ज-णिद्ध केसा वामेगकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तयत्ता ईसीसिलिध-पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाई पवरपरिहिया वयं च पढम समइक्कंता विइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे वट्टमाणा तलभंगय-तुडिय-पवरभूसण-निम्मलमणि-रयण-मंडिय-भुया दसमुद्दा-मंडियग्गहत्था 'चूलामणि-चिंधगया, सुरूवा महिड्ढिया महज्जुइया महब्वला" महायसा महासोक्खा महाणुभागा" हारविराइयवच्छा कडग-तुडियथंभियभुया अंगय-कुंडल-मट्ठ-'गंड-कण्णपीढधारी५ विचित्तहत्याभरणा" विचित्तमालामउलि-मउडा कल्लाणग-पवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी" पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं १. चिक्खिल (क); "चिक्खिल्ल (ख)। १२. चूडामणिचिंधया (क, ख) । २. सुदुत्तरं (क, ख, ग)! १३. ४ (ग)। ३. णरय (क)। १४. अतोने वृत्ती वाचनान्तरस्य निर्देशोस्ति४. रुदं (ख), अशुद्ध प्रतिभाति । हारविराइयवच्छा. पलंबवणमालधरा। पूर्णः ५. भीमं दरिसणिज्ज (क) । पाठों मूले स्वीकृतोस्ति । ६. तुरियं चवलं (क); तुरियचंचल (ख)। १५. गंडतलकण्णपीढधारी (क); गंडगलकण्ण७. संवेग (क)। पीढधारी (ख): ८. दंसणचरित्तविसुद्धवरभंडं (वृपा) । १६. विचित्तवत्थाभरणा (क); विचित्तहत्थाभरणा ६. संचयाओविरया (वृपा)। विचित्तवत्थाभरणा (ख)। १०. निम्मला (क, ख)। १७. भासरबोंदी (क)। ११. उवचिय (ख)। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ओवाइयं संघाएणं दिवेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए' दिवाए जुईए' दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म रत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो 'आयाहिण-पयाहिणं" करेंति', करेत्ता वंदंति, णमंसं ति, वंदित्ता णमंसित्ता' 'णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ।। ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवज्जिया भवणवासी देवा अंतियं पाउभवित्था___णागपइणो सुवण्णा, विज्जू अग्गीया दीवा। उदही दिसाकुमारा य, पवणथणिया य भवणवासी ॥१॥ णागफडा-गरुल-वइर-'पुण्णकलस-सीह"-हयवर-गयंक-मयरंकवर"-मउड-बद्धमाण-णिज्जुत्तविचित्त-चिंधगया सुरूवा महिड्ढिया जाव पज्जुवासंति ।। वाणमंतर-वण्णग-पदं ४६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउन्भवित्था–पिसायभूया" य जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-भुयग-पइणो य महाकाया गंधव्वणिकायगणा" णिउणगंधवगीयरइणो अणवण्णिय-पणवण्णिय-इसिवादिय-भूयवादिय-कंदिय-महाकंदिया य कुहंड-पययदेवा चंचल-चवल-चित्त-कीलण-दवप्पिया 'गंभीरहसिय-भणिय-पिय-गीय-णच्चणरई" वणमालामेल-मउड-कुंडल-सच्छंदविउवियाहरणचारुविभूसणधरा सब्बोउयसुरभि-कुसुम-सुरइयपलंव-सोभंत-कंत-वियसंत-चित्तवणमाल-रइयवच्छा कामगमा कामरूवधारी णाणाविहवण्ण राग-वरवत्थ-चित्तचिल्लय-णियंसणा विविहदेसीणेवच्छ-गहियवेसा पमुइय-कंदप्प-कलह-केली-कोलाहल प्पिया हासबोलबहुला" अणेगमणि-रयण-विविह-णिज्जुत्त-चित्त-चिंधगया सुरूवा महिड्ढया जाव" पज्जुवासंति ।। जोइसिय-वण्णग-पदं ५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स (बहवे ? ) जोइसिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था--विहस्सती चंदसूरसुक्कसणिच्छरा राहू धूमकेतुबुहा य अंगारका १. रिद्धीए (व)। ६. ओ० सू०४७। २. जुत्तीए (क, ग)। १०. पिसायाभूया (ग)। ३. आयाहिणं पयाहिणं (ख)। ११. गंधवाणिकायगया (क, ख); गंधव्वपइगणा ४. करेइ (क, ख) (वृपा) । ५. वाचनान्तरे दृश्यन्ते-'साइं साई नामगोयाई १२. भूयवादी य (क)। साविति (व)। १३. गहिरहसियगीयणच्चणरइ त्ति क्वचिद् दृश्यते ६. गच्चासण्णा पाइदुरा (क)। ७. इह सूत्रं 'पुण्णकलससंकिण्णउप्फेससीहे' त्येवं १४. हासके लिबहुला (वृपा) । ___ क्वचिद्विशेषो दृश्यतो (वृ) । १५. चित्राणि चिह्नानि (वृ)। ५. गयकमलायरमयंकवर (ख)। १६. ओ० सू० ४७ 1 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं य तत्ततवणिज्जकणगवण्णा जे य गहा जोइसंमि' चारं चरंति केऊ य गइरइया अट्ठावीसतिविहा य णक्खत्तदेवगणा णाणासंठाणसंठियाओ य पंचवण्णाओ ताराओ ठियलेसा चारिणो य अविस्साममंडलगई पत्तेयं णामंक-पागडिय-चिंधमउडा महिड्ढिया जाव' पज्जुवासंति ।। वेमाणिय-वण्णग-पदं ५१. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स (बहवे ? ) वेमाणिया देवा अंतियं पाउभवित्था--सोहम्मीसाण-सणंकूमार-माहिंद-बंभ-लंतग-महासूक्क-सहस्साराणय-पाणयारण-अच्चुयवई पहिट्ठा देवा जिणदसणुस्सुयागमण-जणियहासा पालग१. जोइसं (क, ख)। २. चित्तलेसा (ख), वियाल (ग) । ३. ओ० सू० ४७ । ४. वैमानिकवणंकोपि व्यक्तो, नवर वाचनान्तरगतं किञ्चिदस्य व्याख्यायते, तदन्तरगत किञ्चदधिकृतवाचनान्त रगतं च--तत्र सामाणियतायत्तीससहिया सलोगपालअगमहिसिपरिसाणियआयरक्खेहि संपरिवुडा कोष्ठकवतिवृत्तेर्मूलपाठो नोपलभ्यते- (देवसहस्रान्यातमार्ग सुरवरगणेश्वरः प्रयतैः) समणुगम्मतसस्सिरीया (सर्वादरभूषिता सुरसमूहनायकाः सौम्य चारुरूपाः) देवसघजयसद्दकयालोया मिगमहिसव राहछगलददुरह्यगयवइभुयगखग्गउस कविडिमपागडियचिंधमउडा पालगपुप्फगसोमणससिरिवच्छनंदियावटकामगमपीतिगममणोगमविमल सबओभहनामधेज्जेहिं विमाणेहि तरुणदिवागरकरातिरेगप्पहेहि मणिकणगरयणघडियजालुज्जलहेमजालपेरंतपरिगएहि सपय रवरमुत्तदामलबंतभूसणेहि पलियघंटावलिमहरसहवंसतंतीतलतालगीयवाइयरदेणं महरेणं मणोहरेण पूरयंता अंबरं दिसाओ य, सोभेमाणा तुरियं संपट्टिया थिरजसा देविदा हतुटमणसा, सेसावि य कप्पवरविमाणाहिवा सविमाण विचित्तचिघनामंकविगडपागडम उडाडोवसुभदंस णिज्जा समन्निति, लोयंतविमाणवासिणो यावि देवसंघा य पत्तेयविरायमाणविरइयमणिरयणकडलभिसंतनिम्मलनियगंकियविचित्तपागडियचिधमउडा दायंता अप्पणो समुदयं, पेच्छंतावि य परस्स रिद्धीओ जिणिदवदणनिमित्तभत्तीए चोइयमई (हर्षितमानसाश्च जीतकल्पमनुवर्तयमाना देवाः) जिणदसणसुयागमणजणियहासा विउलवलसमूहपिडिया संभमेणं गगणतलविमल विउलगमणगइचक्लचलियमणपवण जइणसिग्घवेगा गाणाविहजाणवाहणगया ऊसियविमलधबलआयवत्ता विउवियजाणवाहणविमाणदेहरयणप्पभाए उज्जोएता नहं वितिमिरं करेंता, सविड्ढीए हुलियं (प्रयाता:)! गमान्तर रमिदम-पसिढिलवग्मउडतिरीडधारी मउडदित्तसिरिया रत्ताभा पउमपम्हगोरा सेया। पुस्तकान्तरे देवीवर्णको दृश्यते, स चैवम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अच्छरगणसंघाया अंतियं पाउभवित्था। ताओ णं अच्छराओ धंतधोयकणगरुयगसरिसप्पभाओ समाइक्कंता य बालभावं अणइवरसोम्मचारुरूवा निरुवहयसरसजोव्वणकक्कसतरुणवयभावमुवगयाओ निच्चामवट्ठियसहावा सव्वंगसुंदरीओ इच्छियनेवत्थर इयरमणिज्जगहियवेसा किं ते हारद्धहारपाउत्तरयणकुंडलवामुत्तगहेमजालमणिजालकणगजालसुत्तमउरितिरिय (तिय) कडगखड्डुगएगावलिकंठसुत्तमगहगधरच्छगेवेज्जसोणिसुत्तगतिलगफुल्लगसिद्धत्थियकण्णवालियससिसूर Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ मोवाइयं पुप्फग-सोमणस-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगम-पीइगम-मणोगम-विमल-सव्वओभद्द-णामधेज्जेहिं विमाणेहि ओइण्णा 'वंदणकामा जिणाणं" मिग-महिस-वराह-छगल-ददुर-हयगयवइ-भुयग-खग्ग-उसभंक-विडिम-पागडिय-चिंधमउडा पसिढिल-वरमउड-तिरीडधारी कुंडलुज्जोवियाणणा मउड-दित्त-सिरया रताभा पउम-पम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तमवेउव्विणो विविहवत्थगंधमल्लधारी महिड्ढिया जाव' पज्जुवासंति ।। परिसा-निग्गमण-पदं ५२. तए णं चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु मया 'जणसद्देइ वा', जणवूहेइ वा जणवोलेइ वा जणकलकलेइ वा जणुम्मीइ वा जणुक्कलियाइ वा जणसणिवाएइ वा बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ---एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुब्वाणुपुर्दिव चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए णयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गह ओगिछिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तं महप्फलं खलु भो देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए. किमंग पुण अभिगमण-वंदण उमभचक्कयतलभंगयतुडियहत्थमालयहरिसके ऊरवलयपालंबपलबअंगुलिज्जगवलक्खदीणारमालियाचंदमुरमालियाकचिमेहलकलावपयरगपरिहेरगपायजालघंटियाखिखिणि रयणोरुजाल खड्डियवरनेउरचलण . मालियाकणगगिगल जालगमगरमुहविरायमाणणेऊरपचलियसद्दालभूसणधारणीओ दसद्धवष्णरागरइयरत्तमणहरे (महार्घाणीनासानिःश्वासवायुवाह्यानि चक्षहराणि वर्णस्पर्शयुक्तानि) हयलालापेलवाइरेगे धवले कणगखचियंतकम्मे आगासफालियस रिसप्पहे अंसूयणियत्थाओ आयरेणं तुसारगोखीरहारदगरयपंडुरदुगुल्लसुकुमालसुकय रमणिज्जउत्तरिज्जाइं पाउयाओ वरचंदणचचियाओ वराभरणभूसियाओ सम्वोउयसुरभिकुसुमसुरइयविचित्तवरमल्लधारिणीओ सुगंधिचरणंगरागवरवासपुष्पपूरगविराइया अहियसस्सिरीया उत्तमवरधूवधूविया सिरीसम्मणवेसा दिध्वकुसुम मल्लदामपन्भंजलिपुडाओ (उच्चत्वेन) चंदाणणाओ चंदविलासिणीरे चंदद्धसमललाडाओ चंदाहियसोमदसणाओ उक्काओ विव उज्जोयमाणाओ विज्जुघणमिरीइसुरदिप्पंततेयमहियतरसन्निगासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ संगयगयहसियभणियचेट्ठियविलाससल लियसैलावनिउणजुत्तोक्यारकुसलाओ संदरथणजघणवयणकरचरणनयणलावण्णरूवजोवण विलासकलियाओ सुरवधूओ सिरीसनवणीयमउयसुकुमालतुल्लफासाओ ववगयकलिकलुसाओ धोयनिद्वंतरयमलाओ सोमाओ कताओ पियदंसणाओ सुरूवाओ जिणभत्तिदसणाणुरागेणं हरिसियाओ ओबइयाओ यावि जिणसगासं दिव्वेणं सेसं तं चेव नवरं ठियाओ चेव (4) । ५. जिणदंसणसगागमण (ख, ग)। ६. क्वचिद् 'बहुजणसद्दे इ वा' (व) । १. सोमणस्स (क, ख)। ७. क्वचित्पठ्यते 'जाणवाए इ वा' 'जणल्लावे इ. २. सवओ भद्दसरिस (क, ख) । __ वा' (वृ)। ३. वंदका जिणिदं (ग)। ८. ओ० सू० १६ । ४. सिढिल (क, ख)। ६. इह (ख, ग, वृ)। ५. ओ० सू०४७। १०. बाहिं (क)। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स' धम्मियस्स सूवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे 'इहभवे य" हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कटु वहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं-राइण्णा' खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अण्णे य वहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडुविय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो' अप्पेगइया मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया जीयमेयंति कटु व्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता" सिरसा कंठे मालकडा आविद्धमणि-सुवण्णा कप्पिय-हारद्धहार-तिसर-पालंव-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा, अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पगइया रहगया" अप्पेगइया सिवियागया" अप्पेगइया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहार-चारेणं पूरिसवग्गूरा-परिक्खिता महया उक्किट्ठसीहणाय-वोल- कलकलरवेणं 'पक्खभियमहासमुद्दरवभूयं पिव' करेमाणा" चंपाए णयरीए मझमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थगराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठवें ति," ठवेत्ता जाणवाहणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव १. आयरियस्स (क)। २. x (ख, वृ); इहभवे य परभवे य (वृपा)। १२. सीया (वृ) । ३. क्वचित्पठ्यते 'इक्खागा नाया कोरव्या' (व)। १३. चारिणो (क, ख, ग)। ४. लच्छइ (क, ख)। १४. वगावग्गि गुम्मागुम्मिति क्वचिद् दृश्यते ५. मांडबिय (वृ)। ६. 'प्पभिइओ (ख)। १५. "भूयमिव (क, ख)। ७. कोऊल्ल (ग)। १६. अतः परं वृत्तो वाचनान्तरस्य निर्देशः-- ८. अप्पेगइया अट्टविणिच्छयहेउ (क्वचित्) । क्वचिदिदं पदचतुष्टयं दृश्यते--पायदद्दरेणं ९. 'अट्राई हेऊइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो' भूमि कंपेमाणा अंबरतलं पिव फोडेमामा त्ति क्वचिद् दृश्यते (व) । एगदिसि एगाभिमुहा। भगवत्या (६।१५७) १०. 'उच्छोलणपधोय' त्ति क्वचिद् दृश्यते (क)। मेतद मूलपाठरूपेण उपलभ्यते । ११. वाचनान्तराधीतमथपदपञ्चकम् -- जाणगया १७. विटुब्भंति (वृपा)। जूम्गगया गिल्लिगया थिल्लिगया पवहणगया Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ओवाइयं समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता' समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ।। पवित्ति-वाउयस्स निवेदण-पदं ५३. तए णं से पवित्ति-वाउए इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हट्ठतुट्ठ'-'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए ण्हाए' 'कयवलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चपं णयरिं'. मझमज्झेणं जेणेव वाहिरिया "उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं कखंति, जस्स णं देवाणुप्पिया सणं पीहंति, जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं पत्थं ति, जस्स णं देवाणुप्पिया सणं अभिलसंति, जस्स णं देवाणुप्पिया णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया भवंति, से णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुगामं दुइज्जमाणे चंपं णगरिं पुण्णभई चेइयं समोसढे । तं एयं णं देवाणुप्पियाणं पियट्ट्याए पियं णिवेदेमि, पियं भे भवउ ।। सविहि-णमोत्थु-पदं ५४. तए णं से कुणिए राया भिभसारपुत्ते तस्स पवित्ति-वाउयस्स अंतिए एयमलैं सोच्चा णिसम्म हतुट्ठ-चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए वियसिय-वरकमल-णयण-वयणे पयलिय-वरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतरइयवच्छे पालब-पलंबमाण-घोलंतभसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ १. इतो वाचनान्तरगतं बह लिख्यते-जाणाई जिणवयणधम्माणुरागरत्तमणा वियसियवर. मयंति वाहणाई विसज्जेंति पुप्फतंबोलाइयं कमलनयणवयणा पज्जुवासह समोसरणाई आउहमाइयं सचित्तालंकारं पाहणाओ य गवेसह आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा आएएगसाडियं उत्तरासंग (करेंति ?) आयंता सणेसु वा आवसहेसु वा पणियगेहेसु वा चोक्खा परमसुइभूया अभिगमेणं अभिगच्छंति, पणियसालासु वा जाणगिहेसु वा जाणसालासु चक्खुफासे मणसा एगत्तीभावकरणेणं सुसमाहि- वा कोट्ठागारेसु वा सुसाणेसु वा सुण्णागारेसु यपसंतसाहरियपाणिपाया अंजलिमउलियहत्था वा परिहिंडमाणा परिघोलेमाणा (व)। एवमेयं भंते ! अवितहमेयं असंदिद्धमेयं, २. पंजलिकडा (ग)। इच्छियमेयं, पडिच्छियमेयं इच्छियपडिच्छिय मेयं, ३. सं० पा०–हतुटू जाव हियए। सच्चेणं एसमठे, माणसियाए-तच्चित्ता ४. सं० पा०—हाए जाव अप्प० । तम्मणा तल्लेसा तदभवसिया तत्तिव्वज्झ- ५. चंपाणयरि (क)। वसाणा तदप्पियकरणा तयट्रोवउत्ता तब्भावणा-६. सं० पा०-सच्चेव हेडिल्ला वत्तव्वया जाव भाविया एगमणा अविमणा अणण्णमणा णिसीयइ । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ३५ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलि-मउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तठ्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसेत्ता ईसि पच्चण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरिता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-णमोत्थुणं अरहताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाण दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरणाणदंसणधराणं वियदृछउमाणं जिणाणं जावयार्ण तिण्णाणं तारयाणं मुत्ताणं मोयगाणं बुद्धाणं वोहयाणं सव्वपूणं सब्वदरिसीएं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वावाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेनं ठाणंसंपत्ताणं । णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स सहसंबुद्धस्स पुरिसोत्तमस्स पुरिससीहस्स पुरिसवरपुंडरीयस्स पुरिसवरगंधहत्थिस्स अभयदयस्स चक्खदयस्स मग्गदयस्स सरणदयस्स जीवदयस्स दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरतचक्कवट्टिस्स अप्पडिहयवरणाणदंसणधरस्स वियदृछउमस्स जिणस्स जाणयस्स तिण्णस्स तारयस्स मुत्तस्स मोयगस्स बुद्धस्स बोहयस्स सव्वण्णुस्स सव्वदरिसिस्स सिवमयलमरुयमणतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्ज ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता तस्स पवित्ति-वाउयस्स अद्धतेरस-सयसहस्साई पीइदाणं दलयइ, दल इत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। बलवाउय-निद्देस-पदं ५५. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते वलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणु प्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं च चाउरंगिण सेणं सण्णाहेहि, सुभद्दापमुहाण' य देवीणं वाहिरियाए उवट्ठाणसालाए 'पाडियक्क-पाडियक्काई" जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाइं उवट्ठवेहि, चंपं णयरि सभितर-बाहिरियं 'आसित्त-सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापह-पहेसु आसित्त-सित्त-सुइ-सम्मट्ठ-रत्यंतरावण-वीहियं मंचाइमंचकलियं णाणा १. अभिसेक्कं (ख)। २. सुभद्दपमुहाण (क)। ३. पाडेक्कं (व)! ४. जत्तागमणाई (वृ)। ५. क्वचिद् युग्यानि पठ्यन्ते (द)! ६. आसियसमज्जिउवलितं (क); 'ख, ग' प्रत्योश्चिन्हाङ्कितः पाठो नोपलभ्यते । 'आसियसमज्जिवलितं' 'सिंघाडगतिय चउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु' इदं च वाक्यद्वयं क्वचिन्नोपलभ्यते (व)। ७. सुचिय (क, ख, ग)। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ओवाइयं विहराग-ऊसिय-'ज्झय-पडागाइपडाग-मंडियं' लाउल्लोइय-महियं गोसीस-सरसरत्तचंदण''दद्दर-दिण्णपंचंगुलितलं उचियवंदणकलसं वंदणघड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभायं आसत्तोसत्त-विउल-बट्ट-वग्धारिय-मल्लदामकलावं पंचवण्ण-सरससुरभिमुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालगुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरक्क-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं° गंधवट्टिभूयं करेहि य कारवेहि य, करेत्ता य कारवेत्ता य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि । णिज्जाहिस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदए । हस्थिवाउय-निद्देस-पदं ५६. तए णं से बलवाउए कूणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतु?'- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण° हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमतेत्ता एवं वयासी---खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कूणियस्स रणो भिभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रह-पवरजोहक लियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि, सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ५७. तए णं से हत्थिवाउए वलवाउयस्स एयमठं सोच्चा' आणाए विणएणं वयणं" पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता' छेयायरिय-उवएस-मइ-कप्पणा-विकप्पेहिं सुणिउणेहि 'उज्जलणेवत्थि-हव्व-परिवच्छियं" सुसज्ज धम्मिय [वम्मिय ? ] सण्णद्ध'"-वद्धकवइयउप्पीलिय १. पडाग-मंडियं (क)। २. सं० पा०- चंदन जाव गंधवट्टिभूयं । ३. सं० पा०-हतुट्ट जाव हियए। ४. एवं वयासी (ख, ग)। ५. X (क, ग)। ६. ४ (क)। ७. ४ (क, ग)। ८. अतोग्रे 'आभिसेयं हस्थिरयणं' ति यत् क्वचिद् दृश्यते सोऽपपाठः (वृ)। ६. उज्जलणेवत्थेहिं (पा); भगवत्यादर्श एवं जहा ओववाइए' इति पाठो लभ्यते, द्रष्टव्यं ७११७५ सूत्रस्य पञ्चमं पादटिप्पणम् । भगवतीवृत्ती (पत्र ३१७) औपपातिकस्य पाठो लिखितोस्ति, तत्र ये ये पाठभेदा: सन्ति ते यथास्थानं दर्शयिष्यन्ते उज्जलणेवत्थं हन्द परिवच्छियं । १०. भगवतीवृत्ती (पत्र ३१७) उद्धृते औपपातिक पाठे'चम्मियसण्णद्ध' इति पाठो व्याख्यातोस्तिचर्मणि नियुक्ताश्चाम्मिकास्तै: सन्नद्धः कृतसन्नाहश्चाम्मिकसन्नद्धः । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती च 'धम्मियसण्णद्ध' इति पाठो व्याख्यातोस्तिधर्मणिनियुक्ता धार्मिकाः तैः सन्नद्ध-कृतसन्नाहं यत्तद्धार्मिकसन्नद्धम् । अनयोर्द्वयोरपि सूत्रयोव्याख्याकाराः अभयदेवसूरिणो वर्तन्ते । तैर्यथा यथा पाठो लब्धस्तथा तथा व्याख्यातः प्राचीनलिप्यां धकार-चकार-वकाराणां प्रायः सादश्यमस्ति, तेन अर्वाचीनलिप्यामत्र वर्णनविपर्ययो जातः इति कल्पनापि नास्वाभाविकी। अस्मिन् प्रकरणे 'वम्मिय' इति पाठो सर्वथा उपयुक्तोस्ति । 'सण्णद्धबद्धवम्मियकवए' (भ० ७।१८५) इति विशेषणं सैनिकस्य लभ्यते । युद्धसज्जे हस्तिनि चापि एतदविशेषणमुपयुक्तमस्ति । सम्भाव्यते अस्य विपर्ययः धिम्मिय, चम्मिय' रूपेण जातः । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-परणं कच्छवच्छ'-'गेवेज्जबद्धगल-वरभूसणविरायंतं" अहियतेयजुत्तं' 'सललियव रकण्णपूरविराइयं पलंवओचूल' - महुयरकथंधयारं" चित्तपरिच्छेयपच्छयं' पहरणावरण भरिय- जुद्धसज्जं सच्छत्तं सज्झयं सघंट' पंचामेलय-परिमंडियाभिरामं ओसारिय-जमलजुयलघंटं विज्जुपिणद्धं व काल मेहं उप्पाइयपव्वयं व चंकमंत" मत्तं गुलगुलतं" मण-पवण जइणवेगं " भीमं संगामियाओज्झं" आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउ रंगिण सेण सण्णाहेइ, सण्णहेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चपिणइ || जाणसालिय- निद्देस -पदं ५८. तए णं से बलवाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सुभद्दापमुहाणं देवीणं वाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपाहि ॥ ३७ ५६. तए णं से जाणसालिए वलवाउयस्स एयमट्ठ आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता जाणाई संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता जाणाई संवट्टेइ, संवट्टेत्ता जाणाई जीणेइ, जीणेत्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता जाणाई समलंकरेइ", समलंकरेत्ता जाणाई वरभंडग-मंडियाई करेइ, करेत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता वाणसा अणुपविसइ, अणुपविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता वाहणाई संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता वाहणाई णीणेइ, णीणेत्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता दूसे ८. 'सपडागं' इत्यपि दृश्यते । ( वृ) 1 ६. पंचामेल (क, ख ) 1 १०. सक्खं ( वृपा भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । ११. क्वचित् 'महामेहमिव दृश्यते ( वृ) ; मेहमिव गुलगुलंतं ( भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) ! १२. सिन्धवेगं ( वृपा ) १३. संगामियाओगं । ( क, वृ); संगामियपाओ मां ( ख ) : संगामियभयोगं ( ग ) ; संगामियाओज्ज, संगामियाओज्यं (वृपा ) ; वृत्तेद्वितीयपाठान्तरं मूलपाठरूपेण स्वीकृतम् । भगवत्या ( क, ख ) ; चित्तपरिच्छोयपच्छयं कणगघडियं सुत्तगसुबद्ध (७/१७५) 'संगामियं अओज्' इति पाठो लभ्यते । अर्थसमीक्षया एष पाठः सम्यक् प्रतिभाति । कच्छं ( भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । ७. सचावसरपहरणा (वृपा); बहुपहरणावरण १४. समलंकारेइ ( क ) ; समालंकारेइ (ग, वृ ) । ( भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । १. 'वच्छकच्छ (वृपा, भ० वृत्ति पत्र ३१७ ) | २. गेवेज्जगबद्धभूसणविराइयं (वृपा ), गेवेज्ज - गबद्ध गलगभूसणविरइयं ( भ० वृत्तिपत्र ३१७ ) ३. 'अहियाहियतेयजुत्तं' ति क्वचिद् दृश्यते ( वृ) ' ४. लंबवचूल ( क ) । ५. वाचनान्तरं स्वेवं ज्ञेयं (नेयं - मुद्रित वृत्ति ) - सल लिय पलंबओचूल 'विरइयव रकण्णपूरं चामरुक्करकयंधयार' (वृ) ; विरइयकण्णपूरसललियपलंबावचूलचामरुक्क रकयंधयारं ( भ० वृत्तपत्र ३१७) । ६. चित्तपरिच्छोयपच्छयं Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं पवणे, पवीणेत्ता वाहणाई समलंकरेइ, समलंकरेत्ता वाहणाई वरभंडग-मंडियाई करेइ, करेत्ता 'वाहणाई जाणाई जोएइ, जोएत्ता पओय-लट्ठ पओय धरए य समं आई, आहित्ता वट्टमग्गं गाइ, गाहेत्ता" जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवगच्छित्ता वलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चपिणइ || रगुत्तिय - निद्देस -पदं ३८ ६०. तए गं से वलवाउए गयरगुत्तियं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं व्यासी --- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चंपं पर्यारि सब्भितरवाहिरियं आसित्त' - सम्मज्जिवलित्तं जाव कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि || ६१. तए णं से णय र गुत्तिए बलवाउयस्स एयमट्ठे आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडणेत्ता चंप यरि सम्भितर बाहिरियं आसित्त-सम्मज्जिओवलित्तं जाव' कारवेत्ता य जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चष्पिणइ ॥ बलवाउयस्स निवेदण-पदं ६२. तए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भिभसार - पुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थि रयणं पडिकप्पियं पासइ, हय-गय-रह-पवरजोह - कलियं चाउरंगिण सेणं' सण्णाहियं पास, 'सुभद्दापमुहाण य" देवीणं पडिजाणाई उवट्ठवियाई पासइ, चंप गयर सभितर बाहिरिय जा" गंधवट्टिभूयं कयं पास, पासित्ता हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणं दिए" पीइमणे" "परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण हियए जेणेव कूणिए राया भिभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वेद्यावेत्ता एवं वयासी - कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसेक्के हत्थिरवणे, हय-गय-रहपवरजोहक लिया य चाउरंगिणी सेना सण्णाहिया, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क पाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणारं उट्ठावियाई, चंपाणयरी सब्भितर बाहिरिया आसित्त-सम्मज्जिओवलित्ता जाव " गंधवट्टिभूया कया, तं णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया || कूणिय-सज्जा-पदं ६३. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ" चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण :- हियए १. दशाश्रुत स्कन्धे (१०।१० ) चिह्नाङ्कितपाठस्य ७. सं० पा० - हयगय जाव सण्णाहिये । स्थाने भिन्नः क्रमो लभ्यते----जाणाई जोएति, ८. सुभद्दापमुहाणं ( ग ) । जोएत्ता वट्टमग्गं गाति गाहेता पत्रोय- ६. अभितर (क) 1 ओयधरए य समं आडहर, आडहिता । १०. ओ० सू० ५५ । २. पच्चपिणाइ ( क ) 1 ११. चित्तमादिए दिए ( ग ) 1 १२. सं० पा० पीइमणे जाव हियए । ३. आसिय (क, ख ) । ४. ओ० सू० ५५ । ५. × (क,ग) । ६. ओ० सू० ५५ । १३. ओ० सू० ५५ । १४. सं० पा०-हद्रुतुट्ठ जाव हियए । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ३६ जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्ल जुद्धकरणेहि संते परिस्संते सयपाग-सहस्सपागेहि सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहि विहणिज्जेहिं सव्वि दियगायपल्हायणिज्जेहि" अभिगेहि अभिगिए समाणे तेल्लचम्मसि-पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहि पत्तठेहि कुसलेहि मेहावीहिं निउणसिणोवगएहिं अभिंगण'-परिमद्दणुव्वलण-करण-गुण णिम्माएहि अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए-चउविहाए संबाहणाए संवाहिए समाणे अवगय-खेय-परिस्ममे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघर तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे विचित्त-मणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे हाणमंडवंसि णाणामणि-रयण-भत्तिचित्तंसि रहाणपीढंसि सहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहि पुणो-पुणो कल्लाणग-पवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंध-कासाइ-लूहियंगे सरस-सुरहि-गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्धदूसरयण-सुसंवुए सुइमाला -वण्णग-विलेवणे य आविद्धमणिसुवणे कप्पियहारद्वहार-तिसरयपालंव-पलंवमाण-कडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्ध-गेवेज्जग-अंगुलिज्जग-ललियंग्य-ललियकयाभरणे वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए मुद्दियपिंगलंगुलीए" कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे पालब-पलबमाण-पड-सुकयउत्तरिज्जे" णाणामणिकणग-रयण-विमल-महरिह-णिउणोविय-मिसिमिसंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठलट्ठ-आविद्ध-वीरवलए, कि वहुणा ? कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए परवई सकोरंटमल्लदामेणं२ छत्तेणं" धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे"-मंगल-जयसद्द-कयालोए'५ १. एतानि पदानि वाचनान्तरे क्रमान्तरेणाधीयन्ते ११. सुकय-पडउत्तरिज्जे (ना० ११११२५, जं. ३६)! २. पठेहि (ख, ग)। १२. सकोरेंट (क, ग)। ३. अभंगण (क, ग, वृ)। १३. वाचनान्तरे पुनच्छत्रवर्णक एवं दृश्यते४. सेय (क, ख)। अब्भपडलपिंगलुज्जलेणं अविरलसमसहिय५. समुत्त० (वृपा)। चंदमंडलसमप्पभेणं मंगलसयभत्तिछेयचित्तियं६. कासाइय (ख, ग)। खिखिणिमणिहेमजालविरइयपरिगयपेरंतकणग७. संबुए (ग, वृ); सुसंवए (वृपा) । घंटिया पयलियकिणिकिणितसुइसुहसुमहुरसद्दाल८. सुरभिमाला (ख, ग)। सोहिएणं सप्पयरवरमुत्तदामलंबंतभूसणेणं' ६.पिणिद्ध (क, ख, ग)। नरिंदवामप्पमाणरुंदपरिमंडलेणं सीयायबवाय१०. मुद्दियापिंगलंगुलीए (ख, ग); x (वृ); मुद्दि- वरिसविसदोसनासणेणं तमरयमलबहलपडलयपिंगलंगुलीए (वृपा)। धाडणपभाकरेणं उडुसुहसिवच्छायसमणबद्धणं १. मुद्रितवृत्तौ 'विचित्तिय' पाठस्तथा विचित्रितम्' विद्यते । व्याख्या विद्यते, किन्तु हस्तलिखितवृत्तौ २. भूसणधरेणं (हस्तलिखितवृत्ति) । चित्तिय' पाठस्तथा चित्रितम्' इति व्याख्या ३. उउ (मुद्रितवृत्ति)। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवरमाङविय-कोडुविय-इन्भ-सेहि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेहणिग्गए इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण' मज्झे ससिव्व पिअदसणे णरवई जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरूढे ।। परिकर-सज्जा पदं ६४. तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स वेरुलियदंडसज्जिएणं वइरामयवस्थिनिउणजोइ- जहा उववाइए जाव' इत्यनेनेदं सूचितम्--- यअटु सहस्सवरकंचणसलागनिम्मिएणं सुणिम्मल- अणेगगणनायगदंडनायगराईसरतलब रमाइंबिय - रययसुच्छाण निउणोवियमिसिमिसितमणि रय कोडुबियमंतिमहामंतिगणगदोवारियअमच्चचेड - णसूरमंडलवितिमिरकरनिग्गयग्गपडिहयपूणर - पीढमद्दणगरनिगमसेट्टिसेणाव इसत्यवाहदूयसंधि - विपच्चापडंतचंचलमिरिइकवयं विणिमयंतेणं पालसद्धि संपरिबुडे धवलमहामेहनिग्गए विव सपडिदंडेणं धरिज्जमाणेणं आयवत्तेणं विरायंते गहगणदिप्पंतरिक्खतारागणमझ ससिव्व पिय दसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ १४. वाचनान्तरेतु--'चउहिय' पवरगिरिकुहर- मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव । प्रस्तुत विवरणसमुइयनिरुव हयचम रपच्छिमसरीरसंजा - सूत्रस्यअष्टादशे सूत्रे भगवतीवृत्ती (४६३) यसंगयाहिं अमलियसियकमलविमलुज्जलियरय- च परिवारवर्णनेपि ईदृशः पाठो लभ्यते-- यगिरिसिहरविमलससि किरणसरिसकलधोय अणेगगणनायगदंडनायगराईसरतलवरमाडंबिय - निम्मलाहि पवणाहयचवलललियतरंगहत्थनच्च- कोडुबियमंतिमहामंति गणगदोवारियअमच्च - तवीइपसरियखीरोदगपवरसागरुप्पूरचंचलाहि चेडपीढमद्दनगरनिगमसेट्ठिसत्थवाहद्यसंधिवाल - माणससरपरिसरपरिचियावासविसयवेसाहि क- सद्धि सपरिवुडे । यत्र राज्ञः परिवारवर्णनं णगगिरिसिहरसंसियाहि ओवइयउप्पइयतुरिय- तत्रैतादश: पाठो लभ्यते, यत्र च जनसमूहचवलजइणसिग्घवेगाहिं हंसवध्याहि चेव वर्णनं तत्र मितिमहामंति' आदिपदानि नैव कलिए। णाणामणिकणगरयणविमलमहरिह दृश्यन्ते । द्रष्टव्यं प्रस्तुतसूत्रस्य ५२ सूत्रं तथा तवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाहि चिल्लियाहि भगवतीवृत्तावपि (पत्र ४६३) उद्धृत: औपपानरवइसिरि समुदयपगासणकरीहि वरपट्टणुग्ग- तिकपाठ:-'माणा भडा जोहा मल्लई याहि समिद्धरायकुलसे वियाहि कालागरु' पवर लच्छई अण्णे य बहवे राईसरतलबरमाडबियकुंदुरुक्कतुरुक्कवरवण्णवासगंधुद्धयाभिरामाहि कोडुबियइब्भसे ट्ठिसेणावइ ति। प्रस्तुतप्रकरणे सललियाहिं उभओपासंपि उक्खिप्पमाणाहि जनसमूहवर्णकः पाठः केनापि कारणेन प्रविष्टोचामराहि सुहसीयलवायवीइयंगे (व)। भूत् इति सम्भाव्यते । १५. अतः परं जेणेव' अत: पूर्व भगवतीक्त्त्यां १. तारागण (क)। (पत्र ३१८) औपपातिकस्य यः पाठः उद्धृ- २. गयवरं (क)। तोस्ति स प्रस्तुतपाठात् भिन्नो लभ्यते-'एवं १. ताहि य' त्ति क्वचित् (व)। ३. कालागरुः–कृष्णागरुः (हस्तलिखितवृत्ति)। २. सरि (हस्तलिखितवृत्ति)। ४. कलित इति वर्तते (व)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठट्ठ मंगलया पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया, तं जहासोवत्थिय-सिरिवच्छ-मंदियावत्त-वद्धमाणग-भासण-कलस-मच्छ-दप्पणया। ___ तयाणंतरं च णं पुण्णकलसभिगारं 'दिव्वा य छत्तपडागा" सचामरा सण-रइयआलोय-दरिसणिज्जा वाउद्धय-विजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणु लिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया । तयाणंतरं च णं वेरुलिय-भिसंत-विमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसियं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं' बहुकिंकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुव्वीए" संपट्ठियं । तयाणंतरं च णं बहवे लग्गिाहा' कुंतग्गाहा 'चामरग्गाहा पासनगाहा चावग्गाहा" पोत्थयग्गाहा फलगरगाहा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्गाहा हडप्पग्गाहा' पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया। तयाणंतरं च णं बवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो जडिणो पिछिणो हासकरा डमरकरा दवकारा चाडुकरा कंदप्पिया कोक्कुइया किड्डकरा य वायंता य गायंता य णच्चंता य हसंता य भासंता य 'सासंता य" सावेंता य रक्खता य आलोयं च करेमाणा जयजयस" पउंजमाणा" पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। तयाणंतरं च णं५ जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं' थासग-अहिलाण-चामर-गंड१. दिव्वायवत्तपडागा (राय० सू० ५०) । राय- १२. राता (वृपा)। पसेणइयसूत्रस्य वत्ती (पृ० १०८) 'दिव्यात- १३. जयसई (ग) । पत्रपताका' इति व्याख्यातमस्ति, अत: 'दिव्वा- १४. सग्रहगाथाश्चास्य गमस्य क्वचिद् दृश्यन्ते, यवत्तपडागा' इति पाठः फलितो भवति । तद्यथा-- सम्भाव्यते लिपिदोषेण बकारस्य स्थाने छकारो असिलट्रिकंतचावे, चामरपासे य फलगपोत्थे य । जात:, तेन पाठपरिवर्तनमभूत । वीणाकूयग्गहे, तत्तो हडप्परगाहे' य ।। २. वाउद्धृय (ख)। दंडी मुंडिसिहंडी, पिछी जडिणो य हासकिड्डा य । ३. सपाउयाजुग (भ० वृत्तिपत्र ४७६) । दवकार चड़कारा, कंदप्पिय-कक्कड गायए। ४. दासीदासकिंकर (वृपा)। गायंता वायंता, नच्चंता तह हसंतहासेता। ५. अहाणुपुवी (क)। सावेंता रावेंता, आलोयजयं पउंजंता ॥(व) ! ६. असिलढिग्गाहा (वृपा)। १५. x (क, ग)। ७. चावगाहा चामरम्गाहा पासग्गाहा (क, ख)। १६. वाचनान्तरेत्वेवमधीयते --- 'वरमल्लिभासणाणं ८. कूवयग्गाहा (भ० वृत्तिपत्र ४७६)। हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं चंचुच्चियललिय६. हडप्पयग्गाहा (क); हडप्फयग्गाहा (ख)। पुलियचलचवलचंचलगईणं लंधणवगणधावण१०. पिच्छिणो (ग)। धोरण तिवई जइणसिक्खियगईणं ललंतलाम११. X (क, ख); सासिता य (वृ)। गललायवरभूसणाणं मुहभंडगओचूलगथासग १. दंडप्पग्गाहे (हस्तलिखिवृत्ति)। २. पिच्छी (मुद्रितवृत्ति) ! ३. दवकारा (हस्तलिखितवृत्ति)। ४. तिवइ (हस्तलिखितवृत्ति)। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अोवाइयं परिमंडियकडीणं किंकरवतरुणपरिग्गहियाणं' अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुवीए संपटियं । तयाणंतरं च णं ईसीदंताणं 'ईसीमत्ताणं ईसीतंगाणं" ईसीउच्छंगविसाल-धवलदंताणं कंचणकोसी-पविठ्ठदंतागं कंचणमणिरयणभूसियाण' वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं अट्ठसयं गयाणं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं । ___ तयाणंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सणंदि घोसाणं सखिखिणीजाल-परिक्खित्ताणं हेमवय-चित्त-तिणिस-कणग-णिज्जुत्त-दारुयाणं कालायससुकयणेमि-जंतकम्माणं सुसिलिट्ठवत्तमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसुसंपउत्ताणं" कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपनगहियाण' बत्तीसतोणपरिमंडियाणं' सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरणभरिय-जुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणुपुब्बीए संपठ्यिं । तयाणंतरं च णं असि-सत्ति-कुत-तोमर-सूल-लउल-भिडिमाल-धणुपाणिसज्ज पायत्ताणीयं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं ।। कूणियस्स निग्गमण-पदं ६५. तए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे" कुंडल उज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे णरवई गरिदे णरवसहे मणुयरायवसभकप्पे अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे हथिक्खंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहि-उद्धव्वमाणीहिं वेसमणे विव" णरवई अमरवइसण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ मिलाणचमरीगंडपरिमंडियकडीणं किंकरवर ५. सखिखिणीजाला (ग)! तरुणपरिग्गहियाणं' (व); हरिमेलामउल- ६. क्वचिदश्यते 'सुसंविद्धचक्कमंडलधुराण (व)। मल्लियच्छाणं चंचुच्चियललियपुलियचलचवल- ७. तुरगसंपउत्ताणं (क, ख) । चंचलगईणं लंघणवग्गणधावणधोरणतिवई- ८. क्वचित्पठयते -'हेमजालगवक्खजालखिखिजइणसिक्खियगईणं ललंतलामगललायवरभूस- णीघंटजालपरिक्खित्ताणं (वृ)। जाणं मुहभंडगओचूलग (क, ख, ग), भगवती- ६. बत्तीसतोरण' (क, ग, वृपा) । वृत्ती (पत्र ४७६) वाचनान्तररस्य पाठे 'वर. १०. वाचनान्तरे पुन:-'सन्नद्धबद्धवम्मियकवयाणं मल्लिहाणाणं' इति मूलपाठत्वेन तथा 'बर- उप्पीलियसरासणवद्रियाणं पिणद्धगेवेज्जमल्लिहायणाण' वरमल्लिभासणाणं' एतद् द्वयं विमलवरवचिंधपट्टाण गहिया उहप्पहरणाणं' पाठान्तरत्वेन उल्लिखितमस्ति । (वृ) 1 १.x (ग)! ११. अतः परं भगवतीवृत्तौ (पत्र ३१६) 'पालंब२. ईसीमंतागं (क, ग)। पलंबमाणपडसुकयउत्तरिज्जे' इति पाठ; उल्लि३.४ (ग, वृ)। खितोस्ति, परन्तु प्रस्तुतसूत्रे नैष पाठो लभ्यते । ४. x (ग, वृ); वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं १२. चेव ()। (वृपा)। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ६६. तए'णं तस्स कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स पुरओ महं आसा आसधरा', उभओ पासिं णागा णागधरा', पिट्ठो रहसंगेल्लि ।। ६७. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते अब्भुग्गय भिंगारे पग्गहियतालियंटे' ऊसवियसेयच्छत्ते पवीइयवालवीयणीए सव्विड्ढीए सव्वजुतीए' सन्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्व विभूईए सव्वविभूसाए सब्वसंभमेणं' सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सब्वतुडिय-सहसणिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए मह्या बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरयमुइंग-दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ ।। आसीवयण-पदं ६८. तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो 'चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्यत्थिया कामस्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किदिवसिया" कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहि इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि मणाभिरामाहि" हिययगमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहि अणवरयं अभिणंदता य अभित्थणता य एवं क्यासी-जय-जय गंदा ! जय-जय भद्दा ! भदं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमझे वसाहि। इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूई १. जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तौ (३।१७९) एतत्सूत्रं पूर्व किट्टिसिक स्थाने 'किदिवसिय' त्ति पठ्यते (भ० विद्यते, ततश्च राजवर्णक सूत्रं वर्तते ! इह च वृत्तिपत्र ४८१)। राजवर्णकं सूत्रं पूर्वमस्ति ततश्च 'आसा आस- १२. पूसमाणवा (भ० वृत्तिपत्र ४८१); अतः धरा' एतत्सूत्रमस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः क्रमः परं भगवतीवत्तौ खंडियगणा' इति पाठो नास्ति, सम्यक् प्रतिभाति । प्रस्तुतसूत्रे न जाने केन- किन्तु तत्र त्रीणि पाठान्तराणि उल्लिखितानि कारणेन क्रमविपर्ययो जातः । सन्ति---'इजिसिया पिडिसिया घंटिय'पि २. आसवरा (क, ख, वृपा)। क्वचिदृश्यते, तत्र च इज्यां-पूजामिच्छन्त्ये३. णागवरा (क, ख, वृपा)। षयन्ति वा ये ते इज्यैषास्त एव स्वाथिके ४. "तालयंटे (ख, ग)। क प्रत्यय विधानाद् इज्यषिकाः, एवं पिण्डैषिका ५. वीजिणीए (क, ख)। अपि, नवरं पिण्डो---भोजनम्, पाण्टिकास्तु ये ६. सव्वजुत्तीए (क, वृ); सव्वजुईए (ख) । घण्टया चरन्ति तां वा वादयन्ति । ७. क्वचिदिदं पदचतुष्कमधिकं दश्यते--'पगईहिं १३. मणोभिरामाहि (क); वाचनान्तराधीतमथ ___ नायगेहि तालायरेहि सव्वोरोहेहि' (वृ)। प्रायो वाविशेषणकदम्बकम्—'उरालाहिं कल्ला ८. क्वचिद्दश्यते-सव्वपुप्फवत्थगंधमल्लालंकार- णाहिं सिवाहिं धण्णाहि मंगल्लाहिं सस्सिरियाविक्कसाए' (वृ)। हिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं १६. मुरव (क, ख, ग)। मियमहरगंभीरगाहिमाहि (मियमहरगंभीर१० चंपं णयरिं (ख)। सस्सिरियाहिं' ति क्वचिदृश्यते-भ० ११. 'इढिसिय' त्ति रूढिगम्याः 'किट्टिसिय' त्ति वृत्तिपत्र ४८२) अट्टसइयाहिं अपूणरुत्ताहि' किल्विषिका भाण्डादय इत्यर्थः, क्वचित् (वृ)। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं वासाई वहुई वाससयाई 'बहूई वाससहस्साई" 'बहूई वाससयसहस्साई" अणहसमग्गो हठ्तूठो परमाउं पालयाहि इठ्ठजणसंपरिवडो चंपाए णयरीए अण्णेसिं च वहणं गामागरणयर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडव"-पट्टण-आसम-निगम -संवाह-संणिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं 'सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्च कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहराहि त्ति कटु जय-जय सद्दे पउंजति ॥ कूणिय-पज्जुवासणा पदं ६६. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणेपेच्छिज्जमाणे हिययमालासहस्सेहिं अभिणंदिज्जमाणे'-अभिणं दिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे कंतिसोहग्गगुणेहि पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे बहणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं" अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे 'मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणेआपडिपुच्छमाणे" भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे-समइच्छमाणे" चंपाए नयरीए मज्झं१. x (ग)। (ख, वृपा); प्रस्तुतसूत्रस्य वाचनान्तरे पर्यु२. ४ (ख)। षणाकल्पे (सूत्र ७५) 'अपडिबुज्झमाणे' तथा ३. मडंबदोणमुह (ग, व)} जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ (३।१८६) 'अपडिबुज्झमाणे' ४. x (ग, वृ)। इति पाठो लभ्यते । ५. भट्टित्तं सामित्तं (व)। ११. x (भ० वृत्तिपत्र ४८३) । ६. उन्नइज्जमाणे (वृपा)। १२. वाचनान्तरे त्वेवं-तंती-तल-ताल-तुडिय'७. कतिदिवसोहगगुणेहिं (क, ख); कंतिरूव- गीयवाइयरवेणं महुरेणं मणहरेणं जयसद्दुग्धोस___ सोहग्गजोव्वणगुणेहिं (भ० वृत्तिपत्र ४८३)। विसएणं' मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे' ८. पिच्छिज्जमाणे (क, ग); पेच्छिज्जमाणे ‘कंदरगिरिविवरकुहरगिरिवरपासादुद्धघणभवण(ख); पच्छिज्जमाणे (व)। देवकूलसिंघाडगतिगचउक्कचच्चरआरामुज्जाण६. अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे २ दाहिण- काणणसभापवापदेसदेसभागे" पडिसुयासयहत्थेणं बहूणं नरनारिसहस्साणं (भ० वृत्तिपत्र सहस्ससंकुलं' करेंते' हयहेसियहत्थिगुलगुलाइय रहघणघणसद्दमीसएणं महया कलकलरवेण १०. अपडिबुज्झमाणे (क, वृपा); पडिबुज्झमाणे जणस्स 'महुरेणं पूरयंते' सुगंधवरकुसुमचुण्ण१.x(भ० वृत्तिपत्र ४८३) । सभापएस' ति (भ० वृत्तिपत्र ४८३)। २. मीसएणं-~-जयेति शब्दस्य यद् उद्घोषणं तेन ५. पडिसद्द (डिसुआ) (मुद्रितवृत्ति) । मिश्री यः (भ० वत्तिपत्र ४८३)। ६. पडिसयासयसहस्ससंकले करेमाणे (भ० वत्ति३. अपरिबुज्झमाणे (हस्तलिखितवृत्ति)। पत्र ४८३)। ४. अयं पुनर्दण्डकः क्वचिदन्यथा दृश्यते--'कंदर- ७. सुमहुरेणं पूरेंतोऽबरं समता (भ० वृत्तिपत्र दरिकूहरविवरगिरिपायारद्रालचरियदारगोउर- ४६३)। पसायदुवारभवणदेवकुलआरामुज्जाणकाणण Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ४५ मज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासित्ता आभिसेक्क हत्थिरयणं ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अवहट्ट पंच रायकउहाई, तं जहा-खग्गं छत्तं उप्फेस वाहणाओ वालवीयणयं,' जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, [तं जहा-सचित्ताणं दव्वाण विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेण चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेण मणसो एगत्तिभावकरणेणं] । समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता ति विहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ । [तं जहा–काइयाए वाइयाए माणसियाए। काइयाए-ताव संकुइयग्नहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जूवासइ। वाइयाए-जं जं भगवं वागरेइ एवमेय भते ! तहमयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे बदह अपडिकलमाण" पज्जुवासइ । माणसियाए-महयासंवेगं जण इत्ता तिव्वधम्माणुरागरत्ते पज्जुवासइ ] ॥ देवी पज्जुवासणा-पदं ७०. तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ' देवीओ अंतोअंतेउरंसि व्हायाओ" 'कयवलिकम्माओ कय-कोउय-मंगल पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ" वहहिं खुज्जाहिं चिलाईहिं वामणीहिं वडभीहि" बब्वरीहिं पउसियाहि जोणियाहिं पल्हवियाहि" ईसिणियाहि" थारुइणियाहिं लासियाहिं लउसियाहि सिंहलीहिं दमिलीहिं आरवीहिं पुलिंदीहिं उव्विद्धवासरेणुकविलं' नभं करेंते कालागुरु-कुंदुरुक्क' तुरुक्क-धूवनिवहेणं जीवलोगमिव वासयंते समंतओखुभियचक्कवालं पउरजणबालवुड्ढपमुइयतुरियपहावियविउलाउल बोलबहुलं नभं करेंत' (वृ); भगवतीवृतौ (पत्र ४८३) एतद् वाचनान्तरं मूलपाठत्वेन उल्लिखितमस्ति । एतस्मिन् ये ये पाठभेदाः सन्ति ते यथास्थानमुपदर्शिताः । १. वालवीयणियं (क); वालवीयणिज्ज (ख,ग) १०. सं० पा०--ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ। २. एगसाडिएणं (भ० २१६७) । ११. वाचनान्तरं -- 'बाहुयसुभगसोवस्थियवद्धमाण३. 'हत्थिखंधविट्ठभणयाए' त्ति वाचनान्तरम् (ब) पुस्समाणवजयविजयमंगलसएहि अभिथुब्व४. मणसा (ग)। माणीओ कप्पाछेयारियरइयसिरसाओ महया ५. एगत्तिकरणेणं (ख); एगतीकरणेणं (भ० गंधद्धणि मुयंतीओ' (व) । २१९७)1 कोष्ठकवर्तिपाठी व्याख्यांशः प्रतीयते । १२. वडभियाहिं (व)। ६. पंजलिकडे (ग)। १३. पण्हवियाहिं (ख, ग)। ७. अपडिकूलेमाणे (ग)। १४. ईसिगिणियाहिं (भ० ९।१४४ का पाद८. कोष्ठकतिपाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । टिप्पणम्) ! ६. धारिणीप्पमुहाओ (वृपा)। १५. चारुणियाहिं (ख); चाराणियाहि (ग)। १. "रेणुमइल (भ० वृत्तिपत्र ४८३) । २. पवरकुंदुरुक्क (भ० वृत्तिपत्र ४८३) : Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ओबाइयं पक्कणीहिं वहलीहिं मरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहि विदेसपरिमंडियाहिं' इंगिय-चितिय-पत्थिया-वियाणियाहिं सदेसणेवत्थ-गद्रियवेसादि चेडियाचक्कवाल-वरिसधर कंचुइज्ज-महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ निगच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पाडियक्क-पाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई दुरुहंति, दुरूहित्ता णियगपरियालसद्धि संपरिबुडाओ चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते छत्तादीए तित्थय राइसेसे पासंति, पासित्ता पाडियक्कपाडियक्काई जाणाइं ठवेंति, ठवेत्ता जाणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता वहिं खुज्जाहिं जाव चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-कंचुइज्ज-महत्तरवंदपरिविखत्ताओ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति । [तं जहा- सचित्ताणं दवाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए विणओणयाए गायलट्ठीए चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तिभावकरणणं] । समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओ कटु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिकडाओ पज्जुवासंति ।। धम्मदेसणा-पदं ७१. तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए अणेगसयवंदाए अणेगसयवंदपरियालाए' ओहवले अइवले महब्बले अपरिमियवल-वीरिय-तेय-माहप्प-कति जुत्ते सारयणवत्थणिय-महुरगंभीर-कोचणिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए" अमम्मणाए 'सुव्वत्तक्खर-सणिवाइयाए" पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणगीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ-अरिहा धम्म परिकहेइ । तेसि सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्म आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा भासा तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अप्पणो" सभासाए परिणामेणं परिणमइ, तं जहा-अस्थि लोए अत्थि अलोए, अत्थि जीवा अत्थि अजीवा अत्थि बंधे अत्थि मोक्खे अत्थि पुण्णे अत्थि पावे अत्थि आसवे अत्थि संवरे अत्थि वेयणा अस्थि णिज्जरा, अत्थि अरहंता अस्थि चक्कवट्टी अस्थि वलदेवा अत्थि वासुदेवा, अस्थि नरगा अत्थि गेरइया अत्थि तिरिक्खजोणिया अस्थि तिरिक्खजोणिणीओ, अत्थि १. 'विदेसपरिपिडियाहि ति वाचनान्तरम् (ब)। टिप्पणम् ।। २. पत्थियमणोगय (वृपा)। ८. सव्वक्खरसण्णिवाइयाए (ग); क्वचिदिदं ३. अविमोयणयाए (भ० ६।१४६) । विशेषणद्वयम्-'फुडविसयमहुरगंभीरगाहियाए ४. मणस्स (भ० ६।१४६) । सव्वक्खरसण्णिवाइयाए (ब) 1 ५. कोष्ठकतिपाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । ६. अरहा (क)। ६. "परिवाराए (क, ख, ग)। १०. अप्पणो अपणो (ख)। ७. द्रष्टव्यं रायपसेणइयसूत्रस्य ६१ सूत्रस्य पाद Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण -परणं ४७ माया अत्थि पिया अस्थि रिसओ, अत्थि देवा अत्थि देवलोया, अत्थि सिद्धा अस्थि सिद्धी अस्थि परिणिव्वाणे अत्थि परिणिव्वया, अस्थि पाणाइवाए मुसावाए अदत्तादाणे मेहुणे परिग्गहे अत्थि कोहे माणे माया लोभे अस्थि पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेरणे परपरिवाए अरइरई मायामोसे मिच्छादंसणसल्ले, अस्थि पाणाइवायवेरमणे मुसावायवेरमणे अदत्तादाणवेरमणे मेहुणवेरमणे परिग्गवेरमणे' 'अस्थि कोहविवेगे माणविवेगे मायाविवेगे लोभविवेगे पेज्जविवेगे दोसविवेगे कलहविवेगे अब्भक्खाणविवेगे पेसुण्ण विवेगे परपरिवाय विवेगे अरतिरति विवेगे मायामोस विवेगे मिच्छादंसणसल्ल विवेगे', सव्वं अस्थिभाव अतिथ त्ति वयइ, सव्वं णत्थिभावं णत्थि त्ति वयइ, सुचिष्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति फुसइ पुण्णपावे पच्चायंति जीवा सफले कल्लाणपावए ॥ ७२. धम्मम इक्खइ - इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए' संसुद्धे पडिपुणे या सल्लत्तणे सिद्धिमगे मुत्तिमग्गे 'णिज्जाणमग्गे णिव्वाणमग्गे" अवितहमविसंधि' सव्वदुक्खपही मग्गे । इत्थंठिया' जीवा सिज्झति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वायंति सन्दुकखाणमंतं करोति । एगच्चा पुण एगे भयंतारो" पुव्वकम्मावसेसेणं अण्णय रेसु देवलो - एस देवत्ताए उक्वत्तारो भवंति - महढिएसु' 'महज्जुइएसु महन्वलेसु महायसेसु° महासोक्खेसु महाणुभागेसु दूरंगइएस चिरट्ठिइएसु । ते णं तत्थ देवा भवंति महिड्डिया ' * महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा दूरंगइया चिरद्विइया हारविराइयवच्छा" "कडग-तुडिय-थं भियभुया अंगय-कुंडल-मट्ठगंड- कण्णपीढधारी विचित्तहत्याभरणा विचित्तमाला - मउलि-मउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवर मल्लाणुलेवणा भासुरखोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेण दिव्वेणं संधारणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्बाए पभाए दिव्वाए छाया दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जीवेमाणा प्रभासे माणा कप्पोवगा गतिकल्लाणा आगमेसिभद्दा " "पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ७३. तमाइक्खइ -- एवं खलु चउहि ठाणेहि जीवा गेरइयत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता रइएसु उववज्जंति, तं जहा -- महारंभयाए महापरिग्गहयाए पंचिदियवहेणं कुणिमाहारे । • एवं खलु चउहिँ ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता १. सं० पा० – परिग्गहवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्ल विवेगे । २. मिच्छादंसण सल्लवे रमणे ( ख ) 1 ३. केवलि ( ख, ग ); केवले (बु) 1 ४. जिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे (क, ग ) । ५. अवितमविसंधे ( क ) ; (ख) 1 ६. इहट्टिया (ग, बृ.) । अवित हमसंदि ७. भवंता (क) 1 ८. सं० पा० -- महिड्दिएसु जाव महासोक्खेसु । ६. सं० पा० - महिड्डिया जाव चिरट्टिया । १०. सं० पा०-हारविराइयवच्छा जाव पभासे माणा । ११. सं० पा० - आगमेसिभद्दा जाव पडिख्वा । १२. सं० पा० एवं एएणं अभिलावेणं तिरिक्खजोगिए । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ओवाइयं तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति तं जहा॰—माइल्लयाए अलियवयणेण उक्कंचणयाए वंचणयाए। • एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा मणुस्सत्ताए कम्म पकरेंति, पकरेत्ता मणुस्सेसु उववज्जति, तं जहा--पगइभस्याए पगइविणीययाए साणक्कोसयाए अमच्छरिययाए। एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा देवत्ताए कम्म पकरेंति, पकरेत्ता देवेसु उववज्जति, तं जहा --सरागसंजमेणं संजमासंजमेणं अकामणिज्ज राए वालतवोकम्मेणं ।। ७४. तमाइक्खइ-- जह जरगा गम्मती, जे णरगा जा य वेयणा णरए । सारीरमाणसाई', दुक्खाइं तिरिक्खजोणीए ॥११॥ माणुस्सं च अणिच्च, वाहि-जरा-मरण-वेयणा-पउरं । देवे य देवलोए, देविड्ढि देवसोक्खाइं ॥२॥ गरगं तिरिक्खजोणि, माणुसभावं च देवलोगं च । सिद्धे य सिद्धवसहि, छज्जीवणियं परिकहेइ ॥३॥ जह जीवा वज्झंती, मुच्चंती जह य संकिलिस्संति । जह दुक्खाणं अंतं, करेंति केई अप डिवद्धा ।।४।। 'अट्टा अट्टियचित्ता', जह जीवा दुक्खसागरमुर्वेति । जह वेरग्गमुबगया, कम्मसमुग्गं विहाडेंति ।।५।। जह रागण कडाणं, कम्माणं पावगो फल विवागो। जह य परिहीणकम्मा, सिद्धा सिद्धालयमुर्वेति' ।।६।। ७५. तमेव धम्म दुविहं आइक्ख इ, तं जहा-अगारधम्म अणगारधम्मं च ।। ७६. अणगारधम्मो ताव-इह खलु सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइयस्स सव्वाओपाणाइवायाओ वेरमणं मूसावाय-अदत्तादाण-महण-परिग्गहराईभोयणाओ वेरमण । अयमाउसो ! अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते। एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति । ७७. अगारधम्म दुवालसविहं आइवखइ, तं जहा-पंच अणुव्वयाइं, तिण्णि गुणव्वयाई, चत्तारि सिक्खावयाई। पंच अणुव्वयाई, तं जहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे । तिणि गुणव्वयाइं, तं जहा–'दिसिव्वयं, उवभोगपरिभोगपरिमाणं, १. सं० पा०-मणुस्सेसु । च एवं खलु जीवा निस्सीलेत्याद्यधीयते--एवं २. सं० पा०-देवेसु। खलु जीवा निस्सीला णिव्वया णिग्गूणा णिम्मेरा ३. सारीरमाणुसाइं (क, ख, ग । निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा अक्कोहा णिक्कोहा ४. देवभोगाइं (ख)। छीणक्कोहा' एवं मानाद्यभिलापका अपि अणु५. अट्टदुहट्टियचित्ता (क, ख, वृपा); अट्टणिय- पूटवेणं अणमिच्छमीससम्ममित्यादिना क्रमेण ट्टियचित्ता (वपा) । ६. वाचनान्तरे गाथा: क्रमान्तरेणाधीयन्ते तदन्ते ७. आगारधम्म (क, ग)। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ४९ अणत्थदंडवेरमणं"। चत्तारि सिक्खावयाई, तं जहा-सामाइयं, देसावयासियं, पोसहोववासे, अतिहिसंविभागे। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणा। अयमाउसो! अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते । एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ ।। धम्मपडिवत्ति-पदं ७८. तए णं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा' समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया उठाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवण्णा॥ परिसा-पडिगमण-पदं ___७६. अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सुअक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, "सुपण्णत्ते ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुविणीए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भते ! निग्गथे पावयणे', अणुत्तरे ते भंते ! निग्गंथे पावयणे । धम्म' णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह । णत्थि णं अण्णणे केइ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ? एवं वदित्ता' जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया ।। कणिए-पडिगमण-पदं ५०. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ- 'चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उठाए उठेइ, उठूत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सुयक्खाए ते भंते ! निम्गंथे पावयणे", 'सुपण्णत्ते ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुविणीए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, अणत्तरे ते भंते ! निग्गंथे पावयणे । धम्म णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्ख१. अणत्थदंडवेरमणं दिसिध्वयं उवभोगपरिभोग- ६.सं० पा०-~एवं सुपण्णते सुभासिए विणीए परिमाणं (क, ग)। सुभाविए। २. 'जूसणा (क)। ७. धम्मे (क, ख, ग)। ३. महच्चपरिसा (ग, व)। ८. वंदित्ता (क, ग)। ४. सं० पा०-हट्टतट्ट जाव हियया। ६. सं० पा०-हत? जाव हियए। ५. आयाहिणं (ख) १०. सं० पा०—पावयणे जाव किमंग । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं माणा विवेगं आइक्aह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह । गत्थि णं अण्णे केइ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्म माइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ? एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिए । देबी-पडिगमण-पदं ५० ८१. तए णं ताओ सुभद्दापमुहाओ देवीओ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ'- 'चित्तमाणंदियाओ पीइमणाओ परमसोमणस्सियाओ हरिसवस - विसप्पमाण हिययाओ उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति णमसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासीसुक्खाए ते भंते! निग्थे पावयणे, 'सुपण्णत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए भंते! निम्गंथे पावणे, सुविणीए ते भंते! निग्गंधे पावयणे, सुभाविए ते भंते! निग्गंथे पावणे, अणुत्तरे ते भंते! निग्गंथे पावयणे । धम्मं णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह । णत्थि णं अण्णे केइ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ? एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूयाओ तामेव दिसं पडिगयाओ ॥ १. सं० पा० हदतद जाव हियए । २. मं० पा० पावराणे जाव किमंग | Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं गोयम-वण्णग-पर्द ८२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूणामं अणगारे 'गोयमे गोत्तेणं" सत्तुस्सेहे समचउरंस संठाण संठिए वइररिसहणाराय. संघयणे कणग-पुलग-णिघस-पम्ह-गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे' ओराले घोरे घोरणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउनतेयलेस्से' समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ || ८३. तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सुसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासीकम्मबंध-पदं ८४. जीवे गं भंते! असंजए अविरए अप्पडियपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतवाले एगंतसुत्ते पावकम्मं अहाइ ? हंता अण्हाइ || ८५. जीवे णं भंते! असंजए' 'अविरए अप्प डिह्यपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवडे एगदंडे एतबाले एगंतसुत्ते मोहणिज्जं पावकम्मं अण्हाइ ? हंता अण्हाई ॥ ८६. जीवे णं भंते! मोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कि मोहणिज्जं कम्मं बंधइ ? वेयणिज्जं कम्मं बंधइ ? गोयमा ! मोहणिज्जं पि कम्मं बंधइ, वेयणिज्जं पि कम्मं बंधइ, त्थ चरिममोह णिज्जं कम्मं वेदेमाणे वेयणिज्जं कम्मं बंधइ, णो मोहणिज्जं कम्मं बंध || १. गोयम सगोते णं ( भ० ११६ ) | २. महातवे घोरतवे (क, ख, ग ) । भगवत्यामपि (१1९ ) एतद् विशेषणं नास्ति । ३. अतः परं भगवत्यां (१९१९) निम्ननिर्दिष्टानि विशेषणान्यपि दृश्यन्ते – 'चोट्सपुथ्वी चउनाणो वगए सव्वक्खरसन्निवाती' । ४. अस्संजए ( क ) 1 ५. सं० पा० - असंजए जाब एगंतसुत्ते । ५१ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ओवाइयं रइय-उधवाय-पदं ८७. जीवे णं भंते ! असंजए' 'अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे स किरिए असंवुडे एगतदंडे एगंतबाले° एगंतसुत्ते उस्सण तसपाणघाई कालमासे कालं किच्चा णेरइएसु उववज्जइ ? हंता उववज्जइ ।। वाणमंतर-उववाय-पदं ८८. जीवे णं भंते ! असंजए अविरए अप्पडियपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्च' देवे सिया ? गोयमा ! अत्थेगइया देवे सिया, अत्थेगइया णो देवे सिया ।। ८६. से केणठे भंते ! एवं वुच्चइ--अत्थेगइया देवे सिया? अत्थेगइया णो देवे सिया ? गोयमा ! जे इमे जीवा गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुहमडब-पट्टणासम-संबाह - सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचेरवासेणं अकामअण्हाणग-सीयायव-दंसमसग-सेय-जल्ल-मल-पंक-परितावणं अपतरो वा भज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसिं गई, तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णते। तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा ! दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाण इडढीइ वा जुईइ वा 'जसेइ वा'बलेइ वा वीरिएइ वा पूरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । तेणं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समठे।। १०. से जे इमे गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासमसंबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-अंडुवद्धगा णियलबद्धगा हडिबद्धगा चारगबद्धगा हत्थछिण्णगा पायछिण्णगा कण्णछिण्णगा नक्कछिण्णगा ओट्ठछिण्णगा जिब्भछिण्णगा सीसछिण्णगा मुखछिण्णगा मज्झछिण्णगा वइकच्छछिण्णगा हियउप्पाडियगा णयणप्पाडियगा दसणप्पाडियगा वसणुप्पाडियगा तंदुलछिण्णगा कागणिमंसक्खावियगा ओलंवियगा लं वियगा घंसियगा घोलियगा फालियगा पीलियगा सूलाइयगा सूल भिण्णगा खारवत्तिया वज्झवत्तिया सीहपुच्छियगा दवग्गिदड्ढगा पंकोसण्णगा पंके खुत्तगा वलयमयगा वसट्टमयगा णियाणमयगा अंतोसल्लमयगा गिरिपडियगा तरुपडियगा मरुपडियगा गिरिपक्खंदोलगा तरुपक्खंदोलगा मरुपक्खंदोलगा जलपवेसी जलणपवेसी विसभक्खियगा सत्थोवाडियगा वेहाणसिया गेद्धपट्ठगा कतारमयगा दुभिक्खमयगा असंमिलिट्ठपरिणामा ते" कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई १.सं० पा०-असंजए जाव एगंतसुत्ते। ७. फोडियगा (ग) 1 २. ओसण्णं (ग)। ८. x (वृ); पोलियगा (वृपा) । ३. पेच्चा (क); पच्छा (ख)। ६. मरुपडियगा भरपडियगा (म, वृपा) ४. मल्ल (क, ख, ग)। १०. x (क, ख)। ५. तेहिं (ख, ग, वृ)। ११. तं (ख)। ६. जसे इ वा उदाणेइ वा कम्मे इ वा (वपा) । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं पण्णता ? गोयमा! वारसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समठे ।। ११. से जे इमे गामागर'-*णय र-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणा. सम-संबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-पगइभद्दगा पगइउवसंता' पगइपतणुकोहमाणमायालोहा' मिउमद्दवमपणा अल्लीणा' विणीया अम्मापि उसुस्सूसगा अम्मापिऊणं अणइक्कमणिज्जवयणा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेण अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्ति कप्पेमाणा वहूई वासाई आउयं पालेंति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु "देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहि तेसिं उववाए पण्णत्ते। तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! च उद्दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता । अस्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा वलेइ वा वोरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समझें ॥ १२. से जाओ इमाओ गामागर'-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु इत्थियाओ भवंति, तं जहा-अंतोअंतेउरियाओ गयपइयाओ मयपझ्याओ बालविहवाओ छड्डियल्लियाओ माइरक्खियाओ पियरक्खियाओ भायरक्खियाओ'• पइरक्खियाओ कुलघररक्खियाओ ससुरकुलरक्खियाओ" परूढणह-केस-कक्खरोमाओ ववगयपुप्फगंधमल्लालंकाराओ अण्हाणग-सेय-जल्ल-मल-पंक-परितावियाओ ववगन-खीर-दहि-णवणीय-सप्पि-तेल्ल-गुल-लोण-महु-मज्ज-मस-परिचत्तकयाहाराओ अप्पिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ अप्पेणं आरंभेणं अपेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्ति कप्पेमाणीओ अकामबंभचेरवासेणं तामेव पइसेज्जं णाइक्कमति । ताओ णं इत्थियाओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ वहूई वासाई "आउयं पालेति पालिता कालमासे काल किच्चा अण्णय रेम्वाणमतरेसू देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति। तहि तेसिं गई, तहि तेसिं ठिई, तहि तेसिं उबवाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! चउस ट्ठिवाससहस्साई ठिई पण्णता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा वलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे ।। १. सं० पा०—गामागर जाव सण्णिवेसेस् । वाससहस्साई । २. उवसंतक्का (ग)। ६. सं० पा०—गामागर जाव सणिवेसेसु । ३. पगइतणु (क, ग)। १०. भातिरक्खियाओ (क)। ४. आलीणा (व); भद्दगा (वृपा) । ११. 'मित्तनाइनिययसंबंधिरक्खियाओ' ति क्वचित् ५. अम्मापिउण' (ख); अम्मापिऊण" (ग)। ६. अम्मापिईणं (क, ख, ग)। १२. मंसुरोमाओ (वृपा) ७. बहु (क)। १३. सं० पा.---सेस तं चेव जाव चउसट्ठिवास८. सं० पा०--तं चेव सव्वं णवरं चउद्दस- सहस्साई ठिई पण्णत्ता। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ओवाइयं ९३. से जे इमे गामागर'- 'णयर-निगम रायहाणि खेड-कब्बड दोणमुह-मडंब पट्टणासम-संवाह - सणिवेसेसु मणुया भवंति तं जहा - दगविइया दगतइया दगसत्तमा दग एक्कारसमा गोयम- गोव्वइय-गिहिधम्म-धम्मचितग-अविरुद्ध विरुद्ध-वुड्ढसावगप्पभितयो । तेसि णं मणुयाणं णो कप्पति इमाओ नव रसविगईओ आहारेत्तए, तं जहा - खीरं दहि वणीयं सप्पि तेल्लं फाणियं महं मज्जं मंसं । गण्णत्थ' एक्काए सरिसवविगईए । ते णं मणुया अपिच्छा "अप्पारंभा अप्पपरिगहा अप्पेणं आरंभेण अप्पेणं समारंभेण अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्ति कप्पेमाणा बहूई वासाई आउयं पालेंति, पालित्ता काल मासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंत रेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति । तर्हि तेसि गई, तहि तेसि ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चउरासीइवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता । अस्थि गं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारप रक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । तेणं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणट्ठे समट्ठे ॥ जोइसिय उववाय-पदं ६४. से जे इमे गंगाकूला वाणपत्था तावसा भवंति तं जहा - होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सब्ढई थालई' हुंबउट्ठा" दंतुक्खलिया उम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपखाला दक्खिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा' कूलधमगा मिगलुद्धगा हत्थितावसा उद्दंडमा दिसापोक्खिणो वाकवासिणो' बिलवासिणो" जलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडिय कंद-मूल-तय- पत्त- पुप्फ-फलाहारा जलाभिसेयक ढिणगाया " आयावणाहि पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं कमाणा बहूई वासाई परियागं पाउणति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं जो सिसु देवे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसि गई, तहि तेसि ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढी वा जुईइ वा जसेइ वा वलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारप रक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराह्गा ? जो इणट्ठे समट्ठे° ॥ T १. सं० पा० – गामागर जाव सणिवेसेसु । २. अण्णस्थ ( क ) 1 ३. सं० पा० तं चैव सव्वं णवरं चउरासीइ वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता । ६. वालई ( क ) 1 ७. हुंप उट्ठा (क, ख ) । ८. संखधम्मगा (वृ) | ६. वाकवासिणो अंबुवासिणो ( क, ख, 'वक्कलवासिणो' त्ति वल्कलवाससः वृत्तिपत्र ५१९ ) । १०. वेलवासिणो (वृपा ) 1 ४. गंगाकूलक (ख) 1 ५. द्रष्टव्यं भगवतीसूत्रं ( ११।५१ ) तत् टिप्पणं ११. कढिणगायभूया ( क, ख, ग, वृपा) । च १२. आयावह ( ग ) । १३. सं० पा० - पलिओवमं वाससय सहस्समम्भहिय ठिई सेसं तं चैव । ग ) ; ( भ० Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओदाइय-पयरणं कंदप्पिय-उववाय-पवं ६५. से जे इमे गामागर'-•णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंवपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु पन्वइया समणा भवंति, तं जहा-कंदप्पिया कुक्कुइया मोहरिया गीयरइप्पिया नच्चणसीला । ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता' कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएस देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, "तहि तेसिं ठिई, तहि तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पण्णत्ता । अस्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अस्थि । तेणं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समठे ।। परिवायग-चरिया-पदं ६६. से जे इमे गामागर'-•णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासमसंवाह-सण्णिवेसेसु परिव्वाया भवंति, तं जहा–संखा जोगी काविला भिउव्वा हंसा परमहंसा बहुउदगा कुलिव्वया कण्हपरिवाया। तत्थ खलु इमे अट्ठ माहणपरिवाया भवंति, तं जहा कंड य करकंटे य, अंबडे य परासरे । कण्हे दीवायाणे चेव, देवगुत्ते य नारए ॥१॥ तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तिय-परिवाया भवंति, तं जहासीलई मसिंहारे, नग्गई भग्गई ति य । विदेहे राया, रामे बले ति य ॥२॥ ६७. ते णं परिब्वाया रिउवेद-यजुब्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं च उण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अण्णेसु य बहूसु 'बभण्णएसु य सत्थेसु" सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था ।।। ६८. ते णं परिवाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पण्णवेमाणा परूवेमागा विहरंति । जंणं अम्हं किं चि असुई भवइ तंणं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भबइ। एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलयूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो॥ E. तेसि णं परिव्वायाणं णो कप्पइ अगडं वा तलायं वा नई वा वावि वा पुक्खरिणि वा दीहियं वा गुंजा लियं वा सरं वा सागरं वा ओगाहित्तए, णपणत्थ अद्धाणगमणेणं ॥ १००. (तेसि णं परिवायाणं ?) णो कप्पइ सगडं वा" 'रहं वा जाणं वा जुग्गं वा १. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । ६. कन्ने (क) २. अपडिक्कता (ख)। ७. समंहारे (क); ससिहारे (ग) । ३. सं० पा०-सेसं तं चेव भवरं पलिओवमं ८. वाचनान्तरे...-परिवायएसु य नएसु (व) । वाससयसहस्समब्भहियाई ठिई।। ६. सरिसं (वृपा)। ४. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेस । १०. सं० पा०-सगडं वा जाव संदमाणियं । ५. कुडिव्वया (ख, ग)। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं गिल्लि वा थिल्लि का पवहणं वा सीयं वा संदमाणियं वा दुरुहिता णं गच्छित्तए । १०१. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ आसं वा हत्थि वा उट्टं वा गोणं वा महिसं वा खरं वा दुरुहिता णं गमित्तए, णण्णत्थ बलाभिओगेणं ।। १०२. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ नडपेच्छा इ वा 'णट्टगपेच्छा इ वा जल्लपेच्छा इ वा मल्लपेच्छा इ वा मुट्ठियपेच्छा इ वा वेलंबगपेच्छा इ वा पवगपेच्छा इ वा कहगपेच्छा इ वा लासगपेच्छा इ वा आइक्खगपेच्छा इ वा लखपेच्छा इ वा मंखपेच्छा इ वा तूणइल्लपेच्छा इ वा तुंबवीणिपेच्छा इ वा भुयगपेच्छा इ वा मागहपेच्छा इ वा पेच्छित्तए॥ १०३. तेसिं परिव्वायगाणं णो कप्पइ हरियाणं लेसणया वा घट्टणया वा थंभणया वा 'लूसणया वा उप्पाडणया वा करित्तए । १०४. तेसि परिव्वायगाणं णो कप्पइ इथिकहा इ वा भत्तकहा इ वा रायकहा इ वा देसकहा इ वा चोरकहा इ वा जणवयकहा इ वा अणत्थदंड' करित्तए ।। १०५. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अयपायाणि वा तंबपायाणि वा तउयपायाणि वा सीसगपायाणि वा रयय-जायरूव-काय-वेडंतिय-वट्टलोह-कंसलोह-हारपुडयरीतिया-मणि-संख-दंत-चम्म-चेल-सेल-पायाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं महद्धणमोल्लाइंधारित्तए, णण्णत्थ अलाउपाएण वा दारुपाएण वा मट्टियापाएण वा ।।। १०६. तेसि णं परिवायगाणं णो कप्पइ अयबंधणाणि वा 'तंब-बंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा सीसगबंधणाणि वा रयय-जायरूव-काय-वेडंतिय-वट्टलोह-कंसलोह-हारपुडयरीतिया-मणि-संख-दंत-चम्म-चेल-सेल-बंधणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराइं महद्धणमोल्लाई धारित्तए ॥ १०७. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ णाणाविहवण्णरागरत्ताई वत्थाई धारित्तए, णण्णत्थ एगाए धाउरत्ताए । १०८. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ हारं वा अद्धहारं वा एगावलिं वा मुत्तावलि वा कणगावलि वा रयणालिं वा मुरवि वा कंठमुरविं वा पालंब वा तिसरयं वा कडिसुत्तं वा दसमुद्दिआणंतगं वा कडयाणि वा तुडियाणि वा अंगयाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा मउडं वा चूलामणि वा पिणिद्धत्तए, गण्णत्थ एगेणं तंविएणं पवित्तएणं ॥ १०६. तेसि गं परिव्वायगाणं णो कप्पइ गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमे चउविहे मल्ले धारित्तए, णण्णत्थ एगेणं कण्णपूरेणं ।।। ११०. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अगलुएण वा चंदणेण वा कुंकुमण वा गायं अणुलिपित्तए, णण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए । १. सं० पा०-नडपेच्छाइ वा जाव मागहपेच्छा! पाठो विद्यते । २. x (वृ); लूसणया वा (वृपा)। ५. स० पा०-अयबंधणाणि वा जाव महदण३. अणट्ठादंडं (ग)। मोल्लाई। ४,७. बहुमुल्लाणि (क, ख, ग); आचारचूलायां ६. पुस्तकान्तरे समग्रमिदं सूत्रद्वय (१०५, १०६) (६।१३) 'विरूवरूवाई महद्धणमुल्लाई' इति मस्त्येव (१) । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं १११. तेसि णं परिवायगाणं कप्पइ मागहए पत्थए जलस्स पडिगाहित्तए, से वि य वहमाणए णो चेव गं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो नेवणं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे, से वि य पिबित्तए णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणछाए सिणाइत्तए वा ।। ११२. तेसिं णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए' •णो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसपणे णो चेव णं अवहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य दिण्णे' जो चेव णं अदिण्णे, से वि य हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणट्ठाए णो चेव णं पिबित्तए सिणाइत्तए वा॥ ११३. तेसि णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य बहमाणए' 'णो चेवणं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपुए, से वि य दिपणे णो चेव णं अदिण्णे, से वि य सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणछाए पिबित्तए वा।। ११४. ते णं परिव्वायगा एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहुइं वासाइं परियायं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसि गई, "तहिं तेसिं ठिई, तहि तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दससागरोवमाइंठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समटठे ।। अम्मड-अंतेवासि-पदं ११५. तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ गयराओ पुरिमतालं जयरं संपठ्ठिया विहाराए। ११६. तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वेणं परि जमाणे झीणे ।। ११७. तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारम्भमाणा उदगदातारमपस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इसीसे अगामियाए 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुबग्गहिए उदए' 'अणुपुव्वेणं परिभुंजमाणे झीणे । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं १,२. सं० पा०-वहमाणए जाव णो। ४. सं० पा०–अगामियाए जाव अडवीए । ३.सं० पा०-दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता सेस ५. सं० पा०-उदए जाव भीणे । Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोबाइये इमीसे अगामियाए 'छिण्णाबायाए दीहमद्धाए अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एय मट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तीसे अगामियाए' 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए" अडबीए उदगदातारस्स सव्वाओ समंता मग्गण-गवेसणं करेंति, करेत्ता उदगदातारमलभमाणा दोच्चंपि अण्णमण्णं सहावेंति,सद्दावेत्ता एवं वयासी--इहणं देवाणुप्पिया ! उदगदातारो णत्थि तं णो खलु कप्पइ अम्हं अदिणं गिव्हित्तए', अदिण्णं साइज्जित्तए, तं मा णं अम्हे इयाणि आवइकालं पि अदिण्णं गिण्हामो, अदिण्णं साइज्जामो, मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सइ । तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! तिदंडए य कुंडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ य छण्णालए य अंकुसए य केसरियाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य धाउरत्ताओ य एगते एडित्ता गंगं महाणई ओगाहित्ता वालुयासंथारए संथरित्ता संलेहणा-झूसियाणं भत्तपाण-पडियाइक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणकंखमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमळं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तिदंडए य'कुंडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ य छण्णालए य अंकसए य केसरियाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य धाउरत्ताओ य° एगते एडेंति, एडेत्ता गंगं महाणई ओगाहेंति, ओगाहेत्ता वालुयासंथारए संथरंति, संथारित्ता वालुयासंथारयं दुरुहंति, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहा संपलियंकनिसण्णा करयल'- परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी--णमोत्थु णं अरहताणं जाव' सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं । णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स । णमोत्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स । पुटिव णं अम्हेहिं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए 'थलए पाणाइवाए" पच्चक्खाए जीवज्जीवाए, मुसावाए अदिपणादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । इयाणि अम्हे समणरस भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाडवायं पच्चक्खामो जावज्जीवाए. सव्व मुसावायं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं अदिण्णादाणं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं मेहणं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं कोहं माणं मायं लोहं पेज दोसं कलहं अब्भक्खाणं पेसुण्णं परपरिवायं अरइरई मायामोसं मिच्छादसणसल्लं 'अकरणिज्ज जोग" पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं-चउन्विहं पि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए। जंपि य इमं सरीरं इठं कंतं पियं मणण्णं मणाणं पेज्ज वेसासियं संमयं वहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं" मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं वाला, मा णं चोरा, मा णं दंसा, मा णं मसगा, मा णं वाइय १.२. सं०पा...-अगामियाए जाव अडवीए। ३. भुंजित्तए (वृपा)। ४. तववयलोवे (क)। ५. सं० पा०—तिदंडए य जाव एगते । ६. सं० पा..-करयल जाव कटु । ७,८. ओ० सु० २१ । ६. थूलगपाणाइवाए (क)। १०. सं० पा०—एवं जाव सब्वं परिग्गहं । ११. ४ (क, ख, ग)। १२. थेज्जं (क, ख, पा) । १३. रयणकरंडग (ख)। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं पित्तिय-सिभिय-सपिणवाइय' विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कटु एयंपि णं चरिमेहिं ऊसासणीसासेहि वोसिरामि त्ति कटु संलेहणा-झूसिया' भत्तपाणपडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकंखमाणा विहरंति । तए णं ते परिवाया वहूई भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदित्ता आलोइय-पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तहिं तेसिं गई, 'तहि तेसि ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? हंता अत्थि ॥ अम्मड-चरिया-पदं ११८. बहुजणे णं भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइएवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे पयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ। से कहमेयं भंते ! एवं खलु गोयसा ! जंण से वहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ° एवं परूवेइएवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे •णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमठे अहंपि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पण्णवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए' 'कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए° वसहि उवेइ॥ ११९. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए' 'कंपिल्लपुरे गयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए° वसहिं उवेइ ? गोयमा ! अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए 'पगइउवसंतयाए पगइपतणुकोहमाणमायालोहयाए मिउमद्दवसंपण्णयाए अल्लीणयाए विणीययाए छठेंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झियपगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहि अज्झवसाणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहि 'अण्णया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह"-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए" वेउब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा। तए णं से अम्मडे परिव्वायए तीए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे णयरे घरसए" 'आहारमाहरेइ, १. इह प्रथमाबहुवचनलोपो विद्यते । खितम् । प्रस्तुतसूत्रस्य पूर्तिर्वृत्ती कृतास्ति, तत्र २. झूसणा झूसिया (वृपा)। 'भद्दयाए' इति पाठः स्वीकृतः, इत्यस्ति समी३. सं० पा०-दससागरोवमाइं ठिई पण्णता क्षास्पदम् । परलोगस्स आराहगा सेस तं चेव ।। १०. x (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-.-एवमाइक्खइ जाव एवं । ११. ईहाबूहे (ग); ईहाबूह (द) । ५. सं० पा.- कंपिल्लपुरे जाव घरसए । १२. वाचनान्तरे 'वौरियलद्धी वेउब्वियलद्धी' ति ६. सं० पा०-एवमाइक्खामि जाब परूवेमि । पठ्यते (व) ७,८. सं० पा०-परिव्वायए जाव वसहिं । १३. ओहिणाणलडीए (क)। ६. सं० पा० --पगइभद्दयाए जाव विणीययाए। १४. सं० पा०---घरसए जाव वसहि । वृत्तिकृता ६१ सूत्रे क्वचित् 'भद्दगा' इत्युल्लि Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० मोवाइय घरसए वसहि उवेइ । से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-अम्म परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए 'आहारमाहरेइ, घरसए° वसहिं उवेइ ।। १२०. पह णं भंते ! अम्मडे परिव्वायए देवाणु प्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? णो इणठे समठे। गोयमा ! अम्मडे णं परिवायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे' 'उक्लद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बंध-मोक्खकुसले असहेज्जदेवासुरणाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किपुरिस-गरुल-गंधव-महोरगाइएहि निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे इणमो निग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कं. खिए निम्वितिगिच्छे लद्धडे गह्यिठे पुच्छियठे अभिगयठे विणिच्छियछे अलिमिजपेमाणुरागरत्ते 'अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अठे अयं परमठे सेसे अणठे च उद्दसअट्ठमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं अणुपालेमाणे समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंवल-पायपुच्छणणं ओसह सज्जेणं पाडिहारिएणं पीढफल गसेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । १२१. अम्मडस्स णं परिवायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए 'मुसावाए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए ॥ - १२२. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स गो कप्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं ।।। १२३. अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ सगडं वा 'रहं वा जाणं वा जुग्गं वा गिल्लि वा थिल्लि वा पवहणं वा सीयं वा संदमाणियं वा दुरुहित्ताणं गच्छित्तए । १२४. अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ आसं वा हत्थिं वा उट्ट वा गोणं वा महिसं वा खरं दुरुहित्ताणं गमित्तए, णण्णत्थ बलाभिओगेणं ॥ १२५. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ नडपेच्छाइ वा णट्टगपेच्छाइ वा जल्लपेच्छाइ वा मल्लपेच्छाइ वा मुठ्ठियपेच्छाइ वा बेलबगपेच्छाइ वा पवगपेच्छाइ वा कहगपेच्छाइ वा लासगपेच्छाइ वा आइक्खगपेच्छाइ वा लंखपेच्छाइ वा मंखपेच्छाइ वा तूणइल्लपेच्छाइ वा तुववीणियपेच्छाइ वा भयगपेच्छाइ वा मागहपेच्छाइ वा पेच्छित्तए ।। १२६. अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ हरियाणं लेसणया वा घट्रणया वा थंभणया वा लूसणया वा उप्पाडणया वा करित्तए । १. क्वचित् 'अम्बडे' दृश्यते तदथुक्तम् (व)। ४. क्वचित् 'गरुडे' त्ति नाधीयते (व) । २. सं० पा०-घरसए जाव बसहि । ___५. क्वचित् 'इणमो निग्गंथे' इति दृश्यते (वृ.) । ३. सं० पा.--अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाण ६. सं० पा०---जावज्जीवाए जाव परिगहे णवरं भावेमाणे विहरइ, वरं ऊसियफलिहे सम्वे मेहणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । अवंगुयद्वारे चियत्ततेउरघरदारपवेसी ७. सं० पा०-सगडं वा तं चेव भाणियध्वं जाव (क्वचित् 'चियत्तघरतेउरपवेसी' ति–ब) णण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए । एयं ण दुच्चइ । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओबाइय-पयरणं १२७. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ इत्थिकहाइ वा भत्तकहाइ वा रायकहाइ वा देसकहाइ वा चोरकहाइ वा जणक्यकहाइ वा अणत्थदंडं करित्तए ।। १२८. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अयपायाणि वा तंवपायाणि वा तउयपायाणि वा सीसगपायाणि वा रयय-जायरूव-काय-वेडंतिय-वट्टलोह-कंसलोह-हारपुडयरीतिया-मणि-संख-दंत-चम्म-चेल-सेल-पायाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई महद्धणमोल्लाइंधारित्तए, णण्णत्थ अलाउपाएण वा दारुपाएण वा मट्टियापारण वा ।। १२६. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अयबंधणाणि वा तंवबंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा सीसगबंधणाणि वा रयय-जायरूव-काय-वेडंतिय सलोहहारपुडय-रीतिया-मणि-संख-दंत-चम्म-चेल-सेल-बंधणाणि वा अण्णय राई वा तहप्पगाराई महद्धणमोल्लाइंधारित्तए । १३०. अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ णाणाविहवण्णरागरत्ताई वत्थाई धारित्तए, णण्णत्थ एगाए धाउरत्ताए। १३१. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ हारं वा अद्धहारं वा एगावलि वा मुत्तावलि वा कणगावलि वा रयणावलि वा मुरवि वा कंठमुरवि वा पालंबं वा तिसरयं वा कडिसुत्तं वा दसमुद्दिआणतगं वा कडयाणि वा तुडियाणि वा अंगयाणि वा केऊराणि वा कुडलाणि वा मउडं वा चूलामणि वा पिणिद्धत्तए, णण्णत्थ एगेणं तंबिएणं पवित्तएणं ।। १३२. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ गथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमे च उबिहे मल्ले धारित्तए, णण्णत्थ एगेणं कण्णपूरेणं ।। १३३. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अगलुएण वा चंदणेण वा कुंकुमेण वा गायं अणुलिपित्तए', णण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए ।। १३४. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाएइ वा अज्झोयरएइ वा पूइकम्मेइ वा कोयगडेइ वा पामिच्चेइ वा अणिसिठेइ वा अभिहडेइ वा 'ठवियएइ वा" 'रइयएइ वा कंतारभत्तेइ वा दुब्भिक्खभत्तेइ वा गिलाणभत्तेइ वा वद्दलियाभत्तेइ वा पाहुणगभत्तेइ वा भोत्तए वा पायए वा॥ १३५. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणेइ वा' 'कंदभोयणेइ वा फलभोयणेइ वा हरियभोयणेइ वा बीयभोयणेइ वा भोत्तए वा पायए वा। १३६. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स चउबिहे अणट्ठादंडे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, तं जहा-अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे ।। १३७. अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणा णो चेव णं अवहमाणए', 'से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य वहप्पसणे णो चेव णं अवहुप्पसण्णे , से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य सावज्जे त्ति काउं' णो चेव णं अणवज्जे, से वि य जीवा ति काउं' णो चेव णं अजीवा, से वि य दिण्णे १. ठवइत्तए वा (ख)। ४. सं० पा०-अवहमाणए जाव से। २. रइत्तए वा (क, ख); x (ग)। ५. कट्टुं (ग, वृ)। ३. सं० पा०-मूलभोयणे इ वा जाव बीयभोयणे । ६. कट्टे (क, ग, वृ)। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ अोवाइयं जो चेव णं अदिण्णे, से वि य हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालाणट्ठयाए पिबित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए । १३८. अम्मडस्स कप्पइ मागहए आढए जलस्स पडिम्गाहित्तए से वि य वहमाणए' *णो चेव णं अवमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसपणे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए जो चेव णं अपरिपूर, से वि य सावज्जे त्ति काउं णो चेव णं अणवज्जे, से वि य जीवा ति काउं णो चेव णं अजीवा, से वि य दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे, से वि य सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणठ्ठयाए पिबित्तए वा।। १३६. अम्मडस्स णो कप्पइ अण्णउत्थिए' वा अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि 'वा चेइयाई" वंदित्तए वा णमंसित्तए वा' 'पूइत्तए वा सक्कारित्तए वा सम्माणित्तए वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएण° पज्जुवासित्तए वा, पण्णत्थ 'अरहंतेहिं वा। १४०. अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! अम्मडे गं परिव्वायए उच्चावएहिं सील-व्वय-गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं समणोवासय-परियायं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ ण अम्मडस्स वि देवस्स दससागरोवमाई ठिई। दढपइण्ण-पदं १४१. से णं भंते ! अम्मडे देवे ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्ख१. मागहए य (क)। ७. भगवत्याः एकादशशतके (१६६) औपपातिक२. सं० पा०-वहमाणए जाव णो। स्य अम्मडप्रकरणस्य सूचनमस्ति तथा वृत्ती ३. अण्णउत्थिया (ख) । (पत्र ५४६) स पाठः उद्धृतोस्ति-यथोपपा४. अरहंतचेइयाई (क); अरहंतचेइयाणि वा तिके अम्बडोधीतस्तथायमिह वाच्यः, तत्र च यावत्करणादेतत्सूत्रमेवं दृश्यं गहगणनक्खत्त५. सं० पा०–णमंसित्तर वा जाव पज्जूवा- तारारूवाणं बहूई जोयगाई बहूई जोयणससित्तए। याई बहूइं जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसह६. अरहंतेहिं वा अरहंतचेइयाई वा (क,ख, ग); स्साई बहूई जोयणकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता वृत्ती 'णण्णत्थ अरहंतेहिं वा' एतदेव व्याख्यात- सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिदे कप्पे वीइवइत्त' मस्ति 'अरहंत चेइयाई वा' इति व्याख्यातं ति । किन्तु प्रस्तुतसूत्रादर्शषु वृत्तौ च एष पाठः नास्ति । आदर्शेषु एतद् वाक्यं लभ्यते । सम्प्रति नंव लभ्यते । केनापि कारणेन त्रुटितो अण्णत्थ' योगे पंचमी विभक्तिर्भवति । तदपे- भूदिति सम्भाव्यते। क्षया 'अरहंतचेइयाई वा' इति वाक्यमशुद्धमपि ८. ताओ (ख) । विद्यते। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं एणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति' ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाइं कुलाई भवंति अड्ढाई दित्ताई वित्ताई वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाणवाहणाई बहुधण-जायरूव'-रययाई आओग-पओग-संपउत्ताई विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणाई बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाइं तहप्पगारेसु कुलेसु युमत्ताएं पच्चायाहिति ॥ १४२. तए' णं तस्स दारगस्स गल्भत्थस्स चेव समाणस्स अम्मापिईणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ ।। १४३. से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण" राइंदियाणं वीइक्कताण सुकुमालपाणिपाए अहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे लक्खण वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदसणे सुरूवे दाराए पयाहिति ।। १४४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं काहिति, तइयदिवसे चंदसूरदसणियं काहिति, छठे दिवसे जागरियं" काहिंति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते णिव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते वारसाहे" अम्मापियरो इम" एयारूवं गोणं" १. चई (ग)। सूरपासणियं व' त्ति अन्वर्थानुसारिणं तृतीय २. गमिहिति (ग)। दिवसोत्सवम् । रायपसेणइय (८०२) सूत्रस्य ३. तत्तय (क)। 'दढपइण्णा' प्रकरणे 'ततियदिवसे' इति पाठो४. कुले (बृपा)। स्ति, नायाधम्मकहाओ (११६१) सूत्रेपि ५. पुत्तत्ताए (क)। इत्यमेवास्ति, तेन 'बिइय' इति अशद्धं प्रति६. प्रस्तुतागमे रायपसेणइयसूत्रे च दृढप्रतिज्ञस्य भाति। प्रकरणं प्रायः समानमस्ति, केवलं पाठरचना- ११. धम्मजागरियं (क)। या: किञ्चित्-किञ्चिद् भेदो दृश्यते । १२. बारसाहे दिवसे (क, ख, ग, वृ); विपाकसूत्रे ७. अट्ठमाण य (ख)। (२१४८) 'संपत्ते बारसाहे' पाठोस्ति । केष. ८. आदर्शषु 'दारए' इति कर्तृपदं लभ्यते । वस्तुतः चिदादर्शेषु 'संपत्ते बारसमे दिवसे' इति इदं कर्मपदं स्यादिति युक्तमस्ति 'पयाहिति' पाठोस्ति । 'बारसाहे दिवसे' अनयोः संयुक्तरूपं इति क्रियापदस्य सन्दर्भ तथा स्थानाङ्ग (६२) प्रतिभाति । वृत्तिकारस्य सम्मुखे एष एव पाठ रायपसेणइय (८०१) सूत्रयोः साक्ष्येण च अस्य आसीत् । अस्य पाठस्य वृत्तिर्यथा तथा कर्मपदस्य पुष्टि जर्जायते । तदेवं पाठरचना एवं कृतास्ति । यथा--तत्र 'बारसाहे दिवसे' ति भवति--बीइक्कंताणं सा सुकुमालपाणिपायं... द्वादशाक्ये दिवसे इत्यर्थः, अथवा द्वादशानासुरूवं दारयं पयाहिति । मह्रां समाहारो द्वादशाहं तस्य दिवसो येनासो ६. सं० पा०—सुकुमालपाणिपाए जाव ससिसोमा पूर्णो भवतीति द्वादशाहदिवसस्तत्र (पृ० १९३) कारे । वस्तुतः 'बारसमे दिवसे', अथवा 'बारसाहे' १०. विइय० (ग); "चंदसूरदंसणियं' तृतीय दि- अनयोर्मध्ये एकेन पाठेन भवितव्यम् । अस्माकं वसस्य उत्सवो विद्यते। वि सम्मुखे एका स्तबकप्रतिरस्ति तस्यां केवलं एतत् संवादी उल्लेखोपि लभ्यते, यथा....'चंद- बारसाहे' पाठोस्ति। रायपसेणइयसूत्रे Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૪ ओersi गुणकिणं णामधे काहिति -- जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भत्यंसि चेव समासि धम्मे दढापइण्णा', तं होउ णं अम्हं दारए दढपइण्णे णामेणं । तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज्जं करेहिति दढपइण्णत्ति' || १४५. तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहि-करण'-णक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवर्णेहिति ॥ १४६. तए गं से कलायरिए तं दढपइणं दागं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणस्थपज्जवसाणाओ वावर्त्तारं कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहाविहिति सिक्खाविहिति तं जहा - १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. पट्टे ५. गीयं ६. वाइयं ७. (८०२) पि बारसमे दिवसे' पाठोस्ति । अस्माभिरत्र स एव स्तबकप्रतिगतः पाठः स्वीकृतः । १३. अयं (वृपा) । १४. गोणं (क) १. दढपणा (क, ख, ग ) । २. होऊ (क, ख ) 1 ३. इह स्थाने पुस्तकान्तरे पंच धाइपरिगहिए' इत्यादि ग्रन्थों दृश्यते स च प्राग्वद् व्याख्येयः, किचिच्च तस्य व्याख्यायते – 'हत्था हत्थं संहरिज्जमाणे' ति हस्ताद्धस्तान्तरं संहियमाणोनीयमानः, अङ्कादङ्कं परिभुज्यमानः--- उत्सङ्गादुत्सङ्गान्तरं परिभोज्यमानः उत्सङ्गस्पर्शसुखमनुभाव्यमानः, 'उवनचिज्ञमाणे' त्ति उपर्त्यमानो नर्तन कार्यमाण इत्यर्थः, उपगीय - मानः तथाविधबालोचित गीत विशेषैर्गीयमानो गायमानो वा 'उवलालिज्जमाणे' त्ति उपलालयमान: क्रीडादिलालतया, 'उवगूहिज्जमाणे' त्ति उपगूह्यमानः आलिङ्ग्यमानः 'अवयासिज्जमाणे' त्ति अपत्रास्यमानः अपगतत्रासः क्रियमाणः, अपयास्यमानो वा उत्कण्ठातिरेकान्निर्दयालिङ्गनेनापीड्यमानः, अप्रयास्यमानो समीहितपूरणेन प्रयासमकार्यमाणः, 'परिवदिज्जमाणे' ति परिवन्द्यमानः स्तूयमानः परिचुम्यमानः इति व्यक्तं, 'परंगिज्जमाणे' त्ति प्ररयमाणः चङ्क्रम्यमाणः, एतेषां च संहिय वा - माणादिपदानां द्विर्वचनाभीक्ष्ण्यविवक्षयेति 'निव्वायनिव्वाघायं' त्ति निर्वातं निर्व्याघातं च यद् गिरिकन्दरं तदालीन इति (बु) । भगवतीवृत्तावपि (पत्र ५४५ ) औपपातिकस्य एष पाठ: उद्धृतोस्ति- 'जहा दढपइन्ने' त्ति औपपातिके दृढ प्रतिज्ञोधीतस्तथायं वक्तव्यः, तच्चैवं---' मज्जणधाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंकधाइए' इत्यादि, 'निव्वायनिव्वाघायंसि' इत्यादि च वाक्यमिहैवं संबन्धनीयं 'गिरिकंदरमल्लीणेव्व चंपगपायवे निव्वायनिव्वाधायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढई' ति 'परंगामणं' ति भूमी सप्पर्ण 'पयचंकामणं' त्ति पादाभ्यां सञ्चारणं 'जेमामणं' ति भोजनकारणं ''पिंडवद्धणं' ति कवलवृद्धिकारणं 'पज्जपावर्ण' ति प्रजल्पनकारणं कण्णवेहणं' ति प्रतीतं संवच्छरपडिलेहणं' ति वर्षग्रंथिकरणं 'चोलोयणं, ति चूडाधरणं 'उवणयणं' ति कलाग्राणं 'गब्भाहाणजम्मणमाइमाई कोउयाइं करेंति' त्ति गर्भाधानादिषु यानि कौतुकानि - रक्षाविधानादीनि तानि गर्भाधानादीन्येवोच्यन्त इति गर्भाधानजन्मादिकानि कौतुकानीत्येवं समानाधीकरणतया निर्देशः कृतः । द्रष्टव्यं रायपसेणइयसूत्रस्य ८०३,८०४ सुत्रद्वयम् । ४. साइरेगट्टवरिसजायगं ( वृ) 1 ५. करण - दिवस ( क, ख ) । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोबाइय-पयर ६५ सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं' १५. दगमट्टियं १६. अण्णविहिं १७. पाणविहिं १८. वत्थविहिं १६. विलेवणविहि २०. सयणविहिं २१. अज्ज २२. पहेलियं २३. मागहियं २४. गाहं २५. गीइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुत्ति २८. सुवण्णजुत्ति' २६. गंधजुत्ति' ३०. चुण्णजुत्ति ३१. आभरणविहिं ३२. तरुणीपडिकम्म ३३. इथिलक्खणं ३४. पुरिसलक्खणं ३५. हयलक्खणं ३६. गयलक्खणं ३७. गोणलक्खणं ३८. कुक्कुडलक्खणं ३६. छत्तलक्खणं ४०. दंडलक्खणं ४१. असिलक्खणं ४२. मणिलक्खणं ४३. काकणिलक्खणं ४४. वत्युविज्ज ४५. खंधावारमाणं ४६. नगरमाणं ४७. वूहं ४८. पडिवूह ४६. चारं ५०. पडिचारं ५१. चक्कवहं ५२. गरुलवूहं ५३. सगडवहं ५४. जुद्धं ५५. निजुद्धं ५६. जुद्धाइजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. वाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१ छरुप्पवादं ६२. धणुवेदं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. वट्टखेड्ड५ ६६. सुत्तखेड्डे ६७. णालियाखेड्डु ६८. पत्तच्छेज्ज ६६. कडगच्छेज्ज ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुयं-इति सेहावित्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति ।। १४७. तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेहिति सम्माहिति, सक्कारित्ता सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति, दलइत्ता पडिविसज्जेहिंति ॥ १४८. तए णं से दढपइण्णे दारएर वावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसदेसी-भासाविसारए गीयरई गंधव्वणट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए अलंभोगसमत्थे यावि भविस्सइ ।। - १४६. तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो वावत्तरिकलापंडियं 'नवंगसुत्तपडिबोहियं अट्ठारसदेसी-भासाविसारयं गीयरइं गंधव्वणट्टकुसलं हयजोहिं गयजोहिं रहजोहिं बाहुजोहिं बाहुप्पमद्दि वियालचारि साहसियं° अलंभोगसमत्थं च वियाणित्ता विउलेहिं अण्णभोगेहिं पाणभोगेहिं लेणभोगहिं वत्थभोगेहिं सयणभोगेहि कामभोगेहिं उवणिमंतेहिति ॥ १५०. तए णं से दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहि अण्णभोगेहि" पाणभोगेहि लेणभोगेहि वत्थभोगेहि सयणभोगेहिं कामभोगेहि णो सज्जिहिति णो रजिहिति णो गिज्झि१. दुयं (स)। ६. छरुप्पवाहं (क)। २. जणवयं (ख, ग)। १०. धणुब्वेहं (क)। ३. पुरेकव्वं (ग)। ११. चक्लेड्डु (ख); बंधुखेड्ड (ख); पब्भसेड्डे (ग) । ४. लेणविहिं (क); लेणविहिं विलेवणविहिं (ख)। ५.४ क, ख, ग)। १२. 'विन्नयपरिणयमेत्ते ति क्वचित् (व)। ६. ४ (क)। १३. सं० पा०-- पंडियं जाव अलंभोगसमत्थं । ७. कागिणि' (क)। १४. सं० पा०-अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं । ६. बंधारमाणं (क, ग)। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ मोवाइ हिति णो मुज्झिहिति णो अज्झोववज्जिहिति । से जहाणामए उप्पलेइ वा पउमेइ वा कुमुएइ वा नलिइ वा सुभगेइ वा सुगंधिएइ' वा पोंडरीएइ वा महापोंडरीएइ वा सयपत्तेइ वा सहस्सपत्तेइ वा पंके जाए जले संबुड्ढे गोवलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपणे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहि संबुड्ढे गोवलिप्पिहिति कामरएणं गोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिप्पिहिति मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं ॥ १५१. से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिति, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति ।। १५२. से णं भविस्सs अणगारे भगवंते इरियासमिए' 'भासासमिए एसणासमिए आयाण- भंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार पासवण - खेल - सिंघाण जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुतिदिए गुत्तबंभयारी ॥ १५३. तस्स णं भगवओ एएणं विहारेणं विहरमाणस्स अणते अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति ॥ १५४. तए णं से दढपइण्णे केवली बहूइं वासाई केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउfणत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सट्ठाए ates नंग्गभावे मुंडभावे अव्हाणए अदंतवणए' केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहण गं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा" कट्ठसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्ध परेहिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ 'तज्जणाओ तालणाओं" परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहि उस्सासणिस्सा सेहि सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति ॥ देव कि विसिय उववाय-पदं १५५. सेज्जे इमे गामागर' 'णयर-निगम रायहाणि खेड- कब्बड दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति तं जहा आयरियपडिणीया उवज्झायपडिणीया तदुभयपडिणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहि असम्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च दुग्गामाणा वुप्पाएमाणा" विहरिता बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कता" काल मासे कालं किच्चा १. × (क, ख, वृ) । २. सुगंधेति ( क ) । ३. वा सय सहस्पते इ वा (क, ख, ग ) ; 'सय सहस्पते इवा' एष पाठः चिन्तनीयोस्ति प्रायः 'सहस्सपत्ते' इत्येव पाठो दृश्यते । तसहस्रपत्र इति पदं विश्रुतं नास्ति । ४. प्रस्तुतसूत्रे आदर्शेषु 'गुत्तबंभयारी' इति पर्यन्तः पाठो लभ्यते । १६४ सूत्रे पाठः किञ्चिद् विस्तृतोस्ति । अतः द्वयोरपि संक्षिप्तपादयोः संकेत भिन्न वर्तेते, तेनैव पाठयोः पूतिभित्र स्थलाभ्यां कृतास्ति । ५. सं० पा०--- इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी । ६. अदंतधावण ( क ) 1 ७. फलहकसेज्जा (क, ख ) । ८. तालणाओ तज्जणाओ (क, ख, ग ) ६. सं० पा०- गामागर जाव सष्णिवेसेसु १०. उप्पाएमाणा ( क, ख ) । ११. अपेंडिक्कता ( ख, ग ) । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइय-परणं ६७ उक्कोसेणं लंत कप्पे देवकिब्बिसिएस देव किब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसि गई, तहि तसि ठिई, तहि तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! तेरससागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । अस्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढी वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेड वा ? हंता afe | तेण भंते! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणट्ठे समट्ठे ।° 1 सहस्सार- उबवाय-पदं J १५६. सेज्जे इमे सण-पंचिदिय-तिरिक्खजोणिया पज्जतया भवंति तं जहाजलयरा थलयरा खयरा । तेसि णं अत्थेगइयाणं सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहि अज्झवसाहिस्सा विज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं' ईहापूह-मग्गणगवेसणं करेमाणाणं सण्णीपुव्वजाइ- सरणे समुप्पज्जई ॥ १५७. तए णं ते समुप्पण्णजाइ- सरणा समाणा सयमेब पंचाणुव्वयाई पडिवज्जंति, पडिवज्जित्ता बहूह सीलव्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पानं भावेमाणा बहूई वासाई आउयं पालेंति, पालेत्ता भत्तं पच्चक्खति, पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्को सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसि गई, "तहि तेसि ठिई, तहि तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अस्थि णं भंते! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि ! ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आहगा ? हंता अतिथ° ॥ आजीवयाणं- अच्चय उववाय-पदं १५८. से जे इमे गामागर' - 'णयर-निगम रायहाणि खेड-कब्वड- दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह'-सण्णिवेसेसु आजीवया भवंति तं जहा - दुघरंतरिया तिघरंतरिया सत्तधरंतरिया उप्पलवेंटिया घरसमुदाणिया विज्जुयंतरिया उट्टियासमणा । ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियाय पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसि गई, "तहि तसि ठिई, तहि तेसि उववार पण्णत्ते । तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अस्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणट्ठे समट्ठे° ॥ समणाणं अभिओगिय उववाय-पदं १५६. सेज्जे इमे गामागर - "णयर-निगम १. सं० पा० – तेरस सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चैव । २. खओवसमएणं ( क ) 1 ३. पंचवाहि (क) 1 ४. सं० पा० – अट्ठारस सागरोवमाई लिई पण्णत्ता रायहाणि खेड- कब्बड - - दोणमुह-मडंबपरलोगस्स आहगा सेसं तं चैव ! ५. सं० पा०--गामागर जाव सण्णिवेसेसु । ६. सं० पा० बावीसं सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चैव । ७. सं० पा० - गामागर जाय सण्णिवेसेसु । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ मोबाइम पट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा~-अत्तुक्कोसिया' परपरिवाइया भइकम्मिया भज्जो-भज्जो कोउयकारगा। ते गं एयारवेणं विहारेणं विहरमाणा वहई वासाई सामण्णपरियाग पाउणंति. पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपदिक्कता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहि तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। अस्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? जो इणठे समठे ॥ णिण्हगाणं गेवेज्ज-उववाय-पदं १६०. सेज्जे इमेगामागर"-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु णिण्हगा भवंति, तं जहा-बहुरया, जीवपएसिया, अव्वत्तिया, सामुच्छेइया', दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया" इच्चेते सत्त पवयणणिण्हगा केवलं चरियालिंग-सामण्णा मिच्छट्टिी वहहिं असब्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा बुप्पाएमाणा विहरित्ता 'बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता" कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं उवरिमेसु गेवेज्जेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसिं गई, "तहि तेसि ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसिणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समठे ॥ देस-विरय-वण्णग-पदं १६१. सेज्जे इमे गामागर'-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-'अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई" धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा सुसीला" सुव्वया सुप्पडियाणंदा साहूहिं, एगच्चाओ" पाणाइवायाओ १. अत्तुक्कसिया (ग)। ६. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । २. सं० पा०-बावीसं सागरोवमाइं ठिई परलो- १०. १६३ सूत्रे 'अणारंभा अपरिग्गहा' इति पाठो गस्स अणाराहगा सेसं तं चेव । विद्यते । तथैव पद्धत्या अत्रापि चिहान्तर३. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । बतिपाठो युज्यते । सूत्रकृताने (२।२।७१) पि ४. सामुच्छिया (क, ख); सामुच्छित्तिया (ग)। एष पाठो लभ्यते । ५. अन्वद्धिया (क, ख, ग)। ११. धम्मप्पलोइया (ग)। ६. मिच्छद्दिट्टिहिं (क, ग)। १२. सूत्रकृताङ्गे (२।२।७१) एतत्पदं दृश्यते । ७. ४ (क)। प्रस्तुतसूत्रस्य पाठशोधनाय अप्रयुक्तेषु आदर्शेषु ८. सं० पा०-एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई एतत्पदं लभ्यते । प्रलोगस्स अणाराहगा। १३. एगइयाओ (वृपा) Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं ६६ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया' । 'एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया ! एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया ।एगच्चाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया। एगच्चाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ करण-कारावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ पयण-पयावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ ‘पयण-पयावणाओ" अपडिविरया । एगच्चाओ कोट्टण-पिट्टण-तज्जणतालण-वह-बंध-परिकिलेसाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया। एगच्चाओ बहाण-मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया! जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोबहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जंति, तओ वि एगच्चाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया ॥ १६२. तं जहाँ-समणोवासगा भवंति, अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसवसंवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसला असहेज्जा देवासुर-णाग-सुवण्ण'-जक्खरक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव-महोरगाइएहि देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा निग्गथे पावयणे हिस्संकिया णिक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लद्धदा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्टा अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ता 'अयमाउसो ! निगथे पावयणे अछे अयं परम8 सेसे अणठे' ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउर-परघरदारप्पवेसा' चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमा सिणीसु पडिपुण्णं पोसह सम्म अणुपालेता समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंवल-पायपुंछगणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण" य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणा विहरंति, विहरित्ता भत्तं पच्चक्खं ति, ते वहूई भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, "तहि तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा बीरिएइ वा पुरिसक्कार१. सं० पाo...-अपडिविरया एवं जाव परिग्ग- ६. पुरघरदार (क); घरदार (ग)। __हाओ। ७. वत्थगंध (ग)। २. एतादृश्यावृत्तिरन्यवाक्येषु नास्ति । ८. पडिहारिएण (क) । ३. वाचनान्तरे 'सावज्जा अबोहिया' (ब) ! ९. सं० पा०-बाबीसं सागरोवमाइं ठिई आरा४. से जहाणामए ति क्वचित् (वृ) । हगा सेसं तं चेव । तहेव (क, ख)। ५.x (क, ग). Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं परक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? हंता अत्थि ॥ सब्व-विरय-वण्णग-पदं १६३. सेज्जे इमे गामागर'-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा—'अणारंभा अपरिग्गहा" धम्मिया 'धम्माणुया धम्मिट्टा धम्मक्खाई धम्मपलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा सुसीला सुब्बया सुपडियाणंदा साहू, सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरिया' 'सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया, सबाओ मेहुणाओ पडिविरया,° सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया। सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ' 'पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ, पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ° मिच्छादमणसल्लाओ पडिविरया। सव्वाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया । सव्वाओ करण-कारावणाओ पडिविरया । सव्वाओ पयणपयावणाओ पडिविरया। सव्वाओ कोट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह-बंध-परिकिलेसाओ पडिविरया। सव्वाओ ण्हाण-मद्दण-वण्णग-विलेवण-सह-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडिविरया ! जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्मता परपाणपरियावणकरा कज्जंति, तओ वि पडिविरया जावज्जीवाए॥ १६४. 'से जहाणामए" अणगारा भवंति–इरियासमिया भासासमिया 'एसणासमिया आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणिआसमिया मणसमिया वइसमिया कायसमिया मणगुत्ता वइगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी चाई लज्जू धन्ना खंतिखमा जिइंदिया सोहिया अणियाणा अप्पुस्सुया अबहिल्लेसा सुसामण्णरया दंता इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरति ।। १६५. तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं अत्थेगइयाणं अणंते' •अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे समुप्पज्जइ। ते बहूई वासाइं केवलपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खंति, पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे" 'मुडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहि हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटगा वावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति, तमदमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सास णिस्सासेहिं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाण° मंतं करेंति ।।। १६६. जेसि पि य णं एगइयाणं णो केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जइ। ते बहूई १.सं० पा.---गामागर जाव सण्णिवेसेसु । सल्लाओ। २. x (ख, ग)। ७. से जहाणामए ति क्वचिन्न (व) । ३. सं० पा.-धम्मिया जाव कप्पेमाणा। ८. सं० पा०-भासासमिया जाव इणमेव । ४. साहूर्हि (ख)। ५. पडिविरिया जाव सव्वाओ। ६. सं. पा०—अणंते जाव केवलवरणाणदंसणे । ६. सं० पा०-लोभाओ जाव मिच्छादसण- १०.सं० पा०-- नग्गभावे जाव मंतं । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइय-पयरणं वासाई छउमत्थ-परियागं पाउणंति, पाउणित्ता आबाहे उप्पण्णे वा अणुप्पण्णे वा भत्तं पच्चक्खंति । ते वहुई भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता जस्सद्वाए कीरइ नग्गभावे *मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कटूसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटगा वावीसं परीसहोवसग्गा अहिया सिज्जति', तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासे हि अणतं अणुत्तरं निवाघायं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदंसणं उप्पाडेंति', तओ पच्छा सिज्झिहिति' 'बुझिहिति मुच्चिहिति परिणिवाहिति सव्वदुक्खाण° मंतं करेहिति। १६७. एगच्चा पुण एगे भयंतारो पुवकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सव्वसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसिं णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स राहगा? हंता अस्थि ॥ १६८. सेज्जे इमे गामागर'-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्वसंगातीता सम्वसिणेहाइक्कंता अक्कोहा निक्कोहा खीणक्कोहा "अमाणा निम्भाणा खीणमाणा अमाया निम्माया खीणमाया अलोहा निल्लोहा खीणलोहा° अणुपुव्वेणं अटू कम्मपयडीओ खवेत्ता उप्पि लोयग्गपइट्ठाणा भवंति ॥ केवलिससुग्घाय-पदं १६६. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए" केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिटुइ ? हंता चिट्ठइ । से गुणं भंते ! केवलकप्पे लोए तेहि निज्जरापोग्गलेहि फुडे ? हंता फुडे ! छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से तेसिंणिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वणं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो इणठे समठे।। १७०. से केणठेगं भंते ! एवं बच्चइ-छउमत्थे णं मणुस्से तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किचि वण्णेणं वणं 'गंधणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं° जाणइ पासइ ? गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुदाणं सव्वभंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकणियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्ण१. सं० पा०-नग्गभावे जाव तमट्ठमाराहिता! हगा चेव सेसं तं चेव । २. समुष्पाडिति (क)। ७. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेस । ३. सं० पा०-सिज्झिहिंति जाव मंत। ६. ४ (क, ख, ग)। ४. काहिति (ख, ग)। ९. सं० पा०-मागे माया लोहा । ५. तेहि (क, ख, ग)। १०. समोहणइ २ त्ता (क, ख, ग) ६. सं० पा०-तेतीसं सागरोदमाई ठिई आरा- ११. सं० पा०-वणं जाव जाणइ । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ अोवाइयं चंदसंठाणसंठिए, एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलससहस्साइं दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणु सयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलियं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। देवे णं महिड्ढीए महज्जुतीए महब्बले महाजसे महासोक्खे महाणुभावे सविलेवणं गंधसमुग्गयं गिण्हइ, गिण्हित्ता तं अवदालेइ, अवदालेत्ता जाव इणामेव त्ति कटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहि अच्छरा-णिवाएहि तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा। से गूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तेहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ? हंता फुडे । छउमत्थे णं गोयमा ! मणस्से तेसि घाणपोग्गलाणं किचि वण्णणं वणं' 'गंधेण गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं° जाणइ पासइ ? भगवं! णो इणठे समठे। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइछउमत्थे ण मणुस्से तेसिं णिज्जरा-पोग्गलाणं णो किचि वण्णणं वणं' गंधणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं° जाणइ पासइ । एसुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोयं पिय गं ते फुसित्ता णं चिट्ठति । १७१. कम्हा णं भंते ! केवली समोहणंति ? कम्हा णं केवली समुग्धायं गच्छंति ? गोयमा ! केवलीणं चत्तारि कम्मंसा अपलिक्खीणा' भवति, तं जहा-वेयणिज्ज आउयं णाम गोत्तं । सव्ववहए से वेयणिज्जे कम्मे भवइ, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ, विसमं समं करेइ, बंधणेहि ठिईहि य, विसमस मकरणयाए, बंधणेहिं ठिईहि य। एवं खलु केवली समोहणंति, एवं खलु केवली समुग्घायं गच्छति ॥ १७२. सव्वे वि णं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छंति ? णो इण? समठे। ___ 'अकिया ण" समुग्घायं, अणंता केवली जिणा । जरमरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥१॥ १७३. क इसमए णं भंते ! आवज्जीकरणे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते ।। १७४. केवलिसमुग्घाए णं भंते ! कइसमइए पण्णत्ते, ? गोयमा ! अट्ठसमइए पण्णत्ते, तं जहा---पढमे समए दंडं करेइ, वीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छठे समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंड पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता सरीरत्थे भवइ । १७५. से णं भंते ! तहा समुग्घायगए कि मणजोगं झुंजइ ? वयजोगं जुजइ ? कायजोगं जुजइ ? गोयमा ! णो मणजोगं झुंजइ, णो वयजोगं जुंजइ, कायजोगं जुजइ ।। १७६. कायजोगं जुजमाणे कि ओरालियसरीरकायजोगं जुजइ ? ओरालियमीसासरीरकायजोग जुजइ ? वेउव्वियसरीरकायजोगं जुजइ ? वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगमीसासरीरकायजोगं झुंजइ ? कम्मग१, २. सं० पा०--वण्णं जाव जाणई। ५. जाइजरामरणविप्पमुक्का (ख, ग)। ३. 'अवेइया अनिज्जिणा' ति क्वचिद् दृश्यते ६. मीससरीर' (ख, ग); "मिस्ससरीर' (क्वचित्)। ४. अकिरिया ण (ख); अकित्ता णं (क्वचित्) । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं सरीरकायजोग' जंजइ ? गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं जंजइ, ओरालियमीसासरीरकायजोगं पि जुजइ, णो वे उब्वियसरीरकायजोगं मुंजइ, णो वेउन्वियमीसासरीरकायजोगं मुंजइ णो आहारगसरीरकायजोगं जंजइ, णो आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुजइ । पढमट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुजइ, बिइय-छट्ठ-सत्तमेसु समएसु ओरालिमीसासरीरकायजोगं जुजइ, तइय-चउत्थ-पंचमेहिं कम्मसरीरकायजोगं जुंजइ ॥ . १७७. से णं भंते ! तहा समुग्घायगए "सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ" सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ? णो इणठे समझें । से णं तओ पडिणियत्तइ, पडिणियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता तओ पच्छा मणजोगं पि जुंजइ, वयजोग पि जंजइ, कायजोगं पि जुजइ॥ १७८. मणजोगं जुंजमाणे कि सच्चमणजोगं जुजइ ? मोसमणजोगं जुजइ ? सच्चामोसमणजोगं जुजइ ? असच्चामोसमणजोगं जुजइ ? गोयमा ! सच्चमणजोगं जुजइ, गो मोसमणजोगं जुंजइ, णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमणजोगं पि जुंजइ ॥ १७६. वयजोगं जुजमाणे कि सच्चवइजोगं जुजइ ? मोसवइजोगं जुजइ ? सच्चामोसवइजोगं जुजइ ? असच्चामोसवइजोगं जुजइ ? गोयमा ! सच्चवइजोगं जुजइ, णो मोसवइजोग, जुजइ, णो सच्चामोसवइजोगं जुजइ, असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ ।। १८०. कायजोगं जुजमाणे आगच्छेज्ज वा चिट्ठज्ज वा णिसीएज्ज वा तुय?ज्ज वा उल्लंघेज्ज वा पल्लंघेज्ज वा, उक्खेवणं वा अवक्खेवणं वा तिरियक्खेवणं वा करेज्जा, पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणेज्जा ।। जोग-निरोह-पदं १८१. से णं भंते । तहा सजोगी सिज्झइ 'बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाण° मंतं करेइ ? णो इणठे समढें ॥ १८२. से णं पुत्वामेव सण्णिस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स' हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं निरंभइ, तयाणंतरं च णं बिदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरंभइ, तयाणंतरं च णं सुहमस्स पणगजीवस्स' अपज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स" हेट्टा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ । से णं 'एएणं उवाएणं पढम मणजोगणिरुंभइ, णिरुभित्ता वयजोगं १. कम्मसरीर' (क); कम्मासरीर (ख, ग)। ६. जहण्णमणजोगिस्स (ख); जहण्णनोगस्स २. सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिवा- (ग)। हिइ (क, ख, ग)। ७. पंचिदियस्स (क, ख)। ३. पक्खेवणं (क)। ८. जहण्णवयजोगस्स (ख) । ४. सिज्झिहिति (क, ख, ग); सं० पा०- ६. पणमस्स (क)। सिज्झइ जाव मंतं । १०. जहण्णकायजोगस्स (ख, ग)। ५. करिहिति (क, ख)। ११. पउत्तेणं उवाएणं (क)। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ओवाइय गिरंभइ, गिरंभित्ता कायजोगं णिरंभइ, गिरंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगतं' पाउणइ, पाउ णित्ता ईसिंहस्स पंचक्खरुच्चारणद्धाए' असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं' सेलेसि पडिवज्जइ । पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहिं अणते कम्मंसे खवयंतो वेयणिज्जाउयणामगोए इच्चेते चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ, खवेत्ता ओरालियतेयकम्माई' सव्वाहि विप्पजहणाहि विप्पजहित्ता' उज्जुसेढीप डिवण्णे अफुसमाणगई उड्ढ" एक्कसमएणं अविग्गहेणं गंता' सागरोवउत्ते सिज्झइ || सिद्ध-वण-पदं १८३. ते णं तत्थ सिद्धा हवंति सादीया अपज्जवसिया असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्टियद्वा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्ध' चिट्ठति । १८४. से केणट्ठणं भंते ! एवं बुच्चइ - ते णं तत्थ सिद्धा भवंति सादीया अपज्जवसिया" "असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्ठियट्ठा निरेवणा नीरया गिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं° चिट्ठति ? गोयमा ! से जहाणामए बीयाणं अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुपत्ती ण भवइ, एवामेव सिद्धाणं कम्मबीए दड्ढे पुणरवि जम्मुप्पत्ती न भवइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - ते णं तत्थ सिद्धा भवंति सादीया अपज्जवसिया " "असरीरा जीवषणा दंसणणाणोवउत्ता निट्टियट्ठा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमा गयद्धं° चिट्ठेति ॥ १८५. जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि संघयणे सिज्झति ? गोयमा ! वइरोभणारायसंघयणे सिज्झति ॥ १८६. जीवा णं भते ! सिज्झमाणा कयरम्मि संठाणे सिज्झति ? गोयमा ! छण्ह संठाणाणं अण्णयरे संठाणे सिज्झति ॥ १८७. जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि उच्चत्ते सिज्झति ? गोयमा ! जहणेणं सत्तरयणीए उक्कोसेणं पंचधणुसइए सिज्झति ॥ १८८. जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिज्झति ? गोयमा ! जहष्णेणं साइरेगट्ठवासाउए, उक्कोसेणं पुव्वकोडियाउए सिज्झति ॥ १८६. अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणट्ठे समट्ठे । एवं जाव" अहसत्तमाए ॥ १६०. अस्थि णं भंते! सोहम्मस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणट्ठे समट्ठे । एवं सव्वेसि पुच्छा - ईसाणस्स सणकुमारस्स जाव" अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं १. अजोगयं (वृ) | २. ईसिपंच रहस्सक्खरुच्चारणद्धाए ( ख, ग ) । ३. अंतमुत्तं ( ग ) । ४. खवेइ ( ख ) । ५. तेयाकम्माई (क, ग) 1 ६. विप्पजहइ, २ ता (क) । ७. X (बु) 1 ८. उड्ढं गंता (बु) । ६. मणागयद्धं कालं ( ख ) 1 १०, ११. सं० पा० अपज्जवसिया जान चिट्ठेति । १२. भ० २७५ । ११. ओ० सू० ५१ । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fterse-ter अत्तरविमाणा || १६१. अस्थि णं भंते ! ईसीप भाराए पुढदीए अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणट्ठे समट्ठे ॥ ईसीप भारापुढवी- वण्णग-पदं १९२. से कहि खाइ णं' भंते ! सिद्धा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-ग्गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं' बहूई जोयणाई, बहूई जोयणसयाई, बहूइं जोयणसहस्साई, बहूई जोयणसयसहस्साई, बहूओ जोयकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण सणकुमारमाहिद- बंभ-लंतग- महासुक्क सहस्सार आणय-पाणय-आरण-अच्चुए तिणि य अट्ठारे गेविज्जविमाणावाससए वीईवइत्ता विजय वैजयंत- जयंत अपराजिय- सव्वट्टसिद्धस्स य महाविमाणस्स सव्वुबरिल्लाओ' यूभियग्गाओ दुवालसजोयणाई अबाहाए एत्थ जं ईसीप भारा णाम पुढवी पण्णत्ता-- पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयाम - विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोणि य अउणापणे जोयस किचि विसेसाहिए परिरएणं । ईसीपन्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, तयाणंतरं च गं मायाए-मायाए * परिहायमाणी - परिहायमाणी सव्वेसु चरिम-पेरंतेसु मच्छियपत्ताओ तणुयतरी' अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ता || १९३. ईसीप भाराए णं पुढवीए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ईसीइ वा ईसीभाइ वा तणूइ वा तणुयरी' वा सिद्धीइ वा सिद्धालएइ वा मुत्तीइ वा मुत्तालएइ वा लोयग्गेइ वा लोयग्गभिगाइ वा लोयग्गपडिबुज्झणाइ वा सव्वपाण-भूय-जीव-सत्तसुहावहाइ वा ॥ १९४. ईसीप भारा णं पुढवी सेया संखतल' - विमलसोल्लिय'- मुणाल " - दगरय- तुसारगोक्खीर-हारवण्णा उत्ताणयछत्तसंठाणसंठिया सब्वज्जुणसुवण्णगमई अच्छा सहा लहा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्वंका णिक्कंकडच्छाया समरीचिया" सुप्पभा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ सिद्ध-वण्णग-पदं १६५. ईसीप भाराए णं पुढवीए सीयाए जोयणमि लोगंतो । तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो " सादीया अपज्जवसिया 'अणेगजाइ जरा मरण- जोणि-वेयणं संसारकलंकली भाव-पुणभव १. x (क, ख, ग ) । २. ताराभवणाओ ( ग ) । ३. सम्बुप्परिल्लाओं (क, ग) । ४. माताए पएसपरिहाणीए ( पण्ण० २२६४) । ५. तनुयरी ( ग ) ! ६. तणुतणूई ( क ) ; तणूअरीइ ( ग ) । ७५ ७. पडिपुच्छणाइ ( ग ) | ८. आयंस (वृ); संखतल ( वृपा ) 1 ६. विमलसोत्थिय ( पण्ण० २।६६ ) । १०. मुदालिय ( ख ) । ११. समीरिचिया ( क ) । १२. भगवंता ( ग ) । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ गन्भवासवसही-पवंचं अइक्कंता" सासयमणागयद्धं चिट्ठति । कहि' पहिया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पट्टिया ? | कहि वोंद चइत्ताणं, कत्थ गंतूण सिज्झई ? ॥१॥ अलोगे पहिया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया । इहं बोंदि चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई ||२|| जं संठाणं तु इहं, भवं चयंतस्स चरिमसमयं मि' । आसी य पएसघणं, तं संठाणं तह तस्स ||३|| दीहं वा हसं वा जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । ततो तिभागहीणा, सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥४॥ तिष्णि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ||५|| चत्तारि य रयणीओ, रयणितिभागूणिया य बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ ६ ॥ एक्का य होइ रयणी साहीया' अंगुलाई' अट्ठ भवे । एसा खलु सिद्धाणं, जहण्णओगाहणा भणिया ||७|| ओगाहणाए सिद्धा 'भव-तिभागेण" होंति परिहीणा । संठाणमणित्थंथं, जरामरणविप्प मुक्काणं ॥ ८ ॥ जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अनंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोष्णसमोगाढा, पुट्ठा सव्वे य लोगं ॥६॥ फुसइ अणते सिद्धे, सव्वपएसेहि नियमसा' ते वि असंखेज्जगुणा, देसपएसेहि जे सिद्धो । पुट्ठा ॥ १०॥ असरीरा जीवघणा, उवउत्ता दंसणे य णाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु केवलणाणुवउत्ता" जाणंती पासंति सव्वओ खलु सिद्धाणं ॥११॥ सव्वभावगुणभावे । केवलदिट्ठीहि" ताहि ॥ १२ ॥ 'अणेगजाइज राम रणजोणि १. पाठान्तरमिदम् संसारकलंकलीभाव पुणग्भवगन्भवा सवसहिपवंचसमइक्कंत' त्ति (वृं) । २. कालं चिट्ठति ( पण २१६७ ) ३. अतः पूर्व प्रज्ञापनायां ( २२६७ ) एषा गाथा दृश्यते--- तत्थ विय ते अवेदा, अवेदणा निम्ममा असंगया य । संसारविप्प मुक्का, पदेसा निव्वत्तसंठाणा ॥ १॥ ४. चरम' ( ख ) । ५. हुस्सगं ( ख ) । ६. साहिया ( ख ) । ७. अंगुलाई ( क, ख ) 1 ८. भव-भागेण ( ख ) 1 ९. नियमसो ( ग ) । १०. केवलनाणोउवत्ता (ख) ११. केवलदिट्ठीहि (ग) 1 मोवाइय Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोवाइय-पयरन ण वि अस्थि माणुसाणं तं सोक्खं ण वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं, अव्वाबाहं उवगयाणं ॥१३॥ जं देवाणं सोक्खं, सव्वद्धापिडियं अणंतगुणं । ण य पावइ मुत्तिसुहं, ताहिं' वग्गवग्गूहिं ।।१४।। सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्वापिंडिओ जइ हवेज्जा। सोणंतवग्गभइओ, सव्वागासे ण माएज्जा ॥१५।। जह णाम कोइ मिच्छो, नगरगुणे बहुविहे वियागंतो। न चएइ परिकहेउं, उवमाए तहिं असंतीए ॥१६॥ इय सिद्धाणं सोक्खं, अणोवम णत्थि तस्स ओवम्म । किंचि विसेसेणेत्तो, ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं ॥१७॥ जह सव्वकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हाछुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥१८॥ इय सव्वकालतित्ता, अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वावाह, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥१६॥ सिद्धत्ति य बुद्धत्ति' य, पारगयत्ति य परंपरगय त्ति । उम्मुक्क-कम्म-कवया, अजरा अमरा असंगा य ॥२०॥ णिच्छिण्णसव्वदुक्खा, जाइजरामरणबंधणविमुक्का । अव्वाबाहं सुक्खं अणुहोती सासयं सिद्धा ॥२१॥ अतुलसुहसागरगया,' अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता । सव्वमणागयमद्धं, चिट्ठति 'सुही सुहं पत्ता" ॥२२॥ प्रन्थ-परिमाण अक्षर-परिमाण : ४८४१६ अनुष्टुप-श्लोक : १५१३ अक्षर ३ १. अणंताहिं वि (ख)। २. बुद्धित्ति (ख); बोद्धत्ति (ग)। ३. प्रज्ञापनायां (२०६७) एषा गाथा नव दृश्यते । ४. सुह संपत्ता (ख)। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार-स्थल निर्देश ओवाइयं पूर्ति आधार-स्थल सूत्र पूर्त-स्थल सूत्र ११७ १५७ ~ 2. > WP ~ .. ८६ १५३ १४६ १८३ ११७ वृत्ति, पृष्ठ १८८ १०५ संक्षिप्त-पाठ अगामियाए जाव अडवीए अद्रारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहया सेसं तं चेव अणंते जाव केवलवरणाणदंसणे अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि अपज्जवसिया जाव चिट्ठति अपडिविरया एवं जाव परिग्गहाओ अभिगय जीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, णवरं ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी' एयं ण बुच्चई अयबंधणाणि वा जाव महद्धणमोल्लाई अवहमाणए जाव से असंजए जाव एगंतसुत्ते आगमेसिभद्दा जाव पडिरूवा आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी आयारधरा जाव विवागसुयधरा आवलियाए जाव अयणे इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी उदए जाव झीणे एक्कतीसं सागरोवमाइंठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चेव एवं एएणं अभिलावेणं तिरिक्खजोणिएसु एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं १. क्वचित्-'चियत्तघरतेउरपवेसी' ति (व) । १२० १०६ १३७ ८५,८७ ७२ ८४ वृत्ति, पृष्ठ १५३ नंदी सू०२ नंदी सू० ७६ वृत्ति, पृष्ठ ६८ १५२ ११७ ० ० Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० ११७ ११७ १६८ ११८ ११८ ११८ 9 एवं जाव सव्वं परिगह एवं माण माया लोहा १६८ एवं सुपण्णत्ते सुभासिए सुविणीए सुभादिए एवमाइक्खइ जाव एवं ११८ एवमाइक्खामि जाव परूवेमि कंदमंते जाव पविमोयणे कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियन्वो जाव सिविय कंपिल्लपुरे जाव घरसए करयल जाव एवं करयल जाव कट्ट २१,११७ गामागर जाव सण्णिवेसेसु ६१ से १३,९५,९६ १५५,१५८ से १६१, १६३,१६८ घरसए जाव वसहि चंदण जाव गंधवट्टिभूयं ५५ जावज्जीवाए जाव परिग्गहे णवरं सव्वे मेहणे पच्चक्खाए जावज्जीवए णमंसित्तए वा जाव पज्जुवासित्तए पहाए जाव अप्प० व्हायाको जाव पायच्छित्ताओ तं चेव पसत्यं णेयवं, एवं चेव वइविणओवि एएहि पएहि चेव णेयव्यो। तं चेव सब्वं णवरं चउरासीइ वाससहस्साई ठिई पण्णता तं चेव सव्वं णवरं ठिई चउद्दसवाससहस्साई तित्थगरस्स जाव संपाविउकामस्स तिदंडए य जाव एगते ११७ तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई आराहगा चेव सेसं तं चेव १६७ तेरस सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव १५५ दस सागरोवमाइंठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव दस सागरोवमाई टिई पण्णत्ता सेसं तं चेव ११४ देवेस.......... धम्मिया जाव कप्पेमाणा १६३ नग्गभावे जाव तमद्रुमाराहित्ता १६६ नम्गभावे जाव मंतं नडपेच्छा इ वा जाव मागहपेच्छा १०२ . . . 0 0 9 0 0 0 १५४ १५४ त Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२१ १४८ ११६ ११७ ठाण ११११४-१२५ ११८ १४ १५६ १६४ भगवती २११ पंडियं जाव अलंभोगसमत्थं १४६ पगइभद्दयाए जाब विणीययाए पडिविरया जाव सव्वाओ १६३ परिग्गहवेरमणे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे परिव्वायए जाव वसहि ११८,११६ पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं ठिई से सं तं चेव पाक्यणे जाव किमंग ८०.८१ पीइमणे जाव यिए ६२ बावीसं सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसंत चेव १५८ बावीसं सागरोवमाई ठिई आराहगा सेस त चेव" १६२ बाबीसं सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चेव भासासमिया जाव इणमेव मणुस्सेसु""""" ७३ महिडिढएसु जाव महासोक्खेसु महिदिया जाव चिरट्टिइया मूलभोयणे इ वा जाव बीयभोयणे लउया जाव णंदिरुक्खा लोभाओ जाव मिच्छादसणसल्लाओ लोभे अस्थि जाव मिच्छादसणसल्ले वण्णं जाव जाणइ १७० वहमाणए जाव णो ११२,११३ वहमाणए जाव णो १३८ सगडं वा एवं तं चेव भाणियध्वं जाव णण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए १२३-१३३ सगडं वा जाव संदमाणियं सच्चेव हेछिल्ला वत्तव्वया जाव णिसीयइ ५३,५४ सिज्झइ जाव मतं १८१ सिभिहिति जाव मंतं सुकुमालपाणिपाए जाव ससिसीमाकारे १४३ सेस तं चेव जाव चउसद्विवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ६२ सेस तं चेव वरं पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं ठिई १५ हट्टतुट्ट जाव हियए २१,५३,५६,६३,८० हट्ठतुट्ठ जाव हियया २०,७८ ठाणं १११००-१०७ १६६ १११ १३७ १००-११० वृत्ति, पृष्ठ १७६ २०,२१ १७७ १५४ ० ० McK १. तहेव (क, ख)। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ ७ हट्टतुटु जाव हिययाओ हयगय जाव सण्णाहियं हारविराइयवच्छा जाव पभासेमाणा रायपसेणइयं १३०; जी० २६४ ७५० ७७४ ७६५ ७७४ वृत्ति, पृष्ठ २२५ १५७ अंकामया"उवरिपुंछणीओ १६० अकंताहिं जाव अमणामाहिं अगामियाए जाव अडवीए ७७४ अगामियाए जाव किंचि अग्गमहिसोहिं जाव सोलसहि अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ २४०,२७६ अच्छं जाव पडिरूवं ३२,३४,३६ अच्छाई जाव पडिरूवाई अच्छाओ जाव पडिरूवाओ अच्छे जाव पडिरूवे अज्झस्थिए जाव संकप्पे ७६८ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था ६८८,७३२,७३७,७७७,७६१,७६३ अज्झत्थियं जाव संकप्पं अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं २७६,७४६ अजोयगाई........ अट्टाई जाव पुच्छइ ७१६ अडवि जाव पविट्ठा अड्ढे जाव बहुजणस्स ६७५ अणगारसएहिं जाव विहरमाणे ७११ अणियाहिवइणो जाव अण्णेवि २८० अणेगखंभसयसण्णिविट्ठं जाव जाणविमाणं अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते ७६२,७६३ अण्णत्ते वा... लहुयत्ते ७६२ अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि अण्णया जाव चोरं अरिय जाव सव्वतो अप्पेगतिया गयगया जाव पायविहारचारेणं ६८८ अभवसिद्धिए जाव चरिमे अभिगमेणं जाव वंदइ ७७८ २६१ २४४ ७१६ ७६५ ओ० १४ ६८६ Mur ओ० ५२ ६२ ओ०६६ १. वृत्ती विशेषणानि किञ्चिदन्यूनानि दृश्यन्ते । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ ६१८ ७६४ ७६० ७६४ ७८७ ७६४ ओ०८,१३ ३,४ ७१३ ७७४ mero ७१६ १८३ २६६ २६४ २६१ अभिगयजीवाजीवे...विहरइ अभिगथजीवा सव्वो वण्णओ जाव अप्पाणं अयभारगं वा जाव परिवहित्तए असणं जाव अलंकार असणं जाव साइम असोयबरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया उववाइयगमेणं नेया अहापडिरूवं जाव विहरइ आइण्णं तं चेव जाव सहावेत्ता आपूरेमाणाओ जाव चिह्रति आपूरेमाणा जाव चिट्ठति आराम वा जाव पवं आरामगयं वा तं चेव सव्वं भाणियव्वं आइल्लएणं गमएणं जाव अपाणं आलिघरगेसु जाव आयंसघरगेसु आसत्तोसत्त... कयग्गहगहिय..."धूवं आसत्तोसत्त जाव धूवं आसयंति जाब विहरंति इठं जाव फुसंतु इटुसराए चेव जाव गंधेणं इट्ठत राए चेव जाव फासेणं इट्टतराए चेव जाव वष्णे इट्टतराए चेव जाव वण्णेणं इठे... किमंग इरियासमिए जाव सुहुयहुयासणे इहमागए जाव विहरइ ईसर-तलवर जाव सत्थवाह उक्किट्ठाए जाव जेणेव क्किट्ठाए जाव तिरियमसंखिज्जाणं उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणा उच्चत्तेणं वण्णओ उच्छुब्भइ जाव अरमणिज्जे उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई उपायपब्वएमु पक्खंदोलएसु उम्मुक्कबालभावं जाव वियालचारि उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह १८५ ओ०११७ २६ से २६ ७५३ ८१३ ७५० ओ० २७ ६८७ २१० ७८५ २८८ १८१ ८१० ६८१,७१४ २०६ ७८५ १६७ १८० ८०६ ६८२ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ६८१,६८२ ७२५ ७५४ ७२४ ७५६ ७६६ ७१६ ३१० जी० ३१३३६ ७१६ ३०५ २७६ ३०५ ७१६ ७७१ २९४ ७१६ ७७१ ६८३ ७८ ७८ ७७२ ७६४ ७७२ ७६५ ७७४ १४२-१४४ ७७४ उवट्ठवेह जाव सच्छत्तं उवटुवेंति उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि उवट्ठाणसालाए जाव विहरामि उबवायसभाए जाव उववणे उवस्सयगयं. उवागच्छइ तं चेव उवागच्छंति तहेव जेणेव उवागच्छित्ता"थूभं एएण वि जाव लभइ एयंतं जाव तं तं एयम→ जाव हियए एवं अभए सिंगारे उराले मणुण्णे एवं आहार-नीहार-उस्सासन्नीसास-इढि-महज्जूइ अप्पत राए चेव एवं जाव संखेज्जहा एवं तंबागरं रुप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं एवं पंतीओ वीही मिहुणाई एस जाव नो एस सण्णा जाव एस समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे.... एस सष्णा""तयाणंतरं ओराले... चउदसपुवी ओहिनाणं भवपच्चइयं खोवसमियं कंखंति जाव अभिलसंति कंते जाव पासणयाए कते जाव मणामे कयग्गहगहिय जाव धूवं कयग्गहगहिय जाव पुंजोबयारकलियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव लंकिया कयबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छेइ कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव चाउम्घंटे जाव दुरुहिता सकोरेंट""महया भडचडगरेणं तं चेव ७६४ ७४६ ७५०,७७३ ७७३ ७७३ १४१ ७५४ ७४८ ७४८ ७७३ ७७३ मो० ८२; भ० १६ नंदी ७ ७४३ ७१३ ७५१,७५२ ७७४ २६५ २६३ ७२० २९४ ६६२ ८०२ ७६५ ६६२ ६९२ १. अंतराए (क,ख,ग,घ,च,छ) । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२५ ६६२-६६४ ७१३ MPS ४६ १७० जाव पज्जुबासइ । धम्मकहाए जाव तए णं ७१६,७१७ करयल जाव कट्ट ७२३ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वढावेत्ता ७०८ करयलपरिगहियं जाव एवं ७०७ करयलपरिग्गहियं जाव कटु ६८३ करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पिणति करयलपरिगहियं जाव पडिसुणेइ करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करेमिणो ७६४ कलकलरवेणं" एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया ६८८ कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं कल्लं जाव तेयसा ७८८ कालागरुपवर जाव चिट्ठति २३६ किण्हचामरज्झए जाव सुविकल्लचामरझए किण्होभासा..." किण्होभासे जाव पडिरूवे ७०३ कुसुमियाओ सव्व रयणामईओ कोडुबियपुरिसा जाव खिप्पामेव ७१५ कोरव्वा जाव इब्या कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं ७६६ खुड्डागमहिंदज्झए तं चेव ३५४ गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ ७८३ गिहित्ता तहेव जेणेव २७६ गोसीसचंदणेणं.. पुप्फारहणं आसत्तोसत्त.."धूवं चरमाणे समोसढे जाव विहरइ ७१३ चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव वीतिवयमाणा २७६ चालेइ जाव णो गंधवो ७७१ चित्तमाणदिए जाव परमसोमणस्सिए छिज्जइ जाव तया णं ७८४ छिडेइ वा जाव अणुपविट्ठा छिड्डेइ वा जाव निग्गए छिड्डेइ वा जाव राई ७५४ से ७५६ छिड्डेइ वा. जेणं जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ ६८७ वृत्ति, पृष्ठ २८६ २७६ ওওও १३२ वृत्ति, पृष्ठ ८० ओ०४ ओ०४ ओ०५ ६८२ वृत्ति, पृष्ठ २८५ ओ० ११७ स ३५२ ७८३ २७६ २६४ ७१३ ওও? m ७५६ G 6 CcX1 6 6 ७५४ ७५६ ७५४ ७५४ ७५७ ७५४ ओ० ५२ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जराजज्जरियदेहे जाव परिकिलते जहा मणोगुलिया जाव णागतया ७६० २३६ जाइमंडवसु जाव मालुया मंडव एसु १८५ ४८ ६५ ३१७-३२० ७५५,७५६, ७७१, ७७२ ७६०,७६१ १८ जाणविमाणं जाव दाहिणिल्ले जाणह जाय उनदंसितए जिणपडिमा तं चैव जीवो तं चैव जुजाव किल जोयणाई जाव अहावायरे जोयणाई जाब दोच्चं णामणिद्वाहि जाव णाश्मणामाह गाह जाय परिजणं पाइ जाव परिजणेण णि कुसुमियाओ.... गोवलिपिहिति...मित्त पहाए जाव उप हाए जाव सरीरे सकोरेंट महया हाए जाव सव्वालंकारभूसिएर्ण म्हापस जा पायच्छि तउपमंडे जाव मणामे डेजाव सुबह तज्जीवो तं चैव तत्थुपलाई जाव सहस्स पत्ताई २७६ ७६७ २०२ ८०२ १४५ ८११ ७१० ७०० E ७५१ ૩૨૪ ७७४ ७७४ ७५८, ७६२ २७ε ७५८,७५९ तरुणे जाव सिप्पांव गए तहेव केवलनाणं सव्यं भाणियध्वं ७४५ १२ तितो जान वंदिता तिद्वाणकरणसुद्धंपनीयाण तेणेव तहेव जेणेव तेलसमुम्गाणं जाव अंजणसमुग्गाण तारणाण भया छत्ताइछत्ता य यव्वा १७३ २७६ २५८,२७१ १७६-१७६ दक्खा जाव उवएसलढा दप्पणा जाय पडिवा दलयई जाव कूडागारसालं दाहिणिले दारे तहेव अभिसेयसभासरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्लरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छ २ता तोरणे व तिसवाणे य सालि ५२६ ७७० २१ ७८८ ७६० २३५ १८४ ४८ ६३ ३०६-२०१ ७५३ ७६० १० १० ७५० ८०२ ८०२ ओ० १२ ओ० १५० ७७४ ६६२ ७५१ ६१२ ७७४ ७७४ ७५२ ११७ १२ नंदी २६ १० ७६ २७६ १६१ २०-२३ ७६६ वृत्ति, पृष्ठ १९ ७८७ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२७ ३५७-६५३ २६४-३५० २६६-२६६ ३३४-३३७ ७५३ ७५३ ७०३ ७०३ भंजियाओ वालरूवए य तहेव, जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तहेव सीहासणे च मणिपेढियं च सेसं तहेव आययणसरिसं जाव पुरस्थिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता जहा अभिसेयसभा तहेव सब्वं जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तहेव लोमहत्थयं परामुसइ पोत्थय रयणे लोमहत्थएणं पमज्जइ २ ता दिवाए दगधाराए अग्गेहि वरेहि य गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ २ ता मणिपेढियं सीहासणे च सेसं तं चेव, पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ २ ता तोरणे य तिसोवाणं य सालिभंजियाओ य बालरूवए य तहेव। दाहिणिल्ले दारे पच्चस्थिमिल्ला खंभपंती उत्तरिल्ले दारे तं चेव पुरथिमिल्ले दारे तं चेव दिन्वेहि जाव अज्झोववण्णे दुपय जाव सिरीसिवाणं दुहाफालिए वा जाव संखेज्जहा दुहाफालियंसि वा जोति देवसयणिज्जे तं चेव देवा जाव अब्भणण्णायमेयं देविडिट जाव दिव्वं देविड्ढी जाव देवाणुभागे देवे जाव पच्चप्पिणंति धम्मस्थिकायं जाव णो धम्मिए जाव विहराहि धम्मिया जाव वित्ति नमसइ जाव पज्जुवासेइ नमसामि जाव पज्जुवासामि नमंसिस्संति जाव पज्जुवाससिस्संति नागदंता तं चेव जाव गपदंतसमाणा नानामणि जाव पीवरं निसिरति अहाबायरे अहासुहमे दोच्चंपि वेउब्वियसमुग्धाएणं जाव बहुसम" पइण्णा तहेव ७६५ or mr 6XY x ७६५ ७६५ वृत्ति, पृष्ठ २३५ ३५३ x . ६५५ ७७१ ७५२ ७५२ ६६७ १२ ७७१ ७५२ ७१६ ७०४ १३२ ती ७६० Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o००४ Norm ओ० ११ ओ० ११ ओ० १५० ७५३ ७५३ ७५७ ६६३ ६६३ ३०१ से ३०४ ७३७ ७३२ ७३२ ७३२ १४२-१४५ १६३-१६६ २३३ १७४ पउमलयाओ जाव सामलयाओ पउमलयापविभत्ति जाव समलयापवित्ति पउमे इ वा जाव सयसहस्सपत्ते इ वा पएसी तं चेव पएसी ! तहेव पच्चक्खाए जाव परिग्गहे पच्चक्खामि जाव परिम्गह पच्चथिमिल्ले दारे तं चेव, उत्तरिल्ले दारे तं चेक, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे तं चेव पज्जुवासंति जाव पवियरित्तए पज्जुवासंति जाव बूया पडिरूवा जाव पंतीतो वीहीतो मिहणाणि लयाओ पण्णताओ.... पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं पत्तं वा तहेव पत्तठे जाव उवएसलद्धे पाडिहारिएणं जाव संथारएणं पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि पासाईयाओ... पासाईयाओ जाव चिठ्ठति पासादीए जाव पडिरूवे पासादीया जाव पडिरूवा पासायवरगए जाव विहरतो पासायवरगए जाव विहरमाणे पिहावेमि जाव पच्चइएहिं पीढफलग जाव उवनिमंतिज्जाह पुण्णोवचयं जाव उववज्जिहिसि पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाई जाव लोमहत्थपडलगाई पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं पुप्फारुहणं ""आसत्तोसत जाव धूवं पुरिसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता पेच्छाघरमंडदे एवं थमे जिणपडिमाओ चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदापुक्खरिणी ७६५ ७१३ ७५० ७५० १३६ १३३ ६६८,६७० जी० ३१३०३ २१ ७७४ ७७४ ७०४ ७५२ ७७४ ७७४ ७५६ ७०६ ७५२ २५८,२७६ १५७ २५८,२७६ ३००,३०५,३५५ ७८८ १५६ १५६ २६४ ७८७ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२९ तं चेव जाव धूवं दलइ २ ता ३३८-३५० वृत्ति, पृष्ठ २६४; सू० ३००, २६६, २६७,२६६, २६६, ३०५, ३०६,३०६, ३०६,३०६, ३१०, ३११, ७८६ ६८५ 1 GM ७५४ ७५४ ७८१ २१३ २१,२२,२३ नंदी २३ ७६५ २६४ पोसहोववासस्स जाव विहरिस्सामि ७८७ फरिस जाव विहरइ ७१० फरिस जाव विहरति ७७४ बहूहि य जाव देवेहि २६१ बाले जाव मंदविण्णाणे ७५८,७५६ भंते जाव नो ७६२ भंते जाव विहरामि ७६२ भंते..."वणसंडे ७८२ भूमिभागा उल्लोया मंगलगा सज्झया जाव छत्तातिछत्ता १६६,१६७,१६८ मणपज्जवणाणे ७४४ मणसंकप्पं जाव झियायमाणं मणसंकप्पे जाव झियायसि ७६५ मणिपेढियं च....दिवाए ३०५ महच्चपरिसाए जाव धम्म ওও महत्थं जाव उवणेइ महत्थं जाव गेण्हइ ७०८ महत्थं जाव पडिच्छइ ७०६ महत्थं जाव पाहुडं ६८०,६८१,६८३.६८४,६६६,७०० महत्थं जाव विसज्जिए । तं चेव जाव समोसरह ७०२ महयाहिमवंत जाव विहरइ ६७१ महाकम्मतराए चेव तं चेव महाकिरिय जाव हता ७७२ महावीरं जाव नमंसित्ता ७४ महिंदज्झए....तं चेव ३११ महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया महिड्ढीए जाव महाणुभागे माहणं वा जाव पज्जुवासेइ ७१६ मित्त जाव परिजणस्स ८०२ मुच्छिए जाव अज्झोववणे ७०० ६८ ६८४ ७०० ओ० १४ ७७२ ૭૭૨ ७७२ १८६ ओ० ४७ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ७६१ ७६१ १२ १० ७७७ ওওও १० १६५ १२ ६८० जी० ३।२६४ ६२ १९० ७७५ ६८६ ७८६ ७८७ २११-२१४ १४८ ओ० ५२; राय०६८८ ७८१ ७५१ २०६,२१०,२३७,२५१ १३१ ७६७ ७७६,७७७ ७६८ १७५,१८० २७६ १७४ रज्जं च जाव अंतेउरं रहें जाव अंतेउरं रयणाणं जाव रिद्वाणं रयणीए जाव तेयसा रयणेहिं जाव रिोहिं रायंगणं वा जाव सम्वतो रायकज्जाणि य जाव रायववहाराणि वइरामया सुवण्णरुप्पामया फलगा नाणामणिमया वंदइ जाव एवं वंदणवत्तियाए जाव मया वणसंडे इ वा.... वणसंडे इ वा जाव खलवाडे वण्णओ सभाए सरिसो वरकमलपट्टाणा जाव महया वरकमलपइट्टाणा तहेव बामेणं जाव वट्टित्ता वामेणं जाब विवच्चासं वावीणं जाव बिलपंतियाणं वासधरपब्वया तहेव जेणेव विउलेणं जाव पडिलाभेइ विविहतारारूवोवचिया जाव पडिरूवा वीसाएमाणा जाव विहरंति संखंक....सव्वरयणामया संठिय जाव जोयणसहस्समूसिएणं सच्छत्तं जाव चाउग्घंट सण्णद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवेत्ता सद्द जाव विहरइ सद्दहेज्जा....जहा अण्णो जीवो तं चेव सद्दहेज्जा तं चेव सद्दहेज्जा तहेव समज्जिणित्ता जाव देवलोएसु समणं वा जाव पज्जुवासेइ समणं वा तं चेव जाव एएण समण जाव परिभाएमाणे समागा जाव पडिसुणेत्ता समिद्धे... समुदया जाव सिरीए २७६ ७१६ २० २२२ ८०२ १६० ५२ ६८१ ६८३ ७६१ ६८३ ओ०१५ ७५६,७५८ ७६२,७६४ ७५४ ७५४ ७५२ ७५२ NMMs. ०४ Wwxx ७१६ ७८७ ६६८ ० Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ ७५२ ७७१ २७६ २७६ २७६ ओ०६७ ७५४ ६८७ ७७२ ४६ २१ २८३ वृत्ति, पृष्ठ २६६ ८०१ ३५२ ओ०१५ ७५१ ७५२ ७५० २३१ सरीरं तं चेव ७५६,७६४ सरूविस्स जाव ससरीरस्स ७७१ सव्वंतरणईयो जेणेव २७६ सव्वतूयरे तहेव जेणेव २७६ सव्वतूयरेहिं जाव सम्वोसहिसिद्धत्थएहि २५० सचिड्ढीए जाव (णा) नाइयरवेणं १३,६५७ ससक्खं जाव उवणेति सामाणियसाहस्सीहि जाव सोलसहि सिंघाडग""महया जणसद्देइ वा परिसा ७१२ सिया जाव गंभीरा सिरिवच्छ जाव दप्पणा सीहासणे जाव सण्णिसणे २८६ सीहासणे ते व सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे सुकुमालपाणिपाया धारिणी वण्णो ६७२ सुबहु जाव उववण्णा ७५३ सुबहुं जाव उववणे सुसिलिट्ठ जाव पडिहवे २४७ सुरियाभविमाणवासिणो जाव देवीओ २८६ सोच्चा जाव हट्ठ....उट्ठाए जाव एवं ७०० सोत्थियं जाव दप्पणं २६१ हंसासणाई जाव दिसासोवस्थियासणाई हट्ठ जाव करयल जाव पडिसुणंति हट्ठ जाय जेणेव हट्ट जाव पडिसुणेत्ता हट्ट जाव भवह ७१३ हट्ठ जाव समणं हट जाव हियए ४७,६६५,७१० हट्ठ जाव हियया १२,२७६ हतुटु जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे ७२६ हट्ठतुट्ठ जाव आसणाओ ७१४ हट्ठतुट्ठ जाव सूरिया २६० हट्ठतुट्ठ जाव हियए १३,१४,१७,१८,६२,२७७, ६६०,७१३,७१६,७२५,७७८ हट्ठतुटु जाव हियया १०,१६,२८१,७०७,७१३,७७४ हट्टतुट्ठ तहेव एवं हत्यच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ ७५१ हत्थेण वा जाव आवरेत्ताण ७१३ ६६५ १८३ १८१ ७४ ६८१ १ ६६५ ७५१ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हयकंठाणं जाव उसभकंठाणं हयसंघाडा जाव उसभसंघाडा हिरणं तं चेद जाव पव्वइत्तए २५८ १६२ ६६५ १५५ १४१ ६६५ जीवाजीवाभिगमे अकंततरगा चेव जाव अमणामतरगा ३१८४ अणिट्ठा जाव अमणामा अपढमसमयबेइंदिया जाव पढमसमयपंचिदिया ६१ अप्पा वा एवं जाव विसे साहिया ५११६ आयामेणं जाव दो ३३३७६ आसयंति जाव विहरंति ३१२१७ आसादणिज्जे जाव इट्टतराए चेव आसादे ३१८६६ आसादणिज्जे जाव पल्हायणिज्जे ३१८७२ आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा १२० आहेबच्चं जाव दिवाई आहेवच्चं जाव पालेमाणा इंगाले जाव तत्थ नियमा ११७८ ईहामिय उसभ जाव पउमलयभत्तिचित्ता ३१३११ उक्किट्टाए जाव दिव्वाए ३२४४५ उद्दाइत्ता सो चेव विही एवं धायइसंडेवि ३१७१८,७२० उप्पलाइं तं चेव ३।४४५ उववेते जाव सव्विदियगातपल्हायणिज्जे ३१८७८ उवागच्छित्ता जाव कटु ३१५५५ एएणं अभिलावेणं जाव दसविहा १६१० एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, सेसं तहेव (क,ख, ग,ट,त्रि); ते च्चेव आलावता ह्व जाव हंता पभू ३१९६५-६६७ एवं जहा अच्चीणि णवरं एवतियाई पंच ओवासंतराई ३३१७८ एवं जहा पण्णवणाए जाव सेत्तं एवं जहा पण्णवणापदे जाव पंचहिं ३।२२८ कतरेहितो जाव विसेसाहिया २११३४-१३६ कयग्गाहग्गहित जाव पुंजोक्यारकलितं ३४५८ कयगाह जावधूवं ३१४६० कामावत्ताई जाव कामुत्तरव डिसयाई ३.१७६ कालं जाव असंखेज्जा कालं जाव आवलियाए ५६ गेण्हित्ता तं चेव ३१४४५ ३१२७८ भ० १२२२४ ४११,६१ ४११६ ६।३७२ ३।२६७ ३८६० ३२८६० पण्ण० ८१ ओ०सू०६८ ३२३५० पण्ण० १।२६ ३।२८८ ३८६ ३२५७५,५७६ ३१४४५ ३.८६० ३१४४५ १११० ११५ ३१९६१-६६३ ३३१७६ पण्ण० ११३ पण्ण० ११८७ ४११६ ३१४५७ ३४५८ ३११७५ पण्ण० १८१२६ पण्ण० १८१३ ३।४४५ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३३ ३१४५६ ३।२८३ ३१२७८ ३१२७८ ३।१७६ गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए दलयति आसत्तोसत्त कयरगाह धूवं ३१४६१ चेव जाव फासेणं ३१२८४ चेव जाव मणामत राए ३१२८३ चेव जाव वण्णणं ३१२७६-२८२ जहा अच्चीणि णवरं सत्त ओवसंत राई विक्कमे सेसं तहेव ३११८० जहा अविसुद्धलेस्सेणं छ आलावगा एवं विसुद्धलेस्सेणवि छ आलावगा भाणितवा जाय विसुद्धलेस्से ३।२०५-२०८ जहा गईओ ३१४४५ जातीकुलकोडीजोणीपमुह व पण्णत्ता ३.१६६ जातीकुल जाव समक्खया ३।१६८ जोयणकोडी जाव अब्भंतरपुक्खरद्धस्स ३१८३५ जोयणसहस्साई जाव परिक्खेवेणं ३।१०७४ णं जाव केवचिरं ४१,४३ तं चेव जाव महावेदणतरा ३११२६ तं चेव णं जाव णो ३।११६ तहेब जाव सायासोक्खबहुले ३१११६ तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा १८ तित्थाई तहेव जहेब ३।४४५ तुरियाए जाव दिव्वाए ३११७६ पगतिभद्दगा जाव विणीता ३१८४१ पच्छावि जाव आणुगामियत्ताए ३१४४२ पणिहाय जाय सव्ववस्खुड्डिया ३३१२४ पण्णत्ता जाव तेसु ३१३६८ पत्तेयं जाव णिसीयंति ३३५६० पयलाएज्ज वा जाव उसिणे ३।११६ पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया ३।१२५ पुप्फारुणं जाव धूवं ३१४६५ पोग्गला य जाव असासयावि ३।७२७ भविस्स इ जाव अवढिए ३१३५० महज्जुतीए जाव महाणुभावे ३१३५० महताहतनगीयवादितरवेणं दिवाई भोगभोगाइं भंजमाणा ३१८४५ महिड्ढीए जाव महाणुभागे ३.८६ मुत्ताजालंतरुसिया तहेव जाव समणाउसो ३।३०२ लवणस्स णं पएसा धाय इसंडं दीवं पुट्ठा तहेव जहा जंबूदीवे धाय इसंडेवि सो च्चेव गमो ३१७१५-७१८ वट्टे जाव चिट्ठति ३८६२,८६५,८७१, ५७७,६२५ ३११६६-२०२ ३१४४५ ३१६० ३.१६७ ३१८३२ ३।८२ है।३६ ३११२६ ३।११८ ३१११८ पण्ण० १११२ ३१४४५ ३१८६ ३१७६५ ३४४१ ३३१२४ ३१३६७ ३१५५८ ३।११८ ३११२४ ३३४५६ ३१७२४ ३।२७२ ३८६ ३१८४२ वृत्ति, पत्र १०६ ३।३०२ ३१५७१-५७४ ३१७०४ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ वलयागार जाव चिट्ठति वलयागारसंठाणसंठिते जाव चिट्रति वलयागारसंठाणसंठिते जाव संपरिबिखत्ताणं वलयागारे तहेव जाव जे मव्वतुवरे य तहेव सध्वपाणा जाव देवनाए देवित्ताए आलण जाव हता सब्वपुप्फे तं चेव मामाशियसाहस्मीहि जाव अण्णेहि पिज्झति जाव अंतं सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा सेस तं चेव मोहम्मीसाण जाव अणुत्तरेसु हट्ठतुट्ट जाव हियए हृढत? जाव हियया हतुट्ठा करतल जाव कटु एवं देवोत्ति जाव पडिसुणेत्ता हट्ठतुद्धा जाव हरिसवस विसप्पमाणहियया हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं अट्ठसयं तेल्लसमुग्गाणं जाव धूवकडुच्छ्याण ३८५६ ३१८६८ ३१८४८ ३१४७ ३१४४५ ३३११३० ३१४४५ ३१५५७ ११३२ ३२५८० ३३१७८,१८२ ३११०३८ ३१४४३ ३१४४५ ३१५५५ ३१७०४ ३७०४ ३१७०४ ३४६ ३१४४५ ३१११२८ ३।४४५ ३४४६ ओ० सू०७२ जंबु० २०१० ___३११७६ पण्ण. २०४६ वृत्ति, पत्र २४३ ३१४४३ ३१४४५ ३१४४१ ३१४१६ ३।३२८-३३५, वृत्ति, पत्र २३४ पण्ण० ११२३ हिमे जाव जे १९६५ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय सूत्र १४ ओवाइय सूत्र १५ ओवाइय सूत्र २१, ५४ १. २९२ सूत्रे नास्ति । २. १६ सूत्रे 'जाणए' पाठो विद्यते । परिशिष्ट- २ तुलनात्मक राज-वर्णक जंबुद्दीपण्णत्ती ३१२,३ अत्र राजवर्णकस्य प्रकारान्तरं चापि लभ्यते । देवी-वर्णक ओवाइय सूत्र २१ : णमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाण पुरिसवरगंधहत्थीणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्टा धम्मवर चाउरतचक्कवट्टीणं अप्पडियवर नाणदंसणधराणं वियट्टछरमाणं जिणाणं जावयाणं' तिष्णाणं तारयाणं मुत्ताणं मोयगाणं बुद्धानं बोहवाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिमोणं सिवमयल मरुयमणंत मक्ख यमव्वाबाहमण रावत्तगं सिद्धिगणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नायाधम्मक हाओ १२८ नमो पूर्वावस्था-वर्णक रायपणइयं सूत्र ८,७१४ नायाधम्मकहाओ २११।११ नमोत्थु - सूत्र रायपसेण इथं सूत्र ८ : नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जीयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं जीवदयाणं' सरणदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडियवरनाणदंसणधराणं वियदृष्टउमाणं जिणाणं जावयाणं तिष्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वष्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमय लमरुपम तमवखय मव्वाबाहमपुण रावत्तयं' सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । ३. २६२ सूत्रे सिवं अयलं अरु अनंतं अक्खयं अव्वाबाहं मपुणरावित्ति । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ समणे भगवं महावीरे आइगरे विभक्ति भेदेनैव पाठो निर्दिष्टसूत्रांकेषु विद्यते सूत्र १६,२१,५४ ओवाइय सूत्र २२ : कल्ले पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगध्पगासकिसु-सुमुह - गुंजद्ध राग-सरिसे कमलागरसंडबोहए उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयता जलते | समवाओ ११२ : समणेण भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएण पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरे अभयदपणं चक्खदणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरतचक्क वट्टिणा अप्पडियव रणाणदंसणधरेण वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावरणं तिष्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वष्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणक्याबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामेणं । भगवती ११७ समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयद चक्खुदए मग्गदए सरणदए धम्मदेस धम्मसारही धम्मवरचा उरंतचक्क वट्टी अप्पडियवरना णदंसणधरे विट्टछउमे जिणे जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोए सव्वष्णू सव्वदरिसी सिवमयल मरुयमगंत मक्खयमव्याबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे । प्रभात-वर्णक - जंबुद्दीवपण्णत्ती ५२१ --नायाधम्मकहाओ १११/७ - अणुत्तरोववाइयदसाओ ३।७५ रायपसेणइयं सूत्र ७२३ : कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयनियमावस्सए सहस्ररिसम्मि दिणयरे तेयसा जलते । रायपसेणइयं सूत्र ७७७ : कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल -कमल-कोमलु Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २४,३२,३४,३५,३६ सूत्र २५, २६ ओवाइय सूत्र २३ : चइता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धणं एवं - धणं बलं वाहणं कोर्स कोट्ठागारं रज्जं रट्ठं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलधण कणग- रयण-मणिमोत्तिय संख - सिलप्पवाल- रत्त- रयणमाइयं संत-सारसावतेज्जं विच्छडुइत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाईयाणं परिभायइत्ता, मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया । सूत्र २७ सूत्र २७,२८,२६ ५३७ म्मिलियम्स अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगासकिसु - सुमुह- गुंजद्ध रागसरिसे कमलागर णलिणिबोए उट्टियम्म सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते । भगवती २।११६६ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासे किसु सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहर उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते । - अनगार-प्रव्रज्या महाओ १११।२४ ( अतिरिक्त पाठ ) अणुओगदारं, लोइयं दव्वावस्तयं सू० १६ आयार-चूला १५/२६ : चिच्चा हिरणं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं चिच्चा धण धण्ण-कणय रयण-संत-सारसावदेज्ज, विच्छड्डेत्ता, विगवित्ता, विस्साणित्ता, दायारेसु णं दायं पज्जभाएत्ता रायपसेणइयं सूत्र ६६५ : चिच्चा हिरण्णं, एवं --- धणं धष्णं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं चिच्चा विउलं धण-कणगरयण-मणि मोत्तिय संख सिल प्वाल संतसारसावएज्जं, विच्छडित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारिय पव्ययंति | निर्ग्रन्थ-तप-वर्णक - - पहावागरणाई ६६ रायपसेणइयं सूत्र ६८६ भगवती २१५ नायाधम्मक हाओ ११११४ भगवती २१५५ रायपसेणइयं सूत्र ८१३ निरयावलियाको ३१४ पहा वागरणाई १०।११ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २७,२८,२६,३२,३४-३६ सूत्र ३०-४४ सूत्र ३१ सूत्र ३२ सूत्र ३३ सूत्र ३६ जंबुद्दीवपण्मत्ती २०६८ से ७० पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७८,७६,८० द्रष्टव्यम-अंगसुत्ताणि भाग-१ परिशिष्ट २: आलोच्यपाठ तथा वाचनान्तर सूयगडो २।२।६४ से ६६ भगवती २५१५५७ से ६१८ उत्तरज्झयणाणि ३०७-३६ बाह्यतप ठाणं ६/६५ यावत्कथिक ठाणं २।२००,२०१ ऊनोदरिका भगवती ७१२४ ववहारो, ८.१७ कायक्लेश ठाणं ७।४६ प्रतिसंलीनता ठाणं ४।१६०,१९२ ठाणं ५।१३५ आभ्यन्तरतप ठाणं ६।६६ प्रायश्चित्त ठाणं १०१३७ विनय ठाणं ७।१३०-१३७ वैयावत्य ठाणं १०1१७ स्वाध्याय ठाणं ५।२२० ध्यान ठाणं ४१६०-७२ देव-वर्णक पाणवणा रा४०-६३ सूत्र ३७ सूत्र ३८ सूत्र ३६ सूत्र ४० सूत्र ४१ सूत्र ४२ सूत्र ४३ सूत्र ४७-५१ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ परिषद्-गमन-वर्णक सूत्र ५२ रायपसेणइयं सूत्र ६८८,६८६ नगरी-सज्जा-वर्णक सूत्र ५५ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३१७ नित्यकर्म-वर्णक नायाधम्मकहाओ ११११२४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३९ निगमन-वर्णक भगवती ।।२०४ से २०६ सूत्र ६४-६६ जंबुद्दीवपणात्ती ३।१७७-१८६ सूत्र ६६ पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७५ पर्युपासना-वर्णक सूत्र २६,७० भगवती ६१३३, १४५,१४६ दासीनाम सूत्र ७० रायपसेणइयं सूत्र ८०४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।११ नायाधम्मकहाओ १११८२ परिषद्-वर्णक रायपसेणइयं सूत्र ६१ : तीसे ये महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणि- तीसे य महतिमहालिताए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए परिसाए जतिपरिमाए विदुपरिसाए देवपरिसाए अगसयवंदाए अणेगसयवंदपरियालाए ओहबले." ! खत्तियपरिसाए इक्खागपरिसाए योरव परिसाए अणेगसयाए अणेगवंदाए अणेगसयवंद परिवाराए महतिमहालियाए ओहबले.... । देवलोक और देव-वर्णक सूयगडो २२२ आयुबंध ठाणं ४।६२५,६२८ भगवती ८१४२५ से ४२८ धर्मश्रद्धा-प्रकटन सूत्र ७६ रायपसेणइयं सूत्र ६६५ भगवती २१५२,६।१६४ नायाधम्मकहाओ १११११०१ उवासगदसाओ ११५१ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ८२ गौतम-वर्णक भगवती ११ उवासगदसाओ ११६६ वाणमंतर-उपपात भगवती ११४६ गंगाकुलवासी-वानप्रस्थक-तापस भगवती १२५६ निरयावलियाओ ३१३ सूत्र ८८,८६ सूत्र ६४ सूत्र १७ परिव्राजक-वर्णक भगवती २।२४ । अम्मड-परिव्राजक भगवती १४:११० से ११२ दृढप्रतिज्ञ रायपसेण इयं सूत्र ७६६-८१६ सूत्र ११५-१५४ सूत्र १४१-१५४ सूत्र १४६ रायपसेणइयं सूत्र ८०६ ७२ कलाएं जंबुद्दीवपण्णत्ती समवाओ वृत्ति पत्र १३६,१३७ ७२।७ लेहं लेह गणियं रूवं नट २. गणियं ३. रूवं ४. णटें ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं गणियं रूवं नटें गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं गणियं रूवं नट गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समताल णायाधम्मकहाओ १।१८५ लेहं गणियं रूवं न गोयं वाइयं सरगयं पोक्खरगयं समतालं जूयं गीअं वाइयं सरगयं पोक्ख रगयं समताल' जूअं जणवाय पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं जूयं जयं जणवायं पोरेकव्वं जणवायं पासगं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं अट्टावयं जणवायं पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं दगमट्टियं अन्नविहिं १. क्वचित् 'तालमान'मिति पाठः । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. अण १७. पाणविहि १८. वत्यविहि १६. विलेवविहि २०. सयणविहि २१. अज्जं २२. पहेलिय २३. मागहियं २४. गाहं २५. गोइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुति २८. सुवणजुति ३३. इथिलक्खणं ३४. पुरिस लक्खणं ३५. हयलक्खणं ३६. गयलक्खणं ३७. गोपलक्खणं ३८. कुक्कुडलक्खणं ३६. छत्तलक्खणं ४०. दंडलक्खणं ४१. असिलक्खणं ४२. मणिलक्खणं २६. गंधजुति ३०. चुण्णजुति ३१. आभरणविहि इस्थलक ३२. तरुणीपडिकम्म ४३. काकणिक्खणं ४४. वत्युविज्जं ४५. खंधावारमाणं ४६. नगरमाणं ४७. वूहं ४८. पडिवूह ४६. चारं ५०. पडिचारं ५१. चक्कवहं ५२. गरुलवूहं ५३. सगडबूह अन्नविहि पाणविहि विहि विलेवणविहि सयणविहि अजं पहेलिय मागहिय गाई गीइयं सिलोगं हिरण्णजुति सुवणजुत्ति आभरणविहि तरुणीपडिक मं पुरिसलखणं हथलक्खणं गलक्खणं गोण लक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं चक्कलक्खणं दंडकखण असिलवखणं मणिलक्खणं कागणिक्खणं वत्युविज्जं नगरमाणं खंधावारमाणं चारं परिचारं वूहं पडिवू हूं चक्कवूहं गरुलवूहं सगडवूहं जुद्धं ५४१ अन्नविहि पाणविहि वत्थविहि विजेवणविहि सयणविहि अजं पहेलिय माहिअं गाहं गीइअं सिलोगं हिरण्णजुत्ति सुवण्णजुत्ति जु आभरणविहि तरुणीपरिकम्मं इथिलक्खणं पुरिसलवखणं लक्खणं गयलक्खणं गोगलक्खणं चारं पडिचारं वूह पाणविहि विहि सयणविहि अजं पहेलिय माहि पडिवूहं चक्कवू हं गडवूह सगडवूहं जुद्धं महं सिलोगं गंधजुत्त मधु सित्थं आभरणविहि तरुणीपडिकम्मं इत्थीलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोलक्खणं कुक्कुडलवखणं छत्तलक्खणं दंडकखणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं चंदचरियं वत्युविज् सुरवरिय खंधावारमाणं राहुचरियं नगरमाणं कुक्कुडलक्खणं मिलक्खणं चक्कलक्खणं छत्तलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलवखणं काकणिलक्खणं चम्मलक्खणं गहचरियं सोभाकरं दोभाकरं विज्जागयं मंतगयं रहस्मयं सभासं चारं पडिचारं अष्णविहि पाणविहि वत्यविहि विवणविहि सण विहि अज्जं पहेलिय माहिय गा गोयं सिलोयं हिरण्णजुति सुवणजुति चुष्णजुत्ति आभरणविहि तरुणीपडिकम्मं इत्थी लक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं दंडलक्खणं असिक्खणं मणिलक्खणं कागणिक्खणं वत्युविज्जं खंधारमाणं नगरमाणं वृहं पडिवूह चारं पडिचारं चक्कवू हं गरुलवूह सगडवूह जुद्धं Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४. जुद्ध ५५. निजुद्ध ५६. जुद्धाइजुद्ध ५७. मुट्टिजुद्ध ५८. बाहुजुद्ध ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१. छरुप्पवादं ६२. धणुवेद ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. वट्टखेड्ड ६६. सुत्तखेड्ड ६७. जालियाखेड्ड ६८. पत्तच्छेज्जं ६६. कडगच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरूयं निजुद्धं जुद्धजुद्धं अजुद्ध मुजु बाहुजुद्ध लयाजुद्ध ईसत्यं छरुप्पवार्य धणुवेयं हिरण्णपा सुवण्णपा सुतखेड्ड वखेड्ड गालियाखेड्ड पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सउणरूयं ५४२ नियुद्ध जुद्धातियुद्ध दिट्टिजुद्ध मुट्ठिजुद्ध बाहुजुद्धं लयाजुद्ध इसत्थं छरुप्पवायं धन्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुतखेड्ड वत्थ खेड्ड नालिआ खेड्ड पत्तच्छेज्जं कडच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सूत्र १५४ जस्सद्वारा कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंमचेरवासे अच्छतगं अणोवाहri भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कटुसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्ध परेहि हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया सउणरुअं मुनित्व आराहणा चूह पडिवू हं खंधावारमाणं नगरमार्ण वत्थमाणं खंधावारनिवेस नगरनिवेस वत्थु निवे ईसत्थं छरुपयं आससिक्खं हत्य सिक्ख वे हिरण्णपागं सुवणपा मणिपाग मुट्टिजुद्ध अद्विजुद्ध निजुद्धं जुद्धाति जुद्धं नालिया खेड्ड वट्टखेड्ड पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्ज सज्जीवं निज्जीवं सउणरूयं धातुपाग बाहुजुद्धं दंडजुद्धं पत्तच्छेज्जं राइपसेणइयं सूत्र ८१६ निजुद्धं जुद्धाइजुद्ध अद्विजुद्ध जुद्धं बाहुजुद्ध लयाजुद्ध ई सत्थं छरुपदार्थ धणुवेयं हिरण्णपागं सुवण्णपा वट्टखेड्ड सुतखेड्ड नालियाखेड्ड कडच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सउणरुतं जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे केसलोए बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतवणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जाओ परघरपवेसो लद्भावलद्धाई माणावमाणाई परेहि हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहिया- गामकंटगा अहियासिज्जति, तमलैं आराहेहिइ, सिज्जति तमट्ठमाराहिता.... आराहिता"। सूयगडो २।२।६७ जस्सट्ठाए कीरइ जग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणगे अछत्तए अगोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धं माणावमाणणाओ हीलणाओ निदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोबसग्गा अहियासिज्जति तमह्र आराहेति, तमलैं आराहेत्ता....। ठाणं १९६२ से जहानामए बज्जो! मए समणाणं णिगंथाणं नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कटूसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परधरपवेसे लावलद्धवित्तीयो पण्णत्ताओ। भगवती ३४३३ जस्साए कीरइ नग्गभावे मंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणोवाहणयं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोओ बंभचेरवासो परपरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीस परिसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमलैं आराहेइ, आराहित्ता..। नायाधम्मकहाओ १११६३३२४ निरयावलियामओ ॥१ सूत्र १५५ सूत्र १६१, १६२ सूत्र १६२ देवकिल्विषक-उपपात भगवती २४० श्रावक-वर्णक सूयगडो २२७१,७२ रायपसेणइयं सूत्र ६६८ भगवती रा६४ अनगार-वर्णक सूयगडो २०२१६३.६४,६७ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६६-१८४ सूत्र १७० केवली-समुद्घात पण्णवणा ३६७६-६४ गंधसमुद्गक विकिरण भगवती ६।१७३ ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पण्णवणा २१६४-६६ ठाणं पा१०६,११० समवाओ १२।११ सिद्ध-वर्णक पण्णवणा २०६७ सूत्र १९२-१६४ सूत्र १६२,१६३ सूत्र १६५ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-३ सद्दसूची प्रमाणविधि [ • अव्यय, सर्वनाम, क्त्वा, तुम्, यप्, प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है।। रूट (4) अंकित शब्द धातुएं हैं। उन के रूप डैस (-) के बाद दिए गए हैं। शब्द के बाद साक्ष्य-स्थल का अक सूत्र का है, तथा दो अंक प्रतिपति व सूत्र का है, तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का है। जहां एक या दो संगहणी गाथाए हैं वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में दे दिए गए अ अइमुत्तयलयापविभत्ति [अतिमुक्तकलताप्रविभक्ति] म [च] रा ६७५ रा० १०१ अइ अयि ] स० ११,५६,६२ अइ रुग्गय [अचिरोद्गत ] रा० ४५ अइ [अति] रा० ७६७ अइरेग [अतिरेक ओ० २३. जी० ३१५६०,७२६, अइकंत [अतिकान्त] जी० ३।५६७ ७३१,७३२ अइक्कत [अतिक्रान्त ओ० १६८,१६५ अइविकिट्ठ [अतिविकृष्ट] रा० ६८३ अइक्कम [अतिक्रम् ] - अइक्कमति ओ० ६२ अइसेस [अतिशेष] ओ० ५२,६९,७०. अइक्कीलावास [अतिक्रीडावास] जी० ३१७५६, जी० ३।५६८ ७५७ अईव [अतीव] रा० १३२. जी० ३१५८० अगाड [अतिगाढ] रा० ७७४ अउणतीस एकोनत्रिंशत् ] जी० ३।२२६१५ अइदूर [ अतिदुर] ओ० ४७,५२,८३. रा०६८७ अउणपण्ण [एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३१२२६।३ अइबल [अतिबल ] ओ० ७१. रा०६१ अइमट्टिय [अतिमृत्तिक | रा०६ अउणाणउति एकोननवति ] जी० ३१८२३ अइमुत्तकलया [अतिमुक्तकलता] जी० ३१५८४ अउणापण्ण [एकोनपञ्चाशत् ] ओ० १६२ अइमुत्तयलया [अतिमुक्तकलता] ओ० ११. अउणासोति [एकोनाशीति ] जी० ३१५७० रा० १४५ अउत | अयुत] जी० ३१८४१ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ अउल [ अतुल ] ओ० १६५।१६. जी० ३।११६ कुंभी [अयस्कुम्भी ] रा० ७५४,७५६ अमोजा [ अयोध्य ] ओ० ५७ अओमय [ अयोमय ] रा० ७५४,७५६. जी० ३१११६ अंक [ अङ्क ] ओ० ४८, ५१. रा० १०,१२,१८, २६,३८,६५,१३०,१६०, १६५, १७३,२२२, २५६, २७६,८०४. जी० ३।७,२८२,२८५, ३००, ३१२,३३३, ३८१,४१७,५६६, ८९४ अंक (मय ) [ अङ्कमय ] जी० ३१७४७ घाई [ अङ्कधात्री ] रा० ८०४ कमय [ अङ्कमय ] रा० १३०,२७०. जी० ३१३००,३२२, ४३५ वाणिय [ अङ्कवणिज् ] रा० ७३७ कहर [अङ्कधर ] जी० ३१५६६ कामय [ अमय ] रा० १३०, १४९, १६०, २५४. जी० ३।२६४,३००, ४१५ कि [ अङ्कित ] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ अंकुर ] अङ्कुर ] ओ० ५,८,१८४. रा० २७, २२८. जी० ३।२७४, २८०, ३८७, ६७२ अंकुस [ अङ्कुश ] रा० ३६, ४०. जी० ३(३१३, ३३८, ५६७,६३४, ८६२ अंकुस [ अङ्कुशक] ओ० ११७ कोल्ल [ अोठ ] जी० ११७४ अंग [ अङ्ग ] ओ० १५,६३,१४३. रा० ८०६, ८१०. जी० ३।५६६ अंगण | अङ्गन ] ओ० २८ अंगपट्ठि [ अङ्ग प्रविष्ट ] रा० ७४२ बाहिर [अङ्गबाह्यक ] रा० ७४२ अंगभंग [ अङ्गाङ्ग ] ओ० १४. रा० ७०,६७१, जो० ३१५६८ अंगय [ अङ्गक | ओ० ६३ अंग [ अङ्गद] ओ० ४७,७२,१०८,१३१. रा० २८५. ३२४५१ श्रंगारक | अङ्गारक] ओ० ५० अल-अंजणगिरि अंगुल [ अगुल] ओ० १६,१७०,१६२,१६५५७. रा० ५६, १८८, ७६६. जी० १३१६,७४,८६,९४, १०१, १०३, १११, ११२, ११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०, १३५, ३८२,६१,२६०, ४३६, ५६६,५६७,७८८, ८३८३१७,६६६, १०७४, १०८७,१०८६,११११ ५ २३, २६; ६४०,५१, ६७, १७१ अंगुलक [ अगुलक ] जी० ३।२६० अंगुल [ अगुलक ] जी० ३ । १०७४ लय [ अगुलक ] जी० ३१८२ अंगुलि ] अङ्गुलि ] रा० २६२. जी० ३१४५७ अंगुलिज्जग [ अङ्गुलीयक] ओ० ६३ अंगुलितल [ अङ्गुलितल ] ओ० २,५५. रा० ३२, २८१, २३, २६५. जी० ३।३७२, ४४७, ४५८, ४६०, ५५४ अंगुलिय [ अङ्गुलिक ] ओ० १७० अंगुली [ अङ्गुली ] ओ० १६ अंगुलीय [ अङ्गुलीक] ओ० ६३. जी० ३१५६६, ૨૭ अंगुलेज्जग [ अङ्गुलीयक] जी० ३१५६३ ( [ कृष् ] - अंचे ओ० २१. रा० ८. जो० ३।४५७ चितरिभित [ अञ्चितरिभित ] जी० ३।४४७ चित्ता [कृष्ट्वा ] रा० २६२ चिय [ अञ्चित ] रा० १०५. ११६,२५१. जी० ३।४४७ चियरिभिय [ अञ्चितरिभित] रा० १०७, २८१ चेत्ता [कृष्ट्वा ] ओ० २१. रा० ८. जी० ३३४५७ अंजण [ अञ्जन ] ओ० ४७. रा० १०, १२, १८, २५, ६५, १६१, १६५, २५८, २७६. जी० ३१७,२७८, ३३४,४१९, ४४५ अंजणकेसिंगा [ अञ्जनकेशिका ] जी० ३।२७६ अंजणकेसिया ( अञ्जनकेशिका | रा० २६ अंजणग] [ अञ्जनक] ओ० १३. जी० ३१८८२, ८८३,६१०,६१३ से ६१६ अंजणगिरि [ अञ्जनगिरि ] ओ० ६३ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंजणपुलय-अंत अंजणलय ] अञ्जनपुलक ] रा० १०, १२, १८,६५, १६५,२७६. जी० ३१७ अंजणमय [ अञ्जनमय | जी० ३१८८२ अंजणा अञ्जना ] जी० ३२४,६८७ [ अंजलि [ अञ्जलि ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६६, ११७. रा० ८, १०, १२, १४, १८,४६, ७२,७४, ११८, २७६, २७६, २८२, २६२,६५५, ६८ १,६८३, ६८ ६, ७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी० ३।४४२, ४४५, ४४८, ४५७, ५५५ अंजलिपगह ] अञ्जलिप्रग्रह] ० ६६,७०, रा० ७७८ अंजलिप्पग्गह [ अञ्जलिप्रग्रह] ओ० ४० अंजू [ अ ] जी० ३६२० डग [अण्डक] ओ० ३३ अंड [ अण्डज ] जी० ३।१४७, १४८, १६१ अंडबद्ध [ अन्दुबद्धक ] ओ० ६० पंत [अन्त] ओ० ७२, ७४४, १५४, १६५, १६६, १७७,१८१. रा० ३७,७७१,८१६. जी० ११३३; ३१५२,१२४, १२५, ३११,६४२,६५३, ७२३,७५४,७६२,७६८ से ७७६ अंतकम् [ अन्तकर्मन् ] रा० २८५. जी० ३।४५१ अंतगडवसाघर [अन्तकृतदशाधर] ओ० ४५ अंतर [अन्तर] रा० १३२,२८१,७५४ से ७५७, ७६३, ७६४. जी० १११४१,१४२, २१६३,६६, ८६,८८, १२, १२५, १२६, १३३, १५०, १५१; ३/६० से ६३,६५,६६,६८ से १२, ११८, ११६, २८८,३०२, ४४७,५७०, ५६८, ७१४, ८०२,८१५, ८२७, ८३८१२७, ८५२, १५२, १०२२, ११३६, ११३७, ४११६, १७; ५१७, २३, २४, ३० ; ६।१०, ११३ ६४ ६४, १२, १३, १६, २५, २६,३३,३४,३६,४१ से ५४, ५६, ६०, ६५, ७१, ७२,८३,८४,५६,६२, ६३, ६६,१०५ से १०७, १११,११७,११,१२६ से १२८, १३६, १३७, १३६, १४६, १५२, १५३, १६५, १७६, १७७, ५४७ १७, १८०, १६३ से १६५,२०४ से २०७, २१६ से २१६,२२८ से २३०, २४१ से २४४, २४६, २४६, २६२ से २६५, २७७ से २८५ अंतरण [ अन्तर्नदी] रा० २७६ अंतरणदी [ अन्तर्नदी] जी० ३।४५५,६३७ अंतरी [अन्तद्वीप ] जी० २२६१ अंतरदीवक | अन्तद्वीपज, क | जी० २२८६ अंतरदीव [अन्तर्वोपज, क] जी० ११५५, १०१, ११६, १२६, २१३४,७०,७२, ७७, ८५, ६६, १०६,११६,१२४,१३३, १३७, १३८, १४७, १४६ : ३।१५५, २१५,२१६,२२७,८३६ अंतरदीय [ अन्तद्वीपज, क] जी० १११०१ अंतरबीविया [ अन्तद्वपिका ] जी० २०११,१३,६६, ७०,७२, १४७, १४६ अंतरा [ अन्तरा ] ओ० ५५. रा० २०,६८३,७०६. जी० ३।७२६ अंतराय [अन्तराय ] ओ० ४४ अंतरित [ अन्तरित ] जी० ३१४३६ अंतरिय [अन्तरित ] रा० ७६६. जी० ३१८३८२६ ताहार [अन्त्याहार ] ओ० ३५ ति [ अन्तिक ] ओ० २१,४७ से ५.१,५४,६३, ७८, ८०,८१,११७, १२०, १२११५१. रा० १२, १३,१५ से १७,४७,६२,२७७,६६७,६८१, ६८३,६८५,६६०,६१४ से ६६६,७००,७०६, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२०, ७२६, ७७४,७७५,७६६,८१२. जी० ३८४४३ तेजर [ अन्तःपुर ] ओ० २३,७०,१६२. रा० ६७४,६६५, ६६८, ७५२,७७७,७७८, ७८७ से ७६१ अंजरिया [ अन्तःपुरिकी ] ओ० ६२ अंतेपुर [ अन्तःपुर ] जी० ३३२८५ तेवासि [अन्तेवासिन् ] ओ० २३ से २५,२७,८२, ११५. रा० ६७६ तो [ अन्तर् | ओ० ७०,६२ रा० २४,३३,६६, १३०, १३७, १८७,२५४,७५४,७५५,७५७, Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अंतोमुहुत्त-अकसाइ ७७२. जी० १११२७, ३१७७,१११,११८,२१४, अंबरतल [अम्बरतल] ओ० ५२. रा०६८८ २७७,२६८,३००,३०७,३०६,३३६,३५२, अंबसालवण | आम्रशालवन | रा०२,८ से १०, ३५९,३६०,३६४,३६८,३६६,३६६,४१५, १२,१३,१५,५६ ६४८,६७३,७५५,७५७,८३८११५,८३६,८४०, अंबिल [अम्ल जी० ११५, ३१२२ ८४२,६०५ अंबिलोदय [अम्लोदक ] जी० ११६५ अंतोमुहुत अन्तर्मुहूर्त | जी० ११५२,५६,६५,७४, अंबुभक्सि अम्वुभचिन् ] ओ० ६४ ७६,८२,८७,८८,१० १,१०३,१११,११६,१२१, अंसुय [अंशुक जी० ३१५६५ १२३ से १२५,१२७,१२८,१३३,१३७ से अकंटय [अकण्टक ] ओ०६,१४. रा० ६७१. १४०,१४२; १२० से २२,२४ से ३४,४६, जी० ३।२७५ ५०,५३ से ६१,६३,६५ से ६७,७६,८२ से अकंडुयय अकण्डयक ओ० ३६ ८४,८७,८८,१०,११,१०७,१०६ से १११, अकंत अकान्त] T० ७६७. जी. १९६५३।६२ ११३,११४,११६,११६ से १३३; ३३१५६, अकंततरक [अकान्तत क जी० ३१८४ १६१,१६२,१६५,१८६ से १६१,२१४,११३२, अकक्कस अकर्कश] ओ० ४० ११३४ से ११३७, ४१३ से ११,१६,१७, १५, अकडुय [अकटुक ओ० ४० ७,८,१० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६३, अकण्ण | अकर्ण जी० ३।२१६ ८ से ११;७१ १३, १४ ; ६॥२३ से २६,३१,३३, अकम्मभूमक [अकर्मभूमक] जी० २११३३ ३४,३६,४१,४७,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, अकम्मभूमग [अकर्मभूमक] जी० ११५१,५५, ७५,७८,८०,८३,८५,८६,९०,६२,६३,६६,६७, १०१,११६,१२६; २।३०,३२ से ३४,७७,८५, १०२,१०३,१०५,११४,११५,११७,११८, ६६,१०६,११६,१२४,१३७,१४७,१४६; १२३,१२५,१२६,१२८,१३२,१३६,१४४, ३।१५५,२१५,२२८,८३६ १४६,१५०,१५२,१५३,१६०,१६४,१६५, अकम्मभूमि [अकर्मभूमि ] जी० २११३७ १७२,१७३,१७६ से १७८,१८६ से १६१, अकम्मभूमिक [अकर्मभूमिज,°क] जी० २।५७,५८, १६३,१६४,१६८,२०२,२०४,२०७,२११, २१६ से २१८,२२२,२२३,२२५,२२८,२२६, अकम्मभूमिग [अकर्मभूमिज,°क ] जी० २१५६ से २४१,२४२,२५७ से २६०,२६२,२६४,२७७, ६१,६६,७०,७२,१३८,१४७,१४६ २७८ अकम्मभूमिय अकर्मभूमिज जी० ११०१ अंतोमुहुत्तिय [अन्तर्मुहर्तिक | ओ० १७३,१८२ अकम्मभूमिया [अकर्मभूमिजा] जी० २।११,१३, अंतोसल्लमयग [अन्तर्शल्यमृतक ] ओ०६० ७०,७२,१४७,१४६ अंदोलग [अन्दोलक] रा० १८०. जी० ३।२६२ अकयत्य अकृतार्थ रा० ७७४ अंदोलय [अन्दोलक] रा० १८१ अकयलक्खण [अकृतलक्षण] रा० ७७४ अंधकार [अन्धकार] ओ० ४६ अकरंडुय | अकगण्डक ] ओ० १६. जी० ३१५६६, अंधयार [अन्धकार | ओ० ५,८,५७. जी० ३१२७४ अंधिया [अन्धिका | जी० १८६ अकरण | अकरण ] ओ० ७८ से ८१ अंब [आम्र] जी० ११७१ अकरणिज्ज अकरणीय ] ओ० ११७. रा० ७६६ अंबड [अम्बड] ओ०६६ अकसाइ | अकपायिन् ] जी० १३१३१६२८, अंबपल्लवपविभत्ति [आम्रपल्लवप्रविभक्ति] रा०१०० १४८,१५१,१५४,१५५ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाइय-अग्गलपासाय अकाइय [अकायिक] जी० ६।१८ से २०,१८२, अक्खीण [अक्षीण] रा० ७५१ १८४ अक्खीणमहाणसिय [अक्षीण महानसिक] ओ० २४ अकामछुहा [अकामक्षुध् ] ओ० ८६ अक्खुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३,७८४ अकामणिज्जरा [अकामनिर्जरा] ओ० ७३ अक्खेवणी [आक्षेपणी] ओ० ४५ अकामतहा [अकामतृष्णा] ओ० ८६ अखंड [अखण्ड] ओ० १६. जी० ३१५६६ अकामबंभचेरवास [अकामब्रह्मचर्यवास] ओ० ८६ अखुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३ अकाल [अकाल] रा० १३,१५ से १७ अगड [अवट] ओ० १,६६ अकिंचण अकिञ्चन ] ओ० २७. रा० ८१३ अगडमह [अवटमह] 'रा० ६६८ अकित्तिकारग [अकीतिकारक] ओ० १५४ अगणि [अग्नि ] रा० ७५७. जी० ३१७७ अकिया [अकृत्वा] ओ० १७२ अगणिकाय [अग्नि काय] रा० ७६७. अकिरिय [अक्रिय ] ओ० ४० जी० ३८४१ अकुडिल [अकुटिल] ओ० ४६ अगत्थिगुम्म [अगस्तिगुल्म] जी० ३१५८० अकुणत्तर एकोनसप्तति] जी० ३८२७ अगरला [अगरला,अगरल्लि] ओ० ७१. रा० ६१ अकुव्वमाण [अकुर्वत्] रा० ७६२ अगरुलघुयत्त [अगरुल चुकत्व] रा० ७६३ अकुसल [अकुशल] रा० ७५८,७५६ अगलुय [अगरुक] ओ० ११०,१३३ अकुसलमण [अकुशलमनस् ] ओ० ३७ अगामिया [अग्रामिका] ओ० ११६,११७. अकुसलवय [अकुशलवचस्] ओ० ३७ रा० ७६५,७७४ अकोसायंत [अकोशायमान, विकसत्] ओ० १६ अगार अगार] ओ० १५,२३,५२,७६,७८,१२०, अक्किट्ठ [अक्लिष्ट] जी० ३१६३० १५१. रा० ७०,१३३, ६७२, ६८७, ६८९, अक्कोह [अक्रोध] ओ० १६८ ६६५, ५०६, ८१०, ८१२ अक्ख [अक्ष] ओ० १२२ अगारपम्म [अगारधर्म] ओ० ७५,७७ अक्षय [अक्षय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२००, अगारसामाइय [अगारसामायिक ] ओ० ७७ २६२. जी० ३।५६,२७२,३५०,४५७,७६० अगिला दे० अग्लानि] ओ० ७१. रा० ७२० अक्सर [अक्षर ओ०७१,१८२. रा० ६१,२७०. अगुरु [अगुरु रा० ३० जी० ३१४३५ अगेज्म [अग्राह्य] ओ०५ जी० ३१२७४ अक्खाइगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] जी० ३।६१६ अग्ग [अग्र] ओ० २३,६६. रा० ६६,७०,१३३, अक्खाङग [अक्षवाटक] रा० ३५,६६,२१८,३००. २६१,३५१,५६४. जी० ३१३०३,४५७,५१६, जी० ३।३७७,४६५,८६१ ५४७,५८०,५६७,६७४ अक्खाडय अक्षवाटक] रा०३६,२१७,३००, आगमहिसी [अग्रमहिषी] रा० ७,४२,४७,५६,५८, ३२१,३३८. जी० ३।४६५,४८६,५०३,८६० २८०,६५६. जी. ३१३४०, ३५०, ३५६, अक्खात [आख्यात] जी० ३२३२ ४४६,४४८,५५७,५५६,५६३,६१६ से १२२, अक्खामित्ता [अक्षमयित्वा रा० ७७६ १०२३,१०२६ अक्खाय [आख्यात] रा० १२४,१२६,१६३,१६६. अग्गय [अग्नक ] जी० ३१५६१ जी० ११३७७,१६१,१७४,२५७,३३५, अग्गलपासाय [अर्गलाप्रासाद] रा० १३०. ३५४,३५५,३५७,६५८,७२८,७३३,१०३८ जी० ३३०० Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० अगला [ अगला ] रा० १३०. जी० ३।३०० अग्गसिहर [अग्रशिखर ] ओ० ५८. रा० ३२. जी० ३।२७४,३७२ अग्गसो [ अग्रशस् ] जी० ११५८,७३,७८,८१ अग्गहृत्य [ अग्रहस्त ] ओ० ४७. रा० १२,७१४, ७५० से ७६१. जी० ३०११८ अग्ग [अग्नि] ओ० ४८, १८४. रा० ७६१. जी० ३३६०१, ८६६ अग्गेज्म [ अग्राह्य ] ओ०८ अगोदय [ अग्रोदक ] जी० ३२७३३ अचंड [ अचण्ड ] जी० ३५६८ अक्खुदंसण [ अचक्षुर्दर्शनिन् ] जी० १ २६,८६, ६०, ६१३१,१३३, १३७,१४० अचरिम [ अचरम ] रा० ६२. जी० ६,६३,६५,६६ Ram [ अचपल ] रा० १२ अचित्त [ अचित्त ] ओ० २८,४६,६६, ७० रा० ७७८ अचिर [ अचिर] जी० ३३५६० अचोक्ख [ दे० अचोक्ष ] रा० ९,१२. जी० ३१६२२ / अच्च [ अच्] ] – अच्चे ओ० २. रा० २९१. जी० ३३५१६-अच्चेति जी० ३।४५७ अन्वंत [अत्यन्त ] ओ० १४. रा० ६७१ अच्चनिज्ज [ अर्चनीय] ओ० २. रा० २४०, २७६. जी० ३१४०२, ४४२, १०२५ अणिया [ अनिका ] रा० ६५४,६५५. जी० ३।४६३, ४६६,५१७,५५४,५५५ awar [ अ ] ओ० ७२ अच्चासण्ण [अत्यासन्न ] ओ० ४७,५२,८३. रा० ६०,६८७,६६२,७१६ अचि [अचिस् ] ओ० ४७,७२. रा० १७, १८, २०, ३२, १२६. जी० ११७६; ३३८५, १७५, २८८, ३००, ३७२ अच्चित [ अचिःकान्त ] जी० ३।१७५ अचिकूड [ अचि. कूट ] जी० ३।१७५ अविक्षय [ अचिध्वज | जी० ३११७५ after [ अचिःप्रभ] जी० ३११७५. अग्गला-अच्छ अचिमालि [ अर्चिर्मालिन् ] रा० १२४ अचिमाली | अर्चिर्मालिनी ] जी० ३६२०,१०२३, १०२६ अच्चियावत [ अचिरावतं । जी० ३।१७५ अच्चिरस [ अचिर्लेश्य ] जी० ३ | १७५ अविषण्ण [ अचिवर्ण ] जी० ३११७५ अच्चिसिंग [ अचिः शृङ्ग) जी० ३।१७५ feng [: शिष्ट ] जी० ३ १७५ अच्चुत [अच्युत ] जी० ३११०३८, ११२२ अत्तरवड | अचिरुत्तरावतंसक ] जी० ३।१७५ अच्चुय [ अच्युत ] ओ० १५८, १५६,१६२,१६०, १६२. जी० २१६६; ३ १०५४, १०५५, १०६२, १०६६, १०७४, १०८८, १०६१, ११११,१११२, १११५, १११६ अoares [ अच्युतपति ] ओ० ५१ अच्चेत्ता [अचित्वा ] रा० २६१. जी० ३।४५७ अच्चोar [ अत्युदक ] T० ६, १२. जी० ३१४४७ अच्चोयग [ अत्युदक ] रा० २८१ अच्छ [ अच्छ] ओ० १२,१६४. रा० २१ से २३. ३२,३४,३६,३८,१२४ से १२८, १३१,१३२, १३४,१३७,१४१,१४५ से १४८, १५० से १५३, १५५ से १५७, १६०, १६१, १७४, १८० से १८५,१८८, १६२, १६७, २०६, २११,२१८, २२१,२२२,२२४,२२६, २३०, २३३,२३८, २४२, २४४,२४६,२५३, २५६,२६१,२७३, २९१. जी० ३।११८, ११६,२६१ से २६३, २६६,२६८,२६६, २८६, २८६ से २६७,३०१, ३०२, ३०४, ३०७, ३०८, ३१२, ३१८, ३१६, ३२३ से ३२६,३२८ से ३३०, ३३२, ३३४, ३३७, ३४७,३४८, ३५२, ३५३, ३५५,३६१, ३६५,३७२,३७७, ३८०, ३८१,३८३,३८५, ३६२,३६५,३६६,४००, ४०४, ४०६, ४०८, ४१०,४१३, ४१४,४१८, ४२२, ४२५, ४२७, ४३७,४५७,६३२,६३९, ६४४, ६४६, ६४९, ६५५, ६६१, ६६८, ६७१,६७५,६८६, ७२४, ७२७,७३६,७५०, ७५८, ८३६,८४२, ८५४, Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छ-अट्ट १५॥ ८५७,८६३,८८१,८५२,८६१,८६३ से ८९५, अजीवाभिगम [अजीवाभिगम] जी० ॥२ से ५ ८६७,८६६,६०१,६०४,६०६,६०७,६१०, अजोगत्त [अयोगत्व ] ओ०१८२ ६११,६१८,६५७,१०३८,१०३९,१०८१ अजोगि [अयोगिन् ] जी० १११३३;६।२१,४६, अच्छ आस्!-अच्छेज्ज ओ० १६५।१८ ४७,५३,११३,११६,१२० अच्छ [ऋक्ष जी० ३१६२० अज्ज [अद्य] रा०६८८,६८६ अच्छणघरग [आसनगृहक] रा० १८२,१८३. अज्ज {आर्य ओ० १४६ जी० ३१२६४ अज्जग [आर्यक] रा० ७५०,७५१,७७३ अच्छपण [आच्छन्न ] जी० ३।५८१ अजय [आर्यक] रा० ७५०,७५१ अच्छत्तग [अछत्रक] ओ० १५४,१६५,१६६. अज्जव [ आर्जव] ओ० २५,४३. रा०६८६,८१४ रा०८१६ अज्जा [आर्या | रा० ८०६ । अच्छरस [अच्छरस] रा० १६२. जी० ३.४५७ अज्जिया [आर्यिका] ओ० १६. रा० ७५२,७५३ अच्छरा [दे० ] ओ० १७०. जी० ३।८६ अज्जुण [अर्जुन ] ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ अच्छरा अप्सरस्] रा० ३२,२०६,२११. अज्जुणसुवण्णगमय [अर्जुनसुवर्णकमय] ओ० १६४ जी० ३१३७२,५६७,६२१,११२२ अज्झत्थिय [आध्यात्मिक] रा० ६,२७५,२७६, अच्छि [अक्षि] ओ० १६. रा० २५४. ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, जी० ३३१२६८,३०३,४१५,५६६ ७६१,७६३. जी० ३।४४१,४४२ अच्छिज्जत आच्छिद्यमान] रा० ७७ अज्मयण [अध्ययन] जी० १११ अच्छिद्द [अच्छिद्र ] ओ० ५,८,१६,२६. अज्झवसाण [अध्यवसान] ओ० ११६,१५६. __ जी० ३१२७४,५६६,५६७ जी० ३.१२९६ अन्छिपत्त [अक्षिपत्र] रा० २५४. जी० ३१४१५ अझोयरय [अध्यवत रक] ओ० १३४ अच्छिवेदणा [अक्षिवेदना] जी० ३.६२८ ‘अज्झोववज्ज [अधि+उप+ पद्] अच्छेत्ता [अछित्वा] जी० ३१६६० -- अज्झोक्वज्जिहिति ओ० १५०. रा०८११ अच्छेयकर [अछेदकर] ओ० ४० अज्झौववण्ण [अध्युपपन्न] रा० ७५३ अच्छरग आश्चर्य जी०३५६७ अट्ट {आतं] ओ०७४ अज [अज जी० ३१६१८ अट्ट (माण) [आर्तध्यान यो० ४३ अजरा अजरा] ओ० १६५।१८ अट्टज्झाण | आतध्यान ] रा०७६५ अजहण्ण [अजघन्य ] जी० ३।५६७ अट्टणसाला | अट्टनशाला ओ० ६३ अजहण्णमणुक्कोस [अजघन्योत्कर्ष ] जी० ६।४८, अट्टालग [ अट्टाल क] जी० ३१५६४,६०४ अट्टालय [अट्टालक] ओ० १. रा० ६५४,६५५. अजिण [अजिन ] ओ० २६ जी० ३१५५४ अजित [अजित] जी० ३।४४८ अट्टियचित्त [आतितचित्त] ओ०७४।५ अजिय [अजित ] ओ० ६८. रा० २८२. अट्ट अर्थ ओ० २०,२१,५२,५४,५७,५६,६१, जी० ३४४८ ६३,८४ से ६५,१११ से ११४,११७ से १२०, अजीरग [अजीरक] जी० ३।६२८ १५४,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६५ से अजीव [अजीव] ओ०७१,१२०,१३७,१३८,१६२. १६७,१६६,१७०,१७२,१७७,१८३,१८४, स० ६६८,७५२,७८६ १८६ से १६१. रा० १३,१६,२५ से ३१,४५, Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ अट्ठ-अणईई ४७,६४,१२३,१७३,१६७,१६६,२७७,६८३, अट्ठावय [अष्टापद] ओ० १४६. रा० ८०६. ६८७,६६०,६६८,७०१,७१३,७१४,७१६, जी० ३१५६७ ७१६,७२६,७५१ से ७५३,७५५,७५७,७५६, अट्ठावीस [अष्टाविंशति] ओ०१७०. रा० १५५. ७६१,७६३,७६५,७७१,७७४,७७६ से ७७८, जी. ३५ ७८६,७८६,७६२,८१६. जी० ३।५८,८४,८५, अट्ठावीसइविह [अष्टाविंशतिविध ] जी० २०१२ १६ से २०३.२३६,२४७,२५६,२६६,२७१ अदावीसतिविष [अष्टाविंशतिविध] जी० २१६ २७० से २८५,३५०,४४३,५७७,५६६,६०१, अट्ठावीसतिविह । अष्टाविंशतिविध] ओ० ५० ६०२,६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से अट्ठासीत [अष्टासीति] जी० ३।८३७ अट्रि [अस्थि ] ओ० १२०. रा०६९८,७५२, ६७४,७००,७०६,७२१,७३१,७३८,७४१, ७८६. जी० ११९५,१३५:३१६२,१०६० ७४३,७४६,७५०,७६०,७६३,७६५,७६८, अद्विद्ध [अस्थियुद्ध] रा० ८०६ ७७०,७७६,७८२,७८६,७८७,८०८,८१६, अट्टिसुह [अस्थिसुख ] ओ०६३ ८२६,८३३,८३६,८४०,८५४,८५७,८६०, अडड [अटट] जो० ३८४१ ८६३,८६६,८६६,८७२,८७५,८७६,५८०,६२३, अडतालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] जी० ३८२७ ६२५,६२७,९४१,९४८,६४६,६८९ से १६२, अडयाल [अष्टचत्वारिंशत् ] रा० १२६. ९६४ से ६९६,६६९,१०२४,१०२५,१०४२, जी० ३१३५१ १०४४,१०४६,१०४६,१०५१ से १०५३ अडयालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] रा०२३५. जी० ३१६८ अट्ट [अष्टन् ] ओ० १२. रा० ८. जी २३६ अट्टअट्टमिया [अष्टाष्टकिका] ओ० २४ ।। अख्यालीसप्रंसिय अष्टचत्वारिंशदस्त्रिक] रा० २३६ अद्वतीस [अष्टात्रिंशत्] जी० ३१७० अडयालीसइकोडीय [अष्टचत्वारिंशत्कोटीक] रा०२३६ अट्ठपिटुणिहिता [अष्टपिष्टनिष्ठिता] जी० ३८६० अख्यालीसइविपहिय अष्टचत्वारिंशद्विग्रहिक अट्ठभाइया [अष्टभागिका] रा० ७७२ रा० २३६ अट्ठभाग [अष्टभाग] जी० २१३६,४४ अडवो [अटवी ] ओ० ११६,११७. रा० ७४४,७६५ अट्ठम {अष्टम ] ओ० १७४,१७६ अट्ठमभत्त [अष्टमभक्त] ओ० ३२. जी० ३।५६६ अडहत्तर [अष्टसप्तति ) जी० ३७७ अड्ढ [आढय] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५, अट्ठमी [अष्टमी ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७६६. जी० ३१५६४ ___ ७५२,७८६. जी० ३।७२३,७२६ अड [अर्ध] जी० ३१६६२ अट्ठया [अर्थ ] ओ० २०,१३७,१३८ अड्डबावट्टि [अर्धद्विषरिट | जी० ३१६६३ अदविह अष्टविध] जी० ११५,१०,२।१७; ३।११७, ८।१,२३, ६।१६७,२०६,२२० अड्डाइज्ज [अर्धतृतीय ] ग० १२६. जी० ३।६१, अट्ठसिर [अष्टशिरस् ] ओ० १३ २३७,२३८,२४३,३५५,६३२,६४७,६४६, ६७३,६६४,६७३,१०५३,१०५५:५।२६ अटार अष्टादशन् ] ओ०१६२ अट्ठारस [अष्टादशन् ] ओ० १४८. जी० २।४८ अणइक्कमणिज्ज [अनतिक्रमणीय ] ओ०१२०, अट्ठारसविह [अष्टादविध] रा० ८०६,८१० १६२. रा०६६८,७५२,७८९ अणइक्कमणिज्जवयण [अनतिक्रमणीयवचन] अट्ठावण्ण [अष्टपञ्चाशत् ] जी० ३।६६१ ओ०६१ १. ईति रहित। अणईइ अनीति'] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंत-अणाढिया अणंत [अनन्त] ओ० १६.२१,५४,१५३,१६५, अणगारसामाइय [अनगारसामायिक ] ओ० ७६ १६६,१७२,१८२,१६५८. रा० ८,२६२,८१४, अणगारिया [अनगारिता] ओ०२३,५२,७६,७८, जी० १९,६७,७३,७४,१३६२६३,६५,८८, १२०,१५१. रा०६८७,६८६,६६५,८१२ १३२; ३१४५७ ; ५।६,२४,२६,४१ से ५१,५६ अणच्चासायणा [अनत्याशातना] ओ० ४० से ५८; ८१४;६।२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, अणच्चासायणाविणय [अनत्याशातनाविनय ] १६४,१६५,१७८,२०२,२०४,२५८ ओ० ४० अणंतक [अनन्तक] जी० ३४५१ अणट्ट [अनर्थ ] ओ० १२०,१६०. रा० ६६८, ७५२,७८६ अणंतखुत्तो [अनन्तकृत्वस्] जी० ३।१२७,६७५, ११२८ से ११३० अबढावंड [अनर्थदण्ड ओ० १३६ अणंतग [अनन्तक] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ अणण्हयकर अनास्लवकर] ओ० ४० अणंतगुण [ अनन्तगुण] ओ० १६५।१४. अणत्थर [अनर्थदण्ड] ओ० १०४,१२७ जी० ११३५,३७,४०,१४३; २१३४,१३६, अणत्यग्वेरमण [अनर्थदण्डविरमण] ओ० ७७ १३८ १४१,१४२,१४५,१४६,१४६; अणवसमाण [अनवकांक्षत् ] ओ० ११७ ३।११३८;४।१६ से २१,२५,५॥१८,२०,२५, अणवज्ज [अनवद्य ] ओ० १३७,१३८ २७,३१,३३,३६,५२,६०; ६।१२:७:२१ से अणवटुप्पारिह [अनवस्थाप्याह| ओ०३६ अगवदित [अनवस्थित जी० ३३८३८।१० २३; ८१५६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से । अणवट्ठिय अनवस्थित] जी० ३१८३८१३२,८४१ २६,३५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००,१०८, अणवणिय [अनपन्निक] ओ० ४६ ११२,१२०,१३०,१४०,१४७,१५५,१५८, अणवयम्ग [अनवदन] ओ०४६ १६६,१६६,१८१,१८४,१६६,२०८,२२०, अणवरय अनवरत ] ओ० ६८ २३१,२५१,२५३,२५५,२६६,२८७,२८६, अणसण [अनशन ओ० ३१,३२,११७,१४०,१५४, २६२,२६३ १५७,१६२,१६५,१६६. रा०८१६ अणंतपएसिय [अनन्तप्रदेशिक] जी० ११३३ अणह [अनघ] ओ०६८ अणंतर [अनन्तर] ओ०६४,१४१,१८२,१६२. अणाइ [अनादि] ओ० ४६ रा० ५० से ५५,७०,२६२,७७३,७६६. अणाइय [अनादिक जी० ६।११,१३,१६,६५, जी० ११४३,६१,११६,३११२१,१५६,६६८, ६६,८६,१६४,१७६ ८३८।२५,८८२,११२७ अणाउत्त [अनायुक्त | ओ० ४० अणंतरसिद्ध [अनन्तरसिद्ध] जी० ११७८ अणागय [अनागत ] ओ० १८३,१८४,१६५ अणंतवाग [अनन्तवर्ग | ओ० १६५।१५ अणागार [अनाकार] ओ० १६५।११. अणंतवत्तियानुपेहा [अनन्तवृत्तिता(का)नुप्रेक्षा] जी० १२३२,८७, ३.१०६,१५४,१११० ओ०४३ ६।३६,३७ अणंतसंसारिय [अनन्तसंसारिक] रा० ६२ अणाढायमाण [अनाद्रियमाण] रा०७६०,७६१ अणगार [अनगार] ओ० २७,४५,८२,१५२, अणाढित [अनादृत] जी० ३१७०० १६४,१६६. रा०६८६,७११,८१३. अणाठिय [अनादृत ] जी० ३।६८०,७००,७०१, जी० ३.१६८ से २०६ ७६५ अणगारषम्म [अनगारधर्म] ओ० ७५,७६ अगाढिया [अनादृता] जी० ३१७००,७०१ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ अणाणुपुख्ती (अनानुपूर्वी | जी० ११४८ अणादिय [अनादिक | जी० ६।२५,१३३ अणावीय [अनादिक] जी० ६।२३,३१,३४,६४, ७२,८१,११०,१७४,२०२,२०६ अणारंभ अनारम्भ | ओ० १६३ अणारिय [अनार्य | ओ० ७१. जी० ३१६२८ अणालोइय अनालोचित | ओ०६५.११५,१५६ अणाहारग ! अनाहारक] जी० ६।३८,५१ से ५५ अणाहारय [अनाहाक] जी० ६।४२ से ४८ अणिव अनिन्द्र | जी० ३१११२० अणिविय [अनिन्द्रिय | जी० ६।१५ से १७,१६७, १६६,२५६,२६१,२६५,२६६ अणिक्खित अनिक्षिप्त ] ओ० ११६ अणिगण अनग्न | जी० ३१५६५ अणिच्च | अनित्य ] ओ०७४ अणिच्चाणुहा [अनित्यानुप्रेक्षा | ओ० ४३ अणिज्जिण्ण [अनिर्जीर्ण] रा० ७५१ अणि? [अनिष्ट ] रा० ७६७. जी० ११६५; ३६२,६७,१२२,१२३,१२८,१२६ अणिद्वतरक [अनिष्टतरक | जी० ३१८४,८५ अगिढतरय (अनिष्टत रक जी० ३१११८,११६ अणिठ्ठर अनिष्ठुर ओ० ४० अणिहय | अनिष्ठीवक | ओ० ३६ अणित्यंत्य {अनित्यंस्थ] ओ० १६१८, जी० १४६७,७४ अणिय [अनीक] रा० ७,४७,५६,५८,२८०. जी० ३।३५०,४४६,५५७,५६३ अणियट्टि [अनिवृत्ति ] ओ० ४३ अणियाण अनिदान] ओ० २५,१६४ अणियाहिवइ [अनीकाधिपति ] रा० ७,५६,५८, २८०. जी० ३२३५०,४४६,५५७,५६३ अणियाहिवति [अनीकाधिपति] ० ४३. जी० ३१३४४,५६१ अणिल [अनिल ] ओ० २७. १० ८१३ अमिसिट अनिसृष्ट | ओ०१३४ अणाणुपुवी-अणुत्तरोववात्तिय अणिहुतिदिय [अनिभृतेन्द्रिय ] ओ० ४६ अणीय [अनीक] ० ५६ अणीयाहिवइ [अनीकाधिपति] रा० ५३ अणु (अणु जी० ११४४ ; ३१६६८,६EE अणुगंतव्य | अनुगन्तव्य ] जी० ३।५,१२,३५५, ७७५ अणुगच्छ [अनु + गम् | अणुगच्छइ ओ० २१, रा० ६--अणुगछति जी० ३।४५५ अणुगच्छित्ता [अनुगम्य ओ० २१. रा०८ अणुग्घसित [अनवपित] रा० १४६ अणुचर [अनु + चर]-.--अनुचरंति जी० ३१८३८.११ अणुचरंत अनुवरत् ] जी० ३१८३८.१० अणुचरिय [अनुचरित] ओ०१ अणुचिण्ण [अनुचीर्ण] जी० १३१ अणुजाण [अनु+ज्ञा]--अणुजाणउ रा० ६८. - अणु नाणति रा० ७१३.- अशुजाणेज्जाह रा० ७०६ अणुताव [अनुताप | जी० ३३१२८ अणुत्त अणुत्व] जी. ३१६६E अणुत्तर (अनुत्तर | ओ०७२,७६ से ८१,१५३ १६५,१६६. रा० ८१४. जी० ३.१२,७७, ११७,१०३८,१०५६,१०८४,१०८६,१०६२, ११०४,११०६ से ११११,१११३,१११८, ११२०,११२३,११२५ अणुत्तरविमाण [अगुत्तरविमान} ओ० १६०. जी० ३३१०६६,१०७०,१०७२,१०७४,१०७७ से १०८२,१०८६,११३० अणुत्तरोववाइय [अनुत्तरोपपातिक] जी० १११२३; ___३।१०६४,१०६७ अणुत्तरोवाइयवसाधर अनुत्तरोपपातिकदशाधर] ओ० ४५ अणत्तरोववातिय | अनुत्त रोपपातिक] जी० २।६३, ६६,१४८,१४६, ३३१०७६,१०६०,१०६६, १०६८,१०६६,११०६.११०८,१११४,१११६, १११८,११२५ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवणकर-अणुवीइ अनुद्दवणकर [अनुदवणकर) ओ० ४० अणुप्पविस [अनु-प्रविश ] ----अणुप्पविसति अणुपत्त [अनुप्राप्त ] ओ० ११६,११७. रा० ८०६, रा० ७५५. जी० ३।४४३ ८१० अणुप्पविसमाण [ अनुप्रविशत् ] जी० ३।१११ अणुएवाहिण अनुप्रदक्षिण] जी० ३।४४३ अणुप्पविसित्ता अनुप्रविश्य ] रा० ७५५. अणुपयाहिणीकरमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्] जी० ३४४३ रा० ४७,४८,२७७,२८३,२८६,३१३,३७६, अणुप्पविसित्ताणं [अनुप्रविश्य रा० १२३ अणुप्पेह | अनु-+ प्र+ईश्] --अणुप्पेहंति अणुपरियट्टित्ता [अनुपरिवर्त्य ] ओ० १७० __ ओ० ४५ अणुपरियट्टिताणं [अनुपरिवर्त्य | जी० ३८६ अणुप्पेहा | अनुप्रेक्षा] ओ० ४२,४३ अिणुपरियड [अनु+परि+वृत् -अणुपरिय- अणुबद्ध ( अनुबद्ध] जी० ३।११६,१२६ डंति जी० ३१८४२ अणुब्भड [अनुभट] जी० ३१५९७ अणुपविट्ठ [अनुप्रविष्ट ] रा० ७५६,७५७,७६५, अणुभाव [अनुभाव ] जी० ३।१२६।६,८३८११६ ७७४ अणुमय [अनुमत] ओ० ११७. रा०७५० से अिणुपविस | अनु- प्र+विश्] --अणुपविसइ ७५३,७६६. जी० १४१३५६७ ओ०५६. रा०२७७.-अणुपविसति अणुयत्तेमाण [अनुवर्तमान] रा० १६ रा०२८३. जी० ३१४४३ अणुरत्त [अनुरक्त ] ओ० १५. रा० ६७२ अणुपविसमाण [ अनुप्रविशत् रा० ७५३,७६५ अणुराग [ अनुराग] ओ ० ६६,१२०,१६२. अणुपविसित्ता अनुप्रविश्य ] ओ० ५६. रा०६९८,७५२,७८६ रा० २७७. जी. ३१४४३ अणुलिप [अनु+लिम्प]--अणुलिपइ अणुपाल [अनु+पालय् ].--अणुपालेंति ३.२१८ रा० २६१. जी० ३.४५७.--अणुलिपति अणुपालेता [अनुपाल्य ] ओ० १६२. जी० ३१६३० रा० २८५. जी० ३१४५१ अणुपालेमाण [अनुपालयत् । ओ० १२०. अणु लिपइत्ता | अनुलिप्य] रा० २६१ रा० ६६८,७५२,७८६ अणुलिपित्तए अनुलेप्तुम् ] ओ० ११०,१३३ अणुपुल्व [अनुपूर्व ओ० ५,८,१६,११६,११७, अणुलिपित्ता [अनुलिप्त] रा० २८५. १६८. रा० ८०३. जी० ३।११८,११६,२७४, ___जी० ३।४५१ ५६६,५६७ अणुलित [अनुलिप्ज] ओ० ४७,६३ अणुप्पण्ण [अनुत्पन्न | ओ० १६६ अणुलिहंत [अनुलिहत्] ओ० ६४. रा० ५०,५२, अणुप्पत्त [अनुप्राप्त रा० ७६५,७७४ ५६,१३७,२३१,२४७. जी० ३१३०७,३६३ अणुप्पवाहिणीकरेमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् | अणुलेवण [अनुलेपन | ओ० ४७,७२ जी० ३।४५२ अणुवएस अनुपदेश] रा० ७६५ अणुप्पयाहिण [अनुप्रदक्षिण जौ० ३१४४५ अणुवत्तेमाण [ अनुवर्तमान] रा० १६ अणुप्पयाहिणीकरेमाण अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् अणुवाय अनुवात ] रा० ३०. जी० ३।२८३ जी० ३।४४६,४५४,४५७,४७८,५२३,५२६, । अणुवाहणग अनुपानल्क] रा०८१६ ५३७,५४४,५५१,५५६ अणुविद्ध [अनुविद्ध] रा० २६२. जो० ३।४५७ अणुप्पविट्ठ [अनुप्रविष्ट ] रा० १२२,१२३ अणुवीइ [अनुवीचि] जी० १११ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवेलंघर-अति अणुवेलंधर [अनुवेलन्धर] जी० ३१७४७ से ७५० ५६३,५६६,६३७,६३८,६५२,६५८ से ६६०, अणुव्वय [अणुव्रत ] ओ० ७७ ६६५,६६६,६७६,७१०,७१३,७२१,७३६, अणुसज्ज [अनु-+ सङ्ग्] -अणुसज्जति ७४७,७६०,७६१,७६३ से ७६६,७६८,७७० ____ अगोवमा (दे) खाद्यविशेष से ७७४,८००,८१४,८४३,८४६,६१७,१०२५ अणुसज्जणा [अनुसउजना] जी ० ३१२१८,६३१ ।। अण्ण [अन्न ] ओ० १४६.१५०. रा०८१०,८११ अणुसार [अनुसार] जी० ३१७७ अण्णउत्थिय [अन्ययूथिक ] ओ० १३६. अणुहो [अनु+भू]----अणुहोति ओ० १९५२१ जी० ३।२१०,२११ अणूण [अनून] जी० ३१८३८:२७ अग्णगिलायय [अन्नग्लायक] ओ०३४ अग अनेक ] ओ० १.५ से ८,१०,१६,४६,६३, अण्णजीविय [अन्य जीविक] रा० ७३३,७३४,७३६ ७१,१६५. रा०७,१७,१८,२४,३२,५२,५६, अण्णत्त [अन्यत्व रा० ७६२,७६३ ६१,६६,१७४,२०६,२११,२३१,२४७,७५४, अण्णत्य [अन्यत्र ओ० ८६ जी० ३१७२१ ७५६,७६२,७६४. जो० ३।११८,११९,२५६, अण्णमण्ण [अन्यान्य ] ओ० ५२,११७,११८. २७४ से २७७,२८६,३७२,३७४,३६३,५८१, रा० १६,४०,१३२,१३३,६८७,७१३,७७४. ५८५ से ५६६,६३६,६४६,६७३,६७४,७५६, जी० ३२२,२७,११०,१११,२६५,३०३,६२०, ८८४,८८८ ६२५,८४५ अणेगजीव [अनेकजीव] जी० १७१ अण्णयर [अन्यतर ओ०२८,७२,८६ से १३, अणेगवासपरियाय [अनेकवर्षपर्याय ओ० २३ १०५,१०६,१२८,१२६,१८६. रा० ७५० से अणेगविष [अनेकविध] जी० २११०३ ७५३,७६६. जी० ११३३, ३१२३९ अणेगविह अनेकविध ] ओ० ३२ से ३६, अण्णया अन्यदा] बो० ११६. रा०६८० जी. १९६५.७१ से ७३,७८,८१,५४,८८, अण्णलिंगसिद्ध । अन्यलिङ्गसिद्ध] जी० श८ ८६,१०७,१०८,११२,११४,११५,२।६ अण्णविहि [अन्नविधि] ओ० १४६ अगसिद्ध [अनेकसिद्ध] जी० ११८ अण्णाण [अज्ञान] ओ० ४६. जी० १।१०१,१२८; अणोगाढ [अनवगाढ ] जी० ११४२ ३१५२ अणोग्यसिय [अनवर्षित ] जी० ३:३२२ अण्णाणवोस [अज्ञानदोष ] ओ० ४३ अणोवम अनुपम ओ० १६५१७,२२. अण्णाणि [अज्ञानिन्] जी० ११३०,८७,९६,११६, अणोवमा [दे०] खाद्यविशेष जी० ३१६०१ १३३,१३६, ३।१०४,१५२,११०७,११०८%, अणोवाहणम [अनुपानक] ओ० १५४,१६५,१६६ है।३०,३२,३५.१४३,१५६,१६४ से १६६ अण्ण [अन्य ] ओ० १७,२३,५२,७६ से ८१. रा० ४०,५६,५८,१३२,१८५,२०५ से २०८, अण्णाणिय अज्ञानिक जी० ६।३४ २४०,२७६,२८०,२८२,२८६,२६१,६५७, अण्णायचरय [अज्ञातचरक ओ० ३४ ६८७,६८८,७०४,७४८ से ७६४,७७१ से अण्णोग्ण [अन्योन्य] ओ० १६५९ ७७३,९०३,८०४. जी० ११५०,६५,७१ से अण्ह आ+स्नु-अहाइ ओ०५४ ७३,७८,८१,८४,८८,१००,१०३,१११,११२, अण्हयकर (आस्नवकर] ओ० ४० ११४ से ११६,११८,१२१,३१२६७,३०२, अण्हाणग [अस्नानक | ओ० ८६,६२. रा० ८१६ ३१३,३५०,३५१,३६८ से ३७१,३८८,३६०, अण्हाणय [ अस्नानक] ओ० १५४,१६५,१६६ ४०२,४४२,४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, अति [अयि ] रा० १२१,६६८ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिक्कम अस ५५७ अत्यत्पिय [अर्थाथिक] ओ०६८ अत्यमणत्यमणपविभत्ति [अस्तमनास्तमनविभक्ति] रा० ८६ अत्थरग आस्तरक] रा० ३७. जी० ३१३११ अस्थसत्य | अर्थशास्त्र] रा० ६७५ अत्यि अथिन् ] रा० ७७४ अस्थि [अस्ति] ओ० ७१. जी. ३१२२ अस्थिभाव [अस्तिभाव] ओ० ७१ अत्यिय [अस्थिक ] जी० ११७२ अदंतमणग [दे० अदन्तधावनक] रा० ८१६ अवंतवणय [दे० अदन्तधावनक ] ओ० १५४, अतिक्कम अति + क्रम् ]--अतिक्कमइ जी० ३.८३८।१६ अतित्यगरसिद्ध अतीर्थकरसिद्ध ] जी० १८ अतित्यसिद्ध [अतीर्थसिद्ध ] जी० ११८ अतिदूर [अतिदूर रा० ६०,६६२,७१६ अतिमट्टिय [अतिमृत्तिक] रा० १२,२८१. जी० ३.४४७ अतिमुत्तग लया] [अतिमुक्तकलता] जी० ३.२६८ अतिमुत्तमंडवग अतिमुक्तमण्डपक ] जी० ३१२९६ अतिमुत्तलयामंडवग [अतिमुक्तलतामण्डपक] रा० १८४ अतिमुत्तलयामंडवय अतिमुक्तलतामण्डक रा०१८५ अतिरस [अति रस] जी० ३१५६२ अतिरेग [अतिरेक] रा० २८५. जी० ३१४५१, ५६७,७२३,७३०,७३२ अतिवय [अति+व -अतिवयंति जी० ३।१२६ अतिहिसंविभाग [अतिथिसंविभाग] ओ० ७७ अतीत [अतीत] ओ० १६८ अतीव [अतीव ] रा० ४०,१३५,२३६. जी० ३१२६५,३०२,३०३,३०५,३१३,३६८, ५८१,५६६ अतुरिय [अत्वरित | रा० १२ अतुल अतुल ] ओ०१६२२ अत्तगवेसणया [आर्तगवेषणता| ओ० ४० अत्तय [आत्मज) रा०६७३ अत्तुक्कोसिय [आत्मोत्कर्पिक] ओ० १५६ अस्थ अर्थj ओ० ३७. रा० १५,२६२,७३७, ७७४. जी० ३।२५०,४५७ अत्थ अस्त ] जी० ३।१७६,१७८,१८०,१८२ अत्थओ [अर्थतम् ] ओ० ४६. रा० ८०६,८०७ अत्यगिउर [अर्थनिकुर जी०६:८४१ अबक्ख [अदक्ष रा० ७५८,७५६ अवत्तावाण अदत्तादान] औ० ७१,७६,७७ अदत्तावाणवेरमण [अदत्तादानविरमण ] ओ०७१ अविट्रलाभिय अदष्टलाभिक] ओ० ३४ अविण्ण [अदत्त ] ओ० १११ से ११३,११७,१३७, १३८ अदिण्णादाण [अदत्तादान ] ओ० ११७,१२१,१६१, १६३. रा० ६६३,७१७,७६६ अवुत्तरं ! दे०] जी० ३१२३६ अदुवा [दे०] जी० ३।१२७ अदूरसामंत [अदूरसामन्त) ओ० ५२,६९,७०,८२. रा० १२३,६८७,६६२,७१६,७३१,७३६, ७४८,७७१ अद्द आद्र] ओ० ४७ अद्दारिट्ट आारिष्ट ] रा० २५. जी० ३।२७८ अद्ध [अर्ध [ ओ० १७०. रा० ४०,१२८,१४६, १८८,१८६,२०५ से २०८,२२७,२३१,२४७, ६६८,६६६.६८३,७०६,७११,७७२. जी० २।३८,३६,४१,४२, ३८२,१०७,२३८, २४७,२५०,२५६,२६०,२६२,२६३,३००, ३१०,३१३,३५२ से ३५४,३५९,३६१ से ३६४,३६८ से ३७१,३७७,३८३,३८६,३६२, ३६३,४०१,४०४,४०६,४०८,४२२,४२७, ५६६,५६० से ५७०,५६४,५९६,६३४,६४२, Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ अबकविठ्ठ-अपच्छिम ६४४,६४६,६५२,६५३,६५५,६७२ से ६७४, ६७६,६८३,६८५,७०६,७०८,७११,७२७, ७३२,७३७,७५६,७५८,८००,८१४,८२५, ८५१,६३६,६४४,१०१२ से १०१४,१०२८, १०३०.१०३२,१०३३,१०७४,११२४ अद्धकविट्ट [अधकपित्थ! जी० ३.१००८ अद्धकविट्ठक [अर्धकपित्थक ) जी० ३१२५७ अद्धकाय अर्धकाय | जी० ३।३२२ अडचंद अर्धचन्द्र ] रा० १२४,१३०,१३७. जी० ३।३००,३०७,५७७ अद्धच्छि [अर्धाक्षि] रा० १३३. जी० ३।३०३ अबछट्ट [अर्धषष्ठ] जी० ३।४३ अट्टम [अर्धाष्टम] ओ० १४३. रा०८०१. जी० ३।३६३,४०१,६३२ अवट्ठारस [अर्धाष्टादशन् ] जी० ३.१०५२ अवणवम अर्धनवम] जी० ३३१०४६ अद्धतेरस [अर्धत्रयोदशन् ] ओ० ५४. रा० १२६, १७०. जी० ३११६६,३५२, ३७२,३७४,३७६, ३६५,४१२,४२५,६६८ अखनवम |अर्धनवम] जी० ३।१०४६ अद्धनाराय [अर्धनाराच ] जी० ११११६ अवपंचम [अर्धपञ्चम] जी० २०३६ ; ३।४२,४७, २२,४०२,१०४६,१०४७ अक्षमागह | अर्धमागध ] जी० ३,५६४ अद्धमागहा अर्धमागधी ओ०७१ रा०६१ अद्धमास [अर्धमास] जी० ३३११८, १२६ अद्धमासपरियाय [अर्धभासपर्याय | ओ० २३ अद्धमासिय [अर्थमासिक ] ओ० ३२ अद्धसेलसुष्ट्रिय [अर्धशैलसुस्थित ] जी ० ३१५६४ अद्धसोलस [अर्धषोडशन् | जी० ३१३६८, ३६६, १०५१ अद्धाहार [अधंहार ओ० ५२,६३,१०८,१३१ रा० ४०,१३२,२८५,६८७, से ६८६. जी० ३१२६५,३०२,४५१,५६३ अद्धा [अद्धा, अध्वन् ] ओ० ११६,११७,१८२ से १८४,१६५।१४,१५,२२. रा०७६५,७७४ अद्धाज्य [अन्वायुष्क] जी० ३२१४ अबाढय अर्धाढक ओ० ११२,१३७ अद्धाण [अन् ओ० ६६,१२२ अद्धासमय (अध्वसमय | जी० ११४ अद्भुट्ट दि० जी० ३।१०७,२३७,२४२,२४३ अद्भुव [अत्रुव | ओ० २३ अद्धकूणणउति [ अधैंकोननवति | जी० ३१७५४ अद्धकोषणउइ [ अर्धे कोननवति | जी० ३७६२ अद्धकोणणवति | अधुकोननवति । जी० ३।७६८ अधष्ण [अधन्य ] रा० ७७४ अधम्म अधर्म ] रा० ६७१ अधम्मकेउ [अधर्म केतु] रा० ६७१ अधम्मक्खाइ [अधर्माख्याति ] रा० ६७१ अपम्मत्यिकाय [अधर्मास्तिकाय ] रा० ७७१. ___ जी० १४ अधम्मपलज्जण | अधर्मप्ररञ्जन] रा० ६७१ अधम्मपलोइ ! अधमप्रलोकिन् । रा०६७१ अधम्मसीलसमुयाचार अधर्मशीलसमुदाचार] रा० ६७१ अघम्माणय [अधर्मानुग] रा०६७१ अपम्भिय [आधर्मिक रा०६७१,७१८,७५०,७५१ अपम्मिट्ठ [अधमिष्ठ । ६७१ अधर अधर जी० ३।५६७ अघिय | अधिक ] जी० ३।३८७,८७८ अधे [अबस् ] जी० ३११११ अधेसत्तमा | अधःसप्तमी] जी० २११००,१०८, १२७,१३८,१४६, ३१२१,३८,४४,४६,४७, ५० से ५२,५४ से ५६,५८,५६,८३ से ५६,८८ से १०,६२,६६,१०२,१०४,१०७,१०६,११६, १२०,१२३,१२६ असत्तमो अधःसप्तमी] जी० ३१६६ अन्न अन्य रा०७ अन्नयिहि [अन्नविधि ] रा० ८०६ अपंडिय अपण्डित रा० ७३२,७३७,७६५ अपच्छिम [अपश्चिम ओ०७७ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपज्जत्त-अपुराण ५५६ अपज्जत्त अपर्याप्त | रा० ७५६. जी० ११५१,६३, अपराजित | अपराजित जी० ३१८१,२६६,७०७, ६५,१०१, ३११२६६,१३३,१३४, ४।२५; ७१३,८२४ ५५१७,२४,२६ से ३०,३३,३५,३६,३६ ४०, अपराजिय [अपराजित | ओ० १६२.जी० ३१७९६, ४२,४५,४८,५०,५२,५४ से ६० ८१३ अपजतग | अपर्याप्तक | ओ० १८२. जी० १३१४, अपराजिया (अपराजिता] जी० ३ ६१६, १०२६ ५८,६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००, अपरिगह | अपरिग्रह | अं.० १६३ १०३,१११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५; अपरितावणकर [अपरितापगकर अं० ४० ३।१३६,१३६,१४०,१४६, ४।२,५,१८,२०, अपरित्त अपरीत ] जी० ११६७,७४; ६७५,७६, २२,२३,२५: ५।३,४,७,११,१८ से २२,२५ ८ ७ से २७,३१ से ३४,३६; १०,६३,६४ अपरिपूय [अपरिपूत] ओ० १११ से ११३,१३७, अपज्जत्तय [अपर्याप्तक] जी० ११५५,१०१, ४११० १३८ अपज्जत्ति [अपर्याप्ति ] जी० श२७,८६,६६,१०१, अपरिभूय [अपरिभूत ] ओ० १४१. रा० ६७५, ११६,१२८,१३३,१३६ ७६६ अपज्जवसित अपर्यवसित ] जी ० ६।२३,२४,६६, अपरिमिय [अपरिमित | ओ० ४६,७१. रा०६१ ८१,८२,६२,१०४,१२५,१७५,१९२,२०१,२४० अपरियाइत्ता अपर्यादाय] जी० ३९९० अपरियाधिय | अपरितारित] जी० ३१६३० अपज्जवसिय अपर्यवसित] ओ० १८३,१८४,१६५. अपरिवार [अपरिवार रा० २०७,२६५,२६७, जी० ६११० से १३,१६,२५,२६,३१,३३,३४, २६६. जी० ३।४२८,४३१,४३४ ४५,५४,५८,६०,६५,६८,७१,७२,८६,६८, अपरिसेसिय [अपरिशेषित] जी० ३।७५१ ११०,११६,१३३,१३५,१४५,१६३,१६४,१७४. अपलिक्खीण [अपरिक्षीण | ओ १७१ १७६,१८०,१६५,२०२,२०५,२०६,२१५,२१६, अपवरक अपवरक जी० ३।५९४ २२७,२३०,२४६,२६१,२६५,२७६,२८५ अपसस्थकाय विणय अप्रशस्तकायविनय | ओ० ४० अपडिकूलमाण [अप्रतिकूलयत् ] ओ० ६६ अपसस्थमणविणय अप्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० अपडिक्कत | अप्रतिक्रान्त ) ओ ६५,१५५.१५६ अपसत्यवइविणय अप्रशस्तवाविनय ओ० ४० अपडिबद्ध [अप्रतिबद्ध | ओ० ७४४ अपस्समाण [अपश्यत् । ओ० ११७ अपडिविरय | अप्रतिविरत ] ओ० १६१ अपासमाण [अपश्यत् रा० ७६५ अपढम [अप्रथम ] जी० १६; ७:१,३,५,१०,१२, अपि [अपि] ओ० २३. रा० १६. जी० ११३४ १४,१६,१८,२१ से २३; ६:१ से ७,२३२, ___ अपुट्ठ ! अस्पृष्ट] जी० ११४१ २३४,२३६,२३८, २४२,२४४,२४६ २४८, अपुट्ठलाभिय अपृष्टलाभिक ] ओ० ३४ २५१ से २५३ २५५,२६७,२६६,२७१,२७३, अयुणरावत्तग [अपुनराव कि ओ० १९,२१,५४ २७६ २७८,२८०,२८२,२८५,२८७ से २६३ अपुणरायत्तय [अपुनरावर्तक स० ८ अपतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान | जी० ३।१२ अपुणरावित्ति [अनावृत्ति, अपुनरावतिन् ] रा० अपत्तट्ट [अप्राप्तार्थ] ग० ७५८,७५६ २६२. जी० ३:४५७ अपद | अपद जी० ३.१९६ अपुणरुत्त ( अपुनरुक्त ] २१० २६२, जी० ३४५७ अपराइत [अपराजित ] जी० ३।६४१ अपुण्ण [पूर्ण] रा० ७६३ अपराइय [अपराजित] जी० ३१५६६ अपुग्म [अपुण्य] रा० ७७४ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० अपुरोgra [ अपुरोहित ] जी० ३१११२० अपुव्य [अपूर्व ] जी० ११५० अह' [ अपोह] ओ० ११६, १५६ अपेन्ज [ अपेय ] जी० ३३७२१ अप्प [ अल्प ] ओ० २०,५३,६१ से १३. रा० १२, ६८५,६६२,७००,७१६, ७२६, ७५३, ७५८, ७५६,७७२,७७४,८०२. जी० १ १४३ २१६८ से ७२, ७५, १६, १३४ से १३८, १४१ से १४६ ; ३।११८, ६६५, १०३७,११३८ ४:१६,२२, २५ ; ५।१६,२०,२६, २७, ३२ से ३६, ५२, ५६,६०; ७७२०,२२,२३६७, १४,५५, २५० से २५३,२५५२०६ से २९३ अप्प [आत्मन् ] ओ० २१ से २६,४५,५२,७१,८२, ८६,६४,६८,१२०, १४०, १५४, १५५, १५७, १६०. ०८, ६, २८५,६८६, ६८७, ६८६, ६६८, '७११,७१३,७१६,७५२, ७५३, ७८७, ७८, ८१४,८१६,५१७. जी० ३१५६६, ६४४ अपकंप [ अप्रकम्प ] ओ० २७. रा० ८१३ अप्पकम्मतराय [अल्पकर्मतरक ] रा० ७७२ अपरियतराय [अल्पक्रियातरक ] रा० ७७२ अप्पकोह [ अल्पक्रोध ] ओ० ३३ अप्पगति [ अल्पगति ] जी० ३ ११२० अप्पज्जुइतराय [अल्पद्युतितरक ] रा० ७७२ अप्पक्ष [ अल्पझञ्झ ] ओ० ३३ अप्पचिकम्म [अप्रतिकर्मन् | ओ० ३२ अपfsea [ अप्रतिबद्ध ] ओ० २६ अपडलेस | अप्रतिवेश्य ] ओ० २५ अपडलो मया | अप्रतिलोमता ] ओ० ४० अप्पडिवाइ [ अप्रतिपातिन् । ओ० ४३ अपsि [ अतिहत] ओ० १६,२१,२७,५४,८४, ८५,८७,८८,०८, २६२, ७५५, ७५७,८१३. जी० ३।४५७ अप्पणया [आत्मन् ] जी० १,५०,६६ अप्यतर [ अल्पतर ] ओ० ८६ १. वृत्ती - वूह [ व्यूह ] इति व्याख्यातमस्ति 1 अप्पतराय [ अल्पत रक] रा० ७७२ अम्पतिट्ठाण [ अप्रतिष्ठान ] जी० ३।११७ अस्समाण [ अप्रद्विषत् ] रा० ७६६ अप्पनीसासतराय [अल्पनिःश्वासतरक ] रा० ७७२ अपुरोहिय-अच्पुस्सुय अपनीहारतराय [अल्पनीहारतरक ] रा० ७७२ अप्यपरिग्गह | अल्पपरिग्रह] ओ० ६१ से १३, १६१,१६३ tra [ अल्पबहु ] जी० २३१५१४ २५ अब [ अल्पagh ] जो०६ अप्पमत्त [ अप्रमत्त ] ओ० २७ रा० ८१३ अप्पमतराय | अल्प महत्तरक ] रा० ७७२ अप्पमाण [ अल्पमान ] ओ० ३३ अप्पमाय [अल्पमाय ] ओ० ३३ अप्पलोह [ अल्पलोभ ] ओ० ३३ अपसद्द [ अपशब्द ] ओ० ३३ अप्पा [आत्मन् ] जी० ३।१६८ से २०६,४५१ अप्पाबहु [अल्म्बहु] जी० ४।२२; ७ २१; ११३७ अप्पा [अल्पबहु ] जी० ५१२५,७३२०; ८१५; ६१२७ [अल्पबहु ] जी० २०६४,५३१८, ३१; ६ १२, ६३१७,२०,३५,६१,६६,७४,८७,६४, १००,१०८, ११२,१२०,१३०, १४०, १४७, १५५,१५८, १६६,१६६, १८१, १८४, १६६, २०८,२२०, २३१२५४,२६६. अप्पारंभ [ अल्पारम्भ | ओ० ९१ से १३, १६१,१६३ अप्पासवतराय [अल्पाश्रवतरक ] रा० ७७२ अप्पाहार [अल्पाहार ] मो० ३३ अप्पाहार राय [ अल्पाहारतरक ] रा० ७७२ अपिच्छ [ अच्छ] अ० ६१ से १३ जी० ३।५६८ अप्पिडितराय | अपधितरक ] रा० ७७२ अपिडिय] [ अल्पधिक ] जी० ३३१०२१ अप्पिय [ अप्रिय ] रा० ७६७ जी० १२६५; ३६२ अप्पियतरक [ अप्रियताक] जी० ३।८४ अप्पुस्सासतराय | अल्पोच्छ्वासतरक ] रा. ७७२ अस्य | अल्पौत्सुक्य ] ओ० १६४ अप्पा Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पेस- अन्भुट्ठ अप्पेस [ अप्रेष्य ] जी० ३।११२० अप्पो [ अल्पौत्सुक्य ] ओ० २५ / अप्फाल [ आ + स्काल् ] - अल्फालेइ ओ० ५६ अफालिज्माण [ अस्फाल्यमान ] रा० ७७ अप्फालेता [ आस्फाल्य ] ओ० ५६ अप्फुडिय [ अस्फुटित ] ओ० १६ जी० ३। ५६६ / अष्फोड [ आ + स्फोटयू | - अप्फोडेंति रा० २८१ जी० ३०४४७ अप्फोतामंडवग [ दे० अप्फोयामण्डनक ] जी० ३१२६६ फोयमंड [ दे० अप्फोयामण्डपक ] जी० १८४ restrisar [ दे० अप्फोयामण्डपत्र ] रा० १८५ अफर [ अपरुष] ओ० ४० अफुरमाण गइ | अस्पृशद्गति । ओ० १५२ fa [द्धि] ओ० १६० अहिलेस [ अबहिर्लेश्य ] ओ० २५, १६४ अपसरण [ अबहुप्रसन्न ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ अबाधा [ अबाधा ] जी० २।१३६; ३ ३३ से ३६, ६० से ६३, ६५, ६६, ६८, से ७२, ३००, ५६६,५७०,६६२,६६१, ७१४,८२७, १०२२ Ram [ अबाधा ] ओ० १६२. रा० १७०. जी० २|७३, ६७, ३३६६, ३५८, ५६६, ६३६, ७१४, ८०२, ८१५, ८२७, ८५२, १००१ से १००६, १०२२ अबाहूनिया [अबाधोनिका ] जी० २१७३, १७, १३६ अब्भ [ अ ] ओ० १६. जी० ३१५६७, ६२६ अब्भंतर [ अभ्यन्तर ] ० १७० जी० ३१०३८।१२ अभ्यंतर [ अभ्यन्तरक ] जी० ३१६६, २६०.६८१ अब्भक्खाण [ अभ्याख्यान ] ओ० ७१, ११७, १६१, १६३. रा० ७६६ अब्भक्लाणविवेग [ अभ्याख्यानविवेक ] ओ० ७१ अन्भणुष्णाय [अभ्यनुज्ञात] रा० ११, ५६ अभक्त [ अभ्ररुक्ष ] जी० ३६२६ ५६१ अन्भवद्दलय [ अभ्रवालक ] रा० १२, १२३ अम्भeिa [ अभ्यधिक ] ओ० ६५,६४,६५. जी० २३३६.४१,४८,४६,५३ से ५५, ५७ से ६१,६६,८३,८४,१२६; ३३१०२७ से १०३०, ११३५ ४११६; ५।१०,२६ ६ ६; ७११२, १३, १४,१७२,१७६,१८६ से १६१,१६३, २०३,२१२,२५,२२८,२३८,२४१,२७३,२७७ अब्भासवत्तिय [ अभ्यासवर्तित ] ओ० ४० अभंग [ अभ्यङ्ग ] ओ० ६३ अभिगण [ अभ्यङ्गन ] ओ० ६३ अभिगिय [ अभ्यञ्जित ] ओ० ६३ अभिंतर [ आभ्यन्तर ] ओ० ६,३०,५५,६० से ६२. रा० ४३. जी० ३।२३६,२५५, २७५,४४७, ६४३, ६५८,७६६,७६७,७७५,८३१ से ८३४, १०५५ अभिंतरय [आभ्यन्तरक ] ओ० ३०,३८,४४. जी० ३।६५८ अतिरिय [ आभ्यन्तरिक ] २० ६६०,६८३. जी० ३१२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, २४७, २४६, २५० २५४ से २५६, २५८, ३४१, ५६०,७३३,१०४० से १०४२, १०४४,१०४६, १०४७, १०४६, १०५३,१०५५ अभिंतरिल्ल [ आभ्यन्तरिक ] जी० ३|१००७ / अवभुक्ख [ अभि + उक्ष् ] - अब्भुक्ख इ जी० ३१४७० - अब्भुक्खति जी० ३।४५८अन्भुवखेइ रा० २९३ - - अभुक्खेति जी० ३१४६० अभुति [अभ्युक्ष्य ] जो० ३२४५८ अब्भुवखेत्ता [ अभ्युक्ष्य ] रा० २६३. जी० ३।४६० अब्भुग्गत [ अभ्युद्गत ] जी० ३१३०२,३५६,३६८, ३७०,६३४,१००८ अन्य [ अभ्युद्गत ] ओ० ६७. २० ३२,१३२, १३७,१५६,२०४ से २०६,२०५. जी० ३।३०७ ३५५, ३६४,३६६, ३७१, ३७२, ५६७,६७३ / अब्भु [ अभि + उत् + ष्ठा ] -- अब्भुट्ठेइ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ अब्भुट्ठाण-अभिवंदया __ ओ० २१. ना० ८. जी० ३।४४३.---अब्भुळंति अभिणिसिद्धः [अभिनिसृष्ट] रा० १३२ जी. रा० २७७ जी० ३१४५४ अब्भुट्टैमि. रा०६६५ ३३०२ अन्भुट्ठाण [अभ्युत्थान] ओ० ४० अभिणिस्सव अभि+ निर्+सु] अन्मुट्ठिय [अभ्युत्थित ] ओ० २६ --अभिणिस्स वंति, रा०१७३. जी. ३।२८३ अब्भुठेत्ता [अभ्युत्थाय ] ओ० २१. रा० ८. अभिणी ! अभि+नी] अभिणयति रा० २८१. जी० ३।४४३ । जी० ३१४४७-अभिणिज्जइस०७८३अन्भुण्णय [ अभ्युन्नत] रा० १३३. जी० ३।३०३, अभिणेति रा० ११७ अभिस्थणत [अभिष्टुवत् ओ० ६८ ५६७ अभय [अद्भुत] रा० ७० अभियुष्वमाण [अभिष्ट्रयमान | ओ० ६६ अभयवय | अभयदय ] ओ०१६,२१,५४. अभिदुध । अभिद्रुत ] जी० ३।१२६.७ रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ अभिनिस्सव | अमि- निर्व –अभिनिस्सअभयसिद्धिय [अभवसिद्धिक] रा० ६२. बंति रा० ३० जी० ६.१०६ से ११२ अभिमुह अभिमुख ] ओ० ४७,५२.६९,७०,८३. अभासग [अभाषक जी० ६५६,६०,६१ रा० ६०,६८७,६६२,७१४,७१६ अभासय [अभाषक ] जी० ६५८ अभिराम [अभिराम] ओ० २,५५,५७, ६३. रा० अभिड [अभिजित् ] जी० ३।८३८।३२,१००७ ६,१२,१७,१८,२०,३२,३७,५२,५६,१२६, अभिक्खणं अभीक्ष्णम् ] रा० १७३. जी० ३ २८५ १३२,२३१,२३६,२४७,२८६. जी. ३.२८८,. अभिक्खलाभिय [अभिक्षालाभिक ] ओ० ३४ ३००,३०२,३११,३७२,३६३,३९८,४४७, अिभिगच्छ [अभि + गम् ] --अभिगच्छई ५८६ ओ०६६. रा०७१६--अभिगच्छति अभिरुव [अभिरूप] ओ०१,७,८,१० से १३,१५, ओ० ७०.---अभिगच्छामो रा० ७३५ ७२,१६४. रा०१,१६ से २३,३२,३४,३६ से अभिगच्छणया [अभिगमन ] ओ० ४० ३८, १२४,१३०.१३३,१३६,१३७,१४५,१५७, अभिगम [अभिगम] ओ० ६६, ७०. रा० ७७६ १७४,१७५,२२८,२३१,२३३,२४५,२४७,२४६, अभिगमण [अभिगमन] ओ० ५२. रा० ६.१२, ६६८,६७०,६७२,६७६,७००,७०२. जी. ४७,६८७. जी० ३८४१ ३।२३२,२६१,२६६,२६६,२७६,२८६ से अभिगमणिज्ज [अभिगमनीय ] रा० ७०३,७३५ २८८,२६०,३३०,३०३,३०६,३०७,३११, अभिगय [अभिगत ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ३८७,३६३,४०७,४१०,५८१,५८४,५८५, ७५२, ७८९ ५६६,५६७,६३६,६७२,८५७,८६३,११२१, अभिगिज्म अभिगृह्य ] जी० ३।५६२ ११२२ अभिघट्टिज्जमाण अभिघट्यमान | रा० १७३. अभिलस [अभि-- लष् ] -अभिलसइ रा० ७१३ जी० ३२६५ ..-.-अभिलसंति ओ० २०. रा० ७१३ अभिणवंत [अभिनन्दत् ] ओ०६८ अभिणं दिज्जमाण | अभिनन्द्यमान | ओ०६६ अभिलाव [ अभिलाप] जी० ३।४,५,१२,४१,४३, अभिणय [अभिनय ] रा० ११७,२८१. जी० ४४,७७.८८,१२५,२२६,४५१ ३।४४७ अभिवंदए अभिवन्दितुम् ] ओ० ५५. रा० १३ अभिनिवट्टित्ताणं [अभिनिवस्य ] रा० ७७० अभिवंदया | अभिवन्दितुम् ] ओ० ६२. Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिसमण्णागय-अयभारग ५६३ अभिसमण्णागय [अभिसमन्वागत] रा०६३,६५, अमम्मण [अमन्मन] ओ०७१. रा०६१ ६६७,७६७ अमय अमृत] रा० ३८,१६०,२२२,२५६. जी० अभिसमागच्छ [अभि-+सं+आ+ गम् । ३३३३३,३८१,३८७,८६४ ...अभिसमागच्छइ रा०७१६. अमयरस | अमतरस ] रा० २२८. जी० ३.२९६ -----अभिसमागच्छति रा०७५३ अमर [अमर ओ० ४६,१६॥२०. रा० ५१ अभिसिंच [अभि-+सिच |--अभिसिंचति रा० अमरवह [अमर पति ] ओ० ६४ २८०. जी० ३।४४६ अमलगंधिय [अमलगन्धिक] ओ० १२. ० २२ अभिसिंचित्ता [अभिषिच्य] रा० २८२. जी० अमलगंधीय [अमलगन्धिक] जी० ३।२६० ३४४८ अमला अमला] जी० ३१६२१ अभिसित्त [भिषिक्त रा० २८३. जी० ३।४४६ अमाण [अमान | ओ० १६८ अभिसेक (अभिषेक जी० ३ ४३६ अमाय [अमाय] ओ० १६८ अभिसेगसभा [अभिषेकसभा] रा० २६५,२६७ ।। अमिय [अमृत ! ओ० १६५।१८ अभिसेय [अभिषेक ] ओ० ६८. स० २६६,४७५. अमेहावि अमेधाविन् । रा० ७५८,७५६ जी० ३१४४५,५३४,५६७ अमोह [ अमोघ ] जी० ३१६२६,८४१ अभिसेयसभा अभिषेकममा रा० २७७,२७६, अमोहा [अमोघा | जी० ३१६६६,६१० २५३,४७४,४७६,४७७,४६६,५१४,५१५. अम्मड | अम्बड ओ० ११५,११७ से १४१ जी० ३.४२६,४३०,४३१,४३४,४४३,४४५, अम्मापिइ [अम्बापितृ औ० १४२,१४६ ४४६,५५३,५३५ से ५३९ अम्मापिउ अम्बापितृ] ओ० १४७,१४६. रा० अभिहड [अभिहृत ओ० १३४ ८००,८०७ अभिहणमाण [अभिघ्नत् ] जी० ३३११० अम्मापिउसुस्सूसग | अम्बापितृशुश्रूषक ] ओ०६१ अभिहय [अभिहत ] जी० ३।११८,११६ अम्मापियर [ अम्बापितृ] ओ० १४४,१४५. रा० अभूओवघाइय [अभूतोपघातिक] ओ० ४० ८०२,८०३,८०५.८०८,८१० अमेत्ता [अभित्वा] जी० ३।६६० अभेयकर [अभेदकर] ओ० ४० अम्ह [अस्मत् रा० ८. जी. ३.४४१ अय [अयस् ] रा०७५४,७५६,७५७,७७४ अमच्च [अमात्य] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२,७६४ अयकोट्ट । अयःकोष्ठ ] जी० ३७८ अमछरियया [अमत्रारिकता] ओ० ७३ ।। अयगर [अजगर जी० १.१०५,१०६, ३१६२५ अमणाम [दे० अमन 'आप'] रा० ७६७. जी० अयगरी [अजगरी] जी० २१८ ११६५; ३ ६२,१२२,१२३, १२८ अयण [अयन ओ० २८. जी० ३१८४१ अमणामतरक दे० अमन 'आप' तरक] जी० अयपाय [अयस्पात्र ओ० १०५,१२८ ३३८४,८५ अपिंड [अयस्पिण्ड] जी० ३१११८,११६ अमणुण्ण [अमनोज्ञ ] ओ० ४३. रा० ७६७. अयपुग्गल [ अयस्पुद्गल] रा० ७७४ जी० ११६५; ३.३६९२ अयबंधण [अयोबन्धन] ओ० १०६,१२६ अमणुण्णतरक [अमनोज्ञतरक] जी० ३१८४ अयभंड [अयोभाण्ड ] रा० ७७४ अमत [अमृत] जी० ३.३१२,४१७ अयभार [अयोभार] रा० ७७४ अमम [अमम } ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३।६३१ अयभारम [अयोभारक] रा ० ७६०,७६१,७७४ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ अयभार [ अयोभारक ] रा० ७७४ अयभारय [ अयोहारक, अयोभारक ] रा० ७७४,७७५ अल [ अचल ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३४५७ अयसकारण [ अयशःकारक ] ओ० १५५ अयसि [ अवती ] ओ० १३,४७, रा० २६. जी० ३२७६ अहार [ अयोहारक, अयोभारक ] रा० ७७४,७७५ अया [ अजा ] जी० ३।६१६ अयागर [ अयआकर ] रा० ७७४, जी० ३.११८ अयोग [ अयोगिन ] जी० ६ ११६ अयोमय [ अयोमय ] जी० ३।११६ अयोमुह [ अजमुख ] जी० ३।२१६ अरह [ अरति ] ओ० ४६. जी० ३ १२८।१० अरहर [अरतिरति ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ रा० ७६६ अरकमंडल [अरकमण्डल ] रा० १७३,६८१. जी० ३२२८५ अरणि [अरणि] रा० ७६५ अरति [ अरति ] जी० ३।१२८ अरतिरतिथिवेग [ अरतिरतिविवेक ] ओ० ७१ अरमणिज्ज [अरमणीय] रा० ७८१ से ७८७ अरसाहार [अरसाहार ] ओ० ३५ अरह [अर्ह ] रा० ७७१,८१५,८१७ अरहंत [अर्हत्] ओ० २१,४०,५२,५४,७१,११७, १३६. रा० ८,११,५६,२६२,७१४, ७४६, ७६६. जी० ३८४५७,७६५,८४१ अरि [अरि] जी० ३।६१२,६३१ अरिस [ अर्शस् ] जी० ३६२८ अरिह [अहं] ओ० ७१,१४७, रा० ६१, ७१४, ७७६,८०८ अवण [अरुण] जी० ३३६२७,६२८,६५० अरुणप्पभ [ अरुणप्रम ] जी० ३.७४८,७४६,७५३ अरुण महावर [ अरुण महावर ] जी० ३।६३० अरुणवर [ अरुणवर ] जी० ३७७५, ९२६,६३० अयभार अलेस अरुणवरभद्द [ अरुणवरभद्र ] जी० ३।९२६ अरुणवरमहाभद्द [ अरुणवरमहाभद्र | जी० ३.६२६ अरुणवरोव [ अरुणवरोद | जी० ३१६३०,६३१ अरुणवरोभास [ अरुणवरावभास ] जी० ३।६३१, ६३२ अरुणवरोभासभद्द | अरुणवरावभासभद्र ] जी० ३६३१ अरुणवरोभासमहाभद्द [ अरुणवरावभासमहाभद्र ] जी० ३१६३१ अरुणवरोभासमहावर [ अरुणवरावभासमहावर ] जी० ३१६३२ अरुणवरोभासवर [अरुणवरावभासवर ] जी० ३६३२ अरुणोद [ अरुणोद | जी० ३६२८, ६२६ अरुय [ अरुज ] ओ० १६.२१, ५४. रा० ८,२९२. जी० ३।४५७ अवि [ अरूपिन् ] जी० ११३,४ अलं [ अलम् ] ओ० १४८ ० ८०६ अलंकार [अलङ्कार ] त्रो० ६७,७०,१२,१४७, १६१,१६३. रा० १३, ५३, १७३,२८६,६५७, ७१४, ७५१, ७६४,८०२,८०५,८०८. जी० ३:२८५,४४६, ४५५ अलंकारि [ अलङ्कारिक ] रा० २६८,२८४, ५३५. जी० ३ । ४३२, ५४१ अलंकारियसभा [ अलङ्कारिकसभा ] रा० २६७, २६६,२८३,२८६,५३४, ५३६, ५३७,५५६, ५७४, ५७५. जी० ३।४३१, ४३३, ४३४,४४६ ४५२,५४०, ५४२ से ५४६ अलंकित [ अलंकृत ] जी० ४,४५२ अलंकिय [ अलङ्कत ] ओ० २०,५३,६३ रा० १३०, २८५,२८६,६८५, ६८६, ६६२,७००, ७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००, ४५१ अलभमाण [ अलभमान ] ओ० ११७ अलाउपाय [अलाबुपात्र ] ओ० १०५,१२८ अलाय [अलात ] जी० १७८३२८५ अलियवयण [ अलीकवचन ] ओ० ७३ असे [मलेश्य ] जी० १ १३३ ६ २६,१६५ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलेस्स अवसेस अलेस्स [ अलेश्य ] जी० ६ १८५, १९२, १९६ अलोग [ अलोक ] ओ० १६५॥२ अलोष [ अलोक ] ओ० ७१ अलोह [अलोभ ] ओ० १६८ अल्लई [ आर्द्रकी ] जी० ३१२८१ अल्लकी [ आर्द्रकी ] रा०२८ अल्लीण [ आलीन ] ओ० १६,६१ ० ८०४. जी० ३५६६ से ५६८,७६५,८४१ अल्लीणया [ आलीनता ] ओ० ११६ अवउडग [ दे० अवकोटक ] रा० ७५४,७५६, ७६४ अबंक [ अवक्र ] ० ७६,१७३. जी० ३।२८५ अवंग [ अपाङ्ग ] रा० १३३. जी० ३।३०३ अदुवार [ दे० अपावृतद्वार] ओ० १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ अवक्कम [ अप + क्रम् ] - अवक्कमति रा० १०. जी० ३८७ - अवक्कमति रा० १८ carefer [ अपक्रम्य ] रा०. १० जी० ३।४४५ अवक्खेवण [ अवक्षेपण] ओ० १८० अवगय [ अपगत ] ओ० ६३ अवगाढ [ अवगाढ] रा० ७७४ अवज्ञाणायरिय [ अपध्यानाचरित] ओ० १३६ अवति [ अवस्थित ] जी० ३।५६.५६६ अयि [ अवस्थित ] ओ० १६. रा० २०० जी० ३/२७३, ३५०, ७६०, ८३८/११ अब [ अपार्ष ] जी० २,६५,८८,१३२; ३१८३६; ६/२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, १४६, १६४, १६५, १७८, २०२, २०४ अवडोमोदरिय [ अपाधयमोदरिक, उपाध० ] ओ० ३३ rana [ अवनद्ध ] रा० ७६०, ७६१ √ अवणी [ अप + नी ] - अवणेमो रा०७२६ अवणीत [ अपनीत ] जी० ३१८७८ अवणीयजवणीयचरय [ अपनीत उपनीतचरक ] ओ० ३४ अवणीयचरय [ अपनीतचरक] ओ० ३४ ५६५ अवर्णमाण [ अपनयत् ] रा० ७३२ अणकार [ अवर्णकारक ] ओ० १५४ अवतासिज्माण [ अपत्रास्यमान ] रा०८०४ √ अववाल [ अव + दलय् ) -- अवदालेइ ओ० १७० अवदा लिय [ अवदालित ] ओ०१६ अबदालेत्ता [ अवदल्य ] ओ० १७० अधिणाणि ] अवधिज्ञानिन् ] जी० ३११०४,११०७ अवमाण [ अपमान ] रा० ८१६ अवमाण [ अपमानन ] ओ०४६ अवयंसंग [ अवतंसक ] रा० १७३, ६८१ अवर [ अपर] रा० ४०, १३२, १६३, १६९ जी० ३१२६५, २८५, ३५८, ५६५ √ अवरज् [ अप् + राष्] - अवरज्झइ रा० ७६७ अवरण्ह [अपराह्न ] रा० ६८५ अवरत | अपरात्र ] रा० १७३ अवरविदेह [अपरविदेह ] जी० २,२६,५६,७०, ७२,८५,६६,११५,१२३, १३७, १३८, १४७, १४६ ३१४४५, ७६५ अवरविदेहक [ अपरविदेक | जी० २।१३२ अवरविदेहिया [ अपर विदेहिका ] जी० २२६५ अवराहि [ अपराधिन् ] रा० ७५१ अवरुत्तर [ अपरोत्तर ] रा० ४१,६५८. जी० ३।३३६, ५५८, ६३५,६५७,६८० अवलंबण [ अवलम्बन ] रा० १६, १७५. जी० ३३२८७, ८६० अवलंबणबाहा [अवलम्बनबाहु ] रा० १६,१७५. जी० ३।२८७ अवलa [ अपलब्ध ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ raft [ वलि ] रा० २६ जी० ३१२८२ अवलिया [ अवलिका ] श० २५ जी० ३।२७८ अब [ अवव ] जी० ३८४१ अवसाण [ अवसान ] ओ० ६३ अवसेस | अवशेष [ ओ० ७२, ७६, १६७ रा० ४८, ५७, १६४ जी० ११५६, ६७, ३१२५०, ३४५, ३५६, ६३०, ६६४, ९६५, १०२६ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ अववहारि-असंखेज्ज अववहारि [अव्यवहारिन् ] रा० ७६६ अविससलेस्स [अविशुद्धले श्य] जी० ३१६९ से अवहट्टु [अपहृत्य ] ओ०६६ २०४, २०६, २०८ अवहमाणय [अवमानक ओ० १११से ११३, अविस्साम [अविश्राम] ओ० ५० १३७,१३८ अवेहय [अवेदित ] रा० ७५१ अयहार [अपहार] जी० ३।१२७ अवेबग [अवेदक ] जी० ६।२२, २६, २७,१२६, अवहित [अपहृत] जी० ३९० अवहिय [अपहृत] जी० ३११०८५, १०८६ अवेदय [अवेदक] जी० ६।२४, २५ विहीर [अप+ह ]-..अवहीरंति जी० ३६० अवेय [अवेद] जी० १११३३ अवहीरमाण [अपह्रियमाण ] जी० ॥६०, १०८६ अवेयग [अवेदक] जी० ६ १२१ अवाईण [अवातीन, अवाचीन] ओ० ५, ८ जी० । अवेयय ] अवेदक] ६।१२५ ३२७४ अव्वत्तिय मिव्यक्तिक] ओ० १६० अवाउज्य [अप्रावृतक] ओ. ३६ अध्यय [अव्यय ] रा० २०० जी० ३१५६,२७२, अवाय [मवाय] रा० ७४० ३५०, ७६० अवायविजय [अपायविच य] ओ० ४३ अश्ववहारि [अव्यवहारिन् ] रा ७६६ अवापाणुप्पेहा [अपायानुप्रेक्षा] ओ० ४३ मव्वह [अव्यथ] ओ० ४३ प्रति [अपि] रा० १२ जी० १११६ अव्वहित [अव्यथित] जी० ३१६३० अविनोसरणया [अव्युत्सर्जन] ओ० ६६, ७० अश्याबाह [अव्याबाध] ओ०१६, २१, ५४, रा० ७७८ १६५।१३ रा०८,२९२ जी० ३४५७ अविगह [ अविग्रह] ओ० १८२ अवाहित [अव्याहृत] जी० ३।२३६ अविग्ध [अविघ्न ओ०१८ अिस [अस] -अस्थि, ओ०२८ रा०२०० अवितह [अवितथ] ओ० २६, ६६,७२. जी. श६२-अत्थु ओ० २१ रा.८ जी। रा०६६६ ३३४५७-असि रा० ७४७ --आसि रा० अविद्धत्य अविध्वस्त] जी०३।११८ २०० जी० ३।२६--आसी ओ० १६५।३ अविप्पयोग [अविप्रयोग] ओ० ४३ रा० ६६७--सिष रा० १९८-सिया ओ० अवियारि [अविचारिन्] ओ० ४३ ३३ रा०१२ अविरत्त [अविरक्त] ओ० १५ रा ६७२ असई असकृत्] जी० ३१९७५ असंकिलिट्ट [अमुक्लिष्ट] ओ० ४७ अविरय [अविरत ] ओ० ८४, ८५.८७, ८८ असंकिलिट्रपरिणाम असंक्लिष्टपरिणाम] अविरल [अविरल ] ओ० ५, ८, १६ जी० ओ०६० ३२७४, ५६६, ५६७ असंख [असंख्य ] जी० १३१२८ अविरहिय [अविरहित] जी० ३१८३८॥ १७ असंखिज्ज [असंख्येय] रा० ५६ जी० ११८०, अविराय [दे० अप्रस्फुटित ] जी० ३।११८ १२१, ३१८६ अविरुद्ध अविरुद्ध ] ओ० ६३ असंखेज्ज [असंख्येय ] ओ० १७३,१८२. रा० १० अविलीण [अविलीन] जी० ३३११८ १२,१२४,१२६,२७६,७७२. जी० २३३,५१ अविसंघि [अविशन्धि] ओ० ७२ ५५,५६,५८,६१,६२,६४,६५,७३,७७ से ७६ अविसय [अविषय] जी० ११४७ ८१,८२,८७,८८,६०,६६,१०१,१०३,११२, Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असरिस ११६,११६,१२३,१२८,१३३,१३६,१३६, जी०६१४१, १४३,१४६,१४७ १४०; २।१२०,१३१, ३।१६,२१,२६,२७, असंत असत् ] ओ० १६५।१६ ५१,६४,६५,८१,८२,१०,११०,१५५,१६५, असंविद्ध [असन्दिग्ध] ओ० ६६. रा० ६६६ २५७,२५६,३५१,४४५,६३८,७०१,७१०,७३६, असंनिहि । असन्निधि] जी० ३२५६८ ७४७,७६१,७६४,७६८,७६६,७७६ से ७७६, असंपत्त | असम्प्राप्त ] ओ० ४७,८४,८५,८७. रा० ८१४,८३८१,६४०,६४४,६५२,६५३,१००६, ४०,५६, १३२. जी १५८, ७३,७८,८१, १०७३.१०७४,१०८३,१०८५,१०८६,११११, १११५, १८, ६,२२,२३,२६,४१ से ५० असंबद्ध असम्बद्ध जी० ३३११०,१११५ ५६,५८, ८१४; ६४०, ५१,६७,१७१,२५७ ।। असंभंत | असम्भ्रान्त ] रा०१२ असंखेजहभाग [असंख्येयतमभाग | रा० ७६६. असंवुड [असंवृत] ओ० ८४,८५,८७ जी० ११६,७४,८६,६४,१०१,१०३,१११, असंसहचरय [असंसृष्टचरक] ओ०२४ ।। ११२,११६,१११,१२१,१२३,१२५,१३०, असंसारसमावण्ण [असंसारसमापन्न] जी ११६ से ६ १३५,१३६; २।२५, ३० से ३४,५३, ५७ से असच्चामोसमणजोग अमत्यमृषामनोयोग] ६१,७३, ६/६७, १८६ ओ० १७८ असंखेज्जगुण [असंख्येयगुण ओ० १८२,१६५।१०. असच्चामोसवइजोग [असत्यमृषावाग्योग] ओ० जी० २१६६, ७१,७२,६५,६६,१३४ से १३६, १७९ १३८,१४३ से १४६; ३।१६५, ११३८ असण [अशन] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. ४॥२३,२५, ५११८ से २०, २५,२७,३१ से रा०६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६,७८७ ३६,५२,५६,६०, ६११२, ७.२०, २२,२३; से ७८६,७६४ से ७६६,८०२,८०८ ८।५, ६, ७,५५,१००,१२०,१४०,१४७, असणग [अशनक] ओ० १३ १५८,१६६,१८१,१८४,२०८,२२०,२३१, असणि [अशनि] जी० २१७८ २५० से २५२, २५५,२६६.२८६ से २८८, असण्णि [असं शिन् ] जी० १२२४, ८६,६६,१०१, २६०,२६१,२६३ ११६,१२८,१३६; ३८८; १०१,१०३, असंखेज्जजीविय [असंख्येयजीविक] जी० ११७१,७२ . १०६,१०८ अखेजतिभाग [असंख्येयतमभाग) जी० २११३९; असति [अपकृत् ] जी० ३११२७. ३१६१, १५६,२१८,४३६,६२६,९६६,१०८६, असब्भावपट्टवणा [असद्भावप्रस्थापना] १०८७,१०८६,११११, ५६, २३,२४,२६ जी० ३.१०६,११८,११६ ९४०, ५१,१७१,१८७,१८८ असब्भावभावणा [असद्भावोद्भावना] असंखेज्जभाग [असंख्येयभाग] ओ० १६२. ओ०१५५,१६० जी० ३६१ असमोहत [असमवहत ] जी० १।१२८; ३३१५८, असंग [असङ्ग] ओ० २० १६८, १६६,२०४,२०५ असंघयण [असंहनन | जी० ३११२६४ असमोहय (असमवहत] जी० ११५३,६०.८७ असंघयाणि [असंहनिन् ] जी ० ११६५, १३५; असम्मोह [असम्मोह ] ओ०४३ ३३६२,१०६० असरणाणुप्पेहा (अशरणानुप्रेक्षा] ओ० ४३ असंजय [असंयत] ओ० ८४,८५,८७,८८. असरिस [असदृश ] जी० ३६११०,१११५ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ असरीर-अहापडिरूव असरीर [अशरीर] ओ० १८३,१८४,१६५।११. असुरहार [असुरद्वार] जी० ३८८५ रा० ७७१ असुरिंद असुरेन्द्र ] ओ० ४८. जी० ३१२३५ से असरीरि [अशरीरिन् ] जी० ६।६२,१७०,१७५, २३६,२४३ १८०,१८१ असुह [अशुभ] जी०३६२,१२६१० असहिज्ज [असाहाय्य] रा० ६६८,७५२,७८६ असोग [अशोक ओ०८,९,१२,१३. रा० ३,४, असहेज्ज [असाहाय्य ] ओ० १२०,१६२ १३३. जी० १७१; ३१३०३,६२७ असावज्ज [असावद्य] ओ० ४० असोगलया [अशोकलता] ओ० ११. रा० १४५.. असासत [अशाश्वत ] जी० ३१५७,५६ जी० ३.२६८,५८४ असासय [अशाश्वत] रा० १६८,१६६. जी० ३१८७, असोगलयापविभत्ति [अशकलताप्रविभक्ति] २७०,२७१,७२४,७२७,१०८१ रा० १०१ असि [असि] मो० ६४. जी० ३६११०,६०७,६३१ असोगवडेंसय [अशोकावतंसक] रा० १२५ असिइ [अशीति] जी० ३१५ असोगवण [अशोकवन] रा० १७०. जी० ३।३५८ असिद्ध [असिद्ध] जो० ६६,११,१३,१४,१६,२६, असोय [अशोक रा० १८६. जी० ३३५६,५६० असोयपल्लवपविभत्ति [अशोकपल्लवप्रविभक्ति] असिपत्त [असिपत्र] जी० ३१८५ रा० १०० असिय [असित] रा० १३३. जी० ३३०३ अस्स [अश्व ] जी० ३।७६३ असिलक्खण [असि लक्षण] ओ० १४६. रा ८०६ । अस्सकण्णि [अश्वकर्णी] जी० ११७३ असिलिट्ठ [अश्लिष्ट] रा० ७७४ अस्साद आस्वाद] जी० ३१९५८ असीत [अशीति] जी० ३१३५५ अस्साय [असात ] जी० ३३१२६५,१० असोति [अशीति] जी० ३३१७ अस्सुय [अश्रुत] ओ० ५२ असीय [अशीति ] रा० १६३. जी० ३।३३५ अह [अथ ] ओ० २२ असुइ [अशुचि] ओ० ६८,१४४, रा० ६,१२,७५३, अहसायचरितविणय | यथाख्यातचरित्रविनय] ८०२ जी० ३८४,६२२ ओ० ४० असुभ [अशुभ] रा० ७५३. जी० ११९५; ३७७, अहत [अहत] जी० ३।४५१ ११६,१२६४ अहमिद [अहमिन्द्र] जी० ३११०५६,११२० असुभाणुप्पेहा [अशुभानुप्रेक्षा] ओ ४३ अहय [अहत ] ओ०६३. रा०७,२६१. जी० ३१४५७ असुय [अश्रुत] रा० १६ अहर [अधर ] ओ० १६,४७. जी० ३३५६६ असुर [असुर] मो० ६८,१२०,१६२. रा० २८२, अहव [अथवा] जी० ३।५९४ ६६८,७५२,७७१,७८६,८१५. जी० ३।२३२, अहवा [अथवा जी० १११३३ ४४८,८८५ अहवणवेव [अथर्वणवेद] ओ० ६७ असुरकुमार [असुरकुमार] ओ० ४७. जी० २।१६, अहाणुपुथ्वी [ यथानुगूर्वी | ओ ६४. रा० ४६ से ३७, ३१२३३,२३४,२४० ५४,७७४ असुरकुमारराय [असुरकुमारराज] जी० ३।२३४ ।। अहा [अय] रा० ७२३ ___ से २३६.२४३ अहापडिरूव [ यथाप्रतिरूप] ओ० २१,२२,५२. असुरकुमारिद [असुरकुमारेन्द्र] जी० ३।२३४ रा० ८,६,६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहापरिग्गहिय-आइय अहापरिग्गहिय [ यथापरिगृहीत] ओ० १२० अहाबायर [ यथाबादर] रा० १०,१२,१८,६५, २७६. जी० ३।४४५ अहाह [पथासुख) रा०६६५,७७५ अहासुहम यथासूक्ष्म] रा० १०,१२,१८,६५, २७६. जी० ३१४४५ अहि [अहि] जी० १११०५.१०६,१०८; ३१८४,६५,६२५,६३१ अहिगय [अभिगत] रा० ६८८ अहिगरण [अधिकरण] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७८६ अहिय [अधिक] ओ० ५७,६३ रा०७०, १३३, २३८. जी० २११५१; ३३२२६६२,५,३०३, ६७२,११२२, ७.१६,१८, ६।४,२४४,२४६, २८०,२८२,११२२ अहिययर [अधिकतर रा० १३३. जी० ३।३०३, ११२२ अहियास [अधि+ आस्, सह |-अहियासिज्जति ओ० १५४. रा० ८१६ अहिलाण [अमिलान] ओ० ६४ अही [अही] जी० २१८ अहीण [अहीन] ओ० १५,१४३.रा० ६७२,६७३ ८०१ अहणा [अधुना] जी० ३१४४८ अहुणोववण्ण [अधुनोपपन्न ] रा० ७५१,७५३ अहणोक्यपणमित्तय [अधुनोपपन्नमात्रक रा० २७४ अहणोववण्णय [अधुनोपपन्नक] रा० ७५१,७५३, ७६७ अहे [अधस् ] ओ० १८६. रा० १३२ जी० ११४५ अहेसत्तमा [अधःसप्तमी] जी० ११६२,११६, १२२ ; २।१३५,१४८,१४६ ; ३१११ से १३, २७,३२,४३,४७,४६,५३.७६,७७,७६,८०,८२, ८७, ६३ से ६५,६७,१०३,१०४,१०६,१०८, ११५.११७,१२१ से १२३,१२५,१२७,१२८ अहो [अहो] रा०६६६ अहोनिस [अहनिश] जी० ३।१२६८ अहोरत [अहोरात्र] ओ० २८ जी० ३८४१ अहोवहिय [आधोवधिक] रा० ७३३,७३४,७३६ अहोवाय [अधोवात] जी० १८१ अहोसिर [अधःशिरस् ] ओ० ४५,८२ आ आइ [आदि] ओ० २३,६३,६६. जी० १०१३३; ३।१०२७ आई [३०] रा० ७०५ आइक्स [आ+चक्ष,ख्या} - आइक्खइ ओ० ५२. रा० ६८७-आइक्खंति जी० ३।२१०आइक्खह ओ० ७६-आइक्खामि जी० ३१२११–आइक्खिस्सामो रा०७१६ -आइक्खेज्जा रा०७१५-आइक्खेज्जाह रा० ७२० आइक्सग [आख्यायक] ओ० १,२ आइक्खगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ आइक्खमाण [आचक्षाण,आख्यात् ] ओ०७६ से ८१ रा० ७२०,७३२ आइक्खित्तए [आचक्षितुम् ,आख्यातुम् ] ओ० ७६ आइगर [आदिकर] ओ० १६,२१,५२,५४ रा०८ आइच्च [आदित्य] जी० ३१८३८।४ आइज्ज आदेय ] ओ०१६ आइण [आजिन] रा० ३१ आइणग [आजिनक] जी० ३:४०७,५६५ आइग्ण [आकीर्ण ] ओ० १,१४,१६,६४. रा० १७३,६७१,६७५,६८१,७७४. जी० ३१२८५,६६५ आइपण [आचीर्ण ] रा० ११,५६ आइण्ण [दे० जात्यश्व जी० ३।५६६ आइय | आदिक] ओ० २३,१२०,१४६,१६२ जी० ३१२५६ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० आईण [ आजिन ] जी० ३।२८४,१०७६ आईग [ आजिनक ] ओ० १३ ० ३७,१८५, २४५. जी० ३।२६७,३११ आउ [ आयुष् | जी० १११२८ आउ | दे० अ ] जी० २।१३०, १३६, ३३१२३, ६७४ ५८,१२,२०,२७,२६,३३,३६, ६६२५७ आकाइ [ अकायिक ] जी० १११२ : ३।१८२, १८४,२५६,२६२,२६६; ५३६, १८; ८५ आउकाय [ अकाय ] जी० ३।१३५, ७२५, ७२८ आक्काsa [ अप्कायिक | जी० ११६३,६५, २११०२, १३८, १४६, १४९, ३।१३५, ५। १. १६,२० = १ आजक्खय | आयुःक्षय ] ओ० १४१. रा० ७६६ आउज्ज [आतोय ] रा० ७०,७१,७५ आउधागार [ आयुधागार ओ० १४. ०० ६७१ आउ | आयुक] ओ० ४४,६१ से ६३, १५७, १७१,१८८. रा० ७५३. जी० ११५१,५५,६१, ८७, १०१,११६, १२७,१३३, ३।१५५,६३० आउर | आतुर | रा० ७६०,७६१. जी० ३ ११८, ११६ आउल | आकुल | ओ० ६३. जी० ३३८४ आउस | आयुष्मत् | ओ० ७६,१२०,१७०. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१८५, १६७, ६६८ ७५०,७५२, ७८६. जी० १.५६,६२,६५,८२,६६ १२८,१४० ३१७६, १७८, १८०,१८२,२५६, २६६, २६७,३०१,३०२, ३२१ से ३२४,५८२, ५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से ६०७,६०६ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५,६२७,६२८,६३०, ६६५,१०५६,११२० आउसेस [ आयुःशेष ] रा०८१६ आउह [ आयुध ] रा० ६६४,६८३. जी० ३।५६२ आएज्ज [ आदेव | जी० ३१५६७ आएस [ आदेश ] जी० २।१५०, ६१२२ आओग [ आयोग ] ओ० १४,१४१ २१० ६७१,७६६ आओस [आक्रोश ] रा० ७६६ आई-आगार आओत्तिए [ आक्रोष्टुम् ] रा० ७६६ आकति [ आकृति ] रा० १४८ आकारभाव {आकारभाव ] जी० ३१२५६ आकासतल [ आकाशतल ] जी० ३१५६४ आकिति | आकृति ] जी० ३३४५४ आकोसात | आकोशायमान, विकसत् ] जी० ३३५६६,५६७ आगइ | आगति ] जी० १११४ आगइय [ आगतिक ] जी० ११७४,७७,८७,८८, १६, १०१ आगंतुं [आगन्तुम् ] रा० ७५० आवच्छ [ आ + गम् ] -- आगच्छइ ओ० १७७ -- आगच्छंति जी० ३।२३६ - आगच्छिज्जा रा० ७०६ - आगच्छेज्ज ओ० १८०आगच्छेज्जा ० २१. जी० ३१६६आगच्छेद् रा०.७६५ आगच्छत्तए | आगन्तुम् ] रा० ७५१ आगत | आगत ] रा० १७३. जी० ३।२६५,२८५ आगति [ आगति | ग० ८१५ आगतिय | आगतिक | जी० ११५६, ६२,६४,६५, ६७,७६,८०,८२, १०३,१११, ११२,११६,११६, १२१,१२३, १२८, १३४, १३६ आगमण [ आगमन | ओ० ५१. रा० ६८६ आगमणागणविभत्ति | आगमनागमनप्रविभक्ति ] २० ८७ आगमेसिभद्द [ आगमिष्यद्भद्र ] ओ० ७२ आगम्म | आगम्य | ओ० २ आगय | आगत ] ओ० ५२. रा० ४०,७०,१३२, ६८५,६८७,६६,७१३,७६५,८०२. जो० ११६६ आगर | आकर | ओ० ६८,८६ से ६३,६५,६६, १५५,१५८ से १६१, १६३,१६८. रा० ६६७. जी० ३१०४१ आगार | आकार | ओ०१६. जी० ३१४८ से ५०, ३०३,३४६,३५७,६३७, ६५६, ७३८, ७४३, ७६३,११२२ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागारभाव-आताडिज्जत आगारभाव [आकारभाव] जी० ३१२१८,५७८, आणत्तिया [आज्ञप्तिका ओ०५५ से ६१. रा० ५६६,५६७ ६,१२,१७,४६,७३,११८,६५४,६५५,६५१, आगास [आकाश ] ओ० १३,१६ ६८२,६६०,६६१,९०६,७१४,७१५,७२४, आगासस्थिकाय [आकाशास्तिकाय रा० ७७१. ७२५. जी० ५५४,५५५ जी० १२४ आणपाणपज्जत्ति आनप्राणपर्याप्ति, आनापानआगासथिग्गल [आकाश 'थिग्गल'] रा० २५ पर्याप्ति] रा० २७४,७९७ जी० ३१२७८ आणपाणपज्जत्ति मानप्राणपर्याप्ति, आनापानआगासफलिह [आकाशस्फटिक जी० ३१४५१ पर्याप्ति] जी० ११२६ आगासफालिह [आकाशस्फटिक)। रा० २८५ आणय [आनत ] ओ० ५१,१६२. जी० ३११०३८, आगासाइवाइ [आकाशातिपातिन् ] ओ० २४ १०५३,१०६२,१०६६,१०६८,१०७६,११११ आगासिय [आकाशिक] ओ० १६ आणव (आ+ज्ञापय् ] - आणविज्जइ रा० ७६७. आगिति [आकृति ] स० २८८. जी० ३।३२१ -~-आषवेइ रा० १३.---आणवेज्जा रा०७७६ आघव आ+ख्या --आधविज्जति जी० आणा [आज्ञा] ओ० ५६,५७,५६,६१,६८,७६, ३।०४१ ७७. रा० १०,१४,१८,७४,२७६,२८२,६५५, आघवण [आख्यान ] रा ० ७७४ ६८१,७०७. जी० ३३५०,४४५,४४८,५५५, आघवित्तए [आख्यातुम्] रा० ७७४ आघवेमाण [आख्यात् ] ओ०६८ आणापाणु [आनापान, आनप्राण] ओ० २८. जी. आजीविटत आजीवदृष्टान्त] जी० ३११७४ ३१८४१ आजीवय [आजीवक] ओ० १५८ आणापाण अपज्जत्ति आनागनापर्याप्ति, आनाप्राणामारह [आधा -आडहइ, ओ० ५६ पर्याप्ति ] जी० १२७ आडहित्ता [आधाय ] ओ० ५६ आणापाणुपज्जत्ति [आनापानपर्याप्ति, आनप्राणआढय आढक] ओ० ११३,१३८. रा०७७२ पर्याप्ति] जी० ३।४४० आढा [आ-द] —-आढाइ रा० ६४.---आढाति आणामित आनामित] जी० ३१५६७ रा० ७५३ आणामिय [आनामित] ओ० १६ जी० ३१५६६ आणंदा [आनन्दा] जी० ३।६१४ आणारुइ | आज्ञारुचि ओ० ४३ आणंदिय आनन्दित] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, आणाविजय }आज्ञाविचय ] ओ० ४३ ६२,६३,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, आणी | आनी]-.-आणेस्सामि रा० ७२० १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, आणुगामियत्त | आनुगामिकत्व ] ओ० ५२. रा० २७९,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५. २७५,२७६,६८७. जी० ३.४४१,४४२ ७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५, आणुपुम्व आनुपूर्व्य रा० १७४. जी० ३२२८६ ७२६,७७४,७७८. जी० ३१४४३,४४५,४४७, आणपुथ्वी [आनुपूर्वी] जी० ११४८ ५५५ आतंक [आतङ्क] जी. ३१६२८ आणण आनन] ओ० ५१,६३,६५ आतंब [आताम्र] जी० ३:५६६ आणत [आनत] जी० २।६२,६६,१४८,१४६ आतपत्त आतपत्र जी० ३१४१६ ३११०५४,१०८६,१०८८ आताडिज्जंत [आताड्यमान] रा० ७७ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ आतिथ [ आदिक ] रा० ६३,६५ आतोज्ज [ आतोच | जी० ३।५८८ आवसंग [ आदर्शक ] जी० ३।३५५ समुह [आदर्शमुख ] जी० ३।२२६ आदर | आदर] ओ० ६७. रा० १३,६५७ आरिफल [ आदर्शफलक ] ओ० २७. रा० ८१३ आदि [ आदि ] ५२, ७०. जी० ११४६, २०१३१; ३/२२६, २५०,८६६.६७२,८७५.८७६,८७६, ८१,६२६, ६२७, ६३७,६४१, ६४८, ६४६, ६५२, १०८४,१०८६; ६१४६ आदिगर | आदिकर ] ० ५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ आदिय | आदिक ] रा० ७४,५२, ११८. जी० ३.६१७ आदीय | आदिक ] जी० ३१२५६,६५० आवेज्ज [ आदेय ] जी० ३१५६६, ५६७ आदेस [आदेश ] जी० ११५८,७३,७८,८१ २१२०, ४८ आधार [ आहार ] जी० १:१२८ √ आधाव [ आ + धावु ] - आवावंति जी० ३.४४७ आपडिपुच्छ्माण | आप्रतिपृच्छत् | ओ० ६६ आपुच्छणिज्ज [आपच्छनीय ] रा० ६७५ आपूत | आपूर्यमाण ] जी० ३१७३१ आपूरेमाण [ आपूर्यमाण' ] रा० ४०, १३२, १३५, २३६. जी० ३।२६५,३०२, ३०५,३६८. आवाह [ आबाध ] ओ० १६६ आवाहा | आवाधा ] जी० ३.६२०,६२५ आभरण [ आभरण] ओ० २०,५२,५३,६३. रा० ६६,७०,१५६, १५७, २५८, २७६, २८१, २८६,२६१,२६४,२६६,३००,३०५, ३१२, ३५५,६८५,६८७, ६८६,६६२,७००,७१६, ७२६,८०२. जी० ३,३२६, ४१६,४४७, ४५२, १- आपूरयन्ति शत्रन्तस्य शाब्दि रूपम् | जी० वृत्ति ] | आतिय आमंतेत्ता ४५७,४५,६,४६१, ४६२,४६५, ४७०,४७७, _५१६,५२०,५४७,७७५,६३६, ११२१ से ११२३ आभरणचित्त [आभरणचित्र ] जी० ३५६५ आभरणविहि [आभरणविधि ] मो० १४६ रा० ८०६ आभा [ आना ] ओ० ५१ आभासित | आभाषिक ] जी० ३।२१६ आभासिय [ आभाषिक ] जी० ३।२१६ आभासयदीव | आभाषिकद्वीप ] जी० ३।२१६, २२३ भासिया (आभाषिका ] जी० २११२ आभिओगिय [ अभियोगिक ] ओ० १५६. रा० ६,१०,१२,१३,१७ से १६,२४,३२,४१,४६, ५४,२७८,२७६,२६०,६५४,६५५. जी० ३।४४४,४४५,४५०,४५३,४५६,५५४,५५५, ६१० आभिणिविणाणि [ आभिनिबोधिकज्ञानिन् | जी० ३।१०४, ११०७ आभिणिवोहियाण [ आभिनिबोधिकज्ञान ] ओ० ४० रा० ७३६ से ७४१,७४६ आभिणिबोहियणाणविजय [ आभिनिबोधिकज्ञानविनय ] ओ० ४० आभिणिबोहियाणि | आभिनिबोधिकज्ञानिन् | ओ० २४. जी० १८७,६६, ११६,१३३; ६१५६,१६०,१६५, १६६.१६८,२०४,२०८ आभिणिनोहियाणि | आभिनिवोधिकज्ञानिन् ] जी० ६ १६७ आभियोग | अभियोग्य ] रा० ४७ अभियोग [ अभियोग्य ] रा १० अभिसेक्क [ अभिषेक्य ] मो० ५५ से ५७,६२ से ६४,६९ आभोत्ता | आग्य ] रा० ८१६ अभीएमाण [ आभागयत् ] रा० ७ √ आमंत [ आ + मन्त्रय् ) -- आमंतेइ ओ० ५५ आमंतेत्ता [ आमन्त्र्य ] ओ० ५५. रा० ६६८ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमरणंत दोसआयावणभूमि आमरणं तदोस [ आमरणान्तदोष ] ओ० ४३ आमलकप्पा [ आमलकल्पा ] रा० १,२, ८ से १०, १३, १५,५६ आमलग [ आमलक ] रा० ७७१ जी ११७२ आमलय [ आमलक ] रा० ७७० आमेल [ आपीड ] ओ० ४६ ० ६६,७० आमेलग | आपोडक ] रा० १३३ जो० ३।३०३, ५६७ आलय [ आपish ] ओ० ५७ आमोद [ आमोट ] रा० ७७ आमोडिज्जत [ मोट्यमान ] रा० ७७ आमोसहिपत्त [आमषौषधिप्राप्त ] ओ० २४ आय [आत्मन् ] जी० ११५० आयंक [आतङ्क ] ओ० ४३,११७. रा० १२,७५८, ७५६, ७६६. जी० ३।११८ आयंत [आचान्त ] ओ० २१,५४. २०२७७, २८८,७६५, ८०२ जी० ३०४४३ आयं [आताम्र ] ओ० १६ आयंबिलय [ आचाम्लक ] ओ० ३५ आयंबिलवद्धमाण [आचाम्लवर्धमान ] ओ० २४, ३५ आयंस [आदर्श ] रा० १४६, २५८,२७६, जी० ३५६७ आयंसंग | आदर्शक ] जी० ३३२२,४१६,४४५ आसघर [ आदर्श गृहक] १० १०२, १८३. जी० ३।२६४ आयंसघर [आदर्शगृहक ] जी० ३।२६५ आयंसमंडल | आदर्शमण्डल ] रा० २४ जी० ३।२७७ आसमुह [आदर्शमुख ] जी० ३१२१६,२२६।४ आसय [ आदर्शक] ओ० १३ आयत [आयत ] ओ० १६,४७. रा० १२४. जी० २५ ३१५७७, ५६६,६३६, १०३६ आयपच्चय | आत्मप्रत्ययिक, प्रात्ययिक ] रा० ७५४,७५६ aar [ आयत ] जी० ३.२२,५६७ आयर [ आदर ] जो० ३।४४६ ५७३ आयरक्त [आत्मरक्ष] रा० ७,४४,५६,५८,२८०, २८२,२८६,२६१,६५७,६६४ जी० ३/३४५, ३५०, ३५६,४४६, ४४८, ५५७,५६२, ५६३, ६३७,६५६,६८०,७००,१०२५, १०३८ आयरिय [आचार्य ] बो० ४०,४१,१५५. रा० ७७६ आयव [ आतप ] ओ० ८६ आयवत [आतपत्र ] ओ० ६४. रा० ५०, ५१, २५५ आयवाभा [आतपाम ] जी० ३।१०२६ आयाए [आदाय ] रा० ७७४ आयाण [ आदान ] ओ० १६. जी० ३।५९६ आयाणमंड मत्तणिक्खेवणासमिय [ प्रदानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित ओ० २७,१६४ आयाण मंडमत्त निक्खेवणासमिय [आदान भाण्डामंत्रनिक्षेपणासमित ] ओ० १५२. रा० ८१३ Tere [आयाम ] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६,१२८, १३७, १७०, १८८, २०६ २११,२१८,२२१,२२२,२२४,२२६,२२७, २३०, २३३,२३८,२४२, २४४, २४६, २५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी० ३.५१८१,८२, ८६,२१७,२२२,२२६,२६०,३०७,३१०,३५१, ३५३,३५५,३५८,३५६, ३६१,३६४,३६५, ३६८ से ३७२,३७४, ३७६, ३७७, ३८०, ३८१, ३८३,३८५,३८६,३६२,३६५, ४००, ४०४, ४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२, ४२५, ४२७, ४३७,५७७,५६७,६३२,६३४,६३९, ६४२, ६४४,६४६, ६४६, ६५२, ६५५, ६६८, ६७१,६७३ से ६७५,६७६,६८३, ७३६७३७,७५४, ७५८, ७६२,७६५,७६८,८३५, ८८२, ८८४,८८७, ८६१,८६३ से ५६५, ८६७,८६६,६०१,६०६, ६०७,१०,१०१० से १०१४, १०७३, १०७४ आयामसत्यभोs | आयामतिक्थभोजिन् ] ओ० ३५ आधारवर [आचारधर ] ओ० ४५ आयारवंत [आकारवत् । मो० १ atraणभूमि [आतापन भूमि ] ओ० ११६ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ #tex आपावणा [ आतापना ] ओ० ६४ आयाक्य | आतापक] ओ० ३६ आयावा | आत्मवाद | ओ० २६ आयामाण [ आतापयत् ] ऑ० ११६ आवाहण | आदक्षिण | ओ० ४७,५२,६६,७०,७८, ८०,८१. रा० ६,१०,१२,५६,५८,६५,७३,७४, ११८, १२०,६८७,६६२,६१५,७००, ७१६, ७१८,७७८ आयिण [ आजित | जी० ३१६३७ आरंभ | आरम्भ | ओ० ९१ से ६३, १६१,१६३ आरंभसमारंभ [ आरम्भसपारम्भ | ओ० ११ से ६३ आरण [ आरण ] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५४,१०६६, १०६८, १०७६,१०८८,११११ आरबी [ आरबी ] ओ० ७०. रा० ८०४ आरभड [ आरभट ] रा० १०८,११६,२८१. जी० ३२४४७ आरभडभसोल [आरभटभसोल ] रा० ११०,२८१. जी० ३।४४७ आराम [ आराम ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, ६५५,७१६. जी० ३।५५४ / आराह [ आ + राघ् ] - आराहेहिइ रा० ८१६ आराह्ग [आराधक ] ओ० ८ से ६५, ११४, ११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ ओ० ७७ आराहणा | आराधना आराहय [ आराधक ] ओ० ७६,७७. रा० ६२ आराहित्ता [ आराध्य ] ओ० १५४. रा० ८१६ आरिय | आये | ओ० ५२,७१. ० ६६७,६८७. जी० ३१२२६ आरहण [ आरोहण ] रा० २६१, २६४,२६६,३००, ३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७, ४५६, ४६१, ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५, १६, ५२०, ५४७, ५६४ आरोहन | आरोहक ] ओ० ६४ आलंकारिय [ आलङ्कारिक ] जी० ३१४५० आलंबण [ आलम्बन | ओ० ४३. रा० ६७५ आलंबणभूय [आलम्बनभूत ] रा० ६७५ आयवणा आवण मलय [ आलय ] रा० ८१४ आलवंत [आलपत्] रा० ७७ आलावा [आलापक] जी० ३१६२ : ५१५१,५८ आलिंग | आलिङ्ग ] रा० २४,६५,६७,१७१. जी० ३२१८, २७७, ३०६,५७८, ५८८,६७०, ७५५, ८८३ आfers [ आङ्गिक ] जी० ३१७८ ferage [ङ्गनवर्तिक ] रा० २४५. जी० ३१४०७ आलिघर [ आलिगृहक] रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४,८५७ आलघर [ आलिगृहक] जो० ३।२६५,८५७ / आलिह [ आ + लिखु ] - आलिहइ रा० २६१. ----आलिखति जी० ३३४५७ आलिहिता [ आलिख्य ] रा० २६५. जी० ३२४५७ आलुय [ आलुक | जी० ११७३ आलोइय [ आलोचित ] ओ० ११७.१४०,१५७, १६२,१६४,१६५ रा० ७६६ आलोय [ आलोक] ओ० ६३,६४. रा० ५०,६८, २६१,३०६. जी० ३।४५७, ४७१, ५१६ आलोयारह [आलोचनार्ह ] ओ० ३६ आवई [ आपत् ] रा० ७५१ आवइकाल | आपत्काल ] ओ० ११७ आवकहिय [ यावत्कथिक ] ओ० ३२ आवज्जीकरण [आवर्जीकरण] ओ० १७३ आवड / आवृत्त ] रा० २४. जी० ३।२७७ आवडप चावडसे ढिप सेढिसोत्थियसोवत्थियपूस माणवबद्धमाण गमच्छंडमगरंडाजारामाराफुल्लावलिपचमपत्तसागरतरं गवसंतलतापजमलयभत्तिचित्त [लावृत्तप्रत्यावृत्तश्रेणिप्रश्रेणिस्वस्तिकसौवस्तिक पुष्यमाणववर्धमाणकमत्स्याण्डमकर एण्डक जा रकमारक फुल्लावलिपद्मपत्रसागरतरङ्ग वासन्तील तापलताभक्तिचित्र ] रा० ८१ आवडिय [ आपतित ] रा० १४ आवण [ आपन ] ओ० १५५. रा० २८१. जी० ३:४४७,५६४ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयत - आसाय आवत्त [ आवर्त ] रा० ६६. जी० ३१८३८ १० आवत्तणपेढिया [ आवर्तन पीठिका ] रा० १३०. जो० ३१३०० आवबहुल [ आपबहुल ] जी० ३६, १०, १७, २५, ३०,६३ आवरण [आचरण] ओ० ५७,६४. रा० १७३, ६८१. जी० ३१२८५ आवरणावरणपविभत्ति [ आवरणावरणप्रविभक्ति ] रा० ८८ आवरिता [ आवृत्य ] रा० ७१६ आवरिस [ आ + वृष् ] - आवरिसेज्जा रा० १२ आवरेत्ता [ आवृत्य ] रा० ७१६ आवरताण [ आवृत्य ] रा० ७१६ आवलिपविभत्ति [आवलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ आवलियपविट्ठ [ आवलिकाप्रविष्ट ] जी० ३३७८ आवलियबाहिर [आवलिकाबाह्य ] जी०३।७८ आवलिया [ आवलिका ] ओ० २८ जी० १११३६, ३,८४१ आलियाविट्ठ [आवलिकाप्रविष्ट ] जी० ३ १०७१ आवलियाबाहिर [आवलिकाबाह्य | जी० ३|१०७१ आवस्य [ आवश्यक ] रा० ७२३ आवास [ आवास ] ओ० १, १६२. रा० ६८४, ६८५, ७००, ७०६. जी० ३।२५७ ७३५ से ७४३, ७४५ से ७४७,७४९ से ७५१, ७७५, ६३७ आवाह | आवाह] जी० ३।६१४ आविद [ विद्ध ! ० ५२, ६३. रा० ६६, ७०, १३१, १४७, १४८, २५०, ६६४, ६८७ से ६८६, जी० ३१३०१, ४४६ आविल [ आविल ] जी० ३ ७२१ आवकम् [ आविष्कर्मन् ] रा०८१५ आस [ अश्व ] ओ० ६६, १०१,१२४. रा० ५७५ ७२० ७२३, ७२४, ७२६, ७३१. ७३२. जी० २१८४ ३६१८, ६३१, १०१५ आसकरण [ अश्वकर्ण ] जी० ३।२१६, २२६ आग [ आस्यक ] जी० ३।१०६ आसण [ आसन ] ओ० १४, १४१. रा० १८५, ६७१, ६७५७१४, ७६६. जी० ३।२६७ ५७६, ६८३, ११२८, ११३० आसणपयाण [आसनप्रदान ] ओ० ४० आसणाभिग्गह [ आसनाभिग्रह ] ओ० ४० आसत [ आसक्त ] ओ० २.५५. ० ३२, २०१ २६१,२४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३।३७२, ४४७, ४५६, ४६१, ४६२, ४७०, ४७७, ५१६, ५२० आसवर [ अश्वधर] ओ० ६६ आम [ आश्रम ] ओ० ६८, ८ से ६३, ६५ ६६, १५५, १५८ से १६१, १६३, १६८. रा० ६६७ आसमुह [ अश्वमुख ] जी० ३।२१६, २२६ / आसय [ आस् | - - आसयंति २०१८ ५ जी० ३१२१७-- आसयह रा० ७५३ आसरह [ अश्वरथ ] ० ६८१ से ६८३,६८५/६६० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२,७२४,७२६ आसल | आसल ] जी० ३८१६, ६०, ६५६ आसव | आश्रव] ओ० ७१,१२०,१६२. रा० ६६८, ७५२७८६ आसव | आसव ] जी० ३१५८६ आसवोद [ आसोद ] जी० ३।२८६ आसवोयग | आयवोदक | रा० १७४ आसा | आशा ] ओ० २५, ४६, रा० ६८६ आसाएमान [आस्वादयत् ] रा० ७६५, ८०२ आसाद [ आस्वाद | जी० ३८६०, ६६६, ८७२ ६७८,६५५ ६६० आसावणिज्ज [आस्वादनीय] जी० ३६०२, ८६० ८६६,८७२,८७८, ६५५,६६० आसाय [आस्वाद ] जी० ३।६०१६०२, ६६१ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ आसालिय [आशालिक ] जी० ११०५, ११०, १३३; २११०५ आसित [ आसिक्त ] ओ० ५५, ६० से ६२ आसिया [ आमिक्त ] रा० २८१. जी० ३।४४७ आसीत [ अशीति ] जी० ३१५ आसीबस [ आमीविष ] जी० १।१०७ V आह [ब्रू ] - आहंसु जी० १1१०आहिज्जेति जी० १११० आहत [ आहत ] जी० ३।८४५ आहम्मत [ आहन्यमान ] रा० ७७ प्राय [आहेत ] ओ० ६८ √ आहर [आ + हृ] - आहरेइ ओ० ११८ माहरण [ आभरण] ओ० ४६. रा० ६८८ हाकम्मिय | आधामिक] ओ० १३४ आहार आहार] ओ० ३३,७३,६२,११७ से ११६. रा० ७३२,७३७,७७२, ७६६. जी०१।१४,३३, ५०,५६,६५,८२,८७,६६,१०१,११६,१३३, १३६, ३६७,१२७, १२६, ५६६,६००,६०३, ६३१; ६१६६ आहार [ आधार ] रा० ६७५ √ आहार [ आ + हारय् ] - आहारेइ रा० ७३२– आहारेति रा० ७०३. जी० १/३३ १७३, १८१ आहारत [ आहारत्व ] जी० ३।११०० आहारपज्जत्ति | आहारपर्याप्ति ] ० २७४, ७६७ जी० १:२६, ३१४४० आहारभूय [आधारभूत ] रा० ६७५ आहार [ आहारक ] जी० ६ ३६,४१ आसालिय-इंदा भिसेग आहारसाणा [ आहारसंज्ञा ] जी० १ २०,१३२; ३।१२८ आहारिता [ आहार्य ] जी० ३/६०३ आहारेत [ आहर्तुम् ] ओ० ६३ आहारेमाण [ आहरत् ] ओ० ३३. १० ७६५ ~ आहाव [ आ + धाव् ] -- आहावति रा० २०१ आहि [माख्यात] जी० ३१८३८३ [ [ आहोत ] ओ० २ आणिज्ज [ आहवनीय] ओ० २ आणिय [ आहत्य ] रा० ६ आहेवच्च [आधिपत्य ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।३५०, ३५६, ४४८, ५६३, ६३७, ६५६, ७६०, ७६३ [इ] इ [ चित्] ओ०७४|४ इ [ इति ] जी० ३६५ आहार अपज्जत्ति [ आहारापर्याप्ति ] जी० १२७ आहार | आहारक ] जी० ६।३८ से ४०,४६, ५०, ५५ आहारगमी सासरीर | आहारक मिश्रकशरीर ] ओ० १७६ आहारगसरीर [ आहारकशरीर | ओ० १७६ जी० ६१७८ आहारगसरीरि [आहारकशरीरिन् ] जी० ६ १७०, इंदगाह [ इन्द्र० ६ ] जी० ३१६२८ √ इ [इ] - एति जी० ३।१७६ -- एह रा० ७२३ [इति] रा० २४ इओ [ इतस् ] ओ०८ इंगाल [अङ्गार] रा० ४५. जी० ११७८; ३८५ ११८ इंगालसोल्लिय [अङ्गारपक्व ] ओ०६४ इंगिय [ इङ्गित ] ओ० ७० रा० ८०४ इंद [ इन्द्र ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३२४४८, ७५५,८४३, ८४६, ८४७,६३७, १०४८ इंदकील | इन्द्रकील ] ओ० १. रा० १३० इंदखील [ इन्द्रकील ] जी० ३।३०० इंदगाव [ इन्द्रगोप ] रा० २७ इंदगोवय [ इन्द्रगोपक] जी० ३।२८० बट्टा | इन्द्रस्थान ] जी० ३१८४८, ८४७ इंदषण | इन्द्रधनुष ] जी० ३१६२६,८४१ sacs [ इन्द्रभूति | ओ०८२ इंदमह [ इन्द्रमह ] रा० ६८८,६८६ जी० ३।६१५ इंदाभिसेग [ इन्द्राभिषेक ] रा० २८२,२८३. जी० ३।४४६, ४४७ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंदाभिसेय-इन्भ इंदाभिसेय [इन्द्राभिषेक रा० २७८ से २८१ इडि [ऋद्धि] मो० ४७,६५,६७,७२,८६ से १५, जी० ३.४४४,४४८,४४६ ११४,११७,१५५,१५७ से १६०.१६२,१६७. इंदिय [इन्द्रिय ] ओ०६३. जी० १११४,२२,८६, रा० १३,१५ से १७,५५,५६,५८,२८०,२६१, ८८,६०,९६,१०१,११६,१२८,१३६, ३१५६२, ६५७,७७२,८०३,८०५. जी० ३।४४६,४४८, ४५७,५५७,६०६ इंदियपज्जत्ति [इन्द्रियपर्याप्ति ] रा० २७४,७९७. इण [एतत् ] जी० ३।५ जी० ॥२६; ३१४४० इणं [इदम्] ओ० ७२ इंदियपडिसंलोणया [इन्द्रियप्रतिसंलीनता] ओ० इति [इति रा० ८. जी० ३११८ इतिहास [इतिहास] ओ०६७ इंदु [इन्दु] रा० २५५. जी० ३१४१६ इत्तरिय [इत्वरिक ] ओ० ३२ इक्कमिक्क [एकक] जी. ३११२७ इत्ति [इति] जी० ११३६ इक्खाग [इक्ष्वाकु] रा० ६८८ इत्तो [इतस् ] ओ०१६५।१७. ० २५. इक्खगपरिसा [इक्ष्वाकुपरिषद् ] १० ६१ जी० ३।२७८ इक्खुवाड [इक्षुवाट] रा० ७८१,७८४,७८६, इस्थ [अत्र) जी० ३१२४४ ७८७ इत्थंठिय [इत्थंस्थित] ओ०७२ इगयालीस [एकचत्वारिंशत् ] जी० १७१८ इरिय [स्त्री] जी० २११०५ इच्छ [इष]--इच्छइ रा० ७५१- इच्छसि इथिकहा [स्त्रीकथा] ओ०१०४,१२७ रा० ७६५-इच्छसी जी० ३१८३८२६ इत्थिया [स्त्री] ओ० ६२. जी० २१११,१५ से १६, -इच्छामि रा०६३--इच्छेज्ज रा० ७५१ ३७,६७ से ७२,७४,१४४,१४६ से १४८,१५१; - इच्छेज्जा रा० ७५१ ३.८८ इच्छा [इच्छा] ओ० ४६ इथिलक्खण [स्त्रीलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ इच्छापरिमाण [इच्छापरिमाण] ओ०७७ इथिवेद [स्त्रीवेद जी० १६१३६; २१७३,७४; इच्छिय [इष्ट] मो० २३,६६. रा० ६६५ ।१२६ इच्छियपरिच्छिय [इष्टप्रतीप्ट ] ओ० ६६. इत्थिवेदग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१३० रा०६६५ इत्यिवेय [स्त्रीवेद] जी० ११२५,१३३ इट्ठावाय [इस्टकापाक] जी० ३।११८ इथिवेयग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२१ इट्ट [इष्ट] ओ० १५,६८,११७. रा० ६७२,६८५, ५. इत्थिवेयय [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२२ ७१०,७५० से ७५३,७७४,७६६. इत्थी स्त्रिी ] ओ० ३७. जी० २।१ से ३,६,१०, जी० ११३५, ३.१०६०,१०९६,११२४ १४,२० से ३०,३२ से ३६,३६ से ४६,५४, इद्रुतर [इष्टतर] जी० ३।१०७८, १०७६ ५६ से ६६,७०,७६,७८,८०,८३,८५.८६,९४, इट्टतराय [इष्टतरक] २२० २५ से ३१,४५. १०५,१४१ से १५१, ३३१४८,१४६,१६४ इत्थीलिंगसिद्ध [स्त्रीलिङ्गसिद्ध] जी०११८ जी० ३१२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८,६५६,६६१ इदाणि [इदानीम् ] जी० ३१८४३ इम्भ | इभ्य] ओ० २३,५२,६३. रा०६८७ से इड्डरग [दे०] रा० ७७२ ६९६,६६५,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. इड्र य (दे०] रा० ७७२ जी. ३६०६ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ इन्भपुत्त-उक्कोस इन्भपुत्त [इभ्यपुत्र] रा०६८८,६८६,६६५ इम (इदम् ] ओ० ७. जी० १३१० इयाणि इदानीम् ] ओ० ११७. रा० ७५३ इरियासमिय | ईर्याः मित ] ओ० २७,१५२,१६४ इव इव | ओ० २३. रा० ७०. जी० ३१४४८ इसिपरिसा ऋषिपरिपद् | ओ० ७१. रा० ६१, ७६७ इसिवादिय ऋषिवादिक] ओ० ४६ इह (इह ! ओ० २१. रा०६८७. जी० १११ इह [इह | ओ० २१. रा० ६८७. जी०३।११६ इहगत | इहगत ] रा०८ इहगय [इहगत ] ओ० २१. रा० ७१४ इहभव इहव] यो० ५२. रा०६२७ इहलोग [ इहलोक ] ओ० २६ ईहा [ईहा] ओ० ११६,१५६. रा० ७४० ईहामइ ईहामति) रा० ५७५ ईहामिअउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररहसरभचमरकंजरवणलयपउमलयभत्तिचित [ईहामृगवृषभतु र गरमकर विहग-यालकफिन्तररुरुसरभचमरकुञ्जरवनलतापलता भक्तिचित्र] रा० ८३ ईहामिय [ईहामृग] ओ० १३. रा० १७,१८,२०, ३२.३७,१२६. जी० ३१२८८,३००,३११,३७२ जा उ उ [तु] जी०२।१५१ उंबर [उदुम्बर] जो० ११७२ उंबरयुएफ | उदुम्बरपुष्प ] रा० ७५० से ७५३ उक्कंचण [दे०] रा० ६७१ उपकंधणया [दे० ] ओ०७३ उक्कलियावाय [उत्कलिकावात ] जी० ११८१ उक्कस [उत्कर्ष ] जी० श२८ उक्का | उल्का ] रा० ७०,१३३. जी. ११७८ ईयाल [एकचत्वारिंशत् ] जी० ३।७३६ ईरियासमिय [ ईसिमित ] रा० ८१३ ईसत्य [इष्वस्त्र] ओ० १४६. रा० ८०६ । ईसर ईश्वर ओ० १८,२२,६३,६८, रा० २८२, ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी०३३५०, ४४८,५६३,६०६,६३७,७२३ ईसा [ईषा] जी० ३।२५४ ईसाण ईशान] ओ० ५१,१६०, १९२. जी. १९५६; २.१६,४७,६६,१४८,१४६; ३१६१६,६२१,१०३८,१०४३,१०४४,१०५७, १०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७५,१०७७ से १०८३,१०८५,१०८७,१०६०,१०६१, १०६३, १०६७ से १०६६.११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५, १११७,१११६,११२१,११२२,११२४,११२८ ईसाणग। ईशानक] जी० ३११०४३ ईसि ईषत् ] ओ १३. रा० ४. जी० ३.२६५ ईसिणिया [ ईशानिका] ओ० ७०. रा० ८०४ ईसी [ईषत् ] ओ० ४७ ईसीपभारा [ईषत्प्रारभारा] मो० १६१ से १६५ उक्कापात [उल्कापात ] जी० ३६६२६ उक्कामुह [उल्कामुख ] जी०३१२१६,२२६ उक्किट्ठ [उत्कृष्ट ] ओ० ५२. रा० १०,१२,५६, २७६,६८७,६८८. जी० ३१८६,१७६,१७८, १८०,१८७,४४५,८४२,८४५ उक्किट्टि [उत्कृष्टि] जी० ६।४४७ उक्किट्ठिया [उस्कृष्टिका] रा० २८१ उक्किरिज्जमाण [उत्कीर्यमाण] रा० ३० जी० ३।२८३ उक्कुडुयासणिय [उत्कुटुकासनिक] ओ ३६ उक्कोडिय [औत्कोटिक] ओ० १ उक्कोस [ उत्कर्ष ] ओ० ६४,६५,११४,१५५,१५७, १५६,१६०,१६२,१६७,१८७,१८८,१६५।५. जी० १११६,५२.५६,६५,७४,७६,८२,८६ से ८८,६०,६४,९६,१०१,१०३, १११,११२,११६. ११६,१२१,१२३ से १२५,१३०,१३३,१३५ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसपद-उच्छलंत ५७६ से १४०,१४२, २०२० से २२,२४ से ५०, उम्गत उद्गत जी० ३।३००,५६५ ५३, से ६१,६३,६५ से ६७, ७३,७६,८२ से उगतव { उग्रतपस् ] ओ० ८२ ८४,८६ से ८८,६० से ६३,६७ १०० से १११, उग्गपुत्त उग्रपुत्र ] ओ० ५२. रा०६८७ से ६८६, ११३,११४,११६ से १३३,१३९; ३१८६,८६ ६१,१०७,११८ से १२०,१२६१२,१३६,१६१, उगमणग्गमणपविभत्ति (उदगमनोगमन प्रविभक्ति १६२,१६५,१७६,१७८,१८०,१८२,१८६ से रा०८६ १६२,२१८,६२६,८४४,८४७,८६०,९६६, उम्गय [उद्गत रा०१७,१८,२०,३२,१२६. १०२२.१०२७ से १०३६,१०८३,१०८४, जी० ३१२८८,३७२,५६० १०८७,१०८६,११११,११३१,११३२,११३४ उग्गलच्छाव | दे०]-- उगलच्छामि ग०७५४ से ११३७; ४३ से ११,१६.१७, ५५,७,८, उग्गलच्छावित्ता दे०] रा० ७५४ १० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६२,३, उगह [अवग्रह] रा० ७४०,७४१ ६,८ से ११, ७३,५.६,१०,१२ से १८; उग्धोसेमाण [ उद्घोषयन् | स०१३,१५ ६२ से ४,२३ से२६,३१,३३,३४,३६,४०,४१, उच्च {उच्च ] जी ० ३१३१३ ४३,४७,४६,५१,५२,५७ से ६०,६५ से ७३, उच्चंतग [उच्चन्तक] रा० २६. जी. ३१२७६ ७७,७८,८०,८३,८५.८६,१०,६२,६३,६६,६७, उच्चत्त [उच्चत्व] ओ०१८७. रा० ४०.१२७ से १०२,१०३,१०५,१०६,११४,११५,११७,११८, १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२,२२२, १२३ से १२८,१३२,१३४,१३६,१३८,१४२, २२७,२३१,२३६,२४७,२५१,२५३. १४४,१४६,१४६,१५०,१५२,१५३,१६० से जी० ३३१२७,२६१ से २६३,३००,३०७, १६२,१६४,१६५,१७१ से १७३,१७६ से १७८) ३५२ से ३५५,३५६,३६४,३६८ से ३७४, १८६ से १६१,१६३,१६४, १९८ से २००, ३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२,४१४, २०२ से २०४,२०६,२०७,२१० से २१४, ५६६,५६७,६३२,६३४,६४६,६४७,६५२६६१ २१६ से २१८,२२२ से २२५,२२८,२२६, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, २३४,२३६,२३८,२४१ से २४४,२४६,२५७ ७३६,७३७,७५६,७६५,८३६,८८२,८८४, से २६०,२६२,२६४,२६६,२७१,२७३,२७७ ८८५,८८७,८८८,८६४,८६८,६००,६०७, स २८२ ६११,६१८,१०६७,१०६६,१०७० उक्कोसपद उत्कर्षपद] जी० ३११६५ से १६७ उच्चार [उच्चार] रा० ७६६ उफ्कोसपय [उत्कर्षपद] जी० ३.१६५ उच्चारण [उच्चारण ] ओ०१८२ उक्खित्त [उक्षित] रा० ११५. जी० ३।४४७ ।। उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिद्रावणियासमिय उक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तचरक ] ओ० ३४ (उच्चारप्रस्र वणवेलसिंघाणजल्लपारिष्ठापनिउक्खित्ताणिदिखत्तधरय [उत्क्षिप्तनिक्षिप्तचरक कीसमित ] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ ओ० ३४ उच्चावय [उच्चावच] ओ० १४०,१५४,१६५, उक्खित्ताय [उत्क्षिप्तक] रा० १७३,२८१. १६६. रा० ७६६,८१६. जी० ३२३९,९८२ जी० ३।२८५ उच्छंग [उत्सङ्ग] ओ०६४ उक्खु [इक्षु] जी० ३१६२१ उच्छल [उत् + शल्-उच्छलेति रा० २८१. उक्खेवण [उत्क्षेपन] ओ०. १८० जी० ३.४४७ उग्ग [उन] ओ २३,५२. १० ६८७ से ६८६,६६५ उच्छलंत [उच्छलत्] ओ०४६ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० उच्छायणया उण्ण यासण उच्छायणया [ उच्छादना ] रा० ६७१ उच्छु ! इक्षु ] ओ० १. जी० ३८७८, ६६१ √ उच्छुभ [ उत् + क्षिप् [ -- उच्छु भइ, रा० ७८५ उच्छूढ [ उत्क्षिप्त ] ओ १६. जी० ३।५६६ उच्छूढसरीर | उत्क्षिप्तशरीर ] ओ० ८२. रा० ६६६ उट्ठिय [ उत्थित ] ओ० २२. रा० ७७७,७७८, उज्जम [ उद्यम | ओ० ४६ √ उट्ठा [ उत् + ष्ठा ] -- उट्ठे इ. ओ० ७८. रा०६९५ - उट्ठेति. ओ० ८१.- उट्ठेति. रा० ६० उट्ठा [ उत्था] ओ० ७८.८०.८१, ८३. रा० ६०,६२, ६१५,७००,७१८,७८० ७८८ उज्जल | उज्वल ] ओ० ५,८,१६,५७. रा० ३२, ६६,७०,२४६,७६५. जी० ३।११०,१११, ११७,२७४,३७२,४१०,५८६ से ५६१,५६६ उज्जाण [ उद्यान ] ओ० १,३७. ० १२,६५४, ६५५,६७०,७०६,७११,७१३, ७१६, ७१६, ७२६. जी० ३।५५४ उज्जाणपालग [ उद्यान पालक ] २१० ७०७,७१३, ७१४ उज्जाण पालय [ उद्यानपालक ] रा० ७०६ उज्जाणभूमि | उद्यानभूमि [ रा० ७३२,७३७,७४७ उज्जालि [ उज्वालित ] जी० ३१५८६ उज्जु [ऋजु ] ओ० १६,४७. जी० ३।५६६,५६७ उज्जुमइ [ ऋजुमति ] ओ० २४. रा० ७४४ उज्जय [ ऋजुक] ओ० १६. जी० ३३५६६, ५६७ उज्जुसेढी [ ऋजुश्रेणी] भो० १८२ उज्जोइय [ उद्योतित ] जी० ३०५६८ उज्जोएमाण [ उद्योतयत् ] जी० ३।३०३ उज्जोय [ उद्योत ] ओ० १२. रा० २१, २३, २४, ३२, ३४, ३६, १२४, १४५, १५७,२२८, २५७. जी० ३।२६१, २६६, २६६, २७७, ३८७, ५८६, ५६०, ६७२ उज्जोव [ उद् + द्युत ] – उज्जवेइ. रा० ७७२, जी० ३,३२७ - उज्जोवेति रा० १५४. जी० ३।३२७ - उज्जोवेति. रा० १५४ जी० ३।७४१ उज्जोविय [ उद्योतित ] ओ० ५१,६३,६५ उज्जीवेमाण [ उद्योतयत् ] ओ० ४७,७२. रा० ७०, १३३. जी० ३।११२१,११२२ उट्ट [ उष्ट्र ] ओ०१०१,१२४. जी० ३२६१८ उट्टियासमण [ उष्ट्रिकाश्रमण ] ओ० १५८ उट्टी [ उष्ट्री ] जी० ३।६१६ उशा [ उत्थाय ] ओ० ७८. ० ६० [ [ उटज ] तापगृह जी० ३७८ √ उड़ [ दे० ] – उडु इज्जइ. रा० ७८५ [उपति] ओ० १६ उडुति [ उडुपति ] जी० ३।५६६ उड्ड [ उर्ध्व ] ओ० ११९.१८२, १६२. रा० १२४, १२७ से १२६,१३७,१८६, १८६, २०४ से २१२, २२२,२२७,२३१,२३६,२४७,२५१, २५३, ७५३. जी० १२४५; ३.२५७,२६१ से २६३, ३००, ३०७, ३५२ से ३५५,३५६.३६४,३६८ से ३७४,३७६, ३८१, ३८६, ३१३,४०१, ४१२, ४१४,५६६,६३२,६३४, ६४६, ६४७, ६६१, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, ७३६,७३७,७५६,८३८११२,८३६, ८४२, ८४५, ८८२,८८४,८८५,८८७, ८८८,८६४,८८, ६००,६०७,९११, ११८, १०३८, १०६७,१०६६, १०७०, ११११ उहंजण [उर्ध्वजानु ] ओ० ४५,८२ उठवाय [ऊर्ध्ववात] जी० १८१ उड़ढीमुह [ उद्धी' मुख ] जी० ३१८४२ उष्णइय [ उन्नतिक] ओ० ६ जी० ३।२७५, २६६, ६३६,८५७,८६३ उष्णत [ उन्नत ] रा० २४५ √ उष्णम [ उत् + नम् ] - उष्णमंति. रा० ७५ उष्णमत्ता [ अन्नम्य ] रा० ७५ उणय [ उन्नत ] ओ० १,१६. जी० ३३४०७,५६६, ५६७ उष्णयासण [ उन्नतासन] रा० १८१,१८३. जी० ३१२६३ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उष्णाम-उद ( उण्णाम [ उद् + नामय् ] -- उष्णामिज्जइ. जी० ३१७२६ उह [ उष्ण] ओ० ११७. रा० ७२८,७९६. जी० ३ ११८, ११६ उत्तप्प [उत्तप्त ] रा० ७३२,७३७ उत्तम [उत्तम ] ओ० २३,५१. रा० २६२. जी० ३।४५७, ५६२,५६६ से १८ उत्तमंग [उत्तमाङ्ग ] जी० ३१५६६ उत्तर [उत्तर] ओ० २१. रा० १६, ४०, ४१, ४४. १३२,१७०,१७३,२१०, २१२, २३५, २३६, ६५८,६६४,६८५,७६५, ८०२. जी० २२४८; ३१५,२२,२७,६३,६६ से ७२,७७,२२६, २२७, २३२,२५७.२६५,२८५, ३३६, ३४५.३५८, ३७३,३६७,३६८, ५५८, ५६२, ५६६,५६६, ५७७,५३५,५६७,६०१, ६६५,६३८, ६३६, ६४७,६५७,६६०, ६६१, ६६५, ६६६,६७३, ६८०, ६८२,६८६, ६९२, ६६५, ६६६, ७०१, ७११, ७१३, ७२२, ७३६,७४५, ७४७, ८१२, ८३६८८२,८८५६०२,१००४,१००६,१०१५ उत्तरंग [उत्तरङ्ग ] रा० १३०. जी० ३।३०० उत्तरकुरा [ उत्तरकुरु ] जी० २।१३;३।५७८, से ५६७,६०५ से ६२८, ६३१, ६३२, ६३६,६६६, ६६८,७०२ उत्तरकुरा [ उत्तरकुरा ] जी० ३।६१६,६३७ उत्तरकुरु [ उत्तरकुरु ] जी० २३३,६०,७०,७२, ६६,१३७,१३८, १४७, १४६; ३१२१८,२२८, ७६५ उत्तरकुरुद्दह [ उत्तरकुरुद्रह ] जी० ३१६६६ उत्तरकूलग [ उत्तरकूलक] ०६४ उत्तरतर [ उत्तरतर] ओ० ७६ से ८१ उत्तरपच्चत्थिम [ उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३१२२५, ६८८, ७५३ उत्तरपच्चत्थिमिल्ल [ उत्तरपाश्चात्य ] जो० ३।२२१, ६६६,६६७,६१८,६२२ उत्तरपासंग [ उत्तरपार्श्वक ] रा० १३० उत्तरपासय [उत्तरपार्श्वक ] जी० ३१३०० ५८१ उत्तरपुरत्यिम [ उत्तरपौरस्त्य ] ओ० २. रा० २, १०,१२,१८,४१,५६,६५,२०६,२४६, २५१, २६०,२६२,२६५,२६७,२६६,२७२,२७३, २७६,६५८,६७०, ६७८. जी० ३।३३६, ३७२, ४०८,४१२, ४२१,४२५, ४२६, ४३१, ४३४, ४३७,४३८, ४४५,५५८, ६३५,६५७, ६६८, ६८०,६८३,७५० उत्तरपुर थिमिल्ल | उत्तरपौरस्त्य ] जी० ३।२१७, २२२, ५५६,६८९,६६८,६१८,६१६. उत्तरमंदा | उत्तरमन्द्रा उत्तरभन्दा] रा० १७३. जी० ३।२८५ उत्तरवेदिय [ उत्तरक्रिय] रा० १०,४७. जी० ११६४,६६, १३५, १३६, ३१२१, ६३, ४४६, १०८७, १०८८, १०६१,११२१,११२२ उत्तरागार [ उत्तरकार ] रा० १६५ उत्तरासंग [ उत्तरासङ्ग ] ओ० २१,५४, रा०८, ७१४ उत्तरासंगकरण [ उत्तरासङ्गकरण ] बो० ६६. रा० ७७८ उत्तरिज्ज [ उत्तरीय] ओ० ६३ उत्तरितए [ उत्तरीतुम् ] ओ० १२२ उत्तरिल्ल [ औदीच्य, औत्तराह ] रा० ४८,५६, ५७,२६७,३०२, ३०७,३१३ से ३१६,३१८, ३२१ से ३३१,३३६,३४१३४६, ३७६, ३६४, ४३५, ४५३, ४६६, ५१४,५५६, ५७४,६१६, ६३४. जी० ३१३३, ३६,३८, २२७,२४०, २४८, २५०,२५६,४६२,४६७,४७२४७८ से ४५१, ४८३, ४८६ से ४९६,५०१, ५०६, ५११, ५२३, ५२४,५२६,५३०, ५३७, ५३८, ५४४, ५४५, ५५१,५५२,६७३,६९७,६६८, ११६ उाग [ उतानक] ओ० १ उताण्यछत [उत्तान कछत्र ] ओ० १६४ उत्तालिज्जत [ उत्ताड्यमान ] रा० ७७ उत्तारणय [उत्त्रासनक ] जी० ३१८३ उमिंग [उत्तमाङ्ग ] ओ० १६. जी० ३।५९७ उब [उद ] जी० ३१२८६ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ वक [ उदक ] जी० ३।५८७ उदक [उदक ] रा० २६. जी० ३८१६ उदकजोणिय [ उदकयोनिक ] जी० ३२७८७ उद [ उदक ] ओ० ६३,११७. रा० १५१,२७६, २८१. जी० ३१४४५, ४४७, ७२१, ७२६, ८५४, ८५७, ९४६ उदगत [ उदकत्व ] जी० ३।७८७ उदगमच्छ [उदकमत्स्य ] जी० ३१६२६,८४१ उदगमाल [ उदकमाल ] जी० ३७६२ उदगरस [ उदकरस ] रा० २३३. जी० ३।२८६, ८१६,८५४,६५६, ६५७, ६६४ उदगवारग [ उदकवारक] जी० ३।११८ उदग्ग [ उदग्र ] जी० ३३८३६ उदषि [ उदधि ] जी० ३३१०६,५६७ उदय [ उदय ] ओ० ३७, ११६,११७ उदय [ उदक ] ओ० ६,१११ से ११३,११७,१३७, १३८, रा० ६,२८०,२८२,२६१,३५१. जी० ३१३२४, ४४६, ४४८, ७२६, ५६०, ८६६, ८७२,८७८, ६४६, ६५५, ६५७, ६६१ उदयपत्त [ उदयप्राप्त ] ओ० ३७ उदर [ उदर ] जी० ३।५९६ उदहि [ उदधि] ओ० ४८ √ उदि [ उद् + इ ] – उदेति. जी० ३।१७६ उदीर्ण [ उदीचं.न] रा० १२४. जी० ३१५७७, १०३६ उदोणवाय [उदीचीनवात] जी० ११० १ √ उदीर [ उद् + ईश्य् ] - उदीरइ. रा० ७७१. - उदीरेंति, जी ३३११० उदीरंत [ उदीरयत् ] रा० ७७१ उदीरण [ उदीरण] ओ० ३७ उदीरिय [ उदीरित ] रा० १७३,७७१. जी० ३२८५ उदु [ ऋतु] जी० ३१६४१ उद्दंड [ उद्दंडक ] ओ० ६४ उद्दवणकर [ उद्भवणकर ] ओ० ४० उत्ता | उद्भुत्य ] 1० ७६१ उदक- उपपतित्ता उद्दा (ण) [ दे० ] जी० ३१८७२ उद्दाइत्ता [अवद्राय, अवद्रुत्य ] जी० ३।५७५ उद्दाल [ अवदाल ] रा० २४५. जी० ३१४०७ उद्दाल [ उद्दाल ] जी० ३।६३१ उद्दालक [ उद्दालक ] जी० ३३५८२ उ [उद्दिष्ट ] जी० ३२१८३८२५ उट्ठा [दे० उद्दिष्टा ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२.७८६. जी० ३।७२३,७२६ उद्देसि [ औद्देशिक] ओ० १३४ उद्धसणा [ उद्धर्षणा ] रा० ७६६ उद्धतिए [ उद्घषितुम् ] रा० ७६६ उद्धत [ उद्धमत् ] जी० ३।७३१ उद्धम्ममाण [ उद्हन्यमान ] ओ० ४६ उद्धायमाण [ उद्घवित् ] ओ० ४६ उद्धार [ उद्धार ] जी० ३९७३ उद्धारसमय [ उद्धारसमय ] जी० ३।६७३ उद्धारसागरोवम [ उद्धारसागरोपम ] जी० ३१६७३ उयि [ उद्धृत ] ओ० १४. रा० ६७१ उद्ध्य [ उद्धृत ] ओ० २,५५,६४. रा० ६, १२३२, ५०, ५२.५६,१३२,१३७, २३१,२३६,२४७, २८१. जी० ३१८६, १७६, १७६, १८०, १८२, ३०२, ३०७, ३७२,३६३, ३६८,४४५, ४४७, ४५१ उधुमंत [ उमायमान ] रा० ७७ उद्धुव्यमाण [ उद्भूयमान ] ओ० ६५ उद्भूय [ उद्धृत ] रा० १०,१२,५६,२७६ उन्नइय [ उन्नतिक ] जी० ३।११८,११६ उन्नय [ उन्नत ] ओ० १६ जी० ३२५६७,५६८ उपप्पुय [ उपप्लुत ] जी० ३।११६ उप्पइसा [ उत्पत्य ] ओ० १६२. जी० ३ १०३८ उपण [ उत्पन्न ] ओ० १६६. रा० ७७१ उप्पण्णको हल्ल [ उत्पन्न कौतूहल्ल] ओ० ८३ उप्पण संसय [ उत्पन्नसंशय ] ओ० ८३ उप्पण्णसङ्घ [ उत्पन्नश्रद्ध ] ओ० ८३ उपपतित्ता [ उत्पत्य ] जी० ३।२५७ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप्पत्ति-उराल उपपत्ति [ उत्पत्ति ] ओ० १८४ उत्पत्तिया [ औत्पत्तिकी ] रा० ६७५ / उपव [ उत् + पत् ] – उप्पयंति रा० २८१. जी० ३।४४७ उप्पल [ उत्पल ] ओ० १२,२२,१५० २१० २३, १३१, १४७, १४८, १७४, १६७,२७६ से २८१, २८८,२८६, ७२३,७७७,७७८,७८८. जी० ३।११८, ११६, २५६, २६६, २६६, २६१, ३०१, ४४५, ४४७, ४५४, ४५५, ५६८, ६३७, ६५६, ६६४, ७३८,७४३, ७५०, ७६३, ७६५, ७७५, ८४१,६३७ उप्पल गुम्म [ उपलगुल्म ] जी० ३।६६६ उपलटिय [ उपलवृतिक] ओ० १५८ उप्पला [ उपला ] जी० ३।६८६ उप्पलुमला [उत्पलोज्वला ] जी० ३१६६६ उपाहता [उत्पाद्य ] जी० ११५० उप्पाश्यपव्यय [ओत्पातिकपर्वत ] भो० ५७ / उप्पाड [ उत् + पाद्य ] — उप्पाडेंति ओ० १६६ उप्पारमय [उत्पाटना ] ओ० १०३,१२६ उपातपव्वत [ उत्पात पर्वतक] जी० ३१९४८ उत्पातपव्यय [ उत्पात पर्वत ] जी० ३१८५७ उप्पाद [ उत्पाद ] जी० ३१९१७ उपाय [उत्पाद] जी० ३।१२६/१० उप्पायनिवायपसत [ उत्पादनिपातप्रसक्त ] रा० १११, २०१. जी० ३१४४७ उपायपव्वत [ उत्पात पर्वत] जी० ३,२६३ उपायपव्यय [ उत्पात पर्वत ] रा० १५१. जी० ३।२६२,८५७ उपायपव्यय [ उत्पात पर्वतक ] रा० १५० उप [ उपरि ] ओ० १६८. रा० २१. जी० ३३५० उप्पलभूत [ उत्पिञ्जलभूत ] रा० ७८६ उप्पीस [ उत् + पीड् ] - उप्पोलेति. जी० ३१७६५ उपपीलिय [ उत्पीडित ] ओ० ५७. रा० ६६,६६४, ६८३. जी० ३५६२ उफेस [ दे० ] ओ० ६१ √ उब्भाम [ उद् + भ्रामय् ] - उन्मामेइ. रा० ७२७ उभिज्जमाण [ उद्भिद्यमान] जी० ३१२८३ उभओ [उमतस् ] ओ० ६६,११५. रा० १३१ से १३८,२४५, २५६.२७६. जी० ३।३०१ से ३०७,३१५, ३५५,४०७, ४१७, ६३२, ६३६, ७८८ से ७६०, ८३६ ५८३ उभय [ उभय ] जी० ३४४५ उभयओ [ उभयतस् ] जी० ३१८८६ उम्मब्जग [ उन्मज्जक] ओ० ६४ उम्माण [ उन्मान ] मो० १५,१४३. रा० ६७२, ६७३,८०१ उम्मि [ऊर्मि ] रा० ६८७ उम्मिलित [ उन्मीलित ] जी० ३१३०७ उम्मिलिय [ उन्मीलित ] ओ० २२. रा० १३७, ७२३, ७७७,७७८, ७८८ उम्मसि [ उन्मिषित ] जी० ३।११८,११६ मुवक [ उन्मुक्त ] ओ० १६५/२० रा० ८०६ ८१० उयगरस [ उदकरस] रा० १७४ उपर [ उदर] ओ० १६ [उरस्] ओ० ७१. रा० ६१,७६ उरग [ उरग] जी० ३८८ उरगपरिसप्प [ उरगपरिसर्प ] जी० २।११३ उरत्य [ उरःस्थ ] जी० ३।५६३ उरपरिसप्प [ उरः परिसर्प ] जी० १।१०४,१०५, १११,१२२ से १२४; २।२४,१२२; ३१४३, १४४,१६२ उरपरिसप्पी [ उर: परिसर्पिणी] जी० २२७, ८, ५२ उरम्भ [ उरन ] रा० २४, २७. जी० २१२७७, २८० उरस [ ओरस्य ] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३१११५ उराल [ दे० उदार] रा० ४०, ७८, १३२,१७३, ७५३ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्ल-सवाणिविट्ट उल्ल [आर्द्र] रा० ७५३ रा० १२,१३३,६८६,७३२,७३३,७३७,७५८, उल्लंघ [उत् + लङ्ग.]-उल्लंघेज्ज, ओ० १८० ७५६,७६१,७६५. जी० ३.११८ उल्लंघण [उल्लङ्घन ] ओ० ४० उवगरण [उपकरण] ओ० ३३. रा०७५६,७६१ उल्लाल [उत्+ लालय]---उल्लाले ति. रा० १४ उवगाइज्जमाण [उपगीयमान रा०६८५,७१०, उल्लालिय [उल्लालित ] रा० १४ ८०४ उल्लालेमाण [उल्लाल यत् ] रा० १३ उवगारियालयण [उपकारिकालयन | रा० १८८. उल्लिहिय उल्लिखित ओ०१५ रा० ६७२ जी० ३१३६१ से ३६४ उल्लोइय [दे० ] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. उपगिज्जमाण [उपगीयमान | रा०७७४ जी० ३३७२,४४७ उवगूढ [उपगढ़ ] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ उल्लोग [उल्लोक] जी० ३१३५५,८८८ उवगृहिज्जमाण | उपगूह्यमान] रा०८०४ उल्लोय [उल्लोक] रा० ३४,६६,१३०,१६४, उवचय [उपचय ) रा० ७५२,७५३ १८६,२०४ से २०७,२१३,२१६,२६७,२५१,। उवचित [उपचित ] जी० ३।२५६ २६०.जी० ३३००,३०८,३३७,३५६,३५६, उवचिय उपचित ओ० २,१६,५५. रा० २०, ३६४.३६८ से ३७१,३७४,३६६,४१२,४२१, ३२,३७,१३०,१७४,२८१. जी. ३११८ ४२६,६३४,६४८,६७३,६०४ ११६,२८६,२८८,३००,३११,३७२,४४७,५९६ उवइय (उपचित ओ०१६. जी० ३१५९६ उवच्छर [उपस्तृत] रा० ७७४ उपउत्त उपयुक्त) ओ० १८२ से १८४,१६५।११. उवजु जिऊण [उपयुज्य जी० ३१७७ रा० १५. जी० ११३२,८७,१३२,१३३; उवज्झाय [उपाध्याय] ओ० ४०,१५५ ३।१०६,१५४,१११०६।३६,३७ उवमाययावच्च [ उपाध्यायवैयावृत्त्य] ओ० ४१ उसएस [उपदेश ] ओ० ५७. रा० ७४८ से ७५०, उवट्ठव [उप-! स्थापय्] —उवट्ठवेइ. रा० ७२५ ७६५.७६६,७७०,७७३ -उवट्ठति. रा० २७६. जी० ३।४४५ उवएसरुइ [उपदेशरुचि] ओ० ४३ उवट्ठवेत्ता [उपस्थाप्य ] ओ० ५८. रा०६८१ उवमओग [उपयोग ] ओ० ४६. जी० ११४,६६, उवट्ठाणसाला [उपस्थान शाला] ओ०१८,२०,५३, १०१,१११,१२८,१३३.१३६, ३११२७,४, ५५,५८,६२,६३. रा०६८३,६८५,७०८, ७५४,७५६,७६२,७६४ उवकरण [उपकरण] ओ० ३३ उवट्ठाविय [उपस्थापित | ओ० ६२ उपकरणत्त [-पकरणत्व ] जी० ३।११२८,११३० ।। उट्ठिय [उरस्थित ] ओ० ७६,७७ उवकारियलयण | उपकारिकालयन] रा०१८६ उवणगरम्गाम उपनगरग्रम | ओ० १६,२० ‘उवक्खड (उप-|-स्कृ] - उवक्वडावेस्संति. उवणच्चिज्जमाण उपनृ-यमान ] रा० ७१०,७७४, रा० ८०२ उवणिग्गय (उपनिर्गत] ओ० ५,८ उवक्खड [ उपस्कृत ! जी० ३१५६२ उपणिमंत उप नि--मन्त्रय-उवणिमंतिउवक्खडावेत्ता उपस्कृत्य] रा० ७८७ ज्जाह. रा०७०६ . उवणिमतिस्संति. रा० उबग [उपग] जी० ३१८३८२१ ७०४--उवाणमंतेजा . रा०७७६. उधगत उपगत] रा० ७६०. जी० ३.११६.३०३ -उणिमद्धिति ओ० १४६. रा०८१० जयगय | उपगत ] ओ०६३,७४।५,१६५।१३. उवणिविट्ठ उपनिविष्ट | रा० १३८. जी० ३१२८८ ८०४ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवणी-उववण्णपुव √ उवणी [ उप + ती ] --उवणेइ. रा० ६८३ -- उवर्णेति रा० २८७. जी० ३:४५० - जवणेहि रा० ६८० उवणेहिइ. रा० ८०७ उवणेहिति ओ० १४५. रा० ८०५ --- वहिति ओ० १४६ जवणीत [ उपनीत ] जी० ३१८८६ उaणीय [ उपनीत ] रा० ७२०, ७२३. जी० ३५६२,६०१ उवणीयअवगीयचरय [ उपनीतअपनी तरच रक ] ओ० ३४ उवणीयचरय | उपनीतचरक] ओ० ३४ उवणेय [ उपनेय ] रा० ७२० / उववंस [ उप + दर्शय् ] -- उवदंसिस्सामि रा० ७७१ – उवदंति रा० ७६. जी० ३३४४७ -- अवदसे. रा० ७३ उबवंसितए | उदर्शयितुम् | रा० ६३ उवयंसत्ता [ उपद] रा० ७३ उबवं सेमाण [ उपदर्शयत् ] रा० ५६ उवदिट्ठ [ उपदिष्ट ] ओ० ४६ उद्दव [ उपद्रव ] जी० ३।६२४ उवनचिचज्जमाण | उपनृत्यमान ] रा० ६८५ उवनिमंत [ उप + निमन्त्रय् ] उवनिमंति रा० ७१३ उवनिविट्ठ [ उपनिविष्ट ] रा० २० उवप्पयाण | उपप्रदान ] रा० ६७५ उभोगपरिभोगपरिमाण | उपभोगपरिभोग परिमाण ] ओ० ७७ उवमा [ उपमा ] ओ० १३,२३,१६५/१६. रा० १५६,७५२, ७५४,७५६, ७५८, ७६०,७६२, ७६४. जी० ३१२७,२३२ उमा [दे०] खाद्य विशेष जी० ३१६०१ उवयार | उपचार ] अं० २,१५,५५ २० १२,३२, ७०,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२,३५४,६७२,८०६,८१० जी० ३७२, ४४७, ४५७ से ४६२, ४६५. ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५५४,५८०, ५६१,५६७ उदयारियालयण [ उपकारिकालयन | २१० २०३ saurरियाले [ उपकारिकालयन ] रा० २०१, २०२ उवरि [ उपरि ] रा० १३०. जी० ३ २६४ [उपरि ] ओ० १२. रा० ३७. जी० ३।७७ safter | उपरिचर ] जी० ३।११७ उरिम | उपरितन | ० १६० जी० ३७१,७२, ३१७, ३४६,३५७ ८५ उवरिमगेविज्ज [ उपरितनवे | जी० २२६६ उवरिमगेवेज्ज [ उपरितनबेय ] जी० २ १४८, १४९ उवरिमगेवेज्जग | उपरितनग्रैवेयक ] जी० ३ १०५६ वरिल्ल [ उपरितन ] मो० १६२,१६५. जी० ३।६० से ७०,७२,६७४,७२५,७२८,१००३ से १००७,११११ √ उवलंभ [ उप + लभ् ] -- उबल भेज्जा. जी० ३१११८ --- उवल भिस्साम. रा० ७६८ जल | उपलब्ध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ उवला लज्जमाण | उपलाल्यमान ७१०,७७४,८०४ उप [ उप + लिप् । उदलिप्पड़, ओ० १५०. रा० ८११ - उवलिप्पि हिति. ओ० १५०८११ उवलित [ उपलिप्त ] ० ५५, ६० से ६२. रा० २८१,५०२. जी० ३।४४७ रा० ६८५, उबलेवण [ उपलेपन ] रा० ७७२ उववज्ज [ उप + पद् । उववज्जइ, ओ० ८७ -- उववज्र्ज्जति. ओ० ७३. जी० १.५१ -- उववज्जिहिति ओ० १४० - - उववज्जिहिंसि रा० ७५० उबवण्ण [ उपपन्न | ओ० ११७. रा० २७९,७५० से ७५३,७६६. जी० ३५३, ११७,१२६ / ५, ४३६, ४४०, ४४५, ८३८ २१, ५४३, ८४६ | उपन्न | रा० २७६ से २७८,२८४, २८७,६६६. जी० ३।४४३ से ४४५, ८४२, ८८४५ ववणपुष्व | उपपन्नपूर्व ] जी० ३।५३,६७५, Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ ११२८,११३० उबवत्त [ उपपत्तृ] ओ० ७२,८६ से १५, ११४, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ उबवन्नपुब्ध [ उपपन्नपूर्व ] जी० ३।१२७ उबवत [ उपपात ] जी० १।१२८ ३३८८,८४४, ८४७,८५६,८८०, ६४६, १०८२ उववातसभा [ उपपातसभा ] रा० २७४. जी० ३।४३६ उथवाय [ उपपात ] ओ० ८ से ६५, ११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ८१५. जी० १११४,५१,५९,६५.७६, ८२, ८७,६६, १०१,११६,१३३,१३६ ३ १२७/३, १२९/६, १६० उववायसभा [ उपपातसभा ] रा० २६०,२६२, २६६,२७७,४१४ से ४१६, ४३५, ४५३, ४५४, ७६६. जी० ३१४२१,४२४, ४२५, ४४३,५२६ से ५३१ उदविणिग्गय [ उपविनिर्गत ] जी० ३।२७४ उवविस [ उप + विश् ] -- उवविसइ. रा० ७४८ -- उब विसामि रा० ७४७ उवयेत [ उपपेत ] जी० ३।६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८ उववेय [ उपपेत ] मो० १, १५, १४३. रा० ६६,७०, १७३,६७२,६७३, ६७५,८०१. जी० ३ २८५, ५८६ से ५६६ वसंत [ उपशान्त ] ओ० ६१. ० ६, १२,२८१. जी० ३।४४७,७६५, ८४१ उवसंतथा [ उपचान्तता ] ओ० ११६ उवसंपज्जित्ताणं [ उवसंपद्य ] ओ० ३७. रा० ६६६. जी० ३।८४३ उवसग [ उपसर्ग ] ओ० ११७,१५४, १६५, १६६. रा० ७०३, ७६६,८१६ उवसम [ उपशम ] बो० ७६ से ८१ उवसम [ उप + शम् ] - उवसमंति रा० १२ - उवसामंति रा० १२ -उव्वग्ग उवसमिता [ उपशम्य ] रा० १२ उवसामिला [ उपशाम्य ] रा० १२ उबसोभित [ उपशोभित] जी० ३।२६५,३०२, ३४६ उसोभय [ उपशोभित] ओ० ६४. रा० २४,४०, _५१,१२८,१३२,१६५, १७१,२३७. जी० ३३०६, ३५३,३५७,३६० उवसोमेमाण [ उपशोभमान ] रा० ४०,१३२, १३५,१६१,२३६,७८२. जी० ३।२६५,३०२, ३०५,३१३,३६८,५८०, ५८१ rator [ उपशोभित] जी० ३।२७७ उवस्य [ उपाय ] रा० ७१६ उवहाण [ उपधान ] ओ० ३० उहिविसग्ग [ उपधिव्युत्सगं ] ओ० ४४ √ उवागच्छ [ उप + आ + गम् [ – उवागच्छइ. ओ० २०.०० ४७. जी० ३।४५७ - उवागच्छति ओ० ५२. रा० १०. जी० ३।४४२ – उवागच्छति रा० १४. जी० ३।४४३ - - उवागच्छामि रा० ७५४ वागच्छत्ता | उपागम्य ] ओ० २०. रा० १०. जी० ३० ४४२ उवाग [ उपागत ] ओ० १६,२० उवा [ उपाय ] ओ० १५२ उवायण [ उपायन] रा० ७२०, ७२३ V उवालंभ [ उप + आ लम् ] -- ज्वालब्भइ. रा० ७६७ उवाल भिता [ उपलभ्य ] रा० ७६७ उवा सगदसाघर | उपासकदशाधर] ओ० ४५ / उबे [ उप + इ ] – उवेइ ओ० ११५. – उवेंति. ओ० ७४. जी० ३३६०३ उट्टणा [ उद्वर्तन! ] जी० ११६६; ३३१२१,१२७ ५,१५६; ६३१1३ उट्टित्ता [ उद्वर्त्य ] जी० ११५४ उट्टिय [ उद्वृत्त ] जी० ३।११८, ११६,१२१ उवलण [ उद्बलन ] ओ० ६३ उविग्ग [ उद्विग्न ] ओ० ४६. जी० ३।२१६ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्बिद्ध-ऊसास ५८७ उविध [ उद्विद्ध] ओ० १ उसिय [ उत्सृत] रा० १३२. जी० ३।२०२ उन्वेग उद्वेग] जी० ३।६२८ उसोर [उशीर] रा० ३०. जी० ३१२८३ उब्वेष [उद्वेध ] जी० ३१७३६,७६४,६००,६०१, उसु [दषु] रा० ७५६. जी० ३१६३१ ६१०,६११ उस्सण [दे०] बाहुल्यत: ओ० ८७. जी० ३१९६४ उन्वेह [उद्वेष रा० २२७,२३१,२३३,२३६,२४७, उत्सप्पिणी [ उत्सर्पिणी] जी० १.१३६,१४०; २६२. जी. ३,३८६,३६३ ३६५,४०१,४२५, २८८,१२० ; ३।६०,१६५,८४१,१०८५, ५८, ६३२,६३६,६४२,६५३,६६१,६७२.६७६, ६,२३,२६६।२३,४०,६७,२५७ ६८३,६८६,७२३,७२६,७८८,७६४,७६५, उस्सप्पिय | उत्सपित जी० ३१५८६ ८३६,८८२,६१८ उस्सविय [उच्छित] रा० ७५० से ७५३ उसड्ड [उत्सृत] रा० १८० उस्सास [उच्छ्वास] ओ० १५४,१६५,१६६. स० उसड्डय उत्सृतक] रा० १८१ ७७२,८१६. जी० ३३१२८ उसस्त उत्सत] ओ०२,५५. रा० ३२,२८१,२६१, उस्सासत्त उच्छ्वासत्व जी० ३।१०६९ २९४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० उस्सिय [उच्छित ] जी० ३RE ३१३७२,४४७,४५६,४६१,४६२,४६५,४७०, उस्सुय उत्सुक] ओ० ५१ ४७७,५१६,५२० उस्सेष [उत्सेध] जी० ३१६७६,७८६,७६५,८९६ उसभ [ऋषभ, वृषभ] ओ० १३,१६,५१. रा० १७° उस्तेह [उत्सेध ] ओ० १३,८२. रा० ६,१२,१३०, १८,२०,३२,३७,१२६,१४१,१६२. जी० २२५.२५४,२७६. जी० ३१३००,३८४,४१५, २२७७,२८८,३००३११,३१८,३७२,५६३, ४४२,७८६,७६४ ५६५ से ५६७ उसभकंठ [ऋषभकष्ठ रा० १५५,२५८. जी. ऊण [ऊन ] रा० १८८. जी० २०५७,६१,७३, ३.५, ३१३२८ ३४,३६,४१,४३,४४,५६७, ४१६:५७,२८; उसभकंठग ऋषभकण्ठक जी०३.४१६ ७३,५,६,१०,१२,१५,१७,६२ से ४,४०,५१, उसभज्मय [ऋषभध्वज | १० १६२. जी० ३।३३५ १७१,२३४,२३६,२३८,२४३,२६६,२७१, उसभनाराय [ऋषभनाराच] जी० ११११६ २७३,२७६,२८१ उसभमंडलपविभत्ति | ऋपभमण्डलप्रविभक्ति | रा० ऊणग [ऊनक] जी० २३०,३१,५८ से ६०,१३६; ३१२१८,६२६ उसमा [ऋषभा] रा० २२५. जी० ३६३८४,८६६ ऊणय [ऊनक ! ओ० ३३. जी० २१३२ से ३४ उसिण [ उष्ण] जा० श५, २२२,११२ से ११५, कणिया ऊनिका] ओ० १६५१६ ११६ करु [ऊरु ओ० १६. रा० १२,२५४,७५८,७५६. उसिणभूत [उष्णीभूत] जी० ३।११६ जी० ३३११८,४१५,५६६ से ५१८ उसिणभूय [उप्णीभूत ] जी० ३।११६ ऊरुजाल ] ऊरुजाल | जी० ३३५६३ उसिणवेदणा [ उष्णवेदना] जी० ३।११२,११४, । ऊसड | उत्सृत | जी० ३१२६२ ऊसविय [उच्छित ] मो०६७ उसिनवेदणिज्ज [ उष्णवेदनीय] जी ३.११८ ऊसास [उच्छ्वास ] ओ० ११७. रा० ७६६. उसिमोदय उष्णोदक] जी० ११६५ ३११२७१३ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ ऊसासत्ता | उच्छ्वासता ] जी० ३।६७ ऊसित | उच्छ्रित ] जी० ३।२१८, ३०७, ३५५,६३४, ६४२,७५४,७६२, ७६८.७७०, ७७२.१००८ ऊसितोदग | उच्छ्रितोदक ] जी० ३.७८३,७८४ ऊसिम [ उच्छ्रित] अ० ४६,५५,६४,१६२. र ० ५०,५२,५६,१३७,१८६,२०४ से २०६, २०८,२८१,७७४,७८६. जी० ३३५६, ३६४, ३६८ से ३७१,४४७, ५६७, ५६८, ६५३,६७३, ७५४,७६२,७६६ ऋष्छज्य [ ऋक्षध्वज ] र० १६२ जी० ३३५ (ए) एइ [एजित ] रा० १७३. जी० ३।२८५ एकणपण्ण [ एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३।८३२ एक [एक] जी० १.७२ एकत [ एकत्व ] जी० ३।११० एकतीस | एकत्रिंशत् [ जी० ३.६३४ एकाणउति [ एकनवत ] जी० ३.८१२ एकावलि [ एकावलि ] जी० ३।४५१ एकासीs | एकाशीति ] जी० ३१७०६ एकासोति [ एकः शति | जी० ३७६४ एकाह [ एकाह] जी० ३१७६, १७८, १५०,१५२ एकूणवीसति | एकोनविंशति | जी० ३.५७७ एकोवग | एकोदक ] जी० ३।७६५ एक्क [एक] ओ० ३. रा० ४. ओ० २४८ एकतीस | एकत्रिंशत् ] ओ० ३३. २/० २०७. जी० ३।९१ एक्कवीस | एकविंशति ] जी० ३।७३६ एक्कार [ एकादशन् ] जी० ३१००२ एक्कारस | एकादशन् [ रा० १७३. जी० ३।२८५ एक्कारसम [ एकादश ] ओ० १४४. १०८०२ एक्का रसमासपरिया [ एकः दशमासपर्याय ] ओ० २३ एक्कासीत [ एकाशीति ] जी० ३।६३२ एक्कासीय [ एकाशीति ] जी० ३.२२६।४ footoo [ एकैक ] ०८२ ऊसासत्त- एगत एक्केक्s [ एकैक | जी० ३।६६७ एक्केकय [ एकैकक | जी० ३१८३८४ एकोणवीसति [ एकोनविंशति ] जी० ३,५७७ restar [ एकtan] जी० ३.७६५ एक्ster | एकोदक | जी० ३७६५ एग [एक] ओ० १६. २१० ३. जी० १११० एगहय ! एकक ] ओ० २३,४५, ५२,७८,८८, १४०, १५६,१६५,१६६, रा० १६,१७४, २५१,६८७, ६५६. जी० १६६,११६; ३१५६,१०४, ४४७, ४५५ एगओ [ एकतस् ] रा० ८४,१७३ एगओखह [एकतःखह ] रा० ८४ एमओचक्कवाल [ एकतश्चक्रवाल ] रा० ८४ एमओवंक] [ एकतोव ] रा० ८४ एगंत | एकान्त ] ओ० ११७. रा० ६,१२,१५, ७१३,७६५ एतदंड | एकान्तदण्ड ] ओ० ८४,८५,८७ एतबाल | एकान्तबाल | ओ० ८४,८५,८७ एगंतसुत [ एकान्त सुप्त ] अं० ८४,८५,८७ एगखुर [कर ] जी० १११०३, १२१:२२६ एगगुण | एकगुण ] जी० १ ३५,३७,४० एगग्ग | एका ] रा० १५ एगच्च | एकाचं ] ओ० ७२,१६७ एगच्चाओ [ एकस्मात् ] ओ० १६१ एगजाय | गुरुजात | ओ० २७. रा ८१३ एगजीव | एकजीव | जी० ११७२ एगजोविय | एकजीविक ] जी० १।७२ एग | एष्टि ] जी० ३७६८ एगट्टिय | एकास्थिक | जी० १७०,७१ एगतिय [ एकक ] रा० १७४, १८५, २६१,२८६, २६०,६८,६८६. जी० ११३३, ३,८६, १०८,१६,१७८.१८०, १८२, २६६, २६७, ४४७,५७५,५७६,७१६, ७२०, ८०६,८०७, ८५७,१०८० एगतो [ एकतस् ] रा० २३६. जी० ३१२८५,४४५ एगत [ एकत्व ] जी० ३ : ११०,१११५,१११६ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतविक एव reefores [ एकत्रवितर्क ] ओ० ४३ गाहा [ एकत्वानुप्रेक्षा ] ओ० ४३ एगत्तिभावकरण [ एकत्वीभावकरण | ओ० ६६,७० एमसीभावकरण | एकली भावकरण | रा० ७७८ एगदंत | एकदन्त | जी० ३१५६६ एग दिसा [ए [दिशा]] रा० ६०० एगपदेसिय | एकप्रादेशिक] जी० ३१७२३,७२६ एगभूय | एक भूत् । ० ११६ एगमेग [ एकैक | रा० १२६,१६२ से १६४,१६१. जी० ३३१०६,२६५, ३५४, ३५५,६३२, ६६१, ७२३,७२६,१०१, १०००, १०२३ गराइया [ एकरात्रिकी ] ओ० २४ एगसद्धि [ एकuft ] जो० ३।११० एकसाडिय [ एकसाटिक | अ० २१,५४,६६. रा० ८,७१४,७७८ एगसालग | एकश लक ] जी० ३१५६४ एगसिद्ध | एक सिद्ध | जी० ११८ गागार | एकाकार ] जी० १११०६,११६; ३८ से ११,२१३,६५४ free [ काfभख | रा० ६८८ गावलि [ एकावलि ] यो० २४,१०८,१३१. रा० ६६,२८५. जी० ३।५६३ गावपिभित्ति [ एकाननिप्रविभक्ति | रा० ८५ एगाets | एकाशीति | जी० ३७०६ एगाह | एमट | जी० ३३२६,११८,११६ एगाहच्च [ एकाहत्य | रा० ७५१,७६७ गाहिय | एकाहिक | जी० ३३६२८ एगिदिय । एकेन्द्रिय ) जी० १५५ २११०१, १०२, ११०,१११,१२०,१२६,१३६,१३५,१४६, १४६, ३।१३० से १३५,१११५; ४१ से ३, ५, से ७,१०,११,१६,१६ से २२,२५; ६२ से ७, १६७,१६६,२२१,२२२,२२८,२३१ एगुणयाल | एकोनचत्वारिंशत् ] जी० ३२७६४ एगुणपण | एकोनपचाशत् । रा० ७१. जी० ११८ एगुणवीस | एकोनविंशति ] जी० ३।१०५३ एगुणासीति | एकोनाशीति | जी० ३॥२१८ गुरुsar [ एकोरुकिका ] जी० २०१२ गुरु [ एक ] जी० ३।२१६ से २२२,२२७ enerator [ एकterद्वीप ! जी० ३।२२२, २२७ एगोचालीस | एकोनचत्वा शत् | जी० ३१७६६ एगोणवीस | एकोनविंशति ] जी० ३११०५३ एगो [एकोदक ] जी० ३३७६५ rator [ एकोरुक | जी० ३ २१६,२१७,२२६ एगterata | storद्वीव ] जी० ३२१७,२१८ एज्जमाण | एजमान ] रा० ४०,१२३,१३२. जी० ३।२६५ √ एड [इल्.एड् ] ---एडेइ. रा० ७६५ – एडेंति. रा० १२- एडेड. रा० ६ एडिता [ एलित्वा एडित्वा ] ओ० ११७. रा० १२ एडा [ एलिया, एडित्वा ] रा० ६ एणी (एणी] आं० १६. जी० ३२५६६ एतारूव । एतद्रूप ] जी० ३२७८ से २८२,२८४, २८५, ३८७,४४२, ८६०, ८६६,८७२,८७६ एतो [ इतस् ! ओ० ३३ १० २६. जी० ३८४ एत्थ [अत्र ] ओ० १३. रा० ३. जी० ३।७७ एमहज्जुई | इयन्महद्युतिक | ० ६६६ महज्जुतीय यन्महृतिक ] जी० ३३५६५ एमहब्बल | इयन्महाबल | रा० ६६६. जी० ३१५६५ एमहाणुभाग | बन्नानुभाग | रा० ६६६. जी० ३।५६५,६४ ५८१ एमहायस (महापशस् ] रा० ६६६. जी० ३।५६५ एमहालत उन्मत् | जी० ३३८६, १७६,१७८ एमहालय | उदन्महत्] ० ७३२,७३७. जी० ३११५२,१०८० एमहासोक्खन्दास | रा० ६६६. जी० ३।५६५ महिडिय [महधिक | जी० ३।६३८ एमfest | कि० ६६६. जी० ३१५६५, ५६८,७०१,७६४ एमेव [ एवमेव ] जी० ३।२२६ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एम्महिड्डीय [इयन्महधिक] जी० ३।६६४ एय [एतत् ] ओ० २१. रा०६३. जी. १११ एय [ए]--एयइ. रा० ७७१-एयंति. जी० ३७२६ एयंत एजमान] रा० ७७१ एयरव एतद्रूप] रा०६३,६५ एवारूव एतद्रूप] ओ० ३०,६२,१४४,१५८, १५६. रा० ६,१९,२०,२५ से ३१,३७,४५, १३५,१४६,१७३,१७५,१६०,२२८,२४५, २५४,२७०,२७५,२७६,६८८,७३२,७३७, ७३८,७४६,७५१,७६८,७७७,७६१,७६३, ८१६. जी० ३१८४,८५,११८,२६४,२७८ से २८३,२८५,२८७,३०५,३११,३२२,४०७, ४१५,४३५,४४१,५६७,६०१,६०२,६४३,६५४ एरणवत [ऐरण्यवत] जी० २।१४५ एरण्णवय [ऐरण्यवत] रा० २७६. जी० २६१३, ३१,५८,७०,७२ एरवत [ऐरवत] जी० रा६६,१३६,१४७,१४६ एरवय [ऐरवत] रा० २७६. जी० २०१४,२८, ५५,७०,७२,११५,१२३; ३१२२६,४४५,७६५ एरावणदह [ऐरावणद्रह] जी० ३१६६७ एरिस [ई दृश] ओ० ७६ से ८१ एरिसग [ईदृशक] जी० ३।१०६ एल [एड] जी० ३।६१८ एला [एला] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२८३,३३४,४१६ एलिगा | एडिका जी० ३१६१६ एलुय [एलुक] रा० १३०. जी०३१३०० एव [एव] रा० १० एवइय [एतावत् ] जी० ३११८२,८३८।२,३ एवं | एवम् | ओ० २०. रा०८. जी० ११० एवंभूत | एवंभूत ! जी० ३।२८५ एवतिय (एतावत् ] जी० ३१७६,१७८,१८०, १७२,६७३ एवमेव [एवमेव रा० ७०३. जी० ३.१७४ एम्महिड्डीय-ओमित्ता एवामेव [एवमेव] ओ० १५०. रा० १२. जी० ३.११८ एसणासमिय [एषणासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ एसणिज्ज एषणीय] ओ० ३७,१२०,१६२. रा०६६८,७५२,७७६,७८६ एसुहुम [ इयत्सूक्ष्म ] जी० ३।६९३,९९७ ओ ओइम [अवतीर्ण] ओ० ५१ ओगाढ [अवगाढ] रा० ६८४,६८५,७००,७०६. जी०१३३, ४२,४३,५०, ३१२२ योगाह [अव+गाह.]--ओगाहइ. जी० ३।११८-ओगाहति. जी. ३११९ –ओगाहेंति. ओ० ११७ मोगाहणा [अवगाहना] ओ० १९५४ से ८. रा०७६६. जी० १११४,१६,७४,८६,८८, ९०,६४,१०३,१११,११२,११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०,१३५, ३३९१,२३६, ४३९,६६९,१०८७,१०८६ ओगाहित्तए [अवगाहितुम् ] ओ० ६६ मोगाहित्ता [अवगाह्य ] ओ० ११७. जी० ३७७ ओगाहेत्ता [अवगाह्य ] ओ० ११७. रा० २४० ओपिहित्ता [अवगृह्य ] ओ० २१. रा. ८ ओग्गह | अवग्रह] ओ० २१,२२,५२. रा०८,६, ६८६,६८७६८६,७०६,७११,७१३ ओरिगह [अव+ग्रह.]--ओरिगण्हइ. रा०६८६ ओघ [ओघ] रा० १३,१४ ओचूल [अवचूल ] ओ० ५७ ओच्छण्ण [अवच्छन्न ] ओ०६ ओच्छन्न [अवच्छन्न ओ० ६. जी० ३१२७५ ओ? [ओष्ठ] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी० ३१४१५,५६६,५९७,८६० ओछिपणग [ओष्ठछिन्नक] ओ०१० ओणम [अव+ नम्] -ओणमंति. रा० ७५ ओमित्ता [अवनम्य] रा० ७५ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओणय-ओहस्सर ५६) ओवइय [दे०] जी० ११८८ ओवणिहिय औपनिधिक, औपनिहितिक] ओ० ३४ ओवम्म औपम्य ] ओ० १९५:१७. जी० ३.१२७१५ (ओवय [अव+पत्} —ओवयंति. रा० २८३. ___ जी० ३१४४७ ओवयमाण [अवपतत् ] रा० ५६ ओवहिय [ औपधिक ] ओ० १६१,१६३ ओवासंतर अवकाशान्तर] जी० ३.१३,१६,२१, २६,२७,३०,३२,६५,६७,१७६,१७८,१८०, १८२,१०६२ से १०६४ मोविय दे०] परिमित ओ० ६३. रा० १७, १८,६९,७०. जी० ३२५६३ मिओवील अव+पोड्]- ओवीलेति. जी० ३१७६५ ओस [दे० अवश्याय} जी० ११६५ ओसष्णकारण [अवसन्नकारण] जी० श५०,६५, ओणय अवनत] ओ० ७० ओत्यय [अवस्तृक] ओ० ६३,६५ ओदन [ओदन] जी० ३।५६२ ओषार [अव+धारय]--ओधारेंति. रा० ७१३ 'ओभास [अव+भास्]--ओभास इ. जी० ३१३२७-ओभासेइ. रा० ७७२। --ओभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ ---ओभासेति. रा० १५४.जी. ३७४१ ओभासमाण [अबभासमाण] जी० ३१२५६ ओभिज्जमाण [उद्भिद्यमान] रा० ३० ओमत्त [अवमत्व[ रा० ७६२,७६३ ओमुय [अव+मुच्]-ओमुयइ. ओ० २१. रा० ७१४ ओमुइत्ता [अवमुच्य] ओ० २१ मोमोदरिया [अवमोदरिका] ओ० ३३ ओमोयरिया [अवमोदरिका] ओ० ३१ ओयंसि [ओजस्विन् ] ओ० २५. रा०६८६ मओयविय (दे०] ओ० १६,४७. रा० ३७,२४५. जी० ३१३११,४०७,५६६ ओराल [दे० उदार] ओ० ५२. रा० ३०,१३२, १३५,१७३, २३६,६८६. जी० ११७५,८३, १३६, ३१२६५,२८३,२८५,३०२,३०५, ७२६,७८५,७५६,८४१ ओरालिय औदारिक] ओ० १८२. जी० श१५, ५६,६४,७४,७६,८२,८५,१०१,११६,१२८, १३० ओरालियमोसासरीर [औदारिकमिश्रकशरीर] ओ० १७६ ओरालियसरीर औदारिकशरीर] ओ० १७६ ओरालियसरीरि [औदारिकशरीरिन् । जी० ६।१७०,१७१,१७६,१८१ ओरोह अवरोध ] ओ०१ ओलंबियग [अवलम्बितक] ओ०६० ओलित [दे० उपलिप्त] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ ओसणग [अवसन्नक] ओ०६० ओसण्णदोस [उत्सन्नदोष ओ० ४३ ओसप्पिणी [अवसर्पिणी] जी० ११३६,१४०; २।१२०, ३१६०,१६५,८४१,१०८५; शम, ६.२३,२६, ६२३,४०,६७,२५७ ओसर अप+स] -- ओसरति. रा० २६२. जी० ३।४५७ ओसरिता अपसृत्य रा० २६२. जी० ३.४५७ ओसह [ओषध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७५६ ओसहि ओषधि ] रा० १५२,२७६,२८०. जी० ११६९; ३।३२५,४४५,४४६,४४८ ओसारिय | अवसारित) ओ० ५७। ओहबल [ओघबल] ओ०७१. रा०६१ ओहय | उपहत, अवहत ] ओ० १४. रा०६७१, ओहस्सर [ओघस्वर] रा० १३५. जी० ३३०५, ५९८ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यूहर ओहाडणी [ दे० अवघाटनी ] रा० १३०, १६०. जी० ३।२६४,३०० ओहि [ अवधि ] जी० ३ १०७, ११११ ओहि - ओह | ओघ ] रा० ६, १२ ओहिणाण [ अवधिज्ञान ] ओ० ४० रा० ७३६, ७४३,७४६ afa | अवधिज्ञानलब्धि | ओ० ११६ ओहिणाणविनय | अवधिज्ञान विनय ] ओ० ४० ओहिणाणि [ अवधिज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११११६,१३३, ६ १६१, १६५, १६६, १६७, १६६,२०४,२०८ ओहिदंसण [ अवधिदर्शनिन् ] जी० ११२६, ६६; १३१,१३४,१३८, १४० ओहिनाणि | अवधिज्ञानिन् ] जी० १।६६; ६६१५ ओहि [ औधिक ] जी० २२५१ ५१२४, २६.३० ओहीनाण [ अवधिज्ञान ] जी० ३।११११ 5 क [क] रा० १५ कह [ कति ] ओ० १७३. १० ७६६,७७६. जी० १११५, २१ से २३,२६,२७,६४, ३७६, १६६ से १७१,७४८, ८०६ कइसमय | कतिसामयिक ] ओ० १७४ कओ | कुतस् ] जी० ११५१ ३३१५५१०८२ कंक [ कङ्क ] जी० ३१५६८ कंकड [ कङ्कट ] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३१२८५ / कंख | काङ्क्ष | कखइ. रा० ७१३ कंखति. ओ० २०.० ७१३ कंखिय | काङ्क्षित ] रा० ७७४ कंचण [काञ्चन] ओ० २६,६४. रा० ३२, १५६, २२. जी० ३ ३३२,३७२, ४५७, ४८७,५८६, ५६३,५६७ कंचनकोसी [काञ्चनकोशी ] ओ० ६४ कंचनग [ काञ्चनक ] जी० ३३६६१,६६२,६६४, ६६६ ओहाडणी-कंदणया कंचणमय [ काञ्चनमय ] जी० ३।६६१ कंचणिया [ काञ्चनिका ] ओ० ११७ कंचि [ किञ्चित् ] आं० ११६,११७. २१० ७६५ कंची [ काञ्ची ] जी० ३।५६३ कंचु | कञ्चुकिन् ] रा० ६८८ से ६६०,८०४ केचुइज्ज | कञ्चुकीय ] आं० ७० कंय | कचुक ] ० ६६,७० कंटक [ कटक ] जी० ३१६६२ कंटय [ कण्टक] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३३८५,६२२ कंठ [ कण्ठ ] ओ० ७१. रा० ६१,६९,७६ कंठमुरवि | दे० कण्ठमुरवी ] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ कंठसुत्त [ कण्ठसूत्र ] जी० ३.५६३ कंठेगुण [ कण्ठगुण] रा० १३१,१४७, १४८,२८०. जी० ३१३०१,४४६ कंठेमाकड [कृतकण्ठेमाल ] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ कंड [ काण्ड ] रा० ६६४. जी० ३।६, ७, ९, १०, १६, १७,२४,२५,६० से ६३, ५६२ कंड [ काण्डक] रा० ७५८,७५६ कंड [ काण्डक] १० ७५८, ७५६ कंडु [ कण्डु ] ओ० ६ कंड [कन्दु ] जी० ३।७८ कंत [कान्त ] ओ० १५,४६,६८,११७१४३. रा० १७,१८, ६७२,६७३, ७५० से ७५३, ७७४, ७९६,८०१. जी० १४१३५; ३ ॥ ५६७, ८७२,१०६०,१०६६ कंततराय [कान्ततरक ] रा० २५ से ३१,४५. जी० ३।२७८ से २८४,६०१ कंतारभत्त [ कान्तारभक्त ] ओ० १३४ कंतारभयग | कान्तारभृतक ] ओ० १० कंति [ कान्ति ] ओ० २३,६६.७१. रा० ६१ कंद [ कन्द ] ओ० ६४, १३५. रा० २२८. जी० ११७१३।३८७, ६४३, ६७२ jarer [न्दन] ओ० ४३ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंदप्प-कडुच्छ्य कंदप्प [कन्दर्भ ] ओ० ४६ ३।११८,११६,२८६,९६५ कंचप्पिय [कान्दपिक] ओ० ६४,६५ कच्छभी [कच्छपी रा०७७. जी. ३.५८८ कंदमंत [कन्दवत् ] ओ०५,८,१०. जी. ३१२७४, कच्छ [कच्छू] जी० ३।६२८ ३८६,५८१ किज्ज [क]--कज्जति. ओ० १६१ कंदरा [ कन्दरा रा०८०४ कज्ज [कार्य ] रा० ६७५. जी० ३१२३६,१११५ कंदाहार [ कन्दाहार] ओ ०६४ । कज्जल किज्जल | ओ० १६. रा०२५. कविय [क्रन्दित ओ० ४६,४६ जी० ३।२७८,५६५,५९६ कंधुसोल्लिय [ कन्दुपक्व] ओ०६४ कज्जलंगी किज्जलाङ्गी| ओ०१३ कपिय [कम्पित ] ० १७३. जी० ३१२८५ कज्जलप्पभा कज्जलप्रभा] जी० ३१६८७ कपिल्लपुर | काम्पित्यपुर] ओ० ११५,११८ कज्जोउ कार्यहेतु ओ० ४० कंपेमाण [कम्पमान ] ओ० ५२ कटु [कृत्वा ] ओ० २०. रा० ८. जी० ३८६ कंबल [कम्बल ] ओ० १२०,१६२. रा० २७, कट्ट [काष्ठ] रा० ६,१२,७६५ ६९८,७५२,७५२,७८६. जी० ३।२८.५६५ कट्ठसेज्जा [काष्ठशय्या] ओ० १५४,१६५,१६६ कंबिया [कम्बिका रा० २७०. जी० ३१४३५ कट्टसोल्लिय [काष्टपक्व ] ओ०६४ कं [कम्बु] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ कड [कृत] ओ०७४१६ रा० १८५,१८७,८१५ जी० ३१२१७,२६७,२६८,३५८ कंबोय [कम्बोज] रा० ७२०,७२३ कंस कांस्य] जी० ३।६०८ कडंब [कडम्ब] रा० ७७ कंसताल [कांस्यताल] रा० ७७. जी० ३१५८८ कडक्ल [कटाक्ष रा० १३३. जी० ३।३०३ कडग [कटक] ओ २१,४७,५४,६३,७२. रा०८, कंसपाई [कांस्यपात्री] ओ० २७ रा० ८१३ ६६,७०,२८५,७१४. जी० ३१४५१,५६३ कंसलोह पाय] | कांस्यलोहपात्र] ओ० १०५, १२८ कडगच्छेज्ज [कटकच्छेद्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ कंसलोह [ बंधण] [कांस्यलोहबन्धन] ओ० १०६, कडच्छाय किटच्छाय] ओ०४, रा० १७०,७०३. १२६ जी० ३।२७३ कडच्छुय [दे०] रा० ७५३ कारखकारगकारघकारङ्कारपविभत्ति [ककारख कडय [कटक ] ओ० १०८,१३१. रा० ८. कारगकारघकारङकारप्रविभक्ति] रा० ६५ जी० ३।४५७ ककारपविभत्ति [ककारप्रविभक्ति] रा० ६५ कडाह [कटाह] जी० ३१७८ कक्करी [कर्करी] जी० ३१५८७ कडि [कटि] ओ० १६,६४. जी० ३१५६६ कक्कस [कर्कश] रा० ७६५. जी० ३.११० कडिय कटित ओ०४. रा० १७०,७०३. कक्कोड [कर्कोट ] जी० ३१७५० जी० ३।२७३ कक्कोडग कर्कोटक ] ३१७५० कडिसुत्त [कटिसूत्र] ओ० ५२,६३ १०८,१३१. कक्कोडय [कर्कोटक] जी० ३१७४८ से ७५० रा० ६८७,६८६ कक्ख [कक्ष] ओ० ६२ जी० ३१५६७ कठिसुत्ताग [ कटिसूत्रक] रा० २८५ कक्खर [कक्खट] जी० ११५.३६,४०,५०, ३३२२ फडिसुत्तय [कटिसूत्रक] रा०६८८ कच्छ [* क्ष] ओ० ५७. जी० ३ ६३७ कडच्छुग दे०] जी० ३६०८ कच्छभ [कच्छप ] रा० १७४. जी० १६६,११८; कडच्छ्य [दे०] रा० २५८,२७६,२८१,२६०, Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ कडुय-कतिविध ६७६ २६२. जी० ३।४१६,४४५,४४७,४५६,४५७, कागवेहण [कर्णवेधन ] रा०८०३ कणिका [कणिका] जी० ३।३३२ कडुय [कटक] ओ० ४०. रा० ७६५. जी० ११५; कणिया [कणिका] ओ० १७०. रा० १५६. ३१२२,११०,७२१,८६०,६५५ जी० ३।६४३ से ६४५,६५४ से ६५६ कड्डिजमाण [कृष्यमान ] रा०५६ कणियार [कणिकार] जी० ३१८७२ कठिण [कठिन ] ओ० ४६,६४ कण्ह [कृष्ण ] ओ०६६. जी० ३।२७८,३४८ कढिय क्वथित] जी० ३१५६२,६०१ कण्हकंद [कृष्णकन्द] जी० २७३ कणइर कणवीर] जी० ३३५६७ कण्हकेसर कृष्णकेसर जी० ३१२७८ कणइरगुम्म [कणवीरगुल्म ] जी० ३।५८० कण्हपरिवाया [कृष्णपरिव्राजक] ओ०६६ कणग [कनक] ओ० १९,२३,५०,६३,६४,८२. कण्हबंधुजीव [कृष्णबन्धुजीव] जी० ३।२७८ रा० २८,३२,६६,७०,१२६,१३०,१३७,१७३, कण्हमत्तिया [कृष्णमृत्तिका] जी० ११५८ २१०,२१२,२८५,६८१,६६५. जो० ३१२८१, कण्हराई कृष्णराजी, कृष्णराज्ञी जी० ३११९ २८५,३००,३०७,३५४,३७२,३७३,४५१, कण्हलेस [कृष्णले श्य] जी० ६।१८६,१६३ ५८६,५६३,५६६,५६७.६४७,७४७,८६६, कण्हलेसा [कृष्णलेश्या] जी० २१३३; ३।१५० ८८५,९३६ . कम्हलेस्स [कृष्णले श्य] जी० ६.१८५,१६६ कणगजाल [कनकजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ कण्हलेस्सा [कृष्णलेश्या] जी० १२१ कणगजालग [कनकजालक] जी० ३।५६३ कण्हसप्प [कृष्णसर्प] जी० ॥२७८ कणगत्तयरत्ताभ [कनकत्वग्रक्ताभ] कण्हासोय [कृष्णाशोक] जी० ३।२७८ जी० ३.१०६३ कत [कृत] जी० ३१५६१ कणगप्पम [कनकप्रभ] जी० ३१८६६ कसमाल [कृतमाल] जी० ३१५८२ कणगमय [कनकमय] जी० ३४१५,६४३,६४४, कतर [कतर] जी० २०६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।११३८, २५२, कणगामय [ कनकमय] रा० २५४. जी. ३।३५२, ५६, ७२०, ६।२५३,२८६ से २६१,२६३ ४१५,६३२,६४३,६५४,६५५,७३६ कति कति रा० ७६७. जी० १३१६,२०,५६, कणगावलि [कनकावलि] ओ० २४,१०८,१३१. ५६,६२,७४,७६,८२,८५, ६०,६३,१०१,११६, जी० ३४५१ १२८,१३०,१३४; ३१७७,६८,१०८,१५०, कणगावलिपविभत्ति [कनकावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ १५७,१६०,१६५,१६७,१७२ से १७४,२३५ कणिया {क्वणिता] जी० ३१५८८ से २३७,२४१,२४२,२४५,२४६,२४६,२५४, कण्ण [कर्ण] रा० १५,४०,१३२,१३५,१७३. २५५,२५८,२६६.७०३,७०७,७२२,७३३ से जी० ३।२६५,२८५,३०५ ७३५,७४६,७६६,८०६,८१३,८२०,२४, कण्णछिण्णग [कर्णछिन्नक] ओ०६० ८३७,८५१,८५५,६६३ से ६६६,१०१५, कण्णपाउरण [कर्णप्रावरण] जी० ३।२१६ १०१७,१०२३.१०२६,१०४०,१०४१,१०४४, कग्णपोट [कर्णपीठ] ओ० ४७,७२ १०७५,११०१,१११२ कण्णपूर [कर्णपूर] ओ० ५७,१०६,१३२ कतिक्त्तो [कतिकृत्वस्] जी० ३१७३० कण्णवाली [कर्णवाली] जी० ३१५६३ कतिविष कतिविध] जी० ३१६ से ११,३७,३८, कग्णवेयणा [कर्णवेदना] जी० ३१६२८ १४७,१६१.१८५, ६३१, ५१३७ ८६६ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिविह-कम्मभूमिया कतिविह [कतिविध ] जी० ३।१८३,६७६,६७७; ५३८,३६,५३ से ५५ कती [ कुतस् ] जी० ३१८८ कत्तिया [ कृत्तिका ] जी० ३१६३७ कस्थ [ कुत्र ] ओ० १६५३१ कत्य [ कथ्य ] रा० १७३. जी० ३१२८५ कत्थद्द [ कुत्रचित् ] ओ० २८ कस्थल गुम्म [ कस्तुलगुल्म ] जी० ३।५८० कब [ कदम्ब ] जी० ३३५८३ कद्दम [ कर्दम ] जी० ३।७५१ कमय [ कर्दमक ] जी० ३१७४८ मोदय [कर्दमोदक ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ कपिहसिय [ कपिहसित ] जी० ३१८४१ रूप्प [कल्प ] ओ० २६, ६५, ९५, १७, ११४, ११७, १४०, १५५, १५७ से १५६, १६२, १६०. रा० ७, १२,५६,१२४,२७६,७६६. जी० २।१६,४६,६६, १४८, १४९, ३ /७७५, ८४२,८४५,६३७, १०३६, १०५७ से १०५६, १०६२,१०६५, १०६७, १०७१, १०७३, १०७७ से १०८३, १०८५ से १०८७, १०६०, १०६१, १०६३, १०६७ से १०६६,११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५, १११७,१११६, ११२१, ११२२, ११२४, ११२८ / कप्प [ कृप् ] – कप्पड़. ओ० ६६. कप्पंति. ओ० ६३. - कप्पेज्जा. रा० ७७६ neer [ कल्पना ] ओ० ५७ कप्परक्त [कल्परूक्ष ] मो० ६३ कखग [ कल्परूक्षक ] १०२८५ कप्परुक्लय [कल्परूक्षक ] रा० ३।४५१ कप्पिय [ कल्पित ] ओ० ५२,६२,६३. रा० ६८७ से ६८६ कप्पूर [ कर्पूर] रा० ३०. जी० ३१२८३ कप्पैमाण [कल्पमान] ओ० ६१ से ६३, १६१,१६३. रा० ६७१,७५२ पू६५ कप्पोवन [कल्पोपग] ओ० ७२ कम् [कट ] ओ० ६८,८९ से ६३,६५,६६, १५५,१५८ से १६१, १६३, १६५. रा० ६६७ कम [ क्रम ] जी० ३।७७८,८३८:१४ कमंडलु [ कमण्डलु ] जी० ३।५६७ कमल [कमल] ओ० २१,२२,५४. रा० ८,१३१, १४७, १४८, १७४,२८०,७१४, ७२३, ७७७,७७८, ७८८. जी० ३।११८, ११६,२८६,३२१,४४६, ४४८,५६७ कमलागर [ कमलाकर ] ओ० २२. रा० ७७७, ७७८,७८८ कम्म [कर्मन् ] ओ० २६, ४६, ७१ से ७४१५,७६ से ८१, ८६, ११६, १५६, १६७,१७१,१०२, १८४, १६५।२० रा० १८५, १८७,७५०, ७५१,७७१, ७७२. जो० २.७३,६७,१३६; ३११२६८६, २१७,२७,२८ कम्मत [ दे० कर्मान्त ] मो० १६१,१६३ कम्मंस [ कमश ] मो० १७१,१५२ कम्मकर [ कर्मकर ] ओ० ६४ कम्म [कर्मक] जी० ६ १७९ कम्मगसरीर [कर्मकशरीर ] ओ० १७६ कम्मगसरीर [कर्मकशरीरिन् ] जी० ६।१७०,१७४ कम्मठिति [ कर्मस्थिति ] जी० २।१३,६७,१३६ कम्मणिसेग [ कर्मनिषेक ] जी० २।१३६ कम्मणिसेय [ कर्मनिषेक ] जी० २२७३,९७ कम्मपि [ कर्मप्रकृति ] ओ० १६८ कम्मभूमक [ कर्मभूमक ] जी० २२८६,१३२ कम्मभूमग [ कर्मभूमक ] जी० १११५६, २०१४, २८, २६,७७,८५,६६, १०६,११५,१२३, १३८, १४७, १४६; ३.२१२,२२६,८३६ कम्मभूमय [ कर्मभूम ] जी० २ २७ भूमि [कर्मभूमि ] जी० २।१३७ कम्मभूमिग [ कर्मभूमिज ] जी० २३७०,७२,१३८, १४७, १४६ कम्मभूमिय [ कर्मभूमिज ] जी० १११०१ कम्मभूमिया [ कर्मभूमिजा ] जी० २१११,१४,५५, Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ७०, ७२, १४७, १४६ कम्मय [ कर्मक] जी० १११५, ५६, ६४, ७४, ७६, ८, २ ५,६३,१०१,११६,१२८, १३०,१३५ कम्मया [ कर्मजा ] रा० ६७५ कम्मविस्सा | कर्म] ओ० ४४ कम्मसरीर [कर्मशरीर] ओर १७६. जी० ३।१२६६ कम्मसरीरि [ कर्मशरीरिन् ] जी० ६।१८१ कम्मार [ दे० | जी० ३ ११८,११६ कम्मारय | दे० ] जी० ३३६१० कम्हा [ कस्मात् ] ओ० १७१. रा० ७०३. जी० ३।७२३ कय [कृत ] ओ० २,२०,५२, ५३, ५७,६२,६३,७०, ६२. १० १५,१३१, १४७, १४८५, २८०, ६८३, ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०,७१६, ७२३,७२६,७५१,७५३, ७६५, ७७४,७६४, ८०२,८०५. जी० ३१३०१,४४६ कय [ कच ] ओळ ६३. रा० १२,२६१,२६३ से २६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३३४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४ कब [ कदम्ब ] जी० ३३३८८ कयपडिकिरिया | कृतप्रतिक्रिया ] ओ० ४० कयर [ कतर ] ओ० १८५ से १८० रा० ६६७. जी ० १ १४३, ३ | १००७, १०२०,१०२१, १०३७४११६,२२,२५,५१६,२०,२६, २७, ३२ से ३६,६०; ७/२२, २३, ६७, १४,५५, २५० से २५२,२५५, २६२ कलिधरग [ कदलीगृह ] रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ कली [कदली ] जी० ३।५६७ कयवर | कचवर ] जी० ३१६२२ कया [ कदr] जी० ३२७२ sars [ कदाचित् ] ओ० ११६. ० ६८०. जी० ३१५६ कयाई [ कदाचित् ] रा० ७५४ कम्मय-करयल कथाति [ कदाचित् ] रा० २०० काrि [ कदापि कदाचित् ] जी० ३।७०२ कर | कर ] ओ० १५. जी० ३१५८६, ५६७ / कर [ कृ] - करावेति रा० ७७४- करिस्सइ रा० ७७१- करिस्सति रा० ८०३ करिस्सामि रा० ७८७. करिस्सामो ओ० ५२. रा० ६८७. - करेइ. ओ० २१. रा० ५६. जी० ३।४६१. - करेंति. ओ० ४७. रा० १०. जी० ११२७ करेज्ज. जी० ३१६६७. करेज्जा. ओ० १८०, ग० १२. करेति. रा० ८. जी० ३।४४३. करेमि रा० ७६४. करेस्संति.रा० ८०२. करेह. रा० ६ - करेहि. ओ० ५५. ० ६६५. - करेहिति. ओ० १४४. -- करेहिति ओ० १५४. रा० ८१६. कारवेति रा० १२. कारवेह. रा० ६. कारवेहि ओ० ५५. काहिति ओ० १४४. - कीर. ओ० १५४. रा० ७६७ करंड [करण्डक ] ओ० ११७. रा० ७६६ करकंट | करकण्ट | ओ० ६६ करग [करक ] जी० ३१५८७ करड [वरट ] रा० ७७ करडी [करटी ] जी० ३।५८८ करण | करण ] ओ० १६, २५.४६, ६३, १४४, १४५, १६१, १६३. २० ७६, १७३,६८६,८०२,८०३, ८०५. जी० ३२८५,५६६,८५४ करणओ [करणतस् ] ओ० १४५. रा० ८०६,८०७ करणया | करणता ] ओ० १७१ करणिज्ज | करणीय] रा० ११,५६,२७५,२७६. जी० ३।४४१, ४४२ करतल [ करतल ] रा० २४. जी० ३।२७७, ४४५, ४४६,४४८, ४५८ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२०,५५४, ५५५ करभरवित्ति [करभरवृत्ति ] रा० ६७१,७०३, ७१८, ७५०, ७५१ कर [ करक ] जी० १६५ करयल [ करतल] ओ० १५, २०, २१, ५३, ५४,५६, Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करवत-कवल ५६७ ६२,११७. रा० ८,१०,१२,१४,१८,४६,७२ कलायरिय (कलाचार्य ] ओ० १४५ से १४७. रा. ७४,११८,२७६,२७६,२८०,२८२,२६१ से ७७६,८०५ से ८०८ २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६५५,६७२, कसाव [कलाप] ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, २३५,२८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, ७२३,७६५,७७०,७७१,७६६. जी० ३।४४३ ३५५,६६४. जी० ३।३०२,३७२,३६७,४४७, ४५७ ४५६,४६१,४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०, ५६३,५६३ करवत करपत्र] जी० ३१११० कलिंग [कलिङ्ग] जी० ३१५६५ करित्तए [कर्तुम् ] ओ०१०३ करिय [कृत्वा] रा० २९२. जी० ३।४५७ कलिकलुस [कलिकलुष] रा० ७५०,७५१ कलित [कलित] जी० ३।३७२,४४७,४५७,४५६, करेत्ता [कृत्वा] ओ० २१. स० ६. जी० ३।४४३ ४६०,५६४,५६५ करेमाण[कुर्वाण] ओ० ५२,६४,६४,११६,१५६. कलित्त [कटित्र] ओ० १३ रा०६८७,६८८. जी, ३१४४३,४४५,८४२, कलिय [कलित ] ओ ० १,२,१५,४६,५५ से ५७, २४५,६१७: ६२,६५. रा० १२,१७,१८,२०,३२,५२,५६, करोडिया [करोटिका] ओ० ११७ १२६,१३७,२३१,२४७,२८१,२६१,२६३ से करोडो करोटी] जी. ३१५८७ २६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३१२८८, कलंक [कलङ्क] जी० ३१५६५ ३००,३०७,३७२,३६३,४५८,४६०,४६२, कलंकलीभाव [कलङ्कलीभाव] ओ० १६५ ४६५,४७०,४७७,५१६,५५०,५५४,५८०, कलंब कदम्ब ओ. ६,१० कलंबचीरियापत्त [कदम्बचीरिकापत्र जी०.३॥८५. ५६,५६७ कलुस [कलुष] बो० ४६ कलंबुय [कदम्बक ] जी० ३१८३८१२,१५,८४२ . कलकल कलकल] ओ० ५२. रा० ६८७,६५८. ___ कलेवर कलेवर] रा० १६०. जी० ३।२६४ कल्लकल्य] ओ०२२. रा० ७२३,७७७,७७८, जी० ३१८४२,८४५ ७८८ कलफलेंत [कलकलायमान] ओ० ४६ कलण [कलन] ओ० ४६ कल्लाण [कल्याण ] ओ० २,५२,७१,१३६. रा०६, १०,५८,१८५,१८७,२४०,२७६,६८७,७०४, कलमसालि [कलमशालि] जी० ३१५६२ ७१६,७७६. जी. ३२१७,२९७,२६८,३५८, कलस कलश ओ० २,१२,६४. रा० २१,४६, २७६,२८०,२६१. जी० ३२८६,४४५,४४६, ४०२,४४२,५७६,६०२ ४४८,५८७,५६७ कल्लाणग [कल्याणक] बो० ४७,६३,७२. जी. कलसिया [कल शिका] रा० ७७ १५६५ कलह कलह ] ओ० ४६,७१,११७,१६१,१६३। कल्लोल [कल्लोल] ओ० ४६ रा० ७६६. जी० ३।६२७ कवइय [कवचिक ] ओ० ५७ कलहंस कलहंस] ओ०६. जी. ३१२७५ कवड [कपट] रा० ६७१ फलहविवेग कलहविवेक ओ०७१ : कवय [कवच ] ओ० १६५२०. रा०६६४,६८३. कला [कला] ओ० १४६.१४८,१४६. रा० ८०६, जी०.३१५६२ ८०७.5०६,६१० कवल [कवल ] ओ० ३३ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ कवाड-काय कदार [कपाट] ओ० १,१७४. रा० १३.. जी० काइय [कायिक] ओ०६६ ३१३०० काउं [कृत्वा ओ० १३७ कविट्ठ [कपित्थ] जी० ११७२ काउंबरीय [काकोदुम्बरिका] जी० १७२ कवियच्छू [कपिकच्छू] जी० ३८५ काउलेस कापोतलेश्य ] जी०६१६३ कबिल [कपिल] ओ० ६. जी० ३।२७५ काउलेसा कापोतलेश्या] जी० ६८,६६ कविसीसग [कपिशीर्षक] ओ० १. रा० १२८. काउलेस्स [कापोतलेश्य ] जी० ६१८५,१८८,१६६ जी० ३३३५३ काउलेस्सा [कापोतलेश्या] जी० १२२१ कविसीसय [कपिशीर्षक] रा० १२८. जी० ३।३५३ काऊ [कापोती] जी० ३१७७ कविहसिय [कपिहसित जी० ३३६२६ काकणिलक्खण काकिणीलक्षण] ओ० १४६ कवेल्लुयावाय [कवेल्लुकापाक] जी० २११८ कागणिलक्षण [काकिणीलक्षण] रा०८०६ कवोत [कपोत] जी० ३३५६८ कामणिमंसक्खावियग [काकिणीमांसवादितका कवोल [कपाल ] ओ० १६. रा० २५४. ओ०१० कागण [कानन] रा० ६५४,६५५. जी० ३१५५४ जी० ३।४१५,५६६,५६७ कसाय [कषाय ] ओ० ४४,४६. जी. ११५,१४, कापिसायण [कापिशायन] जी० ३१८६० १६,८६,६६,१०१,११६,१२८,१३६, ३१२२; काम [काम] ओ० १५,४३,१४६,१५०,१६८. रा० ६७२,६८५,७१०,७५१,७५३,७७४,७६१, ८११. जी० ३।१७६,११२४ कसायपरिसलीगया [कषायप्रतिसंलीनता] ओ० ३६ कामकंत [कामकान्त] जी० ३।१७६ कसायविउस्सग्ग (कषायव्युत्सर्ग] ओ० ४४ कामकूर कामकूट] जी० ३११७६' कसायसमुग्धाय [कषायसमुद्घात] जी० ११२३, कामगम [कामकम] ओ० ४६,५१ ८५,३।१०८,१११२,१११३ कामगामि कामकामिन् जी० ३३५६८,६०६ कसिण [कृष्ण] ओ० १६,४७. जी० ३१५६६,५६७ काममय [कामध्वज ] जी० ३।१७६ कसिण [कृत्सन] ओ० १५३,१६५,१६६. कामस्थिय [कामार्थिक ] ओ०६८ रा० ८१४ कामप्पा [कामप्रभ] जी० ३३१७९ कह {कथय् ]--कर्हति. ओ० ४५-- कहेइ. कामरय [कामरजस् ] ओ० १५०. रा० ८११ रा०६६३ कामरूवारि कामरूपधारिन्] ओ० ४६ कहं [कथम् ] ओ० ११८. रा०७०३. कामलेस्स | कामलेश्य] जी० ३३१७६ जी० ३१२११ कामवग्ण कामवर्ण] जी० ३११७६ कहकहभूत कहकहभूत ] रा० ७८ कामसिंग कामशृङ्ग] जी० ३३१७६ कहग [कथक ] ओ० १,२ कामसिट्ट [कामशिष्ट ] जी० ३३१७६ कहमपेच्छा [कथकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५. कामावत [कामावर्त] जी० ३३१७९ जी० ३६१६ कामुत्तरडिसय [कामावतंसक] जी० ३११७६ कहा [कथा] ओ० २०,४५,५३. रा०७१३ काय [काय ] ओ० २४. रा० १४६,८१५. कहि [व] जी० १११२७ जी० ३१११०,१११,१७४; १।६६ कहिं [क्व, कुत्र] ओ० १४०. रा० १२२. काय [काचय]---कायावेमि रा०७५४ जी० ११५४ काय [पाय] [काचपात्र] ओ० १०५.१२५ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काय-कालमेह १६४ काय [बंधण] [काचबन्धन] ओ० १०६,१२६ ६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से १०६, कायअपरित्त [कायापरीत] जी० ६७६,८० १११,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२५, कायकिलेस [कायक्लेश] ओ० ३१,३६ १२६,१३१ से १३३,१३६,१५०; ३ १२,२२,४५, कायगुत्त [कायगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ८३.६०,६४,११७ से १२०,१५६,१८६,१६२, रा० ८१३ १६५ से १९७,२१४,२३८,२४३,२४७,२५०, कायजोग [काययोग] ओ० ३७, १७५ से १७७, २५२ से २५६,२५८,४३६,५६४,५६५५८६, १८०,१८२ ५६६,६२६,६३०,७२४,८१६,१३८ । १६,१८, कायजोगि [काययोगिन्] जी० ११३१,८७,१३३; २०,८४४,८४७,१०२७,१०४२,१०८५,१०८६, ३।१०५,१५२,११०६६।११३,११५,११८, ११३१,११३६,११३७, ४।३,५,६,१६,१७; १२० १५,८,९,२१ से २४,२८ से ३०,७।२; काय द्विति [कायस्थिति] जी० ३।११३३; ६।१२२ ८।३।४; ६।२,३,१२,२३,२५,२६,३३,४०, कायपरित्त [कायपरीत] जी० ६७६,७७,८३ ४६,५१,५२,५६.६६,७१,७३,७८,६७,१६४, कायबलिय [कायबलिक] ओ० २४ १७१,१७८,२०२,२०४,२५७ से २५६ कायम्व [कर्तव्य] रा० ७२,७०४. जी० ३.१२७; कालो [कालतस् ] ओ० २८. रा० २००. जी० १२३३,१३६,१४०:२।४८,४६,५४,५७ कायविषय [कायविनय] ओ० ४० से ६२,८२,८३, ३३२७२, ४७ से १९१८, कायसमिय [कायसमित] ओ० १६४ १,१२ से १६,२३,२६६१८७६; १०,११, कायापरित [कायापरीत] जी० ६८५ २३,२४,३१,३६ से ४८,५७५८,६८,७८,७६, कारंरक [कारण्डक] ओ० ६. जी० ३।२७५ ८९,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५,१२२, कारण कारण] रा० १६,६७५,७१६,७२०,७५२, १२२,१४२,१६० से १६३, १७१,१८६ से ७५४,७५६,७५८,७६०,७६२,७६४,७६८ १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से कारवाहिया कारवाहिक, कारबाधित] ओ०६८ २१२,२१४,२१६,२२२ से २२५,२२७ से कारवेत्ता [कारयित्वा] ओ० ५५. रा०६ २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, कारावण [कारण] ओ० १६१,१६३ २४६,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३, कारेमाण [कारयत्] ओ०६८. रा० २८२,७६१. २७५ से २८२,२८४,२५५ जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ कालतो [कालतस् ] जी० २१८४,११७ से १२०, १२२ से १२४,३१५६,१६३,१६४,११३३ से कारोडिय [कारोटिक] ओ०६८ ११३५:५८,१०,२२६।१६,२३,६४,७६,७७ काल [काल] आ० १,१८,२२ स २२,२७,२८,०५, कालधम्म [कालधर्म रा० ७५३ ४७ से ५१,८२,८७,८६ से ६५,११४,११७, कालपोर [दे. कालपर्वन् ] जी० ३८७८ १४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. कालमास [कालमास] ओ० ८७,८६ से १५,११४, रा० १,७,६३,६५,१७३,२७४,६६५.६६६, ११७,१४०,१५५.१५७ से १६०,१६२,१६७. ६६८,६७६,६८५,६८६,७५०,७५१ से ७५३, रा० ७५० से ७५३,७६६. जी. २११७, ७७१,७६६,७६८,८१५. जी० ११५,३४,३५, ५०,५२,६६, १२७,१३७ से १४२, २१२० से कालमिगपट्ट [कालमृगपट्ट] जी० ३१५६५ २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,६३,६५, कालमेह [कालमेघ ] ओ० ५७ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० कालय [ कालक ] जी० ३१८१६. कालसंघिय [कालसन्धित] जी० ३१५८६ • कालागरु. [ कालागुरु ] रा०, ९,१२,३२,१३२, २३६,२८१,२६२.. जी० ३१३०२,३७२,३६८, ४४७, ४५७ कालागुरु [कालागुरु ] ओ० २,५५. कालाभिग्गहचरय [ कालाभिग्रहचरक ] ओ० ३४ कालायस [कालायस ] ओ० ६४. रा० १७३, ६८१. जी० ३१२८५ कालोद [ कालोद ] जी० ३।७७५,८१० से ८१२, ८१४८१६८१८ कालोमास [ कालावभास ] जी० ३१८३,६४. कालीय [ कालोद ] जी० ३।७७० से ७७३,८००, ८०३ से ५०७,८१३,८१५,८१६ से ८२१, ६५६,९६४,९६५,६६७,६७० 8 कालो [कालोदक ] जी० ३७७२ कापेच्छा [ का प्रेक्षा ] जी० ३।६१६ काविल [कापिल ] ओ० ६६ काfवसायण [ [कापायन] जी० ३।५८६ ::: कास [काश ] जी० ३१६२८ कासित्ता [काशित्वा ] जी० ३।६३० fasara [ कितिकर्मन् ] ओ० ४० कि [ किम् ] रा० ६२. जी० ११२ free [ किङ्कर ] ओ० ६४. रा० ५१ free भूत [ किङ्करभूतं ] जी० ३५६२ freरभूय [ किङ्करभूत ] रा० ६६४ किचि | किञ्चित्.] ओ० १६६. रा० ६. जी० श०२ किणोमोदरिय [किञ्चिदूनावमोदरिक] ओ० ३३ किपागफल [ किम्पाकफल ] ओ० २३ agree [ किम्पुरुष ] ओ० ४६, १२०, १६२.. रा० १४१, १७३, १६२, ६६८, ७५२, ७७१, ७६६. जी० ३ २६६, २८५, ३१८. किरकंद [ किम्पुरुपकण्ठ ] रा० ११५, २५८. जी० ३१३२८ fingरिसकंठ [ किम्पुरुषकण्ठक ] जी० ३,४१६ free [ किम्मय ] जी० ८७, १०८१' कालय - वित्तिय fegr [[कंशुक ] ओ० २२. ० २७,७७७७७८, ७८८.. जी० ३।११८, २८०, ५६० free [ कृत्य ] रा० ३१, ५६ किच्चा [ कृत्वा ] ओ० ८७० रा० ६६७, जी० ३ ११७ किडिया [ कृष्टिका ] जी० १/७३ feet [ क्रीडाकर ] ओ० ६४ किfor [ किणित ] रा० ७७ किore [ किन्नर ] ओ० १३, ४६. ० ६६८, ७५२, ७७१, ७८६. जी० ३३२६६, २६५, २८८, ३००, ३१८, ३७२ किण्णरकं [ किन्नर कण्ठ ] जी० ३।३२६ कण्णरकंठग [ किन्नरकण्ठक ? जी० ३१४१६ किण्व [ कथम् ] रा० ६६७ किण्ह [ कृष्ण ] ओ० ४, १२, १३, १६. रा० २२, २४, २५,१२८, १३२, १५३, १६७, १७०, १७८, २३५, ७०३. जी० ३७८१, २७३, २७७,२७८, २०, २१८, ३०२, ३२६, ३५.३, ३५८, ३८२, ३६७, ५८५, ५२७, ८३८ १७ १०७५ frustrate [कृष्णकणवीर ] रा० २५. जी० ३३२७८ किण्हकेसर [कृष्णकेसर ] रा० २५ किण्हच्छाय [कृष्णच्छाय ] ओ०४. रा० १७०, - ७०३. जी० ३।२७३ किष्टबंधुजीव | कृष्ण बन्धुजीव ] रा० २५ किण्हलेस [ कृष्णलेश्य ] जी० ३ १०१ किण्हलेस्सा [ कृष्णलेश्या ] जी० ३११०१, १०२ किण्हसप्प [ कृष्णसर्प ] रा० २५ किण्हासोय [ कृष्णाशोक ] रा० २५ किन्होभास [कृष्णावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३१२७३, २६८, ३५८,५८५ √ कित्त] [ कीर्तम् ] - किति रा० १६५ कित्तिय [ कीर्ति ] ओ० २. १. अगरु, भल्लातक, अर्जुन (आप्टे) Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किन्नर - कुंभिक्क किन्नर [ किन्नर ] ओ० १२०,१६२. रा० १७, १८, २०, ३२, ३७, १२६, १४१, १७३, १६२. जी० ३।३११ किन्नरकंठ [ किन्नरकण्ठ ] रा० १५५, २५८ किमंग [ किमङ्ग ] ओ० ५२. रा० ६८७ किमि [ कृमि ] जी० ३१८४ किमकुंभी [कृमिकुम्भी ] रा० ७५६ fafar [ कृमिक ] जी० ३।१११ किमिराग ] कृमिरोग ] रा० २७. जी० ३।२८० किर [ किल ] जी० ३।१२६ १ किरण [ किरण] ओ० १६. जी० ३३५६०, ५६६, कुंडधारपडिमा [ कुण्डधारप्रतिमा] रा० २५७ जी० ३१४१८ कुंडल [ कुण्डल ] ओ० १५, २१, ४७, ४६, ५१, ५४, ६३, ६५, ७२, १०८, १३१. २०८, २८५, ६७२, ७१४. जी० ३।४५१,५६३, ७७५, ६३३ कुंडलभद्द [ कुण्डलभद्र ] जी० ३ ६३३ कुंडलमहाभद्द [ कुण्डलमहाभद्र | जी० ३२६३३ कुंडलमहावर [ कुण्डलमहावर ] जी० ३१६३३ कुंडलवर [ कुण्डलवर ] जी० ३१६३३ कुंडलवरभद्द [ कुण्डलवरभद्र ] जी० ३१९३३ कुंडलवरमहाभद्द [ कुण्डलवरमहाभद्र ] जी० ३९३३ ૨ किरिया [ क्रिया ] ओ० ४०, १२०, १६२. रा० ६१८, कुंडलवरोभास [ कुण्डलवरावभास | जी० ३९३३ कुंडलवरोभासमहावर | कुण्डलोवरावभासमहावर ] ७५२, ७८६० जी० ३।२१०,२११ किलंत [क्लान्त ] जी० ३।११८, ११६ जी० ३०६३३ कुंडलवरोभासवर [ कुण्डलवरावभासवर | जी० ३१६३३ फिलाम [ क्लम ] रा० ७२६, ७३१, ७३२ किलेस [ क्लेश ] ओ० ४६ किव्विसिय [कित्विषिक ] ओ० ६८ किसलय [ किसलय ] ओ०५, ८. रा० १३६. जी० ३।२७४, ३०६ किसि [ कृषि ] जी० ३।६०७ किसिय [ कृशित ] ० ७६०, ७६१ कोड [ क्रीड् ] - कीर्डात जी० ३।२६८ htयगड [ क्रीतकृत ] ओ० १३४ / कील [ क्रीड् ] -- कीलंति रा० १८५. जी० ३।२१७ कोलग [कोलक] रा० २४. जी० ३।२७७ कीलण [ क्रीडन'] ओ० ४९ कोलिया [ कीलिका ] जी० ११११६ कुंकुम [ कुङकुम ] ओ० ११०, १३३. रा० ३०. जी० ३१२०३ कुंचस्सर [ क्रोञ्चस्वर] रा० १३५ कुंचि [ कुञ्चित] ओ० १६. जी० ३।५६६, ५६६ कुंजर [ कुञ्जर] ओ० १, १३, २७. रा० १७, १८, २०, ३२, ३७, १२६, ८१३. जी० ३ ११८, ११६, २८८, ३००, ३११, १७२ ६०१ कुंडिया [ कुण्डिका ] ओ० ११७ कुंडियाrय [ कुण्डिकालाञ्छ्णक | रा० ७६७ कुंत | कुन्द्र | ओ० ६४. जी० ३०११० कुंतरण [ कुन्ताग्र ] जी० ३.८५ कुंग्गाह [ कुन्तग्राह ] ओ० ६४ कुंथु [ कुन्थु ] रा० ७७२. जी० ३.१११ कुंब | कुन्द ] ओ० १६. रा० २६, ३८, १६०, २२२, २५५, २५६. जी० ३:२८२, ३१२,३३३, ३८१, ४१६, ४१७, ५६६, ५६७, ८६४ कुंद गुम्म [ कुन्दगुल्म ] जी० ३२५८० कुंदलया [ कुन्दलता ] ओ० ११. रा० १४५,३२६८, ५८४ कुंदलयापविभत्ति | कुन्दलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ कुंदुरुक्क [ कुन्दुरुक] ओ० २,५५.०६, १२, ३२, १३२, २३६,२८१, २६२. जी० ३३३०२, ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ कुंभ [ कुम्भ ] जी० ३१५६७ कुंभारावा [ कुम्भकारापाक ] जी० ३।११८ कुंभिक [ कौमिक, कुम्भात्र ] रा० ४० जी० ३।३१३ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ कुंभी [कुम्भी ] रा० ७५६ कुक्कुइय [ कौकुचिक ] ओ० १५ कुक्कुड [ कुक्कुट ] ओ० १, ३३ कुक्कुडलक्खण [कुक्कुटलक्षण ] ओ० १४६. T० ८०६ कुठि [ कुक्षि ] ओ० १६. जी० ३३५६६ से ५६८, ७८८ कुटिल [ कुक्षिशूल ] जी० ३१६२८ कुज्जायगुम्म [कुब्ज कगुल्म ] जी० ३।५८० कुट्टिज्अंत [कुट्टयमान ] रा० ७७ कुट्टिमतल [कुट्टिमतल] ओ० ६३ कुट्ट [ कुष्ठ ] जी० ३१६२८ कुडभी [कुडभी] रा० ५२, ५६, २३१,२४७. जी० ३।३६३ कुड [ कुटज ] ओ० ६,१०. जी० ३२८८,५८३ कुटिल [ कुटिल ] ओ० १, ४६. जी० ३ । ५६७ कुटुंब [कुटुम्ब ] रा० ६७५ कुड्ड [कुद्य ] जी० ३।७२४, ७२७ कुणाला कुणाला ] रा० ६७६, ६७७, ६८३, ७०६ कुणिम [ दे० कुणप ] ओ० ७३. जी० ३।८४ कुतुंब [ कुस्तुम् ] रा० ७७ कुतुंबर [ कुस्तुम्बर ] रा० ७७ कुत्तियावण [ कुत्रिकापण ] ओ० २६ कुतुंबक [ कुस्तुम्बक ] जी० ३।७८ कुमार [ कुमार ] रा० ६७३, ६७४, ७९१ से ७६३ कुमारग्गह [कुमारग्रह ] जी० ३१६२८ कुमारसमण [कुमारश्रमण ] रा० ६६६, ६८७, ६८९,६६२ से ६६७, ७०० से ७०६, ७११, ७१३,७१४, ७१६ से ७२२,७३१ से ७३३, ७३६ से ७३६ ७४७ से ७८१, ७८७, ७६६ कुमुद [ कुमुद ] रा० २६, ३१. जी० ३।११८, ११६, २५६, २८२, २८४,५६७ कुमुदप्पभा [ कुमुदप्रभा ] जी० ३।६८३ कुमुदा [कुमुदा] जी० ३१६८३,६१५ कुमुय [ कुमुद] [कुमुद ] ओ० १२,१५०. कुंभी- कुसुम रा० १७४, १९७, २७६,२८१,२८८,८११. जी० ३३२८२,२८६ कुम्म [ कूर्म ] ओ० १६,२७,३७. रा० ५१६. जी० ३१५६६, ५६७ कुरा [ कुरु, कुर] जी० ३१५७८ से ५६६,६०५ से ६२८,६३९,६३२,६३९,६६६, ६६८,७०२, कुद [ कुरु ] जी० ३।७७५।३ कुरुविंद [ कुरुविन्द] ओ० १६. जी० ३१५९६ कुल [ कुल ] ओ० १४,२३,४०, १४१, १५५. रा० ७६६. जी० ३।१६० कुलकोडि [कुलकोटि ] जी० ३।१६० से १६२, १६५ से १६६,१७१,१७४,६६६,९६८ कुलक्खय [ कुलक्षय ] जी० ३१६२६,६२८ कुलघरविखया [कुलगृहक्षिता ] ओ० ६२ कुलणितिय [ कुलनिश्रित ] रा० ७७३ कुलरोग [ कुलरोग ] जी० ३१६२८ कुलव [ कुडव ] T० ७७२ कुलवेयावच्च [ कुलवैयावृत्य ] ओ० ४१ कुल संपण्ण [ कुलसम्पन्न ] बो० २५. रा० ६८६ कुब्विय [ कुटीत ] ओ० ६६ कुवलय | कुवलय ] ओ० १३. जी० ३।५६७ कुस [ कुश ] ओ०८,१०. रा० ३७. जी० ३।३११, ३८६,५८१ से ५८३,५८६, से ५६५ कुसग्ग [ कुशाग्र ] ओ० २३ कुसल | कुशल ] ओ० १५,३७,६३,६४,१२० १४८, १४६,१६२. रा० १२,७०,१७३, ६७२,६८१, ६६८,७५२,७५८,७५६,७६५,७६६,७७०, ७८६,८०४, ५०६,८१० जी० ३।११८,२८५, ५८८,५६७ कुसुम [ कुसुम ] ओ० १३,४७,४६. रा० ६, १२, २६ से २८,३१,२२८,२६१,२६३ से २६६,३००, ३०५, ३१२,३५५. जी० ३१२७६ से २८१, २८४,३८७,४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, _५१६,५२०,५५४,५८०, ५०, ६७२ √ कुसुम [ कुसुमय् ] -- कुसुमति. जी० ३१५८० Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमघरग केवतिय ६०३ कुसुभघरग [कुसुमगृहक रा० १५२,१८३. केकय | केकय रा० ७०६ जी० ३।२६४,८५७ केतकी [ केतकी] जी० ३१२८३ कुसुमघरय [कुसुमगृहक ] जी० ३१८५७ केतगी (केतकी १० ३० कुसुमदाम [कुसुमदामन् ] जी० ३१५६१ केयह [केकय रा० ६६८, ६६६,६८३,७११ कुसुमासव [कुसुमासव] ओ० ६. जी० ३।२७४ ।। केमहालत [किरन्महत्] जी० ३११७६,१७८,१८२ कुसुमित [कुसुमित] जी० ३।५८६ केमहालय [कियन्महत् जी० १११६,३८६ ६१, कुसुमिय [कुसुमित ओ०५,८,१०,११. ६४,१८०,२५६,७६० से ७६२,६६९,१०८०, रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४,३६०,५८४, १०८७,१००८ ७०२,८०८,८२६ केयुय [ केतुक] जी० ३।७२३ कुहंड [कूष्माण्ड ] ओ० ४६ केयूर [केयूर] रा० २०५. जी० ३१४५१,५६३ कुहंडिया [ कूष्माण्डी] रा० २८. जी. ३१२८१ केरिसग [कीदृशक ] जो० ३।६४,१११६ कुहणा [कुहणा] जी० ११६६,७२ फेरिसय [की दृशक | रा० १७३. जी० ३८३ से ८५,६५ से कुहर [कुहर] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ ७,१०६,११६,११८,११६,१२२, कहिय कुथित ] जी० ३१८४ १२३,१२८,२१८,२८३, से २८५,५७६,५६६. कर कट] ओ०६३. रा० १३०, १७१. ५६७,६०१,६०२,६५५,६५८,६६१,१०७७ से १०७६,१०६३,१०६७ से १०६६,१११४, जी० ३१११६,३००,६८६,६६०,६६२ से ६६८, १११७,११२१ से ११२४ ७७५,८४५,६३७ फेरिसिय (कीदृशक) जो० ३।११२२ कूडागार [कुटाकार ओ० १६. जी० ३१५६४, केलास ! कैलाश ] जी० ३।७४८,७४६,७५२,६२३ केलासा [कैलाशा जी० ३।७५२ कूडागारसाला [ कूटाकारशाला] रा० १२३,७५५, केली [ केली] ओ० ४६ ७७२,७८७,७८८ केवइ [कियत्] जी० ११४१,१४२ कूडाहच्च [कूटाहत्य] रा० ७५१,७६७ केवइय [कियत् ] ओ० ८६ से ६५,११४,११७, कूणिय [कूणिक ] ओ० १४,२०,२१,५३ से ५६, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ६५५, ६२ से ७१,८०. रा० ७७८ ६६६. जी० ११५२; ३१७७,८१,२५९,७९८, कल [कूल ओ० ११५. रा० १७४,२७६. ८०२,८३०,१००४,१०४२,१०६२,१०६७, जी० ३।२८६,४४५,६३२,६३६,६६८ १०६९; ४१३ कूलषम्मग [कूलमायक] ओ० ६४ केवचिरं [कियच्चिरम् ] रा० २०० जी० ४७ कूवागाह [कृपग्राह] ओ० ६४ केवच्चिरं [किच्चिरम् | जी० १११३६ कूवमह [कूपमह ] जी० ३१६१५ कूवय [कूपक ] मो० ४६ केवति | कियत् ] जी० ३।६०,१६२,१६५ से १६७, केउ केतु] ओ० ६ से ८,१०,५०. रा० १६२, ५६६,६२६,११३१,११३६.११३७, ६।१२, १६३. जी० ३।२७५,२७६,३३५,३५५ केउकर [ केतुकर] ओ० १४. रा० ६७१ केवतिय [कियत्] रा० ७६८ जी० १११३७,१३८; केऊर [केयूर] ओ० २१,५४,१०८,१३१. २।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६, रा० ८,७१४ ६३,६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ १०६,१११, ११३, ११४, ११६, १२५, १२६, १३३,१३६,१५०, ३१५, १२,१४ से २१,३३, ३४,३६,४०,४२,४४,५१,६० से ६३,६६,७७, ८०,८१,८६,१०७,१२०,१५६,१८६,१६२, २३८,२४३,२४७,२५०,२५६,५६४,५६५, ५७०,७०६,७१४,७३२, ७८८, ७८६,७६४, ८१२,८१५,८२३,८२७, ८३२,८३४,८३५, ८३६,८४४,८४७,८५०, ६५३, ५४,६७२, ७३,१००० से १००६, १०१०, १०२२, १०२७, १०७३,१०८३, १०८५,११११, ४१५, १६, १७, ५५,२१,२३, २४, २६, ३० ७१२ ६ २, ४, २५, २६,३३,४६, ५२ केवल [ केवल ] ओ० १५१,१५३,१६०,१६५, १६६. रा० ८९२,८१४. जी० ३११०२५ केवलकप्प [ केवलकल्प ] ओ० १६६. रा० ७. जी० ३०६. केवलणाण [ केवलज्ञान ] ओ० ४०, १६५ १३. रा० ७३६,७४५,७४६ वाणविणय [ केवलज्ञान विनय ] ओ० ४० केवलणाणि [ केवलज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ६ १६३, १६५,१६६,११७,२०१,२०५,२०८ केवल सण [ केवलदर्शनन् ] जी० १।२६,८६ ६/१३१,१३५,१३६,१४० केवलदिट्ठि [ केवल दृष्टि ] ओ० १६५।१२ केवलनाणि | केवलज्ञानिन् ] जी० १।१३३ |१५६,१६३ केवल परियाग [ केवलपर्याय ] ओ० १६५ केवल [ केवलिन् ] ओ० ७२,१५४,१७१,१७२. रा० ७१६,७७१,७७५,८१५,८१६. जी० ११२६; ६३६, ४१, ४२, ४४ से ४८, ५०, ५२ से ५४ केवलिपरियाग [ केवलिपर्याय ] ओ० १५४. रा० ५१६ केवलसमुग्धाय | केवलिसमुद्घात ] ओ० १६६, १७४. जी० ११३३ फेस [केश ] ओ० १३,४७,९२. रा० २८६. . केवल-फोक्कुइय जी० ३।४५२ { संतभूमी [ केशान्त केशभूमी ] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३/४१५,५६६ केसर [केसर ] रा० २५,३७,१७४ जी० ३।११८, ११६,२५६२७८,२८६, ३११,६४३ केसरिवह [ केसरिद्रह ] जी० ३।४४५ here [ सरिद्रह ] रा० २७६ केसरिया [केसरिका ] ओ० ११७ केसलीय [ केशलोच] ओ० १५४,१६५,१६६. २० ८१६ hea [ केशव | जी० ३।१२६ केसि [ केशि ] ० ६८६, ६८७, ६८६, ६६२ से ६६७,७०० से ७०६,७११, ७१३,७१४, ७१६ से ७२२,७३१ से ७३३,७३६ से ७३६,७४७ से ७८१, ७८७,७६६ केसि [ केशिन् ] रा० १३३. जी० ३।३०३ केसुध [ किंशुक ] रा० ४५ कोइल [ कोकिल ] ओ० ६. जी० ३।२७५,५६७ कोड [ कौतुकं ] ओ० २०,५२,५३,६३,७०. २० ६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००, _७१६,७२६,७५१,७५३,७६५, ६७४,८०२, ८०५ कोजयकार | कौतुककारक ] ओ० १५६ फोउहल्ल [ कौतुहल ] जी० ३।६१६ कोहल [ कोतुहल ] ओ० ५२. रा० १५,१६. ६८७, ६८६ कोंच | श्रीञ्च | रा० २६. जा० ३।२८२ कोंचणिग्घोस | क्रौञ्चनिर्दोष ] ओ० ७१. रा० ६१ कोंचस्सर | क्रौञ्चस्वर | जी० ३(३०५,५६८ चारण [ वासन | रा० १८१,१०३. जी० ३१२६३ कोंडल | कोण्डलक ] ओ० ६. जी० ३१२७५ कोकंतिय [ कोकन्तिक ] जी० ३०६२० कोकासित [ दे० ] जी० ३१५६६ hatense [stafor] ओ० ६४ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोट्टण-कोह ६०५ कोट्टण [कुट्टन ओ० १६१,१६३ कोट्टिज्जमाण [कुट्टयमान] रा० ३० कोट्टिमतल ( कुट्टिमतल ] रा० १३०,१७३,८०४. ___जी० ३१२८५,३०० कोट्टिय [कुट्टयित्वा] जी० ३।११८,११६ कोट्टेज्जमाण [ कुट्टयमान ] जी० ३१२८३ कोट्ट [कोष्ठ ] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२३४,२८३,४१६,६३७,१०७८ कोटग कोष्ठक] रा० ७११. जो० ३५९४ कोट्ठबुद्धि कोष्ठबुद्धि] ओ० २४ कोट्ठय कोष्ठक ] रा० ६७८,६८६,६८७,६८६, ६९२,७००,७०६ कोटापार [कोष्ठागार] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६६५,७८७,७८८,७६०,७६१ कोद्वार [कोष्ठागार] रा०६७४ कोडकोडी [कोट कोटी] जी०.३१७०३,७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८१३१,८५५, १००० कोडाकोडिकोटाकोटि ओ० १६२. रा० १२४ कोडाकोडी | कोटाकोटी] जी० २०७३,६७,१३६; ३७०३,८०६,१०३८; १२६ कोडि | कोटि] ओ० १,१६२. रा० १२४ कोडिकोडी | कोटिकोटी] जी० ३.१००० कोडी | कोटी रा०६६४. जी. ३२३२,५६२, ५७७,६५८,८२३,८३२,८३५,८३९,१०३८ कोडीय | कोटीक) रा० २३६. जी. ३१४०१ कोडुंब [कौटुम्ब] जी० ३।२३६ कोडुबि [कौटुम्बिन् | जी० ३११२६ कोडुंबिय | कौटुम्विक] ओ० १,१८,५२,६३. रा० ६८१ से ६-३,६८७.६८८,६६०,६६१, ७०४,७०६,७१४ से ७१६,७५४,७५६,७६२, ७६४. जी० ३१६०६ कोण [दे कोण] रा० १७३. जी० ३१२८५ कोणिय ] कोणिक | आं० १५,१६,१८,२०,६२ कोत्तिय |कोत्रिक] ओ०६४ कोद्दालक [कुद्दालक] जी० ३१५८२ कोमल कोमल] ओ० ५,८,१६,२२,६३ रा० ७२३,७७७,७७८,७८८. जी० ३१२७४, ५६६,५६७ कोमुई [ कौमुदी] ओ० १५. रा० ६७२. जी० ३१५६७ कोयासिय [विकसित'] ओ० १६ कोरंट [कोरण्ट] ओ० ६३,६४. रा० ५१,२५५. कोरंटक [कोरण्टक] रा० २८. जी० ३१२८१ कोरंटयगुम्म [कोरण्टकगुल्म] जी० ३१५८० कोरक [कोरक] जी० ३१२१५ कोरब्ब [कौरव्य ] ओ० २३. रा०६८८ जी० ३.११७ कोरवपरिसा [कौरव्यपरिषद् ] रा०६१ कोरिल्लय [३०] रा० ७५६ कोरेंट [कोरण्ट] ओ० ६५. रा०६८३,६६२, ७००,७१६. जी० ३१४१६ कालसुणग [कोलशुनक] जी० ३१६२० कोलाहल [कोलाहल] ओ० ४६ कोव कोप] जी० ३११२८ कोस [क्रोश] १४,२३,१७०. रा० १८८,२०७, २०८,२३१,२४७,६७१,६७४,६६५,७६०, ७९१. जी० ३१४३,४४,८२,२६०,३५२ से ३५५,३५६,३६१,३६४ ३६८,३६६,३७२,३७४, ३६३३९५,४०१,४०२,४१२,४२५,६३४, ६४२,६४४,६४६,६५३,६५५,६६३,६६८, ६७३,६७४,६७६,६८३,६८५,६६१,७१४, ७३६,७५४,७५६,७६२,७६८ से ७७०,७७२, ८०२,८१५,८३६,१०१२ से १०१४ कोसंबकोशाम्र] जी. १९७१ कोसंबपल्लवपविभत्ति [कोशाम्रपल्लवप्रविभक्ति] रा० १०० कोसेज्ज [कोशेय] ओ० १३. जी० ३।५६५ कोह {क्रोध] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६,१६१,१६३,१६८. रा० ७६६. जी० ३।१२८,५९८,७६५,८४१ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ कोहंग [कोभङ्गक] ओ० ६ कोहकसाह [ क्रोधकपायिन् ] जी० १ १३१ ; ६१४८,१४६,१५२, १५५ कोहकसाथ [ क्रोध कषाय ] जी० १।१६ कोहविषे [ोधविवेक ] ओ० ७१ [ख] रा० ६५ खइय [ क्षायिक ] रा० ७६१,८१५ इय [खचित] जी० ३४३७२ स्वभवसम [ क्षयोपशम ] ओ० ११६,१५६ खंजण [ खञ्जन ] ओ० १३. रा० २५. जी० ३१२७८ खंड [ खण्ड ] जी० ३।५६२,६०१,८६६ खंडरक्स] [ खण्डरक्ष ] ओ० १ खंडिय [ खण्डिक] ओ० ६८ वंति [ क्षान्ति ] ओ० २५,४३. रा० ६८६,८१४ खंतिखम [ क्षान्तिक्षम [ ओ० १६४ वह [ स्कन्दग्रह ] जी० ३६२८ खंदमह [स्कन्दमह] २१० ६८८. जी० ३६१५ खंघ [ स्कन्ध ] ओ० ५,८,१३,१६. रा० ४,१२, २२७,२२८, ७५८,७५६. जी० १/५,७१,७२ ३३२७४, ३८६, ३८७,५६६,६७२, ६७६,७६३ संघमंत [ स्कन्धवत् ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ खंधावरमाण [स्कन्धावारमान ] ओ० १४६. रा० ८०६ संधि [ स्कन्धिन् ] जी० ३१२७४ खंभ] [स्तम्भ ] रा० १७ से २०,३२,६६,१२६, १३०,१३५,१७५,१६०,१६७,२०६,२११, २७६, २६७,३०२,३२५, ३३०,३३५,३४०. जी० ३१२६४,२६६, २८७, २८८, ३००,३७२, ३७४,४६२,४६७,४६०, ४६५,५००, ५०५, ५६७,६४६,६७३,६७४, ७५६, ८८४, ८८७, ११२८,११३० खंभडन्तर [ स्तम्भपुटान्तर] रा० १६७. जी० ३।२६६ कोहंग - खलु खंभबाहा [ स्तम्भबाहु ] रा० १९७. जी० ३।२६६ खंभसीस [ स्तम्भशीर्ष ] रा० १६७. जी० ३।२६६ खकारपविभत्ति [ खकारप्रविभक्ति ] रा० १५ खग्ग [खड्ग ] ओ० २७, ५१,६६. रा० २४६, ६६४, १३. जी० ३५६२ खपाणि [ खड्गपाणि] रा० ६६४. जी० ३३५६२ afer [ खचित ] जी० ३।४१० स्वचिय [खचित ] रा० ३२,१६०,२५६,२८५. जी० ३३३३३,४५१ खजूर (सार) [ खर्जूरसार] जी० ३१५८६ खज्जूरसार [खर्जूरसार] जी० ३२८६० खज्जूरिवण [ खर्जूरीवन ] जी० ३१५८१ खट्टोदय [ खट्टोदक ] जी० ११६५ डग [ दे० ] जी० ३।२६२ खण [क्षण ] रा० ११६, ७५१, ७५३ वत्तिय [ क्षत्रिय ] ओ० १४,२३,५२. रा० ६७१,६८७ खत्तियपरिब्वाय | क्षत्रियपरिव्राजक ] ओ० ६६ खत्तियपरिसा [ क्षत्रियपरिषद् ] रा० ६१,७६७ खन्म | दे० ] जी० ३।७८१, ७८२ खम [ क्षम] ओ० ५२. रा० २७५, २७६,६८७. जी० ३/४४१, ४४२ खप [ क्षत्र ] रा० ७६६ खयर [ खदिर | रा० ४५ खर [खर] ओ० १०१,१२४. जी० १२५७,५८ ३३९६.६१८ खरकंड [ खरकाण्ड ] जी० ३,६,७,१४,२३,२६ खरपुढवी [खरपृथ्वी ] जी० ३।१८५,१६१ खरमुहिवाय [खरमुखीवादक ] रा० ७१ खरमुही [ खमुखी | ओ० ६७. रा० १३,७१,७७, ६५७. जी० ३१४४६, ५८८ खल [खल ] ओ० २८ खलबाड [ खलवाट ] रा० ७८१,७८५ से ७८७ खलु [खलु] औ० ५२. रा० ६. जी० १११ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खव खुडाय / खव [ क्षपय् ] - खवेइ ओ० १८२जी० ३१८३८|१८ स्वयंत [ क्षपयत् ] ओ० १८२ खवेत्ता [ क्षयित्वा ] श्र० १६८ खसर [खसर ] जी० ३३६२८ खयर [ खेचर ] ओ० १५६. जो० ११६८, ११३, ११६,११७,१२५ २२५,६६,७२,७६, ८३, ८७,६६,१०४,११३,१३१,१३६,१३८,१४६, १४६; ३. १३७, १४५ से १४७, १६१ खयरी [ खेचरी ] जी० २ ३,१०,५३,६६,७२, १४४, १४६ खा [ खाद् ] - खज्जइ. रा० ७८४ -- खाइ. रा० ७३२ खाइ [ दे० ] ओ० १६२ खाइम [ खाद्य ] ओ० ११७,१२०, १४७, १६२ रा० ६६८, ७०४, ७१६, ७५२,७६५, ७७६, ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ खाओसमय [ क्षायोपशमिक ] रा० ७४३ खाणु [ स्थाणु ] जी० ३।६२५,६३१ √ खास [ क्षमय् ] - खामेइ. रा० ७७७ खात्तिए | क्षमयितुम् ] रा० ७७७ खाय [बात ] ओ० १ खायमाण [ खादत् ] जी० ३।१११ खार [ क्षार ] जी० ३१६२७,६५५ खारय [ क्षारक ] जी० ३१७३१ खारवत्तिय क्षारवर्तित | ओ० ६० खारा [खारा ] जी० २६ खारोव [ क्षारोदक ] जी० १४६५ खिखिणिजाल [ङ्किणीजाल ] रा० १६१. जी० ३।२६५,३०२ खणी [ किङ्किणी ] ओ० ६४. रा० १३२, १७३, ६८१. जी० ३।२८५,५६३ खिस [ खिसन ] ओ० ४६ खिसणा [ खिसना ] ओ० १५४, १६५, १६६. रा० ८१६ ६०७ विजमाण [ विद्यमान ] ओ० १३३. जी० ३।३०३ वित्त [[क्षिप्त ] जी० ३३६८६ farपामेव [ क्षिप्रमेव ] ओ० ५५. रा० ६. जी० ३१४४४ खिविता [क्षिप्त्वा ] जी० ३६८८ खीण [ क्षीण ] ओ० १६८ खीर [ क्षीर] ओ० ६२,९३, रा० २६. जी० ३।२८२,७७५ खरवाई [क्षीरधात्री ] ० ८०४ वीरपूर [ क्षीरपूर ] रा० २६. जी० ३३२८२ वीरवर [ क्षीरवर ] जी० ३२८६२,८६३,८६५ वीरासव [ क्षीराश्रव] ओ० २४ खीरोद [ क्षीरोद ] जी० ३२८६,४४५, ८६५,८६६ ८६८, ६५६,९६३ खीरोदन [ क्षीरोदक ] जी० ३।४४५,६६३ खीरोदय [ क्षीरोदक ] जी० ११६५ खीरोयन [ क्षीरोदक ] रा० १७४,२७६ खु [ क्षुष ] जी० ३ । १२७, ५६२ खुज [कुब्ज ] जी० १।११६ खुज्जा [ कुब्जा ] ओ० ७०. रा० ८०४ खड्ड [ क्षुद्र ] रा० १७४, १७५, १८० जी० ३१२६६, २८७,२६२, ४१०, ५७६, ६३७, ७३८, ७४३, ७६३,६५७,८६३,८६६, ८७५, ८८१ खुडखुड्डग [ क्षुद्रक्षुद्रक ] रा० १८० खुडखुड [ क्षुद्रक्षुद्रक ] रा० १८१ खुड्डय [ क्षुद्रक ] रा० २४७. जी० ३३४०६ खुड्डा [ क्षुद्रक ] रा० २४८, २४६. जी० ७ १७ खुड्डा [ क्षुद्रक ] ओ० २४. रा० ३५४. जी० ३३५१६, ७ ५, ६, १०, १२, १५, १६, १८, हार से ४,४०,५१, १७१,२३६,२३८,२४३,२४४, २४६, २७१, २७३,२७६ से २८२ खुड्डापाताल [ क्षुद्रकपाताल ] जी० ३३७२६,७२८, ७२६ खुड्डापायाल [ क्षुद्रकपाताल ] जी० ३।७२६,७२७, ७२६ खुड्डा [ क्षुद्रक] ओ० १७०. जी० ३१८६,२६० Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ खुड्डालञ्जर [दे० क्षुद्रकालिञ्जर] जी० ३।७२६ खुड्डिय [ क्षुद्रिक ] जी० ३१५६३ खुड्डिया [क्षुद्रिका ] ओ० २४. रा० १७४, १७५, १८०,७७२. जी० ३।१२४,१२५,२८६,२८७, २१२,५७६,६३७,७३८,७४३, ७६३,८५७,८६३, ८६६,८७५,८६१ खुत्त [ दे० ] ओ० ६० खुद्द | द्र ] रा० ६७१ √ खुम्भ [ क्षुभ् | खुभंति जी० ३१७२९ खुभियजल [ क्षुभितजल | जी० ३१७८३,७८४ खुरपत [क्षुरपत्र ] जो० ३८५ खुहा [ क्षुधा ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३१०६, ११८, ११६, १२५, १११४ खेड [ खेट ] ओ०६८,८६ से १३, १५, १६, १५५, १८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ खेत [ क्षेत्र ] ओ० २८, ११२. जी० ११५० २१२६ से २९,५४ से ५६,६५,८४,८८,११४,१२३, १३२ : ३।१०७, ७४१,७६१, ८३८१२५, ११११ खेत्तओ [ क्षेत्रतस् ] ओ० २८. जी० ११३३,१३६, १४० २।१२० ५१८, ६, २३.२६; ६/२३, ४०,६७,२५७ खेत [ क्षेत्रछेद ] जी० ३०४६,४७ खेतच्छेय [ क्षेत्रछेद ] जी० ३।२१ से २७,४५ खेत्ताभिग्गहचरय | क्षेत्राभिग्रहचरक] ओ० ३४ खेम [ क्षेम | ओ० १,१४. ० ६७१ खेमंकर [ क्षेमङ्कर ] ओ० १४. रा० ६७१ खेमंघर [क्षेमधर] ओ० १४. रा० ६७१ • खेय [खेद ] ओ० ६३ खेलूड | दे० ] जी० ११७३ खेलोसपित्त | वेषविप्राप्त | ओ० २४ खोखुब्भमाण | चोक्षुभ्यमान ] ओ० ४६ खोत [ क्षोद | जी० ३।६६२ खोतरस [ क्षोदरस ] जी० ३१६६४ खोतोव | क्षोदोद | जी० ३१६६१ खोतोदगा [दोदक ] जी० ३३९४८ खोतोदय [ क्षोदोदक ] जी० ११६५ खोद [ क्षोद] जी ३।९३१,६४६ खोदरस [ क्षोदरस | जी० ३१८७८ खोदवर | क्षोदवर ] जी० ३२८७४,८७५,८७७, ९२७ खोदोब | क्षोदोद | जी० ३१८७७,८७८८८०,६२५, ६२८,६३२ खोदोदग [ क्षोदोदक ] जी० ३१८७५८८१,६१० खोदोय | क्षोदोद | जी० ३१२८६ खोदोयग [ क्षोदोदक ] रा० १७४ खोमिय | क्षोमित ] रा० १७३. जी० ३३२८५ खोम | क्षोम ] रा० ३७,२४५ जी० ३।३११ ४०७, ५६५ खुड्डा डिहा खोय [ क्षोद] जी० ३१७७५ खोयरस [ क्षोदरस ] जी० ३।५८६ ग ग | ग] रा० ६५ गइ [ गति ] ओ० १६,२१,२७,४६,५०,५४,८६ से ६५, ११४,११७, १५५, १५७ से १६०, १६२,१६७,१७२. रा० ७५५,७५७,८१३ जी० १११४; ३८३८२२ इय | गतिक ] जी० ११६४,७४,७७,८७,८८, ६,१०१ गइरइय | गतिरतिक ] ओ० ५० गंगा [ गङ्गा ] ओ० ११५, ११७. रा० २४५, २७६. जी० ३१४०७, ४८५,६३७ inter [ गङ्गाकूलक] ओ० ६४ गट्टिया [गङ्गामृत्तिका ] ओ० ११०,१३३ गंगावत [ गङ्गावर्तक ] ओ० १६ गंगावत [ गङ्गावर्तक ] जी० ३३५६६,५६७ ठि [ ग्रन्थि ] ओ०] १. रा० २७० जी० ३।४३५, ८७८,६६३,६६७ गंड [ गण्ड ] ओ० ४७, ६४, ७२ गंडमणिया | गण्डमानिका ] रा० ७७२ गंडा | गण्डलेखा ] ओ० १५. रा० ६७२. जी० ३१५६७ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ jatra गज्ज गंडीपय [ गण्डीपद ] जी० १११०३ मंडोवहाण [ गण्डोपधानक ] रा० २४५ डोहाणिया [ गrडोपधानिका ] जी० ३।४०७ गंता [ गत्वा ] ओ० १८२ जी० ३२७८८ गलूंग [ गत्वा ] ओ०. ११५ गं [ ग्रन्थ ] रा० २९२. जी० ३।४५७ [प्रन्थिम] ओ० १०६,१३२. रा० २८५. जी० ३१४५१,५६१ गंध [ गन्ध ] ओ० २,१५, ४७,५१,५५,६३,६७,७२. ६२,१४७,१६१,१६३,१६६,१७०. रा० ६. १२, १३,३०,३२,४५, १३२, १५६,१५७,१७२, १६६,२३६,२५८,२७६ से २८१,२६१,२६२, ३५१,५६४,६५७,६७२,६८५,७१०,७१४, ७५१,७५,३,७७१,७७४,७६४,८०२,८०८. जी० ११५,३६,५०,५८,७३,७८,८१ ३२२, ५८,८४,८७, ६५, १२७,२७१, २८३,३०२, ३०६, ३२६, ३७२,३६८, ४१६, ४४५ से ४४७, ४५१, ४५७,५१६,५४७,५७८, ५०६, ५१२, ५६८, ६०१, ६०२,६४५,६४८,६५६,७७५, ८६०,८६६ ८७२,८७८,६३७,६७२, १६२, १०७८, १०८१, १०६७,१११७,१११८,११२४ मंघओ [ गन्धतस् ] जी० ११३७, ५० iverers [गन्धकषायिन् ] ओ० ६३. रा० २८५. जी० ३।४५१ गंग [ गन्धाङ्ग ] जी० ३११७० ति [ गन्धयुक्ति ] ओ० १४६ गंपतो [ गन्धतस् ] जी० ३।२२ गंधद्वाणि [ गन्धप्राणि] ओ० ७,८,१०. जी० ३।२७६ गंधमंत [ गन्धवत् ] जी० १/३३, ३६; ३५६२ गंभावण [ गन्धमादन] जी० ३१६६८ गंधमायण [ गन्धमादन] जी० ३१५७७ गंपट्टि [ गन्धवति ] ओ० २,५५,६२. रा० ६, १२,३२,१३२,२३६,२०१ जी० ३।३०२, ३७२, ४४७ java [ गन्धर्व ] ओ० ४६, १२०,१४८.१४६. १६२. रा० १४१, १७३, १६२,६८५, ६६८, ७५२,७७१,७८६. जी० २।१७१३१२६६, २८५,३१८,५८८ गंषवर्क [ गन्धर्वकण्ठ ] रा० १५५, २५८ जी० ३।३२८ कंठ [ गन्धर्व कण्ठक ] जी० ३।४१९ रंग [ गन्धर्वगृह ] रा० १०२, १८३ जी० ३।२६४ ६०६ गंधव्यणट्ट [ गन्धर्व नृत्य ] रा० ८०६,८१० गंधव्वनगर [ गन्धर्वनगर ] जी० ३१६२८ गंधव्वाणि [ गन्धर्वानीक] रा० ४७,५६ मंहत्थि [ गन्धहस्तिन् ] ओ० १४,१६,२१,५४ रा० ८,२६२,६७१. जी० ३।४५७ गंधादति [ गन्धापातिन् ] जी० ३१७६५ घावाति [ सन्धापातिन् । रा० २७६. जी० ३१४४५ गंधि [गन्धिक] ओ० २,५५. रा० ६,१२,२२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७, ४५१ गंधीय [गन्धिक ] जी० ३।२१० गंभीर [गम्भीर ] ओ० १, ५, ८, १६,२७,४६,४६, ७१. ० १३,१४,६१,१७४, २४५, ८१३. जी० ३८३,११५, ११६,२७४, २८६,४०७, *LE,489 Tere विभत्ति [गकारप्रविभक्ति ] रा० ६५ गगण [ गगन ] ओ० २७,६४. २१० ५०, ५२,५६, १३७,२३१,२४७,८१३. जी० ३।३०७,३९३ √ गच्छ [ गम् ] -- गच्छ. रा० ६८०. - गच्छइ. रा० १५ - गच्छति ओ० १७१. जी० १५४. --- गच्छति, रा० १३. जी० ३ | ४४० - गच्छह रा० ६:-- गच्छामि रा० १६ - गच्छामो. ओ० ५२. रा० ६८७. गच्छाहि. रा० ६६६. - गच्छिहिति. ओ० १४० गच्छंत [ गच्छत् ] ओ० ४० गच्छत्तए [ गन्तुम् ] ओ० १०० गज्ज [ गद्य ] रा० १७३. जी० ३३२८५ √ गज्ज [ गर्ज ] -- गज्जंति. रा० २८१. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० जी० ३,४४७ गज्जित [ गणित ] जी० ३१६२६ गड्ड [गतं ] जी० ३।६२३,६३१.३ / गढ [ ग्रथ् ] -- गढेज्जा. जी० ३२६६३ गति [ ग्रथयितुम् ] जी० ३३६६० गढिय [रथित] रा० ७५३ गण [ गण] ओ० ६,१६,४०,४१,४६,५०,६३,६८, १५५,१६२,१६२. रा० ३२,२०६,२११. जी० ३ ११८,११६,२७५, ३७२, ५८२,५८६ से ५६६, ६००,६०३ से ६१७,६२०,६२५, ६२७, गणविउस्सग्ग [ गणव्युत्सर्ग] ओ० ४४ गणिय [ गणित ] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ गणवेावच्च [ गणवैयावृत्य ] मो० ४१ गणे त्या [ दे० ] ओ० ११७ गत [गत ] रा० १२२, २८३, २८६. जी० ३/४४३, ४४७,४४६,४५६,५५७, ७४६ ६२८,६३०,६३६,७४६,११२० neer [गणक] ओ० १८. रा० ७५४, ७५६, ७६२, ७६४ artree [ गणनायक ] ओ० १८ rette [ गणनायक ] ओ० ६३. रा० ७५४,७५६, गमित्तए [ गन्तुम् ] ओ० १०० ७६२,७६४ गता [ गदा] जी० ३।११० गति [ गति ] रा० ८१५. जी० ३।५६७,८४२,८४५ गतिकल्लाण [गतिकल्याण ] ओ० ७२ गतिय [गतिक ] जी० ११५६, ६२, ६५, ६७, ७६,८०, ८२,१०३,१११,११२, ११६,११६, १२३, १२८, १३४,१३६ गत्त [ मात्र ] ओ० ४७,६३. ४० १२,३७,७५८ से ७६१ जी० ३।११८,३११,४०७ गत्तम [गात्रक ] रा० २४५ गम्भ [ गर्भ ] रा० ८००,८०२. जी० ३.५६२ घर [ गर्भगृह ] जी० ३०५६४ घर [ गर्भगृह ] रा० १८२, १०३. जी० ३।२६४ गज्जित गयलक्खण गन्भस्थ [ गर्भस्थ ] मो० १४२, १४४ भवति [ गर्भावान्तिक ] जी० १२६७,११७, १२५,१२६,१२६; ३।१३८, १४०, १४२, १४५, _१४६,२१२,२१५,२२६ भवास [ गर्भवास ] ओ० १६५ भहाण [ गर्भाधान ] रा० ८०३ √ गम [गम् ] -- गमिस्सामो को गमिहिति. रा० ७६६ -- गम्मती. ओ० ७४ गम [गम ] जी० ३१२१८,६६६,७१३,७४२,७४४, ७४५,६२८, ६२६, १०४५, १०४८ गमण [गमन ] ओ० ४०,४६,६५,६६,१२२, रा० १७, १८, २६८,६५६, ६६७, ७७५, ७७६, ७८० जी० ३।४५४,५५६ गमय [ गमक ] रा० २५१,२६५. जी० ३।७५ १ गय [गज ] ओ० १६, ४८, ५२, ५५ से ५७,६२,६४, ६५. रा० २५,१४१,१४८, १६२,६८७ से ६८६. जी० ३।२६६, २७८, ३१८, ३२१,३५५, ४५४, ५८६, ५६६,५६७,१०१५ गय [गत ] ओ० १५, १६,२१,४६ से ४६, ६५, १७२, १७५, १७७, १६५।२२. रा० ८,४७, ६८, १२२, १२३,१७३,२७५,२७७,२८१, २६६, २६०, ६५७,६७२,६८७ से ६८६,७१०,७१६,७५३, ७६५, ७७४, ७६४, ८००, ८०२,८०६,८१०. जी० ३२८५, ४४१,४५५, ५६६,५६७ गयकंठ [ गजकण्ड ] रा० १५५, २५८. जी० ३।३२८ गकंग [ गजकण्ठक ] जी० ३१४१६ करण [ गजरुर्ण | जी० ३।२१६,२२३ कण्णदी [ गजकर्णद्वीप ] जी० ३२२३ गयकलभ [ गजकलभ ] रा० २५. जी० ३.२७८ गयजोहि [गजयोधिन् ] ओ० १४८, १४६. रा० ८१०,८११ गयवंत [ गजदन्त ] रा० २६,१३२. जी० ३३२८२, ३०२ गवा [गतपत्रिका ] ओ० ६२ गयलक्खण [ गतलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयवइ-गामरोग गयवइ [गजपति ] ओ० ५१,६३ गहणया [ग्रहणता] ओ० ५२. रा० ६८७ गयविलंबिय [गजबिडम्बित] रा० ६१ गहणी [ग्रहणी] जी० ३१५६८ गयविलसिय [गजविलसित] रा० ६१ गहदंड [ग्रहदण्ड ] जी० ३३६२६ गया [गदा] ओ० १. रा० २४६ महमुसल [म्हमुसल] जी० ३।६२६ गरहणा [गर्हणा] ओ० १५४,१६५,१६६. गहविमाण [ग्रहविमान] जी० २।४२, ३।१००६, रा०८१६ १०१२,१०१७,१०३१ गडज्मय [गरुडध्वज रा० १६२. जी० ३१३३५ गहसंघाडय [ग्रहशृङ्गाटक } जी० ३१६२६ गाय [गरुक] जी० ११५; ३२२२ गहाय गृहीत्वा] रा० १२. जी० ११८ गरुयत्त [गरुकत्व] रा० ७६२,७६३ गहित | गृहीत] जी० ३1३०३,४५७,४५६,४६१ गरुल [गरुड ] ओ० १६,४७,४८,१२०,१६२. रा०६९८,७५२,७८६. जी० ३।५६६ गहिय | गृहीत ] ओ० ४६,४६,७०,११६,१२०,१६२. गहलवूह [गरुडव्यूह ] ओ० १४६. रा०८०६ रा० १२,६६,७०,१३३,२६१,२६३ से २६६, गरलासण [गरुडासन] रा० १८१,१८३. ३००,३०५,३१२,३५५.६६४,६८३,६८६,६६८, जी० ३१२६३ ७५२,७८६,८०४. जी ३४५८,४६०,४६२, गस [गल ओ० ५७. जी० ३।५६७ ५२०,५५४,५६२ गवक्ख गवाक्ष] जी० ३३६०४ ‘गा [ग]-गायंति. रा० ११५. जी०३४४७. गवस्खजाल [गवाक्षजाल] रा० १३२,१६१. --गिज्जइ. रा० ७८३ जी. ३२६५,३०२ गाउय [गव्यूत, गव्यूति] ओ० १६५. गवच्छिय दे० आच्छादनम् ] रा० १५३. जी० ११८८,९०,१०३,१२१,१२४,१३०; __ जी० ३६३२६ ३३१०७,७५६,९१८,१०२२ गवल [गवल] ओ० ४७. रा० २५. जी० ३।२७८ गाढ गाढ] रा०७७४ गवेलग [गवेलक] ओ० १,१४,१४१. गात [गात्र] जी० ३१४५१,४५७,६०२,८६०,८६६, ___ रा०६७१,७४४,७६६ ८७२,५७८ गवेसण गवेषण] ओ० ११७,११६,१५६ गातलहि मात्रयष्टि] जी० ३।५६७ गयेसणया [गवेषणा] रा० ७६५,७७४ गाया गाथा) जी० ३१५८ गवेसि [गवेषिन् ] रा० ७७४ गाषा [गाथा] जी० ३१६३१ गह [ग्रह] ओ० ५०,६३,१६२. रा० १२,७६,१७३, गाम [ग्राम] ओ १,२८,२६,४६,६८,८६ से ६३, २६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५. ९५,९६,१५५१५८ से १६१,१६३,१६५. जी० २११८, ३१२८५,६३१,७०३,८०६, रा० ६६७,७८७७८८, जी० ३१६०६,६३१, ८३८।३,६,६,२२,२६,३०,८४५,१०२०,१०२१, १०२६,१०३७,१०३८ गहअवसब्द [ग्रहापसव्य] जी० ३१६२६ गामकंटग [नामकण्टक] ओ० १५४,१६५,१६६. गहगज्जित [ग्रहजित] जी० ३१६२६ रा० ८१६ गहगण [ग्रहगण] रा० १२४. जी० ३।५८६, गामदाह [ग्रामदाह] जी० ३१६२६ ८३८।१०,२१,८४१,८४२,१०२० । गाममारी [ग्राममारी] जी० ३१६२८ गहजूद ग्रहयुद्ध जी० ३१६२६ गामरोग [ग्रामरोग] जी० ३।६२८ ८४१ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामाणुगाम-गुणं गामाणुगाम [ग्रामाणुग्राम ] ओ० १६,२०,५२,५३. गिलाय [ग्लै] -गिलाएज्जाह. रा० ७२० .... रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ गिल्लि [दे० ] ओ० १००,१२३. जी० ३१५८१. गाय [गात्र ] ओ० १,३६,३७,५२,६३,७०,६४, ५८५,६१० . ११०,१३३. २१० २८५,२६१,६८७ से ६८६. गिह [ गृह ) ओ० २०,५३. रा० ६८१,६८३,७०८, जी० ३।११८ ७१०,७१३,७२३,७२६ गाय [गो] जी० ३।६३१ गिहिथम्म [गृहिधर्म | ओ० ५२,७८,६३. रा० ६८७, गायंत [गायत् ] ओ०६४ ... ६८६,६६५,६६६.७७५ गायलद्वि [गात्रयष्टि] ओ० ७०. रा० २५४. गिहिलिगसिद्ध [गृहिलिङ्गसिद्ध) जी० ११८ ... __ जी० ३।४१५ गीइया | गीतिका ओ० १४६. रा० ८०६ ।। गांवो [गो] जी० ३।६१६ गीत [गीत ] जी० ३१८४२,८४५ गाह ग्राह ] जी० ११६६,११८, ३२४५७. से ४६२, गीय गीत ओ० ४६.६८,१४६. रा० ७,७८, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ ८०६. जी० ३.३५.०,५६३,१०२३ । गाह [ग्राहय् ] — गाहेइ. ओ० ५६ गीयजस गीत यशस् ] जी० ३१२५६ माहा गाथा ओ० १४६. रा०८०६. जी० ३।५, गीयरई [गीत रति ] ओ० १४८,१४६. रा० १७३, १२,१२७,३५५ ८०६,८१० गाहावइपरिसा [गृहपतिपरिषद् ] रा० ७६७ . . गीयरइप्पिय [गीत रतिप्रिय | ओ०६५ गाहेत्ता [ग्राहयित्वा] अॅ०५६ गीयरति [गीतरति] जी० ३।२८५ V गिज्य [गृध् --गिज्झिहिति ओ० १५०. ... गोवा [ग्रीवा ] ओ० १६. रा० २६. जी० ३१२७६, रा० ८११. . ... . गिण्ह [ग्रह, }--गिहइ. ओ १७०.:-गिम्हति. गुंजत [गुञ्जत् ] ओ० ६ रा० ७६,१७३.. .. - जी० ३।२७५,२८५ .. . रा० २८१. जी. ३१४४५.---गिण्हति. ... रा० २८८-- गिराहामो. ओ० ११७ गुंजद्धराग [गुजार्धराग] ओ० २२. रा०२७,७७५ ७७८,७८८. जी. ३२८० . गिहित्तए [ग्रहीतुम् ] ओ० ११७. जी० ३।६८८ गिम्हित्ता [गृहीत्वा] ओ १७०. रा० २८१. गुंजा [गुजा] रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ जी० ३१४४५ गुंजालिया [ गुजालिका] ओ० ६६. रा० १७४, . गिद्ध [गृद्ध] रा० ७५३ १७५,१८०. जी. ३१२८६ .. गिम्ह [ ग्रीष्म ओ० २६ गुंजावाय {गुजावात ] जी० १८१ गिम्हकाल [ग्रीष्मकाल] ओ० ११५ गुज्झ [गुच्छ ] ओ०.६ से ८,१०. जी० ११६९; गिरा [गिर्] जी० ३।५६७ ..३२७५ गिरि [गिरि रा० ८०४. जी० ३।५६७,८३६ गुज्म [ गुह्य ] रा० ६७५ गिरिपक्खंदोलग [गिरिपक्षान्दोलक | ओ० ६० . गुज्झदेस [गुह्यदेश] जी० ३।५६६ ... गिारपाडयग | गारपतितक] आ० ६० गुड [ गुड] जी० ३४५६२ गिरिमह [गिरिमह] रा०६८८ .... . गुण [ गुण] ओ० १,१४,१५,२३,२५,६३,६६,१२० मिलाणभत्त [ग्लान भक्त ] ओ० १३४ . . . . . १४०,१४३, १५७. रा ६६,७२,१७३,६७१२ गिलाणवेयावच्च ग्लान वैयावृत्य] ओ० ४१:. ६७३,६८६.६६८,७५२७८६,५०१. Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणणिप्फण्ण-गोक्खीर जी० ११५०, ३१२८५,५६६,५६७ गुणणिकपण गुणनिष्पन्न ] ओ०१४४ गुणतर [गुणतर] रा० ७१८ गुणभाव [गुणभाव] ओ० १६५११२ गुणयालीस {एकोनचत्वारिंशत् ] रा० १२६ गुणव्वय [गुणवत] ओ० ७७. रा० ७८७ गुणसेढिया [गुणश्रेणिका ओ०१८२ गुणिय [गुणित ] जी० ३८३८२६ गुत्त [गुप्त) ओ० २७,१५२,१६४. रा० १२३, ६६४,७७५,७७२,८१३. जी० ३१५६२ गुत्तदुवार गुप्तद्वार रा० १२३,७५५,७७२ गुत्तपालित [गुप्तपालिक] जी० ३३५६२ गुत्तपालिय [गुप्तपालिक] रा० ६६४ गुत्तबंभयारि [गुप्तब्रह्मचारिन् ] ओ० २७,१५२, १६४. रा०८१३ गुति [गुप्ति] रा० ६८६,८१४ गुत्तिदिय [ गुप्तेन्द्रिय] ओ० २७,३७,१५२,१६४. रा० ११३ गुप्पमाण [गुप्यत् ] ओ० ४६ गुप्फ [गुल्फ] ओ० १६. जी० ३।५६६ गुमगुमंत [गुमगुमायमान ] ओ० ६. जी० ३।२७५ गुम्म [गुल्म] ओ० ६ से ८,१०. जी० १६६; ३२२७५,५८०,६३१ गुरु गुरु] रा० ६७१ गुल [गुड] ओ० ६२. जी० ३।६०१, ८६६ गुलइय ] दे॰] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. __ जी० ३१२६८,२७४ गुलगुलंत [गुलगुलायमान ] ओ० ५७ गुलिका [गुलिका] ओ० ४७. रा० २५,२६,२८. ___जी० ३।२७८,२७६,२८१ गुहा [गुहा ] रा० १७३. जी० ३२८५ गूढ गूढ ] ओ० १६. जी. ३१५९६ गूढदंत [गूढदन्त ] जी० ३१२१६ गेज्म [ग्राह्य ] रा० १३३. जी० ३१३०३ गेष्ट [ग्रह-गेण्ह इ. रा. ७०८. जी० ३४५६.—गेण्हति. रा० ७५. जी० ३१४४५ गेण्हित्तए [ग्रहीतुम्] जी० ३।६८६ गेण्हित्ता [गृहीत्वा] रा० ७५. जी० ३४४५ गेद्धपट्टग [गृध्रपृष्ठक] ओ०६० गेय [गेय] रा० ७६,११५,१७३,२८१. जी० ३।२८५,४४७ गेविज [वेय] रा०६६४,६८३ गेविजविमाण [ग्रेवे यविमान ] ओ० १९२ गेवेज्ज अवेय] ओ०५७,१६०. रा० ६६,७०. जी० २६२,३१५६२,५६३,१०३८,११०३, ११०५,११०७,१११६,१११७,११२०,११२३, ११२४,११२६ गेवेज्जक [प्रैवेयक ] जी० २०१४८,१४६ गेवेग्जक [वेयक] ओ०६३ गेवेज्जविमाण [गवेयविमान] ओ० १६०. जी० ३११०६३,१०६६,१०६६,१०७१,१०७३, १०७६ गेवेज्जा [वेयक] जी० ३३१०८४,१०८६, १०६२,१०६५.११०३,११०५,११०७, १११६,१११७, ११२०,११२३,११२४, ११२६ गेह [गेह] जी० ३१६०५,६३१,८४१ गेहागार [गेहाकार जी० ३।५६४ गेहाययण गेहायतन) जी० ३१६०५ गेहाव [य? ] ण [गेहायतन] जी० ३१८४१ गो गो ओ० १,१४,१४१. रा० ६७१,७७४, ७६६. जी० ३८४ गोकण्ण | गोकर्ण] जी० ३।२१६,२२४ गोकपणदीव [गोकर्णद्वीप] जी० ३।२२४ गोकलिजग [गोकिलिजक] रा० १५१. जी० ३३२४ गोकिलिज [गोकिलिञ्ज रा० ७७२ गोक्खीर गोक्षीर] ओ०१६,१६४ जी० ३।६०१, Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ ८६६, ६५६ गोखीर | गोक्षीर] ओ० ४७ रा० १३०. जी० ३:३००, ५६६ गोवर [ गोघृतवर ] जी० ३८७२, ९६० गोच्छिय [ गुच्छित ] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जो० ३१२६८,२७४ गोण [ गो] ओ० १०१,१२४, १४४. जी० ३१६१८ गोणलक्खण [ गोलक्षण ] ओ० १४६ रा० ८०६ गोणस | गोनस ] जी० १३१०८ गोतमदीव [ गौतमद्वीप ] जी० ३१७६२ गोतित्थ | गोतीर्थ ] जी० ३७६०, ७६१,७६३ गोधूम | गोस्तूप ] जी० ३।७३४ से ७४०, ७४२, ७४५, ७५० गोभा [ गोस्तूपा ] जो० ३१७३८,६१०,६२१ गोधूम [ गोधूम ] जी० ३१६२१ गोपुच्छ | गोपुच्छ ] रा० १२७. जी० ३।२६१, ३५२,५६७, ६३२,६६१, ६८, ७३६, ८८२ गोपुर [ गोपुर ] ओ० १. रा० ६५४,६५५. जी० ३।५५४,५६४, ६०४ गोफ [ गुल्फ ] जी० ३।४१५ गोमकीड [ गोमयीट ] जी० ११८६; ३३१११ गोमाणसिया [ गोपासिका ] रा० १३०,२३६, २५१,२६५. जी० ३३३००, ४१२,६०३ गोमाणसी [गोपानसी ] जी० ३२३६८,४१२, ४२१, ४२६ गोमुह [ गोमुख ] जी० ३१२१६ गोमुही [ गोमुखी ] रा० ७७ गोमेज्जमय [ गोमेदमय ] रा० १३०. जी० ३।३०० गोय गोत्र ] ओ० २०,४४,५२, ५३. रा० ६,११, ६८७,७१३. जी० ३११२८ गोयम [ गौतम] ओ० ८३,८६,८८ से ६५, ११४, ११७ से १२०,१४०, १४१, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१७०, १७१,१७३ से १७६, गोखीर- गोयम १७८, १७६, १८४ से १५८, १६२. रा० ६३, ६५,७३,७४, ११८, १२१, १२३, १२४, १७३, १६७ से २००,६६५,६६६,६६८,७९७ से ७६६,८१७. जी० १११५ से ३७, ३६ से ४६, ५१ से ५६, ५० से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, ६०, ६३ से ६६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३, २२० से २४,२६ से ३०, ३२ से ३६, ३६, ४६, ४८, ४६, ५४, ५७ से ६३,६६,६८ से ७४.७६, ८२ से ८४,८६,८८, ६२,६५ से ६८,१०७ से १०९, ११३,११४, ११६ से ११६, १२२ से १२६,१३३ से १४०; ३॥३ से १२, १४ से २१,२८ से ३५, ३७ से ४४,४८ से ६३,६६,७३,७६ से ३८,१०१ से १०४,१०६ से ११०,११२ से ११६,११८ से १२०,१२२ से १२८,१४७,१५० से १६१, १६३,१६७ से १७४, १७६, १७८, १८०, १८२, १८३,१९८५ से २०३,२११,२१४,२१७ से २२३, २२७,२३२,२३५ से २३६,२४१ से २४३, २४५ से २४७, २४६, २५०,२५५ से २५६, २६९ से २७२,२७८, २८५, २६६, ३००, ३५०, ३५१,५६४ से ५६६,५६८ से ५७०, ५७२, ५७४ से ५०८,५६६,५६७,५६६ से ६०४, ६२ से ६३२,६३७ से ६३६, ६५६, ६६०, ६६४,६६६,६६८,७०० से ७०३, ७०५ से ७०८,७१०,७११,७१४ से ७१६,७१८ से ७२३, ७२६,७३० से ७३६,७३५ से ७४३,७४५, ७४६,७४८ से ७५०,७५४,७६० से ७६६, ७६८ से ७७०, ७७२, ७७६ से ७७८,७८३, ७८४,७८७ से ७६५,७९७ से ८००,५०२, ८०४,८०६,८०८८०६,८११ से ८१५८१६, ८२०,८२२ से ८२५,८२७, ८२६,८३०, ८३२ से ८३६, ८३, ८४०, ८४२ से ६४७, ८४६ से ८५१,८५४,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२८७५,८८,८८१, ८८२, ११८, १३६, ९४०, ६४४, १५३ से ६६१,१६३ से ६६६, Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयमदीव-घण ६१५ ६६६,९७२ से ६७६,६८२ से १८७,९८६, ५१६,५२०,५४७,५५४ ६६६ से १००८,१०१०,१०११,१०१५, गोहा [गोधा] जी० ११११२ १०१७,१०२० से १०२३,१०२५ से १०२७, गोही [गोधी] जी० २६ १०३७ से १०४२,१०४४,१०५७,१०५८, १०६३,१०६५,१०६७,१०६६,१०७१, घ [घ] रा० ६५ १०७३ से १०७५,१०७७ से १०५१,१०८३, __ घओद [घृतोद] जी० ३६२८६ १०८५ से १०८७,१०८६ से १०६३, घओदय [घृतोदक] जी ० ११६५ १०६५,१०१८,१०६६,११०१,११०५,११०६ से घओयग | घृतोदक] रा० १७४ ११२४,११२८ से ११३१,११३४ से ११३८% घंटय [घण्टाक] जी० ३१२८५ ४।३,५ से ११,१६,१७,१६,२२,२३,२५; घंटा [घण्टा ओ० २,१२,५७,६४. रा० १३.१५, ५।५,८,१०,१२ से १७,१६ से २४,२८ से २३,३२,१३५,१७३,२५८,६८२. जी. ३०,३४,३५,३७ से ३६,४१ से ५०,५२ से ३.२६१,३०५,३७२,४१६ ५६,५८ से ६०, ६८,७२,६,२०, ६२,४, घंटाजाल [घण्टाजाल] रा० १३२,१६१. जो० १० से १४,१६,२३ से २६,३१,३३,३६,४१ ३१२६५,३०२ से ४७,४६,५२,५५,५७,५८,६४,६८,७७.७८, घंटापास [घण्टापाचं ] रा० १३५. जी० ३१३०५ ८६,१०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५, घटायलि [घण्टावलि] रा० १७,१८,२० १२२,१३२,१४२,१६० से १६३,१७१,१८६ घंटिया [घण्टिका | रा० १७,१८. जी० ३१५६३ से १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से घंस [घर्ष ] जी० ३१६२३ २१२,२१४ से २१६,२२२ से २२५,२२७ से घंसियग [घर्षितक] ओ०६० २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, घकारपविभत्ति [घकारप्रविभक्ति रा० १५ २४६ से २५३,२५५,२५७ से २६३,२६५, घट्ट [घट्ट] घट्टइ. रा० ७७१--घटेंति २६८ से २७३,२७५ से २८२,२८४ से __ जी० ३७२६ २६३ घटुंत [घट्टयत् ] रा० ७७१ गोयमदीव [गौतमद्वीप] जी० ३६७५४,७५५,७६०, घट्टणया [घट्टन] ओ० १०३,१२६ घट्टिजंत घट्टयमान ] रा० ७७ गोयरग्ग [गोचराग्र] रा० ७१६ घट्टिय | घट्टित] रा० १७३. जी० ३१२५५ गोर [गौर] ओ० ८२ घटु घृिष्ट] ओ० १२,१६४. रा० २१,२३,३२, गोलवट्ट | गोलवृत्त ] रा० २४०,२७६,३५१. जी० ३४.३६,१२४,१४५,१५७. जी. ३।२६१, ३।४०२.४४२,५१६,१०२५ २६६,२६६ गोलियालिछ । गोलिकालिञ्छ | जी० ३।११८ घडग [घटक | जी० ३।५८७ गोव्वइय [गो प्रतिक ओ०६३ घडत्त [घट त्व) जी० ३।२२,२७,७८४,७८७ गोसीस | गोशीर्ष ] ओ० २,५५,६३. रा० ३२, पण [धन ] ओ० १,४,५,८,१३,१६,४७,६८. रा० २७६,२८१.२८५,२६१,२६३ से २६६,३००, ७,१२,११४,१३३,१७०,२८१,७०३.७५५, ३०५,३१२,३५१,३५५,५६४. जी० ३:३७२, ७५८,७५६,७७२. जी० ३१६७,८०,११८, ४४५,४४७,४५१,४५७,४६२,४६५,४७०,४७७, २७३,२७४,३००,३०३,३५०,४४७,५६३, Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमदंत-चउद्दस ५८६,५९६,८४२,८४५,१०२५,११२२ घणदंत | घनदन्त] जी० ३।२१६,२२६ घणवतद्दीव [घनदन्तद्वीप ] जी० ३।२२६॥६ घणवात [धनवात] जी० ३१३,१६,२१,२६,२७, ३७,४७,४६,५०,६४ घणवाय घिनवात ] जी० १९८१, ३१३०,३८,४२, १०५८,१०५६ घणोदधि [घनोदधि] जी० ३६१३,२६,३०,३२, ३७ से ४०, ४५,४६,४८,४६,६० से ७२ घणोदहि [घनोदधि] जी० ३।१८,२०,२७,६३, १०५७ घम्मा [धर्मा] जी० ३।३ घय [धृत] जी० ३३५६२,७७५ घयवर [धृतवर] जी० ३८६८,८६६,८७१ घयोदघतोद] जी० ३८७१,८७२,८७४,६६०, घुण [घुण] रा० ७६१ घुम्मत [पूर्ण्यमान] ओ०४६ घोड [घोट] जी० ३.६१८ घोर घोर | ओ० ४६,८२ रा० ६८६ घोरगुण [घोरगुण] ओ० ८२. रा०६८६ घोरतवस्सि [घोरतपस्विन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोरबंभचेरवासि | घोरब्रह्मचर्यवासिन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोलंत [घोलयत् ] ओ० २१,५४. रा०८,७१४ घोलियग [धोलितक] ओ०६० घोस [घोय] मो० ६६ घोसण [ घोषण] रा० १५ घोसाडिया कोशातकी] रा० २८. जी० ३।२८१ घोसेयब्व [घोषयितव्य ] जी० ३।८८ [ड] रा०६५ कारपविभत्ति [ङकारप्रविभक्ति] रा० ६५ घयोदग [घृतोदक] जी० ३ घर [गृह } ओ० २८,११८,११६,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३१५६४ घरग गृहक ] जी० ३१५७६ घरय [गृहक ] ओ०७,८,१०. रा० १८३. जी० ३१५७६,५६३ घरसमुदाणिय [गृहसामुदानिक ] ओ० १५८ घरह | गृहक ] जी० ३१८६३ घरोलिया गृहकोकिला | जी० राई घाइ | घातिन् ] ओ० ८७ घाण घ्राण ओ० १७०. रा०३०,१३२,२३६. जी० ३१२८३,३०२,३९८ घाणिदिय घ्राणेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी. ३१९७६ घातक [घातक जी० ३४६१२ घाय [घात] रा०६७१ घास | ग्राम | ओ० ३३ छ [च ] ओ० ७, रा० ७. जी० २१ चइता [त्यत्वा, चित्वा] ओ०२३. रा० ७६६ चइत्ताणं [त्यक्त्वा ] ओ० १६५।१ चउ [चतुर्] ओ०१६. रा० ७. जी० श१६ चउपक [चतुक] ओ० १,५२,५५. रा०६५४,६८७, ७१२. जी०३।२२६५५४ चउक्कत चतुष्कक मी० ३३१४२,१४४ चउक्कय [चतुष्कक] ० ६५५ चउणउय | चतुर्नवनि | जी० ३१८२३ चउत्थ [चतुर्थ] ओ० १७४,१७६. जी० १।१२१ चउत्थग [चतुर्थक जी० ६.१४६ चउत्थभत्त | चतुर्थभक्त ] ओ० ३२ चउत्था | चतुर्थी ] जी० ३१२ चउत्थी चतुर्थी | जी० २।१४८,१४६; ३.४, ६६,८८,६१.१६५,११११ चउदसपुन्वि [चतुर्दशपूर्विन् ] रा०६८६ चउद्दस [चतुर्दशन् ] ओ० १६. जी० २१४८ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसी-चंददीव चउद्दसी चतुर्दशी] ओ० १२० १०३,१०५,११३,१२१,१२५,१३५; २।६, चरहसभत्त [चतुर्दशभक्त] ओ० ३२ १०,१५,७८ ; ३२३०,४५१,४५२,५८८, चउप्पई [चतुष्पदी जी० २१५,६ ११३८, ६।११३,१२१,१३१,१४१,१४७ चउप्पद [चतुष्पद] जी० २।११३,१२२, ३।१४२ चउसट्टि [चतुष्पष्टि ] ओ० ६२. जी० ३६११ चउप्पय | चतुष्पद] रा० ६७१,७०३,७१८, चउट्टिया चतुष्पष्टिका | रा० ७७२ जी० ११०१ से १०३,१२०,१२१; २३१,२३, चउसालग [चतुःशालक] जी० ३५९४ ५१, ३८८,१४१,१४२,१६३,७२१ चउहा [चतुर्धा] रा० ७६४,७६५ चउप्पाइया | चतुष्पादिका] जी० २६ चंकमंत [चक्रम्यमाण] ओ०५७ चउम्भाग (चतुर्भाग | जी० ३१२४७,२५०,२५६, चंगेरी [चङ्गेरी रा० १५६,२५८.२७९. १०२७ से १०३५ जी० ३५३२६,३५५,४१६,४४५ चउभाग [चतुर्भाग] जी० २।४० से ४३; ३।२४७ ।। चंचल [चञ्चल | ओ० २३,४६,४६ चउमासिय | चातुर्मासिक | ओ० ३२ चंडचण्ट ] ओ० ४६. रा० १०,१२,५६,२७६, चउम्मुह [चतुर्मुख ! ओ० ५२,५५. रा० ६५४, ६७१,७६५. जी० ३३८६,११०,१७६,१७, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ १८०,१८२,४४५ चउरंगल [चतुरङ्गुल रा० ५६. जी० ३२५६६, चंडा | चण्डा जी० ३१२३५,२३९,२४१,१०४०, ८३८११७ १०४४ चउरत [चतुरंत) ओ० ४६ चंद [चन्द्र | ओ० १६,२७,५०,६४६८,१७०. चउरंस [चतुरस्र] जी० ११५, ३१२२,७७,७८, रा० २६,७०,१३३,२८२,८०२,८०३,८१३. ३५२,५६४,५६७,१०७१ जी० १११८, ३२५८,२८२,३०३,४४८,५६६, चउरकप्प | चतुष्कल्प जी० ३.५६२ ५६७,७०३,७२२,७६२ से ७६४,७६६,७६८, चउरासीइ | चतुरशीति | ओ० ६३. जी० १:१०३ ७७०,७७२,७७४ से ७७६,७७८,८०६,८२०, चउरासीति [ चतुरशीति | जी० ३।१६ ८३०,८३४,८३७,८३८४,७,१०१५ से २३, चउरिदिय चतुरिन्द्रिय ] जी० ११८३,६०; । २५ से २७.२६,३२,८४५,८७३,८७६,८७६, २६१०१,१०३,११२,१२१,१३६,१४६,१४६; ६२६,६३७.६५३,१०१७,१०२०,१०२१, ३।१३०,१३६,१६७,४११,४,८,१४,१८ से १०२३ से १०२६,११२२ २०,२४,२५, ८१,३,५,६।१,३,५,७,१६७, चंदण | चन्दन । ओ० ६.१०,२६,४७,५२,६३, १६६,२२१,२२३,२२६,२३१,२५६,२५६, ११०,१३३. रा० ३०,१३१,१४७,१४८, २६४,२६६ १७३,२५८,२७६,२८०,२८५,२६१,२६३ से चउविसाण [चतुर्विषाण रा० १६२. २६८,३००,३०५,३१२,३५१,३५५,५६४, जी. ३३३३५ ६८७ से ६८६. जी० ३।२८३,२८५,३०१, चउवीस [चतुर्विंशति ] ओ० ३३. जी० ३।२३६ ४४५,४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, चाउम्विध | चतुर्विध] जी० ३।१,४४७ ५१६,५२०,२४७,५५४,५८३,८३८।२६ चउठिवह । चतुर्विध ] ओ० २८,३७,४५,६३,११७. चंदत्यमणपविभत्ति चन्द्रास्तमन प्रविभक्ति | रा० ११४ से ११७, २८१,२८५,२८६,६७५, रा० ८६ ७४०,७४६,७६६. जी० ११५,१०,८३,६१, चंददीक [चन्द्रद्वीप] जी० ३१७६२,७६३,७६६, Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ ७६८, ७७०,७७२, ७७४, ७७६ ७७८ चंदह [ चन्द्रद्रह ] जी० ३१६६७ चंदद्दी [ चन्द्रद्वीप ] जी० ३१७६३ चंद [ चन्द्रार्ध ] मो० १६. रा० ७०,१३३. जी० ३।३०३,५६६, ११२२ चंदपडिमा [ चन्द्रप्रतिमा ] ओ० २४ चंदपfरएस [ चन्द्रपरिवेश ] जी० ३१६४१ चंदपरिवेस [ चन्द्रपरिवेश ] जी० ३१६२६ चंदप्यभ [ चन्द्रप्रभ] रा० १६०,२९२. जी० ३१३३३,४५७ चंदभा [ चन्द्रप्रभा ] जी० ३१५८६,७६३,८६०, ६५८,१०२३ चंदप्पह [ चन्द्रप्रभ ] रा० २५६ जी० ३१४१७ चंदमंडल [ चन्द्रमण्डल ] रा० २४, ५१, १४६. जी० ३२७७, ३२२ चंदमंडलपविभत्ति | चन्द्रमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ६० चंदवडेंसय [चन्द्रावतंसक ] जी० ३।१०२४, १०२५ चंदवण्ण [ चन्द्रवर्ण ] जी० ३।७६३ चंदवण्णाभ [ चन्द्रवर्णाभ ] जी० ३।७६३,१००८, १०१०१०१५ चंदरिमाण [ चन्द्रविमान ] जी० २११८, ४० ३३१००३ से १००६,१०२७ चंदविलासिणी | चन्द्रविलासिनी ] रा० १३३. जी० ३१३०३, ११२२ चंदसालिया [ चन्द्रशालिका ] जी० ३१५६४ चंबसूरवंसणग [ चन्द्रसू रदर्शनक ] रा० ८०२ चंदसुरदंसिणया [ चन्द्रसूरदर्शनिका ] ओ० चंदा [ चन्द्रा ] जी० ३।७६४,७७६,७७८ चंदागमणपविभत्ति [ चन्द्रागमनप्रविभक्ति ] १४४ र० ८७ चंदागार [ चन्द्राकार ] रा० १५६. जी० ३१३३२, ७६३ चंदाणणा [ चन्द्रानना ] २१० ७०,१३३,२२५. चंदद्दह - चक्कषट्ट जी० ३१३०३, ३८४, ८६६, ११२२ चंदावरणपविभत्ति [ चन्द्रावरणप्रविभक्ति ] रा० ८८ चंदावलि [ चन्द्रावलि ] रा० २६ चंदावलिपविभत्ति | चन्द्रावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ चंदिम [ चन्द्रनम् ] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३।२५७,८४१, ८४२, ८४५,६६८ से १०००,१०२०, १०२१,१०३८ चन्दुग्गमणपविभत्ति ] चन्द्रोद्गमनप्रविभक्ति ] रा० ८६ चंपक [ चम्पक जी० ३३२८१ चंपंग | चम्पक | ० २८,८०४. जी० ३।२८१ चंपग | लया | | चम्पकलता ] जी० ३१२६८ चंपगलया | चम्पकलता | ओ० ११. रा० १४५. जी० ३,५६४ चंपगलयापविभत्ति [ चम्पकलताप्रविभक्ति ] २० १०१ चंपगवडेंसय | चणकावतंसक ] रा० १२५ चंपगवण [ चम्पकवन ] रा० १७० जी० ३१३५८. चंपय | चम्पक | रा० २८, १८६. जी० ३।२८१, ३५६ चंपा [ चम्पक] रा० २८,३० जी० ३।२८१, २८३ चंपा | चम्पा ] ० १, २, १४, १९ से २२, ५२, ५३ ५५, ६० से ६२,६७, ६८, ७० चंपापविभत्ति | चम्पकप्रविभक्ति ] रा० ६३ चकारखग्ग | चकारवर्ग ] रा० ६६ चक्क | चक्र ] ओ० १६, ११. ० १५०, १५१ जी० ३।११०, ३२३, ३२४, ५६६, ५९७ चक्कग | चक्रक ] जी० ३५६३ चक्कज्झय | चक्रध्वज | रा० १६२. जी० ३।३३५ चक्कद्धचक्कवाल | चक्रार्धयकाल ] रा० ८४ चक्कपाणिलेहा | वक्रराणिखा | जी० ३।५६६ चक्कल ! दे० ] रा० ३७. जी० ३।३११ चक्कलक्खण [ चक्रलक्षण | रा० ८०६ चक्कवट्टि [ चक्रवर्तिन् ] आं० १६,२१,५४,७१. Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्फवाग-चरमणाणुप्पायनिबद्ध ६११ १०८,१५४,२७६,२६२. जी० ३।३२७,४४५, ४५७,५६२,६०२,७६५,८४१,८६६,६५६ चक्कवाग | चक्रवाक ओ०६. जी० ३।२७५ चक्कवाल [चक्रवाल ओ० ७०,१७०. रा० २०१, १०४. जी. ३१८६,२६०,२७३,३६२,५८६, ७०५,७०६,७३२.७६४,७६५,७९७,७९८, ८११,८१२,८२२,८२३,८३२,८४६,८५०, ८८२,६१८ चक्कवह [चक्रव्यूह | ओ० १४६. रा०८०६ चक्किय । चक्रिक | ओ०६८ चक्खिदिय [चक्षुरिन्द्रिय] ओ० ३७. जी० ३१६८ चक्खु [ चक्षुष | रा० ६७५. जी० ३१६३३ चक्खुदंसणि [चक्षुर्दर्श निन् ] जी० ११२९,८६,६०; ___१३१,१३२,१३६,१४० चक्खुदय [चक्षुर्दय] ओ० १६,२१,५४. १०८, २६२. जी० ३१४५७ चक्खुप्फास [चक्षुस्स्पर्श | ओ० ६६,७०. रा० ७७८ चक्नुभूय [चक्षुर्भूत | रा० ६७५ चक्खुल्लोयणलेस [चक्षुलोकनलेश] रा० १७,१८, २०,३२,१२६,१३३. जी० ३२२८८,३००,३०३, ३२,३३.१२६,२८२. जी० ३.२३४ से २३९, २४३,२४५,२४७,२५०,२५६,२५८,२८८, ३००,३११,३७२,४४८ चमस [चमस] ओ० १११ गे ११३,१३७,१३८ चम्म चर्मन् ] रा० २४,६६४. जी. ३१२७७,५६२, चम्म [पाय] चर्मपात्र ] ओ० १०५,१२८ चम्म | बंधण] [चर्मबन्धन ] ओ० १०६,१२६ चम्मपक्खि [चमपक्षिन् ] जी० ११११३,११४,१२५ चम्मयक्खी ! चर्मपक्षिणीj जी० २०१० चम्मपाणि | चर्म पाणिj १० ६६४. जी० ३१५६२ चम्मेढग { चर्मेप्टक रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३.११८ चय | चय, ज्यव ] ओ० १४१. रा० ७६६. जी० ३१११२७ चय [शक्]—चएइ. ओ० १६५।१६ चय |--चयंति. जी. ३०८७ चय [त्यज्]—चय इ. जी० ३३१२६।५ चयंत त्यजन् ] ओ० १९५३ चयण | च्यवन ] जी० ३।१६० चिर [चर्| - -चरइ. जी० ३१८३८१२....चरंति. ओ० ४६. जी. ३१७०३-चरति जी० ३.१००१-चरिसु. जी० ३१७०३ -चरिस्संति जी० ३१७०३ चरण [चरण] ओ० १५, २५. रा० ६८६. जी० ३४५६७ चरमअभिसेयनिबद्ध [चमाभिषेकनिबद्ध ] रा० ११३ चरमंत [चरमान्त ! जी० ३।६६८ चरमकामभोगनिबद्ध चरमकामभोगनिबद्ध] रा० ११३ चरमचवणनिबद्ध चमच्य इननिरद्ध] रा० ११३ चरमजम्मणनिबद्ध | चरमन्मनिबद्ध र० ११३ चरमजोवणनिबद्ध | चरम यौवनगिबद्ध रा० ११३ चरमणाणप्पायनिबद्ध | चरमज्ञानोत्पादनिबद्ध ] रा० ११३ ३७२ चक्खुहर [चक्षुहर रा० २८५. जी. ३१४५१ चच्चय [चर्चक] ग० २६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५९४. जी. ३१४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५४७ चच्चर [चल्वर | ओ० १,५२,५५. रा० ६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ चच्चाग | दे० चर्चाक ] रा० १३१,१४७,१४८, जी० ३.३०१ चच्चाय | दे० चर्चाक] रा० २८०. जी० ३।४४६ चडगर [दे०] रा० ५३,६८३,६६२,७१६ चत्तालीस | चत्वारिंशत् ] जी० ३।६६ चतुरासीति | चतुरशीति | जी० ३।८८२ चतुरिदिय | चतुरिन्द्रिय ] जी० २।१३८,१४६; ४२१ चमर [चभर] ओ० १३,६८. रा० १७,१८,२०, Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० चरमतयचरणनिबद्ध [ चरमतपश्चरणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमतिस्तनिबद्ध [ चरमतीर्थप्रवर्तन निबद्ध ] रा० ११३ ataforefros [ चरमनिष्क्रमणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमनिदाघकाल [ चरमनिदाघकाल ] जी० ३१११८, ११६ चरमनिबद्ध [ चरमनिबद्ध ] रा० ११३ चरमपरिनिव्वाणनिबद्ध | चरमपरिनिर्वाणनिबद्ध ) रा० ११३ चरमपुष्वभवनिबद्ध [ चरमपूर्व भवनिबद्ध ] रा० ११३ चरमबालभावनिबद्ध [चरमबालभावनिवद्ध ] रा० ११३ चरमसाहरणनिबद्ध | चरमसंहरणनिबद्ध | रा० ११३ चरमाण [ चरत् ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. २० ६८६, ६८७, ७०६, ७११, ७१३ aft [ चरित्र ] रा० ६८६, ८१४ चरितविणय | चरित्रविनय | ओ०४० चरितसंपण्ण [ चरित्र सम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ चरिम | चरम ] ओ० ११७, १५४, १९२, १९५१३. रा० ६२, ७६६, ८१६. जी० ६१६३, ६४,६६ चरिमंत | चरमान्त | जी० ३।३३, ३४, ३७, ३८, ६० से ६८,२१७,२१६ से २२५, २२७,६३२, ६३. ६६६, ११११ चरिमभव [ चरमभव ] ओ० १६५४४ चरिममोहणिज्ज [ चरममोहनीय] ओ० ८६ aft [ चरित] ओ० ४६ चरिया [ चरिका ] ओ० १, १६०. रा० ६५४, ६५५. जी० ३।५५४, ५६४ रियल सामण्ण [ चर्यालिङ्गसामान्य ] ओ० १६० चर [ चरु ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ √ चल [ चल् ] - चलइ. रा० ७७१ -- चलति. जी० ३७२६ -- चाले. रा० ७७१ चलंत [ चलत् ] ओ०५, ८, ४६. ० ७७१ चरमतवचरण निबद्ध - चामर जी० ३।२७४ चलण [ चरण ] ओ० १६. जी० ३।५६६, ५६७ चलणमालिया । चरणमालिका ] जी० ३।५९३ चलणी | चलनी । जी० ३।६२३ चलिय | चलित ] रा० १७, १८, २० √चव [ च्यु ] -- चवति जी० ३१८४३ चवण [ च्यवन ] रा० ८१५. जी० १११४ चबल [ चपल ] ओ० २१,४६, ४६, ५४.०८, १०, १२ १५, ३२, ५६, १७६, ७१४. जी० ३३८६, १७६, १७८, १८०, १८२, ४४५ चवलायत [ चलायमान ] जी० ३१५६७ चवलिय [ चलित ] जी० ३१५८७ चसग [ चपक] जी० ३।५८७ art [ त्यागिन् ] ओ० १६४ चाउवकोण | चतुष्कोण ] रा० १७४. जी० ३३११८, ११६, २८६ चाउरघंट [ चतुर्घण्ट ] रा० ६८१ से ६६३, ६८५, ६९० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२, ७२४, ७२६ चाज्जाता | चतुजतक ] जी० ३१८७८ चायाम [ चातुर्याम ] रा० ६६३,७१७,७७६ चाउज्जामिय | चातुर्यामिक ] रा० ६६५, ६६६ चात्थगाहिय | चातुकाहिक ] जी० ३२६२८ चाउस [ चतुर्दश | T० ७७४ उसी [ चतुर्दशी | ओ० १६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ चार भाइया | चातुर्मागिका ] २१० ७७२ चाउमासिय[ चानुमनिक ] जी० ३।९१७ चाउरंगणी [ चतुरङ्गिणी] ओ० ५५ से ५७,६२, ६५ चाउरंत | चतुरन्त | ओ० १६,२१,५४. रा०८, १५४,२९२. जी० ३ ३२७, ४५७, ६०२,८६६, ६५६ चाउरक्क [ चातुरक्य ] जी० ३।६०१,८६६ चाडुकर [ चाटुकर] ओ०६४ चामर [ चामर] ओ० १२,१६,६३ से ६५. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चामरगाह-चियत्त ६२१ रा०२२,२३,५०,१६०,१६७,१७८,२५६, चिखल [दे०] ओ० ४६ २७६. जी० ३।२६०,२६१,३३३,३४८,३५५, चिच्चा त्यक्त्वा ओ० २३. रा० ६६५ ३८२,४१७,४१६,४४५,५६७ इचिट्ट [ष्ठा]-चिटुइ. ओ० ३७. रा० १२३. चामरगाह चामरग्राह] ओ०६४ जी० ३।४८.--चिट्ठति ओ० १८३. रा० ४०. चामरधारपडिमा चामरधारप्रतिभा रा०२५६. जी० ३१२२.-चिटुति. रा०२७६,जी०३१४८. जी० ३।४१७ -चिटुह. रा०७५३.-चिट्ठज्ज. ओ० १८० चार [चार] ओ० ५०,१४६. रा० ८०६. चिट्ठ ]दे०] रा० ७२३ जी० ३।७०३,७२२,८०६,८२०,८३०,८३४, चिट्ठित [चेष्टित रा० १३३ ८३७,८३८१२,१३,२०,२२,८४२,८४५,१००१, चिट्ठिय [ चेष्टित रा० ७०,८०६,८१० १००३ से १००७ चित्त [चित्त] ओ० २०,२१,४६,५३,५४,५६,६२, चारगबद्धग [चारकबद्धक] ओ० ६० ६३,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १८,२०, चारण [चारण ] ओ० २४. जी० ३१७९५,८४०, २४,३२,३४,३७,४७,६०,६२,६३,७२,७४, १२६,२७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१, चारि [चारिन् ] ओ० ५०. जी० ३१५९७ ६८३,६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३. चारु चार ओ० १५,१६,२५,४६. रा०७०,७६, ७१४,७१६,८१८,७२५,७२६,७७४,७७८ १३३,१७३,६६४,६७२,८०६,८१०. चित्त (चित्र, चित्त] रा०६७५,६८०,६८१,६८३ जी० ३१२५५.३०३,५६२,५८७,५६६,५६७, से ६८५,६८६,६९०,६६२,६६३,६६५ से ११२२ ७१०,७१३,७१४,७१६ से ७३६,७४८ चारपाणि चारुपाणि] रा० ६६४. जो० ३१५६२ चित्त | चित्र] ओ० १६,४६,५७,६४. रा० ६६, चालिय [चालित रा० १७३. जी० ३१२८५ १३०,१३७,१५४,१६०,१७३,२५६,२५८, चालेमाण (चालयत् ] जी० ३११११ २७९,२८५,६८१. जी० ३।२८५,३००,३०७, चाव [चाप ओ० १६,६४. रा० १७३,६६४, ३२७,३३३,३५५,४१६,४४३,४४५,४४७, ६८१. जी० ३।२८५,५६२,५६६,५६७ ४५१,५५५,५९६ चावरगाह ! चापाह] ओ०६४ चित्तंग [चित्राङ्ग] जी० ३१५९१ चावपाणि चापपाणि] रा० ६६४. जी० ३१५६२ ।। चित्तंगय चित्राङ्गक जी० ३१५६१ चास [चाप | रा० २६. जी० ३।२७६ चित्तंतरलेस [चित्रान्तरलेश्य जो० ३१८४५ चासपिच्छ | चायपिच्छ] रा० २६, जी० ३।२७६ । चित्तंतरलेसाग [चित्रान्तरलश्याक ] जी० ३१८३८।२ चिउर चिकूर रा० २८. जी. ३१२८१ चित्तघरग [चित्रगृहक ] रा० १८२,१८३. चिउरंगराग [चिकुराङ्गराग] जी० ३१२८१ जी० ३२६४ चिउरंगरात | चिकुराङ्गराग] रा० २८ चित्तपट्ट [चित्रपट्ट] रा०६६ चिता चिन्ता | ओ० ४६. जी० ३१६४८,६४६ चित्तरस | चित्रन्स जी० ३१५६२ चितिय | चिन्तित | ओ० ७०. रा० ६,२७५,२७६, चित्तल {चित्रल | जी० ३।६२० ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, चित्तवीणा [चित्रवीणा स०७७ ७६१,७६३,८०४. जी० ३१४४१,४४२ चित्तसाल चित्रशाल | जी० ३३५९४ चिध [ चिह्न ! ओ० ४७ से ५१. रा० ६६४,६८३. घियत्त [दे० प्रीत, सम्मत ] ओ० ३३, १६२. जी० ३।५६२ रा०६६८, ७५२, ७८६ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ चिट्ठिय [ चिरस्थितिक ] ओ० ७२ चिराईय [विरादिक, चिरानीत] ओ० २ ० २ चिराड [ चिराहृत] रा० ७७४ चिलाइया | किरातिका ] रा० ८०४ चिलाई | किराती | ओ० ७० चिल्लय [ ३० ] ओ० ४६. जी० ३१५८६ चिल्ललग | दे० ] १० ६६. जी० ३१६८२ ati | trive ] जी० ३१५६५ tatofug | चीनपृष्ट ] रा० २७. जी० ३१२८० चुण | चूर्ण | १० १५६, १५७, २५८, २७६, २८१,२६१. जी० ३।३२६, ४१६, ४४७, ४५७ चुणति [ चूर्णक्ति ] ओ० १४६ चुप | च्युत | ओ० प चुलणिसुत | चलनीसुत ] जी० ३।११७ चुलसीत [ चतुरसीति ] जी० ३७२८ चुल्ल हिमवंत ( क्षुल्ल हिमवत् ] रा० २७६. जी० ३।२१७, २१६ से २२१, ४४५, ७६५, ६३७ चूचुय [ चूचुक ] रा० २५४. जी० ३।४१५, ५६७ चूडामणि | चूडामणि] २१० २८५. जी० ३३४५१ चूत [चूत] जी० ३।३५६ चूतवण | चूतवन ] जी० ३।३५८ चूप [चूत] रा० १८६ चूय (लया ) | चूतलता | जी० ३३२६८ चूयलया | चूतलता | ओ० ११. रा० १४५. जी० ३.५८४ चूयलयापविभत्ति | चूतलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ च्यवडेंसय | चूलावलंसक ] रा० १२५ चूयवण | चूतश्न | रा० १७० जी० ३।३५८ चूलामणि | चूडामणि] ओ० ४७, १०८. जी० ३।५६३ चूलिया | चूलिका | ०३२८४१ चूलोक्षणय | चूडापनय | ०८०३ चूलोवणवण [न] जी० ३०६१४ इय [ चव्य] ओ० १ से ३,१६ से २२, ५२, ५३, ६५, ६६, ७०, १३६. ०२, ८ से १०, १२, चिट्ठिय-चोयग १३, १५, ५६, ५८, २४०, २७६, ६७८, ६८६, ६८७, ६८६,६६२, ७००, ७०४, ७०६,७११, ७१६, ७७६ चेयखंभ [ चैत्यस्तम्भ ] रा० २३६ से २४२, २४४, ३५१. जी० ३।४०१ asar / चैत्यस्तू | ० २२२ से २२४, २२६, ३०५,३१६,३४३. जी० ३,३८१,३८२,३८५, ४७०, ४८१,५०८ चेयमह [ चैत्यमह] ० ६०० जी० ३३६१५ चेक्ख [ चैत्यक्ष ] ० २२७ से २३०, ३१०, ३१५, ३४८. जी० ३।३८६ से ३८८, ३६१, ३६२, ४१२, ४७५. ४८०, ५१३ चेद्विय | चेष्टित ] जी० ३।३०३, ५६७ चेड [ चेट ] ओ० १८. १०७५४, ७५६, ७६२, ७६४ चेडिया [ चेटिका ] ओ० ७०. ० ८०४ चेति [ चैत्य ] जी० ३।४०२, ४४२ चेतिखंभ [ चैत्यस्तम्भ ] जी० ३ | ४०२ से ४०४, ४०६, ४४२, ५१६, १०२५ चेतियथूभ | त्यस्तूप ] जी० ३२३८३, ४५१,८९४, ८६५ ८६७ चेतियरुक्ख [ चैत्यरूक्ष | जी० ३८६८, ८६ चेल (पाय ) [ चलपात्र ] ओ० १०५, १२८ चेल (बंषण ) [ चेलबन्धन | ओ० १०६, १२६ चेलुक्व [ चेलोत्क्षेप ] रा० २८१. जी० ३।४४७ aaf | चतुष्पष्टि ] जी० ३।२१८ चोक्ख [ चोक्ष ] ओ० २१, ५४, ६८. रा० २७७, २८८,७६५, ८०२. जी० ३।४४३ चोक्खायार [ चोक्षाचार] ओ० ६८ चोत्तीस | चतुस्त्रिशत् ] जी० ३१६६६ चोट्स | चतुर्दशन् ] जी० ३१३६ चोपाल | चोप्पाल ] रा० २४६ जी० ३१४१०, ५२०,६०४ atree [ चोपालक ] रा० ३५५ चोय | दे० ] रा० ३० जी० ३।२८३,३३४, ४१६,५८६ चोयग [ दे० ] रा० १६१,२५८, २७६ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोयाल-छरु चोयाल [प्रतुश्चत्वारिंशत् ] जी० ३.८३० चोयासव [दे० कोशासव] जी० ३८६० चोर चोर ओ० ११७ ग० ७५४,७५६,७६२ चोरकहा चोरकथा ओ० १०४,१२७ चोवत्तरि चतु:सन्तति जी० ३१७३३ (छ) छ षष् ] रा० १७३ जी०१:४६ छउमत्थ छमस्थ] ओ० १६६,१७०. रा० ७७१. जी० १३१२६३।६६३,३,६६७, ९३६,४२ से ४४,४६,५१ छउमत्यपरियाग [छयस्थपर्याय ] ओ० १६६ छंद [छन्द] ओ० ६७ रा० ७२० छकोडीय [षट्कोटोक] जी० ३६४०१ छगल [लगल] ओ० ५१ जी० ३.१०३८ छज्जीवणिया [षट्जीवनिका ओ० ७४१३ छट्ट | षष्ठ| ओ०६७,१४४,१७४,१७६, रा० छत्त [छत्र] ओ० २,१६,५२, ५७,६३ से ६५, ६७,६६,७०. रा० १५६,१७३,२७६,६८१ से ६८३,६६१,६६२,७००,७१५,७१६,७१६. जी० ३।२६६,२८५,३३२,३५५,४१६,४४५. ५९६,५६७,६०४ छत्तज्मय [छत्रध्वज ] २० १६२. जी० ३।३३५ छत्तपारपडिमा [छत्रधारप्रतिमा] जी० ३१४१६ छत्तधारमपहिमाछत्रधारकप्रतिमा रा०२५५ छत्तय | छत्रक] ओ०११७ छत्तलक्खण [छत्रलक्षण औ० १४६. रा० ८०६ छत्ताइच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० २०२,२०४, २०५ छत्ताइछत्त [छत्रातिछत्र) ओ० १२. रा० १३७, २२६. जी० ३१२६१,३१४,३५७,३७१,३७५, ४३३ छतातिच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० ५२,५६,२०६, २३१,२४७,२४८,२५०,२५६ छत्तातिछत्त [छत्रातिछत्र] रा० २३,१६८,१७६, २०७,२०८,२२०,२२३,२३२,२३४,२६१, जी० ३.३०७,३४६,३५६,३६७ से ३७०, ३७६,३८२,३६१,३९३,३६४,३६६,४०३, ४११,४२०,४२४,४३०,४३६,६६६ छत्तीस [षत्रिंशत् ] ओ० १६. रा० २४०. जी. ३७१० छत्तोव | छत्रोष ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ छत्तोवग छत्रोपका जी० ३।३८८ छप्पण्ण षट्पञ्चाशत् जो० ३१३०० छप्पन्न | पटपञ्चाशत् । रा० १३० जी० ३१५६८ छप्पय (षट्पद] ओ० ६. रा० १३६,१७४. जी० ३१११८,११६,२७५,२८६,३०६ छब्भाग षड्भाग ओ० १६५ छन्भामरी पड्भ्रामरी न०७३ छम्मासिय [पाण्मासिक ओ० ३२ छयाल [षट्च वाभित्] जी० ३१८१५ छरु सरु | ओ० १६. जी. ३५६६ छठंछट्ठ षष्ठंषष्ठ] ओ० ११६ छट्ठभक्त [षष्ठभक्त ] ओ० ३२ छट्ठा षष्ठी | जी० २११३५,१३८; ३१२,६१ छविया षष्ठिका] जी० ३।१२५ छट्ठी [पष्ठी] जी० २११४,१४६ ; ३।४,३६.७१ ७४,७५,७७,८०,११११ छडिय [छटित रा० १५० जी० ३१३२३ छिडछर्दय, मुच्]-छड्डेति. रा० ७७४ छड्डेस्यामि. रा ० ७७३-छड्डेहि रा० ७७४ छडिल्लिया छाँदा ओ० ६२ छ?त्तए [दयितुम् ] रा० ७७४ छड्डेत्ता छदिया] 1. ७७४ छण्ण | छन्न | जी० ३।२७५ छण्णउय [षण्णवति । जो० ३१८२० छण्णालय [दे० पणालक] ओ० ११७ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ छरुप्पवाद-जंधा छरुप्पवाद [सहप्रवाद] ओ० १४६ छिप्पंत [स्पृश्यमान] रा० ७७ छरप्पवाय [त्सरुप्रवाद] रा० ८०६ छिरा [शिरा) जी० १।६५,१३५ ; ३६६२,१०६० छरुह [त्सरुक] जी० ३।३२२ छिरिया | दे० ] जी० ११७३ छलस [पड़न] जी० ३३४०१ छिवाडो [दे० ] रा० २६. जी० ३।२८२ छलसीत [पडशीति] जी० ३१७३६ छोइत्ता क्षुत्वा जी० ३।६३० छल्लो (दे०] रा० २८. जी० ३१२८१ छोरबिरालिया [क्षीरबिडालिका] जी० राह छवि [छवि जी०३६६,५६८ छोरविरलिया [क्षीरबिडालिका] जी० १७३ छविगहित / पविग्रहिक] जी० ३।४०१ छुभ [क्षिप्]-~छुभइ रा० ७८८.---छुभिस्सामि छविच्छेद छविच्छेद] जी० ३१६२० रा० ७८७ छविच्छेय [छविच्छेद रा० ७६२. जी० ३६२५ छुहा [क्षुध् ] ओ० १६०१८ छम्विह [पविध ] ओ० ३० ३१,३८. जी० १।१०, छुहिय [क्षुधित] जी० ३.११६ ११६; ३।१८३,१८५,६३१; ५।१,६०; ६:१५६. छेत्ता [छित्त्वा ] जी० ३१९६१ १६७,१७०,१८१ इछेद [छिद् ] -- छेदेति ओ० ११७ छव्वीस षड्विंशति | जी० ३।१०६६ छेदारिह [छेदाई ] मो० ३६ छाउमस्थिय छानस्थिक] रा० ५४६ छेदित्ता [छित्वा ] ओ० ११७ छादण [छादन] रा० २७०. जी० ६।२६४,३००, छदेत्ता [छित्त्वा] ओ० १६२ छेदोवद्रावणियचरित्तविणय [छेदोपस्थापनीय छायण [छादन] रा० १३०,१६० चरित्रविनय ] मो० ४० छाया छाया] ओ० १२,४७,७२,१६४. रा० २१, पछेय [छेदय् ]-छेइस्सइ. रा०८१६ २३,२४,३२,३४,३६,१२४,१४६,१५६,१७०, ० छेय [छेक ] ओ० ६३,६४. रा० १२,१७३,६८१, २२८,६७०,७०३. जी० ३१२६१,२६६,२६६, ७५८,७५६,७६५,७६६,७७०. जी. ३८६, ११८,१७६,१७८,१८०,१८२,२८५,४४५, २७७,३२२,३३२,३८७,५६८,६०४,६७२ छाक्ट्ठ [षट्पष्टि] जी० ३.१०२२ छावट्टि [षट्पप्टि ) जी० ३१८३८।४ छेयकर [छेदकर] ओ० ४० छेयारिय [छेकाचार्य] ओ० १.५७ छावत्तर षट्सप्तति] जी० ३१७०३ छिद | छिद्-छिद. रा०६७१...दिति रा० छवट्ट सेवात] जी० १।१७,५६,१०१,१११ २८१. जी० ३।४४७ ___ छोडिय [छोटित] जी० ३।५६६ पछिज्ज छिद् ]-छिज्जइ. रा० ७८४ छिज्जमाण [छिद्यमान] जी० ३१२२ से २५,२७, ज [यत् ओ० ३७. रा० ६. जी०१५ ४५ से ४७ जइ [यदि] ओ० ५७. रा० ७१८. जी०२५५ छिड्ड [छि:! ० ७५४ से ७५७ जइण [जविन् ] ओ० ५७. रा० १२,७५८,७५६. छिण्णावाय छिन्नापात | ओ०११६,११७. जी० ३ ८६,१७६.१७८,१८०,१८२,४४५ रा० ७६५,७७४ जइपरिसा यतिपरिषद् ] ओ० ७१ छित्त [क्षेत्र] ओ०१ जओ (यतस् ] रा० ७५४,७५५. जी० १६६ छिद्द [छिद्र ] रा० ७६३ जंघा [जङ्घा ओ०१६. रा०२५४. जी. ३१४१५, Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंत - जनबोल ५६६,५६७ जंत [ यन्त्र ] ओ० १४ १२६,६७१. जी० रा० १७, १८, २०,३२, २८८, ३००,३७२ जंतकम् [ यन्त्रकर्मन् ] ओ० ६४. रा० १७३,६५१. जी० ३।२८५ अंतवाडचल्ली [ यन्त्रपाटचुल्ली ] जी० ३१११८ बुद्दी [ जम्बूद्वीप ] ओ० १७०. रा० ७ से १०, १३,१५,५६,१२४,६६० जी० ३८६, २१७, २१६ से २२१.२२७२५६,२६०,२६६. ३००,३५१.४४५,५६६, ५६८ से ५७७,६३८, ६६०,६६५,६६६,६६८,७०१ से ७०४,७०८, ७२३,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०, ७५४, ७६२,७६४ से ७६६,७७५,७६५.६१६ से २२, ६५३,१०३६,१०७४, १०५० जंबुद्दीवग [ जम्बूद्वीपक] जी० ३।७०६,७१०, ७६२,७६४ से ७६६, ८१४ जंबुद्दीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३।७१५ जंबूपेठ ] जम्बूपीठ ] जी० ३१६६८,६६९ जंबू [जम्बू ] जी० ११७१: ३।६६८, ६७२,६७३, ६७८ से ६८३,६८८,६८६,६९२ से ७००, ७६५ जंबूदमय [ जाम्बूनदमय ] जी० ३।३२३ जंबूणय [ जाम्बूनद ] रा० १५६,२२८. जी० ३३३३२, ३८७, ६७२ अंबूजयम [ जाम्बूनदमय ] रा० ३७,१५०. जी० ३१३११,४०७, ६४३ जंबूणयामय [ जाम्बूनदमय] रा० १३५,१८८, २४५. जी० ३।३०५,३६१,६६६,६६६, ८३६ जंबूदीव [ जम्बुद्वीप ] जी० ३७००,७५४,१००१, १००७, १०२२ जंबूदीवाहिति [ जम्बूद्वीपाधिपति ] जी० ३३७०० जंबूपल्लवपविभत्ति [ जम्बू पल्लवप्रविभक्त ] रा० १०० जंबूपेठ [ जम्बूपीठ ] जी० ३१६६८,६७० अंबूफस [ जम्बूफल ] ओ० १३. रा० २५. जी० ३२७८ जंबूफलकालिया [ जम्बूफलका लिया ] जी० ३१८६० जंबूरुक्ख [ जम्बूरूक्ष ] जी० ३१७०२ जंबूवण | जम्बूवन ] जी० ३।७०२ जंबूड [ जम्बूषण्ड ] जी० ३ ७०२ जंभात्ता | जृम्भयित्वा ] जी० ३१६३० जख [ यक्ष ] ओ० ४६, १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६. जी० ३७८०, ६४७, ६५० Grant [ यक्षग्रह ] जी० ३१६२८ treaser | यक्षप्रतिमा ] रा० २५७. जी० ३१४१८ जलमंडलपविभति [यक्षमण्डलप्रविभक्ति | रा० ६० क्aमह [यक्षमह ] रा० ६८८. जी० ३३६१५ क्वालित [ यक्षादीप्त ] जी० ३१६२६ अगईपव्यय [ जगतीपर्वत ] रा० १८१ जगपव्यय [ जगतीपर्वतक ] रा० १८० जगती [जगती ] जी० ३ २६० से २६३,२७३, २६८ गतीपयम [ जगतीपर्वतक ] जी० ३२६२ अघण [ जघन ] ओ० १५ ६२५ [जात्य ] ओ० १६,६४. जी० ३ ५६६,५१७, ८५४,८७८ जच्चकणग [ जात्यकनक] ओ० २७. रा० ८१३ गुलु | जय हिंगुलुक ] जी० ३१५१० जज्जरिय [ जर्जरित ] रा० ७६०, ७६१ जडि [ जटिन् ] ओ० ६४ जड्डु [जाड्य ] रा० ७३२,७३५,७६५ जण [जन ] ओ० १,६,६८,११६. रा० १२३, ७६६ जणइत्ता [ जनयित्वा ] मो० ६६ जणउम्मि [जनोमि ] रा० ६८७,७१२ जणकलकल | जन कलकल ] ओ० ५२. रा० ६८७, ६८८,७१२ जणक्य [ जनक्षय ] जी० ३६२८ जणबोल [ जनबोल ] ओ० ५२. ० ६८७,७१२ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ जणवय-जल जणवय जनपद] ओ० १४६. रा०६६८,६६६, ६७१,६७६,६८३,७०६,७११,७१८,७५०, ७७४,७६०,७६१ जणवयकहा [जनपदकथा] ओ० १०४,१२७ जणवयपाल [जनपदपाल ] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपिय [जन पदप्रिय] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपुरोहिय [जनपदपुराहित | ओ० १४ रा०६७१ जणवाय | जनवाद] ओ० १४६. रा० ८०६ जणवूह [ जनव्यूह ! मो० ५२ रा० ६८७,७१२ जणसण्णिवाय [जनसन्निपात ] ओ० ५२. रा०६८७,७१२ जणसद्द [जनशब्द ] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ७१२ जणिय [जनित] ओ० ५१ जणुक्कलिया [जनोत्कलिका] ओ० ५२ जम्मि [जनोमि ] ओ० ५२ जण्णइ याज्ञिक ! ओ०६४ जण्णु [जानु ] रा० १२ जति [यदि] रा० ७५० जतिपरिसा [यतिपरिषद् ] रा० ६१ जतो [यतस् | रा० ७५६ जत्ताभिमुह यात्राभिमुख ओ० ५५,५८,६२,७० जत्तिय [ यावत् ] जी० ३१७७,१२७ जत्थ [यत्र] रा० ७१६. जी० ११५८ जया (यथा] जी० ३६८ जन्न [यज्ञ] जी० ३१६१४ जन्नु [जानु] रा०६ जप्पभिइ | यत्प्रभृति रा० ७६०,७६१ जमहत्ता [दे० '] ओ० २६ जमग यमक जी० ३३६३२,६३३,६३५,६३७ से जमगवण [यमकवर्ण] जी० ३१६३७ जमगवण्णाभ [यमकवर्णाभ] जी० ३१६३७ जमगसमग [दे०] ओ०६७. रा० १३,६५७ जी० ३१४४६ जमगा [यमका] जी० ३१६३७ से ६३६ जमगागार [यमकाकार जी० ३१६३७ जमबग्गिपुत्त जमदग्निपुत्र] जी० ३३११७ जमल [यमल] ओ० १,५७. रा० १२,१७,१८,२०, ३२,१२६,१३३,७५८,७५६. जी० ३.११८,२२८,३००,३०३,३७२,५६७ जमलिय यमलित ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४ जम्म | जन्मन् ] ओ० १८४ जम्मण जन्मन्] ओ० ४६. रा० ८०३. जी० २:३० से ३४,५७ से ६१,६६,११६, १२४,१३३ : ३।६१७ अम्हा [यस्मात्] रा० ७५० जय [जय] ओ० २०,५३,६२ से ६४,६८. रा० १२,४६,७२,११८,२७६,२७६,२८२, ६५५,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७२३. जी० ३।४४२,४४५,४४८ जयंत [जयन्त ] ओ०१६२. जी० ३।१८१,२६४ ५६८,७०७,७१२,७६६,८१३,८१४,६४१ जयंती [जयन्ती] जी० ३।६१६,१०२६ जयणा [यतना] ओ० ४६ जया [ यदा] ओ० २१. रा० ७० ६. ३।७२६ जर [जरा] ओ० ४६,१७२ जर [ज्वर] जी० ३३११८,११६,६२८ जरद [जरठ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ जरा जरा] आं०७४,१६५,१६५।८,२१. रा० ७६०,७६१ जल जल ओ० १,२३,४६,६८,१११ से ११३, १२२,१३७,१३८,१५०. रा० १७४,८११. जी. ३।११८,११६,२८६,६४२,६५३,७५४, ७६२,७६८,७७०,७७२ जिस [ज्वल्] —जलंति. रा० २८१, जी० ३।४४७ जमगप्पमा [यमकप्रभा जी० ३१६३७ १. पुनरावर्तनेनातिपरिचितं कृत्वा (३०) । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलत-बहण्ण जलंत ज्वलत् ] ओ० २२,२७. रा० ७२३,७७७, ___ ७७८,७८८,८१३ जलकिडा [जलक्रीडा] रा० २७७. जी. ३१४४३ जलचर [जलचर | जी० ३:१२६:१,१६६ जलज [जलज) जी० ३.१७१ जलणपवेसि [ज्वलनप्रवेशिन् । ओ०६० जलपवेसि [जलप्रवेशिन् ] ओ० ६० जलमज्जण जलमज्जन } रा० २७७. जी० ३४४३ जलय [जलज] ओ०१२. रा० ६,१२,२२. जी० ३।२६० जलयर [जलचर] ओ० १५६. जी० १२९८,६६, १०१,१०३,११२,११३,११६ से ११६,१२१, १२३,१२५, २१२२,६९,७२,७६,६६,१०४, १०५,११३,१२२,१३६,१३८,१४६,१४६; ३११३७ से १४०,१४२,१४४ जलयरी जलचरी] जी० २,३,४,५०,५३,६६, ७२,१४६,१४६ जलरय [जलरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ जलरुह [जलरुह ] जी० ११६६ । जलवासि [जलवासिन्] ओ० ६४ जलसमूह [जलसमूह ] ओ० ४६ जलाभिसेय [जलाभिषेक ओ० ६४. रा० २७७ जलावगाह ! जलावगाह] रा० २७७ जलिय [ज्वलित] जी० ३।५६० जल्ल [दे०] ओ० १, २, ८६,६२. जी० ३१५६५ जल्लपेच्छा [जल्ल' प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३१६१६ जल्लोसहिपत्त [जल्लोषधिप्राप्त ] ओ० २४ जव [यव] ओ० १. जी० ३।५६७, ६२१, ७८८, जवलिय [यवलित) जी० ३३२६८ जवाकुसुस [जपाकुसुम रा०४५ जस [ यशस्] ओ०८६ से १५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ जसंसि [यशस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ जसोधरा [ यशोधरा जी० ३,६६६ जह यथा ] ओ० ७४. जी० १७२ जहक्कम [ यथाक्रम ] रा० १७२ जहण | जघन ) जी० ३१५६७ जहण [जघन्य | अं० १८७, १८८, १६५. जी० १२१६, ५२, ५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से १८, ६४, ६६, १०१, १०३, १११, ११२, ११६, ११६, १२१, १२३ से १२५, १३०, १३३, १३५ से १४०, १४२; २१२० से २२, २४ से ५०, ५३ से ६१, ६३, ६५ से ६७, ७३, ७६, ८२ से ८४, ८६ से ८८, 801 से ६३, ६७, १०७ से १११, ११३, ११४, ११६ से १३३, १३६; ३८६, ८६,६१, १०७, १२०, १५६,१६१, १६२, १६५, १७६, १७८, १८०, १८२, १८६ से १६०, २१८, ६२६, ८४४, ८४७, ६६६, १०२१, १०२७ से १०३६,१०८३, १०८४, १०८७, १०८६, ११११, ११३१, ११३२, ११३८ से ११३७; ४।३, ४,६ से ११, १६, १७; १५, ७, ८, १० से १६, २१ से २४, २८ से ३०; ६१२, ३, ६, ८ से ११, ७.३, ५, ६, १०, १२ से १८६२ से ४,२३ से २६, ३१, ३३, ३४, ३६,४०, ४१, ४३, ४७, ४६,५१,५२, ५७ से ६०, ६८ से ७३, ७७, ७८, ८०, ८३, ८५,८६,६०,६२,६३,६६, ६७,१०२, १०३, १०५, १०६, ११४, ११५, ११७, ११८,१२३ से १२८, १३२, १३४, १३६, १३८, १४२, १४४, १४६, १४६, १५०, १५२, १५३,१६० से १६२, १६४, १६५, १७१ से १७३, १७६ से १७८, १८६ से १६१, १६३, १९४, १६८ . से २००, २०२ से २०४, २०६, २०७, २१० जवण [जवन] रा०१०, १२, ५६, २७६. जी० ३३११८ जवमा | यवमध्य ] जी० ३७८८ जयममा [यवमध्या ओ०२४ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ जहण्णजोगि-जाय से २१२, २१४, २१६ से २१८, २२२, २२५, २२८, २२६, २३४, २३६, २३८, २४१ से २४४, २४६, २५७ से २६०, २६२, २६४, २६६, २७१, २७३, २७७ से २८२ जहण्णजोगि [जघन्ययोगिन् ] ओ० १८२ जहण्णपद [जघन्यपद ] जी० ३।१६५ से १६७ जहा [यथा] ओ० ६६. रा० १०. जी. ११४ जहाणामत | यथानाम | जी० ३१६६० जहाणामय | यथानामक ] ओ० १५०,१६४, १८४. रा० १२, २४, २५, २७, २८, ३०. १५४, १७३, ७०३, ७३७, ७५५, ७५८ से ७६१, ७६५, ७७२, ७५४, ८११. जी० ३।८४,११८, ११६,२१८,२८०,२८१,२८३ से २८५,३०६, ३२७, ५७८, ६०१, ६७०, ८८३ जहानामय [यथानामक] रा० २६, २६,३१, ४५, ६५, १२३, १७१, १७३. जी. ३८५, ६५, २७७ से २७६, २८२, ६०२, ७५५, ८६०, ८६६, ८७२, ८७८, ६५८, ६५६, ६६१, १०७८, १०७६ जहाभणिय [यथाभणित] रा० ६६६ जहासंभव [यथासम्भव ] जी० १११३६ जहि यत्र] जी ० ३।११२७ जहिच्छित [यथेप्सित जी० ३३१११५ जहिच्छिय [यथेप्सित | जी० ३१५६८, ६०६ जा [या] -- जति. जी० ३१८३८११ जाइ [जाति ] ओ० २३, १९५, १६५।२१ जाइमंडवग जातिमण्डपक] रा० १८४ जाइमंडवय [जातिमण्डपक] रा० १८५ जाइसंपण्ण [जातिसम्पन्न ] ओ० २५ जाइसरण [जातिस्मरण] ओ० १५६, १५७ जाइहिंगुलय [जातिहिङगुलक] रा० २७ जाईमंडवग [जातिमण्डपक ] जी० ३१२६६ आईमंवय [जातिमण्डपक] जी० ३३२६७ जाग [याग ओ० २ 1 जागर [जाग] - जागरिस्संति. रा०८०२ जागरिया (जागरिका] ओ० १४४. रा० ८०२, ८०३ माण [यान] ओ० १,७,८,१०,१४,५२,५५,५८, ५६,६२,७०,१००,१२३,१४१. रा० ६७१, ६७५,६८७,७६६. जी० ३।२७६,५८१,५८५, ६१७ जाण | ज्ञा]-जाणइ. ओ० १६९. रा० ७७१. जी० ३।१९८-जाणंति. रा० ६३. जी. ३।१०७ जाणंती... ओ. १६५७१२--जाणति, जी० ३१२०० -जाणह. रा०६३ - जाणामि. रा० ७४६--जाणासि. रा. ७६७ --जाणि स्यामो.रा० ७२१- जाणिहिति, स० ८१५ जाणमाण [जानान, जानत् ] रा० ८१५ जाणय [२] ओ० १६,२१,५४. रा०७४७ जाणविमाण [यानविमान रा० १३,१७ से १६, २४,३२,४५ से ४६,५६,५७,१२० जाणसाला [यान शाला] ओ० ५६ जाणसालिय यान शालिक] ओ० ५८,५६ जाणित्ता [ज्ञात्वा ] ओ० १४५. रा० ७६४ जाणु [जानु] ओ० १६,२१,५४. रा० २५४,२६२. __ जी० ३।४१५,४५७,५६६,५६७ जात जात] रा० ११६,८११ जातस्य [ जातरूप] रा० ७६६. जी० ३१७,३८७ जातरूवमय [जातरूपमय ] जी० ३३२६४ जाता [जाता] जी० ३।१०४०,१०४४ जाति [जाति] रा० ३०. जी० ३.१६० से १६२, १६६ से १६६,१७१,१७४,२८३,२६७.६६६ जातिगुम्म [जातिगुल्म ] जी० ३१५८० जातिपसन्ना [जातिप्रसन्ना] जी० ३१८६० जातिमंडवग [जातिमण्डपक] जी ३१८५७ जातिमंडषय [जातिमण्डपक] जी० ३१८५७ जातिसंपण्ण [जातिसम्पन्न ] रा० ६८६,६८७, ६८६,७३३ जातिहिंगुलय [जातिहिङगुलक] जी० ३।२८० जाय [जात ] ओ० २७,१५०. रा० १४,६६८, ७६०,७६१,८०२,८११ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जायकम्म-जियपरीसह ६२६ जायकम्म [जातकर्मन] ओ० १४४ जावतिय [यावत् । जी० ३.९७२,६७३ जायकोउहल्ल जातकोतहल्ल] ओ ८३ जावय [जापक] ओ० २१,५४. रा. ८,२६२. जायम । जातक] ओ० १४५. रा० ८०५ जी० ३१४५७ जायत्याम जातस्थामन्] रा०८१३ जासुअण [जपासुमनस् । रा० २७ जायरूप | जातरूप] ओ० १४,२७,१४१. रा० १०, जासुयण [जपासुमनस् | जी० ३१२८०,५६० १२,१८,६५,१३०,१६५,२२८,२७६,६७१, जाहिया | जाहिका] जी० २१६ ८१३. जी. ३१३००,६७२ जाहे ! यदा ] रा० ७७४. जी० ३.८४३ जायरूप पाय] [जातरूपपात्र] ओ० १०५, जिइंदिय जितेन्द्रिय] ओ० २५,४६,१६४ १२८ जिण [जिन ] ओ० १६,२१,२६,५१,५२,५४,१७२. जायरूव बंधण] [जातरूपबन्धन] ओ० १०६, रा०८,१६,२२५,२५४, २६२,७७१,८१५, ८१७. जी० ११:३३३८४,४१५,४४२,४५७, जायसवमय [जातरूपमय] रा० १३०,१६०, जी० ८३८।१,८६६,९१७ जिण [जि]-जिणाहि. ओ० ६८. रा० २८२. जायसंसय जातसंशय] ओ०८३ जी० ३।४४८ जायसड्ढ जातश्रद्ध] ओ० ८३ जिणपडिमा [जिनप्रतिमा ] रा० २२५,२५४ से जाया जाता] जी०३:२३५,२३९,२४१ २५८,२७,२६१,३०६ से ३०६,३१७ से जार [जार] रा० २४. जी० ३३२७७ ३२०,३४४ से ३४७. जी० ३१३८४,४१५ से जारापविभत्ति [जारकप्रविभक्ति] रा०६४ ४१६,४४२.४५७,४७१ से ४७४,४८२ से जारिसय यादृशक रा० ७७२ ४८५,५०६ से ५१२,६७६,८६६,६०८ जाल [जाल] ओ०१६,६३,६४. रा० १७,१८.. जिणमय [जिनमत ] जी० १११ जी० ३१८४,५९६ जिणवर [जिनवर] ओ० ४६. रा० २६२. जी० जालंतर जालान्तर] रा० १३७. जी० ३१३०७ ३।४५७ जालकडग [जालकटक] रा० १३४. जी० ३।३०४ जिणसकहा दे० जिण 'सकहा ] रा० २४०,२७६, जालकडय [जाल कटक] जी० ३।२६२ __ ३५१. जी० ३,४०२,४४२,५१६,१०२५ जालघरग | जालगृहक ] रा० १८२,१८३. जी० जिणिव [जिनेन्द्र ] रा० ४७ ३।२७५,२६४ जित [जित] जी० ३।४४८ जालपंजर | जालपञ्जर] रा० १३०. जी० ३१३०० जितिदिय [जितेन्द्रिय] रा०६८६ जालवंद जालवृन्द] जी० ३१५६४ जिभछिण्णग [जिह्वाछिन्नक] ओ०६० जालहरय जलिगृहक ] ओ०६ जिन्भिंदिय | जिह्वन्द्रिय] ओ० ३७ जाला | ज्वाला जी०११७८; १९८३१८५, जिमिय [निमित १० ६८५,७६५,८०२ ११८, ११६,५८६ जिय [जित ] ओ० ६८. रा० २८२,६८६. जी० जाव [यावत् । ओ०६०. रा० १ जी०१२३४ ३४४८ जावइय | यावत् ) जी० ३:१७६,१७८,१८०,१८२ जियकोह [जितक्रोध ओ० २५. रा० ६८६ जावं [यावत् ] जी. ३८४१ जियणिद्द [ जितनिद्र] ओ० २५. रा० ६८६ जावज्जीव यावज्जीव ओ०११७,१२१,१३६, जियपरीसह जितपरीषह] ओ० २५. रा. १६१,१६३ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० जियभय-जुत्तपालित जियभय [जितभय] 1० ८१७ जियमाण [जितमान ] ओ० २५. रा० ६८६ जियमाय [जितमाय ] ओ० २५. रा०६८६ जियलोभ {जितलोभ ] ओ० २५ जियलोह [जितलोभ] रा० ६८६ जियसत्तु [जितशत्रु] रा० ६७६,६८०,६८३ से ६८५,६६८ से ७००,७०२ जीमूत [जीमूत] जी० ३१२७८ जीमूतय [जीमूतक] रा०२५ जीय [जीत] ओ० ५२. रा० ११,१६,५६,६८७, जीवपएसिय जीवप्रदेशिक ओ० १६० जीवा [जीवा] रा० ७५६. जी० ३६५७७,६३१ बोधाजीवाभिगम [ जीवाजीवाभिगम] जी १:१,२ जीवाभिगम [जीवाभिगम] जी० ११२,६ से १०; ६७,८,२६३ जोविय [जीवित ] ओ० २३,२५. रा० ६८६,७५० से ७५३,७५६,७६२,७६७ जीविया [जीविका ओ०१४७. रा० ७१४,७७६, जीव [जीव] ओ० २७,७१ से ७३,७४।४,५,८४ से ८६,१२०,१३७,१३८,१६२,१८५ से १८८. रा० ६६८,७१६,७४८ से ७६४,७६८,७७० से ७७३,७८६,८१३,८१५. जी० ११०,११, १५ से ३३,५१ से ५४,५६,५६ से ६२,६४, ७४,७६,८२,८५ से ८७,६०,६३ से ६६,१०१, ११६,१२८,१३० से १३४,१४३,२।१,१५१ ३११,५३,५४,८७,११८,१२६,१२७,१२७७२, ५,१२६५,९,१५० से १६०,१८३,१६२,२१०, २११,५७५,५७६,७१६,७२०,७२४.७२७, ७८७,८०६,८१८,८२८,८५३,८५६,८५०, ६४६,९७४,६७५,१०८१,११२८,११३०, ११३८, ४११,२५, ५॥१,६०, ६।१,१२,७१, २३:८1१,५,६।१७ से ८,१५,१८,२१,२२, २८ से ३०,३६,३८,५६,६२,६३,६६,६७, ७५,८८,६५,१०१,१०६,११२,११३,१२१, १३१,१४१,१४७,१४८,१५६,१५८,१५६, १६७,१७०,१८१,१८२,१८५,१६६,१६७, २०८,२०६,२२०,२२१,२३२,२५५,२५६, २६७,२६३ जीवजीवग जीवंजीवक] ओ० ६. जी० ३१२७५ जीवंत [जीवत् ] रा० ७५४,७६२,७६३ जीवंतग [ जीवत्क] रा० ७६२ जीवघण [ जीवधन] ओ.० १८३,१८४,१६५।११ जीवदय [जीवदय] ओ० १६,२१,५४, रा०८ जीबोवलंभ [जीवोपलम्भ] रा० ७६८ बोहा जिह्वा] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी. ३४१५,५९६,५६७ ह [द्युति] ओ० ४७,७२,८६ से ६५,११४, ११७,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० १३,६५७ जुज [युज्}-जुजइ. ओ० १७५ झुंजमाण [युजान ] ओ० १७६,१७८ से १८० जुग युग] ओ० १६. जी० ३।५९६,८४१ जुगल [बुगल] रा०२३. जी. ३१५६७ जगव [युगपत् ] ओ०१८२ जगव युगवत् रा० १२,७५८,७५६. जी० ३३११८,११६ अग्य [सुग्य] ओ०१,७,८,१०,१००,१२३. जी० ३।२७६,५८१,५८५,६१७ जुझसज्ज [ युद्ध सज्ज ] रा० १७३,६८१ जुण्ण [जीणं ] रा० ७६०,७६१,७८२ जुण्णय [जीर्णक] रा० ७६१ जुति [द्युति] रा० १३,१२१,६५७. जी० ३.४४६, ४५७ जुत्त [युक्त ] हे० १५,१६,२३,५५,५७,५८,६२, ७०,७१.० १७,१८,२०,३२,६१,७०, १२६,२८५,२६२,६६४,६७२,६८१,६५२, ६६०,६६१,७०६, ७१४,७२४,८०६,८१०. जी० ३१२८८,३००,३७२,४५१,४५७,५६२, ५८६,५६२,५६६,५६७,३८३२ जुत्तपालित [युक्तपालिक] जी० ३१५६२ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुत्तपालिय-जोतिस जुतपालिय [ युक्तपालिक] रा० ६६४ नृतय [युक्तक ] रा० ७७६ जुत्तामेव [ युक्तमेव ] रा० ७०६ जुति [ युक्ति ] ओ० ६७ जुद्ध [ युद्ध ] ओ० १४६. रा० ८०६. जी० ३३६३१ जुद्धबुद्ध [ युद्धयुद्ध ] रा० ८०६ जुद्धसज्ज [ युद्धसज्ज ] ओ० ५७,६४. रा० ६८२, ६६१. जी० ३२८५. जुद्धा जुम्ह [ युष्मत् ] To & जुयल [भुगल ] ओ० १२,५७ १० १२, १७, १८, २०,३२,१२६,१३३,२८५.२६१, ७५८,७५६. जी० ३।११८,२८८, २६१,३००,३०३, ३७२, _४५१,४५९,५६७ जुयलग [ युगलक ] जी० ३१६३० जुवइ [ युवति] खो० १ [ युद्धातियुद्ध ] ओ० १४६ जुवराय [ युवराज ] रा० ६७४. जी० ३६०६ जुलिय [ युगलित ] ओ० ५,८,१०. २१० १४५. जी० ३१२६८,२७४ जूहिया मंडवय | यूथिकामण्डपक ] रा० १८५ जे [ ज्येष्ठ ] ओ० ८२. रा० ६७३, ६७५ जेट्ठामूल [जष्ठाभूल ओ० ११५ जेणामेव [ यत्रेव ] रा० ७५४. जी० ३१४४३ जोइ [ ज्योतिस् ] 1० ७५७,७६५, ७७२ जोभायण [ ज्योतिर्भाजन ] रा० ७६५ जोइस [ ज्योति, ज्योतिष ] ओ० ५०. रा० ५६. जी० ३१८३८१२ जुवाण [ युवन् ] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३।११८ जोणि [ योनि ] ओ० १६५ जूय [ द्यूत ] ओ० १४६. रा० ८०६ जूयय [ यूपक] जी० ३ ७२३ ज्या [ यूका ] जी० ३३७८६ जूद [ यूप ] जी० ३१५६७ जूवय | यूपक ] जी० ३६२६ जूवा [ यूका | जी० ३६२४ जूहिया | यूथिका ] 1० ३० जी० ३।२८३ जूहियागुम्म | यूथिका गुल्म ] जी० ३१५८० जूहिया मंडव | यूकामण्डपक] रा० १८४. जी० ३:२६६ जोइसामयण [ ज्योतिषायण ] ओ० ६७ जोइसिणी [ ज्योतिषी ] जी० २१७१,७२,१४८ जोइसिय [ ज्योतिष्क, ज्योतिषिक ] ओ० ५०,९४. रा० ११. जी० १११३५ २३१५, १८, ३६ से ४४,७१७२,६६, ३।२३०, ८३८।२१,६१७ जोईरस [ ज्योतीरस] २० १०, १२,१८, ६५, १६५, २७६ जोईरसमय [ ज्योतीरसमय ] रा० १३०,१६० जोता [ योजयित्वा ] ओ० ५६ जोग | योग ] ओ० ११७. रा० ८१५. जी० १ ३४, ६,१०१,११६,१२८, १३६; ३११२७, १६०, ७०३, ७२२, ५०६, ८२०, ८३०, ८३४,६३७, ८३८११०,३२ जोगनिरोह [ योगनिरोध ] ओ० १८२ जोडिलीया [ योगप्रति संलीनता ] ओ० ३६ जोगि [ योगिन् ] ओ० ६६ जोग्ग [ योग्य ] ओ० ६३. रा० ६, १२,४७ ६३१ [ योनिमुख ] जी० १२५८,७३,७८, ८१ जोणिया [ योनिका ] ओ० ७०. रा० ८०४ जोणिसंग्रह [ योनिसंग्रह ] जी० ३६१४७ जोसिल [ योनिशूल ] जी० ३।६२८ [ योनिमुख ] जी० ३३१६० से १६२, १६६ से १६६, १७१, १७४, ६६६, ६६८ जगह [ योनिसङ्ग्रह ] जी० ३ १६०, १६१, १६३ जोह [ ज्योत्स्न ] जी० ३१८३८१६, २० जोति [ ज्योतिस् ] रा० ७६५ जोतिभायण [ ज्योतिर्भाजन ] रा० ७६५ जोतिरस | ज्योतीरस ] जी० ३१७ जोतिरसमय [ ज्योतीरसमय ] जी० ३१२६४, ३०० जोतिस [ ज्योतिस् ज्योतिष ] जी० ३३८५८,८६१, Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ जोतिसराय-झय ५६४, ८६७, ८७०, ६२४, ६४२, ६५२, ४४५, ५६६, ५६८ से ५७०, ५७७, ६३२, १००१, १००२, १००६ ६३४, ६३८, ६३६, ६४२, ६४४,६५३,६५६, जोतिसराय [ज्योतीराज] जी० ३१२५७, २५८, ६६०, ६६१, ६६३, ६६६,६६८, ६७१,६७८, १०२३ से १०२६ ६७६ ६८२, ६८३, ६८६ से ६८६, ७०६, जोतिसविसय [ज्योति विषय ] जी० ३.१००६ ७१०, ७१४, ७२३ से ७२८, ७३२, ७३६, जोतिसिंद ज्योतिरिन्द्र, ज्यौतिपेन्द्र | जी० ३।२५७, ७३७, ७३६ से ७४२, ७४५, ७५०, ७५४, २५८, १०२३ से १०२६ ७५६, ७५८, ७६१, ७६२, ७६४ से ७३९, जोतिसिणी [ज्योतिषी] जी० २११४६ ७८० से ७६२, ७६४, ७६५, ७६८, ८०२, जोतिसिय [ज्योतिप्क, ज्योतिपिक ] जी० २१९५, ८१२ ८१४, ८१५, ८२३, ८२७, ८३२, ६६, १४८, १४६; ३१२५७, ५६०,७६३, ८३५, ८३८।२७, २८, ८३६, ८४२, ८४५, १०२५ ८५०, ८५२, ८८२,८८४, ९८५, ८८७, जोय | योग] ओ० ६४. रा० ५१, ७६६. ८८८, ८६१, ८६३ से ८६५, ८६७ से १०१, जी० ३७०३, ६।६६ ९०६, ६०७, ६१०, ११,६१८, ६४०,६४४, १६६ से १७१, १००१ से १००६, १०१० से जोय योजय् —जोइंसु. जी० ३७०३जोइस्सति.जी० ३७०३--जोएइ. ओ० ५६ १०१२, १०३८, १०६५ से १०७०, १०७३, जोएस्संति. जी० ३७०३ -जोयंति. ३७०३ १०७४, १०८७. १०५८ जोयणय [योजनक] जी० ३३२२६, ६६३ जोयण [ योजन] ओ० ७१, १७०, १६२, १६५. जोयणिय [योजनिक] ओ० १६२ रा०६, १०, १२, १४, १७, १८, ३६, ५२, जोवण | यौवन] ओ० ४७. रा०६६, ७०. ५६, ६१, ६५, १२४, १२६ से १२६, १३७, जा० ३१५६७ १७०, १८६, १८८, १८६, २०१, २०४ से जोव्वणय [यौवनक] रा० ८०६, ८१० २१२, २१८, २२१, २२२, २२४, २२६, जोह [योध] ओ० २३, ५२, ५५ से ५७,६२,६५. २२७, २३०, २३१, २३३, २३८ से २४०, रा० १७३, ६८१,६८७,६८८. जी. ३१२८५ २४२, २४४, २४६, २४७, २५१ से २५३, झ २६१, २६२, २६७, २७२,२७६, ७२७,७५३. झंझा (झञ्झा रा०७७ जी० ११७४, ८६. १०१, १११, ११६, १२३, झंझावाय [झञ्झावात ] जी० १८१ १३५; ३१५, १४ से २१, २५ से २७, ३३ से झड | दे० ] रा० ७८२ ३६, ३६ से ४३, ४७, ६० से ७२, ७७, ८० झय ध्वज] ओ० २,१२,५५, ५७, ६५. रा० २२, से ८२, ८६, १२६७, २१७, २१६ से २२७, १६७, १७३, १७८, २०२, २०४ से २०८, २३२, २५७, २६० से २६३, २७३, २६८, २१४, २२०, २२३, २२६, २३२, २३४, ३००, ३०७, ३१०, ३५१, ३५२, ३५४, २४१, २४८, २५०, २५८, २५६,२६१,२७६, ३५५, ३५८, ३५६, ३६१, ३६२, ३६४, २८१,६८१, ७१५. जी० ३।२८५, २६०, ३६५, ३६८ से ३७४, ३७६, ३७७, ३८०, ३४८, ३५६, ३६७ से ३७१, ३७५, ३७६, ३८१, ३८३, ३८५, ३८६, ३६२, ३६३, ३८२, ३६१, ३६४, ४०३, ४१२,४१६,४२०, ३६५, ४०० से ४०२, ४०४, ४०६, ४०८, ४२४, ४३०, ४३३, ४३६, ४४५,४४७.५८६ ४१२ से ४१४, ४२२, ४२५, ४२७, ४३७, ५६७, ६०४ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झल्लरी-ठियलेस सल्लरी झल्लरी] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. जी० ३१२८ से ३२, ७८,४४६, ६१८ झस | झप] ओ० १६. जी. ३१५९६ झाण [ध्यान ] ओ० ३८,४३, ४६ झाणकोट्ठोवगय [ध्यानकोष्ठोपगत ] ओ० ४५,८२ साम [दग्ध] जी० ३६६ झिाम [दह, ] झाभिज्जइ रा०७६७ ‘झिया [ध्य] --झियाइ रा० ७६५ --झियामि । रा० ७६५.---झियायसि रा० ७६५ झियायमाण [ध्यायत् ] रा० ७६५ झीण क्षीण ] ओ० ११६,११७. रा० ७७४ झीणोदग क्षीणोदक ] आ० ११७ मुसिय [ शुषित] जी० ३।११८,११६ झुसिर [शुषिर] जी० ३१८०,९६,४४७,५८८ झूसणा [जूषणा] ओ० ७७ सूसित्ता जुषित्वा] आ० १४० झूसिय [जुष्ट, शुषित ] ओ० ११७ ठाणपय स्थानपद] जी० ३३१०४८,१०५६ ठाणप्पय [स्थानपद] जी० ३१७७ ठाणमग्गण [स्थानमार्गण] जी० ११३४,३६,३६ ठि [ स्थिति] ओ० ८६ से ६५,११४,११७.१४०, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७,१७१. रा० ६६५.६६६. जी०१:१४,५२,५६,६०; २११५१; ३२१२७१५,१२६३५,१६०,६३१,१०४२ ठिइक्खय [स्थितिक्षय ] ओ० १४१ रा० ७६ ठिइय [स्थितिक | ओ० ७०. जी० ११३३ ठिइडिया [स्थितिपतिता] मो० १४४ ठिईय [स्थितिक] जी० ३१७२१ ठिच्चा [स्थित्वा] रा० ७३६ ठित [स्थित जी० ३।३०३,८४५ ठिति [स्थिति] रा० ७६८,८१५, जी० ११६५, ७४,८२,८७,८८,६६,१०३,१११,११२,११६, ११६,१२०,१२३ से १२५,१२८,१३३,१३६ से १३८२२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,७६ से ८१,८५,१०७ से १०६, १११ से ११४,११६,११८,१५०, ३।१२०, १५६,१६२,१६५,१८६,१६२,२१८,२३८, २४३.२४७,२५०,२५६,२५८,५६४,५६५, ६२६,१०२७,१०४२,१०४४,१०४६,१०४७, १०४६,१०५०,१०५२,१०५३,१०५५,११२६, ११३१, ४१३,५,६ ; ५।५,७,२१,२८, ६३२,५, ७; ७२,८; ८१२; ६२ ठितिपद [स्थितिपद] जी० ३.१९२ ठितिवडिया | स्थितिपतिता) रा० ८०२,८०३ ठितीय [स्थितिक] रा० १८६. जी० ३३३५०, ३५६,६३७,६५६,७००,७२४,७२७,७३८, ७६०,७६३,७६५,८०८,८१६.८२६,८४२, ८४५,८५४,८५७,८६३,८६६,८६६,८७२, ८७५,८७८,८८५,९२३,६२५ ठिय स्थित ) ओ० ४०. रा० १७,१८,१३०,१३३, ७०३. जी० ३।३०० ठियलेस [स्थितलेश्य] ओ० ५० टकारवग्ग [टकारवर्ग ] रा० ६७ ठिव स्थापय --ठवेइ रा०६८१-ठवेई रा०५६–ठवेंति ओ० ५२. रा०६८७ –ठवेति ओ० ६६. रा०६८३ ठवित्ता | स्थापयित्वा) रा० ७६१ ठविय स्थापित ) ओ० १३४ ठवेत्ता (स्थापयित्वा] ओ० ५२. र१० ५६ ठाण | स्थान] आ० १६.२१,४०,५४,७३,६५, ११७,१५५,१५६. रा० ८,७६,१७३,२६२, ६७५.७१४,७१६,७५१,७५३,७७१,७६६. जी० १११२४; ३२२८५,४५७,८४३,८४५, ८४६ आणदिइय [स्थानास्थतिक ] ओ० ३६ ठाणधर स्थानधर ओ० ४५ ठाणपद [स्थानपद] जी० ३।२३३,२३४,२४८, २५० से २५२,२५७,१०४५ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ डंड [ दण्ड ] T० ७५ १ संत [ दह्यमान ] जी० ३।४४७ डमर [ डमर ] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३१६२७ डमरकर [ डमरकर ] ओ० ६४ [ डिण्डिम ] रा० ७७. जी० ३८८ fsa [ डिम्ब ] ओ० १४. ० ६७१. जी०३१६२७ (ठ) टंक [ दे० ढङ्क ] जी० १ ११५ टिकुण [ दे० ] जी० ३६२४ (ण) [न] ओ० ४७. रा० ६. जी० ११८२ उत [ नयुत ] जी० ३१८४१ [नवति ] जो० ३।१००३ णउति | नवति ] जी० ३ १००४ 3 [ नवति ] जी० ३।२५७ उल [ नकुल ] जी० ११११२ उली | नकुली ] जी० २६ णं [ दे० ] ओ० १. रा० २. जी० १1१० गूलिय [ लाङ्गूलिक | जी० ३।२१६ गुलियो [लाङ्गूलिकद्वीप ] जी० ३।२२४ गंगोलिय [ लाङ्गूलिक ] जी० ३।२२० गंगोलियदीव [ लाङ्गूलिकद्वीप ] जी० ३।२२० वणवण [ नन्दनवन ] रा० २७६. जी० ३२४४५ गंदा [ नन्दक' ] ओ० ६८ गंदा | नन्दा ] रा० २३४, २८८, ३१३, ३७६, ४३५, ४६६,५५६,६१६. जी० ३१३६५. ३६६,४१२, ४२५,४३८,४५४,४७७, ४७८, ५१५, ५२३, _५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३,६८५, ६८६,६८८,१०१,६१०,६१४ से ६१६,६१६ दिघोस | नन्दिघोष | ओ० ६४. रा० १३५. १. नन्दति--समृद्धी भवतीति नन्दास्यामन्त्रमिदम्, इह च दीर्घत्वं प्राकृतत्वात् (वृ) | जी० ३।२८५, ३०५ दिजगण [ नन्दिजनन ] रा० ७५० दयावत [ नन्द्यावर्त ] ओ० ५१,६४. रा० २१, ४६. जी० ३१२८६, ५६४ इंड- गोहपरिमंडल विरुक् [ नन्दिक्ष] ओ० ६,१०. जी० ३१५८३ दवा [ नन्दिवना ] जी० ३।६१४ णं दिसेणा [नन्दिषेणा ] जी० ३।६१० दिस्सर [ नन्दिस्वर] रा० १३५. जी० ३१३०५ विस्तर [ नन्दीश्वर ] जी० ३१६४८, ६४६ दिस्सरवर | नन्दीश्वरवर ] जी० ३१८८० से ८८२,६१८,६२५ मंदिरसरोद [ नन्दीश्वरोद ] जी० ३३६२५६२७ दी | नन्दो ] जी० ३१७७५ it [ नन्दीमुख] ओ० ६ दुत्तरा | नन्दोतरा | जी० ३ ६१४,६१६ क्ख [ नख] ओ० १६. जी० ४१५,५६६ क्खत [ नक्षत्र | ओ० ५०, १४५, १६२. र० ८०% जी० ३७७५८०६, ८२०८३०, ८३४, ८३७,८४१,८४२, ८४५, ६३७, १०००, १००७,१०२०,१०२१,१०३७, १०३८ trafaमाण [ नक्षत्रविमान ] जी० २१४३, ३/१०१३,१०१८,१०३३ ख | नख ] जी० ३३५६७ नगर | नगर | ओ० ४६. जी० ३।६०६ जगरगुत्तिय नगरगुप्तिक ] श० ७५४,७५६, ७६२,७६४ नगरमाण [ नगरमान ] २० ८०६ नगररोग [ नगररोग ] जी० ३।६२८ गरी [ नगरी ] ० २०,५३. रा० ६७१,६८६, ६६२,७००,७०२,७०६,७०८,७१३, ७१६, ७५० जग्गभाव | नग्नभाव ] रा० ८१६ णग्गोह [ न्यग्रोध ] जी० १७२ जग्गोहपरिमंडल [ न्यग्रोधपरिमण्डल | जी० ११११६ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णच्वंत-णव मच्चंत [नृत्यत् ] ओ० ६४ णमिय [नमित] जी० ३।३८७,५६७ गच्चण [नर्तन] ओ० ४६ णमेत्ता [नमयित्वा] जी० ३।४५७ पट्ट [नाट्य ] ओ० १४६,१४८,१४६. णमो नमस् ] ओ० २१. रा० ८१७. जी० ३।६३१,१०२५ ___ जी० ३१४५७ गट्टग [नाट्यक ] ओ० १,२ गय [नत ] रा० २४५.६६४. जी० ३।४०७,५६२ गट्टगपेच्छा [नाट्यकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५ णयण नियन] ओ० १९,२१,४७,५४. रा०८. गट्टपेच्छा [नाट्यप्रेक्षा] जी० ३१६१६ ७१४. जी० ३।३८७,५६७ गट्टमाल [नृत्तमाल जी० ३।५८२ णयणकीयरासि [नयनकीकाराशि) ओ० १३ पट्टविधि [नाट्यविधि] जी० ३१४४७ णयणुप्पांडियग [उत्पाटितकनयन] ओ०६० गट्टविहि [नाट्यविधि | रा०७३,८१ से ६५,१०० गयर [नगर ओ० २८,२६,६८,८६ से ६३,९५, से १११,११३,११६,२८१. जी० ३।४४७ ६६,११५,११८,११६,१५५,१५८ से १६१, णट्टसम्ज [नाटयसज्ज] रा० ७६,१७६ १६३,१६८ णसाला नाटयशाला] रा० ७८१,७८३,७५६, णयरगुत्तिय [नगरगुप्तिक] ओ० ६०,६१ ७८७ णयरी [नगरी] ओ० २,१४,२० से २२,५२,५५, भट्टाणिय [नाटयानीक] रा० ४७,५६ ६० से ६२,६७,६८,७०. रा० १०,१३,६८७ ण नष्ट] रा० ६,१२. जी० ३३४४७ से ६८६,७००,७०३,७५०,७५३ णमेच्छा [नटप्रेक्षा] जी० ३१६१६ णर [नर ओ० १३,४६. रा० १२६,१७३,६८१, णतय [नप्तक] रा० ७५० से ७५३ ७५३. जी० ३१२८५,२८८,३११,३१८,३७२ त्यिभाव [नास्तिभाव] ओ० ७१ फरक नरक] जी० ३१७८ से ८१,८४ गदिमह [नदीमह] जी० ३६६१५ ण रकंठक [न रकण्ठक] जी० ३१३५५३ ण पुंसग [नपुंसक जी० १३१२८ ; २११ ; ३३१४८, जरग नरक ओ०७४।१,३. जी० ३११२,७७, १४६,१६४ ८५ से १७,१२७ णपुंसगवेय [नपुंसकवेद] जी० १०२५,१०१ णरपवर [नरप्रवर] ओ० १४ णपुंसगवेयम नपुंसकवेदक] जी० १८६ णरय नरक] ओ०७४. जी० ३७७,५५,११७ णम [नम्]-णमेइ. जी. ३१४५७ से ११६ णमंस [नमस्य }---अमंस इ. ओ० २१-णमसति. परवइ [नरपति ] ओ० १,२३,६३,६५ ओ० ४७. रा०६८७. जी. ३।४५७ णरक्सभ [नरवृषभ ओ० ६५ —णमंसति. रा० ८......णमंसह. रा०६ परसीह [नरसिंह] ओ०६५ -णभंसामो. ओ० ५२. रा०१० परिद [नरेन्द्र ] ओ० ६५ --मंसेज्जा . रा० ७७६ णलागणि [नलाग्नि ] जी० ३.११८ णमंसण [नमस्यन ओ० ५२ जलिण नलिन | रा० २३,१६७,२७६,९८८. णमंसमाण [नमस्यत् ] ओ० ४७,५२,६६,८३. जी० ३।११८,११६,२५६,२८६,२६१,८४१ रा०६०,६८७,६६२,७१६ पलिणी [नलिनी] ओ० १. रा० ७७७,७७८, णमंसित्तए [नमस्थितुम् ] ओ० १३६ णमंसित्ता निमस्यित्वा] ओ०२१. रा०८ णव [नवन् ] ओ० १४३. रा० ८०१. जी० ३४५७ जी० ११० ७८८ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ णव-जातिय णव नव] ओ० १,५,८,७१. रा०६१. जी० ३,२७४,५६७ णवंग नवाङ्ग] रा० ८०६,८१० णवण वमिया [नवनबकिका] ओ० २४ णवणीइयागुम्म नवनीतिकागुल्म] जी० ३३५८० णवणीत ( नवनीत | जी० २८४,२६७ णवणीय [नवनीत | ओ० १३,६२,६३. रा० ३१, ३७,१८५,२४५. जी० ३१४०७ णवनीय [नवनीत | जी० ३१३११ णवतय [नवत्वक् ] रा० ३७ णवमिया [नवमिका] जी० ३१६२१ गवय [नवक] रा० ७५६,७६१ णवरं | दे०] जी० ११५६ णवरि [दे०] जी० ११६६ गवविष [नवविध जी० ८१,५; ६।२२१,२३२ णह [नख ] ओ० ६२. रा० ८,१०,१२,१४,१८, ४६,७२,७४,११८,१५०,२७६,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४,७२३. जी० ३१५६७ गाइ [ज्ञाति ] ओ० १५०. रा० ७५१,७७४,८०२, णागद्दार [नागद्वार] जो० ३।८८५ णागधर [नागधर] ओ० ६६ णागपइ [नागपति] ओ० ४८ णागफड | नागस्फटा] ओ० ४८ णागमह नागमह] जो० ३३६१५ णागराय नागराज जी. ३७३४ से ७३६, ७४०,७४२,७४५,७४८ से ७५०,७८१,७८२ णागरुक्ख [ नागरूक्ष] जी० ११७१ णागलया [ नागलता] ओ० ११. जो० ३।५८४ गागलयामंडवग [ नागलतामण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ जागलयामंवय नागलतामण्डपक रा० १८५ णाङग नाटक] रा० ६८५ जाण [ज्ञान ओ० ४६,५४,१५३,१६५,१६६, १८१,१८,१६५१११. रा० २६२,६८६,७३३, ७३६,७४६,७७१,८१४. जी० ३।१५२,४५७, जाणत्त नानात्व] जी० ११११६; ३।१६१,१६५, २१८ णाणविणय ज्ञानविनय ] ओ० ४० माणसंपण्ण ज्ञान:म्पन्न ओ० २५ णाणा [नाना] ओ० ५०,६३,७०. रा० १६,२०, ३२,३७,४०,१३०,१३३,१३५.१३६,१३५, १७५,१६०,२४५,८०४. जी० ३१७८,२६४, २६५.२८६ से २८८,३००,३०२,३०५, ३०६,३११,३२२,३७२,४३५,६५४,१०७१, गाइय [नादित ] औ० ६,६७. रा० १३,५६,५८. जी० ३१२७५,२८६,४५७,५५७ णाऊण ज्ञात्वा] ओ० २३ णाग नाग] ओ० ६६,१२०,१६२. रा०६६८, ७५२,७७१,७८६. जी० ३।३३५,५६६,७३३, ८८५,६४४,६४५,६४७ जागरगह नागग्रह] जी० ३१६२८ भागदंत नामदन्त) रा० १३२,२४०. जी० ३।३०२,३१७,४०२ जागवंतग नागदन्तक] जी० ३।३०२,३१७,३२६, णाणावरणिज्ज जानावरणीय ] ओ० ४४ जाणाविह नानाविध] ओ०६ से ८,१०,४६,५५, १०७,१३०. रा० २४,३२,१२८,१३३,१५१, १५२,१७१,२८१. जी० ३।२७५,२७७,३०३, ३२४,३२५.३५३.४४७ जाणि | जानिन् | जी० ११८७,६६,११६,१३३, १३६, ३३१०४,१५२,११०७,११०८६।३०, णागदंतय नागदन्तक रा० १३२,१५३,२३५, २३६. जी० ३।३०२,३२६,३५५ णागदीव नागट्टीप] जी० ३१९४४,६४५ णातिय नादित रा० २६१ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाभि-णिग्गय णाभि नाभि | ओ० १६. जी० ३।४१५,५६६, णि उण [निपुण] ओ० १५,४६,६३. रा० १२,१७, ५६७ १८,७५८,७५६,८०८,८१०. जी० ३।११६, णाम [नामन् ] ओ० १४,१५,२०,४४,५२,५३,८२, ५८८,५६२,५६७ १४४,१७१,१६२,१६५५१६. रा०११,१७, जिओग निमोद | जी० ५१३३ १८,७६,८१,८३ से ६५,१०० से १११,११३, णिओत [निगोद जी० ५।१६ २८१,६६६ से ६७२,६७५,६८७,७१३,७५१, हिओद [निगोद] जी० ५२८ से ३०,३७,३८,४१ ८०२. जी. ११३१३,४,१२८,२१७,२१६ से ४३,५०,५२,५६ से २२३,२२५,२२७,२६०,३००,३५०,३५१, णिोदजीव [निगोदजीव ] जी० ५।३७,५३,५८ से ४०१,५६६,५६८,५६६,५७७,५८२,५८६ से ५६२,५६५,६३२ ६३८,६३६,७००,७०१, णिकरिय निकरित] ओ०१६ ७०४,७०८,७१०,७११,७३६,७४०,७४२, णिकाय निकाय] ओ० ४६ ७४५,७५०,७५४,७६१,७६२,७६५,७६६, णिकरंब [निकुरम्ब] ओ० ४. रा० १७०. ७६८ से ७७०,७७२,७७५ से ७७८,७६५, ___ जी० ३१५९६ ७६६,८००,८१०,८१४,८२१,८२५,८२६, णिक्कंकड निष्कङ्कट] जी० ३.२६१,२३६ ८४८,८५६,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, णिक्कंखिय | निष्काङ्क्षित] ओ० १२०,१६२. ८७४,८७७,८८०,६२५,६२७ स ६३२ रा०६६८,७५२,७८६ ६३८ से १४१,६४३,६४४,९७२,१०३६, मिक्खित्तउक्खित्तचरय निक्षिप्त उत्क्षिप्तचरक] ओ० ३४ णामक | नामाङ्क] ओ० ५० णि क्खित्तचरय [निक्षिप्तचरक ] ओ० ३४ मामधेज्ज [नामधेय ] ओ० १६,२१,५१,५४, णिक्खड [निष्कुट ] रा० १४ १४४,१६३. जी० ३१३५०,६६६,७०२,७६०, णिगर [निकर] रा० १३०. जी० ३१३००,५६०, ५६७ णामधेय [नामधय } ओ० ११७. रा० २६२. णिगरण निगरण] जी० ३१५८६ जी० ३१४५७ णि गरित निकरित जी० ३६५६७ णामय नामक रा०६६७. जी. ३१७७५ णिगलमालिया [ निगडमालिका ] जी० ३१५६३ णाय |ज्ञात ओ०२. रा०६८८ इणिगिण्ह [नि !-ग्रह --णिरिहाइ रा०६६३ णाय । ज्ञात, नाग ओ०२३ णिगोदजीव [ निगोदजीव जी० ५१५६ णायव ज्ञातव्य रा० १७२ णि वर्गथ (निम्रन्थ । ओ० २५,३३,७२,७६. णाराय [ नाराच जी० ३।११० रा०६६८,७४८ से ७५०,७५२,७८९ णारी नारी] जी० ३१२८५ णिग्गंथी [निन्थी] ओ० ७६ णालबद्ध नालबद्ध जी० ३।१७४ :णि गच्छ निर --गम् |-णिग्गच्छइ, रा० ६९. णालिएरिवण नालिकेरीवन जी० ३१५८१ जी० ३।४४३...णिगच्छति. ओ०५२. णालियाखेड नालिकाखेल ओ० १४६. २०६८७. जी० ३।४४५ रा० ८०६ णि ग्गच्छित्ता निर्गत्य] ओ० ५२. रा० ६८७. णासा (नासा ओ० १६,४७. जी०३:५६६,५१७ जी० ३।४४३ जासिया नासिका जी० ३१४१५ जिग्गय [निर्गत] ओ० ६३. रा० ७५४,७५५ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ जिगह [ निग्रह] ओ० २५ रिघात [ निर्धात ] जी० ३१६२६ णिधाय | निर्घात ] जी० ११७८ णिग्धायण [ निर्वातन ] ओ० २६ णिग्घोस [ निर्दोष ] ओ० ६७. रा० १३. जी० ३१४४६, ४५७ घिस [ निकष ] ओ० ८२ जिचय [ निचय ] ओ० २३. जी० ३।२८४ णिचिय [ निचित] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३:५६६ पिच्च [ नित्य ] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५, २०० जी० ३५६, ११६,२६८,२७२,२७४, ३५०,६३७,५०२,७२१, ७३८, ७६०, ७६३, ८०८८१६८२६,८३३,८३६,८३८१७, ८४०, ८५४,६२३ free मंडिया [ नित्यमण्डिता ] जी० ३।६९६ पिच्चालोय [ नित्यालोक ] जी० ३।१०७७ निबुज्जोय | नित्योद्योत ] जी० ३।१०७७ ffee | निश्छिद्र ] रा० ७५५,७७२ निच्छिण [ निच्छिन्न ] ओ० १९५५२१ जिज्जरण [ निर्जरण] ओ० ४६ णिज्जरा [ निर्जरा ] ओ० ७१,१६९, १७० / जिज्जा [ निर् + या ] --- णिज्जंतु. ओ० ६२. णिज्जा हिस्सा मि. ओ० ५५ पिज्जामा [निर्याणमार्ग | ओ० ७२. रा० ५६ णिज्जामय [ निर्यानिक ] ओ० ४६ निज्जास | निर्यास | जी० ३१५८६ गिज्जुत [ नियुक्त ] ओ० ४८, ४६,६४, रा० १७३, ६८१ णिज्जूह [ निर्यूह ] जी० ३५६४ णिज्जोय | वियोग | रा० ५४,६६,७० निठुर | निष्ठुर ] ओ० ४० विडाल [ ललाट ] ओ० १६. रा० १३३. जी० ३५६०, ११२२ णिडालपट्टिया ललाटपट्टिका ] रा० २५४. जी० ३३४१५ णिग्गह- नियाणमयग जिव्हग [ निह्नव] ओ० १६० √ णिद्दा [ति + द्रा ] - णिद्दा एज्ज. जी० ३।११८ fra [ स्निग्ध ] ओ० ४,१३,१६,४७. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२२,२७३,५८६, ५६६, ५६७, १०६८ णित [ निर्मात] ओ० १६.४७ गिद्धच्छाय | स्निग्धच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ fraोभास | स्निग्धावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३ जी० ३।२७३ षि [निधि ] जी० ३।६३७ frris [ निष्पक] ओ० १६४. जी० ३।२६१,२६६ free [ निर्भय ] ओ०४६ विभिज्जमाण | निर्भिद्यमान] जी० ३।२८३ णिभ | निभ | ओ० ६४. जी० ३.५६६ णिमरण | निमरत ] ओ० १६ जी० ३५६६ निमिसिय | निमिषित ] जी० ३।११८ णिम्मच्छ [निर्मत्स्य ] जी० ३१६६५ जिम्मल [ निर्मल ] ओ० १६,४७,१८३, १८४, १९४. जी० ३/२६१,२६६, २६६,३०० णिम्मा [नेमा ] रा० १६,१३० जिम्मा | निर्मात] ओ० ६३ णियइपव्यय [ नियतिपर्वत ] जी० ३।२६२ / नियंस | नि + वस् ] नियंसेइ. जी० ३।४५१ नियंसण ] निधन ] ओ०४६ नियंत्ता | निवस्त्र ] जी० ३।४५१ यिग [ निजक ] ओ० ७०, १५० रा० १३,७५१, ८०२,८११ नियत्य [ दे० ] रा० ६६, ७० नियम [नियम ] ओ० ३२. जी० ११५८,५६,७८, ६१,६६,१३३,१३६; ३।१०४,११०७ मिसा [नियमात् ] ओ० १६५:१० नियय | नियत ] रा० २०० जी० ३१५६,३५० जिया [नियता ] जी० ३१६६६ जिलबद्धग [ निगडबद्धग] ओ० ६० णियाणमय [ निदानमृतक ] ओ ९० Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरंतर-णिहि ६३६ णिरंतर [निरन्तर] ओ० १४. रा०६७१ ७५२,७८६ जी० ३.२५६,५६७ णिवुइकर [निर्वतिकर ] ग० २८८. जो० ३।३०२, णिरंतरित निरन्तरित जी० ३१३०० ३९८ णिरय निरय] ओ० ४६. जी. ३१११६ णितिकर [निर्वृतिकर] रा० ४०,१३२. णिरयावास निरयावान | जी० ३१२ ____ जी० ३१२८३, २८५.३८७ णिरयुद्देस निरयोद्देश ] जी० ३।१०८० णिन्वय [निर्वत | ओ०१ जिरवयव | निरवयव ] जी० ३ २५० णिन्वेयणी [निर्वेदनी] ओ० ४५ मिरवकख निरवकांक्ष| ०४६ । णिसंत | निशान्त ] रा० १५ हिरातंक निरालङ्क | जी० ३१५६८ णिसग्गरुड [निसर्गरुचि ] ओ० ४३ णिरावरण [निराबरण रा०८१४ णिसढ | निषध रा० २७६. जी० ३१७९५ णिरुवद्दव | निरुपद्रव] ओ० १ णिसग्ण [निषण्ण ] ओ० ६३. जी० ३१३८४ णिरुवलेव | निरुपलेष] ओ० १६. जी० ३१५६६ णिसम्म [निशम्य ] ओ० २१. ग० १६. णिरुवहत [निरुपहत] जी० ३।५६२ जी० ३,४४३ णिरुवय [निरुपह्त ] जी० ३६५६४ णिसह निषध ] जी० ३६४४५ णिरोह निरोध ओ० ३७ इणिसिर [नि--सृज]---णिसिरति. जी० ३१४४५ जिल्लेव [निर्लेप ] जी० ३।१६५ णिसीइत्ता | निषद्य) ओ० ५४ ‘णिवाड [नि- पात्] --णिवाडे. बी० ३।४५७ ।। णिसीद [नि--षद् ]-निसंदति. जी० ३६३५८ शिवाय (निपात ] ओ० १५० णिसीषिया (निपीधिका, नैधिकी] जी० ३१३०३. णिवाय (निवात] रा० १२३,७५५,७७२ ३०५,३०६,८५६ णिवायगंभीर [ निवातगम्भीर १० १२३,७५५, इणिसीय [ निषद् -णिनीएज्ज. ओ. १८० ७७२ -णिसीयइ. ओ० ५४--णिसीयंति. णिवृद्धि { निवृद्धि ) जी० ३१८४१ रा० ४८. जी० ३१२१७ इणिवेद नि । वे रय् ....णिवेदे . ओ० १६ ... णिसीहिया नियोधिका, नैषेधिकी रा० १३२ णिवेदेति, ओ० १७.--णियेदेमि, ओ० २० से १३४,१३६,१३७. जी. ३१३०१,३०२, णिध्वण निव्रण) ओ०१६. जी. ३१५६७ ३०४,३०७,३१५,३५५ णिवत्त निवृत्त ओ० १४४. ग० ८०२ णिस्संकिय नि:शङ्कित ) ओ० १२०,१६२. णिवत्त । निर--वर्तय ----णिवत्तेइ. रा० ७७२ रा०६९८,७५२,७५६ णिव्वत्तिय निर्वतित जी० ३१५६२ हिस्सा निश्रा जी०१:५८, ७३,७८,८१ णिध्दाघातिम | नियाधातिन् . निर्यापातिम णिस्सास [निःश्वाग] ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३.१०२२ णिस्सिय [नि मृत ] जी० १७८ णिज्वाधाय [नियाघात ओ० १५३,१६५, १६६. णिस्सेयस [निःश्रेयस् ग० २७५. जी० ३।४४१, रा० ८०४,८१४. जी० १८२ ४४२ णियाणमग | निर्वाणमार्ग अं.० ७२. रा० ८१४ णिहत !नित जी. ३.४४७ णिवादित निर्वाटिन नी० ३१८७८ णिहय निहत रा० ६,१२ णिव्यितिगिच्छनिविचिकिता रा० ६१८, णिहि निधि] जी० ३१७७५,८४१ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० णिहय-णोभव सिद्धिय णिय [ निभृत] ओ०४६ पणीण [णी | - गोणे इ. ओ० ५६ णोणेत्ता नीत्या | ओ० ५६ गोरय नीरजस्] ओ० १६४. रा० २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी ०३।२६१,२६६, २६६ गोल | नील ओ० ४७. रा० २४,२६,१३२,१५३, ६६४. जी० ३।३२६,५६२,५६५,५६६ णीलकणवीर | नीलकणवीर | रा० २६. जी० ३२७६ गोलग | नीलक] जी० ३।२७६ गोलपाणि नीलपाणि | रा०६६४. जी० ३५६२ णीलबंधुजीव नीलबन्धुजीव रा०२६. जी. ३२७६ णीललेस्स नीललेश्य जी० ६।१८७ मोललेस्सानीलले श्या | जी० ३१६६ णीलवंत नीलवत् ] रा० २७६. जी० ३ ५७७, उर [नूपुर] जी० ३१५६३ गंग [नक] रा० ७२७ णमि [नेमि ओ०६४. रा० १७३,६५१. जी. ३२८५ तम्व | नेतव्य ] जी० १२१८,६६६,८८६,१०४८ जयब्ध [नेतव्य ] जी० ११४०, ३१२६८,६६७,७६१ याउय [नर्यात्रिक ] ओ०७२ णेरइय [नैरयिक ] ओ० ४४,७१,७३,८७. जी. १११०,१२८,२०११८,१२६,१३४,१३५,१३८, १४४,१४५,१४८; ३।८६ से १२,६४,६७, १०४,११६,११८ से १२१,११३१ से ११३३, ११३६,११३८, ६४२,५,१०, ७७,८,१३,१४, २० से २३, ६।१५६,१५८,२०६,२१०, २१६,२२१,२२४,२२६,२२६,२३१ से २३४, २३६,२४१,२४२,२४७,२५० से २५२, २५४,२५५,२६७ से २६६,२७४,२७७,२७८, २८३,२८६ से २८८,२६३ मेरइयत्त [नैरयिकत्व] ओ० ७३. रा० ७५०, ७५१. जी० ३.११७,११३३ वच्छ [नेपथ्य] ओ०४६ वस्थ | नेपथ्य] ओ०७०. रा० ५३,५४,८०४ वत्यि [नेपथ्य ] मो० ५७ णेतिकर नितिकर] जी० ३१२६५ णेह (स्नेह } जी० ३१५८६ णो | नो| ओ० ३३. रा०२५. जी. श२५ गोअपज्जत्तग | नोअपयोप्तक) जी० ६६३ णोअपज्जत्तय [नोअपर्याप्तक | जी० ६६१ णोअपरित्त [नोअपरीत जी० ६८२ णोअभवसिद्धिय [ अभवसिद्धिक ] जी०६।११० से ११२ मोअसंजत | नोअसंयत जी० ६.१४५ णोअसंजय [नोअसंयत] जी० ६।१४१,१४७ णोअसणि नोअसं जन्] जी० ६।१०७ गोपज्जत्तम नोपर्याप्त का जी० ६६३ णोपरित्त नोरीत] जी० ६८२,८६,८७ मोभवसिद्धिय नोभवसिद्धिक] जी० ६।११० से गोलबंतहह | नीलवद्रह ] जी० ३३६५६,६६६ णीलासोग [नीलाशोक ] रा० २६ णीलासोय | नीलाशांक] जी० ३१२७६ गोली [ नीली ) रा० २६. जो० ३।२७६ गोलीगुलिया [ नीलीगुलिका | रा० २६. जी० ३१२७६ णोलीभेद नीलीभेद] रा० २६. जी० ३।२७६ णीलुप्पल [नीलोत्पल] ओ० १३. २० २६. जी० ३.२७६ णीव [नीप] ओ० ६,१०. जी० ३ ५८३ णीसास । नि:श्वास ] ओ० ११७. जी० ३.४५१ गोहारि निरिन् ] ओ० ७१. रा०६१ णीहारिम निटरिन् ] ओ० ७,८,१०. जी० ३२७६ णीहु [स्तिहु] जो० ११७३ णूम [नूनम् ! भो० १६६. रा० ७०३. जी. ३१९८३ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोमालिया-तच्च ६४१ ताउयभंड [अपुकभाण्ड] रा० ७७४ णोमालिया [नवमालिका] रा०३०. जी० ३१२८३ तउयभारग [त्रपुकभारक] रा० ७६०,७६१, जोमालियागुम्म [नवमालिकागुल्म] जी० ३।५८० ७७४ गोमालियामंडवग (नवमालिकामण्डपका तउयभारय [त्रपुकभारक] र ०७७४ १८४. जी० ३.२६६ तउयागर त्रिपुकाकर] जी० ३१११८ णोमालियामंडवय [नदमालिकामण्डपक ] रा० तए ।ततम् ] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३१४४० १८५ तओ [ततम् 7०११,५६,७०,८०२. णोसंजत | नोसंयत ] जो० ६.१४५ जी० ३।६८६ णोसंजतासंजत [नोसंयतासंयत जी० १४५ Vतंडव ताण्डवय् -- -तंडवेति. :०२८१. गोसंजय नोसंयत जी०६।१४१,१४७ जी० ३.४४७ णोसंजयासंजय | नोसंयतासंयत | जी० ६११४१, तंत नान्त] रा० ७६५ १४७ तंती [तन्त्री ओ०६८. रा० ७,७६,१७३. गोसणि [नोसंज्ञिन् ] जी० ६१०७ जी० ३।२८५,३५०,५६३,८४२,८४५, व्हाइत्ता [स्पनयित्वा] रा० २६१ १०२५ व्हाण (स्नान] ओ० १६१,१६३ तंतुमय तन्तुमय | जी० ३३५६५ पहाणपोढ स्नान पीठ] ओ० ६३ तंबुल ( तण्डुल | रा० १५०,२६१. जी० ३।३२३, व्हाणमंडव स्नानमण्डप] ओ० ६३ ४५७,५६२ व्हाणमल्लिया [स्नानमल्लिका] रा० ३०. तंदुलछिण्णग [तण्डुलछिन्नक] ओ०६० जी० ३१२८३ तंब [ताम्र ओ० १६,४७. जी. ३५५६६, व्हाय [स्नात] ओ० २०,५२,५३,७०. स०६८३, तंबच्छि [ताम्राक्षि] जी० ३१८६० ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०, तंबपाय [ताम्रपात्र ओ० १०५,१२८ ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४,७६४, तंवबंधण [ताम्रवन्धन ] ओ० १०६,१२६ ८०२,८०५ तंबागर [ताम्राकर] रा० ७७४. जो० ३।११८ हाय स्नपय]---हाएइ. रा० २६१ संबिय ताम्रिक] ओ० १०८,१३१ हारु [स्नायु] जी० १६५,१०५; ३।६२, तंबोलिमंडवग ताम्बूलीमण्डपक] स० १८४ १०६० तंबोलिमंडवय ताम्बूलीमण्डपक] रा० १८५ बिहाव [स्नपय-हावेति. जी. ३१४५७ तंबोलीमंडवग | ताम्धूत्रीमण्डपक] जी० ३।२६६ व्हावेत्ता [स्नपयित्वा ! जी० ३।४५७ तंस यस्र जी० ११५; ३१२२,७८,७६.५६४, १०७१,१०७५ त तत् ] ओ० १. रा० १. जी० १११ तकारवग्ग [तकारवर्ग) रा०६८ तइय तृतीय] ओ० १४४,१७४,१७६,१८२ तक्क [ तर्क | रा० ८१५ तउआगर [वपुकाकर रा० ७७४ तक्कर [तस्कर] ओ० १ तउय [पुक] रा० ७५४,७५६,७७४ तगर [तगर] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. तउयपाय [त्रकात्र] ओ० १०५,१२८ जी० ३.२८३,३३४,४१६ तउयबंधण [वयुकबाधन] ओ० १०६,१२६ तच्च [तृतीय] रा० १२,६५,७०२,७०३ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ तच्चसत्तराइंदिया-तरुणी तच्चसत्तराईदिया [तृतीयसप्तरात्रिदिवा] ओ०२४ तच्चा | तृतीया] जी० ११२५:२।१४८,१४६%; ३३२,४,६८,७४,६१,१२५,११११ तज्जण | तर्जन अं.० १६१,१६३ तज्जणा तर्जना ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ तज्जायसंसद्धचरय | तज्जातमंसृष्टचरक] ओ० ३४ तज्जोणिय [तद्योनिक | जी० ३।७२१,६१५ तड | तट] जी० ३।४४५ तडवडा | दे०] रा० २८. जी. ३२२८३ तण तु न | रा० ६,१२,१७१,१७३,७६७. सी०११६६; ३१२७७ से २८५,२६८,३६०, ५७८,६२२,६६० तणवणस्सइकाइय [तृणवनस्पतिकायिक] स० ७७१ तणु । तनु] ओ० १६. जी० ३१५६६ से ५६८ तणु य तिनुक) रा० १२७. जी० ३१२६१,३५२, ५६५.५६७,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६, ८५४,८८२ तणुयतर तिनुकतर ओ० १६२ तणुयरी | तनुतरी] ओ० १६३ तणु बात [तनुवात ] जी० ३.१३,१६,२१,२६, ३७,५०,६५,६७ तण वाय [तनुवात | जी० १८१; ३।३०,३८,४४, ४७ तणू तनू ] ओ० १६३ तण्हा तृष्णा] ओ० ११७,१६५।१८. ० ७२८, जी० ३.११८,११६ तत तत] रा० ११४,२८१. जो० ३१४४७,५८८ ततिय [तृतीय रा०८०२ ततिया [तृतीया] जी० ३१८८ तते [ततस् ] जी० ३:५५५ ततो [ततस् ] ओ० १४१. जी० ३.१०२३ तत्त [तप्त | ओ० १६,४७,५०. जी. ३१११८, ५६०,५६६ . तत्ततव [तस्ततपस् ] ओ० ८२ तत्तिय [तावत् ] रा० १३०. जी० ३।३०० तत्तो [ततस् ] जी० ३११२७ तत्य [तत्र ओ० १४. रा० ८. जी० ११११ तत्थ त्रस्त ] जी० ३.११६ तत्यगत [तत्रगत ] रा०८ तत्थगय | तत्रगत | ओ०२१,५४. रा० ७१४, ७६६ तदावरणिज्ज |तदावरणीय ओ० ११६,१५६ तदुभय [तदुभय] ओ० १५५,१६०. ___ जी० ३।१०६०,१०६१ तदुभयारिह । तदुभयाह ] ओ० ३६ तद्देवसिय [तद्देवतिक] ओ० १६,१७ तप्पढमया | तत्प्रथमता] ओ० ६४. रा०६६, २५. जी० ३१४५० तप्पभिइ [तत्प्रभृति । रा० ७६०,७६१ तमतमप्पभा [तमस्तम:प्रभा] जी० ३।४१ तमतमा [तमस्तमा] जी० ३।४ तमप्पभा [तमःप्रभा] जी० ३४१,४३,४४ तमा [तमा ] जी० ३।७८,८१,१०२,११५ तमाल |तमाल | ओ०६,१०. जी. ३।३८८, ५५३ तम्हा [तस्मात् ] रा० ७५० तय त्वच्] जी० ३१३११ तया [तदा] ओ० २१. रा० २६२ तया [त्वच्] ओ० ६४. रा० ७६१. जी० ११७१ तयामंत | त्वग्वत् ओ०५,८. जी० ३।२७४ तयासुह [वकसुख ] ओ०६३ तयाहार [वगाहार] ओ०६४ तिर |त--तरंति. ओ० ४६ तरंग तरङ्ग] ओ० १६,४६. रा० २४,८१. जो ३,२७७,५६६,५६७ तरमिल्लहायण [तरोमल्लिहायन] ओ० ६४ तरुण तरुण] ओ० ५,८,१६,६४. रा० १२,७५८ से ७६१. जी० ३.११८,११६,२७४,५९६,५६७ तरुणो [तरणी] रा० ७१०,७७४,८०४ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरुणीपडिकम्म-ताराख्व ६४३ तवोकम्म तपःकर्मन् ] ओ० २४,११६,१२० तस प्रस] ओ० ८७. जी० ११११,७५,८३,१३६, १३८,१४० से १४३; ५२१७. तसकाइय [सकायिक] श्री० ३१८३,१६४, १९७; १,४,६,१०,१६,१८ से २०१८२, तरुणीपडिकम्म [तरुणीप्रतिक मन् ] ओ० १४६. स० ८०६ तरुपक्खंदोलग [तरुपक्षान्दोलक] ओ०६० तरुपडियग [तरुपतिनक] ओ० ६० तल तल] ओ० १३,१६,६३,६४,६८,१६४. रा० ७,१२.५०,५२,५६,७६,७७,१३७,१७३, १७४,२३१,२४८,७५८,७५६,७७४. जी० ३।२८५,२८६,३०७,३५०,३६३,५६३, ५८८,५६६,६०४,६४२,८४५,१०२५ तलभंगय [तलभङ्गक ओ० ४७. रा० ३३५६३ तलवर [३०] ओ० १८,५२:६३. रा ० ६८७, ६८८,७०४,८५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३।६०६ तलाग [तडाग] ओ०१ तलागमह [तडागमह] जी० ३१६१५ तलाय [तडाग] ओ० ६६ तलिण [तलिन ] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ ।। तव तपस् ] ओ०२१ से २४,२६,३०,३८,४५, ४६,५२,८२,११७. रा०८,६,६८६,६८७, ६८६,७११,७१३,८१४,८१७. जी० ३REE तिवातप्]---तवंति. रा०२८१. जी० ३१४४७ --तविसु. जी० ३१७०३-तविस्सति. जी० ३७०३–तवेति. जी० ३१८४५ तवणिज्ज [तपनीय] ओ०१६,४७,५०. रा० ४०, १३०,१३२,१३७,१७४,१६१,२८८. जी० ३१२६५,२८६,३००,३०२,३०७,३१३, ३८७,३६७,५६०,५६६,६७२ तबणिज्जमय [तपनीयमय] स०१३०,१४६, २८५,२५४,२७०. जी० ३।३००,३०५,३०८, ३११,३२२,३३७,३६६,४०७,४१५,४३५, ६४३,६०४ तवणिज्जामय तपनीयमय रा० ३७ तवस्सि [तस्विन् ] ओ० २५ तवस्सिवेयावच्च [तर स्त्रियावृत्य] ओ० ४१ तवारिह [तोह ] ओ० ३६ तसकाय [प्रसकाय] जी० ३:१७४ तसिय [त्रासित ] जी० ३१११६ तह तथा ओ० ६६. रा० १०. जी० १।१४ तहप्पगार तथा:कार ओ० ४०,१०५,१०६, १२८,१२६,१४१,१६१,१६३. जी. १९६५, ७१ से ७३,७८,८१,८४,८८,८६,१००.१०३, १११,११२,११४ से ११६.११८,१२१ तहा तथा] ओ० १७७. रा० १०. जी०११४ तहारुव [तथारूप] ओ०५२,१५१. रा०६६७, ६८७,८१२ तहिं तत्र] ओ० ८६. रा० १७४. जो० ३।२६६ ताडना [ताडना] रा० ८१६ साडिज्जत [ताड्यमान] रा० ७७ ताण [श्राण] ओ० १६,२१,५४ तार [तार] रा०७६ तारग [तारक] जी० ३१८३८।११ तारम्ग [ताराग्र] जी० ३१६३८:२,२६ तारय तारक ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२, जी० ३।४५७ तारयाग [तारकाग्र] जी० ३१८३८२६ तारा [तारा] ओ० ५०,६३,६८,१९२. रा० २५४,२८२. जी० ३१४१५,४४८, ८३८.१,२१,३०,१०२०,१०३७ तारागण तारागण जी० ३१७०३,७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८॥३१,८५५, १००० तारापिंड (तारापिण्ड] जी० ३१८३८११ तारारुव तारारूप] रा० २०,१२४. जी० ३,२८८,८४१,८४२,८४५,६६८,१००३ से १००६,१०२० से १०२२,१०३७,१०३८ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ तारावलिपविभत्ति-तिय ४४५ तारावलिपविभत्ति [तारावलिप्रविभक्ति] रा ० ८५ तिगिन्छिदह [तिगिच्छिद्रह ] जी० ३१४४५ ताराविमाण [ तारा विमान] जी० २:१८,४४ तिगुण [त्रिगुण ] जी० २११५१३३१०१० से ३।१००६,१०१४,१०१६,१०३५ ताल [नाल] ओ० ६,१०,६८. रा०७,७६,७७, तिगुणिय [ त्रिगुणित] जी० ३१८३८१२४ १७३. जी० ११७२३।२८५,३५०,३८८, तिघरंतरिय [त्रिगृहान्तरिक] ओ० १५८ ५६३,५८८,८४२,८४५,१०२५ तिण [इदम् | रा० ७५१. जी. ३१२७८ Vताल ताडय) ---तालेज्जा. रा० ७५५ तिणिस [तिनिश] ओ० ६४. रा० १७३,६८१ तालण | ताडन ] ओ० १६१,१६३ तिण्ण [तीर्ण ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. तालणा [ताडना | ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३१४५७ तालायर [तालाचर] ओ०१ लित्त | तस्तओ० १६५।१८,१६.जी० ३११०६ तालिज्जत ताड्यान रा० ७७ तित तिक्त जी० १.५, ५०; ३।२२ तालियंत [तालवृन्त ओ० ६७ तित्थ [तीर्थ ] रा० १७४,२७६. जो० ३२८६, तालु [तालु] ओ० १६,४७. जी०३१५९६,५६७ तालुय तालुक] रा० २५४ जी० ३,४१५ तित्थगर [तीर्थकर ओ०१६,२१,५२,५४. रा०८, ताव [तावत् ] ओ० ७६. रा० ७५१. जी० २१८१ २९२. जी० ३,४५७ ताव [तापय –तावे इ. जी. ३१३२७ -ताति. तित्यगरसिद्ध तीर्थकरसिद्ध] जी० १८ रा० १५४ जी० ३१३२७–तावेति. रा० तित्थगराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ओ० २१,५४ १५४ जी० ३७४१ तित्थयर तीर्थकर ओ० ६९,७०. रा०८ तावइय [तावत् ] रा० १२६. जी० ३१३७३ तित्थयराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ] स० ८,६८ तावं [तावत् ] जी० ३१८४१ तित्यसिद्ध | तीर्थ सिद्ध] जी० ११८ तावक्खेत [तापक्षेत्र] जी० ३१८३८।१४,१५,८४२, तिस्थाभिसेय [तीर्थाभिषेक ] ओ०१८ तित्थोदग [तीर्थोदक] रा० २७६. जी. ३१४४५ तावतिय [तावत् ] रा० २१०,२१२ जो ३१३००, तिदंडय [त्रिदण्डक] ओ०११७ ३५४,६४७, ८८५ तिपडोगार [त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार] जी० तावस [तापस ] ओ०१४ ताविय [तापयित्वा | जी० ३:११८ तिपडोया [त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार जी० ताहे [तदा | जी० ३.८४३ ३१६३६ ६३८,६५० ति [त्रि] ओ० ७७. २१० ७. जी० १११७ तिप्पणयार | तेपन, तेवन | ओ० ४३ ति [इति ] रा० ७०३ तिभाग | त्रिभाग ओ० १९५४ से ६,८ जी० तिक्युत्तो त्रिम ] ओ० २१,४७,५२,५४,६६,७०,७८, ३३४ से ३६,४०,४१,४४,४६,७२५,७२८, ८०,८१,८३.रा०८ से १०,१२,से १४,५६,५८, ७२६,८७६ ६५,७३,७४,११८,१२०,२६२,६८७.६९२, तिमासपरियाय [त्रिमासपर्याय ] ओ० २३ ६६५,७००,७१६,७१८,७७८. जी. ३४५७ तिमिर तिमिर जी० ३१५८६ तिग त्रिक] ओ० १,५२ तिय [यिक] ओ० ५५. ० ६५४,६५५,६८७, तिगिच्छि [तिगिच्छि] रा० २७६ ७१२. जी. ३१५५४ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तियाह-तिसालग ६४५ तियाह {यहजी ३८६,११८,११६ तिल [तिल जी० ११७२; ३१६२१ तिरिक्ख { तिर्यच् ! जी० ११५१,१२३, २२५,६४, तिलकरयण [तिलकरत्न] जी० ३।३०७ १२२, ६३१ तिलग | तिलक] जी० ३१५६३,६३१ तिरिक्खजोणि तिर्यग्योनि ] मो०७४.१,३ जी० तिलगरयण तिलकरल] रा० १३०,१३७. जी० ३३०० २१२,३,६,१०,२१ से २४,४६,६८,६६, तिलपप्पडिया [तिलपर्पटिका] जी० ११७२१३ ७२,१४२,१४५.१४६,१४६,१५१ तिलय [तिलक] ओ० ६ से ११. रा० ६६,७०, तिरिक्खजोणिणी [ तिर्यग्यो निकी } ओ० ७१. जी० ११७२; ३१३८८ से १०,५८३,७७५।२ जी० ६.१,४,६,१२, ६२०६,२१२,२१८.२२२ तिलागणि तिलाग्नि जी० ३१११० तिरिक्खजोणिय लियंग्योनिक अं०७१,७३, तिवइ त्रिपदी] रा०२८१ १५१, जा० ११२१.१८,२५५६:२१.६१,६७, तिवति | त्रिपदी| जी० ३।४४७ १८,१०१ से १०३,११६,११७,११६,१२५, तिवलि ( त्रिवलि ] ओ० १५. रा० ६७२. २१७५,७६,८२,८३,८८,६६,६६,१०१ से १०५, जी० ३३५६७ १०७ से १११,११३,११,१२२,१८,१२६, . तिवासपरियाय [त्रिवर्षपर्याय ] ओ० २३ १३८,१३६,१३८,१४२,१४५.१४६,१४६,१५१; ३११,१२१,१३० से १४७,१५५, १५६,१६१ से तिविष त्रिविध] जी० २११०४,१०६,१५१ः ३१३८,१४८,१४६,१५३,१६४,२१५,८३६; १६३,१६६,११३२,११३४.११३७,११३८ ६१३,८,१० से १२; ७.१,५,६,१०,१५,१६,२० ५५७; ६११२ से २३; १५६,२०६,२११,२१७,२२०,२२१, तिविह [विविध] ओ० ३३,३७,६६,७०,७६. २२५,२२६,२३१,२३२,२३५,२३६,२४३, से रा० ७६. जी० ११०,१२,७५,९६,११७, २४५,२५०,२५१,२५३,२५५,२६७,२७०, ११६,१२६,१३३,१३६; २१ से ३,८,११, २७१,२७६,२८०,२८६,२८७,२८६,२६३ ७५ से ७७,६६,१५१, ३३७,७८,१३७, तिरिक्खजोणियत्त [ तिर्यग्योनिकल्व ] ओ० ७३. १६१:१०७१, ६२३,३२,६७,६९,७५,८८, जो० ३:११३४ ६५.१०१,१०६,१६४,२०२ तिरिय तर्यच आ० ४४,४६. रा० १०,१२,५६, तिब्व [तीन] ओ० ४,४६,६६. रा० १७०,७०३, १२६,१३२.२७ ६. जी० ११४५,७६८७,६६, ०६५. जी० ३१११०,२७३,६०८,६११ १०१,१३६; ३.१२६१२,२५७,३०२,३५१, तिब्वच्छायतीव्रच्छाय] ओ० ४. रा० १७०,७० ४४५,६३८,३०१,७१०,७९६,७४७,७६१,७६४, जी. ३१२७३ ७६८,७६६,८१४,८३८११२,६४०,६४४,१००६, लियोभास तीवावभास] ओ० ४. रा० १७०, ११११, ६।१५८ ७०३. जी० ३३२७३ तिरियक्खेवण तिर्यक्क्षेपण ] ओ० १८० तिसत्तक्खुत्तो [त्रिसप्तकृत्वस् ] ओ० १७०. तिरियलोय (तिर्यग्लोक ] जी० ३:२५६ जी० ३८६ तिरियवाय तिर्यमःत ] जी० ११८१ तिसर | त्रिसर] ओ० ५२,६३. रा० ६८७ से ६८६ तिरोड [किरीट ओ० ५१ तिसरय त्रिमरक] ओ०१०८,१३१ तिरुव त्रिरूप | जी० २।१५१ तिसालग त्रिशालक] जी० ३५९४ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ तिहा [ त्रिधा ] रा० ७६४,७६५ तिहि [ तिथि ] ओ० १४५. २० ८०५ तीर [ तीर] ६१० ० १७४. जी० ३ ११८,११६,२८६, तीस [त्रिशत् ] ओ० १६२. जी० ३।१२ तीतिवह [ शिद्विध | जी० २ १३ तीसविध [ त्रिशद्विध ] जी० ३।२२८ तु [तु] जी० ३८३८५ तुंग [ तुङ्ग ] ओ० १६, ४६, ४७, ६४. २०५२, ५६, १३७, २३१,२४७. जी० ३।३०७, ३६३, ५६६, ५६७ तुंड [ तुण्ड ] जी० ३।१११ बीणपेच्छा [ तुम्बीणाप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ तुंबवीणा [तुम्बवीणा ] रा० ७७ ववीणिय [ तुम्ववीणिक | ओ० १,२ तुंबवीणियपेच्छा [तुम्बवीणिकप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ तुंबा [तुम्बा ] जी० ३।२५८ तुच्छतराय [तुच्छत रक] रा० ७६५ तुच्छत्त [ तुच्छत्व ] रा० ७६२,७६३ तुट्ट [तुष्ट ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ६८,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७, २७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६६३, ६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६, ७७४,७७८. जी० ३ । ४४३, ४४५, ४४७, ५५५ यि [ त्रुटित | ओ० २१,४७,५४,६३,७२, १०८, १३१. T० ८,६६,७०,२८५,७१४. जी० ३१४५१,४५७,५६३ तुडिय | तूर्य | ओ० ६७,६८. रा० ७,१३,३२,२०६, २११,६५७. जी० ३३३५०, ३७२, ४४६, ५६३, ६४६,८४२,८४५ तुडिय [ दे० | जी० ३१८४१ तुडिय [ तुटिक ] ' जी० ३।१०२३ से १०२५ १. आर चूर्णिकृत् - तुटिकमन्तपुरमुपदिश्यते' [वृत्ति पत्र ३८४ ] | तिहा- तुसार डियंग [ दे० ] जी० ३१५८८,८४१ तुडिया [ त्रुटिता ] जी० ३१२५४, २५८ √ तुट्ट [ त्वग् + वृत् ] - तुयट्टति रा० १८५. जी० ३।२१७ – तुयगृह. रा० ७५३. तुट्टेज्ज ओ० १८० गुण [त्वग्वर्तन ] ओ० ४० सुरक्क [तुरुष्क ] ओ० २,५५ तुरग [तुरंग ] ओ० १,१३, १४,६४. रा० १७, १८, २०,३२,३७,१२६,१७३,६८१. जी० ३३२८५, २८८,३००,३११,३७२,५६६ सुरय [तुरंग] रा० ६८३,६८५,६६२,७०८,७१०, ७१६,७३१ सुरित [वरित ] जी० ३१८६ रिय [ ] जी० ३।४४६ सुरिय [ त्वरित ] ओ० २१,४६, ५४. रा० ८, १०, १२,१५,५६,२७६,७१४. जी० ३।१७६,१७८, १८०, १८२,४४५, ६८६ रियति [ त्वरितगति ] जी० ३६८६ सुरुक्क | तुरुष्क ] रा० ६, १२,३२,१३२,२३६,२८१, २२. जी० ३१३०२, ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ तुल [ सोलय् ] - तुलेमि. रा० ७६२ तुला [तुला ] रा० ७४८५ से ७५०, ७७३ तुलिय [तुलित ] रा० ७६२,७६३ तुलेत्ता [ तोलयित्वा ] रा० ७६२ तुल्ल [ तुल्य ] ओ० १६. जी० १११४३; २६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।७३ से ७५,५६६.६६८, ६६६, १०३७, ११३८ ४८१६ से २३,२५; ५११६,२०, २६, २७, ३२ से ३६,५२,५६,६८ ७ २०,२२,२३, ६१७, १४, ५५, १६६, १८१,२०८, २५० से २५३,२५५, २८६ से २६३ तुल्लत्त [ तुल्यत्व ] जी० ३१६६६ तुवर [तूबर ] जी० ३/४४५,४४६,४४८ तुलागणि [तुपारित ] जी० ३३११८ सुसार [तुवार ] ओ० १६४. जी० ३ ११६ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुसारकूड-तोरण तुसारकूड [ तुषारकूट ] जी० ३।११६ तुसारपडल | तुषारपटल ] जी० ३।११६ तुसारपुंज [ तुषारपुञ्ज ] जी० ३।११६ तुसिणीय [ तुष्णीक ] रा० ६४,७०१,७६२ तू [तु] रा० ७७ सूणइल्ल [ तूणावत् ] ओ० १,२ तूणहरुलपेच्छा [तृणावत्प्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३३६१६ तूयर [ तूबर] रा० २७६,२८० तुल [तुल ] ओ० १३. रा० ३७,१८५,२४५. जी ३२७, ३११,४०७ तुली [ तुली ] रा० २४५. जी० ३०४०७ इंदिय [त्रीन्द्रिय ] जी० ११८३,८८, ६० २ १०१ १०३,११२, १२१,१३६, १३६, १४६, १४६; ३११३०,१६८; ४१, ४, १३, १८ से २१,२४, २५; ८ ११,३,५, ६।१,३,५,६,१६६, २२३,२३१, २५६,२६४,२६६ ते [तेजस्] जी० १३१२८,१३३; २/१३०; ५८ ९ १६४, २५७ ders | तेजस्कायिक ] जी० ५२६, २६; १८२,१८४,२५६,२६२,२६६ तेक्काइय [ तेजस्कायिक ] जी० १२७५,७६,७६, ८०; २३१००,१३६,१३८, १४६, १४६ ५४१,१३ १८,२०,८१,५ उलेस्स [तेजोलेश्य ] जी०९।१८५,१६६,१६६ तेउलेस्सा [तेजोलेश्या ] जी० ३।११०१ तेंदिय [त्रीन्द्रिय ] जी० ११६७, २२१,२२६,२५६ तेंदु [तिन्दुक ] जी० १।७२ तेजससमुग्धाय [ तैजससमुद्वात] जी० ३ । १११२, १११३ तेणानुबंधि [ स्तेनानुबन्धिन् ] ओ० ४३ तेणामेव [ तत्रैव]] रा० ७५४ जी० ३३४४३ तेणिस [निस ] जी० ३।२८५ तेतलि [तेजस्सलिन, तेतलिन् ] जो ३।६३१ तेत्तीस [ त्रयत्रिशत् ] ओ० १६७. जी० १/६६ तेत्तीस [ त्रयस्त्रिश ] रा० १६४ मासि [ त्रैमासिक ] ओ० ३२ मासिया [ त्रैमासिकी] ओ० २४ तेय [तेजस्] ओ० २२, ४७, ५७, ६५, ७१,७२, १८२. रा० ६१,१३३, ७२३, ७७७,७७८, ७८८,८१३. जी० ३१३०३,५८६,११२२ तेयंसि [तेजस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ तेय [तेजस ] जी० १७६ तेयगसरोरि [ तैजसशरीरिन् ] जी० ६।१७०, १७४ तथ्य [ तेजस ] जी० १ १५,५६,६४,७४,७६,८२, ८५,६३,१०१,११६,१२८,१३५ ६४७ तैया [ तैजस | जी० ३।१२६ ६ ६ १८१ तेयासमुग्धात [ तैजसन मुद्धात ] जी० ३।१११३ तेयासमुग्धाय [तेजसममुद्धात ] जी० ३ । १५७ तेयाहिय [त्र्याहिक ] जी० ३१६२८ तेर [ त्रयोदशन् ] जी० ३१२६६३५ तेरस [ त्रयोदशन् ] ओ० १५५. रा० १८८. जी० ३३४ तेरासिय [ त्रैराशिक ] मो० १६० तेल्ल [तेल ] ओ० ६३, ६२, ६३. रा० १६१,२५८, २७६. जी० ३।३३४, ४१९, ४४५, तेल्लग [ तैलक ] जी० ३१५८६ तेल्लापूय [ तैलापूप] ओ० १७०. जी० २।२६० तेल्लापूव [ तैलापूर ] जी० ३१८६ तेवण्ण [ त्रिपञ्चाशत् ] जी० १।१११ date [ त्रयोविंशति ] जी० ३।७३६ तोण | तुण] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३.२८५ तोमर [ तोमर ] ओ० ६४. जी० ३ ११० तोमरग [ तोमराय ] जी० ३३८५ तो [तोय ] ओ० २७ तोयपट्ट [ तोयपृष्ठ ] ओ० ४६ तोरण [ तोरण] ओ० १,२,५५,६४. रा० २० से २३,३२,१३८ से १६१,१७३, १७६,२०२,२३४, २७७,२८१,२८८, ३१२, ४७३, ६४५, ६५५,६८१ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्ति-धेरवेयावच्च ६४८ जी० ३१२८५,२८८ से २६१,३१५ से ३३४, ३५५,३६३,३७२,३६६,४२५,५४३,४४७, ४५४,४७७,५३२,५५४,५५६,५७६,५६७, ६०४,६४१,६६६,६८४,८५७,६०१ त्ति [इति ] रा०६ थंभ [ स्तम्भ] रा० २० थंभणया | स्तम्भन } ओ० १०३,१२६ थंभिय स्तम्भित ] ओ० २१,४७,५४,६३,७२. रा० ८. जी० ३.४५७ ।। थिक्कार [दे०] - थक्कारेंति. रा० २८१. जी० ३१४४७ थण स्तन ] ओ० १५. जी० ३४५६७ थणिय [स्तनित] ओ० ४८,७१. स० ६१ थणियकुमार [स्तनितकुमार] जी० २०१६ थणियकुमारी | स्तनितकुमारी] जी० २।३७ थणिय सद्द [स्तनित शब्द ] जी० ३१८४१ थलचर [स्थलचर जी० २।१२२ थलज [स्थलज] जी० ३।१७१ थलय [स्थलज] रा० ६,१२ थलयर स्थलचर] ओ० १५६. जी० ११६७,१०२ से १०४,११२,११७,१२०,१२४, २१६,२३, २४,६६,७२,७६,६६,१०४,५१३,१३६,१३८, १४६,१४६; ३.१३७,१४१ से १४४,१६१ से पालिपाग [स्थालीपाक] जी० ३।६१४ याली [स्थाली ] जी० ३१७८ पावर [स्थावर जी० ११११,१२,७४,१३७,१३६, १४१,१४३ यावरकाय [ स्थावरकाय ] जी० ३।१७४ थासग [स्थासक] ओ०६४ थिबुग [स्तिबुक] जी० ११६४,६५ थिभुग स्तिबुक ] जी० ३६५६ विभुय [स्थिबुक ] जी० ३.६४३ थिमिओदय [दे० स्तिमितोदक ] अ० १११ से ११३,१३७,१३८ थिमिय [दे० स्तिमित ] ओ०१. रा० १,७५, ६६८,६६६,६७६,६७७ पिर [स्थिर} ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. जी० ३१११८,५६६,१०६८ पिल्लि [दे०] ओ० १००,१२३. जी० ३।५८१, ५८५,६१७ बीड [दे०] जी० ११७३ पिक्कार [थूत्कारय - थुक्कारेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ शुभ स्तूिप] जी० ३१४१२,५६७,६०४ यूभमह [स्तूपमह ] रा०६६८, जी० ३.६१५ पभाभिमुह | स्तूपाभिमुख ] रा० २२५. जी० ३।३८४,८६६ थूभियग्ग [स्तूपिकाग्र] ओ० १६२ यूभियाग (स्तूपिकाक] रा० ३२,१२६,१३०, १३७,२१०,२१२. जी० ३१३००,३०७,३५४, ३७२,३७३,६४७,८८५ थूभियाय [स्तुपिकाक] जी० ३।३०० थूल [स्थूल ] ओ० ७७ थूलय [स्थूलक | ओ० ११७,१२१. रा० ७६६ थेज्ज [स्थैर्य ] रा० ७५० से ७५३ पेर स्थविर | ओ० २५,४०,१५१. रा० ६८७, ८१२. जी० १.१; ३११ थेरवेयावच्च [स्थविरवैयावृत्य] ओ० ४१ २५.८९६ थलचरी [स्थलचरी] जी० २।३,५,५१,६६,७२, १४६,१४६ थवइय [स्तवकित] ओ०५,८,१०. रा० १४५. जी० ३२६८,२७४ थाम [स्थामन् ] ओ० २७ थारुइणिया [थारुकिनिका ओ०७०, रा. ८०४ थाल स्थाल ] रा० १५०,२५८,२७६. जी० ३६३२३,३५५,४१६,४४५,५८७,५६७ थालइ [स्थालकिन् । ओ०६४ थालिपाक | स्थालीपाक] जी० ३१६१४ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोव-दगपासायय ६४६ थोव [स्त क] ओ० २८,१७१. जी० ११४३; दत [बंधण] [दन्तबन्धन] ओ० १०६,१२६ २०६८ से ७३,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ दंतमाल [दन्तमाल] जी० ३,५८२ से १४६; ३।५६७.९४१,१०३७,११३८; दंतवेदणा [दन्तवेदना] जी० ३।६२८ ४.१६ से २३,२५: ५।१५ से २०,२५ से २७, दंतुक्खलिय दन्तोलूखलिक] ओ० ६४ ३१ से ३६,५२,५६,६०; ६.१२, ७।२०,२२, वंस दिश] ओ० ८६,११७. ०७६६. जी० २३ ; ८1५, ६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से २६, ३१६२४,६३१२३ ३५,३७,५५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००, सण [दर्शन] ओ० १५.१६ से २१,४६,५१ से १०८,११२,१२०,१३०,१४०,१४७,१५५, ५४,६४,१४३,१५३,१६५,१६६,१८३,१८४. १५८,१६६,१६६,१८१,१८४,१६६,२०८, रा० ८,५०,७०,१३३,२६२,६८६,६८७.६८६, २२०,२३१,२५० से २५३,२५५,२६६,२८६ ७१३,७३८,७६८,७७१,८१४. जी० १११४, से २६३ १६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६, ३।३०३, थोवतरक [स्तोकनरक ] जी० ३११०१,११४ ४५७,११२२ थोवतरग [स्तोकत रक] जी० ३।६६,११३ दसणविणय [ दर्शनविनय ] ओ० ४० सणसंपण्ण [दर्शनसम्पन्न ] औ० २५. रा० ६८६ संसणोवलंभ [दर्शनोपलम्भ] रा० ७६८ वओभास [दकावभास] जी० ३।७३५,७४०,७४१, दक्ख [दक्ष ओ० ६३. रा० १२,७५८,७५६, दंड [दण्ड | ओ० १२,६४,१७४. स० १०,१२,१८, ७६५,७६६,७७०. जी० ३।११८ २२,५१,६५,१५६,१६०,२५६,२७६,२६२, दक्षिण [दक्षिण ] जी० ३१५६०,५६६,६३६,६७३, ६६४,६७५,७५५,७६०,७६१,७६७,७६८, ७४०,७४१ ७७६,७७७. जी० ३।११७,२६०,३३२,३३३, दक्षिणकूलग [दक्षिणकूलग] ओ० ६४ ४१७,४४५,४५७,५६२,५८६ दक्षिणपच्चत्यिम [दक्षिणाश्चात्य ] जी० ३१६५७ वंडणायक दण्डनायक ! ओ०१८ दक्षिणपुरत्यिम [दक्षिणपीरस्त्य] जी० ३।६८६ दंडणायग [दण्डनायक] रा० ७५४,७५६,७६२, दक्खिणिल्ल [दाक्षिणात्य ] जी० ३।४८६ ७६४ दंडणीइ [ दण्डनीति | रा० ७६७ वग [दक ] रा० १२. जी० ३१७४१ दंडनायग [ दण्डनायक] ओ० ६३ वगएक्कारसम [ दकैकादश ] ओ० ६३ दगकलसग [दककलशक] रा० १२ दंडपाणि दण्डपाणि रा० ६६४ वंडय | दण्डक] रा० ७५५ दगकुंभग [दककुम्भक] रा० १२ दगतइय (दकतृतीय ] औ० ६३ दंडलक्षण [दण्डलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ दंडसंपुच्छणी दि० दण्डसंपुच्छणी, दण्डसम्पुसनी] दगथालग दकस्थालक] रा० १२ दगधारा [दकधारा रा० २६३ से २६६,३००, रा० १२ दंडि | दण्डिन् । ओ० ६४ ३०५,३१२.३५१,३५५,५६४. जी० ३।४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१७,५२०,५४७, दंत । दन्त | ओ० १६.२५,४७,६४. रा०२५४, ७६०,७६१. जी० ३१४१५,५९६ दगपासायग [दकप्रासादक ] रा. १८०. जी० दंत [दान्त ] ओ० १६४ ३।२६२ दंत [पाग] [दन्तपात्र] ओ० १०५,१२८ दगपासायय [दकप्रासादक ] रा० १८१ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० afar [ द्वितीय] ओ० ६३ गमंच [दकमञ्चक ] रा० १८० जी० ३३२६२ वगमंचय [ दकमञ्चक ] रा० १८१ मंडय [दकमण्डप ] रा० १८१ दगमंडव [दकमण्डप ] रा० १५० दगमंडवग] [ दकगण्डपक] जी० ३।२६२ गमट्टिया [ मृत्तिका ] ओ० १४६. रा० ८०६ वगमालग [ दकमालक ] रा० १८० जी० ३।२६२ गमालय [दकमालक ] रा० १८१ aree | दरजस् ] ओ० १६,४६,४७, १६४. ० ३८,१६०,२२२,२५६. जी० ३।२६२,३१२, ३३३,३८१, ४१७,५७६,५६७,८९४ गवार [दकवार ] जी० ३।११६ crates [ दकवारक ] जी० ३।५८७ दगवारग [ दकवारक ] रा० १२ दत्तम [दकसप्तम] ०६३ arसीम [ दकसीम ] जी० ३२७३५,७४५ से ७४७ दच्चा [ दत्वा ] रा० ६६७ द [ दग्ध ] ओ० १८४ [ दृढ] ओ० १,१४२, १४४. रा० १२,७५८, ७५६,८००, ८०२. जी० ३।११८ ढपण [ दृढप्रतिज्ञ ] ओ० १४४ से १५०, १५४. रा० ८०२, ८०५ से ८११,८१६ ढपतिरण [ दृढप्रतिज्ञ ] रा०८०४ ढरहा [ दृढरथा ] जी० ३।२५४ दढाउ | दृढायुष्] जी० ३।११७ age | दे० दर्दर ] ओ० २,५२, ५५. रा० ३२, १५६, २७६,२८१,२८५. जी० ३ ३३२,३७२,४४५, ४४७, ४५१,५६४ वहग [ दे० दर्दरक ] रा० ७७. बी० ३।५८७ दर [ दे० दर्दरक ] ० २८१. जी० ३०७८, ४४७ हरिगा | दे० दर्दरिका ] रा० ७७ ददुर [ दर्दर ] ओ० ५१. जी० ३।१०३८ af [दधि ] जी० ३१५६७ दर्गावइय दलइत्ता घण [नि ] रा० १३०. जी० ३१३०० [दधिमुख ] जी० ३६११,९१२ दधिवासु मंडव [दधिवासुका मण्डपक] जी० ३।२६६ पण [ दर्पण ] ओ० १२,१६. रा० २१,४६,२६१. जी० ३२८६, ३४७,५६६ पण | दर्पणक | ओ० ६४ दप्पणिज्ज [ दर्शनीय | ओ० ६३. जी० ३:६०२, ८६०,८६६,८७२, ८७८ दब्भसंधारण | दर्भसंस्तारक ] रा० ७६६ दमणा [ दमनक ] रा० ३०. जी० ३।२८२ दमिला [ द्रविडा, मिला ] रा० ८०४ दमिली | द्रविडा, द्रमिला ] ओ० ७० वयपत्त [ दयाप्रप्त ] ओ० १४. २० ६७१ दरदरजस् ] रा० २६ दरिमह [म] रा० ६८८ दरिय] [ दृप्त | ओ० ६. जी० ३१२७५ दरिस [ दर्शन] रा० ८०३ दरिसणावरणिज्ज [ दर्शनावरणीय] ओ० ४४ दरिसणिज्ज | दर्शनीय | ओ० १,५,७,८,१० से १३ १५.४६,६४,७२,१६४. २०१७ से २३,३२,३४ ३६ से ३८,५०,१२४,१३०, १३१,१३६, १३७, १४५, १५७,१७४, १७५, २२८, २३१,२३३, २४५,२४७, २४६, ६६८, ६७०, ६७२,६७६, ७००,७०२ जी० ३१८४,२३२,२६१,२६६. २६६,२७८,२७६,२८६ से २८८,२६०,३००, ३०३,३०६, ३०७,३११,३८७,३१३,४०७, ४१०, ५८१,५८४,५८५,५६६, ५१७,६३९, ६७२, ८३६८५७,८६३,११२१,११२२ दरणीय | दर्शनीय | रा० १ दरी [ दरी | जी० ३१६२३ दल | दल ] जी० ३२८२,५६७ दलहत्ता | दत्वा ] ओ० २१. रा० २६३. जी० ३।४५८ १. प्राप्त करुणागुण: [ वृ] दयाप्राप्तः स्वभावत: शुद्धजीवद्रव्यत्वात् । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दलय-दार दलय [दलक] रा० २६ दहित्ता [दग्ध्वा ] जी० ३१५१६ दिलय [दा] --दलइस्संति. ओ० १४७. रा० दहिवण [दधिपर्ण ] ओ० ६,१०. जी० ३१३८८ ८०८–दल मामि. रा० ७८७ -- दल एज्जा. दहिवासुयमंडवम [दधिवासुकामंडपक] रा० १८४ रा० ७७६.---दलयइ. ओ० २१. रा० २६३ दहिवासुयमंडवय [दधिवासुकाभण्डवक] रा. १८५ जी० ३१५१५.-दलयंति, रा०२८१. जी० दादा]--दिज्जइ २.० ७८४.- देह रा० ७६६ ३.४४७.-दल यति. जी० ३१४५८ दाइय [दायिक] ओ० २३. रा ० ६६५ दलयित्ता दत्वा ] रा० २६३ दाऊण [दत्वा] रा० २६२. जी० ३।४५७ दवकर द्रवकर] ओ० ६४ दाडिम [दाडिम] ओ० ६,१०. जी० ११७२; दवम्गि [दवाग्नि] जी० २०६८; ३:११८,११६ ३॥५६६,५६७ दयग्गिवड्डम दवाग्निदग्धक] ओ० ६० वाण [दान] ओ० २३. रा० ६६५ दवप्पिय [द्रवप्रिय ] ओ० ४६ दाणधम्म [दानधर्म ] ओ० ६८ वस्व [द्रव्य ] ओ० २८,४६,६६,७०. रा० ७७८. दातु [दातृ ] ओ० ११७ जी० ११३३, ३३२२,२३,२७,४५,५०६,५९२; दाम | दामन् ] रा० २८,३२,४०,५१,६७,१३०, श५१ १३२,१३७,१४०,१५८, २३५,२५५,२६५, दवओ [द्रव्यतस् ] ओ० २८. जी. ११३३ २८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, दवट्ठ [ द्रव्यार्थ ] जी० ५१५२,५६,६० ३५५,६८३,६६२,७००,७१६. जी० ३१२८१, दव्वट्ठया [ द्रव्यार्थ] रा० १६६. जी० ३१५८,६७, ३००,३०२,३१३,३३१,३३८,३५५,३५६, २७१,७२४,७२७.१०८१ ३६७,४१२,६३४,८६२ दश्वविउसग [द्रव्यव्युत्सर्ग] ओ० ४४ दामिणि [दामिनी] जी० ३३५६७ दवभिग्गहचरय द्रव्याभिग्रहच रक] ओ० ३४ वामिल [द्राविडजी० ३।५६५ दम्बीकर [दर्वी कर] जी० १११०६,१०७ दार [द्वार ओ० १,१६२. १० १२६ से १३८, दन्दोमोदरिया [ द्रव्यावमोदरिका] ओ० ३३ १६२ से १६६.२१० से २१२,२१५,२७७, दस दशन्। ओ० ४७. रा० ८. जी. ११७४ २८३,२८६.२८८,२६१,२६४ से २९६,३०१ से दसण [दशन] जी० ३५९७ ३०४,३२२ से ३२४,३२७ से ३२६,३३१ से दसणुप्पडियग [उत्पाटितकदशन] ओ०६० ३३४,३३६,३३७,३३६,३४१,३४२,३५१,३५७, दसदसमिका | दशदशकिका) ओ० २४ ३६४,३९५,४१४,४१६,४५३,४५४,४७४, दसद्ध [दशार्ध] रा० ६. जी० ३१४५७ ४७७,५१४,५१५,५३४,६३७,५७४,५७५, दसमभत्त (दशमभक्त ) ओ० ३२ ५६४,५६७,६३४,६३५.६५४,६५५,६५७. जी. दसविष [दशविध ] जी० ६।१,२५६ २२६६ से ३०७,३१५,३३५,३३६,३४६ से दसविह [दशविध ओ० ३६,४१. जी० ११४,१०; ३५१,३५४ से ३५७,३७३,३७४,४१२,४२१, २।१६, ३१२३१६८,२६७,२६३ ४४३,४४५,४४६,४५२,४५४,४५७,४५६ से दह [द्रह) रा० २७९. जी० ३१४४५,६३६,६४०, ४६१,४६३,४६४,४६६,४६८,४६६,४७५, ६६६,७७५,६३७ ४७६,४८७ से ४८६,४६१ से ४६४,४६६ से वहमह द्रहमह जो० ३३६१५ ४६६,५०१,५०२,५०४,५०६,५०७,५१६, दहि दधि] ओ०६२,६३ ५१७,५२२,५२४ से ५२६,५२८,५३०,५३१, दहियण [दधिधन] रा० २६. जी० ३१२८२ ५३३,५३६,५३८ से ५४०,५४३,५४५ से Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दारग-दित्ततेय १०० ५४७,५५०,५५२ से ५५४,५५७,५६३,५६६, दाहिणपच्चस्थिम | दक्षिणाश्चात्य रा० ४३, ५६८ से ५७०,५६४,६४७,६७३.६७४,७०७ ६६२. जी० ३।२२४,३४३,५६०,७५२ से ७११,७१३,७१४,७६६ से ८०२,८१३ से दाहिणपच्चथिमिल्ल [दक्षिणपाश्चात्य जी० ८१५,८२४ से ८२७,६५१,८५२,८८५ से ३।२२०,६६४,६९५,६१८,६२१ ८८८,६३६,६४०,६४४,६५५ दाहिणपुरथिम [दक्षिणपौरस्त्य | रा० ४३,६६०, दारग [दारक] ओ० १४२,१४४ से १४७, रा० जी० ३६४१,५६०,७५१ ८००,८०२,८०४ से २१० दाहिणपुरस्थिमिल्ल | दक्षिणपौरस्त्य | रा०५६ दारचेडा [द्वारचेटा] र१० १३०,२६४,२६६.२६८ जी० ३१२१६,२२३,६६२,६६३,६१८,९२० २६६ जी० ३३०० दाहिणवाय | दक्षिणवात ] जी० १८१ दारचेडी ! द्वारचेटी] जी० ३४५६,४६१ दाहिणहत्य दक्षिणहस्त ओ०६६ दारय दारक] ओ० १४३,१४४,१४८, से १५० दाहिणिल्ल दाक्षिणात्य ०४८,५७,२६४ से रा० १२,८०१,८०२,८०६,८११ ३०५,३०६ से ३१२,३२०,३२१,३२५,३३४, जी० ३।११८,११६ ३३६,३१,३५७,४१६,४७७,५३७,५६७. दारुइज्जपव्यय [दाहकीयपर्वत | रा० १८१ जी० ६१३३,३८,२१७,२१६ से २२३,२२५, दारुइज्जपव्ययय [दारुकीयपर्वतक] रा० १८० २३४,२४४,२५०,२५३,४५६ से ४७०,४७४ दारुपब्वयग | दारुपर्वतक] जी० ३१२६२ से ४७७,४६५,४६०,४६५,४६६,४,५०६, दारुपाय [दारुपात्र] ओ० १०५,१२८ ५२२,५२,५३६,५४३,५५०,६३२,६३६, दारुय दारुक] आ०६४ ६६६,६-३,६६३,६६४,६१४ । दारुयाग [ दारुकक] जी० ३।२.५ दिलैंतिय दान्तिक १० ११७,२८१. दारुयाय [दारुकक) रा०१७३,६०१ जी० ३३८४७ दालिम | दाडिम ओ०१६ दिदुलाभियाटलाभिक | ओ० ३४ दास दास] ओ० १४,१४१. स० ६७१,७७४, दिट्टि दृष्टि रा० ७४८ से ७५०,७७३. ___७६६. जी० ३।६१०,६३ ११२ जी० ११४,६६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६ दासी । दासी | ओ० १४,१४१. रा०६७१,७७४, ३११२,१६० दिहिय दृष्टिक रा० ७६५ दिद्विवायष्टिादरा० ७४२ दाह [दाह ] रा० ७६५. जी० २।१४०,३१११८, दिणयर दिनक ओ० २२. रा० ७२३,७७७, ११६,६२८ ११७८,७८. जी० ३१६३८१२,१३,२६ दाहिण | दक्षिण ओ० २१,५४. रा०८,१६,४०, दिण्ण दत्त | ओ० २,१७,५५,१११ से ११३, ४३,४४,६६,१२४,१३२,१७०,१७३,२१०, १३७,१३८. रा० १५,३२,२८१,७८७,७८८. २१२, २३५,२३६,२६२,६६१,६६४. जी० जी० ३४८७ ३।२१७,२१६ से २२१,२६५,२८५.३४२, दित्त | दृप्त, शप्न ! ओ० १४,१४१. रा० ६७१, ३४५,३५८,३७३,३६७,३६८,८५७,१.६९५६६, ६७५,७६६ ५६७,५६६,५७७,६४७,६६८,६५२,५८६ दित्त ] दीप्त ओ०६३,६५ जी० ३।६३८१२६ ६६२,६६५,६६६,७११,८५२,८८५,६०२, दित्ततव दीप्तनपम् । ओ० ८२ १०१५,१०३६ दित्ततेय दीप्ततेजस् ] ओ०२७. रा० ८१३ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन्न दोवि दिन्न [ दस ] जी० ३३७२ विष्यंत [ दीप्यमान | ओ० ६३. रा० १३३. जी० ३।३०३, ५८६, ५६०,११२२ दिप्पमाण | दीप्यमान | ओ० ६५. जी० ३:५६१ विवड [द्वधं द्वयपार्ध ! जी० २०७३ ३१२३८, २४३ दिवस | दिवस | ०१४४. रा० ८०२. जी० ३६३८३१८,८४१ fror [ for ] ओ० २,४७,६४, ७२. रा० ७,६ १०,१२,१७ से १६,२४,३२,४५ से ५०,५६,५७० ६३,६५,७३,७६,७८ से ६५,१०० से ११३. ११८ से १२०,१२२,१७३,२०६, २११,२७६, २८१,२८५,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२. ३५१,३५५,५६४,६६७,७५३, ७६७. जी० ३।८६,१७६.१७८, १८०, १८२, २८५, ३५०,३७२,४४५,४४६, ४५१, ४५७ से ४६२, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५५४, ५६३,६४६,८४२,८४५,१०२४,१०२५, faar | दिव्याक ] जी० १११०८ दिसा | दिशा | ओ० ४७,७२, ७६ से ८१. रा० २६४,६८८. जी० ३।३६,७५२, ७५३, १०१८,१०१६,१०२१ दिसाकुमार | दिशाकुमार] ओ०४ विसादाह | दिशादाह | जी० ३१६२६ दिसापक्खि | दिशाप्रोक्षिन् । ओ० ९४ दिसासोत्थिय [ दिशा स्वस्तिक ] ओ० १६ दिसासोत्थिय | दिशासीवस्तिक ] रा० १४६. जी ० ३ ३१६,५६६ दिसासोबत्यियासण | दिशाचैवस्तिकासन ] रा० १८१.१८३,१०५. जी० ३।२६३, २६५, २६७,८५७ दिसि | दिग्] ० १६,४४,६१,१२०,१७०,१७५, २०२,२१०,२१२,२२४, २३४,६६४,६६४, ६९७,७१७, ३७७, ७८७. जी० ११४६,५६, ८२,८७,६६,१०१, ३।३४,३५,२८७,३५८, ३६३,३७३,३८३,३६६,६४७, ६६६,६७३, ६७४,६८४, ७२३, ८८२,८८५८८८८६५, ६१०, ६१४ से ६१६,६१६ से ९२२ दिसिव्यय [ दिग्व्रत ] ओ० ७७ बिसीभाग [ दिग्भाग ] रा० १०,१२,१८,५६,६५, २७६,६७०. जी० ३।४४५ विसीभाव [ दिग्भाग ] ओ० २. रा० २,६७८ दोणारमालिया [ दीणारमालिका ] जी० ३१५६३ ata [ द्वीप ] ओ० १६,२१,४८,५४, १७० रा० ७, १०,१२,१३,१५,५६,१२४,२७६,६६८. जी० ३१८६,२१७, २१६ से २२३, २२५ से २२७,२५७,२५६,२६०,२६६.३००,३५१, ४४५,५६६,५६८ से ५७७,६३८, ६६०,६६८, ७०१ से ७०४,७०८,७११, ७१५ से ७१६, ७२३,७३६,७३६,७४०,७४२, ७४५, ७५०, ७५४,७५५,७६०,७६२,७६४ से ७६६,७६८ से ७८०,७६५ से ५००, ८०२ से ८०४, ५०६, ८० से ८१०,८१४,८१६,८१७,८२१ से ८२५,८२७,८२६ से ८३१,८३८१२३,२६, ८४८,८५१,८५६,८५७,८५६,८६२,८६३, ८६५,८६८,८६६,८७१, ८७४, ८७५,८७७, ८८० से ८८२,६१८,६२५, ६२७ से ६३५, ६३७ से ६४०, ६४३, ६४५, ६५० से ६५४, ७२ से ६७५,१००१, १००७, १०२२, १०३६, १०८०,११११ ६५३ दीव [दीप ] रा० ७७२ star [ द्वीप ] जी० ३७७० दीवचंपग [ दीपम्प ] रा० ७७२ दीवचंपय [ दीवचम्पक] रा० ७७२ दीवणिज्ज [दोपनीय] जी० ३२६०२,८६०,८६६, ८७२, ८७८ दीवसिहा | दीपशिखा ] जी० ३१५८६ दीवाण [डीयन ] ओ० ६६ affron [ द्वीप ] जी० ३१७८० दीबिग [ द्वीपिक] जी० ३६२० Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ दीविय-दुय दीविय [द्वीपिक] रा० २४. जी० ३।८४,२७७ दुधण [द्रुधण] स० १२,७५८,७५६. दीविया [दीपिका] जी० ३.५८६ जी० ३।११८ दीविल्लग ! द्वीपग] जी० ३१७७५ दुघरंतरिय द्विगृहान्नरिक ओ० १५८ दोह [दीर्घ ] ओ० १४,१६,२८,११६,११७, दुच्चिण्ण [दुश्चीर्ण | ओ०७१ १६५।४. २०१६०,२५६,६७१.७६५,७७४. दुट्टा दुष्ट ] ओ० ४६ जी० ३१३३३,४१७,५६६,५६७ दुत द्रुत ] जी० ३,४४७ दोहासण | दीर्घासन] रा० १८१,१८३. दुतविलंबित [द्रुतविलम्बित | जी० ३१४४७ जी० ३।२६३ दुद्ध [ दुग्ध ] जी० ३१५६२ दोहिया [ दीपिका ओ० १,६,९६. रा० १७४, बुद्धजाति [दुग्ध जाति ] जी० ३१५८६ १७५,१८०. जी० ३।२७५,२८६ दुरिस [दुर्धर्ष ] ओ० २७. रा० ८१३ दीहोकर | दीर्थी--कृ–दोहोकरेज्जा. दुपडोयार द्विप्रत्यावतार, द्विपदावतार ओ० ५२. जी० ३१६६७ रा०६८७ दोहोकरित्तए | पीकतुभ् | जी० ३।६६४ से ६१७ दुपय [ द्विपद ] रा० ७०३,७१८ दु [द्वि] रा० ४७. जी० ११९ दुपाय [द्विपक] जी० ३१११८,११६ बुंदुभिस्सर [दुन्दुभिस्वर] ओ० ७१. रा० ६१ दुप्पय [द्विपद | रा० ६७१ बुंदुहिणिग्धोस । दुन्दुभिनिर्घोष ] ओ०६७. दुप्पवेस | दुष्प्रवेश] बो०१ रा० १३,१३५. जी० ३।४४६,५५७ दुफास [दुःस्पर्श जी० ३९८१ दुदुहिनिग्धोस [ दुन्दुभिनिर्घोष] रा० ६५७. दुफासत्त [दुःस्पर्शत्व] जी० ३।६८७ जी० ३१५५७ दुब्बल दुर्बल] ओ० १४. रा० ६७१,७६०,७६१. दुंदुहिस्सर [ दुन्दुभिस्वर | रा० १३५. ___ जी० ३।११८,११६ लो० ३१३०५ दुब्बलय [दुर्बलक] रा० ७६१ दुंदुही [दुन्दुभी ] रा० ७७ दुभिक्स [ दुक्षि ओ० १४. रा० ६७१ दुक्ख [दुःख ] ओ० २६,४६,७२,७४११,४,५, दुभिक्खभत्त (दुर्भिक्षभक्त | ओ० १३४ १५४,१६५,१६६,१७७,१८१,१६५२१. दुम्भिखमयग [ दुर्भिक्षमृतक] ओ०६० रा० ७७१,७६५,८१६. जो० १११३३; दुब्भिगंध [दुर्गन्ध रा० ६,१२. जी० ११५,३६, ३७,५०, ३१२२,६२२,६७६,६८५ ३१११०; १२६७,८,८३८॥१३ दुभिगंधत्त ! दुर्गन्धत्व] पी० ३१९८५ दुक्खुत्तो दिम् | जी० ३१७३०,७३१ दुन्भिसद्द दुःशब्द] जी० ३।६७७,९८३ दुखुर द्विध्रुर जी० १।१०३ बुब्भसहत्त [दुःशब्दत्य | जी० ३१९६३ दुगुण द्विगुण जी० ३।२५६ बुब्भूय दुर्भूत जी० ३१६२८ दुगुणित द्विगुणित) जी० ३३५६७ दभागपत्तोमोवरिय द्विभाग प्राप्तावमोदरिका दुगुणिय द्विगुणित] जी. ३८३४।२४ ओ० ३३ दुगुल्ल दुकूल] रा० ३७,२४५. जी० ३१३११, दुम [द्रुभ] रा० १३६. जी. ३१३०६,५८२,५८६ ४०७,५६५ से ५६५,६०४ दुग्ग दुर्ग स० ७६५. जी० ३।११० दुमासपरियाय हिमाऽपर्याय] ओ० २३ दुग्गंध दुर्गन्ध रा० ७५३ दुय द्रुत रा० १०२,९८१ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुविलंबिय-देव दुयविलंब [ द्रुतविलम्बित ] रा० ६१,१०४, २८ १ बुयाह | द्वयह ] जी० ३३८६, ११८, ११६, १७६, १७८, १८०,१५२ दुरंत [ दुरन्त ] रा० ७७४ दुरभि [ दुरभि ] जी० ३१८४ दुरस ] दूरस] जी० ३६८० दुरहियास | दुरध्यास, दुरधिसह ] २० ७६५. जो० ३।११०,१११,११७ √ दुरुह [ आ + रुह ] - दुरुह इ. रा० ६८५--- दुरुहंति रा० ४८. दुरुहति. रा० ४७-दुरुहेति रा० ६८३ दुरुहिता [ आरुह्य ] रा० ४७ दुरुता [ आरुह्य ] रा० ६८३ दुरूढ ( आरूढ | ओ० ६३,६४, ० १३,४६ दुरूव [ दुरूप ] जी० ३६७८,६८४ √ दुरूह [ आ + रुह ] -- दुरूति जो० ७० दुहिता [ आरुह्य ] ओ० ७० दुहिताणं [ आरुह्य ] ओ० १०१ दुल्लभ [ दुर्लभ ] रा० ७५० से ७५३ दुल्लभबोहिय | दुर्लभबोधिक ] १० ६२ दुध [ द्वि ] जी० ३।२५१ दुवारवयण ( द्वावदन] रा० ७५५,७७२ दुवालस [ द्वादशन् | ओ० ३३. जी० ३।३३ बालसंग | द्वादशान् । ० २६ दुवालसहि [ द्वादशविध | रा० ५२७७७८. जी० १६६ वासपरियाय विपर्याय] ओ० २३ विष | द्विविध | जी० ३।१३६, १४०, १४१,१६३, ११२२, ६ १३७ दुहि [ विविध ] ओ० ३२,४०,७४. १० ७४१ से ७४५. जी० १ २, ३, ५ से ७, १०, ११, १३.१४, ५७,५८,६३,६५ से ६८,७०,७६,८०,८१,८४, ८,८६,६२,६४,१६,६७,१०० से १०४, १०६,१११,११,११६,११८ से २२,१२६, ६५५ १२६,१३३,१३५,१३६, १४३, २५, ७, १६ ३:७८,७६,८१,८२,६१, १३, १२७१५, १३२ से १३५,१३८, १३६.१४२ से १४६, २१२,२२६, ६७७ से १८१,१०२२,१०७१ से १०७४, १०८७,१०९१,१११०, ११२१ ४ २ ५२ से ४,३७ से ४०, ५३ से ५५; ६८, ६, ११, १५,१६,१८,२१,२२,२४,२८ से ३१,३६, ३८,३९,४२,४४,४६,५६,५८,६२,६३,६५, ६६,६८,७६,७९,८१,१२५,१३३,१५१, १७४ gror [दुवर्ण ] जी० ३५६७ हओ [ द्वितस्, द्वय ] रा० ६६,७०,१३१ से १३८, २४५, ७५५,७७२. जी० ३।३०१ से ३०३, ३०५ से ३०७,३१५,३५५,४०७,५७७ ओखा [ द्वितः खहा ] रा० ८४ दुहओचक्कवाल [ द्वितश्चक्रवाल ] रा० ८४ दुहतो द्वितस्, द्वय ] रा० १२३. जी० ३।३०४ दुहा ( द्विधा ] रा० ७६४,७६५. जी० ३८३१ इज्जत [दूगमाण ] ओ० ४६ दूइज्माण | दूयमाण ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ दूय [दूत ] ओ०१८,६३. रा० ७५४,७५६, ७६२, ७६४ दूर [दुर] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३११०३८ दूरंगइय [ दुरंगतिक ] ओ० ७२ तरसत्त [ दूरतत्व ] जी० ३२६८६ वराहड [दूराहृत ] रा० ७७४ { गुरूदत्त दुरूपत्व | जी० ३१६८४ दूस [ दुव्य ! ओ० ५६. जी० ३।६०८ दूसरवण | दृष्यरत्न ] ओ० ६३ देव [देव] ओ० ४४, ४७ से ५१,६८,७१,७३,७४, से ६५,११४,११७,१२०,१४०,१४१, १२५,१५७ से १६०, १६२, १६७, १७०, १६५:१३,१४, रा० ७,६ से १६,२४,३२,४१ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ देवउक्कलिया-देवत्त से ४४,४६ से ४६,५४ से ६५,६८,६६,७१ देवउक्कलिया [देवोत्कलिका जी०३१४४७ से ७४, ११८ से १२०,१२२.१२४,१२६, देवउल | देवकुल ] रा० १२ १८५ से १८७,२४०,२४६.२६६,२६८,२७०, देवकज्ज [देवकार्य ] जी० ३।६१७ २७४ से २६१,६५४ से ६६७,६६८,७५२,७५३, देवकम्म [देवकर्मन् ] जी० ३।१२६६,८४० ७७१,७८६,७९७ से ७६६.८१५. जी० ११५१, देवकहकह [देवकहकर] जो० ३।४४३ ५४,५६,६१,६५,८२,८७,६१,१०१,११६, देवकहकहग | देवकहकहक रा० २८१ १२३,१२८,१३५,१३६; २१२,१५ से १६ देवकिबिसिय | देवकिल्विपिक ! ओ० १५५ ३५ से ३:३६ से ४७,६२,६७,६८,७१,७२, देवकिदिबसियत्त | देवकिल्विषिकत्व ओ० १५५ ७५,७८,८१,६० से ६३,६५,६६,१४४,१४५, देवकुमार ( देवकुमार] रा० ६६,७१ से ७५,७६ १४८,१४६,१५१: ३३१,८६,१२७,१२६२, से ८१,८३,११२ से ११८ १७६, १७८,१८०,१८२,१८४,१६४,१६८ से देवकुमारिया [ देवकुमारिका ] रा० ८३, ११५ से २०६,२१७,२३० से २३४,२३६,२३८,२३६, २४२ से २४४,२४६,२४७,२४६ से २५२, देवकुमारी | देवकुमारी | रा०७० से ७५,७६ से २५५ से २५७,२६७,२६८,३३६ से ३४५, ८१,११२ से ११४ ३५०,३५१,३५८ से ३६०,३७२,४०२,४१०, दवकुरा [दवकुरु] जा० २।१३, ३१९१६,६३७ ४२६,४३२,४३५,४३६ से ४५७,५५४ से ५६५ देवकुर ! देवकुरु | जी० २१३३,६०,७०,७२,६६, ५६७,५६८,६३५,६३७,६३८,६५६,६६४, १३७,१३८,१४७,१४६; ३३२२८,७६५ ६६६,६८०,७००,७०१,७१०,७२१,७२४, देवकुल [देवकुल ] ओ० ३७. रा० ७५३ ७३८,७४१७४३,७४६,७६०,७६३,७६५, देवगइ [देवगति] रा० १०,१२,५६,२७६ ३.७८,७६५,८०८,८१६,८२६,८४०,८४२, देवगण | देवगण | रा०६९८,७५२,७५६. ८४३,८४५,८४६,८५४,८५७,८६०,८६३, जी० ३६११२० ८६९,७२,८७५,८५,६१७,६२३,६२५, देवगति | देवगति ] जी० ३१८६,१७६,१७८,१८०, १८२,४४५ ६२७ से ६३५, ६३८ से ६४०,६४२ से ६४५, ६४७,६५०,६५१,६५४,६८८ से ६६७,६६६, देवगुत्त [ देवगुप्त | ओ०६६ देवच्छंदग | देवच्छन्दक जी० ३।६०७ १०१५,१०१७,१०२५,१०२७,१०२६,१०३१, देवच्छंदय | देवच्छन्दक | रा०२५३,२५८,२६१. १०३३,१०३५,१०३८,१०३९,१०४१ से जी० ३४१४,४१५,४१६,४५७,६७५,६७६, १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ स १०५६, ६०७,९०८ १०८२,१०८३,१०८५ से १०८७,१०८६ से देवजुइ । देवधुति | रा० ६३,६५,११६ १०६३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५. ११०७,११०६ से १११२,१११४ से १११७, देवजुति [देवद्युति] रा० ५६,७३,११८,७६७ १११६ से ११२४,११३२,११३३,११३७, देवज्जुइ । दवद्युति ] रा० ६६७ ११३८, ६६१,५,७,८,१२, ७.१,७,८,१६ से देवज्जुति [देवधुति ] रा० १२२ देवता | देवतः] जी० ३१७३७ २१,२३, ६।१५६,१५८,२०६,२१३,२१८,२२०. २२०, देवत्त देवत्व ओ० ७२,७३,८६ से ६५,११४, २२१,२२६,२२६,२३१,२३२,२४८,२५४,२६७, ११७,१४०,१५७ से १६०,१६२,१६७. २७४,२८३,२८६,२६१,२६३ ।। रा० ७५२,७५३. जी० ३.११२८,११३० Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवदीव-देस ६५७ ५६,५८,६०,६२,११७,११८,१२०. स०६,१०. १३,१४,१७,५८,६३,६५,७२,७३,२७६,२७८, ६ ५४,६८१,६८७ से ६६०,६६५,७०४,७०६, ७१३,७१४,७१८,७२०,७२३,७५१,७६५, ७६८,७७४,७७५,७७७,८०२. जी० ३.४४२, देवदीव [देवद्वीप जी० ३१७७६,७७७४ देवदीवग [देवद्वीपक ] जी० ३१७७६,७७७ देवदुहहग देवदुहदुरका रा०२८१. जी० ३२४४७ देवदूस | देवदृष्य रा० २७४,२८५,२६१,७५६. जी० ३।४३६,४४३,४५१,४५७ देवदार | देवद्वार] जी० ३:८८५ देवद्दोवग देवद्वीपक] जी० ३१७७६,७७७ देवपरिसा [देवपरिषद् ओ० ७१. ६० ६१ देवभद्द [देवभद्र] जी० ३:९४२.६५१ देवमहाभद्द | देवमहाभद्र) जी० ३।६४२,६५१ देवमहावर [देवमहावर जी० ३६५१ देवय दैवत ] ओ० २,५२,१३६. रा० ६,१०,५८, २४०.२७६,६८७,७०४,७१६,७७६. जी० ३१४०२,४४२ देवया [देवता] ओ० १३६ देवरमण देवरमण] रा० ७८,८०,८२,११२ देवराय [देवराज] जी० ३।६१६ से १२२,१०३६ से १०४४ देवलोग [देवलोक] ओ० ७४१२,१४१. रा० ७६६. जी० ३१६३० देवलोय [ देवलोक ] ओ०७१,७२,७४१२,८१ से ६३. रा० ७५२,७५३. जी० ३.६३० देववर | देववर जी० ३६५१ देवविमाण [देवविमान] रा० १८७ देवसणिवाय [ देवसन्निपात रा० २८१ देवसन्निवाय [देवसन्निपात] जी० ३।४४७ देवसमवाय [देवसमवाय जी० ३।६१७ देवसमिति [देवस मिति ] जी० ३१६१७ देवसमुदय [देवसमुदय] जी० ३१६१७ देवसमुद्दग देवसमुद्रक] जी० ३१७७८ देवसयणिज्ज [देवशयनीय] रा० २४५,२४६,२६१, ३५३,४१४,७६६. जी० ३।४०७,४०८,४२३, ४३६,४४३,५१६,५२६,६५०,६७३,७५६ देवसोक्ख देवगौख्य ] ओ० ७४१२ देवाणुप्पिय [देवानुप्रिय] २०,२१,५२,५३,५५, देवाणुभाग | देवानुभाग] र!० ६६७ देवाणुभाव | देवानुभाव] रा० ५६,६३,६५,७३, ११८,११६,१२२.७६७ देविंद देवेन्द्र] जी० ३१६१६ मे १२२,१०३६ से १०४४,१०५५ देविडि [देवधि ] ओ० ७४१२. ग० ५६,६३ ६५, ७३,११८,११६,१२२,६६७ ७६ 3 देवित्त (देवीत्व] जी० ३१ ११२८ से ११३० देवी [देवो ] ओ० १५,५५,५८,६२,७०,०१,८१. रा०५,७,१५ से १७,४८,५४ से ५८,१८५, १८७,२४०,२७६,२८०,२८२,२८६ से २६१. ६५७,६७२,६७३,७५१,७७६,७६१ से ७६४, ७६६. जी० ३११६८ से २०६,२१७,२३७, २३८,२४३,२४६,२४७,२४६,२२०,२५६,२६७, २६८,३५०,३५८.३६०,४०२,४४२,४४६,४४८, ४५५ से ४५७,५५७,५६३,६३७,६५६,७६०, ७६३,१०२३,१०२५,१०२८,१०३.,१०३२, १०३४,१०३६,१०४१,१०४२,१०४४,११२२, ११२६, ६।१,६,७,१२,६।२०६,२१४,२१८, २२० देधुक्कलिया [देवोत्कलिका ] रा० २८१ देवुज्जोय (देव द्य त] रा० २८१. जी० ३६४४७ देवोद [देवोद] जी० ३१७७६,७७७,६४३,६४४ देवोदग | देवोदक | जी० ३१७७८,७७६ देस [ देश] ओ० १६,१६५।१०. रा० १७४,१८०, १८२,१८४,१८८,१६२ से १९७,७६५,७७४, ८०४. जी० ११४,५; ३१२६६ से २६६,२८६, २६२,२६४,२६६,५७६ से ५६६,६४०,६५९, ६६४,७०२,७२६,८०८,८२६,८५७,८६३, ८६६,८७५,८८१ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ देसंतर-धणुवेय देसंतर [देशान्तर ओ० ११६,११७ ६५,२७६,७०२,७०३. जी० ३१२४,४४५ देसकहा । देशकथा] ओ० १०४,१२७ दोच्चा | द्वितीया] जी० १११२४,२।१३५,१३८, देसकालण्णया | देशकालज्ञता ] ओ० ४० १४८,१४६; ३।२,४,६६,६७,७३,७४,८८,६१, देसभाग ग] रा० ३२,३६,३६,६६,१६४, २१८,२६१,२८१,३००,३२१,३३३. जी. दोणमुह द्रिोशमुख ] ओ०६८,८९ से १३,६५, ३१२७५,३६५.३७२,४४७,४६०,४६५,५५४, ६६,१५५१५८ से १६१,१६३,१६८. ५६६,७५६,७६२,७८२,८८२,९१३ रा० ६६७ देसभाय | देशभाग ] ओ० २,६,८,१६,५५,१६२. दोभग दौर्भाग्य | जी० ३१५६७ रा० ३,३५.१२५,१८६,२०४,२१७,२२७,२३८, दोमासिय द्वैमामिक । मो० ३२ २५२,२६३,२६५,३२६,३३८,३५६,४१५, दोमासिया द्वैमासिकी ओ० २४ ४७६,५३६,५६६,७५५,७७२. जी० ३।२६३, दोर [दवरक] रा० २७०. जी. ३४३५ ३१०,३१३,३३८,३५६,३५६,३६१,३६४, दोवारिय [दोवारिक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ३६८,३६६, ,६८६,४००,४१३,४२२, ७६२,७६४ ४२७,४५८,४६०,४८६,४६१,४६८,५०३, दोस | दोष ओ० ३७.७१,११७,१६१,१६३. ५२१,५२७,५३५,५४२,५४६,६३४,६३६, रा० १७३,७९६. जी० ३,२८५,५६८ ६४२,६४६,६४६,६६३,६६८,६७१ से ६७३, दोसिणाभा [दे० ज्योत्स्नाभा] जी० ३३१०२३ ६७६,६८५,६६१,७३७,७५८,८३१,८८४, ८६०,८६१,६०६,६११,६१८,१०२३,१०३६ देसावयासिय [देशावकाशिक] ओ० ७७ धंत | ध्मात] रा० २६,७५७. जी० ३।२८२ देसिय [देशित ] जी० १११ धंतपुश्व [ध्मातपूर्व] रा० ७५७,७६३ देसी [देशी] ओ०४६,७०. रा० ८०६,८१० वण [धन ] ओ०५,१४,२३,१४१. रा०६७१, देसीभासा {देशीभापा] ओ० १४८,१४६ ६६५,७६६ देसूण [देशोन रा० १२८,२०१. जी० २०२६ से । घणक्खय [धनक्षय ] जी० ३१६२८ ३४,३७,५४ से ६१,६५,८४,८८,११४११६, धणिय [दे०] ओ० ४६. रा० ७७४. जी० २५५६ १२३,१२४,१३२ ; ३।२४७,२५०,२५६,२७३, २६८,३६२,३६६ से ३७१,५७०,६२६,६४६, घणु [धनुष ] ओ० १,६४,१७०,१८७,१६५. ६७३,६७४,७०६,७३२,८८२, ६।२३,२६,३३, रा० १८८,१८६,२४६,६६४,७५६. जी०११६४,११२,११६,१२५,३८२,६२, ४१,६६,७३,७८,१४२,१४४,१४६,१६२,१६४, २१८,२६०,२६३.३५३,५६२,५६८,६४७, १६५,१७८,२००,२०२ से २०४ देसोण देशोन | जी० ३.३५३ ६४६,६७३ से ६७५,६८३,७०६,७८८, देह [देह] रा० ७६०,७६१. जी० ३१५६६ १०१४,१०२२ देहधारि [देहधारिन् ] ओ० १६ घणुग्गह [धनुह] जी० ३१६२८ दो [द्वि] ओ० १७० धणुपट्ट [धनुष्ष्ठ ] जी० ३।५५७,६३१ दोकिरिय [वक्रिय] ओ० १६० घणुवेद [धनुर्वेद ] ओ० १४६ दोच्च [द्वितीय] ओ० ११७. रा० १०,१२,१८, घणुवेय [धनुर्वेद] रा०८०६ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घण्ण धायतिसंड धण [धान्य ] ओ० २३ धन्न [ धन्य ] ओ० १६४. २० ६९५ धमाविव [मापितपूर्व ] रा० ७५७,७६३ धम्म [ धर्म] ओ० १६,२१,४०,४६,५४,६६,७१, ७२ ७४ से ७७,७६ से ८ १,१४२, १४४, १६१, १६३. ० ८,१६,६१,६२,२६२,६६३ से ६६५,७००,७१७ से ७२०,७३२, ७५२,७७५, ७७६,७८०,८००,८०२. जी० ३.४५३ धम्मका [ धर्मकथा ] ओ० ४२,४३. ६० ७७५ धम्म [H] ] [ धर्म्य व्यान ] ओ० ४३ Rears [ धर्माख्यायित् ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ धम्मचरण [ धर्मचरण ] जी० २ २६ से २६,५४ से ५७,६५,८४,८८,८६,११४,१२३,१३२ पति [ धर्मचिन्तक ] ओ० ९३ धम्मज्य [ धर्मध्वज ] ओ० १६ घमणाय [ धर्मनाक ] ८० २९२. जी० ३।४५७ धम्मका [ धर्मास्तिकाय ] रा० ७७१. जी ० १८४ धम्मदय | धर्मदय ] रा० ८,२९२. जी० ३।४५० धम्मदेस्य [ धर्मदेशक ] रा०८,२१२. जी० ३१४५७ Wearer [ धर्मनाक ] रा०८ धम्मपण ] धर्म प्ररजन ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ मक्लोइ [ धर्मप्रलोकिन् ] रा० ७५२ धम्मप्पलोई [ धर्मप्रलोकिन् ] ओ० १६१,१६३ धम्मसमुदायार [ धर्मसमुदाचार] ओ० १६१,१६३ घम्मसारहि [ धर्मसारथिन् ] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ सीलसमुयाचार [ धर्मशीलसमुदाचार] रा० ७५२ धम्माय [ धर्मानुग ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ धम्माfरय [ धर्माचार्य ] ओ० २१,५४,११७. रा० ७१४, ७७६,७६६ मिट्ट [ धर्मिष्ठ ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ ६५६ aftar [ धार्मिक ] ओ० ५२,५७,१६१,१६३. रा० २७०,२८८,६६७,६८७,७५२,७५३. जी० ३२४३५, ४५४ धम्मोवदेस [ धर्मोपदेशक ] ओ० २१.५४,११७. २० ७१४,७९६ घर [धृ] धरति जी० ३१७३३ घर [ घर] ओ० ५,८,१६,२१,४७,४६,५४, ७२. रा०८, २२, १४५, २६२,६६४,७७१. जी० ३१२६८,२७४, ३८७, ४५७, ५६२,५८४,६७२ ७०२, ५०६,८२६ धरण [ धरण] अं० ६८. रा० २८२. जी० ३ : २४४ से २४७,२५०,४४८ धरणितल [ धरणितल ] ओ० २१,५४.०८, ५६, २६२. जी० ३।४५७ धरणियल [ धरणितल ] जी० ३१४५७,८८२ घरिज्माण [ श्रियमाण ] ओ० ६३, ६५. रा० ६६२,७००,७१६ परिसणा [ धर्षणा ] ओ० ४६ धरेज्जमाण [ त्रियमाण ] रा० ६८३ षय [धव | ओ० ६,१०. जी० ११७२३३३८८ ५८३ वल [ धवल ] ओ० १६,४६, ४७.६३, ६४. २१० २५५, २५६, २०५ जी० ३।३७२, ४१६,४१७, ४५१,५६६,५६७ धवलहर [धवलगृह ] जी० ३१५६४ घाई [धात्री ] रा० ८०४ घाउरत [ धातुरक्त ] ओ० १०७,११७,१३० घातसंड [ श्रातकीपण्ड जी० ३१७११ trator [धातकीरूक्ष ] जी० ३१८०८ etasaण | धत्तीवन ] जी० ३६८०८ धाasis [ धातकीपण्ड ] जी० ३७०८, ७१५ से ७२०, ७६८,७७०, ७७१,७९६ से ८००, ६०२ से ५०४, ५०६, ८०८, ८०६, ८३८/२३,२५ घाई [ धातकी ] जी० ३७७५,८०८ घाईड [ धातकीपण्ड ] जी० ३२५०६८३८२४ धातिसंड [ धातकीपण्ड ] जी० ३।७६६ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारग-नगरगुण धारग [धारक] ओ०६७ धारणा [धारणा ] रा० ७४०,७४१ धारि [धारिन् ] ओ० ४७,५१,७२. जी. ३.५६७, १०१५ धारिणी धिारिणी] ओ०१५. रा०५ धारित्तए [धारयितुम् ] ओ० १०५ धारेमाण [धारयत्] रा०२५५. जी०३४१६ धिइ धृति ] ओ० ४६ जी० ३१११८ घिति [धृति] जी० ३।११८,११६ धीर धीर] ओ० ४६ धुरा [धूर्] ओ० ६४ धुराग [धूपक] रा० १७३,६८१. जी० ३।२८५ ।। धुव ध्रुव] रा० २००. जी० ३४५६,२७२,३५०, ७६० धूमकेतु [धूमकेतु] ओ० ५० धूमप्पभा [धूमप्रभा] जी ०३४१,४३,४४,१०१, ११०,११४ धूमवट्टि [धूपवर्ति ] जी० ३।४५७ धूमिया [धूमिका] जी० ३१६२६ धूया [दुहित] जी० ३१६११ धूलि [धूलि] जी० ३।६२३ धूव [धूप] ओ० २,५५. रा०६,१२,३२,१३२, । २३६,२५८,२७६,२८१,२६०,२६२ से २६७, ३००,३०५,३१२,३५१,३५५,३५६. जी० ३:३०२,३७२,३६८,४१६,४४५,४४८,४५६ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४, ६७६,६०८ धूवघडिया [धूपटिका] रा० २३६. जी०३।३९८, ४१२,६०३ धूवघडी धूपघटी] रा० १३२. ३१३०२ धूववट्टी [धूपवति रा० २६२ षोत [धौत] जी० ३.५९६ घोय [धौत] ओ० १६,४७. २६० २६. जी० ३२८२,५६० न (न] ओ० ४७. रा० २००. जी ० ३।२७२ नई | नदी] ओ०६६. जी० ३.७७५ नईमह [नदीमह] ग० ६८८ नउल [नकुल ] रा० ७७ नंगलिय [लाङ्गलिक | ओ०६८ नंदणवण [ नन्दनवन ] रा० १७३,६७०. जी० ३२८५,५६७ नंदा न्दका ना० २८२. जी० ३।४४८ नंदा | नन्दा रा०२३३,२७३,२८८,३१२,३५०, ६५६. जी ३५५६ नंदाचंपापविभत्ति निन्दाचम्बाप्रविभक्ति। रा०६३ नंदापविभत्ति नन्दाप्रविभक्ति] रा०६३ नंदिघोस [नन्दिघोष | रा० ७७,१७३,६८१. जी० ३३५६८ नंदिमुयंग [नन्दिमृदङ्ग [ जी ३१७८ नंदियावत्त [नन्द्यावर्त | ओ० १२. रा० २६१ नंदिरुक्ख [नन्दिरूक्ष] जी० ३.३८८ से ३६० नंदिस्सर निन्दिस्वर] जी० ३१५६८ नंदी [नन्दी] २०७४ १,७४३ नंदीमुइंग | नन्दीमृदङ्ग रा०७७ नंदीमुह [नन्दी मुख जी० ३१२७५ नंदीसरवर नन्दीश्वरवर ] रा०५६ नक्कछिण्णग [न ऋछिन्नक] ओ० ६० नक्ख निख] २५४ मक्खत्त नक्षत्र रा० १२४. जी २:१८ ; ३१७०३, ७२२,८३०,८३८१३,५,८,११,१३,२२,३०, १००७ नवखत्तविमाण [नक्षत्रविमान] जी० २।४३; ३।१००६ नखवेदणा नरवेदना] जी० ३।६२८ नग नग] जी० ३१५६६ नगर [नगर] ओ० १८. रा० ६६७,७५४,७५६ ७६२,७६४,७७४. जी० ३१५९६ नगरगुण ! नगरगुण] ओ० १६५।१६ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगरदाह-नसिण नगरदाह [नगरदाह] जी० ३१६२६ नगरमाण [नगरमान] ओ० १४६ नगरी [नगरी] ओ० १६. रा० ६६६,६७०,६८०, ६८१,६८३,६८५,६५७,६८८,६६९,७००, ७०२ से ७०४,७०६,७०८,७१० से ७१२, ७२६,७५२,७७५,७७६,७८० नग्गा [नग्नजित्] ओ० ६६ नग्गभाव [नम्नभाव] ओ० १५४,१६५,१६६ निच्च [नृत्-नच्चिज्जइ. रा०७८३ नच्चंत [नृत्यत् ] ओ० ४६ नच्चणसील [नुत्यनशील] ओ०६५ नट्ट [नाट्य ] ओ०६८. रा० ७,७८,८०६. जी० ३१२९५,३५० नट्टविधि [नाट्यविधि ] १० ७६ नट्टविहि ! नाट्यविधि रा० ६३,६५,११८,२८१ नट्टसज्ज [नाट्यसज्ज] रा० ६६,७० न? [नष्ट] रा० २८१ नक [नट] ओ० १,२ नहपेच्छा [नटप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५ नत्तुय [नप्त] रा० ७५०,७५२ निद [नद्]-नदंति. जी० ३१४४७ नदी नदी] जी. ३१८४१ नपुंसग [नपुंसक] जी ० २।६६ से ११६, १२०, १२१,१२३,१२५ से १२६,१३२ से १३८, १४० से १५० नपुंसगलिगसिद्ध [नपुंसकलिङ्गसि] जी० ११८ नपुंसगवेद [नपुंसकवेद] जी० २११३६, १४०; ६।१२४,१२८ नपुंसगवेदग [नपुंसकवेदक] जी० ६।१३० नपुंसगवेय [नपुंसकवेद] जी० ११६६,१३६ नपुंसगवेयम [ नपुसकवेदक] जी० ६।१२१ नपुंसय [नपुंसक] जी० २।११७ से ११६, १२२ । से १२४ निमंस [नमस्य -नमसइ. रा० ७१४ नमसंति. रा०१०--नमंसति. रा० १२० -नमंसह. रा०७३--नमंसिज्जाह. रा० ७०६--नमंसिस्संति. रा०७०४ नमसण [ नमस्यन] रा० ६८७ नमंसणिज्ज नमस्यनीय] ओ० २ नमंसित्तए नमस्यितुम् ] रा०६ नमंसित्ता [नमस्यित्वा ] ओ० ६६. रा० १०. जी० ३१४७१ नमियनमित] रा०२२८. जी. ३१६७२ नमो नमस्] रा०८ नय [नय] ओ० २५. रा० ६८६ निय [नद्]—नयंति. रा०२८१ नयण नयन ओ० १,१५,६६. रा० २२८. जी० ३१५६६ नयरो नगरी] ओ० १,१६,६९. रा० १,२,८, ६,१५,५६,६७७ से ६७६,६५३,६८६ से ६८६,७५०,७५२ नर [नर] ओ० ५,८,६४,६६. रा० १७,१८,२०, ३२,३७,१४१,१७३,१६२. जी० ३।२६६, २७४,३००,५६७ भर (कंता) [नरकान्ता] रा० २७६ नरक [नरक] जी० ३६६ नरकंठ | नरकष्ठ] रा० १५५,२५८. जी० ३१३२८ नरकंठग [नरकण्ठक] जी० ३।४१६ नरकंता [नरकान्ता] जी० ३.४४५ नरग [नरक ] ओ० ७१. जी० ३।८६,१२७ नरपवर [नरप्रवर ] रा० ६७१ नरय [नरक] रा० ७५०,७५१. जी०३१८३, ___ ८७,११६,१२६२ नरयपाल [नरकपाल रा० ७५१ नरयावास [नरकावाम] जी० ३१७७,१२७ नरवइ निरपति] ओ०१ नरवसभ [नरवृषभ ] जी० ३११२६११ नरिंद नरेन्द्र ] ओ० २१,५४ नलवण [नलवन ] ओ० २६ नलिण [नलिन] ओ०१२,१५०. रा. १७४, ८११. जी० ३१५६५ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ नलिणा-नारिकता नलिणा [नलिना] जी० ३१६८६ नाण |ज्ञान] ओ०१६,२६. रा० ८,६८६,७३८, नव [नवन् ] ओ० ६३. रा० ८०१. जी० २।२० । ७६८. जी० १२१४,१०१, ३.१२७,१६०; नव [नव] जी० ३।३११ मवंग [नवाङ्ग] ओ० १४८,१४६ नाणत्त [नानात्व ] रा० ७६२,७६३ नवणिहिपति [नवनिधिपति ] जी० ३१५८४ नाणसंपण्ण [ज्ञानसम्पन्न रा०६८६ नयम [नवम] जी० ३१३५६ माणा [नाना] रा० ६६,७०,१३०,१३२,१६०, नवय [नवक] रा० ७५६ १६०,२२८,२५६,२७०,७६८. जी० १४१३६; नवरं [दे० ] जी० १७७ ३१२६४,२८८,३११,३८७,४०७,४१७,६४३, नवविह [नवविध] जी० १:१०; ६२५५ ६७२ नह [नख] जी० ३१३२३ नाणाविह [नानाविध ] जी० १७२; ३१२७७, ३७२ नाइय [नादित] रा० ५५,२८०,६५७. जी० ३।११८,११६,४४८,८५७,८६३ नाणि [ज्ञानिन् ] जी० २।३०।३।१०४ नाउं ज्ञातुम् ] जी० ३१८३८,२६ नाणोवलंभ [ज्ञानोपलम्भ] रा० ७६८ नाग [नाग] ओ० १६.६८. रा० १६२,२८२. नातव्य [ ज्ञातव्य] रा० ३१६८८ जी० ३३२३२,४४८,७३३,७८०,६५० नादित [नादित ] जी० ३।४४६ नागकुमार नागकुमार] जी० २।३७; ३।२४४, नाणा [नाना] जी० ३३३३३ २४८ नाभि नाभि] रा० २५४ नागकुमारराय [नागकुमारराज] जी० ३१२४४ नाम नामन् ] ओ० १,२. रा० १,२,६,५६,१२४, से २४७,२४६,२५०,६५७,६५६,६६० २४६,२८१,६६८,६७२,६७३,६७६ से ६७६, नागकुमारिंद [नागकुमारेन्द्र ] जी० ३१२४४ से ६८६,६८७,६८६,७०३,७०६,७१३,७३२, २४७,२४६,२५०,६५७,६५६,६६० ७६६. जी० ३१३,४,१२८,३००,४१०,४४७, नागवंत नागदन्त ] रा० १३२,२४० ५९३,५६४,६३२,६३८,६३६,६६०,६६६, नागवंतग नागदन्तक] रा० १४०. ६६८,७११,७५६,७६४,८१४,८३१,८३८१३, जी० ३१३९८ ८५१,६३३,१०५६ नागदंतय [नागदन्तक] रा० १५३,२३६. नामग [नामक ] जी० ३१२४ जी० ३।३६७,३६८,४०३ नामाधिज्ज [नामधेय] रा० ८०३ नागपडिमा [नागतिमा रा० २५७. नामधेज्ज नामधेय | जी० ३१६६६,६७२ जी० ३४१८ नामधेय [नामधेय रा०८,७१४,७६६ नागमंडलपविभत्ति | नागमण्डलप्रविमक्ति] नायव्य [ज्ञातव्य ] जी० ३।१२६।३ रा०६० मायाधम्मकहाधर जाताधर्मकथाघर] ओ० ४५ नागमह नागमह] रा०६८८ नारय [नारद ] ओ०६६ नागरपविभत्ति [नागरप्रविभक्ति] रा० ६२ नाराय [नाराथ] जी० १६११६ नागराय नागराज] जी० ३१७४८,७५० नारायग्ग | नाताचान] जी० ३१८५ नागलया [नागलता] रा० १४५. जी० ३।२६८ नारि नरी] ओ० ६६ नागलयापविभत्ति [नागलताप्रविकि] रा० १०१ नारिकता नारीकान्ता रा० २७६. नाड्य नाटका रा० ७१०,७७४ जी० ३.४४५ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारी-निभ नारी [नारी रा० १७३ निग्गह [निग्रह ] ओ० ३७. रा० ६८६ नाल [नाल जी० ३६४३ निग्गुण [निर्गुण] रा० ६७१। नालिएर | नालिकेर जी० १७२ निग्धोस [निर्घोष ] जी० ३१४४८,५५७ नाली नाडी] जी० ३१७८ निघट निघण्टु] ओ०६७ नावा [नो] जी. ३७६३ निघस | निकष ) रा० २८. जी० ३१२८१ नासा नासा रा०२८५. जी० ३१४५१ निचय (निचय ! रा० ३१ नासिगा नासिका] रा०२५४ निचिय |निचित ओ० १६. १० १२,७५५,७५८, निउण ! निपुण] ओ० ६३. रा० ६६,७०,६७२, ७५६,७७२. जी० ३।११८,५९६ ७५६ से ७६१,८०४. जी. ३१११८ निच्च | नित्य ओ०४६. रा० १५. जी० ३।३६०, निदणा [ निन्दना] ओ० १५४,१६५,१६६. ५८४,८३८।१७ रा०८१६ निच्छय [निश्चय ] ओ० २५, रा० ६७५,६८६ निंब [निम्ब ] जी० १७१ निच्छोडणा | निश्छोटना] रा० ७७६ निकर [निकर] ओ० १३ निच्छोडित्तए । निश्छोटयितुम् ! रा० ७६ निकुरंब [निकुरम्ब ) रा० ७०३. जी० ३।२७३ ।। निजुद्ध नियुद्ध ] ओ० १४६. जी० ८०६ निकुरुब [निकुरुम्ब ] ओ० १६ निज्जरा निर्जरा ओ० १२०,१६२,१६६. रा०६६८,७५२,७८६ निक्कंकड निष्कङ्कट] ओ० १२,१६४. रा० २१, २३,३२,३४,३६,१२४,१४५,१५७. निज्जिय ! निजित ] ओ० १४. रा० ६७१ निज्जीव | निर्जीव | ओ० १४६. रा०५०६ जी० ३।२६६ निक्कोह | निष्क्रोध ] ओ० १६८ निज्जत्त [नियुक्त ] जी० ३१२८५ निक्खमंत | निष्क्रामत् | जो० ३१८३८१४ । निट्टिय [निष्ठित ] औ० १८३,१८४. रा० ७७४ निखमण निष्क्रमण जी० ३१५६४,६१७ निठुर निष्ठुर रा० ७६५. जी० ३१११० निडाल ललाट] जी० ३१३०३,५९६ निगम (निगम] ओ० १८,६८,८९ से ६३,६५, इनिद्दा | नि-|-द्रा--निद्दारज्ज. जी० ३।११६ ६६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. निद्ध स्निग्ध | जी० ११५,५०, ३।२७५,५६६ रा०६६७,७५४,७५६,७६२,७६४ निद्धत । निर्मात | जी० ३१५६०,५६६ इनिगिण्ह [नि !-ग्रह ।-निगिहइ. रा०६८३ निधूम [निर्धूम | जी० ३१५६० निगंय | निर्ग्रन्थ ] ओ० २४,७६ से ८१,१२०, निळूय नि« त ओ० ५,८. जी० ३।२७४ १६२,१६४. रा० ६३,६५,७३,७४,११८, निप्पंक ! निष्पङ्क] ओ० १२. रा० २१,२३,३२, ६६५,६६८,७३८,७५२,७८६ ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी० ३२२६६ ‘निगच्छ [निर्+ गम्]--निग्गच्छइ. ओ० ६७. निप्पकंप निष्प्रकम्प | आं० ४६ रा० २७७—निम्गच्छति. ओ० ७०. रा०७४ निप्पच्चक्खाण निष्प्रत्याख्यान | रा०६७१ -निग्गच्छति. रा० २८३ निष्फन्न | निष्पन्न ] जी० ३६०२ निग्गच्छमाण | निगच्छत् | ओ०६८ निबद्ध निवद्ध] रा० ७७२ निग्गच्छित्ता [निर्गत्य ] ओ० ६६. रा० २८३ निभछगा [ निर्भर्त्सना रा० ७७६ निगमण [निर्गमन जी० ३१८४१ निभंछित्तए । नित्सितुम् | रा० ७७६ निग्गय [निर्गत ] रा० ६,७५४ निभ [निम] रा०५१ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ निमज्जग-निविसय निमन्जग [निमग्नक ] ओ०६४ इनिरंभ [नि+रुध्] --निरंभइ ओ० १८२ निमित्त | निमित्त] जी० ३३१२९६६ निरंभित्ता | निरुध्य ] ओ० १८२ निमिसिय | निमिषित] जी० ३।११६ निरुत्त [निरुक्त } ओ०६७ निमीलिय | निमीलित] जी० ३६१२६८ निरुवलेव निरुपलेप] ओ० २७. रा. ८१३. निम्मल | निर्मल } ओ०१२,१६,४७. रा० २१, जी० ३।५६८ २३,३२,३४,३६,१२४,१३०,१४५,१४६,१५७. निस्वसग्ग | निरुपसगं] जी० ३१४८८ जी० ३१३२२,५६६,५६७ निरुवहय | निरुपहत] ओ० १६. जी० ३१५९६ निम्माण | निर्माण] ओ० १६८ निरयन [निरेजन ] ओ० १८३,१८४ निम्भाय | निर्माय ओ०१६८ निरोदर | निगेदर जी० ३३५६७ निम्मिय (निर्मित] रा० १७३. जी० ३१२८५ निरोय [निरोग | जी० ३।२७५ निम्मेर | निर्मर । रा०६७१ निरोयय { निसंगक ] ओ०६ नियइपव्वय [नियतिपर्वत ] रा० १८१ निरोह [निरोध ओ० ३७ नियइपवयग | नियतिपर्वतक] रा० १८० निलाड [ललाट | रा०७० नियंस | नि.+वस्]-नियंसेइ. रा०२६१ निल्लेव (निर्लेप । जी० ३.१६६,१६७ --नियंसेति. रा. २८५ नियंसण | निवसन] रा०६६ निल्लेवण | निर्लेपन] जी० ३।१६६ नियंसेत्ता | निवस्य] रा० २८५ निल्लोह | निर्लोभ] ओ० १६८ नियम निजक] रा० १२०.७७४ ‘निवाड नि+पातम्]-निवाडेइ रा० २६२ नियडि [निकृति] रा० ६७१ निवाहित्ता [निपात्य रा० २६२ निवाय [निपात | जी० ३।८६ नियम [नियम ] ओ० २५. रा०६८६,७२३. निवेद | नि ! वेदय। निवेदिज्जासि. ओ० २१ जी० १३०,६५,८७,६६,११६,१३३,१३६; निदेय | निवेदयनिवेएमो. रा०७१३ ३।१०४; १२६१३८३८॥१४,६६६,११०८ निवेस [नि-1-वेशय् ]-निवेसेइ. ओ० २१. नियय [नियत | जी० ३।२७२,७६० रा०८ निरंगण [निरङ्गण] ओ० २७. रा०८१३ निवेसेत्ता निवेश्य-ओ० २१. रा. ८ निरंतर | निरन्तर रा० १२.७५५,७७२ निठवण [निर्बण जी० ३१५६६ निरंतरिय निरन्तरित] रा० १३० ‘निव्वत्त निर्- वर्तम्]-निव्वत्तेज्जासि निरय निरय | जी० ३।१२६,१२७०२ रा० ७५१ निरयभव | निरयभव ] जी० ३।११६, १२६५ निन्वय [ निर्बत ] ० ६७१ निरयवेयणिज्ज | नि रयवेदनीय ] रा० ७५१ निव्याघाइम [नियाधातिन्, निाघातिम] निरयाउय | निरयायुष्क रा० ७५१ __ औ० ३२. जी० ३।१०२२ निरयावास निरयावास | जी० ३।१२, ७७,१२७ निव्वाण निर्वाण | ओ० १६५।१६ निरवसेस [निरवशेष ] जी० ३।१८४, ४१२,४२६, निविइय निविकृतिक ] ओ० ३५ निविग्ण [निविण्ण] रा० ७६५ निरालंबण | निरालम्बन] ओ ० २७. रा० ८१३ । निविण्णाण | निर्विज्ञान ] रा० ७३२,७३७,७६५ निरालय | निरालय] ओ० २७. र। ० ८१३ निवितिमिच्छ निविचिकित्स] ओ० १२०,१६२ निरावरण [नि सवरण | ओ० १५३,१६५,१६६ निविसय [निविषय | रा० ७६७ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव्वुइकर-नोपज्जत्त निम्बुइकर [निर्वृतिकर] रा० १७३. नोलवंत [नीलवत् जी. ३१४४५,६३२,६५७,६५६ जी० ३,३०५, ६७२ ६६८,७६५ निव्वुतिकर [निर्वृतिकर | रा ३०,१३५ नोलवंतद्दह [नीलवद्व्ह ] जी० ३१६३६,६४०,६४२ निसपण [निषण्ण ओ० ११७. रा० ७६६. ६५६ से ६६१,६६६ जी. ३१८६६ नीलवंता नीलवती जी० ३१६५६ निसन्न [निषण्ण] रा० २२५ नीलुप्पल [नीलोत्पल ] ओ० १३. रा० २६ निसम्म [निशम्य रा० १३ नीलोभास [नीलावभास ] ओ० ४. रा० १७०, निसामित्तए | निशमितुम् | रा० ७७५ ७०३. जी० ३।२७३ निसिय [निशित ] रा० २४६ नोव {नीप] जी० ३।३८८ इनिसिर [नि + सृज् ] ....निगिरंति. ग० १०..- नीसास | निःश्वास] रा० २८५,७७२. निसि रति. रा०६५---निसिरेइ. रा० ७६४ जी. ३१५१८ निसिरित्तए [निसष्टुम् ] रा० ७५८ नीहार नीहार] रा० ७७२ निसीइत्ता [निषद्य ] ओ० २१ नूणं [नूनम् ] जी० ३।६८२ निसोदण [निषीदन] ओ० ४० नेम [नेम] रा० १७५,१६०, जी० ३।२६४,२८७, इनिसीय [निषद् ]—निसीयइ. औ० २१.-..निसीयंति. रा०४८-निसीयह. रा० ७५३ नेयव्व नेतव्य ] जी० २।१५०; ३१३०९ निसीहिया [निषीधिका, नषेधिकी ] रा० १३१, नेरइय [नरयिक ] रा० ७५१. जी० ११५१,५४, ६१,८२,८७,६२,९६,१०१,११६,१२१,१२३, निस्ससंकिय { निःशङ्कित] ओ० ५२. रा० ६८७, १२८,१३६; २६६,१००,१०८,१२७,१३४, १३५,१३६,१४८,१४६, ३.१,२,७७,८८,६३, निस्सास निःश्वास] रा० ७६६,८१६ ६५,६६,६८,१०३,१०६ से ११२,११८,११९, निस्सील [निःशील ] रा० ६७१ १२१ से १२३,१२८,१२६४,६,७,८,१५५,१५६ निस्सेयस [निःश्रेयस ] ओ० ५२. रा० २७६,६८७ १६२, ६६१,७,१२, ७.१ से ३, १६,२२; ६।२१०,२१३,२२० निहट्ट [ निहृत्य रा०८ नेरइयत्त नै रयिकत्व] जी० ३.१२७ निहय [निहत] ओ० १४. १० ६७१ नेल [नल] ओ० १६ नौरय नीरजस् ] ओ० १२,१८३,१८४ नेसज्जिय [नेषधिक] ओ० ३६ नील नील ओ० ४,१२. रा० २२,१२८,१७०, नेहाणुराग (स्नेहानुराग] जी० ३।६१३ ६६४,७०३. जी० ११५,५०, ३१२२,४५, नो नो रा० ६२. जी० ११२४ २७३,२६०,१०७५,१०७६ नोअपज्जतग नोअपर्याप्तक जी० ३८८,६४ नीलच्छाय नीलच्छाय औ० ४. रा० १७०, नोअपरित्त | नोअपरी जी० ६१७५,८६,८७ १७३. बी० ३१२७३ नोअभवसिद्धिय [नोअभवसिद्धिक) जी० ६।१०६ नीललेस नीललेश्य | जी० ६।१६३ नोअसणि | नोअसंज्ञिन् ] जी० १३१३३; ६१०१, नीललेसा नीलोया | जी० ३१६६,१०० १०४,१०८ नीललेस्स नी नलेश्य } जी० ६ १८५,१६६ नोइंदिय [नोइन्द्रिय ] जी० १६१३३ नीललेस्सा | नीललेश्या] जी. ११२१ नोपज्जत्त [नोपर्याप्त ] जी ६६१ १३५ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ नोपज्जत [नोपर्याप्तक ] जी० ६८८६४ नोपरित [ नोपरीत ] जी० ६२७५ नोबायर [ नोबादर | जी० ६६५,६८ से १०० नोभवसिद्धय | नोभवसिद्धिक ] जी० ६ १०६ नोसण्णा | नोसंज्ञा ] जी० १११३२ नोसण्णि [नोसंज्ञिन् ] जी० ११०६, १३३ ६ १०१, १०४,१०८ नोहम [नोसुक्ष्म ] जी० ९ ६५.६८ से १०० (प) पट्टा | प्रतिष्ठा ] ओ० १६.२१,५४ पट्ठाण [ प्रतिष्ठान ] ओ० १६८. रा० १३०, १३१, १४७, १४८, १६०,२८० जी० ३२६४, ३०१,३२१ पद्विय [ प्रतिष्ठित ] ओ० १६५८१,२. जी० ३।१०५७ से १०६४ पइण्णा [ प्रतिज्ञा ] ओ० १४२, १४४. रा० ७४८ से ७५०,७५२,७५४,७५६, ७५८, ७६०, ७६२, ७६४,७७३, ८००, ८०२ भय [ प्रतिभय ] ओ० ४६ पइरक्खिया | पतिरक्षिता] ओ० ६२ परिक्क [ दे० ] जी० ३१५६४ पइसेज्जा [ पतिशय्या ] ओ० ६२ पईव | प्रदीप ] रा० ७७२ •पउंज [ प्र + ग्रुज् ] - पउंजइ. रा० ६७१. V - परंजति ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ परंजमाण [ प्रयुञ्जान ] ओ०६४ पउंजियव्व | प्रयोक्तव्य ] रा० ७७६ पट्ट [ प्रकोष्ठ ] ओ० १६. जी० ३३५६६ पडत [ प्रयुत ] जी० ३८४१ पउम [ पद्म ] ओ० १२,१६,१५० रा० २३,१३१, १३८, १४७, १४८, १६७, २७६,२८०,२८८, ८११. जी० ३।२५६,२६६,२६१,३०१,४४६, ४५४,५६७,५८,६४२, ६४३, ६५२ से ६५४, ६५७,६५८, ८२६, ८४१,६३७ पउमगंध | पद्मगन्ध | जी० ३।६३१ नोपज्जत्तग-पएसघण पउमजाल [ पद्मजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ पउमद्दह [ पद्मद्रह ] जी० ३१४४५ पउमपत्त [ पद्मपत्र ] रा० २४. जी० ३।२७७ पमपम्हगोर [ पद्मपक्ष्मगौर | ओ० ५१, जी० ३१०६४ पउमप्पभा [ पद्मप्रभा ] जी० ३१६८३ पउमरुक्ख [ पद्मरूक्ष ] जी० ३३८२६ पउमलया [ पद्मलता | ओ० ११,१३. रा० १७,१८, २०,३२,३४,३७,१२६, १४५, १८६. जी० ३२६८,२७७,२८८, ३००,३०८, ३११,३१८, ३३७,३५६, ३७२.३६०, ३६६, ५८४,६०४ पउमलयापविभत्ति | पद्मलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ पउमवण [ पद्मवन} जी० ३३८२६ भवरवेइया | पद्मव रवेदिका ] रा० १७४, १६ से १६८,२००, २०१, २३३, २६३. जी० ३२१७, २५६,२६४ से २७०, २७२, २७३, ३६२,३६५,६३२,६३९,६६१,६६८, ६७८, ६८३, ६८, ७०६, ७३६, ७५४, ७६२७६६, ८५७ पउमवरवेदिया [ पद्मवरवेदिका ] जी० ३।२१७, २६३, २६६, २८६.२६८,७६८,८१२,८२३, ८३६८५०८८२,६११ पउमसंड [ पद्मपण्ड ] जी० ३१८२६ पउमा [पद्मा ] जी० ३।६८३,६२० पउमासण | पद्मासन ] स० १८१,१८३. जी० ३२६३, २६६,३७१ पउमुत्तर [ पद्मोत्तर | जी० ३१६०१ उप्पल [ पद्मोत्पल ] रा० ८११ पर [ प्रचुर ] ओ० १,१४,४६, ७४,१४१. रा० ६७१,७६६ उसिया' [ कुसिका ] ओ० ७० एस | प्रदेश ] ओ० १६५ १०. रा० ४०, १३२, १५४. जी० १२५, ३३; ३।३०२, ३६८,५७१, ७१५,८०८,८१६ पएसघण [ प्रदेशधन | ओ० १६५/३ १. वउतियाहि [ राय० सू० ५०४ ] Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पपसि-पंति २६६ पएसि [प्रदेशिन् ] रा०६७१ से ६७५,६७६ से पंचणउइ [पञ्चनवति] जी० ३१७१४ ६८१,७००,७०२ से ७०४,७०८ से ७१०, पंचणउति [पञ्चनवति] जी० ३१७६८ ७१८ से ७२०,७२३ से ७२६,७२८ से ७३४, पंचनउति [पञ्चनवति जी० ३।७६६ ७३६ से ७३६, ७४६ से ७८२,७८६ से ७६१, पंचाणउत [पञ्चनवति जी० ३३६१ ७६३ से ७६६ पंचाणउति [पञ्चनवति ] जी० ३१७२३ पयोग [प्रयोग] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,७६१, पंचाणुष्वइय [पञ्चानुवतिक] ओ० ५२,७८ ७९४ पंचिदिय [पञ्चेन्द्रिय ] ओ० १५,७३,१४३,१८२. पओयघर [प्रतोदधर ओ० ५६ रा०६७२,६७३,८०१. जी० २५५२१०१, पोयलट्टि [प्रतोदर्याष्ट] ओ० ५६ ११३,१२२.१३८,१४६; ३३१३०,४१,४,६, पओहर [पयोधर] रा० १३३. जी० ३।३०३ ६,१०,१५,१६,२४,२५, ८.५६।१ से ३,७ पंक [पङ्क] ओ० ८६,६२,१५०. रा० ८११. पंचेंदिय पिञ्चेन्द्रिय] जी० ११८३,६१,६७,६८, __ जी० ३,६२३ १०१ से १०३,११६,११७.१२५,१३६; पंकप्पभा [पङ्कप्रभा] जी० ३।३६,४१,४३,४४, २११०४,१०५,१३६,१३८,१४६,१४६ १००,११३ ३।१३७ से १४७,१६१ से १६३,१६६,१११५; पंकबहुल [पङ्कबहुल] जी० ३।६,६,१६,२५,३०, ४१६,१८,२०,२१:१५,७,१६७,१६६,२२१, २२५,२२६,२३१,२५६,२५६,२६०,२६४, पंकरय [पङ्कजस् ] ओ० १५०. रा० ८११ पंकोसण्णग [पङ्कावसन्नक] ओ०६० पंजर [पञ्जर] रा० १३७. जी० ३०७ पंच [पञ्चन् ] ओ० ५०. रा० २४. जी० ३१३४ पंजलिउड [प्राञ्जलिपुट] ओ० ४७,५२. रा०६०, पंचगिताव [पञ्चाग्निताप] ओ० ६४ । ६८७,६६२,७१६ पंचम [पञ्चम] ओ०६७,१७४,१७६. जी० पंजलिकड {कृतप्राञ्जलि ] ओ० ७० पंडग [पण्डक] ओ० ३७ ३।३३८ पंचमा [पञ्चमी] जी० १६१२३; २११४८,१४६; पंखगवण [पण्डकवन ] रा० १७३,२७६. जी० ३२८५,४४५ ३१२,३६ पंडरग (पण्डरक] जी० ३।९६३ पंचमासिय [पाञ्च मासिक] ओ० ३२ पंडिय पण्डित] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० पंचमी [पञ्चमी] जी० ३१४,७४,८८,६१,१६२, पंड पाण्डु] ओ० ५,८. रा० ७८२. जी० ३।२७४ १११११२ पंडुर [पाण्डुर ओ० १,१६,२२,४७. रा०७२३, पंचविध [पञ्चविध] जी० २११०१,१०२; ७७७,७७८,७८८. जी० ३१५९६ ३३१३० ; ४१२५, ६१४८ पंडुरतल [ हम्मिय] [पाण्डुरतलहH] जी० ३५९४ पंचविह [पञ्चविध] ओ० १५,३७,४०,४२,६६, पंडुरोग [पाण्डुरोग] जी० ३१६२८ ७०. रा० २७४,२७५,६७२,६८५,७१०, पंत प्रान्त्य | रा० ७७४ ७३६,७५१,७७४,७७८,७६७. जी० १:५, पंताहार प्रान्त्याहार ओ० ३५ ६६,११८,२.४,१८, ३११३१,४५०,४४१, पंति [पङ्क्ति ] ओ० ६६. रा० ७५,२६७,३०२, ८३८१२१,६७६,४११, ६.१५६,१५८ ३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६७,३१८, पंचसयर [पञ्चसप्तति जी० ३१८३८१३१ ३५५,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५,५६४, Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ पंथ-पग्गहिय ८३८७ से ४ पाखालण [प्रक्षालन ] ओ० १११ से ११३,१३७, पंथ [पत्थ,पथिन् ] रा० ७३७ पंथिय [पाथिक ] रा० ७८७,७८८ पक्खालिय [प्रक्षालित] ओ०१८ पंसुविट्टि [पांशुवृष्टि] जी० ३१६२६ पक्खालेत्ता [प्रक्षाल्य ] रा०२८८. जी. ३१४५४ पकड्डिज्जमाण [प्रकृष्यमाण ] ओ० १६ पक्खासण [पक्ष्यासन, पक्षासन] रा० १८१,१८३. पिकर |प्र-कृ-पकरेंति. ओ० ७३. जी० ३१२६३ जी० ३.१२४.-पकरेति. जी. ३२१० पक्खि [पक्षिन् ] रा ६७१,७०३,७१८. पकरेत्ता प्रकृत्य ] ओ०७३ जी० १।१०१; ३।८८,१६५,७२१ पकरणता |प्रकरण] जी० ३।२१० V पक्खिव [प्र+क्षिप्]-पविखवइ. जी० ३.५१६. पकरणया [प्रकरण ] जी० ३।२११ -पक्षिवेज्जा. जी० ३.१०६ पकाम [प्रकाम] रा० ७३२,७३७ पक्खिव (प्रक्षेपय ]- -पविखवावेमि. रा० ७५४ पकामरसभोइ [प्रकामरसभोजिन् । ओ० ३३ पक्विवित्ता [प्रक्षिप्य ] जी० ३५१६ पकार [प्रकार] जी० २१६८; ३१५६५ पक्खुभित [प्रक्षुभित] जी० ३१८४२,८४५ पकारवग्ग पकारवर्ग] रा० ६६ पक्खुभिय [प्रक्षुभित | ओ० ४६,५२. रा० ६८७ पक्कणी [ पक्कणी ] ओ० ७०. रा० ८०४ पगइ [प्रकृति ] ओ० ७३,६१,११६. रा० १७४, पक्किट्टग [पक्वेष्टक ] जी० ३।८४५ २३३. जी० ३।६२५ पक्कोलित [प्रक्रीडित] जी० ३।६१७ पगंठग [प्रकण्ठक] रा० १३७, १४६. जी० ३३०७, पक्कीलिय [प्रक्रीडित ] रा० १७३. जी० ३१२८५ पक्ख [पक्ष | ओ० २८, रा० १३०,१६०,१६७. पगति । प्रकृति | जा० ३।२८६ ५६८,६२०,७६५, __जी० ३१२६४,२६६,३००,८४१ ८१६,८४१,८५४,६५६,६५७,६६४ पक्खंदोलग [पक्ष्यन्दोलक,' पक्षान्दोलक रा० १८०. पगतित्थ [प्रकृतिस्थ ] जी० ३.११२१ से ११२३ __ जी. ३।२६२,८५७ पगम्भ [प्रगल्भ ] जी० ३.५६१ पक्खंदोलय [पक्ष्यन्दोलक, पक्षान्दोलक] रा० १८१. पगाढ [प्रगाढ] रा० ७६५. जी० ३।११० __ जी० ३।२६३,८५७ पियाय [प्र+गै]-पगाइंसु. रा०७५ पक्यपुडतर [पक्षपुटान्तर रा० १९७ पगार [प्रकार] रा० ८०६,८१०. जी० २०७४, पक्खपेरंत [पक्षपर्यन्त] रा० १६७. जी० ३२६६ १४०,१५१ पक्षबाहा [पक्षबाहु] रा० १३०,१६०,१९७. पगास [प्रकाश] ओ० १३,१६,२२,४७. रा० १३०, जी० ३१२६४,२६६,३०० २५५,६७०,७७७,७७८,७८८. जी० ३१३००, पिक्खाल [प्रक्षालय]-पक्खाले इ. रा० ३५१. ४१६,५८६,५६६,५६७ —पवखाले ति रा० २५८. जी० ३१४५४ पगिज्झ [प्रगृह्य ] रा० ६६४ पगिझिय [प्रगृह्य ओ० ११६ १. यत्र तु पक्षिण आगत्यात्मानमन्दोलयन्ति ते पगीय प्रिमीत रा०७६,१७३. जी. ३१२८५ पक्ष्यन्दोलकाः [राय० ब०]। पिगेण्ह [प्र+ग्रह.]-पगेण्हति रा० २८८ २. 'गिरिपक्खंदोलया' गिरिपक्षे--पर्वतपार्श्वे छिन्न- पगेण्हित्ता [प्रगृहय] रा० २८८ टगिरी वात्मानमन्दोलयन्ति येते तथा पग्गहित्तु [प्रगृह्य ] जी० ३।४५७ [ओ० ०] . पहिय [प्रगृह्य] ओ० ६७. रा० २६२ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचंकमणग-पच्चोत्तर पचंकमणग [प्रचंक्रमणक] रा० ८०३ -पच्चप्पिणह. रा० ६. जी० ३।५५४ पिच्चक्ख, वखा प्रति--आ+ख्या]-पच्चक्खंति —पच्चप्पिणाहि. ओ० ५५. रा० १७ ओ० १५७--पच्च क्खामि. रा०७६६ -पच्च पिणेज्जा. ओ० १८० —पच्चक्खामो. ओ० ११७ --- पच्चक्खाइस्सइ. --पच्चप्पिणेज्जाह. रा. ७०६ रा०८१६ पच्चमाण पिच्यमान जी०३।१२६॥ पच्चक्खाण [प्रत्याख्यान] ओ० १२०,१४०,१५७. पच्चामित्त (प्रत्यमित्र ] ओ०१४. रा०६७१. रा०६९८,७५२,७८७,७८६ ___ जी० ३१६१२ पच्चक्खाय प्रित्याख्यात ] ओ० ८४,८५,८७,८८, पच्चाया [प्रति+आ+जन् ] .....पच्चाइस्सइ. ११७,१२१,१३६ रा० ७६६ रा० ७६७--पच्चायति. ओ०७१. पच्चक्खित्ता |प्रत्याख्याय ] ओ० १५७ जी० ३:५७२-पच्चायाहिति. ओ० १४१. पच्चणुभवमाण [प्रत्यनुभवत् ] रा० १८५,१८७, पच्चावड [प्रत्यावर्त ] रा० २४. जी० ३१२७७ ७५१. जी० ३११०६,११८,११६,१२२,१२३, पच्चुण्णम [प्रति ।-उत् ! नम्] -पच्चुण्णमइ २१७,२६७,२६८,५७६ ओ० २१. रा० २६२-पच्चुष्णमति. पच्चणुभवमाण [प्रत्यनुभवत् ] ओ० १५. जी० ३।४५७ रा०६७२,६८५,७१०,७७४. जी० ३।११६, पच्चुण्णमित्ता [प्रत्युन्नम्य ] ओ० २१. रा०२६२. ११८,११६,१२८,३५८,१११४,१११७,१११८, जी० ३.४५७ ११२४ पिच्चुत्तर [प्रति+उत्+त]-पच्चुत्तरति. पच्चत्थिम [पाश्चात्य ] रा० ४३,४४,१७०,२३५, जी० ३.४४३-पच्चुत्तरेइ. रा० ६५६. जी० ३।४५४ २३६,२४४,२४६,६६३,६६४. जी० ३१३००, पच्चुत्तरित्ता [प्रत्युत्तीर्य ] जी० ३१४४३ ३४४,३४५,३६७,३६८,४०६,४१०,५६१, पच्चुत्तरेता [प्रत्युत्तीर्य] रा० ६५६. जी' ० ३४५४ ५६२,५६८,५७७,६३२,६६१,६६६,६६८, ६७३,६८२,६६३,६६४,६६७,६६८,७०८, पच्चुत्थत [प्रत्यवस्तृत] जी० ३।३११ ७१२,७४२,७४४,७५४,७६१,७६५,७६८, पिच्चुद्धर [प्रति ।-उद्-+-धृ] -पच्चुरिस्सामि जी० ३.११८ ७६६,७७१ से ७७३,७७६,७७८,८००,८१४, पच्चुरित्तए प्रत्युद्धर्तुम् ] जी० ३।११८ ८२५,८५१,८८२,८५,६०१,९३६,६४०, पिच्चुन्नम [प्रति+उत्- नम्]--पच्चुन्नमइ. १४४,१०१५ रा०८ पच्चथिमिल्ल [पाश्चात्य रा० २६६,२६७,३०१, पच्चन्नमित्ता प्रत्युन्नम्य] रा०८ ३०६,३१७,३२२,३२७,३३५,३४०,३४५. पच्चूसकाल [प्रत्यूएकाल] जी० ३।२८५ जी० ३.३३,२२०,२२१,२२४,२२५,४६१, पिच्चवेक्ख प्रिति-उप-+ ईक्ष] —पच वेखे इ. ४६६,४७१,४८२,४८७,४६२,५००,५०५, ओ० ५६ ५१०,५७७,६७३,६६५ से ६६७,७६६,७७१, पच्चवेक्खमाण प्रत्यक्षमाण] रा०६७४,६८०, ७७३,७७५,७७७,९१५ पच्चत्य [प्रत्यवस्तृत] रा० ३७ पच्चुवेक्खेत्ता | प्रत्युपेक्ष्य] ओ० ५६ पिच्चप्पिण [प्रति-अपय-पच्चप्पिण इ. पच्चोणिवयंत [प्रत्यवनिपतत्] ओ० ४६ ओ० ५७ -पच्चप्पिणंति. रा० १२. पिच्चोत्तर [प्रति --उत्+त]-पच्चोत्तरइ. जी० ३१५५५-पच्चप्पिणति, रा०४६ रा०२७७-पच्चोत्तरति. रा०२८८ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पच्चोत्तरित्ता-पट्टिया ६४६ पच्चोत्तरित्ता [प्रत्युतीर्य ] रा० २७७ जी० ११४,२६,८६,६६,१०१,११६,१३३, पच्चोयर [दे०] रा० १५४,१७४. जी० ३।२८६, १३६,३१४४०,४४१ पज्जत्तिभाव [पर्याप्तिभाव] रा० २७४,२७५, पिच्चोरभ [प्रति + अव--रुह-पच्चोरुभति. ७६७. जी. ३१४४०,४४१ जी० ३१५५६ पजलिय [प्रज्वलित ] रा० ४५ पच्चोरुभित्ता [प्रत्यवरुह्य ] जी० ३१५५६ पज्जव [पर्यव] रा० १६६. जी० ३।५८,८७, पिच्चोरुह प्रति+अव+रुह.]-पच्चोरुहइ. २७१,७२४,७२७,१०८१ ओ० २१. रा०२७७. जी. ३१४४३ पज्जवसाण [पर्यवसान ] ओ० १४६. रा० ८०६, ---पच्चोरहति ओ० ५२. रा० ५७ ८०७. जी० ११४६; ३३२५०,२५६,६४८, -पच्चोरुहति रा०८. जी० ३।४४३ पच्चोरुहित्ता प्रत्यवरुद्ध] ओ० २१. रा०८. पज्जालिय [प्रज्वालिता जी० ३५९४ जी० ३१४४३ पिज्जुवास [परि+उप-आस् ]--पज्जुवास इ. पच्छय [प्रच्छद] ओ० ५७ ओ०६६. रा०६- पज्जुवासंति. ओ०४७. पच्छा [पश्चात् ] ओ० १६५,१६६,१७७. रा० ६८७.-पज्जुवासति. रा०६० रा० ५६,६३,६५,२७५,२७६७८१ से ७८७, -पज्जुवासामि. रा०५८-पज्जुवासामो. ८०२. जी. ३.४४१,४४२,६८६,१०४८, रा० १०-पज्जुवासिस्संति. रा० ७०४ १११५ -पज्जुवासेइ. रा०७१६-पज्जुवासेज्जा पच्छाणुताविय [पश्चादनुतापिक] रा० ७७४, रा० ७७६ पच्छियापिडय [पच्छिकापिटक] रा० ७६१,७७२ पज्जवासणया [पर्युपासना] ओ० ४०,५२. रा०६८७ पजेमणग [प्रजेमनक] रा० ५०३ पज्जुवासणा [पर्युपासना] ओ० ६६ पजोग [प्रयोग[ रा० ७६४ पज्जवासणिज्ज [पर्युपासनीय ओ० २. पज्ज [पद्य] रा० १७३. जी० ३।२८५ १० २४०,२७६. जी० ३।४०२,४४२,१०२५ पज्जत्त [पर्याप्त ] जी० ११५१,५५,६३,६५; पज्जवासमाण [पर्युपासीन] ओ० ८३ ३।१३३,१३४; ४१६,२२,२३,२५,५।१७,२६, पज्जयासित्तए [पर्युपासितुम् ] ओ० १३६. २८ से ३०,३२ से ३६,३६,४०,४३,४६,४६, रा०६ ५२,५४ से ६० पज्जोसवणा [पर्युषणा,पर्युपशमन | जी० ३१६१७ ज्जत्तग[पयाप्तक] आ० १८२.जा. ११२, पझंझमाण [पझञ्झमान ] रा० ४०,१३२. ६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००,१०३, जी० ३१२६५ १११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५, पदपि ] रा० ३७,२४५,६६४,६८३. ३३१३६,१३६,१४०,१४६,४१२,६,१८,२१ से २३,२५,५॥३,४,७,१८ से २२,२४,२५,२७, पण पित्तन] ० ६८,८६ से ६३,६५,६६,१५५, ३१,३३,३४,३६,५०; 815८,८६.६२,६४ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७. पज्जत्तय [पर्याप्तक] ओ० १५६. जी० १११०१ जी० ३।५६५ ४.११, ५॥१२ से १६,२६,५२,६० पट्टिया [पट्टिका] रा० १३०,१६०,६६४,६८३. पम्नत्ति [पर्याप्ति] रा० २७४,२७५,७६७. जी. ३१२६४,३००,५६२ . ७७५ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट्ठ-पडिपाद ६७१ ४०७ पट्ट [प्रष्ठ] जी० ३.११८ --पडिच्छए. ओ०२ पड [पट] ओ० २३,६३ पडिच्छण्ण [प्रतिच्छन्न] जी० ३१५८१ पडत [पतत् ] जी० ३।५६० पडिच्छमाण [प्रतीच्छत् । ओ०६६ पड़ग [पटक ] रा० ७५३ पडिच्छयण [प्रतिच्छदन] रा० २४५. जी० ३१३११, पडबुद्धि [पटबुद्धि] ओ० २४ पडल [पटल ] रा० १२,१५४,१७४. पडिच्छायण [प्रतिच्छादन] रा० ३७ जी० ३१११६,२८६,३२८,३३०,३५५१३ पडिच्छिय [प्रतीप्ट] ओ० ६६. रा० ६६५ पडलग [पटलक] रा० १२,१५७,२५८,२७६. पडिजागरमाण प्रतिजाग्रत् ] रा० ७६३ जी० ३।४१६,४४५ पडिजागरेमाण [प्रतिजाग्रत्] रा० ५६ पडह पिटह] ओ० ६७. रा० १३,७७,६५७. पडिजाण [प्रतियान] ओ० ६२ जी० ३११७८,४४६,५८८ पडिण [प्रतीचीन ] जी०३१५७७,१०३६ पडागा [पताका] ओ० ५५,६४. रा० ३२,५०,५२, पडिणिकास [प्रतिनिकाश ] रा० १४६. जी. ५६,१३७,१७३.२३१,२४७,६८१.जी०११८०, ३१२२२ ८२; ३२२८५,३०७,३७२,३६३ पिडिणिक्खम [प्रति+निस् + क्रम्]-पडिणिपडागाइपडागा [पताकातिपताका ] ओ० २,१२, खमइ. ओ० २०. रा०२८६. जी० ३४५४. ५५. रा० २३,२८१. जी० ३१२६१ ____पडिणिक्खमंति रा० १२. जी० ३४४५ पडागातिपडागा पताकातिपताका] पडिणिक्यमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य] ओ० २०. रा० जी० ३।४४७ १२. जी० ३।४४५ पिडिकम्प प्रति+कल्पय् ]-पडिकप्पेइ. परिणिक्खिव [प्रति-नि-क्षिप ....पडिणिओ० ५७-पडिकप्पेहि. ओ० ५५ क्खिव इ. रा०२८८. जी० ३१५१६.--पडिणिपडिकम्पिय [प्रतिकल्पित ] ओ० ६२ विखवेइ, जी० ३।४५४ पडिकप्पेत्ता [प्रतिकल्प्य ] ओ०५७ पडिणिक्विवित्ता प्रतिनिक्षिप्य] रा० २८८. जी० पडिकूल [प्रतिकूल ] रा० ७५३,७६७,७६५,७७६, ३१५१६ ७७७ पडिणिविखवेत्ता [प्रतिनिक्षिप्य] जी० ३१४५४ पडिक्कंत [प्रतिक्रान्त] ओ० ११७,१४०,१५७, पिडिणियत्त प्रति+नि-वृत् |---पडिणियत्तइ. १६२. रा० ७६६ ओ० १७७---पडिणियत्तंति.जी. ३७४६ पडिक्कमणारिह [प्रतिक्रमणार्ह ] ओ० ३६ पडिणियत्तित्ता [प्रतिनिवृत्य] ओ० १७७ पडिगय [प्रतिगत ] ओ० ७ से ८१. रा० ६१, पडिणीय [प्रत्यनीक] ओ० १५५. जी० ३।६१२ पडिदुवार {प्रतिद्वार] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७ पडिगाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम्] ओ० १११ जी. ३१३७२,४४७ पडिग्गह [प्रतिग्रह] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पिडिनिक्खम [प्रति-+निस् । कम्] -पडिनिक्ख७५२.७८६ मइ. रा० ७१०.–पहिनिक्खमंति. रा० २७६. पडिग्गाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० ११२ ___ --पडिनिक्खमति जी० ३१४४६ पडिचंद [प्रतिचन्द्र ] जी० ३१६२६,८४१ पडिनिक्खमित्ता [प्रतिनिष्कम्य] रा० २७६. जी० पडिचार प्रतिचार ओ०१४६. रा० ८०२ ३१४४६ पिडिच्छ प्रति+इष्]--परिच्छइ. रा० ६८४ पडि पाद प्रतिपाद] जी० ३,४०७ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिपाय-पडिविसज्ज पडिपाय [प्रतिपाद] रा० २४५ ३१६,३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३३, पिडिपिधा [प्रति + पि+-धा-पडिपिधेइ. जी० ३३४,३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३३५१६ ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५.३८७, पडिपिधेत्ता [प्रतिपिधाय] जी० ३३५१६ ३६०,३६२,३६३,३६६,४००,४०१,४०४,४०६ पिडिपुच्छ [प्रति-+प्रच्छ ] – पडिपुच्छंति. ओ० ४५ ।। से ४०८,४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२७, परिपुच्छण [प्रतिप्रश्छन] ओ० ५२. रा० ६८७ ४३७,५८१,५८४,५८५,५६६,५६७,६३२,६३६, पडिपुच्छणा [प्रतिप्रच्छना] ओ० ४२ ६४४,६४६,६४६,६५५,६६१,६६८,६७१,६७२, परिपुच्छणिज्ज प्रतिपृच्छनीय रा० ६७५ ६७५,६८६,७२४,७२७,७३६,७५८,८३६,८५७, पडिपुण्ण [प्रति पूर्ण] ओ० १४,१५,१६,६३,७२, ८६३,८८१,८८२,८६१,८६३ से ८६५,८६७, १२०,१४३,१५३,१६२,१६५,१६६,१७०. ८६८,६०४,६०६,६०७,६११,६१८,१०३८, रा० १३१,१४७,१४८,१५०,१५२,२८०,२८६, १०३६,१०८१,११२१,११२२ ६७१ से ६७३,६६८,७५२,७८६,८०१,८१४. पडिरूवय [प्रतिरूपक | रा०१६.२०,१७५ से १७६, जी० ३।३०१,३२३,३२५,४४६,४५२,५६२, २०२,२३४,२६४. जी० ३१२८७,२८८,३६३, ५६६,५६७,६१० ३९६,५७६,६४०,६४१,६६६.६८४ पडिपुग्णचंद [प्रतिपूर्णचन्द्र ] जी० ३१८६,२६० परिचय [प्रतिरूपक रा० १६,४७,४८,५६,५७, पडिपुग्न [प्रतिपूर्ण] जी० ३१५९६ २७७,२८८,३१२,४७३,६५६. जी०३।४४३, परिबंध [प्रतिबन्ध ] ओ० २८. रा० ६६५,७७५ ४५४,४७७,५३२,५५६ पडिबद्ध प्रतिबद्ध] जी० ३।२२ पिडिलाभ [प्रति+लाभय]-पडिलाभिस्संति. पडिबोहण [प्रतिबोधन] रा० १५ रा०७०४.- पडिलाभेइ. रा०७१६. पडिबोहिय [प्रतिबोधित] ओ० १४८,१४६. रा० -पडिलाभेज्जा. रा० ७७६ ८०६,८१० पडिलामेमाण [प्रतिलाभयत् ] ओ० १२०,१६०. पडिमट्ठाइ [प्रतिमास्थायिन् ] ओ० ३६ रा० ६६८,७५२,७८९ पडिमोयण [प्रतिमोचन] जी० ३२७६,५८१,५८५ पिडिलेह [प्रति + लिख्]—पडिले हेइ. रा० ७६६ पडियाइक्खिय [प्रत्याख्यात ] ओ० ११७ पडिलोम [प्रतिलोम] रा० ७५३,७६७,७६८,७७६, पडिलव [प्रतिरूप] ओ०७,१० से १२,१५,७२,१६४. रा० १,२,१६ से २३,३२,३४,३६ से ३८, पडिवंसग [प्रतिवंशक] रा० १३०. जी० ३१३०० १२४ से १२८, १३० से १३४,१३६,१३७, पिडिधज्ज [प्रति-: पद्—पडिवज्जइ. १४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से ओ० १८२. रा० ७७५.–पडिबज्जति. १५७,१६०,१६१,१७४,१७५,१८० से १८५, ओ०१५७. ....पडिवज्जिामि. रा०६९५. १८८,१९२,१९७,२०६,२११,२१८,२२१,२२२, --पडिवज्जिमामो. ओ० ५२. रा०६८७ २२४,२२६,२२८,२३०,२३१,२३३,२३८,२४२, २४४ से २४७,२४६,२५३,२५६,२५७,२६१, पडिज्जित्ता [प्रतिपद्य ] ओ० १५७ २७३,६६८ से ६७०,६७२,६७३,६७६,६७७, पडिवण्ण [प्रतिपन्न] ओ० २४,७८,८२,१८२ ७००,७०२,७०३. जी० ३१२३२,२६० से २६३. पडिवत्ति [प्रतिपत्ति] जी० १०; ६१८ २६६ से २६६,२७६,२८६ से २६७,३०० से पडिविरय प्रतिविरत ] ओ० १६१,१६३ ३०४,३०६ से ३०८,३१० से ३१२,३१८, पिडिविसज्ज [प्रति-+-वि+सर्जय्] ७७७ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिवह-पणाम ६७३ —पडिविसज्जे इ. ओ० ५४. रा०६८४. पडुप्पन्न [प्रत्युत्पन्न ] जी० ३३१६५ से १९७ --पडिविसज्जेहिति. ओ० १४७. रा०८०८ पडपाएमाण [प्रत्युत्पद्यमान] जी० ३।२५६ पडिवह [प्रतिव्य ह] ओ०१४६. रा० ८०६ पडोयार [प्रत्यवतार] ओ० ४३. जी. ३२१८, पडिसंखेवेमाण प्रतिसंक्षिपत्] रा० ५६ २५६,५७८,५६६,५६७ पडिसलीणया [प्रतिसंलीनता] ओ० ३१,३७ पढम [प्रथम ] ओ० ४७,१४४,१७४,१७६,१८२. पडिसंसाहणया [प्रतिसंसाधना] ओ ४० रा०८०२. जी० १२२६,६८२,६८३,६८८; पिडिसार [प्रति+-सं+ह]-पडिसाहर इ. ७१,२,४,६,११,१३,१५,१७,२०,२२२३; ओ० २१. रा०८ ६।१ से ७,२३२,२३३,२३५,२३७,२४१,२४३, पडिसाहरित्ता | प्रतिमहत्य] ओ० २१ २४५,२४७,२५०,२५२,२५३,२५५,२६७,२६८, पडिसाहरेत्ता [प्रतिसंहृत्य ] रा० ८ २७०,२७२,२७५,२७७,२७६,२८१,२८४,२८६, पडिसाहरेमाण [प्रतिसंहरत् ] रा० ५६ २८८ से २६३ पिडिसुण [प्रति--- श्रु]-पडिसुणंति. रा० १०. पढ़मग [प्रथमक] रा० २२८. जी० ३१३८७,६७२ जी० ३१४४५.–पडिसुणिज्जासि. रा० ७५३. पढमसत्तराइंदिया प्रथमसप्त रात्रिंदिवा] ओ० २४ --पडिसुणे इ. ओ० ५६. रा० १८.--पडि- पढमसरयकाल[प्रथमशरत्काल] जी० ३।११८,११६ सुर्णेति ओ० ११७. रा० ७०७. जी. ३१५५५. पढमा [प्रथमा] जी० ३१२,३,८८,११११ --पडिसुणेति. रा० १४, पडिसुणेज्जासि, पढमिल्लुय [प्रथम] रा० ७६८ रा० ७५१ पणगजीव [पनकजीव | ओ०१८२ पडिसुणित्ता [प्रतिश्रुत्य] रा० १८. जी० ३६४४५ पणच्च [+ नृत्य]--पच्चिसु. रा० ७५ पडिसुणेत्ता [प्रतिश्रुत्य] ओ० ५६. रा० १०. पणतीस [पञ्चत्रिंशत् ] जी० ३.८०२ जी० ३१५५५ पणपण्ण [दे० पञ्चपञ्चाशत् जी०६।६ पडिसुय [प्रतिश्रुत] रा० १४ पणपन्न दे० पञ्चपञ्चाशत् | जी० २।२० पडिसूर [प्रतिसूर] जी० ३।६२६,८४१ पणमिय [प्रणत | ओ० ५,८,१०. रा० १४५. पडिसेग [प्रतिषेक] रा० २५४ जी० ३१२६८,२७४ पडिसेविय | प्रतिषेवित ] रा० ८१५ पणयाल ! पञ्चचत्वारिंशत् | जी० ३१२२६३६ पडिसेह {प्रतिषेध] जी ० २।६६,१०१ पणयालीस [पञ्चचत्वारिंशत् ] ओ० १६२. पडिहत | प्रतिहत] जी० ३१७४६ जी० ३१३०० पडिहत्य | दे० रा. १७४. जी. ३।३२४,८५७, पणयालीसविह [पञ्चचत्वारिंशविध ] ओ० ४० ८६३,८६६,८७५,८८१,६४८ पणयासण [प्रशतासन ] रा० १८१,१८३. पडिहय | प्रतिहत ] ओ० १६५।१,२ जी० ३।२६३ पडीण | प्रतीचीन ] रा० १२४. जी० ३१६३६ पणव पणव] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. पडीणवात | प्रतीचीनवात | जी० १८१ जी० ३७८,४४६,५८८ पड़ीणवाय प्रतीचीनवात जी० ३१६२६ पणवण्णिय |पणपन्निक] ओ० ४६ पड़ पटु] ओ० ६८. रा० ७,१३,६५७. पणवीस [पञ्चविंशति | रा० १२७. जी० ३१६१ जी० ३१३५०,४४६,५६३,८४२,८४५,१०२५ पणस [पनस] जी० ३३८८ पडुच्च [प्रतीत्य ] रा० ७६३. जी. ११३४ पणाम [प्रणाम] रा०६८,२६१,३०६. Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ पणि-पत्तियमाण जी. ३.४५७,४७१,५१६ पणि [पर ] जी० ३ ६०७ पणिय पणित, पण्य ] ओ०१. रा० ७७४ पणियगिह । पणित, पण्यगृह ] ओ० ३७ पणियसाला [पणित, पण्यशाला] ओ० ३७ पणिहाय प्रणिय, प्रणिहाय जी० ३१७३ से ७५, १२४,१२५,७६५,१०२५ पणीत प्रणीत | जी० ११ पणीयरसपरिच्चाय [प्रणीतरसपरित्याग | ओ० ३५ पणुवीस [पञ्चविंशति | जी० ३।२२६३५ पणोल्लिय प्रणोदित ] ओ० ४६ पण्णओ | प्रज्ञातम्] रा० ७५२,७५४,७५६,७५८, ७६०,७६२,७६४ पण्णगद्ध [पन्न गार्ध] जी० ३१३०२ पण्णट्ठ पञ्चपष्टि] जी० ३१२२२ पण्णट्टि [पञ्चपष्टि] रा० १६४ पण्णत्त | दे०] ओ० १ पण्णत्त प्रज्ञप्त) ओ०२. रा० ३. जो०११ पण्णत्तर पञ्चनप्तति | जी० ३१२४६ पण्णत्तरि [पञ्चसप्तति ] जी० ३१६६१ पण्णत्ति प्रज्ञप्ति स० ८१७ पण्णरस [पञ्चदशन् ] जी० ३।१२ पण्णरसविष [पञ्चदशविध] जी० ३३२२६ पण्णरसविह [पञ्चदश विध] जी० ११८०; २०१४ 4/पण्णव | प्र-! ज्ञापय | -- wणवइंसु. जी० ११. ----पण्णवे:ओ० ५२. रा०६८७ -पण्णवेति जी० ३१२१०..-पण्णवे हेंति. जी० ३१८३८.३ पण्णवणा प्रज्ञापना] T० ७७४. जी० ११५,५८, ७२,१००,११०,१११,११६,११८,१२६,१३५ १८६३।१८४,२१४,२३२,२३३ पण्णवणापद [प्रज्ञापनापद] जी० ३।२२०,२३१ पण्णवित्तए प्रज्ञापयितुम् | रा० ७७४ पण्णवीस पञ्चविंशति ] जी० ३।१२ पण्णवेमाण [प्रज्ञापयत् ] ओ०६८ पिण्णाय [प्रज्ञा-पण्णायति. जी. ३.६६E पण्णास [पश्चात् ] रा० २०९. जी० २१३९ पण्हावागरणवसाधर [प्रश्नव्याकरणदशाधर | ओ० ४५ पतणतणाइत्ता | प्रतनतनाय्य | रा० १२ पितणतणाय प्र-तनतनाय }- पतणतणायंति. रा० १२ पतणु [प्रतनु ] ओ० ६१,११६ पतरग [प्रतरक | जी० ३.३०२ पितव |प्र : तव — पतवंति, जी० ३।४४७. -पतवेंति. रा० २८१ पतिट्ठाण प्रतिष्ठान ] रा० १६,१७५. जी० ३२८७,३००,४४६,४४८ पत्त [पत्र] ओ० ५,६,८,१३,१६,२७,६४. रा०६, १२.२६,३१,१६१,१७४,२२८,२५८,२७०, २७६,७८२. जी० ११७१,७२, ३१११८,११६, २०४,२७५,२७६,२८३,२८४,२८६,३३४, ३८७,४१६,४३५,४५४,५८१,५८६,५६६, ६२२,६४३,६७२ पत्त प्राप्त] ओ० ३७,११७,१४०,१५७,१६२, १६५।१६,२२. राः १,६३,६५.६६७,७६६, ७९७. जी० ३.८६७ पत्तच्छज्ज पत्रच्छेद्य | ओ० १४६. रा० ८०६ पत्तट्ठ | दे० प्राप्तार्थ ] ओ०६३. रा० १२,७५८, ७५६,७६५ ७६६,७७० पत्तभार [पत्रभार) ओ० ५,८. जी० ३.२७४ पत्तमंत [पत्रवत् ] ओ० ५.८. जी० ३१२७४ पत्तल [पत्रन ओ०१६,४७. जी० ३१५९६,५६७ पत्तासव वानव जी० ३१८६० पत्ताहार पत्राहार ओ०६४ पत्तिय |प्रति। ---पत्तिएज्जा. रा० ७५०. ----पत्तियामि, रा०६६५ पत्तिय | पत्रित | रा० ७८२ पत्तियमाण प्रतियत् | जी० १११ १ द्रष्टव्यम् -निशीथभाष्य ४४३५ । १. अनुकरण वचन । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्ती-मभास पत्ती [पात्री] जी० ३॥५८७ ७६१,७९३,८०४. जी०३१४४१,४४२ पत्तेग | प्रत्येक जी० ॥२६ पद पिद] रा०७६,२६२. जी० ३१८४,४५७ पत्तेगसरीर | प्रत्येकशरीर] जी० १३१ पत्तेय [प्रत्येक ओ० ५०. रा० २०,४८,१३७, पदाहिण [प्रदक्षिण ] जी० ३१४४३ १६४,१७०,१७४ से १७६, १८६,२११,२१५, पदाहिणावत्तमंडल [प्रदक्षिणावर्तमण्डल] २१७ से २१६,२२१,२२२,२२४२२६,२२७, २३०,२३१,२३३,२५५,२५६,२८२,६६४. पदीव [प्रदीप] रा० ७७२ जी०३।२५६,२८६ से २८८,३०७ से ३१३, पदेस प्रदेश रा० १३५,२३६,७७२. जी०१४; ३४५,३५५,३५६,३५८,३५६,३६३,३६८, ३१३०५, ३२७,५७३,५६७,६६८,७१७,७८८, ३६६,३७२ से ३७८,३८०,३८१,३८३ से ७८६,८०३,८२८,८२६,८४५,८५३,९४६; ३८६,३६२,३६३,३६५,४१६,४१७,४४८, ५१५१ ५५८ से ५६२,६३२,६३४,६३५,६३७,६४१, पदेसट्टता प्रदेशा] जी० ५१५१,५२ ६६१,६६२,६८३ ६८४,७२५,७२७,७२८, पदेसट्ठया [प्रदेशार्थ ] जी० १५० से ५२,५८ ७६२,७६३,८५७,८८२ से ८८५,८८७ से ८६१,८६३,६०३,९०६,६०८,६१०,६११, पन्नगल [पन्नगार्ध] रा० १३२ ६१३,१०४८; ५:२८, ३०; १।१७४ पन्नरस [पञ्चदशन् ] रा० २०८. जी० ३।३८३। पत्तेयजीव प्रत्येकजीव] जी० ११७१ पम्नरसइ पञ्चदश] जी० ३१८३८.१६ पत्तेपबुद्धसिद्ध [प्रत्येकबुद्धसिद्ध] जी० २८ पन्नरसविह [पञ्चदशविध] जी० २०१४ पत्तेयरस [प्रत्येकरस] जी० ३१६६३ पन्नास [पञ्चाशत् ] रा० १२७. जी० २०२० पत्तेयसरीर [प्रत्येकशरीर] जी० १.६८,६६,७२; पप्पडमोयय [पर्पटमोदक ] जी० ३१६०१ ३१,३३ से ३६ पप्फाल [प्रफुल्ल ] जी० ३१२५६ पतोमोवरिय [प्राप्तावमोदरिक] ओ० ३३ पन्भट्ट [प्रभ्रष्ट] रा० १२,२६१,२६३ से २६६, पित्य {प्र+अर्थय् ] —पत्यंति. ओ०२०-पत्थेइ. ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७ से रा०७१३-पत्यति. रा० ७१३ ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ पत्य [प्रस्थ ] ओ० १११ पन्भार प्रारभार ओ० ४६ पत्य [पथ्य ] जी० ३८५४,८७८,६५७ पभंकरा प्रभङ्करा] जी० ३।१०२३,१०२६ पत्थड प्रस्तट | रा० १३०, १३७. जी० ३३००, पभंजण |प्रभञ्जन] जी० ३७२४ ३०७ पभा प्रभा ओ० ४७,७२. रा० २१,२३,२४, पत्थडोदय प्रस्तटादक ] जी० ३.७८३,७८४ ३२,३४,३६,१२४,१४५,१५४,१५७,२२८,२७३ पत्यय (पथ्यक रा० ७७२ ७७७,७७८,७८८. जी. ३१२६१,२६६,२६६. पत्थयण [पथ्यदन रा० ७७४ ३२७,३८७,६३७,६५६,६७२,७२८,७४३, पत्थर [प्रस्तर] ओ० ४६ ७५०,७६३,७६५,१०७७ पत्थिज्जमाण [प्रार्थ्यमान, ओ० ६६ पभाय | प्रभात ओ० २२. रा०७२३,७७७,७७८, पत्थिय [प्रार्थित ] ओ० ७०. रा०६,२७५,२७६, ७८८ ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, पभास [प्रभास] रा० २७६. जी० ३।४४५ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ प्रभास-पयावण प्रभास [प्र--भास्]-पमासिसु. जी० ३१७०३ -~-पभासिरसंति. जी० ३१७०३.- पभासे इ. रा० ७७२. जी. ३।३२७ --पभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ ---पभासेति. १० १५४. जी० ३१७४१ पभासेमाण |प्रभासमान ! ओ० ४७,७२. जी० ३.११२१ पभिइ |प्रभृति ] रा० ७६०,७६१ पभिति प्रभूति | ओ० ५२,६३. रा० ६८७,६८८, ७०४. जी० ३८३८१२५ पभु | प्रभ] रा० ७५८ से ७६१. जी० ३।११०, १८८ से १६७,१०२३ से १०२५,१११५, पभूय [प्रभू] ओ० १,१४,४६,१४१. रा०६, १२,६७१,७६६. जी० ५८६ पमज्ज प्र--मृज् ---एमज्जइ. रा० २६१ --पमज्जति. जी० ३४५७ पमज्जित्ता [प्रमृज्य ] रा० २६१. जी० ३१४५७ पमत्त प्रमत्त | रा० १५ । पमण [प्रमर्दन] ओ०२६. रा० १२,७५८.७५६. जी० ३.११८ पमाण |प्रमाण] ओ० १५,१६,३३,१२२,१४३. रा० ६.१२,४०,२०५ से २०८,२२५,२५४, २७६,६७२,६७३,६७५,७४८ से ७५०,७७३, ८०१. जी० ३।३१३,३६८ से ३७१,३८४, ४०६,४१२,४१५,४४२,५६८,५६६,५६६,५६७, ६५२,६६६,६७३,६७६,६७६,६८५,६८६, ६८८,६९१ से ६६८.७३७,७५०,७५३,७६४, ७६५,८००,८८६,८६६,८६८,६१६ से १२१, ६४१,१०७४ पमाणपत्त प्रमाणप्राप्त ओ० ३३ पमाणभूय ] प्रमाणभूत | स० ६७५ पमाय प्रमाद ] ओ० ४६ पमावायरिय | प्रमादावरित | ओ. १३६ पमुइय | प्रमुदित] ओ० १,१६,४६. ग. १७३. जी० ३.५६ पमुच्चमाण [प्रमुञ्चत् ] जी. ३१११८ पमुदित प्रमुदित जी० ३१२८५ पमुह |प्रमुख | ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. रा० २४६,७७६ पमोकक्स प्रमं क्ष] रा० ६६८,७५२,७८६ पम्ह [पक्ष्मन् | ओ० ८२ पम्ह [पद्म | श्री० ६।१६४ पम्हल | पक्ष्मल ओ० ६३. रा० २८५. __ जी० ३।४५१ पम्हलेस पथ मेश्य | जी० ६।१६० पम्हलेस्स [पद्मलेश्य ] जी. ६।१८५,१६६ पम्हलेस्सा | पद्मलेश्याj जी० ३१११०२ पय पद | ओ० २१,५४. रा० ८,७१४, जी० ॥२३६,२८५ पयंठग प्रकण्टक / जी० ३।३२२ पियच्छ [प्रयम् ].-पयच्छइ. रा०७३२ पयण |पचन] ओ० १६१,१६३ पयण प्रतनु] जी० ३१५९८,६११,७९५,५४१ पयत [प्रयत] जी० ३.४५७ पयत्त प्रयत्न रा०२६२. जी. ३.६०१,८६६ पयबद्ध | पदबद्ध रा० १७३, जी० ३१२८५ पययदेव पतगदेव,पतकदेव ] ओ० ४६ पयर प्रतर | रा० ४०,१३२ पयरग [प्रतरक | जी. ३१२६५,३१३,५९३ पयला (प्र--- वलाय]-पयलाएज्ज. जी० ३१११८ पयर्यालय | प्रचलित | ओ० २१,५४. रा०८, ७१४ पयसंचार | पदञ्चार रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ पिया प्र-जनय् | -पयादिइ. रा०८०१ -पयानिति. ओ. १४३ पयाणुसारि [पदानुकारिन् ओ० २४ पयार | प्रचार ] ओ० ३७ फ्यावण [पाचन] ओ० १६१,१६३ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पयाहिण-परिक्खित्त ६७७ पयाहिण प्रिदक्षिण] ओ० ४७,५२,६६,७०,७८, परमण्ण [परमान] जी० ३५६२ ८०,८१,८३. रा० ६,१०,१२,५६,५८,६५. परमसीय [परमशीत] जी० ३१११५ ७३,७४,११८,१२०,८७,६६२,६६५.७००, परमसुक्कलेस्सा [परमशुक्ललेश्या] जी० ११०४ ७१६,७१८,७७८ परमसुक्किल [परमशुक्ल जी० ३११०७६, १०६६ पयाहिणावत्त |प्रदक्षिणावर्त ) ओ० १६. परमहंस [ परमहंस] ओ०६६ जी० ३।५६६,५९७,८३८।१०.११ परमाउ [परमायुष ] ओ०६८ पयोधर [पयोधर ] जी० ३१५६७ परमाणु परमाणु] जी० ७७१. जी० ११५ पर पिर] ओ० १५४,१५५,१६० से १६३,१६५, परलोग [परलोक] ओ० २६, ८६ से १५, ११४, १६६. रा० ८१६ ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ परं परम् | जी० ३१८३८१२३ परवाइ | परवादिन् | ओ० २६ परंगमाण | पर्यङ्गन] रा० ८०४ परवाय [परवाद | ओ० २६ परंपर | परम्पर] जो० ११४३ परसु [परशु] रा० ७६५ परंपरगय परम्परगत | ओ० १६५२० परस्सर [पराशर] जी० ३।६२० परंपरसिद्ध [परम्प सिद्ध] जी० १७,६ पराइय [पराजित ] ओ० १४. जी० ६७१ परामुस [परा । मृश्] --परामुसइ. रा० २६४. परक्कम पराक्रमजो० ८६ से ६५,११४,११७, जी० ३१४६० ----परामुसति. रा० २६८. १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ जी० ३.४५७ परग [परक जी० ३१५८७ परामुसिता [परामृश्य] रा० २६४. जी० ३।४५७ परधर [ परगृह ] रा० ८१६ पिरावर्त [परा-1-वृत्]-परावत्तेइ. रा० ७२६ परच्छंवाणुवत्तिय [परच्छन्दानुवर्तित | ओ० ४० परपरिवाइय [परपरिवादिक] ओ० १५६ -परावत्तेहि. रा० ७२८ परपरिवाय परपरिवाद] ओ० ७१,११७,१६१. परासर पराशर] ओ० ६६ । परिकच्छिय | परिकक्षित रा० ५२ परिकम्म [परिकर्मन् ] ओ० ३६ परपरिवायविवेग पर परिव दविवेक ओ० ७१ “परिकह परि-कथय ।----परिकहे ओ०७१. परपुट्ट | परपुष्ट] रा० २५. जी० ३ २७८ रा०६१ परम परम ओ०२०, २१, ५३, ५४, ५६, ६२, परिकले ५६, १२ परिकहे परिकथयितुम् ओ० १६५।१६ ६३,७८,८०,८१. स० ८,१०,१२ से १४,१६ परिकिलंत परिक्लान्त ] रा० ७२८, ७६०,७६१ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, परिकिलेस परि + क्लिश् । —परिकिलेसंति २७६, २८१,२८८, २६०, ६५५, ६८१,६८३, ओ० पर ६६०, ६६५, ७००, ७०७, ७१०, ७१३,७१४, परिकिलेस [परिक्लेश] ओ० १६१,१६३ , ७१६, ७१८, ७२५, ७२६, ७६५, ७७४,७७८, परिकिलेसित्ता परिक्लिश्य ] ओ० ८६ ८०२. जी० ३११६, ४४३, ४४५,४४७,४५५ परिक्खित्त [परिक्षिप्त ] ओ० १, ५२, ६४, ७०. परमकिण्ह । परम कृष्ण ] जी० ३१८३, ६४ रा० १७,१८,१३२,१७०,१७४,२३३,६८१, परमकिण्हलेस्सा । परमकृष्ण श्या । जी० ३.१०२ ६८३, ६८७,६८८, ६६२, ७००, ७१६,८०४. परमट्ट [परमार्थ ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८, जी० ३.२५६,२८६,३०२,३५८,३६५,६३२, ७५२, ७८६ ६६१, ६८३, ७६२, ८५७,८८२,६१०,६११ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक्खेव-परिभव परिक्खेव [परिक्षेप] ओ० १७०. रा० १२४,१२६, ५१८ १८८,१८६,२०१. जी० ३।५१,८१,८२,८६, परिणम | परिणम् - परिणमइ, ओ० ७१. १२७, २१७, २२२, २२६१३ से ६, २६०, रा० ७७१ -परिणमंति, जी० १६५ २६३, २७३, २६८,३५१, ३६१, ३६२,५७७, परिणमंत | परिणमत् ] रा०७७१ ६३२, ६५८, ६६१, ६६८,६८६, ७०६,७३६, परिणममाण [परिणमत्] जी० ३१९८२ ७५४, ७६२, ७६५, ७७०,५६४, ७६५,७६८, परिणय [परिणत] ओ० ५,८. रा० १२,७५८,७५६ ८१२, ८२३, ८३२, ८३५, ८५०,८८२,६११, ८०६,८१०. जी० ११५; ३,२२,११८,२७४,५८६ ६१८, ६५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ ५८८ से ५६२,५६४ । परिखित्त | परिक्षिप्त ] ग० ५६, १७३, ६८१. परिणाम [परिणाम | ओ०७१,१०,११६,१५६. रा० जी० ३२२८५ १३३. जी. ३।१२८,३०३,५८६,५८८,५६२, परिगत [परिगत] जी० ३।२८८, ३००, ३३२ ६७४,६७६ से १८२ परिगय [परिगत ] ओ० २ रा० १७, १८, २०, परिणाम [परि। णामय ] ...परिणामेइ. रा०७३२ ३२, १२६, १५६, ७६५. जी० ३।३७२ अपरिणिवा | परि-- निर+बा]-परिणिबाइ.ओ. परिग्गह [परिग्रह ] ओ०७१, ७६, ७७, ११७, १७७-परिणि व्वायंति. ओ०७२. जी० १११३३ १२१, १६१, १६३. रा० ६६, ७१७, ७६६ ...-परिनिवाहिति. ओ० १६६ --परिणिबा. परिग्गहवेरमण [परिग्रहविरमण | ओ० ७१ हिति. ओ० १५४ परिग्गहसण्णा [परिग्रहसंज्ञा] जी० ११२०; ३।१२८ परिणिन्वाण [ परिनिर्वाणj ओ० ७१ जी० ३।६१५ परिगहिय [परिगृहीत] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, परिणिन्य परिनिर्वत ओ०७१ ६२,६४,११७,१३६. रा० ८,१०,१२,१४,१८, परिताव [परिताप ] ओ० ८६ ४६,५१,७२,७४,११८,२७६,२७६ से २८२,२६२' परितावणकर [परितापनकर | ओ० ४० ६५५,६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, परिताविय परितापित | ओ० ६२ ७२३,७६०,७६१,७६६. जी० ३१४४२,४४५, परित परीत] जी० १.२६,६२,६४,६५,७७,७६, ४४६,४४८,४५७,५५५,६३०,७२७ ८०,८२,८७,८८,६६,१०१,१०३,११२,११६, परिघट्टिय [परिघट्टित रा० १७३. जी. ३।२८५ ११६,१२१,१२३,१२८,१३४,१३६, ६७५, परिषट्ठ परिघृष्ट ] रा० ५२,५६,२३१,२४७. जी. ३१३६३,४०१ परित्तसंसारिय [परीतसंसारिक] रा०६४ परिचत्त परित्यक्त] ओ०६२ परिघाव [परि+धाव -परिधावंति. रा० २८१. परिचंबिज्जमाण |परिचम्व्यमान | रा०८०४ जी० २१४८७ परिच्छेय परिच्छेद । ओ० ५७ परिनिव्वा परि + निर ।-वा ] .....परिनिव्वापरिजण [परिजन । ओ० १५०. रा० ७५१,८०२ हिति. रा०८१६ परिपोलता [परिपीड़य] जी० १५० पिरिजाण {परि ज्ञा}--परिजाणाइ. रा० ७०१ परिपुण्ण [परिपूर्ण] रा० २४ —परिजाणाति. रा० ७५३ परिपूत [परिप्त | जी० ३।८७८ परिजूसिय [परिजुष्ट ] ओ० ४३ परिपूय परिपूत ] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ परिणत [परिणत] जी० ११५, ३१५८७,५६३,५६५, परिभव (परिभव] ओ० ४६ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभवणा-परिवढि ६७६ ८०२ परिभवणा [परिभवना | ओ० १५४,१६५,१६६ ७७८,८०४ परिभाइत्ता[ परिभाज्य रा० ६६५ परियावणकर [परितापनकर] ओ० १६१,१६३ परिभाएमाण [परि भाजयत् ] रा०७६५,७८७,७८८, । परिरय [परिरय] ओ० १६२. जी० ३१२१६११, २,४,५,८३६,६१० परिभायइत्ता | परिवाज्य] ओ० २३ परिलित [परिलीयमान] ओ० ६२. जी० ३।२७५ परि जमाण परि जान | ओ० ११६,११७ परिलो [दे०] रा० ७७ परिभुजेमाण [परिभुञान ० ७६५,८०२ परिवंदिज्जमाण [परिवन्धमान ] ० ८०४ परिभुज्जमाण | परिभुज्यमान] ० ३०,१३६.१७४, परिवच्छिय [परिवनित'] ओ० ५७ ___ ८०४. जी० ३! ११८,११६,२८३,२८६,३०६ ।। परिवज्जिय [परिवजित ] जी० ३।६२२ परिभोगत्त [परिभोगत्व | जी० ३।६१८ परिवड्ड [परि--- वृध्] ----परिवड्ढइ. जी. ६१६,६२१ ___ ३१८३८।१८.---परिवढिस्स इ. रा० ८०४ परिमंडल परिमण्डल| रा०६,१२,१४. जी. परिक्य [परि : वृत् ] -परिवयंति. रा० २८१. ११५; ३ २२ जी० ३२४४७ परिमंडित [परिमण्डित ] जी० ३।३७२ परिवस [परि-1-वस] परिवस इ. ओ०१४ परिमंडिय परिमण्डिन । ओं० १,५७,६४,७०. रा० २०७०३.-.-परिवसंति औ०१८४. ३२,५२,५६,१७३,२३१.२४७,६८१,८०४. रा० १८६. जी० ३१२३२.-परिवसति. जी० ३:३६३ जी० ३१२३४ परिमद्दण [परिमर्दन] ओ० ६३ परिवसण [परिवसन] जी० ३१५६८ परिमाण |परिमाण ] जी० ३।१२७४३,२५०,२५८ परिवह [परिवह]-परिवहति परिमिय परिमित | जो० १५. रा० ६७२ जी० ३११०१५ परिमिपिंडवाइय [परिमितपिण्डपातिक ] ओ० ३४ परिवहितए [परिवोढुम्] रा० ७६० परियट [परिवत] - परिययंति ओ० ४५ परिवाइणी [परिवादिनी | जी० ३१५८८ परिवाहिती परियट्टणा परिवर्तना] ओ० ४२,४३ परिवाडी [परिपाटी] रा० १३१ से १३३,१३५, परियत परिवर्त जो० ४६ १३६. जी० ३१३०१ से ३०३ परियर [परिकर रा० ६६,७६५ परिवायणी पिरिवादिनी] रा०७७ परियाई परि + आ---दा--परियाएइ रा० । परिवार [परिवार ओ० ७०. रा० ७,४२,४७, १८-परियायनि रा० १०.जी. ३१४४५ ५६,५८,६१,६७,१६४,१८६,२०४ से २०६, परियाइत्ता मर्यादा रा० १०. मी० ३।४४५ २१६,२४३,२८०. जी० ३।३४०,३५०,३५६, परियाइय | पर्यात १०६६४. जो० ३.५६२ ३६६,३६८,३७८,४०५,४४६.४४८,५५७, परियाग [पर्याय | ओ० ६४,१५५,१५८ से १६०, ५६३,६३५,६५७,६६३६७३,६८०,६८५, ७३.७,७४०,७४२,७४५,७५०,७६२,७६५, परियाण परि-ज्ञा - परियाणइ रा० ६४ ७६८,७७०,१०००,१०२३,१०५४ परियाय पर्याय ! ओ० २३,११४,१४०. परिवाल [परिवार रा० १३,१२० रा० ८१५ परिविद्धंसइत्ता [परिविद्धवस्य ! जी० ११५० परियारणिति [परिचारद्धि] जी. ३३१०२५ परिवुष्टि [परिवृद्धि] जी० ३।७८८,७८६ परियाल [परिवार] ओ० २३,७०,७१. रा० ७७७, १. परिपक्षितं -परिगृहोतं परिवृत्तम् (व)। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० परिश्वय-पलिओवम परिव्वय परिव्यय ] रा० ७७४ परिवायग | परिव्राजक] ओ० १०१ से १३३ परिवाया [परिव्राजक] ओ०६६ से १६,११७ परिसडिय परिशटित ] ओ० १४. रा०७६०, ७६१,७८२ परिसप्प [परिसर्प ] जी० १११०२,१०४,१२०, १२२; ३।१४१,१४३ परिसप्पो [परिसी] जी० २१५,७ परिसा | परिषद] ओ०४३,७६. रा० ६,७,४३, ५६,५८,६१.२७६ से २८०,२८४,२८७,६६० से ६६२,६६६,६६३,६६४,७१२,७१७,७३२, २४१ से २४३,२४५ से २४७,२४६,२५०,२५४ से २५६,२५८,३४१ से ३४३,३५०,३५६,४४२ से ४४६,५५७,५६०,५६३,८४२,८४५,१०४० से १०४२,१०४४,१०४६ से १०५३,१०५५ परिसार परि + शाटय् !-परिसाउंति जी० ३१४४५.—पडिसाडेइ ४० १८. -परिसाडेति रा० १० परिसाडइत्ता [परिशाट्य] जी० ११५० परिसाडित्ता [परिशाट्य ] रा० १८. जी० ३।४४५ परिसाडेत्ता परिशाट्य रा० १० । परिसामंत [परिसामन्त] जी० ३३१२६ परिसेय [परिषेक | जी० ३१४१५ परिसोधित पिरिशोधित जी० ३१८७८ परिस्संत [परिश्रान्त ] ओ० ६३. रा० ७६५ परिस्सम (परिश्रम] ओ० ६३ पिरिहा परि +धा]--परिहेइ जी० ३।४४३ परिहत्य [दे०] ओ० ४६. रा० ६६,१५१. जी० ३११८,११६,२८६ । परिहा [परि+हा ] ---परिहायइ. जी० ३८३८:१६.--परिहायति. जी. ३.१०७ परिहाणि | परिहाणि] जी० ३१६६८,८३८।१६,२० परिहायमाण [परिहीयमाण ] ओ० १९२. जी० ३।६६८,८८२ परिहारविसुद्धिचरित्तविणय [परिहारविशुद्धिचरित्र विनय ओ० ४० परिहित [परिहित ] रा०६८५,६६२,७००.७१६, ७२६,८०२. जी. ३।११२२ परिहिय परिहित] ओ० २०,४७,५२,५३,७२. रा०६८७,६८६ परिहोण परिहीम | ओ० ७४।६,१८२, १९५८. रा० १३,१५,१७ परिहेता परिधाय | जी० ३ ४४३ परीसह [परीपह] ओ० ११७,१५४,१६५,१६६ परूढ [प्ररूढ ] ओ० ६२ । पिरूव प्र+रूपय] —परूवेइ. ओ०५२ रा० ६८७..-परूवेति. जी० ३।२१०, —पस्वमि. जी० ३१२११ परूविय प्ररूपित जी० ११ परूबमाण [प्ररूपयत् ] ओ०१८ पलंब [प्रलम्ब ] ओ० ४७,४६,५७,६४,७२. रा० ५१,६६,७० पलंबमाण [प्रलम्बमान ] ओ० २१,५२,५४,६३. रा०८,४०,१३२,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१२६५ पलाल [पलाल] रा० ७६७ पलिओवम [पल्यापम ओ० ६४,६५. रा० १८६, २८२,६६५,६६६,७६८. जी० १११२१,१२५, १३३, रा२०,२१,२५ से २८,३० से ४६,५३ से ५५,५७ से ६१,७३,८३,८४,१३९; ३११५६, १६५,२१८,२३८,२४३,२४७,२५०,२५६, ३५०,३५६,४४८,५६४,५६५,६२६,६३७, ६५६,७००,७२१,७२४,७२७,७३८,७६१, ७६३,७६५,८०८,८१६,८२६,८४१,८५४, ८५७,८६०,८६३,६६६,८६६,८७२,८७५, ८७८,८८५,६२३,६२५,१०२७ से १०३६, १०४२,१०४४,१०४६,१०४७.१०४६ से १०५३,१०५५,१०८६,११३२,११३५, ६३, ६,६; ७४५,६,१२, ६१८७ से १८६,२१२, २१४,२२५,२३८,२७३ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलिच्छन्न-पबीइय पलिच्छन्न [परिच्छन्न ] ओ० ६. जी० ३।२७५ ।। पवला इया [दे०] जी० २६ पलित्त प्रदीप्त] जी० ३.५८९ पवहण [प्रवहण ] ओ० १००,१२३ पलिय [पलित] जी० ३१५६७ पवा [प्रपा] ओ० ३७ रा० १२ पलियंक [पर्य] रा० २२५. जी० ३।३८४ पवाइय प्रवादित] ओ०६७,६८, रा० १३,६५७. पलिह [परिघ ] ओ० १६ जी० ३।३५०,५६३,१०२५ पिलीव [प्र-- दीपय ]- - पलीवेज्जा. रा०७७२ पवादित प्रवादित रा०८४२,८४५. जी० ३१४४६ Vपल्लंघ/प्रलंघ | ..-पल्लंबज्ज. ओ० १८० पवादिय [प्रवादित ] स०७ पल्लंघण [प्रलङ्घन ] ओ० ४० V पवाय --वादय् ]-~-पवाएंसु. रा० ७५ पल्लग [पल्यक] जी० ३।६११ पवाल [प्रदाल ओ० ५,८,१६,२३,४७. रा० २७, पल्लत्यमुह [पर्यस्तमुख रा० ७६५ २२८.६६५. जी० २७१.२७४,२८०,३८७, पल्लव पिल्लव ] अ.० ५,८. र ० १३६,२२८. ५६६,६०८,६७२ जी० ३।२७४,३०६,३८७,६७२ पवालमंत [प्रवल बत् ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ पल्लवपविभत्ति | पल्लवप्रविभक्ति रा० १०० पविइण्ण [प्रविकीर्ण ] ओ०१ पल्हविया [पह्नाविका] ओ० ७०. रा० ८०४ पविक्खरमाण [प्रविकिरन] जी० ३१११८ पल्हायणिज्ज [प्रह्लादनीय ] ओ०६३ पविचरित [प्रविचरित] रा० १७४ पवंच [प्रपञ्च मो० १६५ पविचरिय प्रविचरित] जी० ३।२८६,६३६ पवंचेमाण प्रपञ्चयत् ] जी० ३।२३६ पविट्ठ [प्रविष्ट] ओ० ६४. जी० ३१५५,७८ पवग {प्लवक] ओ० १,२ पिविणी {प्र+वि--नी] -पविणेज्जा. जी० पवगपेच्छा प्लवकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३११८ । ३१६१६ पवित्तय [पवित्रक] ओ० १०८,११७,१३१ पवण [पवन] ओ० ४८,५७ पवित्ति [प्रवृत्ति ] ओ० १६,१७ पवण [प्लवन] रा० १२,७५८,७५६. जी० ३१११८ पवित्तिवाउय [प्रवृत्तिव्यापृत, प्रवृत्तिवादुक] ओ० पवत्त [प्रवृत्त ] रा० १८,७८,८०,८२,११२ जी० १६,१७,२०,२१,५३,५४ ३४४७ पवित्थरमाण [प्रविस्तरत्] जी० ३१२५६ पिवत्त [प्र-वर्तय] -पवत्तेइ. रा० ६७१- पविद्धत्य [प्रविध्वस्त] जी० ३.११८, ११६ पवत्तेति. रा० ७५०-पवत्तेमि. रा० ७५०. पविमोयण [प्रविमोचन] ओ०७,८,१० पवत्तेहि. रा. ७५० पवियरितए [प्रविचरितुम् ] रा० ७३२,७३७ पवत्तय [प्रवर्तक रा० ६७१ पविरल [प्रविरल] रा० ६,१२,२८१,७६०,७६१. पवत्ताय | जी० ३१२८५ ___ जी० ३.४४७,५६१ पवयणणिण्हग [प्रवचननिह्नवक] ओ० १६० पविराय [ दे०प्रस्फुटित ] जी० ३१११८,११६ पवर प्रवर] ओ० २,२०,४७, से ५३,५५ से ५७, पविलीण [प्रविलीन] जी० ३।११८,११६ ६३से६५,७२. रा० ६,१२,३२,५१,१३०,१३२, पविस [प्र+विश्] --पविसइ. रा० ७६६. २३६,२८१,२६२,६८५,६८७६८६.६६२, ___-पविसामो. रा० ७६५ ७००,७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००,३०२, पविसंत [प्रविशत् जी० ३।८३८।१४ ३७२,३९८,४४७,४५७,५६७,११२२ पवीइय [प्रवीजित] ओ० ६७ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ √ पवोणी [ प्र + वि + नी ] - पवीणेइ ओ० ५६ पवीणेत्ता [ प्रविणीय] ओ० ५६ √ पयुच्च [ प्र + वच् ] पबुच्चति जी० ३१८४१ पवेस | प्रवेश ] ओ० १५४,१६२,१६५, १६६. रा० १२६,२१०, २१२,६८,७५२,७८६,८१६. जी० ३।३००, ३५४,३७७.५६४,६४३,८८५ पवइत्तए [ प्रव्रजितुम् ] ओ० १२० रा० ६६५ पवइय | प्रव्रजित ] ओं० २३,७६,७८, १५, १५५, १५६ पग [पग] जी० १/६६ पश्वत [ पर्वत ] रा० २७६. जी० ३३४४५,६३२, ६३७,६६१,६६२,६६४,६६६, ६६८,७३५, से ७४३,७४५,७४६,७५०, ७९५, ८३१, ८३३,८३६ से ६४२, ८४५, ८६६, ८८२,६१० से ६१२,६१४ से ६१६,६१८ से ६२३ पव्वत [ पर्वतक ] जी० ३१८६३,८७,८८१,९२७ पव्वतय [ पर्वतक ] जी० ३१८६३ √ पश्वय [ प्र + ब्रज् ! - पव्वइस्सति रा० ८१२-पन्वइस्सामो. ओ० ५२. रा० ६८७. - पवइहिति. ओ० १५१ - पञ्चयंति रा० ६६५. roar | पर्यंत ] रा० ५६, १२४, २७६,७५५, ७५७. जी० ३१२१७,२१६ से २२१,२२७,३००, ५६८, ५७७,६३२,६३३,६३८, ६३६, ६६८,७०१, ७३६,७३८,७४०,७४२, ७४४, ७४५, ७४३, ७४६, ७५०,७५४,७६२,७६५, ७६६,७७५, ८८३,६३७ १००१, १०३६ roar [ पर्वतक ] जी० ३।५७६ यह [ पर्वतमह] जी० ३।६१५ पवराय | पर्वतराज ] जी० ३१८४२ पवहणा [ प्रव्यथना ] ओ० १५४, १६५,१६६ पया [ पर्वा ] जी० ३२५८ पसंग [ प्रसङ्ग ] धो० ४६ पसंत [ प्रशान्त ] ओ० १४. रा० ६, १२, १५, २८१, ६७१. जी० ३/४४७ पवीणी-पहरण पसण्णा [ प्रसन्ना ] जी० ३।८६० पसत [प्रसक्त रा० १५ पसत्य [ प्रशस्त ] ओ० १५.१६,४६,५२, ११६,१५६. रा० ३३,१३३६७२. जी० १ १ ३/३०३, ३७२,५६६ से ५६८ सत्कार्याविणय [प्रशस्तकार्याविनय | ० ४० सत्यम वय | प्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० पत्थवsविषय | प्रशस्तवाग्विनय ] ओ० ४० सत्य [ प्रशास्तु ] ओ० २३. ० ६८७,६८८ पसम्ना [ प्रसन्ना ] जी० ३।५८६ V पसर [ प्र + सृ] - पसरति रा० ७५ परिय [ प्रसृत ] ओ० ४६. जी० ३५८६ पसव [ प्रभू ] - पसवति जी० ३।६३० पसवित्ता [ प्रसूय ] जी० ३१६३० पसाधण [ प्रसाधन ] रा० १५२. जी० ३१३२५ पसाधणधरण [ प्रसाधन गृहक] १० १०२, १८३ / पसार [ + - सारय् ] -- पसारेति. रा० ६६ पसासेमाण [ प्रशासयत् ] ओ० १४. रा० ६७१,६७६ पसाहणधर [ प्रसाधनगृहक] जी० ३।२६४ पसाहा [ प्रशाखा ] ओ० ५,८. २१० २२८. जी० ३।२७४, ३८७,६७२ सिढिल [ प्रशिथिल ] ओ० ५१ पसिण [प्रश्न ] ओ० २६. रा० १६,७१६ पसु [ पशु ] ओ० ३७. २० ६७१,७०३, ७१८. जी० ३१७२१ सेढि [ श्रेणि] रा० २४. जी० ३।२७७ परसा [पश्या ] रा० ८१७ परसवणी [ प्रलवणी] रा० ८१७ पह [पथ ] ओ० ५२, ५५. रा० ६५४,६५५,६८७, ७१२. जी० ३।५५४, ८३८/१५ पहकर [ दे० ] ओ० १६. रा० ६८३. जी० ३।२७५ पहगर [ दे० | रा० ५३ पह | प्रहृष्ट ] ओ० १६. जी० ३१५६६ पहरण [प्रहरण] ओ० ५७,६४. रा० १७३,६६४, ६८१,६८३. जी० ३१२८५,५६२ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहरणकोस-पागाइवाय ६८३ पहरणकोस [प्रहरण कोश] रा० २४९,३५५. पाउन्भवमाण [प्रादुर्भवत् ] रा०१७ जी० ३.४१०,५२० पाउन्भूय [प्रादुर्भूत] ओ० ७६ से८१. रा० ६१, पहरणरयण [प्रहरण रत्न रा० २४६,३५५. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७,७६५ जी० ३।४१०,५२० पाउया पादुका] ओ० २१,५४,६४. रा० ५१, पहसित | प्रहसित ] जी. ३१३०७,३६४,६३४,६३६, १४ पाओवगमण [प्रायोपगमन] ओ० ३२ पहसिय प्रहस्ति | रा ० १३७,१८३. जी० ३१३५५, पाओवगय प्रायोपगत ! ओ० ११७ ३५६,३६८ से ३७१,५८६,६७३ पागडभाव {प्रकट भाव] औ० २७. रा० ८१३ पहा प्रभा] ओ० १२,२२. १० १५४. पागडिय [प्रकटित ] ओ० ५०,५१ जी० ३२५८६ पागय [प्राकृत] जी० ३।८३८.३ पहाण [प्रधान ओ० २३,२५,१४६. ० ६८६, पागसासण [पाकशासन ] जी० ३।१०३६ ८०६,८०७. जी० ३.५६२,५६७ पागार प्राकार ओ० १. रा० १२१,१२८,१७०, ‘पहार प्र+धारय् ]-पहारेज्जा. ओ० ४०. ६५४,६५५. जी० ३१३५२, ३५३,३५८, ___ --हारेत्थ. ६५,२८८.जी० ३।४५४ पहाविय प्रधावित ] ओ० ४६ पाड [पातम्] --पाडेइ. रा० ७६५ पहिट [प्रहृष्ट ] ओ० ५१ पाउंतिय [प्रात्यान्तिक] रा० ११७,२८१ पहिय पिथिक] रा० ७८७,७८८ पाडलि [पाटलि ] ओ० ३०. जी. ३१२८३ पहियकित्ति प्रथितकीति ] ओ० ६५ पाडिसुय [प्रतिश्रुन] जी० ३१४४७ पहीण [प्रहीण] ओ० ७२ पाडियक्क [प्रत्येक ओ० ५५,५८,६२,७० पहु [प्रभु] ओ० ११६. रा० ७६१ पाउिहारिय प्रातिहारिक ] ओ० १२०,१६२. पहेलिया [प्रहेलिका] ओ० १४६. रा० ८०६ रा० ७०४,७०६,७११,७१३,४७६ पाई [पात्री | रा० २५८,२७६ पाडिहेर [प्रातिहार्य ] ओ०२ पाईण प्राचीन रा० १२४. जी० ३३५७७,६३६, पाण[पान] ओ०१४,११७,१२०,१४१,१४७, १०३६ १४६,१५०,१६२. रा० ६७१,६८६,७०४, पाईणवात प्राचीनवात] जी०११८१ ७१६,७५२,७६५,७७४,७७६,७८७,७८६, पाईणवाय [प्राचीनवात | जी० ३१६२६ ७६४,७६७,७६६,८०२,८०८,८१०,८११ पाउ [प्रादुम् ] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, पाण [प्राण] ओ०८७,१६१,१६३. जी० ३३१२७, ७८८ ६७५,१०२८,११३० पाउग्ग [प्रायोग्य] रा० ६६६ पाणक्खय प्राणक्षय ] जी० ३१६२६,६२८ पाउण प्र+आप ].---पाउणइ. ओ०१५२. पाणत [प्राणल ] जी० ३।१०७६,१०८८ -पाउणंति. ओ० ६४.-पाउणिहिति. पाणय [प्राणत ओ० ५१,१६२. जी० २१०३८, ओ० १४०. रा० ८१६ १०५३,१०६६,१०६८ पाउणित्ता प्राप्य | ओ०६४. रा० ८१६ पाण विहि [पागविधि ] मो० १४६. रा० ८०६ 1 पाउन्भव प्रादुस्+भू-पाउम्भवति. पाणाइवाय प्राणातिपात ] ओ० ७१,७६,७७, रा० १६--पाउन्मह. रा० १३ ११७,१२१,१६१,१६३. रा०६६३,७१७, –पाउभवित्या, ओ०४७ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ पाणावायवेरमण [ प्राणातिपात विरमण ] ओ० ७१ पाणि [पाणि] ओ० १५, १६, ३७, ६३,६४, १४३. रा० १२,६६४,६७२,६७३, ७५८, ७५६,८०१. जी० ३३११८, ५६२,५६६ पाणिलेहा | पाणिरेखा ] भ० १६. जी० ३३५६६, ५.६७ पानिय [ पानीय] ओ० ४६ पाताल | पाताल | जी० ३७२६,७२८ पाती [पात्री ] रा० १५१. जी० ३।३२४, ३५५, ४१६,४४५ पाद [पाद] रा० २८१,२८८. जी० ३।३११, ४०७, ४१५, ४४७, ४५४ पादचारविहारि | पादचारविहारिन् ] जी० ३.६१७ पादपोढ [ पादपीठ ] ओ० ६४ पादव | पादप ] जी० ३३०३ पामिच्च [पामृत्य ] ओ० १३४ पामोक्ख [ प्रमुख, प्रमुख्य ] रा० ३५५,७८७,७८८. जी० ३।४१०,५२० पाय [पात्र] ओ० ३३ पाय | पाद] ओ० १५,३७,५२,६३,६६,६०,१११ से ११३,१३७, १३८, १४३. २० १२,३७, २४५,६५६,६७२,६७३, ७५८, ७५६,८०१. जी० ३।११८,५५६ पाए [ पातुम् ] ओ० १३४, १३५ पायंचणी [पादकाञ्चनी] जी० ३।५८७ पायंत [ प्रवृत्त, पादान्त ] रा० ११५ पायंताय [ प्रवृत्तक, पादान्तक] रा० २८१ पायच्छिण | पादच्छिन्नक ] रा० ७५१ पायच्छिण्णय | पादच्छिन्नक ] रा० ७६७ पायच्छित्त [ प्रायश्चित्त ] ओ० २०,३८,३६,५२, ५३,७० रा० ६८३,६८५,६८७ से ६८६, ६६२,७००,७१६, ७२६, ७५१, ७५३,७६५, ७६४,८०२,८०५ पायछिण्णा [पादछिन्नक ] ओ० ६० पायजाल [पादजाल ] जी० ३५६३ पाणावायवे रमण पारिणामिया पातल [ पादतल ] रा० २५४. जी० ३।४१५ पायस [ पादात] ओ० ६४ पायाणियाहिव | पादातानीकाधिपति, पादात्यनीकाधिपति ] २०१३, १६ पायाणियाविति पादातानीकाधिपति, पादात्यनीकाधिपति | रा० १४ पायताणीय [ पादातानीक, पादात्यनीक ओ० ६४ पायताणीया हिवs [ पादातानी काधिपति, पदात्यनीकाधिपति] रा० १५ पायत्ताय [ प्रवृत्तक, पादान्तक] रा० १७३ पायपीठ [ पादपीठ ] ओ० २१, ५४. रा० ८,३७, ५१,७१४. जी० ३३११ पापुंछ [प] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७८६ पायबद्ध [पादबद्ध ] रा० १७३. जी० ३२२८५ पायरास [ प्रातराश] रा० ६८३ पाय [पादप ] ओ० ५,८, ६, १२, १३. रा० ३,४, १३३, ५०४. जी० ३।२७४ पावविहारचार [ पादाविहारचार] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६,७०० पायवीढ [ पादपीठ ] ओ० १६ पायसीस [पादशीर्ष ] जी० ३ | ४०७ पायसीसग [ पादशीर्षक ] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ पायाल [ पाताल ] ओ० ४६. जी० ३१७२८, ७३१ पारंचियारिह [पारञ्चितार्ह ] ओ० ३६ पारस [ पारस ] ओ० ६७ पारगय | पारगत ] ओ० १९५२० पारगामि [ पारगामिन् ] ओ० २६ परिभमाण [ प्रारंभमान ] ओ० ११७ पारसी [पारती ] ओ०७० रा० ८०४ पारावय [ पारापत ] जी० ३२३८८ पारिजातकवण [ पारिजातकवन ] जी० ३।५८६ पारिणामिया [ पारिणामिकी ] रा० ६७५ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारियाय-पासायघडेंसक ६८५ पारियाय [पारिजात] रा० ४५ पारिहेरग प्रातिहायक जी० ३१५६३ पारी [दे० पारी] जी० ३१५८७ पारेवय [पारापत] रा० २६. जी० ३१२७६. 4 . पाल [पालय ....पालथाहि. ओ० ६८. जी० ३१४४ : ...-पालेति. श्रो०६१---पालेहि रा० २८२ पालंब [प्रालम्ब] ओ० २१,५२,५४,६३,१०८, १३१. रा०८,२८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१५६३ पालग पालक ] ओ० ५१ पालित्ता पालयित्वा] ओ०६१ पालियाय [पारिजात ] १० २७. जी० ३।२८० पालेमाण [पालयत् ] ओ० ६८, रा० २८२,७६१. जी० ३६३५०,४४८,५६३,६३७ पाव पाप] ओ०७१,७६ से ८१,१२०,१६२. रा०६७१,६६८,७५२,७८६ पाव [प्र+आप्]--पावइ, ओ० १६५।१४ -पाविज्जामि. रा० ७५१-पाविज्जिहिह. रा० ७५१ पावकम्म [पापकर्मन् ] ओ० ८४,८५,८७,८८. रा० ७५०,७५१ पावकम्मोवएस [पापकर्मोपदेश] ओ० १३६ पावग [पापक] ओ० ७४१६ पाक्य [पापक ओ० ७१ पावयण [प्रवचन] ओ० २५,७२,७६ से ८१, १२०,१६२,१६४. रा० ६६५.६६८,७५२, ७८६ पावसण [पापशकुन ] रा० ७०३ पास (पार्श्व ओ० १६. रा० १३१ से १३८, २५६,८१७. जी० ३१३५८,४१५,५६६,५६७, ७७५ पास [पाश] रा० ६६४. जी० ३१५६२ पास | दश्]-पास इ. ओ०५४. रा० ७१४. जी० ३१११८-पासंति. ओ०५२. रा० ७६५. जी० ३११०७- पास ति. रा०७. जी० ३१२००-पाससि.० ७७१.. पासह. रा०६३–पासामि. रा० ७६६-पासिज्जा. रा० ७७६. -पासिज्जासि. रा० ७५१. --- पासेज्जा. जी० ३।११५ पासंत [पश्यत् ] रा० ७६४ पासगापाशक ) ओ० १४६. रा०८०६ पासग्गाह पाशग्राह] ओ०६४ पासणया [दर्शन] रा० ७५० से ७५३ पासतो पार्श्वतस् ] ० ५५ पासपाणि [पाशपाणि रा०६६४ पासमाण [पश्यत् ] रा ० ८१५ पासवण |प्रस्त्रवण] रा० ७६६ पाससूल [पावशूल, जी. ३१६२८ पासाइय [प्रामादीय, प्रासादिक] जी० ३।२८६ से २५८,२६० पासाईय [प्रासादीय, प्रासादिक ओ० ७२. रा० २०,३७,१३०,१३३,१३६,२५७. जी० ३।२६६, ३०६,३११,४०७,४१०,५८५,५६६,५६७, ६७२,११२१ पासाण [पाषाण] रा० १७४. जी० ३१२८६ पासाद [प्रासाद] जी० ३७६२ पासादवडेंसग [प्रासादावतंसक ] जी० ३७६२ पासादीय [प्रासादीय, प्रामादिक] ओ० १,७,८, १० से १३,१५,१६४. रा० १,१६,२१ से २३, ३२,३४,३६.३८,१२४,१३७,१४५,१५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३,२४५,२४७, २४६,६६८,६७०,६७२,६७६,६७८,७००, ७०२. जी० १२३२,२६१,२६६,२७६,३००, ३०३,३०७,३८७,३६३,५८१,५८४,६३६, ८५७,८६३,११२२ पासाय [प्रासाद] रा० १४,७१०,७७४. जी० ३१५६४,६०४ पासायडिसय [प्रासादावतंसक जी० २७७० पासायव.सक प्रासादावतंसक ] जी० ३१३६६, ३७० Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पासायव.सग-पियंगु पासायवडेंसग [प्रसादावतंसक रा० १३७,१८६, पिच्छज्य [पिच्छध्वज रा० १६२. जी० ३१३३५ २०५,२०७,२०८,७७५. जी० ३।३०७ से ३०६, पिच्छणघरग प्रेक्षणगृहक ] रा० १८२,१८३ ३१४,३५५,३५६,३६४,३६७,३६६ से ३७३, पिच्छाघरमंडव [प्रेक्षागहमण्डप] रा० ३२,३३,६६ ६३४,६३६,६८६,६८६,६६२ से ६६८,७६२ पिट्टण [ पिट्टन ] ओ० १६१,१६३ पासायव.सत [प्रासादावतंसक] रा० २०४ । पिट्ठओ [पृष्ठतस् ] ओ० ६६. जी० ३,४१६ पासायव.सय [प्रासादावतंसक ) २० २०४ से पिठंतर [पृष्ठान्तर] रा० १२,७५८,७५६ जी० २०६. जी० ३१३५६,३६४,३६८ से ३७१, ___३३११८,५६८ ६६३,६७३,६८५,६८८,७३७ पिट्ठतो पृष्ठतस् ] रा० २५५,२८६,२६०. जी. पासावच्चिज्ज पाश्र्वापत्य ] रा०६८६,६८७, ३.४५५,४५६ ६८९,७०६,७१३,७३३ पिट्ठपयणग [पिष्टपचनक] जी० ३१७८ पासि पार्श्व] ओ० ६६. जी० ३।३०१ से ३०७, पिढिकरंडग [पृष्ठिकरण्डक] जी० ३१२१८,५६८ ३१५,३५१,४१७,६३६,७८८ से ७६०,८३६, पिडा [पिटक जी० ३१८३८४ से ६ ८८६ पिडय [पिटक ] जी० ३१८३८१३,५,६ पासित्तए [द्रष्टुम् ] रा० ७६५ पिणद्ध पिनद्ध] ओ०१७,६३. रा०६६,७०, पासित्ता [दृष्ट्वा ] ओ० ५२. रा० ८. जी० १३३,६६४,६८३. जी० ३१३०३,५६२ ३.११८ पिणद्वय [पिनद्धक] रा० ७६१ पासेत्ता [दृष्ट्वा] रा०६८८ पिणय [पोनक जी० ३।५८७ पाहुड प्राभूत ] रा०६८०,६८१,६८३,६८४, पिणिद्ध [पि-नहपि+-नि-+धा-पिणिद्वेइ. ६६६,७००,७०२,७०८,७०६ ० २८५. जी० ३.४५१.--.पिणि देति. रा० २८५. जी० ३१४५१ पाहणगभत्त प्राधुणकभक्त) ओ० १३४ पाहणिज्ज | प्राहवनीय ओ० २ पिणिद्धत्तए [पिनद्धम् ] ओ० १०८ पिणित्तिा [पिनह्य] रा० २८५. जी० ३।४५१ पि अपि] रा०१० पिअदंसण [प्रियदर्शन ] ओ० ६३ पितिपिंडनिवेदण [पितृपिण्डनिवेदन ] जी० ३।६१४ पित्तजर (पित्तज्यर] रा० ७६५ पिउ | पितृ ओ०१४. रा० ६७१,७७३ पिंगल | पिङ्गल] ओ०६३ पित्तिय [पैत्तिक | ओ० ११७. रा० ७६६ पिंगलक्ख [पिङ्गलाक्ष] जी० ३१२७५ पिधाण [पिधान | रा० १३१,१४७,१४८. जी. ३१४४६ पिंगलक्सग [ पिङ्गलाक्षक ओ०६ पिबित्तए पातुम् ] ओ० १११ पिछि | मिच्छिन् ] ओ० ६४ पिय प्रिय] ओ० १५,२०,५३,६८,११७.१४३. पिंजर [पिञ्जर जी० ३१८७८ रा० ७१३,७५० से ७५३,७७४,७६६. जी. पिंडहलिदा पिण्डहरिद्रा] जो० ११७३ १३१३५ ३३१०६०,१०६६ पिंडि [पिण्डि] ओ० ५,८,१०. ० १४५. जी. पिय पित] ओ०७१. रा० ६७१. जी० ३१६११ ३।२६८,२७४ इपिय | पा—पिज्जइ. रा० ७८४---पियइ. रा० पिडिम पिण्डिम | ओ० ७,८,१०. जी० ३।२७६ ७३२ पिडियग्गसिरय (पिण्डिताग्रशिरस्क] ओ० १६ पियंग प्रियङ्ग] ओ० ६,१०. जी. ३१३८८, पिडियसिर पिण्डितशिरम् ] जी० ३१५९६ ५८३ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पियतराय-पुंज पितराय [प्रियतरक ] रा० २५ से ३१,४५. जी० ३२७८ से २८४,६०१ पियदसण | प्रियदर्शन] रा० ६७२,६७३,८०१. जी० १५०८ पियय [ प्रियक] ओ० ६, १० पियर | पितृ ] रा० ८०२,८०३,५०५,८०८,८१० पियरक्खिया [ पितृरक्षिता ] ओ० ६२ पियाल | प्रियाल | जी० ३३३८८,५८३ पिरली [ पिरलो ] जी० ३।५८८ पिपरिया | पिपरिया | रा० ७१,७७ परिपरियावाय [परिपिरियावादक ] १० ७१ fra [ इव] ओ० २७. ₹१० १७. जी० ३१४५१ पिवासा | पिपासा ] ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३११०६, १२७,१२८,५६२,१११४ पिवासिय [पिपासित ] रा० ७६०,७६१,७७४. जो० ३१११८,११६ पिसाय | पिशाच ] ओ० ४६. जी० ३११७, २५२, २५३ पिसायकुमार | पिशाच कुमार ] जी० ३१२५३ पिसायकुमार राय [पिशाचकुमारराज | जी० ३२५२ से २५६ fuereकुमारिद [ पिशाचकुमारेन्द्र ] जी० ३।२५३ से २५६ पिडग [ पिठरक ] जी० ३७८ / पिहा [पि + धा । - पिहावेमि. रा० ७५४. -- विहेइ. रा० ७५५. -- पिज्जा. रा० ७७२ विहाण | विधान ] रा० २६०. जी० ३।३०१ पिहाणथ | विधानक ] रा० ७५४,७५६ पिर्णामजिया [दे० पिहूणमज्जा | रा० २६ fuge | पृथुल ] ओ० १६. जी० ३।५९६,५६७ पीइगम [ प्रीतिगम] ओ० ५१ पोइदाण [ प्रीतिदान ] ओ० २१,५४,१४७. रा० ७१४,७७६,८०८ पण [ प्रीतिमनस् ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६३,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८,४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, ६८७ २७६,२८१, ६०, ६५५, ६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०, ७१३, ७१४,७१६, ७१८,७२५,७२६,७७४, ७७८. जी० ३३४४३, ४४५, ४४७,५५५ पीठ [ पीठ | ओ० २७,१२०, १६२ ० ६६८, ७०४,७०६,७११,७१३, ७५२, ७७६,७८६ पोढम्माह | पीठग्राह ] ओ० ६४ पोढमद्द | पीढमर्द ] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२, ७६४ पोण [ पीन ] ओ० १६. रा० १३३. जी० ३ ३०३, ५६६,५६७ पीण [ पीनय् ] -पी ंति. जी० ३०४४७. - पीर्णेति श० २८१ पीणणिज्ज [ प्रीणणीय] ओ० ६३ पोत [ पीत ] जी० ३।५६५ पीतपाणि [ पीतपाणि] २० ६६४ पीय [ पीत ] रा० ६६४. जी० ३।५६२ पीraणवीर [पोतकणवीर ] रा० २८० जी० ३।२८ पीयपाणि [ पीतपाणि] जी० ३१५६२ पीयबंधुजीव [ पीतबन्धुजीव ] रा०२८. जी० ३।२८१ पीयासोय [ पीताशोक ] रा० २८. जी० ३१२८१ पीलियम [ पीडितक ] ओ० १० पीलु [ पीलु ] जी० ११७१ पीवर | पीवर ] ओ० १६. T० ६९, ७०. जी० २५९६,५६७ पीह [ स्पृह ] - पीहति. ओ० २० - पीहेड़. रा० ७१३. पीति. रा० ७१३ पुंछणी [ पुणी] रा० १३०,११०. जी० ३।२६४ ३०० पुंज [ पुञ्ज ] ओ० २,५५ २० १२,३२,३८,१६०, २२२,२५६,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००, ३०५, ३१२,३५५. जी० ३।३१२,३३३,३५२, ३०१, ४१७, ४४७, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६,५२०,५५४,५८०, ५६०,५६१,८६४ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ पुंडग-पुढविक्काइय पुंडग [पुण्ड्रक] जी० ३१८७८ पुच्छणा [प्रच्छना] ओ० ४३ पुंडरिंगिणी [पुण्डरीकिणी] जी० ३।६१५ पुच्छा पृच्छा] ओ० १६०. जी० ११६१, ३१४, पुंडरीय { पुण्डरीक ओ० १२,१६,२१,५४. १२,३५,४१,४३,८२,९६ से १०२,११३ से रा० ८,२७६,२६२. जी० ३।११८,११६,४५७, ११५,१२५,१५५,१५६,१६२,१६३,१६६, ५६.६,६२६ १६८,१६६,१८७ से १६१,२३३,२३४,२४३, पुररीयद्दह [पुण्डरीपंद्रह | जी० २४४५ ७२२,५३६, ८२०,८३०,८३४,८३७,६५६,६५७. पुक्खर पुष्कर ओ० १७०. रा० २४,६५,१७१. ६५६,६६०,६६८,६७८,९७६,१०११.१०४१, जी० ३१२१८,२७७ ३०६,५७८,६७०,७५५, १०४४,१०४५,१०५२,१०५६,१०६२ से १०६४, ७७५,८१६,८१७,८२१ से ८२५,८२७,८२६ से १०६६,१०७४,१०८६,१११८,११२६,११३२ ८३१,८४८,८८३ पुक्खरकणिया [पुकरणिका] जी० ३१८६२६ पुच्छितव्य [प्रष्टव्य] जी० ३।३६,७७ पुक्खरगय [पुष्करगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ पुच्छिय [पृष्ट ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पुक्खरणो पुरकरणी] जी० ३१९०१,६१०,६११, ७५२७८६ ६१४ से ६१६ पुच्छियध्व [प्रष्टव्य] जी० ३।२४४ पुषखरस्थिभग [ पुष्करस्थिभुक] जी० ३१६५४ पुट्ट [स्पृष्ट ] ओ० १६५।६,१०. जी. ११४१, ३१२२,५७१,५७३,५७७,७१५,७१७,८०३, पुक्खरस्थिभुय [पुष्करस्थिभुक ] जी ० ३३६४३,६५४ ।। पुक्खरद्ध [या कराई ] जी० ३।८३१ से ८३४ ८१६,८२८ पक्खरपत्त करपत्र ओ० २७. रा०८१३ पुट [पुष्ट] जी० ३१५९७ पुखरवर | पुष्करवर] जी० ३१७७४,७७५ पुटलाभिय [पृष्टलाभिक ] ओ० ३४ पुक्खरवरग [ पुष्करवरग] जी० ३१७७४ पुट्टि [पुष्टि] जी० ३१५६२ पुखरिणी (पु' करिणी] ओ० ६,६६. रा. १७४, पुड [पुट] रा० ३०. जी० ३।२८३,१०७८ १७५.१८०,२३३,२३४,२७३,२८८,३१२,३१३ पुढवि [पृथिवी] ओ० १८६,१६१ से १९५. ३५०,३७६,४३५,४६६,५५६,६१६,६५६. जी० श१२,१२१ से १२५,२।१००,१०८, जी०३।११८,११६,२७५,२८६,३६५,३६६, १३०,१३५,१३८,१४८,१४६:३।१६१,१६२, ४१२,४२५४३८,४५४,४७७,५१५,५२३, १६५,१६६,३०३,७७५,६३७,६७४; १२०,३३ ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३ से ६८६ पुढविकाइय [पृथ्वीकाधिक ] जी० १११२,१३,६२, पुक्खरोद | पुरोद] जी० ३.४४५.७७५,८२५, १२८, २०१०२,१११.१३६,१३८,१४६ ; ८४८ से ८५१,८५४ से ६५६,८५६,८७६,६४६, ३२१३१ से १३५.१८३.१८४,१६४१९५; १४६९५७,६६२,९६४ ५१,२,५,८,१८ से २०,८१५६१८२,१८४, पुक्खरोदा [पुष्कमोदक] जी० ३१४४५ २५६,२५७,२६२,२६३,२६६ पुक्खरोदय | पुष्करीद ० २७६ पुढविकाल [पृथ्वी काल] जी० ५।१७,२२,३० पुग्गलपरियट्ट [ पुलारिवर्त! जी० १३१३६ ८.३,६७७,८५.६६ पुच्छ [प्रच्छ] ---पुच्छ३. २० ७१६.-.पुछोत. पुढविक्काइय [ पृथ्वी कायिक] जी० १:६७; रा० ७१३.--पुन्छसि. रा०७३७. २११३६,१४९, ३३१२६,१३२,५।१२,२०, -पच्छिर सामोरा० १६ ८.१,३ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविसिलापट्टग-पुरत्याभिमुह ६८६ पुढविसिलापट्टग पृथ्वीशिलापट्टक] रा०१८५. पुत्त [पुत्र ] रा० ६७३,७६१. जी० ३१६११ जी० ३।२६७,८५७,८६२ युत्ताणुपुत्तिय पौत्राणुगुत्रिक रा० ७७६ पुढविसिलापट्टय [पृथ्वीशिलापट्टक रा० ४ पुप्फ [पुष्प ] ओ० २,६,१६,४७:५५.६७,६२,६४. पुढवी पृथिवी] रा० १२४,१३३,७५५,७५७. रा०१२,१३,२६,३२,१५६,१५७,२५८,२७६ जी० २।१२७.१४८,१४६; ३.२ से ६,११ से से २८१,२६१,२६३ से २६,२००,३०५, ३५,३७ से ४०,४२,४४ से ५७,५.६ से ६६, ३१२,३५१,३५५,५६४,६५७,६७०,७७६. ७३ से ८१,८३ से १८,१०३,१०४,१०६ से जी० १७१, ३.१७१,२७५,२८२,३२६,३३०, ११२,११६,११७,१२०,१२७,१२८; १६४५, ३७२,४१६,४४५ से ४४८,४५७ से ४६२, १८५ से १६१.२३२,२५७,६००,६०१, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०.५४७,५५४, १००३,१०३८,१०५७ से १०५६,१०६३, ५८०,५८१,५८६,५६१,५६६,५६७,६००, १०६५,१०६६,११११, ५॥१७ ६०२,८३८।२,१५,८४२८७२ पुढवीकाइयत्त [पृथ्वी कायिकत्व] जी० ३।१२८ पुष्फग [पुष्पक] ओ० ५१ पुढवीक्काइयत्त [पृथ्वीकायिकत्व] जी० ३१११२८, पुप्फचंगेरिया [पुष्पचङ्गरिका) रा. १२ ११३० पुप्फछज्जिया [पुष्पछायिका] ६० १२ पुढवीसिलापट्टग [ पृथ्वीशिलापट्टक] जी० ६॥५७६ पुप्फवंत [पुष्पदन्त ] जी० ३०८६३ पुढवीसिलापट्टय { पृथ्वी शिलापट्टक ] रा० १३ पुप्फर्मत पुणवत्] औ० ५,८, गी० ३।२७४ पुण [पुनर्] ओ० ५२. रा० ७५०. जी० २११५० पुप्फबद्दलय [पुप्पवादलक] रा० १२ पुण [पू]-पुणिज्जइ. रा० ७८५ पुप्फासव [पुष्पासव] जी० ३१८६० पृणम्भव [पुनर्भव ओ० १६५ पुष्पाहार पुष्पाहार] ओ० ६४ पुणो पुनर्] ओ० ६३. जी०३६८३८।१४ पुफिय [ पुष्पित | रा० ७८२ पुण्ण { पूर्ण ] रा० १७४,२८८,७६३. जी० ३।११८, पुष्फुत्तर पुष्पोत्तर] जी० ३।६०१ ११६,२८६,४५४,५८६,७८४,७८७,८७८ पुष्फोदय पुष्पादक ओ० ६३ पुण्ण [पुन्य] ओ० ७१.१२०,१६०. रा० ६६८, पुमत्त [पुस्त्व] आ० १४१. रा० ७८६ पुर [पुर ओ० २३. रा० ६७४,६६५,७६०,७६१ ७५२,७५३,७७४,७८६ पुण्णकलस पूर्णकलश] ओ० ४८,६४. रा० ५० । पुरओ पुरतम् ओ०१६,६४,६६,७०. रा० २०, १२४,१३६ से १६१,१७६,२११,२२१. पुण्णप्पभ [पूर्णप्रभ] जी० ३१८७८ जी० ३१३२७,३५६,३७४,३७६,३८०,३८५, पुण्णप्पमाण पूर्णप्रमाण] जी ० ३१७८४,७८७ ३६२,३९५,४१६,८८७,८८६ पुण्णभद्द [ पूर्णभद्र ] ओ० २,३,१६ से २२,५२,५३, पुरओकाउं [पुरस्कृत्य ] ओ० २५,१६४ ६५.६६,७० पुरच्छिम [पौरस्त्य] जी० ३१३०० पुण्णमासिणी [पौर्णमासी, पूर्णमासी ] ओ० १२०, पुरतो ( प रतस् ] रा० ४६ से ५६,२१५,२३३, १६२. रा० ६६८,७५२,७५६. जी० ३१७२३, २५७,२५८,२६१,८०२. जी० ॥२८८,३१६ ७२६ से ३२६,३६३,४५७,६४१,८६३,८९७,८६६, पुण्णरत्ता [पूर्ण रक्ता] ओ० ७१. रा० ६१ पुण्णाय [पुन्नाग] जी० १७१ पुरत्याभिमुह [पुरस्तादभिमुख ओ० २१,५४, Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७. रा० ४७,२७७,२८३,२८६,६५७,७९६, जी०३८४३,४४६,४५२,५५७ पुरत्यिम [पौरस्त्य] ० १६,४२,४४,१२६,१७०, २१०,२१२,२३५,२३६,२४२,६५.६. जी० ३।३००.३४०,३४५,३५१,३७३.३६७, ३६८,४०४,४४३,४४६,५५६,५६२,५६८, ५७७,६३२,६४७,६६१,६६६,६६८,६७३, ६८२,६६४,६६७,६६८,७०८,७१०,७३६, ७२६,७६२,७६४,७६६,७६८ से ७७०,७७२, ७३,७५३,७७६,८००,८१४,८२५,८५१, ८-२,८८५.६०२,६३६,६४४,१०१५, पुरथिमिल पोरस्त्य] रा० ४३,५६,२७७, २८३,२८६,२८८,२६१.२६८,३०३,३०८, ३१६,३२४,३२६,३३२ से ३४३ ३४७ से ३५१.३६५,४१४,४५४,४५४,५१५,५३४, ५७५,५६४,६३५,६१ ६.६५७,६६४. जो०३१३३ से ३५,३३,२१६.२२२.२२३, २२७,४४३,४४५,४५२,४५४,४५३,४६३, ४६,४७३,४८४,४८६,४६४ ४६७ से ५०८, ५१२ से ५१६,५२५,५२६,५३१,५३३,५३६, ५४०.५४६,५४७,५५३,५५६,५५७,५७७, ६६८,६७३,६८६,६६२,६६३,७६८,७७०, ७३२,७४,७७६,७७८,६१० पुरवर वर ! i० १६ जी० ३१५९६ परापरा रा० १८५,१८७. जी०३।२१७, २६७,२६८,३५८,५७६ पुरिमताल पुरिमताल' ओ० ११५ पुरिस | 'पुरुष ओ० १४,१६,१७,१६,५२.६३,६४, १६५।१८. रा०८ २८,२६२,६७१,६८१ से ६.३,६८७ सु ६६१ ७००,७०६,७१४ ७१६,५३२.७३५,७३७,७५१,७५३ ते ७५६, ७५८ से ७६२,७६४,७६५,७६८,७६६,७७२, ७७४,७७५,५६७,७८८. जी० २.१,७५ से ८६० से ३,९५,९६,६८,१४१ से १५१; पुरस्थिम-पुन्व ३११२७१५,१४८,१४६,१६४,४५७ पुरिसक्कार [पुरुषकार ओ० ८६ से १५,११४, ११७,१५५ १५७ से १६०,१६२,१६७ पुरिसपुंडरीय [पनपपुण्डरीक] ओ० १४. ग०६३१ पुरिसलक्षण पुमालक्षण | ओ० १४६. ग० ८०६ पुरिलिगसिद्ध | (रुषलिङ्गसिद्ध जी० १०८ पुरिसवग्ध युध्यमान ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवर पुरुषवर ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवरगंधह स्थि । सुरुषवरगन्धहस्तिन् | ओ. १४, १६,२१,५४. : ० ८,२६२,६७१ जी. ३.४५७ पुरिसवरपुंडरीय [ 'पुरुषवरपुण्डरीक ओ० १६,२१, ५४. रा ८,२६२. जी. ३१४५७ पुरिसवेद | जी० १।१३६; २।६७,६८; १२३,१२७ पुरिसवेदग [ पुरुषवेदक ] जी० ६.१३० पुरिसवेय पुरुषवेद ] जो० ॥२५ परिसवेयग [पुरुपवेदक ] जी० ६।१२१ पुरिससोह [पुरुषसि | ओ० १४, १६, २१, ५४. रा० ८, २६२, ६७१. जी० ३।४५७ पुरिसासीविस [पुरुषाशीविष] ओ० १४. रा० ६७१ परिसुत्तम [पुरुषात्तम रा०८ पुरिसोत्तम पुरुषोत्तम ! ओ० १६,२१, ५२, ५४. रा० २६२. जी० ३४५७ पुरोवग [पुरंपग ओ० ६, १० पुलंपुल [दे० ओ० ४६ पुलग पुलक आ० ८२. रा० १०,१२, १८, ६५, १६५, २७६ पुलय (पुलक | जी०३१७ पुलाकिमिय | पुलाकृमिक | जी० श६४ पुलिंदी मुनिन्दी | ओ० ७०. रा. ८०४ पुलिण ! लिन] र६० २४५. जी० ३।४०७ पुष [पूर्व | ओ० ७२, ११६, १५६, १६७,१८२. रा० ४०, १३२,१७३,६८५,७७२. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुवंग-पेम ६६१ जी० ३२६५,२८५,३५८,८४१,८८१,६८८, पुहावियषक [पृथक्ववितक] ओ० ४३ ९८१ पूइकम्म [पूतिकर्मन् । ओ०१३४ पृथ्वंग [पूर्वाङ्ग] जी० ३.८४१ पूइत्तए [पूजयितुम् ] ओ० १३६ पुवकोडि [पूर्व हटि] जी० १।१०१, ११६,१२३, पूइय (पूजित | ओ० १४. १० ६७१ १२४;२:२२,२४,२६ से ३४,४८ से ५०, ५३ पूइया पतिक ना०६,१२. जी. ३२२२२ से ६१,८३,८४,१०६,११३,११४,११६.१२२ पूय [पूत ] ओ०६८ से १२४, ३।१६१,१६२,१९३५ : ६६७१२; पूयण पूजन ] ० ५२. १० १६,६८७,६८६ ६।४१,१४२,१४४,१४६,१६२,२००,२०३, पूणिज्ज [पुजनीय } प्रो० २. रा० २४०, २७६. २१२,२२५,२३८,२७३ जी० ३४०२, ४४२ पुवकोडिय [पूर्वकोटिक ] ओ० १८६ पूयफलिवण पूमपालीवन जी० ३१५८१ पुत्वक्कम | पूर्वक्रम ] 100 ३१८८० पूर पूरय ---पूरे इ. ओ० १७४ पुखणत्थ | पूर्वन्यस्त रा० ४८. जी० ३१५५८ से पूरिम पूरिम, पूर्य ] ओ०१०६,१३२. रा०२८५. ५६०,५६२ जी० ३१४५१,५६१ पुन्वपुरिस | पूर्वपुरुष] ओ० २ पूस पुष्य जी० ३८३८६३२ पुव्वणित पूर्वभणिन] जी० १८८१ पूसमाण पुष्यमाण] जी० ३१२७७ पुन्वभव पूर्वभव | रा. ६६७ पूसमाणय [पुष्यमानव ] ओ०६८ पुव्वरत्त पूर्वरात्र] रा० १७३ पूसमाण | युध्यमाणव | रा० २४ पवविदेह पूर्व विदेह। जी० २।२६,५६,६५,७०, पेच्च प्रत्य] ओ० ८८ ७२,८५,९६,११५१२३,१३२,१३७,१३८, पेच्चभव प्रेत्यभव आ० ५२. रा०६८७ १४७,१४६; ३४४५,७६५ पेच्छणघरग | प्रेक्षणगृह जी. ३।२६४ पुवाणुयुची । पूर्वानुपूर्वी । ओ० १६, २०,५२,५३. पेच्छणिज्ज प्रेक्षणीय ओ० १. जो० ३।५.६७ रा० ६८६, ६८७,७०६,७११, ७१३ पेच्छाघर [प्रेक्षागृह | जी० ३१५६१,६०४ पुस्वाभिमुह । पूर्वाभिमुख रा०८ पेच्छाधरमंशव प्रेक्षागृ मण्डप : ० ६४,२१५, पुवावर पूर्वापर रा० १६३,१६६. जी० ३११७४, २१६.२२०.२२१,३०० से ३०४,३३१ से ३३५,३५५, ३५७,६५८,७२८,७३३,१००६, ३३५,३३८ से ३४२. जी० ३१३७६ ३७६, १०२३ ३८०,४१२,४६५ से ४६६,४६६ से ४६०, पब्वि पूर्व ओ० ११७. रा०६३, ६५,२७५, ५०३ से ५०७,८८६,८६३ २७६,७८१ से ७८७. जी० २६१५०, ३२४४१, पेच्छिज्जमाण प्रेक्ष्यमाण] ओ० ६६ ४४२ पेच्छितए प्रेक्षितुम् | ओ० १०२,१२५ पहत्त [गृथक्त्व ! नी० १११०३, १११,११२,११६, पेज्ज प्रेपम्] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. १२४,१२५, २१४८ से ५०, ५३,५४,५६,८२ रा०७६६ से ८४,६२,६३,१२२ से १२५,१२८, ३१११०, पेज्जबंधण प्रेयं बंधन। जी० ३१६११ १६७,११५५,१११६,११३५,११२७,४।१५; पेज्जविवेग योनिबंक] ओ०७१ ५।१६ २६; ६१६,११: ६८६,६३,१०२,१०६, पेढ पीट] जी० ३३६६८ १२३,१२८,२१२,२१७,२२५,२३८,२४४, पेम प्रेमन् ओ० १२०,१६२. रा०६६८,७५२, २७३,२८० ७८६ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पेम्म [ प्रेगन् ] रा० ७५३ पेया | पेया ] रा० ७१,७७ पेयावा [पेयावादक ] रा० ७१ पेरंत | पर्यन्त ] ओ० १६२. जी० ३।२८५,३००, ५६६,५६८,५६६,७०८,७११,६००,८१४, ८२५८५१,६३६,६४४ पेलव | पेलव | रा० २८५. जी० १४५१ पेस [ : ] जी० ३६१० पेसल | पेशल | बी० ३१६१६,८६० पेसुन्न | पैशुन्य ] ओ० ७१,११७,१६१, १६३. To ७९६ पेण | विवेक ] ओ० ७१ पेहुणमिजा | दे० पहुणमज्जा ] जी० ३१२-२ पोंडरीय | पौण्डरीक ] ओ० १५० रा० २३,२६, १३७, १७४, ११७, २७६,२८८,८११. जी० २:२५६.२८२,२८६,२६१,३०७ पोग्गल [ पुद्गल | श्र० १६६, १७० रा० १०, १२,१८,६५,२७६,७७१. जी० ११५, ५०, ६५, १३५ ३१५५,५६,८७,६२,६७,१०६, १२७, १२८,१२६१३, १०, ४४५, ७२४, ७२७, ७८७, ६७४,६७६,६७७,६८२ से ६५ से ६१७,१०८१,१०६०,१०६६ पोलपरिट्ट [ पुद्गल परिवर्त | जी० २६५,८८, १३२ ५६, २६; ६२३,२६,३३,६६,७१, ७३,७८,१४६,१६४, १६५, १७८, २०२, २०४ v पोच्छल | - उत् । शल् ] - पोच्छलेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ पोट्टरोग | ६० ] जी० ३ । ६२८ पोत | पातज ] जी० ३।१४६ पोत्तिय | पोतिक | ओ० ६४ पोत्तिया | दे० | जी० १८६ पोत्ययमाह | पुस्तक ग्राह] ० ६४ पोत्ययरयण | पुस्तकरल | T० २७०,२८७, २८८, ५६४. जी० ३।४३५, ४५३, ४५४,५४७ प [पात | ०४६ पोयय फलन ] जी० ३३१४७, १६१, १६३,१६४ पेम्म-फलय पोराण [ पुराण ] ओ० २ ० ११,५६,१८५, १८७,६७८. जी० ११५० ३।२१७, २६७, २६८, ३५८, ५७६ पोरेकव्व | पुरःकाव्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ पोरेवच्च | पीरपत्य, पौरोवृत्य ] ओ० ६८. ० २०२. जी० ३१३५०, ५६३,६३७ पोस [ दो ] जी० ३३५६८ पोसह [प] ओ० १२०,१६२. रा० ६७१, ६६८,७५२,७८७,७८६ ला रा० ७६६ पोसाला | पोसहोववास | पोपधपवास ] ओ० ७७, १२०, १४०, १५७० ६७१,७५२,७८७,७८६ (फ) V फंब | स्वन्द् ] - फंदइ. रा० ७७१ - फंदंति. जी० २२०२६ फवंत [ स्पन्दमान ] रा० ७७१ फंदिय [स्पन्दि ] रा० १७३ जी० ३१२८५,५८८ फणस [पग] ओ० ६, १० जी० ११७२ ३३५८२ फरसु | परशु ] रा० ७६५ फरिस [ स्पर्श ! ओ० १५,१६१,१६३. रा० २८५. ६७२,६८५,७१०,७५१,७७४. जी० ३।४५१, ५८६,५६२ फee [] ओ० ४०, ४६. रा० ७६५. जी० ३.६६.११८ फल [ ओ० ६,७१,१३५. रा० १५१,२२८, २८१,६७०, ८१४. जी० ११७१,७२, ३१७४, २७४,३२४,३८७,५८६,६००,६०२,६७२ फल [ फलक ] ०३७, १२०, १६२, १८० रा० १६,१५३, १७५,१६०, २३५, २३६,२४०, ६६८, ७०४,७०६. जी० ३।२६४,२८७, ३२६, ३६७, ३६८,४०२,६०२ फलगगाह 1लका | ओ० ६४ फलमंत | वत् ] ओ० ५,५. जी० ३।२७४ फलय | फलक | रा० ७११,७१३, ७५२, ७७६,७८६. जी० ३३२६, ४०२ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलवित्ति-बंधण फलवित्ति | फन वृत्ति जी० ३।२१७,२६७,२६८, फासमंत [स्पर्शवत् ] जी० ११३३,३६ ३५८,५७६ फासिदिय [स्पर्शेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी० १:२२; फलविवाग | फलविपाक] ओ० ७४१६. रा० १८५, श६७६ फासुय | प्रासुक, स्पर्णक] मो० ३७,१२०,१६२. फलहसेज्जा [ फलकाथ्या ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा०६९८,७५२,७७६,७८६ रा०८१६ फिडिय [स्फिटित | ओ०२३ फलासव फलामव | जी० ३१८६० फुफुअग्गि [दे०] जी० २१७४ फलाहार | फलाहार ओ०६४ फुटमाण [स्फुटत् ] रा० ७१०,७७४ फलिय | फलित | रा० ७८२ फुट्टिज्जत [स्फोटयमान रा० ७७ फलिह । परिघ | ओ० १,१६,१६२. रा० ६६८, फुड [स्पृष्ट] ओ० १६६,१७० ७५२,७८६. जी० ३३५६६ फुड स्फुट] रा० ७७४ फलिह ! स्फटिक ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. फुडिय [स्फुटित] जी० ३।६६ जी० ३७.४५१,८५४ फुल्ल [फुल्ल ] ओ० २२. रा० १७४,७२३,७७७, फलिहरयण | परिधरल। रा०२४६,३५५. ७७८,७८८. जी० ३।११८,११६,२८६ जी० ३१४१०,५२० फुल्लग [फुल्लक] जी० ३१५६३ फलिहा परिखा| ओ०१ फुल्लावलि फुल्लावलि ] रा० २४. जी. ३।२७७ फाणिय फाणित] आ०६३ फुस [स्पृश्] - फुसइ. ओ० ७१.-फुसंतु. फालिय | स्फाटिक) ओ० १५४,१७४. ओ०११७. रा० ७९६ जी० ३३२८६,३२७ फुसित्ता [स्पृष्ट्वा ओ० १६६ फालिय । पाटि:, स्काटित १० ७६४७६५ फुसिय स्पृष्ट] रा० ६,१२,२८१. जी० ३।४४६ फालियग पाटिक, स्काटितक ! ओ० ६० {क्रियमान रा० ७७ फालियमय | स्फटिकमय जी०३:५४७ ओ० १६,४६,४७. रा० ३८,१३०, फालियामय टिकाया ० १९. रा० २५४. १६०,२२२,२५६. जी०३१३००,३१२,३३३, जी० ३१४१५,८५७.६११,१००८ ३८१,४१७,५६६,८६४ फास | स्पर्श ओ० १३.२७,४७,५१,७२,१६६, फेणक [फेन क] रा० ६६ १७०. रा० ३१,३३,३७,४५,६५,१७२,१८५, फोडेमाण स्कोटयत् । ओ० ५२. रा०६८८ १६६,२०३,२३७,२४५,८१३. जी. ११५,३६, ५.०,५८,७३,७८,८१, ३१५८,८५,८७,६६, बउसिया विकुशिका रा०८०४ १२२,१२३,१२७।१,३,२७१,२८४,२६७,३०६, बंध बन्ध | ओ० ४६,७१,१२०,१६१ से १६३. ३११,३३६, ३६४,३७६,३६६,४०७,४१२, ०२६६,४०७,७१२. रा०६९८,७५२,७८६ ४२१,५७८,६०१,६०२,६४५,६४८,६५६, बंध [बन्ध] ---बंध इ. १० १६. रा० ७६५. ६७०,७२४,७२७,७५७,६६०,८६६,८७२,८७८, ..-बंधति. रा० ७७४.---बंधति रा०७५. ६७२,६८१,६६२,१०७६,१.८१,१०९८, -बंधाहि. रा० ७७४ १११७,१११८,११२४,११२५ बंधठिति गन्धस्थिति जी० २७५,९७,१३६,१५१ फासओ स्पर्शत ] जी० ११४०,५० बंधण (बन्धन] ओ० १३,४६,१७१,१६५२१. फासतो [स्पर्शतस् ] जी० ३१२२ रा० ७५४,७५६,७६४,७७४ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंधित्तए-बहिया बंधित्तए तद्धम् । रा० ७७४ बलदेव बलदेव ओ०७१. जी० ३।७६५,८४१ बंधित्ता | बद्धवः | रा० ७५ बलव । बलवत् ] ओ० : ४. रा० १२,६७१,७५८, बंधुजीवगगुम्भ [बन्धुजीवकगुल्म जी० ३।५८० ७५६. ३१११८,११६ बंभ ब्रहान् ० २५.५१,१६२. रा०६६. बलवाउय बल मृत आं० ५५ से६३ जी०३।१०४६,१०६६,१०८८,१०६४,१११० बलसंपण्ण न 'म्पन्न । ओ० २५.१० ६८६ बंभचेर बहाचर्य जी. ३।६६६ बलागा बताका स २६ बंभचेरवास | ब्रह्मचर्यवा" ऑ० १५४,१६५,१६६. बलाया । बल का! ० ३।२८९ रा०८१६ बलाभिओग नलानिय ग] ओ० १०१,१२४ बंभष्णय वाहायक ] ओ० ६७ बलाहक बला'कजो० ३१७८५,७८६,८४१ बंभदत्त [हादत्त जी० ३।११७ बलाय [बलाहक | F०२६. जी० ३।२८२ बंभलोग गिलोक ०३:१०७६ बलि बिलि! जी० ३१२८० से २४३ बभलोय [ब्रह्मलोक ] ओ० ११०,११७,१४०. बलिकम्म बिलिकर्मन् । ओ००,५२,५३,७०. जी० २।१४८,१४६; ११०३८,१०५६,११०२ रा०६८३,६८५,६८७ से ६६६६६२,७००, Vबजा बन्ध ---बज्झती. ओ०७४।४ ७१०,७१६.१२६,७५१,७५३,७६५,७७४, बत्तीस [द्वात्रिंशत् । ओ० ३३. रा० १२४. ७६४,८०२,८०५ जी० ३१५ बलिपीढ विलिपीट। रा० २७२,२७३,६५४. जी. बत्तीसइगुण द्वात्रिंशद्गुण] जी० २११५१ बत्तीसइबद्ध द्वात्रिशद्बद्ध] रा० ७३.११८ बलिविसज्जण | मलि विसर्जन] रा० ६५४. जी. ३१५५६ बत्तीसइबद्धय [द्वात्रिंशद्बद्धक] रा० ७१०,७७४ बल्लकी बल्लको रा० ७७ बत्तीसतिबद्ध [द्वात्रिशद्बद्ध रा०६३,६५ बहली बिल्ली। आ० ७०. रा० ८०४ बत्तीसिया [द्वात्रिशिक: । रा० ७७२ बहन बहु] अ० १२,१७,२३,४७ से ५२. रा० बद्ध बद्ध j ० ५.८,५७. रा० १३२,२३५,६६४, १६,१७,२२,२३,५४,५५,७१ से ७५,७६ से ६८३,७५४,७५६,७६४,७७१,७७४. ८१,८३,११२ स ११८,१३२,१५३,१६७,१६८, जा० ३।२२,१७४,२७४,३०२,३२६,३९७,५६२ १७८ से १८०,१८२.१८४,१८५,१८७,१६२ बद्धग बद्धक रा० ७७ से १६४,१६६,२३५,२३६.२४०,२४६,२८०, बद्धीसा ! बध्वीमा ०७७ २८२, २८६, ६८७ से ६८६.६६५,७०३, बफ ] जी० ३१५६२ ७०४. जो० ३३८७,२१७,३४८,३५८, ३५६, बल्बरिया बर्वरिका रा० ८०४ ३६७,३६७,३६८,४०२,४१०,४११,४२०, बब्बरी । बर्बरी| ओ० ७० ४४६,४४८,४५५,४५६,५७६ से ५८३ ५८६ से बरहिण न ०६. जी. ३१२७४ ५६५,६४०,७०२,७२४,३२६,७२७,७२६, बल [व] ० २३,६७,८१,८६ मे ६८,११४, ७८५ ७५७,८०७,८२६,८४१,८५७,६०२, ११,१५५,१५० से १६०,१६२,१६७. ६१७,१०३०,१०३६,१०८१ ग० १२.१३,६१,६५७,६७४,६९५,७५८,७५६, बहिव रा० १३२. जी. ३१३०० ७८७,७८,६०,७६१ जी० ३.११८,४४६, बहिया बहस हस्तात् । ओ०२. रा० २. जी. ५८६,५६२ ३८३८६१ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहु-बाणउति बहुबा ओ० १४,२३,५२,६३,६१,६८,७०,६१, ३।२६३,३१०,३१३,३१८,३३८,३५६,३५६, ६२,६४,११४,११७,१४०.१४१,१५४,१५५, ३६१,३६४,३६५,३६८,३६६,३७७,३८६, १५७ से १६०.१६२,१६५,१६६,१६५. रा०७ ४००,४१३,४२२,४२७,४६०,४६५,४८६, १५,५१,५६,५८,१२४,१७४,१८१,१५३,१६५, ४६१,४६८,५०३,५२१,५२७,५३५,५४२,५४६, २४,२७६,२८२.२६१,६५७,६७१,६७५, ५५४,६३४,६३६,६४२,६४६,६४६,६६३, ६८३,६६८,७१८,७५२,७७४.७८७ से ७८६ ६६८,६७१ से ६७३,६७६,६८५,६६१,७३७, ४६६,८०३,८०४,२१६. जी० ३११११,११८, ७५६,७५८,७६२,८३१,८८२,८८४,८८७, ११६,२५६,२६९,२८६,२६३.२६५,३८८, ८६१,९०६,६११,९१३,६१८,१०३६ ३६०,४०२,४४२,४८८,४५७.५५७,५६३, बहुमय बहुमत ओ० ११७. १० ७५० से ७५३, ५.६,५८४ से ५६५,६३७,६५,६,७२१,७३८, ७६६ ७४३,७५०,७६०,७६३,८५७,८६३,८६६, बहुमाण [बहुमान ] ओ० १४,४०. रा० ६७१ ८७५,६०१,६१७,६६५,१०२५,१०३८ बहुय बहुक ] ओ० १७१. रा ० १९७. बहुउदग | बहूदक ] ओ०६६ जी० ११७२,१४३; २०६८ से ७२,६५,९६, बहुगुणतर [ बहुगुणत र ] रा० ७१८ १३४ से १३८,१४१ से १४६ ३.४०२,५७६, बहुजणब जन आं० २,१४,५२,११८,१४६. १०२५,१०३७,१०३८४१६,२२,२५, १६, रा० ६७१,६७५,६५७ २०,२६,२७,३२ से ३६,५२,५६,६०,७४२०, बहुतरक [ बहुतरक | जी० ३.१०१ २२,२३, ६७,१४,५५,२५० से २५३,२५५, बहुतरग |बहुतरक जी० ३१६६,११३,११४ २८६ से २६७ बहुदोस | बहुदोरा ओ० ४३ बहुरय बहुरत ] ओ० १६० बहुपडिपुष्ण | बहुप्रतिपूर्ण | आ. १४३. रा० १५१, बहुल | बहुल] ओ० १,७,८,१०,४६,४६. १५२,८०१. जी० ३६३२४,३२५ रा० ६७१. जी० ३३११८,११६,२३६,२७५, २७६ बहुपरिसपरंपरामय [बहुपुरुषपरम्परागत रा० बहुविह | बहुविध ) ओ० १६५१६ ७७३ बहुप्पकार | बहुप्रकार ] जी० ३१५६५ बहुसम [बहुसम] रा० २४,३२,३३,३५,६५,६६, बहुप्पगार [बहुप्रकार जी० ३३५८६ मे ५८८, १२४,१७१,१८६ से १८८,२०३,२०४,२१७, २३७,२३८,२६१. जी० ३१२१८,२५७,२७७, बहुप्पसन्न बहुप्रसन्न] आ० १११ से ११३, ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, १३७,१३८ ३६८,३६६,३७२,३६६,४००,४२२,४२७, बहबीयवहुवीज जी. १९७०,७२ ५८०,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६,६४८, बहुवीयग बहुबीजक जी. ११७२ ६४६, ६५६,६६२,६६३,६७०,६७१,६७३, बहुमज्श बहुमध्य] ओ० ८,१६२. रा. ३,३२, ६६०.६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८,८८३, ३५,३६,३६,६६,१२५,१६४,१८६.१८८,२०४, ८८४,८६०,६०५,६०६,६१२,६१३,१००३, २१७.२१८,२२७.२३८,२५२.२६१,२६३, १०३८,१०३६ २६५,३००.३२१,३२६,३३३,३३८,३५६, बाण वाण ता० ३६. जी० ३१२७६ ४१५,४७६,५३६,५९६,७३५,७७२. जी० बाणउति [द्वानवति ] जी० ३१८१५ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ hariya- बाल दिवाकर बायरकाल | बारकाल ] जी० E बायरणिओद [वादर निगोद ] जी० ५३८ बायरणिओय [बाद निगोद ] जी० ५१३१,३२,३५, ३६ बायरतसकाइय | बादरत्रसकायिक | जी० ५।३१ से ३४,३६ ४०, ४७ से ४६,५२ बावरणिओवजीव | बादरनिगोदजीव ] जी० ५५३. ५५, ५८ से ६० बारक्काइ [बादरतेजस्कायिक | जी० ५।३१,३३,३४ बायर उक्काइय | बादरतेजस्कायिक ] जी० ११७६, ५१३३, ३४, ३६ बादरनियोव | बादरनिगोद ] जी० ५६४० बादरतसकाइय [बादरत्रसकायिक | जी० ५२६ से बायरपुढवि | बादर पृथ्वी | जी० ५।३१,३३,३५,३६ ३०,३३,३५ बायरपुढविकाइय [वाद र पृथ्वीकायिक जी० १।१३, ५७, ६५, ७४ ५३१, ३३, ३४, ३६ arregढविक्का | बादरपृथ्वीकायिक ] जी० १२५७,५८,६२ ६६६ बाणगुम्म [ बाणगुल्म जी० ३.५८० बावर [ बादर ] जी० २८४१ ५२६ से ३१,३५, ५१,५२,५८ से ६० बावरआउकाइय [बादर अकायिक | जी० ५।२८ बादरणिओत [बादरनिगोद ) जी० २६ बादरणिओव [ बादरनिगोद | जी० ५।२० से ३०, बादरतेक्काइ [ बादरतेज स्कायिक ] जी० १७८ ७६ ५१२८ बादरपत्तेयवणस्स तिकाइय [ बादरप्रत्येक वनस्पतिकायिक] जी० ५।२६ बाबरपुढषि [ बादरपृथ्वी ] जी० ५४२६ बावर विकाइ [ बादरपृथ्वी कायिक ] जी० ११५८ ३११३२,१३४, ५२,३, २८ से ३० बाबरवणस्सइकाइय [वादरवनस्पतिकासिक ] जी० ५।३० बादरवणस्सति [ बादरवनस्पति ] जी० ५।२६ बादरवणतिकाय [बादरवनस्पतिकाधिक ] जी० ५२८ से ३१ बादरवाज] [ बादरवायु ] जी० ५२६ बादरवाइय [बादरवायुकाधिक ] जी० २६, ३० arraisers [बादरवायु कायिक ] जी० ११८१ बायर [बादर ] जी० १४४ ३८४१ ५१२८, २६, ३१ से ३६, ६५,६३,६६, १०० बायरआउकाय | बादरअप्कायिक | जी० ५१२६ बायरआउकाइय [ वादकाधिक जी० ११६३,६५ arcareasers | बादरवनस्पतिकायिक ] जी० ११६६,६८,६६,७२ से ७४ ५३३, ३४, ३६ बायरवणस्पतिकाइय | बादरवनस्पतिकायिक ] जी० ५।३१,३३ से ३६ बाराका [बादरानुकायिक ] जी० ५॥३४ बायरवाउक्काइय | बादरवायुकायिक ] जी० १५०, ८२ बायाल [द्वाचत्वारिंशत् | जी० ३ । १०२२ बयालीस | द्वत्वारिंशत् ] थो० १६२. जी० ११११२ बारस | द्वादशन् ] ओ० ६०. रा० ४३. जी० ११८६ बारसभत्त [ द्वादशभक्त ओ० ३२ बारसम [ द्वादश ] ० ८०२ बारसाह (द्वादशाह ओ० १४४ बाल बाल ] रा० २७,३१,७५८,७५६. जी० ३३२५०,२८४,६६० से ६६७ बाल तवोकम्म [वाल तप:कर्मन् । ओ० ७३ बालदिवाकर | बालदिवाकर ] रा० २७. जो० ३२५० Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालभाव-बुक्कार बालभाव [बालभाव] रा०८०६,८१० पाहिरिया (बाहिरिका] ओ० १८,२०,५३,५५, बालविहवा [बालविधवा] ओ०१२ ५८,६० से ६३ रा०६८३,६८५,७०८,७५४, बालिय बाल रा० ४५ ७५६,७६२,७६४ बावट्ठ [द्वाषष्टि ] जी० ३१:३२ बाहिरिल्ल बाह्य ] जी० ३१७२३,१००७ बावट्ठि । द्वारिट] रा० २०६. जी० ६१६१ बाहु | बाहु] ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. बावपण [द्विपञ्चाशत् | जी० ३१६:१ ___ जी० ३।११८,५६६ बावत्तर द्विाराति जी० ३.६३२ बाहुजुद्ध [बाहुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ बावत्तरि [द्वासप्तति]० २०६. जी०११११६ बाहुजोहि [ बाहुबोधिन् | ओ० १४८,१४६. बावन्न ! द्विपञ्चाशत् ] ओ० १२६ रा० ८०६,८१० बावीस द्वाविंशति] ओ० १५४. स० ८१६. बाहुप्पमहि । बाहुप्रमदिन् ] ओ० १४८,१४६. जी० ११५६ श० ८०६,८१० बिइय द्वितीय | ओ० ४७,१७६,१८२. बाहल्ल बाहल्य] ओ० १९२. रा० ३६,१३७. जी० ३।२२६ १८८,२१८,२२१,२२४,२३०,२३८,२४२, बिट {वृन्त] रा० २२० २४४,२४६,२५२,२६१,२७२. जी० ३.५,१४ बिंदिय [वीन्द्रिय ओ०१८२ से २७,३६ से ४७,५२,७३ से ७५,७७,८०, बिलु [बिन्दु] ओ० २३ १२४,१२५,१२७,२३२,२५७,३०७,३१०, बिबफल | दिम्बफल] ओ० १६,४७. जी० ३१५९६ ३५५,३६१,३६५ ३७७,३८०,३८३,३८५, बिहणिज्ज [ बृहणीय] जी० ३।६०२,८६०,८६६, ३६२,४००,४०४,४०६,४०८,४१३,४२२, ८७२,८७८ ४२७,४३७,६३४,६४२,६४४,६४६.६५३, बिब्बोयण [दे०] रा० २४५. जी० ३।४०७ ६५५,६६८,६७१,७२४,७२५,७२७,७२८, बिलपंतिया | दिलपंक्तिका रा० १७४,१७५,१८०. ७५८,८६१,८६३,८६५,८६७,८६६,६०६, जी० ३.२८६,२८७,२६२,५७६.६३७,७३८, १००६,१०१० से १०१४,१०६५,१०६६ ७४३,७६३,८५७,८६३ बाहा बाह] 3० ११६. जी० ३।३५४,४१५ बिसालग | द्विशालक] जी० ३१५६४ बाहि बहिस्] रा. ७७२. जी. ३१७७ बीभच्छ {बीभत्स ] जी० ३।१४ बाहिर बाह्य] ० ६.१० ४३. जी० ३१७८, बीय बीज! ओ० १३५,१८४ २३६,२७५,६४३.६८१,७६८,७६६७७५, बीय द्वितीय ] ओ० १७४ ८३१,८३८११२,८४५,१०५५ बोयग बीयक जी० ३२२८१ बाहिरग [बाहिरक, बाक] जो० ३१७८४,७८७ ।। बोयगुम्म वीजगुल्म] जी० ३।५८० बाहिरय बाहिरक, वाहक ] अं० ३०,३१,३७. बीयबद्धि बोजबुद्धि] ओ० २४ जी० ३१६५८,७८२,७८६,७८७.६६० से १६७ बीयमंत | बीजवत् । ओ० ५,८. जी० ३१२७४ बाहिरिय बाहिरिक, बाह्यक] रा०६६२. बीयय (बोयक ! रा० २८ जी० ३१२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, ___ बोगसत्तराई दिगा द्वितीयसप्तरात्रिदिवा] मो० २. २४७,२४६,२५०,२५४ से २५६,२५८,३४३, बीयाहर [बीजाहर] ओ०६४ ४४७,५६०,७३३,८४२.१०४० से १०४२. बुषकार [दे० --बुक्कारेति. रा० २८१. १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ से १०५३ जी० ३।४४७ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ बुज्झ-भंत २६२,७७७,७७८,७८८. जी० ३१४५७ बोहि [बोधि ] ओ० १५१. रा०८१२ बोहिदय [वोधिदय रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ बोहिय [बोधित ] ओ० १६ बुज्झ दे०|--- बुज्झइ. ओ० १७७.---बुझंति. ओ० ७२. जी० १११३३.--बुझिहिति. ओ० १६६.- वृज्झिहिति. ओ० १५४. स० ८१२ Vबुज्न बुध् ] -बुझिहिति. ओ० १५१ बुझिहित्ता [बुद्ध्वा | ओ० १५१ बुद्ध [बुद्ध] ओ० १६,२१,५४.१९५।२०. रा०८, २६२. जी० ३४५७ सुद्धबोहियसिद्ध [बुद्धबोधितसिद्ध | जी० १८ बुद्धि बुद्धि | रा० ६७५ बुब्बुय (बुबुद] ओ० २३ बुह | बुध] ओ० ५० बूि [ब्र]--दूया. रा० ७३२ बर बर ओ० १३. रा०७३२. जी. ३।२८४, २६७,३११,४०७ बेइंदिय द्वीन्द्रिय] जी० ११८३,८४,८७,८८, १२८,२।१०१,१०३,११२,१२१,१३१,१३६, । १३८.१४६,१४६ ३३१३०,१३६,१६६% ४११,४,८,१२,१६,२०,२१,२३,२५; ११, ३.५; १।१,३,५,७,२६४ बॅट [वन्त] जी० ३११७४ बॅटट्ठाइ [वृन्तस्थायिन् ] रा० ६.१२ बंदिय [द्वीन्द्रिय ] जी० ४११७, ६।१६७,१६६, २२१,२२३,२६४ बेयाहिय [द्वयाहिक जी० ३१६२८ बेलंव [बेलम्ब] जी० ३१७२४ बेला बेला जी० ३१७३३ बोंड [दे०जी० ३।५६६ बोंदि [दे० ] ओ० ४७,७२,१६५।१,२. रा० ७७२ बौद्धन्व | बोद्धव्य] ओ० १६५४५,६. ___जी० ३.१२६।१० बोधव बोद्धव्य ] जी० ११६६ बोषिय [बोधित ] जी० ३।५६६,५९७ बोल [दे०] ओ० ४६,४६,५२. रा० १५,६८७, ६८८. जी० ३।६२७,८४२,८४५ बोय बोधक ] ओ० १६,२१,२२,५४. रा. ८, भइ [भृति रा० ७८७,७८८ भइणो भगिनी] जी० ३।६११ भइय [ भक्त्र] ओ० १६५।१५ भइय | भृतिक ] रा ० १२ भंगुर [भङ्गुर ओ० १६. जी. ३१५६६,५६७ भंजिज्जमाण [भज्यमान रा० ३० भंड [भाण्ड] ओ० ४६,११७. रा० ३०,१५२, २६६,२६८,२८४,४७५,५३५,७७४,७६६. जी० ३१२८३,३२५,४२६,४३२,४५०,५३४, ५४१,११२८,११३० भंग (दे० ओ० ५६ भंग्यिालिछ [भण्डिकालिञ्छ] जी० ३।११८ भंत भदन्त ओ० ६६,७६,८४ से ६५,११४, ११७,११८,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७, १६६ से १७२,१५४,१७५,१७७,१८१,१८४ से १६२. रा० १०,५८,६२,६३,६५,१२१ से १२४,१७३,१९७ से २००,६६५ से ६६७, ६६५,७००,७०२ से ७०४,७१८,७२०,७३६, ७३८,७४७,७४८,७५० से ७५४,७५६,७५८ से ७६१,७६२,७६४ से ७६७,७७०,७७२ से ७७५,७७७,७८२ से ७८५,७८७,७६८,८१७. जी० श१५ से ३३,४१ से ४६,५१ से ५४, ५६,५६ से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, १०,६३ से १६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३; २१२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,४८,४६,५४,५७ से ६३,६६,६८ से ७४,७६,८२ से ८४,८६.८८, १२,९५ से १८,१०७ से १०६,१११,११३, ११४,११६ से ११६,१२२ से १२६,१३३ से १५० ३१३ से १,११ से २०,२४ से ३५,३७ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतसंभंत-मति से ३६,४२,४४ से ६६,७३ से ६८, १०३ से ११०, ११२, ११६, ११८ से १२८, १४७,१५० से १६२.१६५,१६७,१६६ मे १८३.१८५,१८६, १६२ से २११,२१४,२१७ से २२३,२२७, २३२ से २४२, २४४ से २४६,२४५ से २५६, २६ से २७२,२६३ से २८५, २६६,३००, ३५०,३५१,५६४ से ५७८, ५०६, ५६३, ५६६ से ६३२,६३७ से ६३९, ६५६, ६६०, ६६४,६६६ से ६६८,७००,३०१,७०३, ३०५ से ७११, ७१३ से ७२३,७३० से ७३६,३३८,७४० से ७४३,७४५,७४६.७४५ से ७५०,७५४,७६० से ७६६,७६८ से ७७०,७७२,७७६ से ७७८, ७८१ से ३६५,७६७ से ८००,८०० से ०४, ८०८०६,८११ से ८१६,८१ से ८२०, ८२३ से ८२५,८२७,८२६,८३०, ८३२ से ८३७,८३६८४०, ८४२ से ४७,८४६,८५०, ८५४,८५५,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२८७५८७८ से ५८१,६३६, ६४०, ६४४, ६५३ से ६५५,६५८, ६६१,६६३ से ६६६, ६६६,६७२ से ६७७,६८२ से ६८४८८ से १००८, १०१०, १०१५, १०१७,१०२० से १०२७,१०३७ से १०४४, १०५४,१०५६, १०५६, १०६२,१०६३, १०६७,१०६६, १०७१, १०७३,१०७५,१०७७ से १०८३, १०८५, १०८७,१०८९ से १०६३, १०६५, १०६७ से १०९६,११०१,११०५,११०७,११०६ से १११२, १११४,१११५, १११७,१११६, ११२१, ११२२, ११२४,११२८, ११३०,११३१,११३३ से १९३८ : ४३,७ से ११,१३,१६,२२,२३, २५, ५५, ८, १०, १२ से १६, १६ से २४,२६ से ३०,३२ से ३५,३७ से ३६, ४१ से ५०, ५२ से ५६.५८ से ६०, ६, ७.२,६,२०, ६१२, 3, १० से १४,१६,२३ ३ २६.३१,३३,३६,४१ से ४८,५२,५५, ५७ से ५६,६४, ६, ७६ से ७६, ८६, ६०, ६६,६७,१०२, १०३, ११४, ११५, ६६६ १२२,१३२,१४२,१६० से १६३.१७१,१८६ से १६३, १६५,१६८ से २०३,२१० से २१२, २१४ से २१६, २२२ से २२५, २२७ से २३०, २३३ से २३८,२४० से २४४, २४६, २४० से २५३,२५५,२५७ से २६३, २६५,२३८ से २७३,२७५ से २०२२८४ से २९३ भंत संभंत | भ्रान्तमंत्रान्त ] रा० १११,२८१. जी० ३।४४७ भंभा (दे० सम्भा | रा० ७७. जी० ३५८ सेकामशकिाम ] रा० ७३७ भगवल [भगन्दर ] जी० ३१६२८ भगव [ भगवत् ] ओ० १६, १७,१६ से २५, २७४७ से ५५,६२.६६ से ११,७५ से ८३,११७. ०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,०३, ३४, ७६, ८१, ८३, ११३, ११८, १२०, १२१,६६८, ७१४,७६६.८१४,८१५,८१७ भगवई [ भगवती ] रा० ८१७ भगवंत [ भगवत् ] ओ० १६,२१,२३, २६ से ३०, ५१,५२,५४.११७,१५२,१६५,१६५. ०८, ६,११,५६,२६२,६८७,७१४,७४६, ७६६. जी० १११ ; ३१४५७ भगवती [ भगवती ] रा० ८१७ भगइ | भग्नजित् ] ओ०६ भज्जा [ भार्या ] जी० ३,६११ भट्टित्त [ भर्तृत्व] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।३५०, ५६३,६३७ भट्ट |रा० ६, १२, २०१. जी० ३१४४३ भड | भट ] ० १.२३, ५२.१० ५३,६६३,६८७, ६८८,६६२,७१६ भणित [ भणित ] जी० ३१८८१ भय [ भणित] ओ० १५, ४६, १६५३४ से ७. रा० ७०,६७२,८०६,८१०. जी० २ १५० ; ३११२६,५६७, ८३८।१,२; ६।१५७ भण्ण [ भण् ] -- भण्णंति. जी० ३१६४६ भति [भति ] ओ० १७ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्त-भवगहण भत्तभक्त] ओ० १४,१७,३२,३३,११७,१४०, भमुया [5] ओ० ३१५६७ १४१,१५४,१५७,१६२,१६५,१६६. रा० भमुह [5.] ओ० १६. स० २५४, जो० ३१४१५ ६७१,७७४,७८७.७८८,७६६,८१६ भय भय] ओ०१४,२५,२८,४६. रा० ६७१, भत्तकहा भिक्तकथा] ओ० १०४,१२७ ६८६. जी० ३:१२७,१२८ भत्तपच्चक्खाण भत.प्रत्याख्यान] ओ० ३२ भयंत [भदन्त'। ओ०७२,१६७ भतपाणविउस्सग्ग [भक्तपानमुत्सर्ग ] ओ० ४४ ।। भयग [भृतक) जी० ३१६१० भत्ति | भक्ति ] ओ० ४०,५२. रा० १६ भयणा भजना) जी. १११३६ : ३२१५२ भत्तिघर [भक्तिगृह] जी० ३१५६४ भयव ! भगवत् रा० १२१ भत्तिचित्त भक्तिचित्त | ओ० १३,६३. ० १७, चित्ता ओर १३.६३. १० १७. भयसण्णा | भयमज्ञा] जी० ११२० ; ३११२८ १८,२०,२४,३२,३४,३७,५१,१२६,१३७, भर [भर रा० २२८. जी० ३।३८७,७८४,७८७ १५६,२६२. जी० ३।२७७,२८८,३००,३०७, भरणी [भरणी ] जी० ३।१००७ ३०८३११.३३२,३३७,३५६,३७२,३६६, भरत [भरत ] जी० २.१३२,३ ६७२ भरह भरत ४५७,५६७,५६३,५६५,९०४ ओ० ६८. रा० २७६,२८२. जी. भत्तिपुवग भक्तिपूर्वक ] रा० ६३,६५ २१४,२८,५५,७०,७२,६६,११५,१२२,१४.०, भद्द [भद्र] ओ० ४७,६८,७२. रा० २८२. जी० १४६ ; ३१२२६,४४५,४४७७९५ ३२४४८ भरिय [भरित] ओ० ४६,५७,६४. रा० १७३, भङ्ग [भद्रक] जी० ३१५६८,६२०,६२५,७६५,८४१ भद्दपडिमा [भद्रप्रतिमा] ओ० २४ भिव[भू–भवइ. ओ०२८, रा० २००. जी० ३१५६-भव उ. ओ० २०.रा०७१३. भद्दमोत्था [भद्रमुस्ता] जी० ११७३ -भवंति. ओ०२०, रा० १२४. जी. ३१७७ भद्दय [भद्रक] जी० ३१७६५ -भवति. रा० १२६. जी० ३३२७२-भवह. मद्दया [भद्रता] ओ० ७३,६१,११६ भद्दसालवण | भद्र शालवन] रा०१७३,२७६. रा०७१३--भवाहि. रा०७५०...-भविस्सइ. ___ जी० ३१२८५,४४५ अं.० ५२. रा० २००---भविस्सति. भद्दा [भद्रक] ओ०६८. रा०२८२. जी. ३ ४४८ जी. ३१५६ --भविस्सामि. रा०७७५ भद्दा भद्रा] जी० ३३६१५ -भवे. रा० २५. जी० ३१८४--भवेज्जासि. भद्दासण [भद्रासन] ओ० १२,६४. रा० २१,४१ रा० ७७४- भुवि. रा० २००. जी. ३५१ से ४४,४८,४६,१८१,१८३,२६१,६५८ से भव [भव ] ओ० ४६,१६५१३,७,८ ६६४. जी० ३.२८६,२६३,३३६ से ३४५, भवंत [भवत् ] रा० १५ ३६८,३७०,५५० से ५६०,६३५ भवक्षय [भवक्षय ओ० १४१,१६५१६. रा० ७६६ भमंत [भ्रमत् ] ओ०४६. रा. १७४. जी० भयग्गहण भिवग्रण] जी० ७।५,६,१०,१२,१५ ३१११८,११६,२८६ से १८;६२ से ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८, भममाण [भ्राम्यत, भ्रमत्] ओ० ४६ भमर [म्रमर] ओ० ६.१६. रा० २५. जी० १. 'भयंतारो' ति भदन्ताः कल्याणिनः भक्तारो वा ३१२७५,२७८,५६६ नेग्रन्थ प्रवचनस्थ सेवयितारः [वृ० पृ० १५२] भमरपतंगसार [भ्रमरपतङ्गसार] रा०२५. जी० 'भयंतारो' ति भक्तार: अनुष्ठान विशेषस्य ३1२७८ सेवयितारो भयत्रातारो वा [वृ० पृ० २०३] । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवण-भासा ७०१ २४३,२४४,२४६,२७१,२७३,२७६ से २८२ १०५,१०८,१११,११८,१२३, ३।७५,'33, भवण भवन] ओ० १,१४,६६,१८१ रा०६७१, १५६,१६२,२३१,२५०,३५६.३५८,३५६, ६७५,७६६. जी० ३१२३२ से २३४,२४०, ३६,४१२,४६३,६७३,६७६,६८२,७५६, २४४,२४८,५६४,५६७,६०४,६४६ से ६४८, ७६६,७६६,७७५,८००,८०१,८१८,८२८, ६५१,६७३,६५२,६८६,६६२ ले ६६८,७५६ ६३६,६३६,१०४४,१०५०,११२६,११२33; भवणवइ | भवनपति रा० ११,५६. जी० २१६५ ८.२, ६.२२६ भवणवति भवनपति जी० ३।६१७ ।। भामरी [भ्रामरी ] रा० ७७ भवजवासि | भवनवारिन् | ओ० ४८. जी० १.१३५: भाय | भ्रातृ ] जी० ३।६११ २११५,१६,३६,३७,७१,७२,९१,९५,९६,१४८, भाय भाग] रा० ७८८. जी० ३१५७७ १४६; ३।२३० से २३२,१०४२ भाय भाज्-भाएंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ भायरक्खिया [भातृ रक्षिता ओ०६२ भवणवासिणी भवनवाहिनी } जी० २१७१,७२, भार [भार| रा०३७४ १४८,१४६ भारह [भारत] रा०८गे १०,१३,१५५६,६६८ भवणावास भवनानास ] जी० ३३२३२ भारुडपक्खि भारुण्डपक्षिन् यो० २७. रा० ८१३ भवत्थ भवस्थ ६४४ से ४८,५२,५६ भाव [भाव] रा० ६३,६५,१३३,७७१,८१५. भवत्थकेवलणाण भवस्थकेवलज्ञान ] रा० ७४५ जी० ३।३०३,७२६ भवधारणिज्ज [भवधारणीय] जी० ११६४,६६, भावओ [भावतस् ] ओ०२८. जी० १३३,३४, १३५,१३६, ३.६१,६३,१०८७ से १०५६, १०६१,१०६२,११२१ से ११२३ भावविउस्सग्ग [भवात्सर्ग ] ओ० ४४ भवपच्चइय [भवप्रत्ययिक रा०७४३ भावाभिगवरय [भावाभिग्रहन रक] ओ० ३४ भवसिद्धिय भवसिद्धिक] रा० ६२. जी० ६।१०६ भावियप्प भावितात्मन् ] ओ० १६६ से १११,११२ भावेमाण भावयत् ] ओ०२१ से २४,२६,४५, भविता | भूत्वा] ओ० २३. रा०६८७ ५२,८२,१२०,१४०,१५७. रा० ८,६,६८६, भसोल [भसोल] रा० १०६,११६,२८१. ६८७.६८६,६६८,७११,७१३,७५२,७५३, जी० ३।४४७ ७८७,७८६,५१४,८१७ भाइल्लग [भागिक ] जी० ३१६१० भावोमोदरिया [भावावमोदनिका] औ० ३३ भाउय [ भ्रातृक] रा० ६७५ भास् [भाष्..भासइ. ओ० ५२. रा०६१ भाग [भाग] रा० ७८७,७८८. जी ० ३।५७७, --भाति. जी० ३१२१० ६३२,६३६,८३८1१६,१०१० से १०१४ भास (य) {भाक जी० ६६६ भागि [ भागिन् ] रा० ८१५ ।। भासंत भाषमाण ] ओ० ६४. जी० ३१५६१ भाजण |भाजन जी० ३.५८७ भासग [ भाषक] जी० ३१५६,५६,६१ भाणितब्ध भणितव्य ] जी० २१११२ ३१७४, भासमणपज्जत्ति | भापामनःपर्याप्ति ] रा०२७४, १२०.१२१,१४४,२२७,५७८,६३१.६५७,६४७ ७६७. जी० ३.४४० भाणियव्व भणितव्य ] रा०८०,१६४,२०१, भासय [भागका जी० ६।५७ २०४ से २०६,७४२. जी० ११५१,७२,९६ भासरासि धरमराशि] रा० १२४ ११८,१२३,१२६,१३५, २१७६,७८,८०,८१, भासा [भाषा | ओ० ७१. रा० ६१,८०६,८१० Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ भासास मिय [भापासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ भासुर [भासुर] ओ० ४७,७२. रा० ६,१२ भिउम्व [भार्गव] ओ० ६६ भिंग [ भृङ्ग] ओ० १६. रा० २६. जी० ३:२७६ भिगंगय [भृङ्गाङ्गक] जी० ३:५८७ भिगणिभा भृङ्गनिभा] जी० ३६६८७ भिंगा [भृङ्गा] जी० ३१६८७ भिंगार भुङ्गार] ओ०६४,६७. रा० ५०,१४८, २५८,२७६,२८१,२८८,७५३. जी० ३।४४५, ४५४,५८७ भिंगारक [भृङ्गारक] ओ० ६. जी० ३।२७५, ३२१,३५५,४१६ भिगि [भृङ्गि] जी० ३१५६५,५६६ भिण्डमाल [भिण्डमाल, भिन्दपाल] ___ जी० ३११० भिडिमाल [भिण्डिमाल, भिन्दिपाल ] ओ० ६४ ।। भिरिमालग [भिण्डिमालय, भिन्दिपालाग्र] जी० ३८५ अभिद भिद्]-भिंद. रा० ६७१–भिज्जइ. रा० ७८४ भिभसारपुत्त [भिम्भसारपुत्र] ओ० १५,१८,२०, २१,५३ से ५६, ६२ से ६४,६६,६७,६६, ७१,८० भिक्खलाभिय [भिक्षालाभिक ओ० ३४ भिक्खायरिया [भिक्षाचर्या ] ओ० ३१,३४ भिक्खुपडिमा [ भिक्षुप्रतिमा | ओ० २४ भिक्खुय [भिक्षुक] रा० ७१८,७८७,७८८ भिगु | भृगु] जी० ३।६२३ भिच्चा भित्वा] रा० ७५५ भित्ति भित्ति ] रा० १३०. जी. ३१३०० भित्तिगुलिया [भित्तिगुलिका] रा० १३०. जी० ३।३०० भिन्नमुहुत्त [भिन्नमुहूर्त जी० ३।१२६४२,१० भिब्भिसमाण [बाभास्थमान | रा० १७,१८,२०, ३२,५२६. जी. ३१२८८, ३००,३७२ भासासमिय-भूइकम्मिय भिलुंग [दे० भिलुङ्ग] रा० ७०३ भिस [बिस] रा० २६,१७४. जी. ३३११८,११६, २८२,२८६ भिसंत [भासमान] ओ० ५,८,६४. रा० ५१ जी० ३१२७४ भिसकंद (बिसकन्द] जी० ३:६०१ भिसमाण [भासमाण ] ० १७,१८,२०,३२,१२६. जी० ३१२८८,३००,३७२ भिसिया पिकाओ० ११७ भीत भीत ] जी० ३.११६ भीम [भीम] ओ० ४६,५७. जी० ३१८३ भुंजमाण [भुजान ] ओ० ६८. ४० ७. जी० ३३५०,५६३,८४२.८४५,१०२४, १०२५ । भुकुंड [ दे०] -भुकुंडेति. रा० २८५. जी० ३१४५१ भु कुंडेता [दे० ] जी० ३।४५१ भुजंग भुजङ्ग ] जी० ३१५६७ भुज्जतर [भूयस्तर] ओ० ८६ भुज्जो [ भूयस् ] ओ० १५६. रा० ७५१ भुत्त [भुक्त] रा० ६८५,७६५,८०२,८१५ भुयम [भुजग] ओ० २,५१ । भुयगपद [भुजगपति ] ओ० ४६ भुयगपरिसप्प [भुजगपरिसर्प ] जी० २१११३ भुयगपेच्छा [भुजगप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ भुयगीसर [भुजगेश्वर] ओ० १६. जी. ३१५६६ भुयपरिसप्प भुजपरिसर्प जी० १।६०४, ११२. १२२, १२४;२७,६,२४,५२,१२२; ३३१४३, १४४, १६१,१६२,१६६ भुममोयग [भुगम चक] ओ० १६. जी० ३१५६६ भुया [ भुजा] ओ० १६,२१,४७,५४,६३,७२. रा० ८,६६,७०, जी० ३।४५७,५६६ भुवा [भ्रू का[ जी० ३१५९६ भुसागणि [बुषाग्नि ] जी० ३।११८ भूइकम्मिय [भूतिकर्मिक] ओ० १५६ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूओवधाइय-भोम भूओवाइय [ भूतोपघातिक ] ओ० ४० भूत [ भूत ] रा० ६,१२,३२,२८१. जी० ३१३६८, ४४३,७८०, ८४२, ८४५, १४७, ६४६, ६५० भूतक्वय [ भूतक्षय ] जी० ३१६२६ भूतग्गह [ भूतग्रह ] जी० ३१६२८ भूतपडिमा [भूतप्रतिमा [ जी० ३।४१८ भूतमंडलपविभत्ति [ भूतमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ० भूतमह [ भूतमह ] जी० ३१६१५ भूतवडेंसा] [भूतावतंगा ] जी० ३।६२१ भूता [ भूता] जी० २१ भूताणंद [ भूतानन्द | जी० ३।२५० भूमि [ भूमि ] ओ० ५२. रा० ७६६ भूमिगय [ भूमिगत ] रा० ७६५ भूमिचवेडा [ भूमिचपेटा ] रा० २८१. जी० ३।४४७ भूमिभाग [ भूमिभाग ] ओ० १६२. रा० २४, ३२, ३३. ३५, ६५,६६,१२४,१६४, १७१, १८६ से १८८, २०३ से २०६,२०८,२१३,२१६,२१७, २३७,२३८,२५१,२६१. जी० ३।२१८, २५७, २७७,३०६,३१०,३३६,३५६,३५६ से ३६१, ३६४,३६५.३६८ से ३७२,३७४, ३६६, ४००, ४१२,४२१,४२२,४२७,५८०, ६२३, ६३३, ६३४,६४५,६४६,६४८,६४६,६५६,६६२, ६६३,६७०,६७१,६७३, ६६०, ६६१,७३७, ७५५ से ७५८, ७६२, ७६५, ७६८,७७०, ८८३, ४ से ६०,६०५, १०६, ६१२,६१३, १००३,१०३८ भूमिभाय [ भूमिभाग ] जी० ३।४२६ भूमिया [ भूमिका ] रा० ६७५ भूमिसेज्जा [ भूमिशय्या ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ भूमी [भूमी ] जी० ३।६३१ भूय [ भूत ] ओ० २,४,६,२६,४६,५५,६२. रा० १३२,१७०,२३६,७०३. जी० ३ १२७, २७३,३०२,३७२,४४७, ६७५, ११२८, ११३० भूयपडिमा [ भूतप्रतिमा] रा० २५७ भूयमह [ भूत मह] रा० ६६८ ७०३ भूयवादिय [ भूतवादिक] ओ० ४६ भूयानंद [ भूतानन्द ] जी० ३।२४६, २५० भूसण [ भूषण ] ओ० २१,४७,५४,५७. ० ६६, ७०. जी० ३।५६३ भूसणधर [भुगणधर ] रा० ८,७१४ भूसिय [ भूषित ] ओ० ६४. २०५३, ७५१ भेत्ता [भित्वा ] जी० ३१६६१ भेद [ भेद ] ओ० २६. जी० ११११८, १२१,१२३, १२४, १२६,१३५ २७६,७८, १०५, १०६ ; _३३१३५,१४२, १४४, २३१,२७६,२८१,९३६ मेय [द] ओ० १. रा० २८,६७५,७६३. जी० ११५८ २ १५१, ३ १२६ ६, ६५० भेकर [ भेदकर ] ओ० ४० भेरव [ भैरव ] ओ० ४६ भेरी [भेरी ] ओ० ६७. रा० १३,७७, ६५७, ७५५. जी० ३१७८, ४४६ मेरुड [ भेरुण्ड ] जी० ३१८७८ heartar [ भेरुतालवन | जी० ३५८१ सज्ज [ भैषज्य ] ओ० १२०,१६२ रा० ६६८, ७५२,७८६ भो [भोस् ] ओ० ५५. रा० १३. जी० ३।४४४ भोग [भोग] ओ० १६,२३,४३,४६, १४८ से १५०. रा० ६७२, ७५१, ७५३, ७६१,५०६ से ८११. जी० ३५६, ११२४ भोग [भोज ] ओ० ५२. ० ६८७,६८८,६६५ httfter [भोगार्थ ] ओ०६८ भोगपुत्त [ भोजपुत्र ] ओ० ५२. रा० ६८७ भोगभोग | भोग्यभोग ] ओ० ६८. रा० ७. जी० ३३५०, ५६३, ८४२, ८४५, १०२४, १०२५ भोगरय [ भोगरजस् ] ओ० १५० रा० ८११ भोच्चा] [भुक्वा ] रा० ६६७ भोजण [भोजन ] जी० ३।५१२ भोत्तए [भोक्तुम् ] ओ० १३४ भोत्तूण | भुक्त्वा ] ओ० १६५।१८ भोम [ भूम ] रा० १३०. जी० ३३०० भोम [ भौम ] २० १६४. जी० ३।३३६ से ३३८, Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ ३४५, ३५५,३५६ भोमिज्ज [ भौमेय ] ० २७६,२८० भोमेज्ज [ भौमेय ] जी० ३१२५१,२५२ भोय [भोग] ओ० १५ २०६८५,७१०,७७४ √ भोय [ भोजय् ] - भोयाज्जा. ० ७७६ भोपण | भोजन ] ओ० १३५, १९५१८. जी० ३।६०२ भोयणमंडव [ भोजन मण्डप ] रा० ८०२ म मइ [मति ] ओ० ४६,५७ मइअण्णाणि [ मत्यज्ञानिन् ] जी० ११३०, ८७,६६; २०२,२०६,२०८ मउ | मृदु | रा० ७६, १७३ मदमह | मुकुन्दम । २०६८६ उड [ मुकुट ] ० २१,४७, ४० से ५१,५४,६३, ६५, ७२,१०८, १३१. रा०८, २८५, ७१४. जी० ३०४५१,५६३ म [ मृदुक ] ओ० १६. रा० २०८. जी० ११५० ; ३।२२,२८५,३८७,५६६,५६७, ६७२,१०६८ मडल [ मुकुल ] जी० ३५६७ मलि [ मुकुलिन् ] जी० १११०६, १०८ मउलि [ मौलि ] ओ० ४७,७२ मलिय | मुकुलित ] यो० २१,५४. रा० ७१४ मऊर [ मयूर ] जी० ३।५.६७ [म] ओ० १,२ खपेच्छा [मप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३।६१६ मंगल [ मङ्गल] ओ० २,१२,२०,५२, ५३, ६३,६८, ७०, १३६. ० ६,१०,४६, ५८, १५६,२४०, २७६,२६१,६८३,६८५,६८७ से ६०६, ६६२, ७००,७०४,७१६,७१६, ७२६, ७५१,७५३, ७६५,७७६,७६४,८०२,८०५. जी० ३.३३२, ४०२, ४४२ मंगलग [क] रा० २१,१६६, १७७,२०२, २०४ से २०८, २१४,२२०, २२३, २२६, २३२. भोमिज्ज-मंति २४१,२४८, २५०,२५६,२६१. जी० ३१२-६ ३१४,३४७,३५६, ३६७ से ३७१,३५३७६, ३=२,३६१,३६४,४०३.४११, ४२०, ४२४, ४३०४३३, ४३६६३६,६५१,६७७,७०८, ७६८८६२८६४, ८६,६००,६६,६१३ मंगलय | | ०७४.०३१२५५,४५७ मंगल [ माङ्गल्य ] रा० ६८५,६६२, ७००,७१६, ७२६,८०२ मंचामंच मञ्च ] ओ० ५५ १० २०१ मित्र | जी० ३१४४७ मंचातिमंच मंजरि [जरी | ओ० ५,६,१०. ०१४४. मी० ३१२६८,२७४ मंजु | मञ्जु ] जो० ६६. ० १३५. ०३२३०५, ५६८ √ is [म] मंडावेजा. रा० ७७६ मंड [ मण्ड ] जी० १७२,६६० मंडणाई [त्री ] ० २०४ मंडल [] ओ० ५०,६४. रा० १४६, जी० ३१३२२,८३११० से १२ मंडल | मण्डलक ] रा० २६५. जी० ३।४६० मंडलपविभत्ति [ मण्डलप्रविभक्ति] ० ० मंडलरोग [ मण्डलरोग ] जी० २३६२८ मंडलिय | माण्डलिक ! जी० ३३१२६६१ मंडावा [मलिकवात ! जी० ११८१ मंड [ मण्डप | जी० ३५६४,८६३ [क] ० ६ से ८,१०. जी० १२७५, ५०६ ड | मण्डप ] जी० ३:५७६,८६३ मंडित | मण्डित ] जी० २२८५,३०२,४४७ मंडिय | मण्डित | ओ० २,४७, ५५. ५६, रा० २०१. जी० ३२६५, ३१३ मंडित | | ० १३२ मंडियाग ( मडिक ] रा० ४० मंत [] ओ० २५. रा० ६७५,६८६,७६१ मंति मन्त्रिन् | ०१८. रा० ७५४,७५६,७६२, १६४ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंथ-मज्झमझ ७०५ मंथ मन्थ] ओ० १७४ मंद मन्द ] रा०.७६,१७३,७५८,७५६. जी. ३.२८५,६०१,८६६ मंदगति मगनिजी० ३१६८६ मंदर [मन्दर । ० १४,२७. ० १२४,२७६, ६७१,६७६,८१३. जी. ३..१७.१६ से २२१,२२७,३००,४४५,५६६ ५६८,५६६. ५७४,६६८,७०१,७३६,७४०,७४२,७८५, ७५.०,७५४,७६२,७६५,७६६,७७५,६३७, मंदरगिरि म द गि०१२. २2. मंदलेस | गन् श्य जी० ३१८३८१२६ मंदलेस्स मंदलेश । जी० ३।८४५ मंदाय | मन्द रा० ४०,११५,१६२,१७३,२५१. जी० ३।९६५,९८५,४४७ मंदायवलेस्समदातालेय जी० ३१८४५ मंस मांस] आ० ६२.६३ २०७०३ मंसल माल ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ मंसमुह माससुख ओ० ६३ मंसु श्मश्रु .० १६. जी० ३१४५५,५९६ मकरंडकमक गडक जी० ३।२७७ मगदंतियागुम्म २० जी० ३१५८० मगर मकर ओ० १३,४६. रा० १७,१८,२०, ३२,३३.१२६. ज.० १.६६.११८, ३१२८८, ३००,३११,७२,५६६,५६७ मगरंडा मकाण्डका रा० २४ मगरासण मकरासन रा० १८१,१८३. जी. ३।२६३ मगरिया मकरिका! रा०७५. जी० ३१५६३ मगुंद | मुकुन्द जी० ३१५८६ माग [ मार्ग आ०४६,६५,७२ मरगण मागं औ० ११७,११६,१५६ मगतो पृष्ठतस् | अं० ५५ मग्गदय मार्गदय आं० १६.२१,५४. २०८, २६२. जी० ३।४५७ मघमघेत [प्रसरत् ओ० २.५५. रा०६,१२,३२, १३२,२३६,२८१,२६२. जी० ३।३०२,३७२, ३९८,४४७ मघव | मघवन् ] जी० ३३१०६८ मघा [मधा जी० ३।४ मच्चु [मृत्यु] ओ० ४६ मच्छ [ मत्स्य ओ० १२,४६,६४. रा० २१,४६, १७४,२६१. जी० १११००, ३१८८,११८, ११६,२८६,२८६,५९७.६६५,६६६,६६८,९६६ भच्छंडक गत्स्याण्डक जी० ३:२७७ मच्छंडग [ मत्स्याण्डक रा० ८४ मच्छंडापविभत्ति मत्स्याण्डकप्रविभक्ति | रा०६४ भन्छंडामयरंडाजारामारापविभत्ति [मस्याण्डकमक राण्डकमारकमारकत्रावभक्ति रा०६४ मच्छडिया | मत्स्य गिट्टका जी० ३१६०१,८६६ मच्छंडी मत्स्यण्डी] जी० ३।५६२ मच्छग मत्स्य जी०१:१६ मच्छियपत्त ! मक्षिकापत्र] ओ० १६२ मच्छी [मत्स्थी जी० २।४ भज्ज मद्य | ओ० ६२,६३. जी० ३१५६६ मज्जा मस्ज्--मजावेज्जा. रा० ७७६ मज्जण | मज्जन ओ०६३ मज्जणघर मजनगृह | ओ० ६३ मज्जणघरग मज्जनगृहक रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४ मज्जणधाई मज्जनधात्री रा. ८०४ मज्जार [मार्जार] जी० ३१८४ मज्जिय [मज्जित ] ओ० ६३ मज्झ मध्य ] ओ० १५,१६,६३,६८. रा० १२५, १२७,२४०,२४५,२८२,६७२,७६६.. जी० ११४६, ३.५२,५७,८०,२६१,३५२, ५६६,६३२,६६१,६८६.७२३.७२६,७३६,८३६ ८८२ मज्झंभज्झ मध्यमध्य ] ओ० २०,५२,६७ से ७०. रा० १०,१२,५६,२७६.६८३,६८५,६८७, ६६२,७००,७०६,७०८,७१०,७१६,७२६. जी० ३,४४५,५५७ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ मझग [ मध्यगत ] रा० ७३२ माणिक | मध्य छिन्नक | ओ० १० मज्झिम | मध्यम ] ओ० १६५/६. २०४३,६६१. जी० ३१७७,२३६,६५८,६८१,१०५५ मज्झिमविज्ज [ मध्यम ग्रैवेय ] जी० २२६६ मज्झिमवेज्जा | मध्यम ग्रैवेयक ] जी० ३११०५६, ११११ मज्झमि [ मध्यमिक ] जी० ३३२३५ से २३६, २४१ से २४३,२४६, २४७, २४६, २५०, २५४ से २५६,२५८,३४२, ५६०, १०४० से १०४२, १०४४,१०४६, १०४७१०४९ से १०५३, १०५५ मयि | मध्यक] जी० ३५६७ मज्झिल्स | मध्यम ] जी० ३३३२५,७२८ या [ मृत्तिका ] ओ० ६८ ० ६, १२,२७६ से २८१ जी० ३०४४५, ४४६, ४४८ मट्टियापाय | मृत्तिकपात्र ओ० १०५,१२८ मट्ठ [सृष्ट ] ओ० १२,१६,४७,७२, १६४. रा० २१, २३,३२,३४,३६,५२,५६,१२४, १४५, १५७, २३१.२४७. जी० ३ / २६१, २६६, २६६,३६३, ४०१,५६६,५ε७. मड [ मृत ] जी० ३८४,६५ मर्डब [ मडन्द ] ओ० ६८,८६ से ९३,६५,६६,१५५, १५८ से १६१, १६३,१६८. रा० ६६७ मय [ दे० मडक | रा० ७७ मण [मनस् | ओ० २४,३७,४०,५७,६६,७० रा० ३०, ४०, १३२,१३५.१७३,२२८,२३६, ७६५,७७८,८१५. जी० ३।२६५,२८३, २८५, ३०२, ३०५,३८७,३६८, ६७२ मत्त [ मनोगुप्त ] ओ० २७,१५२, १६४. रा० ८१३ मणगुलिया [ मनोगुलिका ] जी० ३।४१२,४१६, ४४५ जोग | मनोयोग ] ओ० ३७, १७५, १७७,१७८, १८२ मणजोगि [ मनोयोगिन् । जी० १।३१,८७,१३३ ; ३११०५,१५३, ११०६ ६ ११३११४, ११७, १२० मज्झगय- मणिजाल मणपज्जवगाण | मनः पर्यवज्ञान ] ओ० ४०. २०७३६, ७४४,७४६ मणपज्जवणाणविणय [ मनः पर्यवज्ञान विनय ] ओ० ४० मणपज्जवणाणि [ मनःपर्यवज्ञानिन् | ओ० २४. जी० १११३३ ६ १५६, १६२, १६५, १६६, १६७,२०२, २०४,२०८ raft | मनोबलक] ओ० २४ मणविजय | मनोविनय । ओ० ४० मणसमय | मनःसमित | ओ० १६४ मणहर | मनोहर | ओ० ७, ८, १०. रा० १७, १८, २०,३०४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६. जी० ३।२७६.२८३, २८५,३०२, ३०५ मणाभिराम | मनोभिराम ] ओ० ६८ सणाम | दे० ] ओ० ६८, ११७. रा० ७५० से ७५३, ७७४, ७६६. जी० १/१३५, ३३१०६०, १०६६ मणामतराय | दे० ] रा० २५ से ३१, ४५. जी० ३।२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०, ८६६,८७२८७८, ६६० मणि | मणि | ओ० २३,४७,४६,५२,६३,६४. रा० १७,१८,२४ से ३३, ३७, ४०, ४५, ५१,६५, ६६,७०,१३०, १३२, १३७, १५४, १६०,१७१, १७३, १७४,२०३,२२८, २३७, २५६,२६२, ६८७ से ६८६, ६६५, ८०४. जी० ३।२६५, २७७ से २८६, ३००,३०२, ३०७,३०९ से ३११,३३३,३३६.३६०,३६४,३७२,३७६, ३८७,३६६, ४१२, ४१७,४२१,४५७, ५७८, ५८७,५८६,५६०,५६३, ६०८, ६४५, ६४८, ६५६,६७०, ६७२,६६०, ७५७ मणि (पाय ) मणिपात्र ] ओ० १०५,१२८ मणि ( बंधन ) [ मणिबन्धन ] ओ० १०६,१२६ मणिजाल | मणिजाल ] ० १६१. जी० ३३२६५, ५६३ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिपेढिया-मणोगय ७०७ मणिपेढिया [मणिपीठिका) रा० ३६,३७.६६,६७, २१८,२१६,२२१,२२२,२२४ से २२७,२३०, २३१,२३८,२३६,२४२ से २४७,२५२,२५३, २६१,२६५,२६७,२६६,३००,३०५ से ३११, ३१७ से ३२१, ३३८, ३४४ से ३४७,३५२ से ३५४,४१४,४७४.५३४,५६५. जी० ३१३१०,३११,३६५,३६६,३७७.३७८, ३८०,३८१,३८३ से ३८६,३६२,३६३,४००, ४०१,४०४ से ४०६,४१३,४१४,४२२,४२३, ४२७,४२८,४५७,४६५,४७० से ४७४,४८२ से ४८६,५०३,५०६ से ५१२, ५१६ से ५१६, ५२६,५३३,५४०,५४८,५५७,६३४,६४६, ६५०,६६३,६७१ से ६७५,७५८,७५६,७६५, ७६८,७७०,८६१ से १००,६०६,९०७ मणिमय मणिमय रा० १६,२०,३६,३७,१३०, १३५,१३८,१५५,१६०,२१८,२२१,२२४, २२६,२२८,२३०,२३८,२४२,२४४ से २४६, २६१,२७०,२७६,२८०. जी० ३।२६५,२८७, २८८,३००.३०५,३११,३१३,३२२,३५३, ३६५,३७७,३८०,३८३,३८५,३६२,४००, ४०४,४०६ से ४०८,४१३,४२२,४२७,४३५, ४४३,४४५,६४६,६४६.६५४,६७१,७५८, ८६१,८६३,८६५,८६७,८६६,९०६ मणियंग | मण्यङ्ग। जी० ३५६३ मणिलक्खण मणिलक्षण ओ० १४६. रा० ८०६ मणिवट्टक | मणिवृत्तक | जी० ३:५८७ मणिसिलागा मणिशलाका] जी० ३१५८६,८६० मणुई [मनुनी] जी० ३१५६७ मणुण्ण मनोज्ञ] ओ० ४३,६८,११७. रा० ३०, ४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६,७५० से ७५३, ७७४,७९६, जी० १११३५, ३१२६५, २८३,२८५,३०२,३०५,१०६०,१०६६,१११७ मगुण्णतराय [मनोज्ञतरक] रा० २५ से ३१,४५. जी० ३।२७८ ते २८४, ६०१ मणुय भनुज ओ० ४४,६८,६०,६१,६३,१६१, १६३,१६८. रा०२८२,८१५. जी०१८२ ३॥८८,१२६,४४८,५५६,५९६,५९८ से ६००, ६०३,६०५ से ६२१,६२५, ६२७ से ६३१, ७६५,८४१,११३७, ६।२५४ मणुयरायवसभ [मनुज राजवृषभ ] ओ० ६५ मणुयलोग (मनुजलोक ] जी० ३१८३८११,४ से ६ मणुयलोय मनुजलोक] जी० ३१८३८६३ मणम्स [ मनुष्य ] ओ०७३,१७०. रा० २७,७३२, ७३७,७७१. जी० ११५१,५४,५५,५६,६१,६५, ७६,८७,६१,६६,१०१,११६,१२३.१२६,१२६, १३४,१३६; २१२,११,१४,२६ से ३०, ३२ से ३४,५४, ५७ से ६१,६५,६६,६८,७०,७२,७५, ७७,८०,८४,८५,८८,६६,१०६,११४,११५, १२३,१२४,१३२ से १३४, १३७,१३८,१४३, १४५,१४७,१४६; ३३१,५४,११८,२१२ से २१५, २१७ से २२५,२२७ से २२६,२८०, ५७६,८३६,८३८.१३,८४०,११३२,११३५, ११३८,६१,४,६,१२,७५१,६,१२,१७,१८, २०,२३; १४१५६,१५८,२०६,२१८,२२०, २३१ मगुस्सखेत्त [मनुष्यक्षेत्र] जी० १६१२७,३१२१४, ८३५ से ८३७,८३८।२१ मणस्सजोणिय [मनुष्ययोनिक] जी० २६९ मणुस्सत्त [मनुष्यत्व ओ० ७३ मणुस्सिद [मनुष्येन्द्र ] ओ० १४. रा० ६७१ मणुस्सी [ मानुषी] जी० ३.५७६; ६।११४,६,१२; २०६,२१८,२२० मणूस [मनुष्य ] ओ० १. जी० ३.६६३,६६७; हा२१२,२२१,२२५,२२६,२३२,२३७,२३८, २४५,२४६,२५०,२५१,२५५,२६७,२७२, २७३,२८१,२८२,२८६,२८७,२६०,२६३ मणसपरिसा मनुष्यपरिषद् | ओ० ७८ मणुसी मानुषी | जी. ४२१२ मणोगम मनोगम] ओ० ५१ मणोगय [मनोगत ] रा० ६,२७५,२७६,६८८, Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणोगुलिया-मल ७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७,७६१, ७२३,३७४,७६६.जी०३१४४२,४४५,४४८, ७९३. जी० ३।४४१,४४२ ४५७,५५५ मणोगुलिया [मनोलिका ] रा० १५३,२३५, मद [मद] गी० ३१८६० २५८,२७६. जी० ३१३०६,३५५,३६,६०२ मद्दण मर्दन | ओ० १६१,१६३ मणोजगुम्म [मनोज गुल्म] जी० ३१५८० मद्दय मर्दक | जी० ३१५८६ मणोणुकूल [मनोनुकून जी० ३१५६४ मद्दल | मर्दल | रा० ७७ मणोमाणसिय [मनोमानसिक रा०८९५ मद्दव [ मार्दव ! ओ० २५,४३. ६० ६८६,८१४. मणोरम [ मनोरम | जी० ३.६३४ जी० ३१५६८,७६५.८४१ मणोरमा | मनोरमा जी० ३१६२० भधु [मधु जी० ३.८६० मणोरह | मनोरथ ] ओ० ६६ मधुर मधुर जी० ३१२८५ मणोसिलक | मनःशिलक! जी० ७४५ ममत्तभाव | ममत्वभाव जी० ३.६०८ मणोसिलग मनःशिलक| जी० ७४५ मम्भ मर्मन् ] रा० ७६३ मणोसिलय | मनःशिल की जी० ७३४,७४६ मय [मृत] रा० ७६२. जी०१४ मणोसिला मनःशिवारा० १६१,२५८,२७६. मयणसाला दे० ० ६. जी० ३३२७५ जी०३:३३४,४१६,७४७ मयणिज्जमदनीय औ० १३. श्री० ३.६०२, मणोसिलाइढवी मनःशिलापृथ्वी जी० ३.१८५. ६०,८६६,८७२,८७८ १८६ मयपइया मृतपत्रिका | ओ० ६२ मणोहर मनोहर रा० ७६,१७३. जी० ३।२६५, मयर [मकर] ओ० ४८ २८५ भयरंडापविभत्ति | मकाण्डक पविभक्ति रा०६४ मति | मति | जी० ३.११८,११६ मिर म---मरंलि. जी ०१:५३ मतिअण्णाणि मत्यज्ञानिन | जी० ३.१०४,११०७. भरगय मरकत अं० १३ ६।१६७,२०२ भरण | मरण | ओ० २५,४६,७४,१७२ १६१८, मत्त । अम जी० ३.११२८,१५३० १२ रा०६८६ मत्त गो० १,६,२६,५७,६८. १० १४८, ___ भरीइ मावि जी० ३:११२२ २८८. जी. ३।११८,११६,२७५,३२१,४५४ ।। मरोइया । मरीचिका] रा० २१,२३,२४,३२,६४, ३६,१२४.१४५ मत्तंगय | मत्ता क जी. ३.५८६ मरीचिया मरीचिका ओ० १६४ मत्तगयर्यावलंबियम जविलम्बित रा०६१ मरीतिकक्ष्य मीचिकवच १० ३२ मत्तगयविलसिय मिजावलसि०६१ भरुंडोम ० ७० मत्तहविलंदिय । मलहविलम्वित । रा०६१ मरुपक्खंदोलग [मरुपक्षान्दोलक | ओ०६० मत्तहयविलसित | मत यविलहित रा०६१ मरुपडियग [मरुपतितक | ओ०६० मत्थगसूल [मस्तकल जी० ३१६२८ मरुया | मख्यक,मरुत्तक | M०३०. जी० ३२८३ मत्थय । मस्तक | ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२, मल | मल| ओ० ८६,६२. जी० ३५६८ ११७. रा ८,१०,१२,१४,१८,४६,७२,७४, मिल मृद्-मलः ज्जइ. रा० ७८५ ११८,२७६,२७६२८२,२६२,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१०,७१३,७१४, १. मुरंडी (रा० ८०४) । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलय-महज्जुईय मलय मलय ] ओ० १४. रा० १५६, १७३, २७६, ३८५,६७१,६७६. जी० ३१२८५,३३२,४४५, ४५१ मलय [ मदत] ओ० १४. रा० ६७१ मल्ल [ माल्य ] ओ० ४७,५१,६७,७२,६२,१०६, १३२, १४७, १६१,१६३ २० १३,१३३,१५६, १५७, २५८, २७६ से २८१, २८५, २६६, २६१, ३५१,५६४,६५७,७००, ७१४, ७१६, ७६४. ८०२,८०८. जी० ३।३०३, ३२६, ४१६, ४४५, ४४६, ४५१, ४५७, ५१६,५४७, ५६१ मल्ल [ मल्ल | १,२ महल [ मल्लवि] ओ० ५२ रा० ६८७,६६८ मल्लहपुत्त [ मल्लविपुत्र ] रा० ६८७,६८८ मल्लग [ दे० मल्लक] जी० ३१५८७ मल्लजुद्ध [ मल्लद्ध ] ओ० ६३ मल्लदाम | माल्यदामन् । ओ० २,५५,६३ से ६५. रा० ३२,५१,१३२, २३५, २५५, २६४,२६६३००, ३०५,३१२,३५५,६८३,६६५. जी० ३१२८२, ३०२,३७२,३६७,४१६, ४४७, ४५२, ४५७, ४५६, ४६१, ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६,५२० मल्लपेच्छा [ मल्ल प्रेक्षा ] ओ० १०२,१२५. जी० ३३६१६ मल्लिया | मल्लिका] १० ३०. जी० ३३२८३ मल्लिया [ मल्लिकागुल्म ] जी० ३.५८० मल्लियामंडar [ मल्लिकामण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ मल्लिया मंडव | मल्लिका मण्डपक | रा० १८५ मग [ मत्र ] ओ० ८६,११७. रा० ७६६. जी० ३६२४ मसार | मसर | रा० १३ मसारगल्ल | मसारगल्ल | रा० १०,१२,१८,६५. २६५, २७६. जी० ३३७ सिंहार | महार] ओ० ६६ मसी [मसी, मपी ] रा० २५,२७० जी० ३।२७८, ४३५, ६०७ मसीगुलिया [मसीगुलिका ] रा० २५जी० ३१२०८ ७०६ मसूर [ ममूर ] जी० १।१८ मसूरम | मसूरक] ग० ३७. जी० ३१३११ मह [ मथ् ] --- महेश. रा० ७६५ मह [ मह] जी० ३।६३१ २ मह [ महत्] ओ० ३,७,८,१०,१४,४६,५२,६७ से ६६. रा० ३,४,१२,१३,१५,३२,३५ से ३६, ५३, १२३, १४८, १८८, २०४, २३५, २४२ से २४६,२५१ से२५३,२६० से २६२,२६५, २६७,२६६,२७०,२७२, २३३, २८८ ६८८, ७६०,७६१,७७४. जी० ३।११०, ११८, ११६, २७३,२७६,२१८,३३८, ३६१,३६४ से ३६६, ४००, ४०१, ४०४ से ४०८, ४१०,४१२ से ४१४, ४२१ से ४२३,४२५ से ४२८,४३१, ४३४, ४३५, ४३७,४३८, ४४६ से ४४६, ४५४, ६४२, ६४६,६५०,६७१ से ६७५, ६८२,६८३,६८५, ६८६,६९२ से ६६८, ७३७, ७५६,७५८ महइ | महती ] रा० ७३२. जी० ३।७७,२६२, ७२३ महंत [ महत्] ओ० १४,४६. रा० ६७१,६७६. जी० ३।१११,१२४, १२५ महंती [ महती ] रा० ७७ महगह [ महाग्रह | जी० ३।७०३, ७२२,८०६, ८२०,८३०,६३४,८३७,८३८१६,१३, १००० महग्घ [ महार्घ ] ओ० २०, ५३. रा० २७८,२७६, ६००,६८१,६८३ से ६८५,६६२, ६६६,७००, ७०२,७०८,७०६,७१६,७२६,८०२. जी० ३१४४४, ४४५ महच्च | महाचं, महाचर्च्य ] रा० ६६३,६६४,७१७, ७३२,७६६,७७६ महज्जइतराय [मलघुतितरक ] रा० ७७२ महज्जुइय [ महाद्युतिक ओ० ४७,७२,१७०. रा० १८६,७७२. जी० ३।११६ हज्जुई [ महाद्युतिक ] रा० ६६६ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० महज्जुतीय-महापउमरुवख महज्जुतीय [महायुतिक ] जी० ३।४६,३५०, महण [मथन] जी० ३३५६२ महता महत्] जी० ३१३०१,३०२,३२१ से ३२३ महति [महती| ओ०७१,७६. रा०५२,५६,६१, ६६३,६६४,७१७,७७६,७८७. जी. ३२१२, ११७,११३० महती महती। जी० ३१५८८ महत्तर महतर ओ० ७० महत्तरगत महत्तरकत्व ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३३३५०,५६३,६३७ महत्थ महार्थ] रा० २७८,२७६,६८०,६८१, ६८३,६८४,६९६,७००,७०२,७०८,७०६. जी०३१४४४,४४५ महद्धण [महाधन] ओ० १०५,१०६,१२८,१२६ महप्पभ [महाप्रभ] जी० ३।९८५ महम्फल [महाफल ओ० ५२. रा०६८७ महब्बल [महाबल] ओ० ४७,७१,७२,१७०. ०६१,६६६. जी० ३१५६५ महन्भूय [महाभूत] रा० ७५१ मयर [महत्तर रा० ८०४ महया मत् | रा०७,१३१,१३२,१४७ से १५१, १६७,२८० से २८३,६५७,६७१,६७६,६८३, ६८७ मे ६८६.६६२,७००,७१२,७१६,७३२, ७३७,७५५.८०३,८०५. जी. ३१३२४,३५०, ४४७,५६३,८४२,८४५,१०२५ महरिह [महाह] ओ० ६३. रा० ६६,७०,२७८, २७६,६८०,६८१,६८३,६८४,६६६,७००, ७०२,७०८,७०६. जी० ३१४०४४४५, ५८६ महल्ल मिहत्) औ० ४६ महल्लिया [ महती ] ओ० २४ महआसवतर महानवतर] जी० ३।१२६ महाउस्सासतराय [महोच्छ्वासतरक] रा०७७२ महाकदिय [महाऋन्दित ओ० ४६ महाकम्मतर [महाकर्मतर] जी० ३॥ १२६ महाकम्मतराय [महाकर्मतरक] रा० ७७२ महाकाय [महाकाय] ओ० ४६ महाकाल [महाकाल ] जी० ३११२,११७,२५२, ७२४ महाकिरियतर महाक्रियतर] जी० ३।१२६ महाकिरियतराय [महाक्रिपतरक] रा० ७७२ महागुम्मिय महागुल्मिक ] जी० ३११७१ महाघोस ] महाघोष ] जी० ३।२५० महाजस [महायश- ] ओ० १७० महाजाइगुम्म महाजातिगुल्म] जी० ३१५८० महाजुद्ध [महामु जी ० ३।६२७ महाणई महानदी ओ० ११७. रा० २७६. जी० ३।४४५,६३६, महाणगर महानगर] जी० २११४० महाणदी [महानदी रा० २७६. जी० ३।३००, ५६८,६३२,६६८,७४६,८००,८१४,६३७ महाणरग [महानरक] जी० ३११२,११७ महाणिरय [महानरक] जी० ३७७ महाणील [महानील ] ओ० ४७ महाणुभाग महानुभाग] आ० ४७,७२,१७०. रा० १८६,६६६. जी. ३३८६,९८८ से १६७, १११६ महाणुभाव [महानुभाब जी० ३.३५०,७२१ महातराय महत्तरक] रा० ७७२ महातव [महातपस् ] ओ० ८२ महापायइरुक्ख [महाजातकीरूक्ष जी० ३१८०८ महानई महानदी] ० ११५,११७. रा० २७६ महानीसासतराय [महानिःश्वासत रक] रा० ७७२ महानोहारतराय [ महानीहारत रक] रा० ७७२ महापउम महापम रा० २७६ महापउभद्दह महाप मद्रह] जी० ३१४४५ महापउमरुख ! महापद्मरूक्ष जी. ३१८२६ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापट्टण-महिंदकुम महापट्टण महापत्तन | ओ० ४६ ।। महालय महत् ] ओ० २४,७१,७८. रा० ५२, महापरिग्गहया [महापरिग्रहता ओ० ७३ ६१,६६३,६६४,७६६,७७२,७७६,७८७. महापह महापथ] ओ० ५२,५५. रा० ६५४, जी० ३११२,७७,११७,७२३,११३० ६५५,६८७,७१२. जी. ३१५५४ महालयत्त महत्त्व जी० ३.१२७ महापाताल [महायताल] जी० ३१७२३,७२६ महालिजर [महालिञ्जर जी० ३।७२३ महापायाल [महापाताल] जी० ३।०२३ से ७२५, महालिया [महती] २० ७६६,७७२ ७२६ महावत्त [महावत ] ओ० ४६ महापुंडरीय [महापुण्डरीक] ओ० १२. महावाय महावात रा० १२३ जी० ३.११८,११६ महाविजय [महाविजय] जी० ३६६०१ महापुंडरीयद्दह [महापुण्डरीकद्रह] जी० ३६४४५ महापुरिसनिपडण [महापुरुषतिपतन ] महावित्त [महावृत] रा० २६२. जी० ३।४५७ महाविदेह महाविदेह आं० १४६. रा० ७६६. जी० ३.११७,६२७ महापोंडरीय [महापौण्डरीक] ओ० १५०. जी० २११४; ३१२२६ महाविमाण (महाविमान ओ० १६७,१६२. रा० २३,१६७,२७६,२८८.८११. रा० १२६ जी० ३।२५६,२६१ महावीर [महावीर] ओ० १६ से २५,२७,४५,४७ महाबल [महाबल] रा० १८६. जी० ३१८६, से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३,११७. ३५०,७२१,१११६ रा०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,७३, महाभद्दपडिमा [महाभद्रपतिमा | ओ० २४ ७४,७६,८१,२३,११३,११८,१२०,१२१, महाभरण [महाभरण] रा० ६६,७० ६६८,८१७ महमद महामति रा०७६५,७३६,७७० महावेयणतर [महावेदनतर] जी० ३।१२६ महभंति महामन्त्रिन् । ओ०१८. रा० ७५४, महासंगाम [महासंग्राम [ जी० ३.६२७ ७५६,७६२,७६४ महासत्यनिपडण । महाशस्त्रनिपतन] जी० ३१६२७ महामहतराय (महामहत्तरक] रा० ७७२ महासन्नाह [ महासन्नाह ] जी० ३१६२७ महामहिम [महाममिन् । जी० ३१६१५,९१७ महासमुद्द [महामुद्र ओ०५२. रा०६८७. महामुह महामुख रा० १४८,२८८. जी० ३१८४२,८४५ जी. ३३३२१,४५४ महासवतराय [महास्रवतरक स० ७७२ महामेह [महामेध ओ० ४,६३. रा० १७०,७०३. महासुक्क महाशुक्र] ओ० ५१,१९२. जी० २।६६, जी० ३२७३ १४८,१४६ ; ३११०३८,१०५१,१०६१,१०६६, महायस महायशस् ] ओ० ४७.७२. रा० १८६, १६८,१०८६,१००८ ६६६. जी० ३८६,३५०,७२१,१११६ महासोक्स [महासौख्य ] ओ० ४७,७२,१७०. महारंभ [महा:म्भ] जी० ३।१२६ रा० १८६,६६६ महारंभया [महारम्भता] ओ०७३ महाहारतराय | महाहारतरक] रा० ७७२ महारव [महारव ओ०४६ | महाहिमवंत महाशिमवत् ] रा० २७६. महारुक्ख [महारूक्ष डी० ३.१७१ जी० ३।२८५,४४५,७६५ महारोरुय [महारोरुक जी० ३।१२,११७ महिंद महेन्द्र ] ओ०१४, रा०६७१,६७६ महासत महत] रा० ५६० महिंदकुंभ [महेन्द्रकुम्भ] रा० १३१, १४७. Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ महिंदज्झय-माणणिज्ज जी० ३।३०१ महेसक्ख महेशाख्य | जी० ३।६६,३५०,७२१, महिंदज्झय महेन्द्रध्वज] र: ० ५२,५६,२३१ से २३३,२३६,२४७ से २४६,३११,३१४,३४६, महोरग [मोरग ओ० १२०,१६२. २०१४१, ३५४. जी. ३।३९३ ले ३६५,४०१,४०६. १७३,१६२,६९८,७५२,७७१,७८६. ४१०,४१२.४७६,४७६,५१४,५१६,६००,९०१ जी०१:१०५,१२१, ३१२६६,२८५,३१८,६२५ महिच्छ नहेच्छ] ओ०४: महोरगकंठ महोर गकण्ठ ] रा० १५.५,२५८. महिडियम.द्धिक] ओ० ४ से २.१,७२,१७०. १० १८६ जी० ३२५३,२५७,६५,७९५ महोरगकंठगम गकाण्डक। जी० ३.४१६ ८०८,८२६,८५.७,८६०,८६३,८६६,६६६.८७३, महोरगी महोगी जी० २१८ ८७५,५७,६२१,१०२६ मा [मा ओ० ११७. रा ६६५ माहिडियतरायमालिकारक। रा०७२ माइय दे! ओ० ५.८,१०. रा० १४५. जी. महिडीयम"! रा०६६६. जी० ३८६, ३.२६८२७४ ३५.६,६३७,६६४,७००,७२१,७२४,७३८, माइय मात्रिक ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ ७४१,७४३,७४६,७६०,३६३,७६५,८१६, माइरक्खिया मातृरक्षिता ओ० ६२ ८५४,८५५,६२३,६८८ से ६६७,१०२१, माइल्लयामायिता । ओ०७३ १११६ माउ [मातृ] ओ० १४. रा ० ६७१ महिम [ महिमन् । जी० ३।६१६ मागथ मागध] जी० ३:४४५ महिय | मथितारा० ३८,१६०,२२२,२५६. मागह [मागध] आ० २,१११ से ११३. रा० २७६ ० ३१२१२,३३३,३-१,८६४ मागहमेच्छा [मागधप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० महिय माहित आ० २,५५. रा०:२.२८१. जी० ३१३७२,४४७ मागहय |मागका ० १३७.१३८ महिया मका, जी० ११६५, ३॥६२६ मागहिया [मागधिका | ओ० १४६. रा० ८०६ महिवइवह । महीपतिपथ | t० १ माघवती मायवती जी० २६४ महिस महिप० १,१४,१६,५१.१०१,१२४, माइंबिय मामित्रक) ओ०१८,५२,६३. रा० १४१. रः० २७,६७१,७७४,८६६. मी० ३१८४, ६८७,६८८,७०४,७५४.७५६,७६२,७६४. २८०,५६६,६१८,१०३८ जी० ३.६०६ महिसी महिपी जी० ३३६१६ माण मान | ओ०१५,२८,३७,४४,७१,६१,११७, मह मदु ओ० ६२,६३. जी. ३५८६,५६२ ११६,१४३,१६१,१६३,१६८. रा०६७१ से महुयर [मधुकर) ओ० ५७ ६७३,७४८ से ७५०,७७३,७६६,८०१,८१६. महुयरी मधुकरी । ओ० ६. जी० ३१२७५ जी० ३१२८,४३८,५६८,७६५,८४१ महुयासव मध्वाश्रक ओ० २४ माणकसाइ [मानरूपायिन् | जी० ६१४८,१४६, महरमपुर अ.०६,७१. ० १३,१४,१७,१८, १५२,१५५ २०,६१,७६,१७३. जी० २५,५०, ३१२२, माणकसाय मानकषाय ! जी०१।१६ ११८,११६,२७५,२८६,५६७,६३६,८५७,८६३ माणणिज्ज [ माननीय ] रा० २४०,२७६. जी० महेला [महेला जी० ३३५६७ ३१४०२,४४२ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणवक-माहण माणवक [मानवक] जी० ३३४०२,४०४,५१६ मारणंतिय मारणान्तिक ओ० ७७. श्री १०८६ मानवग | मानवक रा० २४४,३५१. जी० मारणं तियसमुग्घात मारणान्तिक.समुद्घात | जी० ३१४०३,४०६,१०२५ मानवय मानव स० २३६,२७६.३५१. जी० मारणतियसमुग्धाय मारणान्तिार.मुद्धात जी० ३१४०१,४४२,५१६ ११२३,५३,६०,८२,१०१, ३।१०८,१५८ माणविवेग [मानविने] ओ० ७१ मारापविभत्ति नाक वि..क्ति रा. १४ माणस मानस ओ०७४. रा० १५ मारि मारि] ओ० १४. ० ६४१ माणसिय [ मानसिक ] ० ६६ मालणीय मालनीय 02:१८,२१,३२५२६. माणुस मानुष] ओ० १६५.१३. रा० ७५१, ज० ३।२८८,३७२ ७५३. जी० ३।८३८।२ मालय (दे० माना जी० ३।५६४ माणुसनग मानु नग१० ३ ८३८ २,३२ मालवंत मारूपयत् जी० ३१५७७६६,६: माणुसभाव [मानुभाव ओ० ७४।३ मालवंतद्दहालयवद्रः । ३।६६७ माणसुत्तर मानुत्तर जी०६१३१,८३३. मालवंतपरियाग माल्यय पर्याय २७६ ८३६ ने ८४२८४५. जी० ३.४४: माणुस्स [मानुष्य ] ०७४।२. रा०७५१,७५३. मालवंतपरियाय | मान्यवरपर्याय जी. ३१७६५ _जी० ३:११६ मालामाला] अं० ४७,५,६३,६६,७२. जी. माणुस्सत [मानुप्यक १० ७५१ ३३५६१ माणुस्सय [मानुष्यक ] ओ० १५. रा०६८५,७१०, मालागार [मालाकार] रा० १२ ७५३,७७४,७६१ मालिघरग [मालिगृहक | T० १८२१८३. जी० मातंग मातङ्ग ओ०२६. जी० ३१११८ ३१२६४ माता मातृ । जी० ३१६११ मालिनीय/मालिनीय ] जी० ३३०० माता मात्रा | जी० ३१६६८,८८२ मालुयामंडवग | मालुकामण्डपक रा० १८४. जी. माय मा]--माएज्जा ओ०१६५११५ ३२२६६ मायंग मातङ्ग | जी० ३६११६ मालुयामंडवथ मालुकामण्डपक] रा० १८५ माया मातृ] ओ०७१,१९२. जी० ३१६३ ११२ मास माग ओ० २८,२६.११५,१४३. ग. माया माया] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११५, ०१. जी० ११८६, ३१११६,१७६,१७८, ११६,१६१,१६३,१६८. रा०६७१,७६६. १८०,१८२,६३०,८४१,८४४,८४७,१०८०; जी० ३६१२८,५६८,७६५,८४१ ४.४,१४ मायाकसाइ मायाकपायिन् ] जी० ६.१४८,१४६, मास माप) जी० ३१८१६ १५२,१५५ मासपरियाय मालपर्याय | ओ० २३ मायाकसाय | मायाकाय जी० १११६ मासल | माल जी० ३१८१६,८६०,६५६ मायामोस [मायामृणा] ओ०७१,११७.१६१,१६३ ।। मासिय [ मालिक ओ. ३२ मायामोसविवेग [ मायापाविवेक | ओ०७१ मासिया माति की ] ओ० २४,१४०,१५४ मायाविवेग | मायाविवेग | ओ०७१ माहण माहन ] ओ० ५२,७६ से ८१. स० ६६७, मार [मार] ग० २४. जी० ३।२७७ ६७१,६८७,६८८,७१८,७१९,७८७,७८६ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ माणपरिष्वाय [मानपरिव्राजक ] ओ० १६ माणपरिसा [मान परिषद् ] रा० ७६७ माप [ माहात्म्य ] ओ० ७१. रा० ६१ माहिर [माहेन्द्र ] ओ० ५१,१६२. जी० २१६६, १४८, १४९, ३१०३८, १०४७, १०५८, १०६६, १०६८, १०७६, १०८८, १०६४, ११०२,११११ मिउ [ मृदु ] रा० ३७, १३३. जी० ३१३०३,३११, ५६२, ५६६, ५६८, ७६५, ८४१ मिउमद्दव संपण्ण [ मृदुमाव सम्पन्न ] ओ० ६१ मिउमद्दवसंपण्णया [ मृदुमादेवसम्पन्नता ] ओ० ११६ मिजा [ मज्जा ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२, ७८६ मिग [ मृग ] ओ० ५१. रा० २४. जी० ३१०३८ मिराज्य [ मृगध्वज ] रा० १६२. जी० ३।३३५ figar [ मृगलुब्धक ] ओ०६४ मिगलोम [ मृगलोम ] जी० ३२५१५ भिगवण [ मृगवन ] रा० ६७० मिच्छ [ म्लेच्छ ] ओ० १९५ १६ मिच्छत्त [ मिथ्याea ] ओ० ४६ मिच्छत्त किरिया [ मिथ्यात्वक्रिया] जी० ३१२१०, २११ मिच्छत्ताभिणिवेस [ मिध्यात्वाभिनिवेश] ओ० १५५,१६० मिच्छदिट्टि [ मिथ्यादृष्टि ] ओ० १६० रा० ६२. जी० ३।१०३,१५१ मिच्छा [ मिथ्या ] जी० ३।२११ मिच्छावंसणसल्ल [ मिथ्यादर्शनशल्य ओ० ७१, ११७,१६१, १६३. रा० ७६६ मिच्छादंसणसल्लविवेग [ मिथ्यादर्शनशल्यविवेग ] ओ० ७१ fearfief ( मिथ्यादृष्टि ] जी० ११२८,८६ ३।११०५, ११०६; ६।६७,६९ मिणालिया [ मृणालिका ] जी० ३१२८२ मित [मित ] जी० ३।५१६,५६७ मित्त [ मित्र ] ओ० १५० २१० ७५१,७७४, माहणपरिव्वाय मुत्ता ८०२,८११. जी० ३१६१३,६३१ मित्त [ मात्र ] रा० २५४,८०६,८१० freera [ मित्रपक्ष ] जी० ३१४४८ मिथुन [ मिथुन ] जी० ३१६३६ मिघुण ( मिथुन ] जी० ३।३५५ मिय [ मृग ] रा० ६७१,७०३,७१८ मिय [मित ] औ०१६ मियगंध [ मृगगन्ध ] जी० ३१६३१ मिरावण [ मृगवन ] २० ७०६,७११,७१३,७१६, ७२६ मिरिय [ मरीचि ] रा० १३३. जी० ३१२६१,३०३ मिरीहकवच [ मरीचिकवच ] जी० ३।३७२ मिरीय [ मरीचि ] जी० ३१२६६, २६६, २७७ √ मिल ! मिल्] - मिलति जी० ३१४४५ / मिलाय [ मिल् ] - मिलायंति. रा० २७६ मिलाइत्ता [ मिलित्वा ] १० २७६ मिलायमाण [ म्लायत् ] रा० ७८२ मिलित्ता [ मिलित्वा ] जी० ३१४४५ मिलेच्छ [ म्लेच्छ ] जी० ३।२२६ मिसिमित [ दे० ] ओ० ६३ मिसिमित [ दे० ] रा० १७,१८, ६६,७० मिस्स [ मिश्र ] जी० ११७११२ मिहूण [ मिथुन ] ओ० ६. जी० ३१२७५, २८६ मिger [ मिथुनक] रा० १७४. जी० ३२३१८ fagणय [मिथुनक] जी० ३।११८,११६ मोरिय [ मरीचि ] ओ० १२ मीसजाय [मिश्रजात] ओ० १३४ मोस [ मिश्रक] ओ० ४६ मोसिय [ मिश्रित ] ओ० २८ मुइंग [ मृदङ्ग ] ओ० ६७,६८. १०७, १३,२४,७७, ६५७,७१०,७७४. जी० ३३२७७,३५०, ४४६, ५६३,५८८,८४२.८४५, १०२५ मुइत्ता [ मुक्त्वा ] रा० २८८ मुइय [ मुदित ] ओ० १४. रा० ६७१ मुत्ता [ मुक्त्वा ] जी० ३।४५४ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स०५७ मुंच-मुय मुंच मुच्] -मुच्चर. ओ१७७. मुच्चंति. ओ० मुणिपरिसा मुनिपरिषद् ] ओ० ७१. रा० ६१ ७२. जी० १११३३. -- मुच्चंती. ओ०७४।४. मुणिय [ज्ञात्वा] ओ० २३ मुच्चिहिति, ओ० १६६. ---मुच्चिहिति. ओ० मुणतथ्व [ज्ञातव्य ] जी० ३३६३४ १५४. रा० ६१६. मुणेयव्व ज्ञातव्य ] जी० ३८३८१११,२२ मुंड [मुण्ड] ओ० २३,५२,७६,७८,१२०. रा० मुत्त । मुक्त] ओ० १६,२१.४६,५४. रा० ८,२६२. ६८७,६८६,६६५,७३२,७३७,८१२ जी० ३।४५७ मुंडभाव [ मुण्डभाव ओ० १५४,१६५,१६६. रा० मुत्ता | मुक्ता] रा० २०. जी० ३।२८८ मुत्ताजाल [मुक्त, जाल] 10१३२,१५६,१६१. मुंडमाल [ मुण्डमाल ] जी० ३१५६४ जी० ३।२६५,३०२,३३२ मुंडि [मुण्डिन् ! ओ० ६४ मुत्तादाम [मुक्तादामन् ] रा० ४०. जी. ३.३१३, मुक्क [मुक्त] ओ० २,२७,५५. रा० १२.३२, २८१. जी० ३।१२६६,३७२,४४७,५८०, मुत्तालय [ मुक्तालय] ओ० १६३ ५६१,५६७ मुत्तालि मुक्तावलि ] ओ० १०८,१३१. र० २८५. जी० ३४५१,६३६ मुक्कतोय [ मुक्ततोय] रा० ८१३ मुत्तावलिपविभत्ति [ मुक्तावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ मुखछिण्णग [मुग्वछिन्नक] ओ० ६० मुत्ति [ मुक्ति] ओ० २५,४३,१६३. रा० ६८६, मुगुंद [ मुकुन्द] रा० ७७ ८१४ मुगुंदमह [मुकुन्दमह] जी० ३।६१५ मुत्तिमग [ मुक्तिमार्ग ओ०७२ मुगुंसिया [दे० ] जी० २६ मुत्तिसुह { मुक्तिसुख ] ओ० १६५।१४ मुच्छिज्जेत [मूच्छ्यमान] रा०७७ मुद्दा [ मुद्रा] ओ० ४७. रा० २८५ मुच्छिता [मूच्छिता जी० ३।२८५ मुद्दिया [ मुद्रिका ] ओ० ६३,१०८,१३१. जी० मुच्छिय मूच्छित] रा० १५,७५३ ३१४५१ मुच्छिया [ मूच्छिता] रा० १७३ मुद्दियामंडवग [मृद्वीकामण्डपक ] रा० १८४. जी. मुज्झ मुह.]मुज्झिहिति. ओ० १५०. रा० ३१२६६ ८११ मुद्दियामंडवय [मृद्वीकामण्डपक] रा० १८५ मुट्टि [ मुष्टि] रा० १३३. जी० ३१३०३ मुद्दियासार [मृद्वी कासार] जी० ३६५८६,८६० मुट्ठिजुद्ध [मुष्टियुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ मुद्ध { मूर्धन् } ओ० १६,२१,५४. जी० ३१५६६ मुट्ठिय [मौष्टिक, मुष्टिया] ओ० १,२. रा० १२, मुद्धज [ मूर्धज] जी० ३१४१५ ७५८,७५६. जी० ३३११८ मुद्धय [मूर्धज] रा० २५४ मुट्ठियपेच्छा मौष्टिक प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. मुद्धाण [मूर्धन् ] रा०८,२६२ जी० ३१६१६ मुद्धाहिसित्त [ मूर्धाभिषिक्त ] ओ० १४. रा०६७१ मुणाल मृणाल ओ० १६४. रा० १७४. जी. मुम्मुर [ मुर्मुर) जी० ११७८; ३८५ ३१११०,११६,२८६ मुय { मृत] रा० ७६२,७६३ मुणालिया मृणालिका] ओ० १६,४७. रा० २६. मुय {मुच्]-मुयइ. रा० २८८. मुयति. जी० जी० ३१५९६ ३।४५४ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंग-मोयम मुयंग [ मृदङ्ग] जी. ३७८ मुयंत । मुञ्चत् ] ओ० ७,८,१०. भी० ३:२७६ मुरंडी' [मुरण्डी] रा० ८०४ मुरय मुरज ओ० ६७. ० १३.७७,६५७ मुरव [मुरजजी० ३७८,४४६ मुरवि | दे०] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ मुसंढी | दे० जी० ११७३ मुसल [ मुसल] ओ० १६. जी० ३३११०,५६६ मुसाबाय [ मृषावाद] ओ० ७१,७६ ७७,११७, १२१,१६१,१६३. रा० ६६३,७१७,७६६ मुसावायवेरमण [मृपावादविरमण] ओ०७१ मुसुंढि [दे० ओ० १. जी० ३६११० मुहमंगलिय [मुखमाङ्गलिक] ओ० ६८ मुहमंडव | मुखमण्डप ] रा० २११ से २१५,२६५ से २६६३२६ से ३३०,३३३ से ३३७. जी० ३।३७४ से ३७६,४१२,४२१,४६० से ४६४, ४६१ से ४६५,४६६ से ५०२,८८७ से ८८६ मुहमूल [मुखमूल ] जी० ३।७२३,७२६ मुहत्त | मुहन] अ० २८,१४५. रा०७५३,८०५ मुहुत्तंतर [मुहून्तिर रा० ७६५ मुहुत्ताग [ मुहूर्त ] रा० ७५१,७५३ मूढ | मूढ | रा० ७३२,७३७,७६५ मूढतराय [ मूटतरक रा० ७६५ मूल मूल] ओ० ६४,१३५. रा० १२७,२०४, २०५,२०६,२२८. जी० १७१,७२, ३१२६१, ३५२,३६४,७२,३८७,६३२,६४३,६५४, ६६१,६७२,६७८,६७६,६८६,७२३,७२६, ७३६,७६२,८३६,८७८,८८२.१००७ मूलमंत | मूलयत् ] ओ० ५,८,१०. जी. ३१२७४, ३८६,५८१ मूलय | मूलक ] जी० ११७३ मूलारिह ! मुलाह | ओ० ३६ मूलाहार | मूलाहार ] ओ० ६४ मूसग [मूषक | जी० ३१८४ १. मरुण्डी ओ० ७०] मूसिया ! मूषिका] जी० २। मेइणी [ मेदिनी] जी० ३१५६७ मेंढमुह | मेषमुख | जी० ३१२१६ मेघ | मेष रा० १३,१४ मेदि | मेढी', रा० ६७५ मेढिभूय : मेडीभूत | रा० ६७५ मेत्त मात्र ओ० ३३,१२२. रा० ६,१२,४०, २०५ से २०८,२२५,२७६ मेत्तय मात्रक] जी० ३.४४० मेधावि [ मेधाविन् | रा० १२,७५८,७५६ मेरग | मेरक जी० ३।५८६ मेरय [मेरक जी० ३।६६० मेरु | मेरु | जी० ३।८३८।१०,११ मेरुयालवण | मस्तालयन जी० ३.५८१ मेलिय [ मेलित जी० ३:५६२ मेहमुह | मेवमुख) जी० ३१२१६ मेहला [ मेखला] जी० ३,५६३ मेहस्सर [मेघस्वर ] रा० १३५. जी० ३।३०५ मेहावि | मेधाविन् | ओ० ६३. श्री० ३।११८ मेहुण | मैथुन] ओ०७१,७६,७७,११७,१२१, १६१,१६३ मेहुणवत्तिय [मैथुनप्रत्यय] जी० ३.१०२५ मेहुणवेरमण [मैथुनविरमण] ओ०७१ मेहुणसण्णा [मथुनसंज्ञा] जी० १२०; मोक्ख [ मोक्ष] ओ० ७१,१२०,१६२ मोग्गर [ मुद्गर] जी० ३३११० मोग्गरगुम्म [ मुद्गरगुल्म] जी० ३।५८० मोणचरय मौनचरक] ओ० ३४ मोत्तिय [मौक्तिक) ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३१६०८ मोय (मुच्]..मोएति. रा० ७३१ मोयग [मोचक | ओ० २१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५६ १. आप्टे, पृष्ठ १२८६-- मेठिः, मेढी, मेथिः । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोयपडिमा-रत्तबंधुजीव मोयपडिमा ['मोय' प्रतिमा ओ० २४ रखाव [ रक्षापय]- रक्खावे मि. रा० ७५४ मोयय [मोचक ओ०१६ रक्खोवग [ रक्षोपग] रा० ६६४ मोर [मयूर] रा ० २६. जी० ३।२७६ रगसिगा [ रगसिका] जी ० ३१५८८ मोल्ल [मूल्य ] ओ० १०५,१०६ रचिय [रचित] जी० ३१३०३ मोसमणजोग ! मृपामनोयोग] ओ० १७८ रज्ज { राज्य ] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६७४, मोसवइजोग [मृपावायोग] ओ० १७६ ६७६.७६०,७६१ मोसाणुबंधि [मृषानुवन्धिन् ! ओ० ४३ रज्ज [र]----रजिहिति. ओ० १५० मोह [मोह ] ओ० ४६. १० ७७१ रज्जधुराचितय [राज्यधूश्चिन्तक] रा० ६७५ मोह (मोहय् ] ... मोहंति. जो० ३।२१७ रज्जसिरी [राज्यश्री] रा० ७६१ ___-मोहे ति. रा० १८५ रज्जु ! रज्जु रा० १३५. जी० ३.३०५ मोहणधर [मोहनगृह] जी० ३१५६४ रटु राष्ट्र ओ० २३. रा०६७४,७९०,७६१ मोहणघरग [मोहनगृहक] रा० १८२,१८३. रण [अरण्य] ओ० २८ __जी० ३।२६४ रतण रत्न जी० ३१३४६ मोहणिज्ज मोहनीय] 3० ८५.८६ रतणसंचया रत्नसञ्चया] जी० ३९२२ मोहणीय (मोहनीय] ओ० ४४ रतणुच्चया (रलोच्चया] भी० ३१६२२ मोहरिय [मौखरिक] ओ० ६५ रति [रति ] जी० ३।११८,११६,५६७ रतिकर [रतिकर] रा० ५६. जी० ३१६१८ से य [च] ओ० ३२. रा० ७. जी० ११२ ६२२ यज्जुब्वेद [यजुर्वेद ] ओ०६७ रतिय [रतिद] जी० ३१५६६,५६७ या [च] रा० ७०५ रतिय [रसिक ] जी० ३८४२,८४५ रत्त ( रक्त] ओ० ४७,५१,६६,७१,१०७,१२०, रह [रति] ओ० ४६. रा० १५,८०६,८१० १३०,१६२. रा० २७,७६,१३३,१७३,२२८, ६६४,६६८,७५२,७७७,७७८,७८८,७८६. रहय [रचित ] ओ० १,२१,४६,५४.६४,१३४, जी० ३१२८०,२८५,३०३,३८७,५६२,५६५ से १५२. रा०८,३२,६९,७६,१३३.७१४. ५६७,६७२ जी० ३१३७२,५६१,५६६,५६७ रइय [रतिद] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ रत्तंसुय [रक्तांशुक] रा० ३७,२४५. जी० रइय [रतिक ] ओ० ६३,६५ ३।३११,४०७ रइल [रजस्वत् ] जी० ३१७२१ रत्तकणवीर [ रक्तकणवीर] रा० २७. रउग्घात [रजउद्घात] जी० ३१६२६ जी० ३१२८० रंगत [ रङ्गत् ] ओ०४६ रत्तचंदण [ रक्तचन्दन] ओ० २,५५. रा० ३२, रक्खंत [रक्षत् ] ओ० ६४ २८१. जी० ३।३७२,४४७ रक्खस [राक्षस ] ओ० ४६,१२०,१६२. रततल रक्ततल] ओ० १६,४७. जी० ३१५९६ रा०६९८,७५२.७८६ रत्तपाणि [क्तपाणि] रा० ६६४, जी० ३।५६२ रक्खसमहोरगगंधश्वमंडलपविभत्ति [राक्षसमहोग- रत्तबंधजीव रक्तबन्धजीव रा० २७ गन्धर्वमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० जी० ३१२८० Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ रत्तरयण [ रक्तरत्न ] ओ० २३ रतबई [ रक्तवती ] रा० २७६ रसवती [ रतवती ] जी० २२४४५ रता [ रक्ता] २२०२७१. जी० ३।४४५ रक्तासोग [ रक्ताशोक ] ओ० २२. रा० २७,७७७, ७७८७८८ जी० ३।२५० रति [ रात्रि ] रा० ४५ रसुप्पल [ रक्तोत्पल] ओ० १६. रा० २७. जी० ३०२८०, ५१६,५१७ रत्या [ रथ्या ] ओ० ५५. श० २८१. जी० २३२४४७ [ रथ] जी० ३।०६ रह [राढ] जी० २३१५९२ रम [रम् ] - रमंति. रा० १६४. जी० ३१२१७. रमिज्जड रा० ७८३ रमणिज्ज [ रमणीय] ओ० १६,४७, ६३, १६२. रा० २४,३३,३५,६५,६६,१२४, १७२१,१०६ से १८५, २०३, २०४, २१७, २३७, २३८,२६१. ७८१ से ७८७. जी० ३ २१८,२५७,२७७, ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४, ३६५, ३६८, ३६६, ३६६, ४००, ४२२,४२७,५८०, ५६,५७,६२३, ६२३,६३४,६४५,६४६, ६४८, ६४९, ६५६,६६२,६६३,६७०,६७१, ६७३,६१०,६६१,७३७,७५५ से ७५८, ७६८, ३,८८४,८६०, ६०५, ६०६, ६१२,६१३, १००३,१०३८ रम् [ रम्य ] ओ० ४,६. १० १७०, १७३,६७०, २०३,००४.०३।२७३, २७५,२०५,५९१ रम्मगवास [व] रा० २७९. जी० २१३, ३२,५६,७०,७२, १६, १४७, १४९३२२८. ૪ रम्मयवास [ रम्यकवर्ष ] जी० २०६५ र रजस्] ओ० २३.२० १,१२,२०१. जी० ३४४७,५१८ [य] ०४६ रत्तरयण रयणामय रयण [ रत्न | ओ० २३,४७,४६,६३,६४. रा० १०,१२,१७,१८,३२,३७,४०, ४१.६५. ६६.७०, १३०,१३२. १३७,१६०, १६५,२२०, २५६,२७१, २०१,२०५, २६२,६१५,७७०४. जी० ३००,२४६० से ६२,२६५,३००,३०२. ३०७, ३११.३३३, ३४६,३५७,३७२,३०७, ४१७,४४५, ४४७, ४५७, ४८७,५८६,५९०, ५१३,६७२,७७५, ९३६,६३७ रयणकंड [ रत्नकाण्ड ] जी० ३१८,१५, २० रयणकरंग [रनकरण्डक] ओ० २६. २० १५४, २५८,२७१, ७५० से ७५३. जी० ३३२७, ४१६,४४५ रयणकरंडय | रत्नकरण्डक ] रा० १५४. जी० ३३२७ रणकरंडा [[नकरण्डक] जी० ३।२५५ रणजाल [ रत्नजाल] रा० १११. जी० ३।२६५ रयणप्पा [ रनप्रभा ] रा० १२४. जी० १६६२: २११००, १२७, १३५, १३८, १४८, १४९, ३1३, ५ से ६, १२ से १६,२२ से २६,२६,३०,३३, ३७ से ३६,४२,४४,४५, ४७ से ५७,५२ से ६५,७३,७६ से ७८,८०,८१,८३ से ६८,१०३ से ११०,११२,११६,१२० से १२४,१२६ से १२८,२३२,२५७,१००३, १०३८, १०३१, ११११ पहा [ रत्नप्रभा ओ० १८६,१६२. जी ० १ १०१, २ १३५ रयणभार [रभार ] रा० ७७४ रयणभारत | रत्नभारक] ० ७७४ रयणमय [ रत्नमय ] जी० ३।७४७ रयणा [रला ] जी० ३१६७ से ७२,६२२ रयणागर [ रत्नाकर] ० ७७४ रयणामय [ रत्नमय ] ओ० १२. रा० २१,२३,३८, १२४, १२५, १२७, १२, १३१,१३४,१४१, १४५, १४८, १५१,१५२,१५५ से १५७,१६०, १६१,१०० से १०५, ११२,१७,२२२.२५३, २५६,२५७,२७२. जी० ३।२६२२६३,२६६ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलि-राइंदिय २६८,२६६, २६६, २६१ से २६६,३०१,३०४, ३१०, ३१२,३१८, ३१६,३२४, ३२५, ३२८ से ३३०, ३३३,३३४, ३४७, ३४८, ३८१, ४१४, ४१८,४३७,६७५,७५०, ७५३,८६३,८६६, ६०७,६१८, १०३८, १०३६, १०८१ रयणावलि [ रत्नावलि ] ओ० १०५,१३१. रा० २८५. जी० ३,४५.१ रणावलिपविभत्ति [ रत्नावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ रयण | रत्ति ] ओ० १६५/६ रणिकर [ रजनिकर ] जी० ३।५६७ रणियर | रजनिकर | ओ० १५. रा० ६७२. जो० ३१८३८।१२,१३ रयणी [ रजनी ] ओ० २२. १० ७२३,७७७,७७८ ७८८ रयणी | रत्नी | ओ० १८७, १६५३७. जी ० १ १३५; ३ ६ १,७८८,१०५७ से १०८६ रयत [ रजत ] जी० ३१७,३००,३३३,४१७ रयताण [ रजस्त्राण] १० ३७,२४५. जी० ३।३११,४०७ रयय [ रजत ] ओ० १४, १४१. रा० १०, १२, १८, ६५,१३०, १६०,१६५, १७४,२२८,२५५, २५६,२७६,६७१,७६९. जी० ३।२८६,३००, ३८७,४१६, ६७२,६७६,७४७ श्यय [पाय ] [ रजतपात्र ] ओ० १०५,१२८ [वंधण ] [ रजतबन्धन ] ओ० १०६,१२६ श्यामय [ रजतमय ] रा० ३७,१३०,१३२,१३५, १५३,१७४,१६०, २३६,२४०,२४५,२८८, २६१. जी० ३।२६४, २८६, ३००, ३०२, ३०५, ३११,३२४, ३२६,३६८, ४०२, ४०७, ४५४, ४५७,६३९ रत्लग [ रल्लक | जी० ३।५६५ रव [ख] ओ० ४६,५२,६७,६८. रा० ७,१३, १५, ५५,५६,५८,२८०, २६१,६५७,६८७, ६८० जी० ३३३५०, ४४६, ४५७, ५५७, ५६३, ८४२,८४५, १०२५ [ वत्] मो० ४६ रवभूय [ रवभूत] ओ० ५२.० ६८७,६८८ रवि [ रवि ] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७,८०६, ८३८१३ रस [ रस ] ओ० १५,१६१,१६३,१६६,१७०. रा० १७३, १६६,६७२.६८५, ७१०, ७५१, ७७४. जी० १५,३८, ५८,७३,७८.८१; ३३५८,८७,२७१, २८५, २६६, ३८७,५८६, ५६२, ६०१,६०२, ७२४, ७२७,८६०,६६६, ८७२, ८७८, १७२, १८०,६८२,१०८१,१११८, ११२४ रसओ [रतस् ] जी० ११५० रसतो [ रसतस् ] जी० ३।२२ रसपरिच्चा [ रसपरित्याग ] ओ० ३१,३५ रसमंत [ रसवत् ] जी० १।३३ रसविगह [ रसविकृति ] ओ० ६३ रसिय [रसित ] रा० १३,१४ रसोदय [ रसोदक ] जी० ११६५ रह [ रथ ] ओ० १,७,८,१०,५२, ५५ से ५७,६२, ६४ से ६६, १००, १२३, १७०. २०१५१, १७३,६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७०८, ७१०,७१६,७२७ से ७२६,७३१,७३२. जी० ३१२६०, २७६, २८५, ३२३, ५८१, ५८५, ५६७,६१७ रघणघणाइय [ रथघनघनाति ] रा० २८१. जी० ३/४४७ रह जोहि [ रथयोधिन् ] ओ० १४८, १४९. रा० ८०६,८१० ७१६ रहवाय [ रथवात ] रा० ७२८ रहस्त [ रहस्य ] ओ० ६७. रा० ६७५,७६३ रहित [ रहित ] जी० ३।११२१ से ११२३ रहिय [ रहित ] ओ० १. जी० ३१५६७ रहोकम्म [ रहःकर्मन् ] रा० ८ १५ राइ [ राजि] ओ० १६. रा० ७५४ से ७५७. जी० ३८५६७ इंदिय | त्रिदिव] मो० २४,१४३. १० ८०१. जी० ११७६,८८ ३६३०, ४०४, १३ : ५१६, १३, २८,२६ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० राइण्ण-रिसि राइण्ण राजन्य ] ओ० २३,५२. रा०६८७,६८८। राषववहार [राजव्यवहार रा०६८०,६६८ राइय [गत्रिक] ओ० २६ रायहाणी [राजधानी] रा० २८२,६६७. जी० [एगराइय (एकरात्रिक) पंचराइय (पंचरात्रिक) ३१३५०.३५१,३५४,३५५,३५७,३५८,३६०, राईभोयण रात्रिभोजन ओ०७६ ४३६,४४२,४४५,४४७,४४८,५५५,५५५, राग [राग] ओ० ३७,४६,१२,५५,७४१६,१०७, ५५७,५६३,५६७ से ५६६,६३७,६३८,६५६, १३०,१६८. रा० १६.१३३,२८१,७७१. जी० ६६०,६६५,६६६,७०१,७१०,७९२,७१३, ३।३०३,४४७,५६५ ७२१,७३८,७३६,७४१,७४४,७४७,७५१ से रातिदिय रात्रिंदिव! जी० ३१२१८ ७५३,७६०,७६१,७६३ से ७८०,८००,८१४, राम [लाम] ओ० ६६. जी० ३.११७ १०२,६१६ से १२२,६४०,६४५ रामरक्खिया [ रामरक्षिता] जी० ३।११६ रायारिह [राजाह] रा०६८०,६८१,६८३,६५४, रामा रामा] जी० ३।६१६ ६६६,७००,५०२,७०८,७०६ राय [राजन् ] ओ०१४ से १६,१८,२०,२१,५२ रासि [राशि] ओ० १६५११५. ० २७,२६,३१. से ५६,६२ से ६८.७०,७१,८०,६६. रा०५, जी० ३१२८०,२८२,२८४,८१६,८३६ ६,१५४,६ १, ६७५,६७६ से ६८१,६८३ से राहु [राहु] ओ० ५० ६८५,६८७,६८८,६६८ से ७००,७०२ से राहुविमाण [राहुविमान ] जी० ३१८३८११७ रिउवेद ऋगवेद ओ०१७ से ७२६,७२८ से ७३४,७३६ से ७३९,७४७ ।। रिगिसिया [दे० रिङ्गिसिका] रा० ७७ से ७८१,७८८ से ७६१,७६३ से ७६६. जी. रिक्ख [ऋक्ष ] ओ० ६३. जी० ३।८३८१२६ ३:१२६,३२७,५६२,६०२,६०६,६३१,७४७, । रिट रिष्ट ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. जी० ३।७,८,१५,२४,३०,६२,३४६,४४५ रायंगण | राजाङ्गण] रा० १२,१७३. जी० रिटुमय [रिष्टमय ] जी० ३,४३५ ३१२८५ रिद्वय [रिष्टक ] ओ० १३ रायतेउर राजान्तःपुर] रा० १२,१७३ रिट्ठा शिष्टा] जी० ३।४ रायकउह राजककुद | ओ०६६ रिट्ठाभ [रिष्टाभ ] जी० ३१५८६ रायकज्ज ! राजकार्य ] रा०६८०,६६८ रिद्वामय रिष्ट प्रय] रा० १६,१३०,१७५,१६०, रायकहा | राजकथा ओ० १०४,१२७ २२८,२५४,२७०. जी. ३१२६४,२८७,३००, रायकिच्चगजकृत्य ] रा० ६८०,६६८ ३८७,४१५,४३५,६४३,६७२ रायकुल राजकुल रा० ६७१ रिद्ध [ऋद्ध ] ओ० १. रा० १,६६८,६६६,६७६, रायणीइ [राजनीति रा०६८०,६६८ रायधाणी [ राजधानी जी० ३१४४६,७००,७०१ रिभित [रिभित ] जी० ३.४४७ रायमग राजम १. रा०६८४,६८५, रिभिप [रिभित रा० ७६,१०६,११६,१७३, ७००,७०६ २८१. जी० ३।२८५ रायरुक्ख [राजरूक्ष] ओ० ६,१०. जी० ३१३८८, रियारिय [रितारित] रा० १११,२८१. ५८३ जी० ३.४४७ रायलदखण | राजलक्षण] रा०६७१ रिसि [ऋषि ] ओ०७१ ६७७ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२१ रोतिया(पाय)-रोग रोतिमा (पाय) [रीतिकापात्र ] ओ० १०५, १२८ रीतिया (बंधण) रीतिकाबन्धन] ओ० १०६,१२६ रुइ रुचि रा० ७४८ से ७५०,७७३ रुहर | रुचिर | जी० ३१५६६,६७२ रुइल | रुचिर अं० ५,८,१६. ०२२८, जी. ३१२७४,३८७,५६६,५६७ रुंद (दे० विस्तीर्ण ओ० ४६ रुक्ष (रूक्ष रा० ७८२, जी० ११६६,७०,७२, ३१५८१,६०३,६०४,६३१.६७६,६३७ रुक्खगेहालय [ रूक्षगेहालय ] जी० ३१६०३,६०५ रुक्खमह रूक्षमह] रा० ६८८. जी० ३१६१५ ।। रुक्खमूल [रूक्षमूल | ओ०८,१०. जी. ३३३८६, ५८१ से ५८३,५८६ से ५६५ रुक्खमूलिय रिक्षम लिकओ०६४ रुचिजमाण [रुच्यमान ] जी० ३।२८३ रुद्द रौिद्र] ० ६७१ रुद्द (साण) रौद्रध्यान] ओ० ४३ रुद्दमह [रुद्रमह] रा० ६८८. जी० ३६१५ रुप्पकूला रूप्यकला रा०२७६. जी० ३४४५ रुप्पच्छद रूप्यच्छद जी. ३३३३२ रुप्पपट्ट रुप्यपट्ट | रा०२२,२६. जी. ३:२८२, २१० रुप्पमणिमय रूप्यमणिमय रा० २७६,२८० रुपमय { रूप्यमय रा० १५६,२७६.२८० रुप्पागर रुप्यापर| रा० ७७४. जी. ३१११८ रुप्पामणिमय [ रूप्यमणिमय जी० ३.४४५ रुप्पामय रूप्यमय जी० ३:४४५,४४६ रुपि रुक्मिन् ] रा० २७६. जी० ३१४४५, रुयमवरमहामह रचावरमहाभद्रजी० ३१६३४ रुपगवरोभास [रुचवरावभा० ३१६३४ रुयगवरोभासभ६ सिवरावभासमद्र] जी० ३।६३४ रुयगवरोभासमहाभद्द [रु कवरावभास महाभद्र | जी० ३९३४ रुयगवरोभासमहावर रुचकरराव भार महावर ] जो० ३।६३४ रुयगवरोभासवर [रुचकवरावभासवर जी० ३.६३४ रुयय रुचक ओ० १६. जी० ३६३४ रुरु | रुरु] ओ० १३. स. १७,१८,२०,३२,३७, १२६. जी. ३.२८८,३००,३११,३७२ रुहिर [ रुधिर] रा० २७. जी० ३.२८० रूत रूत] जी० ३।४०७ रूय | रूत | ओ० १३. रा० ३१,३७,१८५,२४५. _जी० ३।२८४,२९७,३११ रूव [ रूप] ओ०१५,२३,४७,६३,७२,१४६,१६१, १६३,१६२. रा० १०,४७,५४,६६,७०,७६, १७३,१६०,६७२,६८५,७१०,७५१,७७१, ७७४,८०६,८०६८१०. जी० २११५१; ३१११०,१११,२६४,२८५,५६०,५६४,५६६, ५६७,९८२,१११५,१११७,११२४ रूवग [रूपक ! २.० १७,१८,२०,३२,१२६,१३२. जी० ३.२८८,३००,३७२ रूवसंपण्ण रूपसम्पन्न आं० २५. रा०६८६ रूवि रूपिन् | रा० ७७१. जी. ११३,५ रेणु | रेणु रा० ६.१२,२८१. जी० ३।४४७ रेयग रेवक स० ७६ रेरिज्जमाण राराज्यमान रा० ७८२ रोइयाबसाण | रोचितावसान] रा० ११५,१७३, २८१. जी. ३१४४७ रोएमाण रोचमान जी० १११ रोचियावसाण रोचितावतान ओ० ३.२८५ रोग रोग ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३.६२८,६३१ ७६५ रुयग! रुचक ओ० ४७. जी० ३१५९६,५६७, ७७५,६४२,९५२ रुयगवर रुचकवर जी० ३१६३४ रुषगवरभद्द रुचकवरभद्र जो० ३१६३४ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ रोम-ललिय रोम [रोमन् ] ओ० ६२. जी ० ३१५९७ रोमराइ मराजि ओ० १६. रा० २५४. जी० ३,४१५,५९६,५६७ रोमसुह (रोमसुख ओ०६३ रोष [रुच्)--नोएज्जा रा० ७५० एमि. रा० ६६५ रोरुप | रोरुक] जी० ३११२,११७ रोहिणिय | रोहिणिक जी० ११८८ रोहिणी | रोहिणी ] जी० ३१६२१ रोहितंसा | रोहितांशा] जी० ३.४४५ रोहिया! रोहिता] रा०२७६. जी०३४४५ रोहियंसा | रोहितांशा २० २७६ लउड [लकुट] जी० ३।११० लज्यलकूच ] ओ० से ११. जी०७२, ३१५८३ लउल | लकुट | ओ०६४ लउलग्ग लकुटान] जी० ३१८५ लउसियालाओसिया, ल उसिया | आ० ७०. रा० ८०४ लख लङ्घ ! ओ० १,२ लेखपेच्छा लडप्रेक्षा ओ० १०२,१२५. जी० ३।६१६ लंघण [लङ्घन] रा० १२,७५८,७५६. ___ जी० ३३११८ लंतक लान्तक] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५०,११११ लतय लान्तक | मो० १५५. जी० २११४८, १४६; ३३१०६०,१०६६,१०६८,१०७६, १०८८,१०६५,११०३ लंबत | लम्बमान | जी० ३१५६१ लंबियग [लम्बितक औ० ६० लंबूसग [लम्बूसक रा० ४०,१३२,१६१. ___जी० ३:२६५,३०२ ३१३,३६७ लक्खण लक्षण ओ० १४,१५,१६,४३,१४३, १६५।११. रा० १३३,६७२,६७३,७७४,८०१. जी० ३।३०३,५९६,५६७ लक्खारसग [लाक्षारसक] रा० २७ लक्खारसय लाक्षारगक जी० ३।२८० लग्ग लग्न ] ओ० २३ लच्छी | लमी] ओ० ६५ लज्जा ! लज्जा] ओ० २५ लज्जासंपण्ण [लज्जासम्पन्न ओ० २५. रा० ६८६ लज्जु | लज्जावत ओ०१६४ लटू लाट] ओ०१,१६,६३. रा० ३२,५२,५६, २३१,२४७. जी. ३:३७२,३६३,४०१,५६६, ५६७ लटुदंत [लप्टदन्त ] जी० ३।२१६ लट्ठिग्गाह । यष्टिग्राम ओ० ६४ लाह [दे० ओ०१६. जी. ३५६६,५६७ लण्ह | एलक्ष्ण] ओ० १२,१६४, रा. २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी. ३।२६१, २६६,२६६ लता [लता] जी० ११६६; ३।१७३,३५५ लत्तिया (दे०] रा० ७७ लद्ध | लब्ध्र | ओ० २०,४६,५३,१२०,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६३,६५,६६७,६६८,७१३, ७५२,७६५,७६६.७७०,७८६,७६७,८१६ लद्धपच्चय लब्ध प्रत्यय ) रा०६७५ लिभ लम्-~-लब्भति. स० ७७४. -- लभइ. रा० ७१९. --लभज्ज. रा० ७१६ लयला ] रा० ७६,१७३. जी. ३१२८५ सया लतः रा. १३६. जी. ३।३०६,६३१ लयाघरग [लतागृहक] रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४ लयाजुद्ध [लता सुद्ध] ओ० १४६. ग० ८०६ लयापविभति [लताप्रविभक्ति रा० १०१ लिल लल्] - ललंति. रा० १८५. जी. ३.२१७ सलिय [ललित] ओ० १५,५७,६३. रा० १०,७६, १७३.६७२ जी०३१२८५,५६७ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लव- लेसा [व] ओ० २८. जी० ३१८४१ जी० ३१६१६ जी० ३।२६८,२७४ Masa [ दे० लवकित ] ओ० ५,८,१० रा० १४५. लासिया [ल्हानिका] ओ० ७०. रा० ८०४ लिथ | लिन्द्र ] जी० ३७२१ लिंब | लिम्ब] रा० ३७ लिक्खा [लिक्षा ] जी० ३३६२४,७८८ लिन्च [ लिच्च ] जी० ३।३११ लित्त [ लिप्त ] रा० १२३, ७५५,७७२ लिप्पासण | लिप्यासन | रा० २७० जी० ३१४३५ लोला [लीला ] रा० १७,१८,१३०,१३३. जी० ३१३००,३०३ लुक्a | रूक्ष ] जी० ११५,३६,४०, ५०, ३२२ लुग | लुब्धक] ० ७७४ / लुय [लू ] -- लुज्जइ. रा० ७८४ लूसणया [लूपण ] ओ० १०३, १२६ लूसमाण | लूषत् ] रा० १३३ लूसे माण | लूषत् ] जी० ३।३०३ / लह [ रूक्षय्, मृज् ] - लूहेति. रा० २६५. जी० ३१४५१ लवंग | लवङ्ग ] रा० २६,३० जी० ३२८२ लवण [लवण | जी० ३।२१७, २१९ से २२७,३००, _५६६,५६८,५६६.५७१ से ५७६,७०४ से ७०८,७१०,७११,७१३ से ७२३, ७२६,७२८ से ७३१,७३३,७३६,७३९ से ७४१, ७४५, ७४७, ७५०,७५४,७६१,७६२,७६५ से ७६६,७७५, ७८१ से ७८६,७८८ से ७९६.८३८।२४,६५, ε६३,६६६,९६६ लवणग | जवणक | जी० ३।७१० लवणतोय [लवणतोय ] जी० ३१८३८१२३ लवणसिहा [ लवणशिखा | जी० ३१७३२ लवणाविs | लवणाधिपति ] जी० ३।७२१,७५४, ७५६,७६१ Martar [ लवणोदक ] जी० ११६५ Mar [ लवक ] जी० ३१३८८ लहु | लघु | जी० ३१२२ लहु [ लघुक | ओ० ४६. जी० ११५; ३८७८ लहुत्त [लघुकत्व] १० ७६२,७६३ लाइ [ दे०] ओ० २,५५. २१० ३२.२८१. जी० ३।३७२,४४७ लाघव | लाघव ] ओ० २५. रा० ६८६, ८१४ लाघवसंपण्ण [लाघवराम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ लाभत्थिय लाभार्थिक | ओ०६८ लाला [ लाला | २०१३५,२८५. जी० ३।३०५, ४५१ mars | लावणिक | जी० ३१७६६ से ७६६ लावणिग [ लावणिक ] जी० ३१८६८२४ लावण्ण [ लावण्य] ओ० १५,२३. रा० ६६,७०. जो० ३१५६७ /लास [लासय् ] - लानेंति. रा० २८१. जी० ३४४७ लासग [ लाराक ] ओ० १,२ लासगपेच्छा [लासकप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. लूहाहार [ रूक्षाहार ] मो० ३४ लूहिय [ रूक्षित ] ० ६३ ७२३ लूहेत्ता | रुक्षयित्वा ] रा० २६५. जी० ३१४५१ लेक्ख | लख्य ] रा० २७० जी० ३१४३५ लेच्छ [ लिच्छवि, लेच्छवि । ओ० ५२. रा० ६८७. ६८८ लेच्छईपुस । लिच्छविपुत्र, लेच्छविपुत्र ] ओ० ५२. 1 रा० ६८७, ६८८ लेच्छतिपुत्त [ लिच्छविपुत्र, लेच्छविपुत्र ] जी० ३।११७ लेट्टु [लेष्टु] ० २६ लेण [लयन | प्रो० १४६,१५० रा० ८१०,८११. जी० ३१५६४ लेस [ लेश्या ] रा० ७७१ लेसणया [लेशन ] ओ० १०३, १२६ लेसा [लेश्या ] ओ० ४७,७२,११६ जी० १११४ २१,५६,८६,६६,१०१,१२८ ३६८, १६, १२७१४, १२८, १५०,८४१ ; ६६६ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ लेस्सा-लोहियक्ख लेस्सा लेश्या] ओ० १५६. जी० ११२१,७६, ५६४,५६५. जी० ३१४४५,४५७,४६० से ११६,१३६, ३३१०१,१२८,१५०,१६०, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५३२, ११०१ लेह [लेख] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ लोमहत्यय [लं महस्तकरा० २६१,२६४ से लेहणी [लेखनी] रा० २७०. जी. ३।४३५ २६७,३००,३०५,३१० से ३१२,३५२ से लोग लक रा० ७५१,७५३,८१५. जी०११४०, ३.६,४१४,४७३ से ४७५,५३४,५३५,५६४ ३१७६५,८३८१२,९७२; १९ ५६५. जी० ३४५८ लोगंत [लोकान्त ] ओ० १६५,१६५६ लोमहरिस | लोमहर्ष ] जी० ३१८३ लोगट्ठिति लोकस्थिति] जी० ३१७९५ लोय | लोक ओ०७१,१६९,१७०,१७४. लोगणाह [लोकनाथ ] रा० २६२. जी० ३१४५७ जी० १११३६, २.१२०,१३१, ३।११८,११६, लोगनाली | लोकनाडी, "नाली | जी० ३१११११ ८४१५१८,२२, २५७ लोगनाह लंकनाथ रा० ८ लोयंत लोकान्त जी० ३.३३ से ३६, १००२ लोगपईव लोकप्रदीप | रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लायग लोकाय] ओ० १६८,१६३,१९५२ लोगपज्जोयगर [ज कप्रद्योतकर] रा० ८,२६२. लोगभिशा लोकापस्तूपिका | ओ० १६३ जो० ३१४५७ लोगपडिबुझणा ! लो गाग्रप्रतिबोधना] लोगमज्झावसाणिय [लोकमध्यावसानिक ओ०१६३ रा० ११७,२८१ जी० ३.४४७ लोयण [ले.चन] जी० ३.५६७ लोगहिय लोकहित] रा० ८,२६२. जी० ३१४५७ लोल लोल] ओ०६. जी० श२७५ लोगाणुभाव लोकानुभाव जी० ३१७९५ लोव लोग] ओ० ११७ लोगुतम लोकोत्तम] १०८,२६२. जी० ३१४५७ लोह लोभ] ओ० २८,३७,४४,६१,११७,१६१, लोगोवयारविणय [लोकोपचारविनय ओ० ४० १६३,१६८. रा० ७६६. जी. ३११२८ लोण ! लक्षण] ओ०६२. जी. ३१७२१ लोहकसाइलोभकष यिन् | जी०६१५३ लोद्ध लोध्र ० ६,१०. जी० ११७२; ३।३८८, लोहकसाय [ लोभकाय] जी० १।१६ लोहया लोभता ओ० ११६ लोभ लोभ ओ०४८,७१. जी. ३:१२८,५६८, लोहारंबरिस ला कारम्बशेष | जी० ३।११८ ७६५,८४१ लोहित लोहिक रा० १२८,१३२. जी. ३२२, लोभकसाइ [लोभकपायिन् ] जी० १:१३१; ६।१४८,१५०,१५५ लोहितक्ख लंहिताक्ष दी० ३१७,३००,४१५ लोभविवेक [लाभविवेक ओ० ७१ लोहितक्खमणि [लोहिताक्षमणि | जी० ३१२८० लोमपक्खि लोमपक्षिन् ] जी० १११३,११५ लोहितक्खमय | लोहिताक्षमय | रा० १६,१७५, लोमहत्थ [ल:महस्त ) ओ० २. रा० १५६,१५७, १६०. जी० ३१२६४,२८७,३०० २५८,२७६,२६५ से २६६,३५१. जी० ३१३२६, लोहितग | लहितक] जी० ३।२८० ३३०,४१६,४६० लोहिय लोहित | ओ० १२. रा० २२,२४,२७, लोमहत्थग | लोमहस्तक ०२६१,२६४ मे १५३. जी० १:५०३:१११,२६०,३२६, २६६,२६८,३००,३०५,३१० से ३१२,३५१ १०७५,१०७६ से ३५६,५१४,४८३ से १७५,५३४,५३५, लोहियक्ख [लोहिताक्ष] रा० १०,१२,१८,६५, Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहियक्खमणि-वंदणकाम ७२५ १३०,१६५,२५४,२७६. जी. ३३४१५ लोहियक्खमणि [ लोहिताक्षमणि] रा० २७ लोहियक्खमय [लोहिताक्षमय [ रा० १३०,२४५ जी० ३१४०७,४७७ लोहितपाणि [लोहितपाणि] रा० ६७१ लोही | लोही] जी० १७३ लोही लौही] जी० ३१७८ व | इव] ओ० २७ वच जी. ३६१२९६ यइ [वाच्] ओ० ३७,४० वइकच्छछिण्णम [वैकक्षछिन्नक | ओ०६० वइगुत्त [वाग्गुप्त ] ओ० १६४ वइजोग [वाग्योम | ओ० ३७ वहजोगि [वाग्योगिन् } जी० ११३१,८७,१३३; ३३१०५,१५३,११०६६।११३,११४,११७, ३००,३२१,३३८,३५१. जी. ३१६७,१११, २६१,२६४,२८६,२८७,३००,३०२,३०५, ३०७,३११,३१३,३२२,३२६,३५५,३७७, ३८७,३६३,३६७,३६८,४०१,४०२,४०७, ४१०,४१५,४३५,४४२,४६५,४८६,५०३, ५१६,५६२,६४३,६५४,६७२,६७६,७२४, ७२७,८८१,८६१,६००,६२७,६४८,१०२५ वइरोयणराय | वैरोचन राज] जी० ३१२४० से २४३ वइरोणिद | वैरोचनेंद्र ] जी० ३१२४० से २४३ घहरोसभणाराय | वज्रऋषभनाराच] ओ० १८५ बहरोसभनाराय विज्रऋषभनाराच] जी० २११६ वइविणय [वाग्विन य] ओ० ४० वइसमिय वाक्समित ओ० १६४ वंक [वक्र] ओ०१ वंग वङ्ग] जी० ३१५६५ वंग व्यङ्ग] जी० ३१५९७ वंधण [वञ्चन] रा० ६७१ चंचणया [वञ्चनता] ओ०७३ वंजण [व्यञ्जन ] ओ० १५,१४३. रा० ६७२, ६७३,८०१. जी० ३।५९६ बंद विन्द्]--वंदइ. ओ० २१.--वदंति ओ० ४७. रा० १०.-वंदति. रा० ८. जी० ३।४५७.....वंदर. रा० ...---वंदामि. ओ० २१. रा० ६.- वंदामो. ओ० ५२. रा० १०.--वंदिज्जाह. रा०७०६. ---वंदिस्सति रा०६०४.-.वंदेज्जा. रा० ७७६ वंद वृन्द आ० ७०,७१. रा० ६१,६९२,७१६, १२० वइर वज्र ओ०१२,१६,४८. रा० १०,१२, १७,१८,२०,२२,३२.६५.१२६,१५६,१६०, १६५,२५६,२७६,२८१,२६२,७७४. जी० ३७,६१ से ६३,२८८,२६०,३००,३३२, ३६३,३४६,३७२,४१७,४५७,५६६ वहरणाभ वज्रनाभ जी० ३।३२३ वइरनाभ वज्रनाभ ] रा० १५० वइरभंड वज्रभाण्ड] रा० ७७४ वहरभार दज्रभार स० ७७४ वइरभारय वनमारक रा० ७७४ वइरमझा मध्याआं० २४ वइररिसहणाराय वज्रपभनाराच ओ० ८२ वइरोगर वज्राकर रा० ७७४ वइरामय वज्रमय रा० १६,३५,३७,३६,४०, ५२,५६,१३०,१३२,१३५,१३७,१५३,१७५, १६०,२१७,२१८,२२८,२३१,२३५,२३६, २४०,२५,२४७,१४६.२५४,२७०,२७६, ८०४ वंदण [वन्दन] ओ० २,५२. रा० १६,६८७,६८६ बंदणकलस वंदनकलश ओ० २,५५. रा० ३२, १३१,१४७,२५८,२८१,२६०. जी. ३१३०१, ३२०,३५५,३७२,४१६,४४७,४५६,८८६ बंदणकाम वन्दनकामा ओ०५१ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ बंदणघड-बट्टखेडू वंदणघड [वन्दनघट [ ओ० २,५५. ग० ३२, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२० २८१. जी० ३१३७२,४४७ विच्च [अ] - वच्चंति. जी० ३।१२९६ वंदणिज्ज [वन्दनीय! ओ०२. रा० २४०,२७६. वच्चंसि वर्चस्विन् ओ० २५. रा०६५६ जी० ३।४०२,४४२ वच्चग तच्चक] जी० ३१५८८ बंदावंदय वृन्दवृन्दा ] रा० ६८८,६८६ बच्चघर [व!गृह] रा० ७५३ वदित्तए वन्दितुम ] ओ० १३६. राह वच्छ [ वक्षम् ] ओ० १६, २१, ४७, ५४, ५७, वंदित्ता [वन्दित्या ओ० २१. रा० ८. ६३, ६५, ७२. रा० ८, ६६, ७१४, जी. जी० ३६४५७ ३.५९६, ११२१ वंस [ वंश] आ० १४. रा० ७६,७७,१३०,१७३, वज्ज [वर्ज] ओ० २६. नी० १३५१, ५५, ६१, १६०,६७१. जी. ३१२६४,२८५,३००,५८८ ८७.१०१,११६,१२३,१२८, ३।१५५,६०५; वंसकवेल्लुय वशकवेल्लुक ] रा० १३०,१६०. ६।१० जी० ३।२६४,३०० वज बज्र] जी० ३१५६७ बंसग | वंशक] रा० १३०. जी० ३।३०० बज्जकंद [वज्रकन्द जी० ११७३ वंसा [वंशा] जी० ३.४ वज्जरिसभनाराय [वज्रऋषभनाराच] जी० वक्कंति [अवक्रांति] जी० ११५१ ; ३।१२१,१५६, ३१५६८ १०८२ यज्जित्ता [वर्जयित्वा ] जी० ३१७७ बक्कंतिय अवक्रांतिक रा० ७६५ वज्जिय [वजित ओ०४८. रा० ७७४, विक्कम अव+ऋम ---वक्कमति जी० ११५८ जी० ३१५६८ वक्ख वक्ष जी० ३३५६७ यजेता वर्जयित्वा] रा० २४०. जी. ३४०२ वक्वार [वक्षार, वक्षस्कार] रा० २७६. वझवत्तिय वर्धवर्तित] ओ०६० जी० ३।४४५,५७७,६६८,७७५,६३७ वट्ट वृत्त] ओ० १,२,१६,५५,१७०. रा० १२, Vवगविल्ग---वगंति. रा० २८१. ३२,५२,५६,२३१,२८१,२६१,२६४,२६६, जी० ३१४४७ ३००,३०५,३१२.३५५,७५८,७५६. वगण ! वल्गन ] ओ०६३ जी०१:५; ३१२२,४८ से ५०,७७ से ७६, वग्गवगु वर्गवर्ग] जी० १६५११४ ८६,२६०,२७४,३५२,३७२,३६३,४०१, वगु वा ] ओ० ६८. रा० ७६७ ४४७,४५९.४६१,४६२,४६५,४७०,४७७, वगुरा वागुरा] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ५१६.५२०,५६४,५६६,५६७,७०४,७६३, ७६६,८१०,२१,८३१,८४८,८५६,९५६, वगुलि बल्गुलि ] जी० १.११४ ८६२,८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०, वग्घ [व्याघ्र | रा० २४. जी ० ३८४,२७७,६२० ६१०,६२५,६२७ से १३२,६३८,६४३,१०७१, १०७२ वग्धमुह | व्याघ्रमुख जी. ३१२१६ वग्धारित दे० जी० ३:३०३,३६७,४४७,४५६ वट्ट । वृत् --बट्टसि. २० ७६७. - ..वट्टिस्मामि. वग्धारिय दे० ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, रा० ७६८ २३५,२८१,२६१,२९४,२६६,३००,३०५, वट्टक वर्तक] जी० ३।५८७ ३१२,३५५. जी० ३।३०२,३७२,४६१,४६२, वट्टखेड्ड वृत्तखेल ] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वट्टभाव-वणस्सतिकाल वट्टभाव [वृत्तभाव ओ० ५,८. जी. ३१२७४ ।। वणमाला [वनमाला ओ० ४७,४८,७२. वट्टमग्ग [वृत्तमार्ग,वर्त्म गार्ग] ओ० ५६ रा०१३६,२१०,२१२. जी० ३१३०६,३५४, वट्टमाण [वर्तमान ] ओ० ४७. रा० २८१,८१५. ३७३,५६१,६४७,६७३,८८६,८८८ जी० ३,४४७ वणराइ | वनराजि] रा०६५४,६५५. जी. वट्टमाल [वृत्तमाल] जी० ३१५८२ ३।२७६,५५४,५५५,५८५,६३१ वट्टलोह पाय] (वृत्तलोहपात्र] ओ० १०५,१२८ वणराति [वनराजि] रा०२६ वट्टलोह [बंधण] वृत्तलोहबन्धन | ओ० १०६, ____ वणलया[वनलता] ओ० ११,१३. रा० १७,१८,२०, १२६ ३२,३७,१२६,१४५. जी० ३३२८८,३००,३११, वट्टवेत [वृत्तवैताढ्य ] जी० ३।४४५ ३७२,५८४ वट्टवेयड्ड [वृत्तवैताढ्य ] रा० २७६. जी० ३।४४५, वलयापविभत्ति [वनलताप्रविभक्ति रा० १०१ वणसंड [वनषण्ड | ओ० ३,४,८. रा० ३,१७०, वट्टि [वत्ति] जी० ११७२,३१५८६ १७१,१७४,१८२,१८४,१८६,१८६,२०१, २३३,२६३,६५४,६५५,७०३,७८१,७८२, वट्टिजमाणचरय [वय॑मानचरक] ओ० ३४ वट्टित्ता । वतित्वा] रा ० ७७६ ७८६,७८७. जी० ३१२१७,२५६,२७३,२७७, २८६,२९४,२६६,२६८,३५८,३५६,३६२, वट्टिय ! वतित ओ० १६.७१. रा० ६१,१३३, २४५,७६८,७७७. जी० ३३१७२,३०३,५६६, ३६५,५५४,६३२,६३६,६६१,६६८,६८१ से ५९७ ६८३,६८८,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२, ७६५,७६८,७६८,८१२,५२३,८३६,८५०, वडभिया [वडभिका] रा०८०४ ८५७,८८२,६१०,६११ वडभी [वडभी ] ओ० ७० वडिसग [अवतुंसक ओ० १० वणस्सइ [वनस्पति जी० ८३ वडिसब [अवतसक] ओ० १२. जी. ३१५८४ वणस्सइकाइय (वनस्पतिकायिक जी० १२१२,६६ वउँसग [अवतंसक] ओ० ५,८,६४. रा० १२५, से ७४, २११३८, ३।१३१,१३५: ५।६१५, १४५. जी० ३।२६८,२७४,२८५,७०२,८०८, ८.१६१८४,२६३ ८२६,१०३६ वणस्सइकाइयत्त [वनस्पतिकायिकत्व } जी० वडेंसय अवतंक] रा० १२५ ३:१२७ १ वडवृ] .. वड्डइ. जी. ३.७३१....वड्ढए. वणस्सइकाल[वनस्पतिकाल ] जी० ११४२ जी० ३:८३८११४.....बड्ढति. जी० ३।७२३ रा६३,६५ से ६७,११७,१२६,१२७,१३०: वण बन] रा० ४५.६५४,६५५,७६५. ४६१२७, ९:११७,१२७,२६४,२७१ जी०३५५४,५८१ वणस्सति [वनस्पति जी०५।१७ वण {लया) [वनलता] जी० ३१२६८ वणस्सतिकाइय [वनस्पतिकायिक] जी० २११०२, वत्यि | वनार्थिन् । रा० ७६५ १२०,१३१,१३६.१३८,१४६.१४६, ३५१३५ वणप्फइकाइय वनस्पतिकायिक जी० ३.१९६ ५६,३,६,१८ से २० , ८,४,५, ६।१८२,२५६, वणप्फति वनस्पति जी० ३.१२३ २५८,२६६ यणप्फतिकाइय [वगालिकायिक] श्री ३।१२६, वणस्सतिकाल वनस्पत्तिकाल] जी० २८६ से ८८,६० से १२,११६,१३१,१३३, ३।११३४ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ ११३७, ४१७: ५।१७,३० ६ ८, १०; ७ १०, १३ से १५, १७, १८,६३३, ४, ५८,५६,८०,८३, १०३,१०५, ११५,१२४, १२६.१३६,१३८, १७७,१६४, २०७, २११,२१६,२१८,२२२, २२६,२३६,२४१ से २४३,२४६,२६२,२७७ से २७६,२१,२८२ वर्णिय [ वज्]ि o १ aणोजीवि | नापजीविन् ] रा० ७६५ ण | वर्ण २,१३, २३, २५,४७,४६ से ५१, ५५,७२,१६६,१७०,१६४. रा० ६,१२,२४ से २६, ३२, ४५, ५२, ५६, १२८, १३०, १७१,१६६, २३१,२४७,२८१,२८५, २६१, २६३ से २६६, ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ११५, ३४, ३८, ५०, ५८,७३,७८,८१ ३३५८,८३,८७,६४, १२७, २७१, २७७ से २५२,३००,३०६, ३५३, ३६०, ३७२,३८३,४४७, ४५१, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०,४७७,५१६,५२०,५५४,५७८,५८०, ५८६,५६१,५६२,५६५,५६७,६०१,६०२, ६३७, ६४५,६४८, ६५६, ६५६,७२४, ७२७, ७३८, ७४३,७६३,८६०,८६६, ८७२, ८७८, ६७२, १०७५.१०७६.१०८१,१०६३ से १०६६ aur [ac] जी० ११३५,५०,९६,१३६ aon | वर्णक ओ० ६३, १६१,१६३ [वर्णक] २४३. जी० ३।२१७ तो [वर्णतम् ] ० ३१२२,२७,४५ वणमंत | वर्णवत् | जी० ११३३,३४ वण्णय | वर्णक ] २१० ६६, १५३, १६४ १७०, २०१, २०२,२०४ से २०८, २१६, २३३, २३८,२६१, २६३.११०३२६८,३१५ से ३१७,३२०, ३२१, ३३८,३५४,३५५,३५८,३६२,३६३, ३६६, ३६८,३७३,३७४,३७८,३६४,३६६,४०१४०६, ४२३,४२५,४२८,६३२ से ६३४,६३० से ६४१, ६४६,६४७,६५०,६६१,६६८,६७३,६७४, ६७८,६७६,६८३ से ६८५,६८९,७०६,७३६, _३५४,७५६,७५६,७६२, ७६८८१२,८२३,८३६, वर्णिय-वस्थि ८५०,६५७,८८२,८८४८८५८८७ ६१०, ११,३६,१००८ वण्णसंजलणया [वर्णसं ज्वलता ओ० ४० वण्णाभ[वर्णाभ ] रा १२४. जी० ३१७७,६३७, ६५६,६६४, ७३८,७४३, ७६३, ८१६,८५४, ८७२ वण्णावास | वर्णावास | रा० १६,२०,२५ से २६, ३७,४५, १३५, १४६,१७५,१६०,२२८,२४५, २५४,२०० जी० ३।२६४,२७८ से २८२, २८७,३०५,३११,३२२,३५६, ३८७, ४०७, '४१५,४३५,६४३,६५४,८६८ यत्त' [ वर्त | ओ० १६. जी० ३१५६६ वत्तमंडल ( वृत्तमण्डल ] बो० ६४ aa [ वक्तव्य ] ओ० ३३. जी० ६२५,६८२ बत्तव्वता [ वक्तव्यता | जी० ३३५६६,८५६,८८६ १३,६२५,६२७,६३२, ६३४,६३५ यत्तब्वया [ वक्तव्यता ] रा० ५२,२१५, ३२१,७५० से ७५३. जी० ३१३२,२५०,४१२,४३१,४३४, ६७६, ६६१,७०१,७१०,७७६,८००,८५६ वत्तिय प्रत्यय ] ओ० ५२. रा० १६,६८७, ६८६ वत्य | वस्त्र ] ओ० २०,३३,४७,४६,५१ से ५३,७२, १०७, १२०.१३०, १४७, १४६, १५०, १६२. रा० १५६, १५३,२५८, २७६, २८६,२६१, ६८५,६८७, ६८६, ६६२, ६६८, ७००,७१४, ३१६,७१६,७२६,७५२, ७८६,७६४, ८०२, ८०८,८१०,८११. जी० ३।३२६, ४१६,४४७, ४५२, ५६५,६७३,७७५, ८७८, १३७, ११२२ चत्यंत [ वस्त्रान्त ] रा० ६६ त्यहि [ वस्त्रविधि] ओ० १४६. ० ८०६ वत्यव्व [ वास्तव्य ] ० २८२. जी० ३१४४२, ४४८, ५२७ areer [artoon जी० ३१३५०, ४४६, ५६३ af | वस्ति ] रा० ७६३. जी० ३।५६७ १. वत्रं च सूत्रव जनकम् (ओ० वृ० । । वर्त - सूत्रवलनकम् [ जी० वृ० ] | Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्यु-वरुणोद ७२६ यत्यू [वस्तु,वास्तु ओ०१ वयजोग [चोयोग] ओ० १७५,१७७,१७६,१८२ वत्थुलगुम्म [वास्तुलगुल्म ] जी० ३।५८० वयण वचन ] ओ० ४६,५६,५७,५६,६१,६६. वस्थुविज्जा वास्तुविद्या ओ० १४६. ग० ८०६ रा० १०,१४ से १६,१८,७४,२७६,६५५,६८१, Vबद [वद्]-वदत्. ओ० ६६. रा० ६९५. ६६६,७०७. जी०३१४४५,५५५ -वदेज्जा. रा० ७५१। वयण वदन] ओ० १५,१६,२१,५४, रा०६७२. वदण विदन] जी० ३१५६६ से ५९८ जी० ३.५९७ वदित्ता [वदित्वा] ओ० ७६ क्यबलिय वचोबलिक] ओ०२४ यद्दलियाभत्त बालिकाभक्त ] ओ० १३४ क्यरामय [वनभय रा०१७४ बद्धण वर्धन ] जी० ३१५६२ वर [वर ओ० १,२,५,८ से १०,१२ से १४,१६, बद्धणी [नर्धनी ! जी० ३।५८७ २१,४६,४८,४६.५१,५४,५७,५.६,६३ से ६५, वद्धमाण [वर्धमान ओ० ४८,६८ ६७.१०७,१५३,१६५,१६६,१७२. रा० ३,४, वद्धमाणग [वर्धमानक) ओ० १२,६४. रा० २१, ८,६,१२,१३.२८,३२,४७,५२,५६,६८ से ७०, २४,४६,२६१. जी० ३१२७७,२८६ ७६,१२६,१३१ से १३३,१४७,१४८,१५६, वद्धमाणा [ वर्धमाना] रा० २२५. जी० ३.३८४, १६२,१७३,१८५,२१०,२१२,२२८,२३१,२३६, २४०,२७७,२८०,२८३,२८६,२६१,२६२,३५१, विद्धाव वर्धय]- वद्धावेइ. ओ० २०. रा० ६८०। ५६४,६५७,६६४,६७१,८१,६८३,७१०, -बद्धावेंति. रा० १२. जी० ३।४४२. ७१४,७६५,७७४,७६४,८०२,८०४,८१४. --वद्धावेति. रा० ४६ जी० ३१२७४,२८१,२८२,२८५,२६७,३०० से वडावेत्ता [वर्धयित्वा] ओ० २०. रा० १२. ३०३,३२१,३३२,३३५,३५४,३७२,३७३, जी० ३१४४२ ३८७,४४३,४४६ से ४४६,४५७,५१६,५४७, वप्प वप्र] रा० १७४. जी० ३.११८,११९,२८६ ५५७,५६२,५८६,५६१ से ५६३,५६५ से ५६७, वप्पिणी [दे०] ओ०१ ६०४,६४७,६७२,८५७,८६०,८८५ वम्भिय [वमित] रा० ६६४,६८३. जी० ३१५६२ वरवरय-बरइ. जी. ३१८३८,१६ वय [वचस्] ओ० २४. रा० ८१५ वरंग [वराङ्ग] जी० ३।३२२ वय {क्यस्] ओ० ४७ वरदाम वरदामन् । रा० २७६. जी. ३।४४५ वय [व्रत ] ओ० २५,४६ वरपुरिस वरपुरुप] जी० ३१२८१ विय विद्]--वइस्संति. रा० ८०२.--वएज्जा. वराह [वराह ] ओ० १६,५१. रा०२४,२७. रा० ७५०.-वयइ. ओ०७१.-..-वयामि. ___ जी० ३।२७७,२८०,५६६,१०३८ रा० ७३४.--वयासि. ओ० २०. रा० ७३४. जी० ३१४४८.-वयासी. रा०८. वरिसधर वर्षधर] ओ० ७०. रा० ८०४ जी० ३१४४२.--वयाहि. रा०१३ वरुण [वरुण ] जी० ३१७७५,८५७ विय वच-वच्छं. ओ० १६५१७. वरुणप्पभ | वरुणप्रभ] जी० ३१८५७ ___ जी० ३३२२६ वरुणवर वरुणवर] जी० ३१८५१,८५६,८५७, ८५६ वयंस [वयस्य ] जी० ३६१३ वयंसय वयस्थक] रा० ६७५ वरुणोद [वरुण द] जी० ३।२८५,८५६,८६०, वयगुत्त [वचोगुप्त] ओ० २७,१५२. रा० ८१३ ८६२,९५८,६६३ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० क्लब [वलक्ष] जी० ३/३२२,५६३ वलभी [ वलभी ] जी० ३१६०४, ७६३ वलीघर [ वलभीगृह ] जी० ३२५६४ वलय [ वलय ] जी० १।६६; ३।३७ से ४०, ४२, ४४ से ५०,५६३, ७०४,७६३,७६६,८१०, ८२१,८३१,८४८,८५६,८६२,८६५,८६८, ८७१, ८७४, ८७७, ८८०,६२५ मग [ वलयमृतक ] ओ० १० ar [asarमुख ] जी० ३१७२३ वलयावलिपविभत्ति ] वलयावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ वलि [ वलि ] जी० ३३५६७ दलित [ वलित ] जी० ३।५६६ वलय [ वलित ] ओ० १५,१६. रा० १२,६७२, ७५८ से ७६१. जी० ३१५६७ वल्ली [ वल्ली ] जी० ११६६,३३१७२ वयगत [ व्यपगत ] जी० ३३५६७,६१०,६१२ से ६१६,६२४,६२७,६२८ aar [ व्यपगत ] ओ० १४,६२. रा० ६७१. जी० ३१६०७,६०६,६२२ √ ववरोव [ व्यप + रोपय् ] - ववरोवएज्जा. रा० ७५१ - ववरोविज्जइ. रा० ७६७ —बवरोवेमि. रा० ७५६ - ववरोवेहि. रा० ७५१ वववेत्ता [ व्यपरोप्य ] रा० ७५६ √ ववस [वि + अ + सो] - ववसइ. रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसता [ व्यवसाय ] रा० २८८. जी० ३०४५४ साथ [ व्यवसाय ] ओ० ४६. रा० २८८. जी० ३।४५४ वासभा [ व्यवसायसभा ] रा० २६६, २७१, २७२,२८६,२८८,५६४, ५०६, ५६७,६१६, ६३४,६३५. जी० ३।४३४, ४३६, ४३७, ४५२, ४५४,५४७,५४० से ५५३ ववहार [ व्यवहार] रा० ६७५ ववहारग [ व्यवहारक] रा० ७६६ ववहारि [ व्यवहारिन् ] रा० ७६६ बस [ वश ] ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ७८,५०,८१०८,१०,१२ से १४,१६ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४, २७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०,७१३, ७१४, ७१६, ७१८, ७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३, ४४५ ४४७,५५५ /वस [वस् ] - साहि. ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३१४४८ वलक्ख-वा वसंतल्या [ वासन्तीलता ] रा० २४ समय [वशार्तमृतक ] ओ० ६० वसण [ वसन] रा० २६,२८,६६,७०,१३३. जी० ३१२७६, २८१, ३०३,११२१ से ११२३ वसणभूत [ व्यसनभूत ] जी० ३।६२८ वसप्पाडियग [ उत्पाटितकवृषण] ओ० ६० वसभ [ वृषभ ] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३३१०१५ वसमाण [ वसत् ] रा० ६८३,७०६ सह [ वृषभ ] रा० २४ सहि [ वसति ] ओ० ३७,११८,११६,१६५. जी० ३।६०३ यसु [ वसु ] जी० ३।११७ वसुंधरा [ वसुन्धरा ] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३१६२२ वसुगुप्ता [ वसुगुप्ता ] जो० ३।६२२ वसुमित्ता [ वसुमित्रा ] जी० ३१६२२ बस [ वसू] जी० ३/२२ वह वध ] ओ० ४६, ७३,१६१,१६३. रा० ६७१ वहक [वधक ] जी० ३।६१२ वमाणय [ वहमानक ] ओ १११ से ११३, १३७, १३८ वा [वा ] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३।११७ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाइज्जत-बायणा बाइज्जत वाद्यमान] रा० ७७ वाणमंतर [वानव्यन्तर] ओ० ४६,८६ से १३. वाइत्त [वादित्र] २१० ११४,२८१ रा० ११,५६. जी० १११०१,१३५, २११५, वाइय [वाद्य] जी० ३१४४७ १६,७१,७२,९५,६६,१४८,१४६ ; ३१२१७, घाइय [वादित] ओ० ६८,१४६. रा० ७,७८, २३०,२५१,२६७,२६८,३५८,४०२,४४६, ८०६. जी ० ३१३५०,५६३,१०२५ ४४८,४५५,४५७,६२७,६५६,७६०,८५७,६१७ वाइय [वातिक ] ओ० ११७. रा० ७६६ वाणमंतरी [जानव्यन्तरी] जी० २।३८,७१,७२, वाइय [वाचिक] ओ० ६६ १४८,१४६ वाउ | वायु ओ० ४६. जी० १४१२८,१३३; वाणिज्ज [वाणिज्य] जी० ३३६०७ २ १३०,१३६; ३:३०७,३६३; ११७,२०,२४, वात [वात] रा० १७३ २५ २७ बातकरण [वातकरक] जी० ३।३५५,४१६,४४५ वाउकाइय वायुकायिक जी० २११३८; ५।१,६, वाव [वादय् ] ---वादेति, जी० ३१४४७ २६,३१,३३,३६,८१५: ६।१८२,१८४,२५६, बादित [वादित ] जी० ३१८४२,८४५ २५७,२६२,२६६ वाबाहा {व्याबाधा] जी० ३१६२०,६२५ वाउकाय [वायुकाय रा०७७१. जी. ३१३५, वाम [वाम] ओ० २१,४७,५४. रा० ८,७०, ७२५,७२८ १३३,२६२,७६७,७६८,७७६,७७७. जी. ३.४५ वाउक्कलिया [वातोत्कलिका ] जी० १८१ वाम [वाम,व्याम] ओ० ५,८ जी० ३२७४ वाउक्काइय [वायुकायिक ] जी० ११७५,८०,८२; वामण [वामन] जी० ११११६ २२१०२,१४६,१४६; ११६५:२८,१४,२०, बामणिया [वामनिका] रा० ८०४ ८.१,३ वामणी [वामनी] ओ०७० वाउभाम [वातोद्भ्राम] जी० ११८१ वामद्दण [व्यामर्दन] ओ० ६३ वाउयाय [वायुकाय] रा० ७७१ दामहत्थ वामहस्त ] जी० ३।३०३ वाउवेग वायुवेग ] जी० ३३५६८ वामुत्तग दे० वामोत्तक,व्यामोत्तक] जी० ३२५६ वाएसा वाचयित्वा] रा० २८८. जी० ३।४५४ वाय [वात] ओ० ४६,६४. रा० ४०,५०,५२,५६, वाकवासि [वल्कवासिन् ] ओ० ६४ १३२,१३७,२३१,२४७,२८५,७७१. वागर वि-+आ+क]-बागरेइ. ओ०६६ जी०३.२६५,२८५,४५१,५८०,७२६ वागरण व्याकरण] ओ० २६,६७. रा०१६, विाय वाचय]-वाएति. रा० २८८. ७१६,७६८ जी० ३४५४. बायंति.--ओ० ४५ वागरमाण [व्याकुर्वाण ] ओ० २६ वाय [वादय् ]--वाइज्जइ रा० ७८३--वाएंति वागरेयत्व [व्याकर्तव्य] जी० ३१७७ रा० ११४ वाघाइम [व्याघातिन् व्याधातिम] ओ० ३२. वायंत वादयत] ओ०६४ जी० ३।१०२२ वायकरग वातकरक] रा० १५३,२५८८,२७६. वाघातिम [ व्याघातिन्, व्याधातिम] जी० ३११०२२ जी० ३।३२६ वाघाय व्याघात] जी० २०४६,८२ वापणा [वाचना] ओ० ४२,४३ वाड [वाड, वाट] जी० ३८७८ १. अनेकाभिर्नरवामाभि: सुप्रसारिताभिः (ओ०० वाण [वाण ] ओ० १३ अनेकनरव्यामः पुरुषव्यामः सुप्रसारितैः । वाणपस्थ [वानप्रस्थ ] ओ०६४ (जी०वृ०) Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ वायमंडलिया [ वातमण्डलिका ] जी० १८१ वायाम [ व्यायाम ] ओ० ६३ वारण [ वारण] ओ० १६ वारय [वारक ] जी० ३१५६६ वारि [ बारि] रा० १३१,१४७, १४८, १८०. जी० ३।३०१, ४४६ वारिसेणा [ वारिषेणा ] रा० २२५. जी० ३१३८४, जी० ३२२८६, ३००, ३०७,४०७ यापुढवी [बालुकापृथ्वी ] जी० ३।१८५, १८८ वालुासंचार [ बालुका संस्तारक ] ओ० ११५ वावण्ण [ व्यापन्न ] जी० ३१८४ वातरि [ द्विसप्तति ] ओ० १४६ वावी [ वापी ] ओ० ६, ६६. रा० १७४, १७५, १८० जी० ३।२७५, २८६, २८७, २६२, ५७६, ५६७,६६४, ८७५, ८८१,६४८ वास [ वर्ष ] ओ० ६८,८६ से १५, ११४,१४०, १४१, १४५, १५४,१५५,१५७ से १६०, १६५, १६६, १८८, १६२. रा ८ से १०,१२,१३, १५,५६,२७६,२८१, ६६८, ७६६, ८०५,८१६. जी० ११५१, ५५,५६,६१,६५,७४,८२,८७,६६, १०१,१०३,१११,११२, ११६, ११६,१३३, १३६, १३७, २१३५ से ३६,४१,६६,७३,६२, ६३,६६,६७, १०८, ११०,१११, ११८, १२६, १३६; ३३१५५,१८६ से १६२, ४४५, ४४७, ७८५,७८६,७६५,८४१, १०२७ से १०३०, १०३८, ११३१, ४३,६,११,१२,१६; ५५, ६,१०,१२,१४,१५,२८,२६; ६१२,६६ ७३, १३ : ६१२,४,२१०, २१४, २२४,२२८,२३४, २४१, २६६, २७७ वास [वास] रा० ३०,६८३,७०६. जी० ३१२८३ Tea [ बालाय ] जी० ३७८८,७८६ बालगोतिया [३०] बालाग्रपोतिका ] जी० ३३६०४ बास [ वृप् ] - वासंति. रा० १२. जी० ३।४४७ - वासह. रा० ६ वासंति [ वासन्ती ] जी० ३१५६७ वासंतिकलया [ वासन्तिकलता ] जी० ३३५८४ वासंतिमंडवग [ वासन्तीमण्डपक] रा० १८४ वासंतमंडवय [ वासन्तीमण्डपक] रा० १८५ वासंतिध [लया ] [ वासन्तिकलता ] जी० ३१२६८ वासंतियलया [ वासन्तिकलता ] ओ० ११. रा० १४५ वासंतियलयाविभत्ति [ वासन्तिकलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ वासंतियागुम्म [ वासन्तिकागुल्म ] जी० ३२५८० वासंतिला [ वासन्तीलता ] जी० ३१२७७ ८६६ वारुणि [ वारुणी ] जी० ३१८६० वारुणिकंत [ वारुणिकान्त ] जी० ३१८६० areforder [ वारुणीवरोदक ] जी० ३।८५७ वारुणी [ वारुणी ] जी० ३।५८६ वारुणोद [ वारुणोद] जी० ३१२८६ वारुणोदय [ वारुणोदक ] जी० ११६५ arenter [ वारुणोदक ] रा० १७४. जी० ११७४ बाल [ व्याल ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३३००,६२५,८२२ बाल बाल रा० १६०,२५६. जी० ३/३३३, ४१७ वालग [ व्यालक] ओ० १३. रा० १७, १८, २०, ३२,३७,१२६. जी० ३।२८८, ३००, ३११, ३७२ वालरूवग [ व्यालरूपक] रा० १३० वालरूवय [ व्याल रूपक] रा० २६४,२६६ से २६६, ३१२,४७३. जी० ३३४५६, ४६१, ४६२, ४७७,५३२ वालवोsय | बालवीजित ] ओ० ६३ वालवीयणय [ वालवीजनक ] ओ० ६६ वालवणी | वालवीजनी ] ओ० ६७ वाली [ दे० ] रा० ७७ वालुभा [ बालुकाप्रभा ] जी० ३।३५, ४१, ४३, ४४,६६, ११२ वालुया [ बालुका ] रा० १३०, १३७, १७४, २४५. वायमंडलिया - वासं तिलया Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासंती मंडवग- विक्खंभ वासंतीमंडवग [ वासन्तीमण्डपक ] जी० ३।२६६ वासधर [ वर्षधर ] रा० २७६. जी० ३१२१७,२१६ से २२१,२२७,४४५,६३२, ६६८,७६५, ८४१, ६३७ वासपरिया [ वर्षपर्याय ] ओ० २३ वासवद्दलय [ वर्ष बालक ] रा० १२३ वासहर | वर्षधर ] रा० २७६. जी० ३/४४५, ७७५,७६५ वासा [ वर्षा ] रा० ६,१२ वासावास [ वर्षावास ] ओ० २६ artoons | वार्षिक ] रा० १६७. जी० ३३२६६ वासिता [षित्वा ] रा० २० वासी [वासी ] ओ० २६ वासुदेव [ वासुदेव [ ओ० ७१. जी० ३।७६५, ८४१ वासेत्ता [वर्षित्वा ] रा० २० aror | वाहन ] ओ० १४,२३,५२,५६,६६,१४१. रा० ६७१,६७४,६७५,६८७, ६६५, ७८७,७८८ ७६०,७६१,७६६ वाहणसाला [ वाहन शाला ] ओ० ५६ वाहणा [ उपानह् ] ओ० ११७ वाहा [ बाहु ] जी० ३१५६७ वाहि [ व्याधि ] ओ० ७४१२. जी० ३।१२८, ५६७ वाहित | व्याहृत ] जी० ३।२३६ fa [ अपि ] ओ० ६७. रा० २७६ विअट्टच्छउम [ विवृत्तछद्मन् ] जी० ३३४५७ fuse [ द्वितीय ] ओ० १८२ विजक्कम [ वि + उत् + क्रम् ] ---विउक्कमंति जी० ३१८७ विल | विपुल | ओ० १, २, ५, ८,१४,१६,२३,४६, ५२, ५५, ६८, १४१, १४७, १४६, १५० रा० ७, १५,३२,२२८,२७८, २७६,२८१,२६१,२६४, २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६७१,६७५, ६८०,६८१,६८३,६८४,६८७,६९५.६६६, ७३३ ७००,७०२,७०४,७०८, ७०६, ७१४,७१६, ७६५,७७४,७७६,७८७,७८८, ७६६८०२, ८०८,८१०,८११. जी० ३३११०,११७, २७४, ३७२,४६१,४६२.४६५, ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५६६ विलकयवित्ति [ विपुलकृत वृत्तिक] ओ० १६ विजलमs [ विपुलमति ] ओ० २४. रा० ७४४ / विउव्व | वि + कृ ] - विउव्वइ रा० ३२. -- विउव्वंति रा० १०. जी० ३।११०. - विउव्वति रा० १६. विउव्वाहि रा० १७. - विउवि. जी० ३११११६. - विउब्विस्संति. जी० ३११११६ विषिणिडिपत्त [ विक्रिर्याद्धप्राप्त ] ओ० २४ विवणा [विकरण | जी० ३११२७१४,१२६ २ से ४ वित्त [ विकर्तुम् ] जी० ३१११० विव्वित्ता [ विकृत्य ] रा० १० जी० ३।११० faston [ विकृत ] ओ०४६ विउमाण [ विकुण] जी० ३१११०,१११५ fareerग [ व्युत्सर्ग] ओ० ३८,४३,४४ विस्तग्गारिह | व्युत्सगर्ह ] ओ० ३६ विओग | वियोग ] ओ० ४६ विओसरणया [ व्युर्जन ] ओ० ६६,७० रा० ७७८ विंद [ वृन्द ] स० ६८३. जी० ३१५८६ विहणिज्ज [ बृंहणीय] ओ० ६३ foreseea [ वैकक्षसूत्रक] १० २८५ freee [ विकल्प ] ओ० ५७. जी० ३१५६४ fafe | विकृष्ट ] ओ० १. रा० ६५३ विकुस [विकुश ] ओ० ८, १० जी० ३.३८६,५८१ से ५८३,५८६ से ५६५ विक्कम | विक्रम ] ओ० १६,२३. जी० ३३१७६, १७८, १८०,१८२, ५९६ विविकरिज्माण [ विकीर्यमाण ] रा० ३० विक्खंभ | विष्कम्भ ] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६, १२४,१२६ से १२६,१३७.१७०, १८६,१८८, १८६, २०१,२०४ से २१२,२१८, Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ विक्खरिज्जमाण-विज्जुदंर २२१,२२२,२२४,२२६,२२७,२३०,२३१, २३३,२३८,२३६,२४२,२४४,२४६,२४७, २५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी. ३१५१ ८१,८२,८६,१२७,२१७,२२२,२२६,२६० से २६३,२७३,२६८,३००,३०७,३१०,३५१ से ३५५,३५८,३५६,३६१,३६२,३६४,३६५, ३६८ से ३७४,३७६,३७७,३८०,३८१,३८३, ३८५,३८६,३६२.३६३,३६५,४००,४०१, ४०४,४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५, ४२७,४३७,५७७,६३२,६३४,६३६,६४२, ६४४,६४६,६४७,६४६,६५३,६५५,६६१, ६६३,६६८,६७१ से ६७५, ६७६,६८३,६८५, ६८६,७०६,७२३,७२६,७३२,७३६,७३७, ७५४,७५६,७५८,७६२.७६५,७६८,७७०, ७६४,७६५,७६८,८१२,८२३,८३२,८३५, ८३६,८५०,५८२,८८४,८८५,८८७,८८८, ८६१,८६३ से ८६५,८६७,८९६ से १०१, १०६,६०७,६१०,६११,६१८,९५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ विक्खरिज्जमाण [विकीर्यमाण] जी० ३१२८३ विक्खेवणी [विक्षेपणी] ओ० ४५ विग [ वृक] जी० ३८४,२७७,६२० विगय [विगत ] जी० ३३०४ विगसिय [विकसित ] रा० ८,७१४ विगोवइत्ता विगोप्य] ओ० २३. रा० ६६५ विरगह [विग्रह] ओ० ५६ विग्गहिय [विगृहीत] जी० ३१५६८ विचरिय [विचरित] जी० ३३११८,११६ विचिक्की | दे० रा. ७७ विचित्त | विचित्र | ओ० ६,४७,४८,६३,७२. रा० १७३,२२८,६८१. जी० ३।२७५,२८५, ३८७,५८७,५८६,५६१,६७२ विच्छड्डइत्ता विच्छई | मो० २३ विच्छड्डित्ता [विच्छद्य ] रा० ६६५ विच्छड्डिय [विदित] ओ० १४,१४१. रा०६७१, ७६६ विच्छविय [विच्छिविक] जी० ३१६६ विच्छिण्ण [विस्तीर्ण] ओ० १४,१६. रा० ६७५, ७७४. जी० ३।२६१,३५२.५६६,५६७,६३२, ६३६,६८६,८.२ विच्छिन्न [विस्तीर्ण] रा०६७१ विच्छिप्पमाण [विस्पृश्यमान] ओ० ६६ विच्छ्य [वृश्चिक] जी० ३८५ विजढ वित्यक्ता जी. ३१५४,५६ विजढपुस्व [वित्वक्तपूर्व जी. ३.५४,५६ विजय [विजय ] ओ० २०,५३,६२,६४,६८,१९२. रा०१२,४६,५०,५२,५६,७२,११८,१३७, २३१,२४७,२७६,२७६,६६५,६८३,६८६, ७०७,७०८.७१३,७२३. जी०३११८१,२९४ से ३०७.३१५,३३५,३३६,३३६ से ३५१,३७२, ३६३,४०२,४१०,४२६,४३२,४३५,४३६ से ४५७,५५५ से ५६५,६०१,६३८,६६०,६६५, ७०१,७०७ से ७१०,७१३,७६२,७७५.७६६, ८००,८१३,८१४,८२४,८२५,८५१,८६८, ६१६,६३७,६३६,६४०,९४४ विजयदूस [विजयदूप्य ] रा० ३८,३६. जी० ३।३१२,३१३,३३८,६३४,८६२ विजया [विजया] जो ० ३१३५०,३५१,३५४,३५५, ३५७,३५८,३६०,४३६,४४२,४४५ से ४४८, ५५४,५५५,५५७,७०४,७१०,७३६,७४४,९०२ विजाति | विज्ञाति] जी० ३१७८१,७८२ विज्जा [विद्या] ओ० २५. रा० ६८६ विज्जावर | विद्याधर] जी. ३७६५ विज्जाहर | विद्याधर ओ० २४. रा० १७,१५, २०,३२,१२६. जी. ३१२८८,३००,३७२,७६५, ८४०,८४१ विज्ज [विद्युत् ] ओ० ४८,५७. रा० १३३. ___ जी० १७८ ; ३३३०३,५६०,११२२ विज्जुकार [विद्युत्कार ] जी० ३१८४१ विज्जत [विद्युत् ] जी० ३१६२६ विज्जवंत [विद्युद्दन्त ] जी० ३१२१६ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्जुप्पभ-विदेह ७३५ विज्जुप्पभ [विद्युत्प्रभ] जी. ३७४६ जी० ३१३७२,४५७ विज्जुष्पभा [विद्युत्प्रभा] जी० ३।७५१ विणिम्मुयमाण [विनिर्मुञ्चत् ] जी० ३३११८ विज्जुमुह [विद्युन्मुख जी० ३।२१६ विणिवाय [विनिपात ] ओ० ४६ विजयंतरिय [विद्युदन्तरिक] ओ० १५८ विणीत [विनीत] जी० ३१७६५,८४१ विज्जयाहत्ता | तितायित्वा] रा० १२ विणीय विनीत] ओ० ६१. रा० ७६५,७६६, /विज्जुयाय [विद्युताय]-विज्जुयायंति. रा० १२. ७७०,८०४. जी० ३१५६८,७६५,८४१ जी० ३४४७ विणीयया [विनीतता] ओ० ११६ विज्जयार [विद्युत्कार] जी० ३६४४७ विष्णय [विज्ञक] रा० ८०६,८१० विज्सव [वि+ध्यापय् ] -विज्झवेज्जा. रा० ७६५ विण्णव [वि + ज्ञपय]-विष्णवेहि. रा०६६६ विज्झाय [विध्यान ] रा० ७६५ विष्णाण [विज्ञान] ओ० २३. रा० ७५८,७५६, विदुर [विप्टर] जी० ३१५८७ ७६५,७६६,७७० विडंग [विटङ्क] जी० ३१५६४ वितण्ह [वितृष्ण] जी० ३३१०६ विडाल [बिडाल ] जी० ३१६२० विततावितत] रा० २४,११४,२८१. विडिम दे० विटप} ओ० ५,८,५१. रा० २२७, जी० ३।२७७,४४७,५८८ २२८. जी० ३।२७४,३८६,३८७,५६८,६७२, विततपक्खि [विततपक्षिन्] जी० १६११३; २०१० विणइय [विनयित रा० ७२३ वितार [वितार] रा० ७६ वितिक्कत व्यतिक्रान्त ] रा०८०१ विण? [विनष्ट ] जी० ३१८४ विणमिय[विनत] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. वितिमिर वितिमिर जी० ३१५८६ जी० ३।२६८,२७४ वित्त [वित्त] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५ विणय [विनय] ओ० २,२३,३८,४०,४७,५२,५६, वित्ति वृत्ति] ओ०६१ से ६३,१६१,१६३. रा० ७५२,७७६ । ५७,५६,६१,६६,७०,८३,१३६. रा० १०,१४, १८,६०,७४,२७६,६५५,६७१,६८१,६८७,६६२, वित्थड [विस्तृत ] ओ० ७१. रा० ६१. " जी० ३८१,८२,८३८:१५,१०७३,१०७४ ७०७,७१६,७३७,७७७,७७८. जी०३१४४५, वित्थरतो विस्तरतस् ] जी० ३१२५६ ५५५ विस्थार [विस्तार जी० ३.७३ विणयमओ विनयतस् ] स० ६६४ पिस्थिण्ण विस्तीर्ण ओ०१४१. रा० १७,१८, विणयतो [विनयतस् ] जी० ३१५६२ १२४,१२७,७६६. जी. ३१५७७,६६१,७३६, विणयपडिवत्ति [विनयप्रतिपत्ति] रा० ७७६ १०३६ विषयसंपण्ण [विनयसम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ विदिण्णविचार [विदत्तविचार] रा० ६७५ विणासण | विनाशन] रा०६,१२,२८१. विदित (विदित] ओ० २६ जी० ३१४४७ विदिसा [विदिशा] जी० ३।६१८ विणिच्छय विनिश्चय रा०६८९ विदिसीवाय [विदिग्वात जी० ११८१ विणिच्छिय [वि निश्चित ] मो० १२०,१६२. विदपरिसा [विदवत्परिषद ] रा०६१ रा० ६६८,७५२,७८६ विदेस [विदेश] ओ० ७०. रा० ८०४ विणिम्मुयंत विनिर्मुञ्चत् ] रा० ३२,२९२. विदेह [विदेह ] ओ० ६६. जी० २१८६ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेहजंबू-वियाणय विदेहजंबू [विदेहजम्बू ] जी० ३१६६६ विधाण [विधान ] जी० ३१२५६ विधि [विधि ] जी० ३६१६०,२५६,४४७,५८७ से ५८६,५६५,६३४ विपंची [विपञ्ची] रा० ७७. जी० ३१५८८ विपक्क विपक्व | जी० ३।५६२ विपरिणामाणुप्पेहा [विपरिणामानुप्रेक्षा] ओ०४३ विपुल [ विपुल ] रा०६८६,७६५. जी० ३१४४४, ४४५,४४७,४५६,५६६ विप्पइट्ट [विप्रकृष्ट] जी० ३।५६१ विघ्पओग [विप्रयोग] ओ० ४३ विप्पजहणा विप्रहाणि | ओ०१८२ विप्पजहिता | विप्रहाय] ओ० १८२ विप्पमुक्क [विप्रमुक्त ] ओ० १४,२५,२७,३६, १७२,१६५८. रा० १२,१७३,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६७१,६८६, ८१३. जी. ३२२८५,४५७ विप्परिणामइत्ता [विपरिणमय्य | जी० ११५० विप्पोसहिपत [विघुडौषधिप्राप्त ] ओ० २४ विस्फालिय [ विस्फारित ] जी० ३१५९६ विफलीकरण [विफलीकरण] ओ० ३७ विभम [विभ्रम] जी० ३६५६४ विभंगणाणि [विभङ्गज्ञानिन् ] जी० १।६६; ३।१०४,११०७, ६३१६७,२०३,२०७,२०८ विभत्त | विभक्त | जी० ३१५६७ विभयमाण [विभजमान] जी० ३८३१ विभति | विभक्ति] जी० ३।५६४ विभाग [विभाग] जी० ३।५६१ विभासा [विभाषा] जी० ३।२२७ विभूइ [विभूति ] ओ० ६७. रा० १३,६५७ विभूति [विभूति ] जी० ३१४४६ विभूसण [विभूषण] ओ० ४६ विभूसा | विभूषा] ओ० ३६,६७. रा० १३, ६५७. जी० ३।४४६,११२१ से ११२३ विभूसित । विभूषित] जी० ३।४५१ विभूसिय [विभूषित | अ०६३,७०. रा० २८५, २८६,८०५. जी० ३।४५२ विमउल [विमुकुल | ओ०१ । विमउलिय [विमुकुलित जी० ३।५६० विमल | विमल आ० १५,१६,४६,४३,५१,६३, ६४,१६४. रा० ३२,५१,६६,७०,१३०,१५६, १७४,८८,२९२,६६४,६७२,६८३. जी० ३३११८,११६,२८६ ३००,३३२,३७२, ४५४,४५७,५६२,५८६,५६६,५६७८६६ विमलप्पभ विमलप्रभ जी. ३१८६६ विमाण | विमान ] ० ५१. रा० ७,१२ से १४, १२४ से १२६,१२६,१६२,१६३,१६९.१७०, २७४,२७६,२७६,२८१,२८२,६५४,६५५, ७६६, जी० ३११७५ से १८२,२५७,८४२. ८४५,१०२४ से १०२६,१०३८,१०३६, १०४३,१०४८,१०५६ से १०५९,१०६५, १०६७,१०७१,१०७३,१०७५ से १०५१, १०६७,११११ विमाणावास [विमानावास रा० १२४. जी० ३.२५७,१०३८,१०३६,११२८ विमुक्क [विमुक्त ] ओ० १६५।६,१८,२१. जी० ३१४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४,५६७ विम्हावण [विस्मापन] ओ० ११६ वियट्टछउम [ विवृत्तछद्मन् ] ओ० १९,२१,५४, रा०८ वियड |विकट ] औ० १६. जी. ३१५६६,५६७ वियडावति | विकटापातिन् ] जी० ३७९५ वियडावाति | विकटापातिन् । रा० २७६. जी० ३।४४५ वियसंत | विकसत् | ओ० ४६ वियसिय | विकसित ओ०५१,४७,५४. रा० १३७. जी० ३१३०७ वियाणंत [विजानत् ] ओ० १६०१६ वियाणय [विज्ञायक | रा०५०४ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वियाणित्ता-विसय विवच्चास विपर्यास रा० ७६७,७६८,७७६, वियाणित्ता [विज्ञाय] ओ०१४६. रा०८१० वियाणिय | विज्ञात ] ओ०७० वियालचारि | विकालचारिन् । ओ० १४८,१४६. रा० ८०६.८१० विरइय विरचित] ओ०६,६३. जी० ३१२७५ विरचिय ! विरक्ति | रा०६६,७० विरत [विरत | ओ० ४६ विरय [विरत | श्रो० १६२ विरल्लिय | विरल्लित] जी० ३२५६१ विरसाहार | विरसाहार ओ० ३५ विरहित विहिन जी० ३।७६१,८४४ विरहिय विहित ] ओ० ३७. जी. ३१८४७ विराइय [विगजित ] ओ० १४,४७,५७,७२. E09०,६७१. जी० ३१५६७,११२१ विरागया | विलगता ओ० ४६ विरायंत (विराजत् । ओ० २१,५४,५७. रा०८, विवणि [विपणि ओ०१. जी० ३.६०७ विवर विवर| रा० ७५४ से ७५७,७६३ विवागविजय | विशाकविचय औ० ४३ विवागसुयधर विपायाश्रुतधर | ओ० ४५ विवाह [विवाह | जी० ३३६३१ विवाहपण्णत्तिधर | व्याख्याप्रज्ञप्निधर | ओ० ४५ विवित्तसयणासणसेवणया विविक्तणनासन सेवनता ओ० ३७ विविध विविध जी० ३।३०२,३८७,५८८,५६४ विविह विविध | ओ० १,४६,५१,११७. रा०२०, ४०,१३२,१३७,२२८,७६६. जी०६२६५, २८८,३०७,३११,५८६.५८७,५८६ से ५६३, ५६५,६७२ विवेग | विवेक ] ओ०४३,७९ से ८१ विवेगारिह { विवेकाह] ओ० ३६ विस । विषरा० ७६१,७६४,७६५ विसज्जित [विजित रा०६८५ विसज्जिय विजित ] ओ० २१. रा०६८० ६६६,७००,७०२,७१० विसप्पमाण | त्।ि ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,६३ ७८,८०,८१. रा०८,१०,१२, से १४.१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८, जी० ३।४४३,४४५,८४७,५५५,५६७ विसभक्खियम | विषक्षितक ओ०६० विसम | विषम | ओ. १७१. जी० ३१६२३,७०५, ७६७,८११,८२२,८४६ विसय विशद रा० १३३. जी० ३१३०३,५६२, विरायमाण | विराजमान] ओ० १ विराहय [ विसाधक ] १० ६२ विरिय | वीर्य] जी० ३१५६२ विरुद्ध विरुद्ध | ओ० ६३ विस्वरूव । विरूपरूप] रा० ८१६ विलंबिय बिलम्बित • १०३.२८१. जी० ३.४४७ विलवणया विलपनता | ओ० ४३ क्लिविय | विलपित ] ओ० ४६ विलसिय विलासित ओ०१६ विलास विलाय ओ० १५. रा० ७०,६७२, ८०६.८१०. जी० ३४५६७ विलासित विलाशित जी० ३ ५९६ विलोण विलीन जी० ३१८४ विलेवजलिपन ओ०६३,१६१,१६३,१७० विलेवणविहि वि पनविधि ] १० १४६. रा० ८०६ विव [इव | ओ० १६. रा० १३३. जी० ३३१११ विसय विषय ] ओ० २३,३७. रा० १५. जी० ३१९७६,९७७ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसह-वाह विसह | विषह । ओ० २७. रा० ८१३ विहग विग] ओ०१३,१६,२७. रा० १७,१८, विसाण विवाण | ओ० २७. रा. ८१३ २०,३२,३७,१२६,८१३. जी० ३१२८८,३००, विसाय विवाद ओ०४६ ३११,३७२,५९६ विसारय | विशारद ] ओ० ६७,१४८,१४६. विहत्थि [विहस्ति ] जी० ३१७८८ रा०६७५,८०६,८१० विहर | वि--ह। -विहरइ. ओ० १४. रा० विसाल [विशाल] ओ० ६४. रा० २२८. जी. ६. जी० ३१२३६.----विहरति.ओ० २३. रा० ३।३८७,५९७,६७२ १८५. जी. ३.१०६.-विहरति. रा० ७. विसाला | विशाला] जी० ३१६६६,९१५ जी० ३१२३४.--विहामि. २०७५२. - विसिट्ठ | विशिष्ट ] ओ० १६,६३. रा० ३२,५२ विहराहि. ओ०६८. रा०२८२. जी. ३.४४६ ५६,१५,२३१.२४७. जी० ३।२६७,३७२, -.-विहरिस्सइ. रा० ८१५-...विहारस्सति. ३६३,५६२,५६६,५६७,६०४,८५७ रा० ८०२.- -विहरिस्पामि. रा. ७८७. विसुज्झमाण [ विशुध्यमान] ओ० ११६,१५६ --विहरज्जा. ओ० २१ विसुद्ध विशुद्ध] ओ० ८,१०,१४,४६,१८३,१८४. विहरंत | विहरत् रा० ७७४ रा० २६२,६७१. जी० ३१३८६,४५७,५८१ विहरमाण [विहत् ] ओ०१६,३०,७६,७७,६२, से ५८३,५८६ से ५६५ ६५,११४,१५३,१५८,१५६,१६५. रा०६८६, विसुद्धलेस्स [विशुद्धलेश्य] जी० ३।१६६,२०१, ७११,७७४,८१६ २०३ से २०६ विहरित्तए |निहर्तुम् ] ओ० ११७. रा० ७६१. विसेस । विशेष ओ० १९५१७, रा. ५४,१८८. ___ जी० ३११०२४ जी० ३११२६५,२१७,२२६।५,३५८,५७६, विहरिता [विहृत्य ] ओ० १५५ ८३८१३ विहव | विभव] रा० ५४ विसेसहीण विशेषहीन जी० ३१७३ विहस्सति [ वृहस्पति ओ० ५० विसेसाधिय विशेषाधिक | जी० ३१८२ विहार वि.+ घटय ]--विहाडेइ. रा०२८८. विसेसाहिब विशेषाधिक ओ० १७०,१६२. जी० जी० ३१५१६..-विहाडेति. ओ० ७४१५. १९१४३,२०६८ से ७२,९५,६६,१३४ से १३८, -विहाडेति. जी० ३१४५४ १४१ से १४६; ३१७३,७५,८६,१६७,२२२, विहाडित्ता विघट्य] रा०२८९ २६०,३५१,३६१,६३२,६६१,६६८,७३६, विहाडेत्ता [विघटय ] स० ३५१. जी० ३।४५४ ८१२,८३२,८३५,८३६,८८२,१०३७,११३८; विहाण | विधान ] रा० ७१,७५. जी० ११५८,७३, ४.१६ से २२,२५,५१८ से २०,२५ से २७ ७८,८१ ३१ से ३६,५२,५६,६०,७१२०,२२,२३, विहाणमग्गण विधानमार्गण] जी० १३४,३६, ८.५है।५,७,१४,५५,१५५,१६६,१६६,१८४, ३६ १६६,२०८,२३१,२५० से २५३,२५५,२६६, विहार विहार] ओ०३०,१२,१५,११४.११५. २८६ से २६३ १५३,१५८,१५६,१६५. रा० ८१४,८१६ विस्संत [वियान्त] जी० ३।८७२ विहि [विधि} ओ०६३. रा० २८१. विस्सुयकित्तिय विश्रुतकीतिक ओ० २ जी० ३१४७५. ४७६,५८६,५८८,५६० से विहंगिया विहङ्गिका रा० ७६१ ५६५,८३८११३; ५।३० Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहिय- वे उव्वियनमुग्धात वियि [विदित] ओ० १५. २१० ६७२ विय [वित | जी० ३१५८० विहण | विहीन ] जी० ३।२१८,३६० atsain | अतिकान्त | ओ० १४३, १४४. ! रा० ८०२ वोवइत्ता [ व्यतिव्रज्य | ओ० १६२. रा० १२६. जी० ३३६३८ वीवयवाण [ व्यतित्रजत् ] रा० १०,१२,२७६. जी० ३२४४५ atra [ afच ] ओ० ४६. जी० ३१२५६ वीचिट्ट | वीचिपट्ट ] जी० ३१५६७ बीजेमाण [वीजयत् ] ० ३४१७ वीरगाह [ वीणाग्राह] ओ० ६४ वीणा [] रा ० ७७,१७३. जी० ३।२८५ सोग [ वीतशोक] जी० ३ ! ६२७ वीतिवता [ पतिव्रज्य ] जी० ३।७३६ वीतितत्ता [ व्यतिव्रज्य ] जी० ३।३५१ वीति [ वि + अति + व्रज् ] - वीतिवईसु. जी० ३३८४० - वोतिवइस्सति. जी० ३१८४० --- वोतियएज्जा. जी० ३८६ - वीतिवयंति जी० ३३८४० वोतिवयमाण [ व्यतित्रजत् ] रा० ५६. जी० ३१८६, १७६,१७,१८०, १-२ atatasत्ता | व्यतित्रज्य } २१० १२६ वीषि [ वीथि ] ० ३३३५५ वीरवलय [ वीरवलय ] ओ० ६३ वीरासणिय [ वीरासनिक | ओ० ३६ बोरिय] [ वीर्य ] ओ० ७१,८६ से ९५, ११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२, १६७. रा० ६१. जी० ३३५८६ aff | वीर्यलब्धि ] ओ० ११६ वीवाह | विवाह ] ० ३ १६१४ / वीसंद [ वि + स्यन्द् ] - बीदनि जी० ३।५८६ वोदित [ विस्यन्दित ] जी० ३८७२ वोसत्य | विश्वस्त ] ओ० १ areer [ftaar ] जी० ३।५८६ से ५६५ वीसाएमाण [ विस्वादयत् ] रा० ७६५, ८०२ वीसादणिज्ज | त्रिश्वादनीय ] जी० ३३६०२, ८६०, ८६६,८७२,८७८ वीहि । व्रीहि] जी० ३६२१ वीहि [ वीथि | जी० ३।२६८,३१८ वीहिया | वीथिका ] ओ० ५५. रा० २८१. जी० ३१४४७ ७३६ वीस | विशति ] जी० ३११३६ बुग्गामाण | व्युद्ग्राहयत् ] ओ० १५५,१६० √ बुच्च [ वच् ] –वुच्चद ओ० ८६. रा० १२३. जी० ३।२३६ - वुच्चति जी० ३१५८ -- वुच्चति रा० १२३. जी० ३।२३६ वुडुसावग [ वृद्धश्रावक ] ओ० ६३ वृद्धि [ वृद्धि ] जी० ३७८१,७८२,८४१ वृत्त | उक्त ] ओ० ५६. १० १०, १२, १४, १८, ६०,६३,६४,७४, २७६, ६५५, ६८१,७०१, ७०३,७०७,७२५,७ε२. जी० ३।४४५,५५५ वृप्पाएमाण [ गुसादयत् ] ओ० १५५, १६० वह [ व्यूह ] ओ० १४६. रा० ८०६ as [ व्येजित ] रा० १७३. जी० ६२८५ इतर [ वेदिकापुटान्तर] रा० १९७ aashee [finiफलक ] रा० १६७ बेइया | वेदिका ] रा० १७, १८, २०,३२,१२६, १६७. जी० ३१३७२, ६०४, ७२३, ७७६, ७७७, ७७६,६१० [वेदिकाबाहु ] रा० १९७ defore | विकारिन् ] ओ० ५१ वेध्विजं [ विकर्तुम् ] रा० १८ वेजव्वि [ वैक्रिय ] रा० २७६,२८० जी० ११८२, ६३, ११६,१३५; ३ । १२६१४,४४५, ८४२ सासरीर [वैक्रियकमिश्रकशरीर ] ओ० १७६ देउग्विलद्धि [वैक्रियधि] प्रो० ११६ artoon [वैवसमुद्घात ] जी० ३।१११२,१११३ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० देउब्वियसमुग्घाय-वेराणुबंध १४६ वेउब्वियसमुग्धाय [ वैक्रिपसमुद्धात | रा० १०,१२, वेदिया | वेदिका | जी० ३।२६६,२८८,३००,३७२, १८,६५,२७६. जी० ११८२, ३३१०८,४४५ ७६५,७६६ से ७७५,७७८ वेउब्वियसरीर वैक्रियशरीर ओ० १७६. वेवियापुडंतर | वेदिकापुटान्तर | जी० ३१२६६ जा०६।१७० वेदियाबाहा | वेदिकाबाहु | जी० ३१२६६ वेउवि सरीरि वैक्रियशरीरिन् जी० ६ १७०, वेदेमाण | वेदयत् | ओ० ८६ रा० ७५१ १७७,१८१ वेमाणिणो [वैमानिकी] जी० २.७१,७२,१४८, वेंट [वृन्त ] जी० ३।३८७,६७२ वेग वेग] ओ० ४६,५७ वेमाणिय वैमानिक ओ० ५०. रा० ७,११,१५ वेच्च व्युत, व्यूत | रा० ३७.२४५. जी. ३.३११, से १७,५५,५६,५८,५६,१८५,१८७.२७६, ४०७ २८६,२६१.६५७. जी० १११३५, २०१५,१६, वेजयंत [ वैजयन्त ) ओ० १६२. जी० ३.१८१, ४५,४६,७१,७२,६५,६६,१४८,१४६; १२३०, २६६,५६६,५६७,७०७,७११,७९६,८१३, ६१७,१०३८ वेय विद} ओ० २५. रा० ६८६,७७१. वेजयंती | वैजयन्ती] ओ०६४, ०० ५०,५२,५६, जी० २१४,११६; २११५१, ६६६ १३७,२३१,२४७. जी० ३।३०७,३६३,६१६, 1वेय वि.+ एज् |– वेथ इ. रा० ७७१.--वेयंति. जी० ३१७२६ १०२६ वेयंत (व्ये जमान ] रा० ७७१ वेडंतिय (पाय) (दे० ओ० १०५,१२८ वेडंतिय (बंधण) | दे० ] ओ० १०६,१२६ वेषण | वेतन रा० ७८७,७८८ वेढ | वेष्ट } २०० ७६७ वेयण [दे० विक्रय | रा० ७७४ वेढणग | वेष्टनक] जी० ३.५६३ वेषणा | वेदना | ओ० १७,४६,७१,७४.१६५. रा० ७५१,७६५. जी० ११८६, ३७७,११०, वेढित्ता [ष्टित्वः रा० ७६७ १२७१४,५,१२८।१,१२६७ वेढिमवेष्टिम | ओ०१०६,१३२. रा. २८५. वेयणासमुग्धा ! वेदनाम मुद्घात ) जी० ११२३,८२. जी० ३१४५१,५६१ वेणतिया । बनयिकी स० ६७५ वेषणिज्ज [वेदनीय ] ओ० ८६,१७१ वेणु वेणु जी० ३।५८८ वेयणीय [ वेदनीय | ओ० ४४ वेणुदेव (वेगुदेव जी० ३।२५० वेदिय । विदिक औ० २ वेणुसलाइ | देणुशलाकिको ] रा० १२ वेयालिया वेवालिकी| रा० १७३. वेव | वेद] ओ० ६७. जो० २११५१ । जी० ३:२८५ वेद | वेदय् ] - वेदति. जी० ३१११२ वेयावच्च [वैयावृत्य] ओ० ३८,४१ वेदणा | वेदना] जी० ३।१११ से ११५,११७, वेर [वै] जी० ३.६२७ १२८ वेरग्ग | वैराग्य ] ओ० ४६,७४१५ वेदणासमुग्धात [वदनास मुद्घात ] जी० ३।१११२. वेरमण [विरमण } आ० ७६,७७,७६ से ८१, १२०,१४०,१५७. ०६६३,६९८,७१७, वेदणासमुग्धाव वेदनास मुद्घात जी० ३।१०८, ७५२,७८७,७८६ वेराणुबंध वैराणुबन्ध] जी० ३२६१२ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेरिसिउणिज्झय ७४१ वोज्य [उह्य रा० २८५. जी. ३४५१ वोलट्टमाण व्यपलोटस् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसट्टमाण [विकमत् ] जी. ३१७८४,७८७ । वोसिर । वि-उत्- गज --को सिरामि. ओ० ११७. रा० ७६६ ब्य [इब ] ओ० १६. रा० १३७. जी० ३।३०७ स वेरि | वैरिन् ] जी० ३१६१२ वेरिय [वैरिक | जी० ३१६३१ वेरुलिय [वैडूर्य ] ओ० ६४. र१० १०,१२,१८, ३२,५१,६५,१५४,१५६,१६०,१६५,१७४, २२८,२५६.२७६,२६२. जी० ३१७,३३२, ३३३,३४६,३७२,३८७,४१७,४५७,६७२ वेरुलियमणि [वैडूर्यमणि जी० ३१२८६,३२७ बेरुलियमय | वैडूर्यमग्र ० १३०,१५३,२७०. २६२. जी० ३।३२२,४३५ वेरुलियामय वैडूर्यमय | रा० १६,१३२,१७५, १६०,२३६. जी० ३.२६४,२८७,३००,३०२, ३२६,३६८,४५७,६४३,८७५ वेलंधर | वेलवर) जी० ३१७३४ से ७३६,७४०, ७४२,७४५,७४७,७८१,७८२ वेलंब | वेलम्ब | जी० ३।७२४ वेलंबग | विडम्बक] ओ० १,२ वेलंबगपेच्छा [विडम्बकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३.६१६ वेलवासि वेलावासिन् । ओ० ६४ वेला वेला) ओ० ४६. जी० ३।७३२ वेलु | वेणु] १०७७ वेस वेष ] ओ० १५,४६,५३,७०. रा० ७०, १३३,६७२,८०४. जी० ३१३०३,५६७, ११२२ वेसमण | वैश्रमण ओ० ६५ धेसमणमह वंश्रमणमह | स०६८८. जी० ३।६१५ बेसाणिय वैवाणिक ] जी० ३१२१६,२२१ वेसाणियदीव विधाणिकद्वीप] जी० ३।२२१, २२५ वेसासिय | वैश्वासिक ओ० ११७. रा० ७५० से सस ओ० २,१२,१५,१६,३०,५४,६० से ६५, ७०,६७,१७०,१६४. रा० ७,८,२१,२४,३२, ३४,३६,३७,४२,४७,५०,५१,५६,५८,६७, ६६,७६,१२४,१४५,१५७,१६३,१६४,१६६, १७३,१८६,२०४ से २०६,२१६,२४३,२४५, २५५,२५६.२८०,६७२,६८१ से ६८३,६६१, ६६२,७००,७०३,७१४ से ७१६,७७१,८१५. जी० ३।३५,३६,४०,४१,४३,४४,४६,१७४, २६१,२६६,२६६,२७७.२८५,२८८,३००, ३०६,३०७:३११,३३५,३४०,३५०,३५२, ३५५,३५६,३६६,३७२,३७४,३७८,३८७, ३६५,४०५,४०७,४१२,४१६,४२५,४४६ से ४४६,५५७,५६३,५६२,५६६,६५८,६६३, ६७२,६७३,६८५,७२८,७३३,७३७,७४०, ७४२,७४५,७५०,७६२.७६५.७६८,७७०, ८३८११२,१००६,१०३३,१०५४ स स्व | ओ० ६४,७१. १०६,११,१३,५६,१५४ २८१,६८३,७२३,७२६,७३२,७३७,७४७, ७७४. जी० ३३२७,३५९ सइ [स्मृति ओ० ४३ सइंदिय [सेन्द्रिय ] जी० ६:१५ से १७,६६ सइय [शतिका] ओ० १८७. जी० ३.६८१ सउण [शकुन | ओ० ६. ग० १७४. जी० ३१११ः ११६,२७५,२८६,६३६ सउणस्य [शकुनरुत] ओ० १४६. रा०८०६,८० सउणि [शकुनि ] जी० ३१५६८ सणिज्य [शकुनिध्वज] रा० १६२. जी० ६:३३५ देहाणसिय [ वैखानसिक ] ओ० ६० वोच्छिण्णय व्यवच्छिन्नक] रा० ७५३ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ संकंत-संगल्लि संकंत सक्रान्त] रा० ७५३ संकड [सङ्कट] ओ० ४६. रा० २८५. ___जी० ३४५१ संकप्प सङ्कल्प ] रा०६.२७५,२७६,६८८,७३२, ७३७,७३८,७४६,७४८ से ७५०,७६५,७६८, ७७३,७७७,७६१,७६३ जी० ३६४४१,४४२ संकम [सङ्क्रम] जी० ३८३८.१२ संक्रमण [सङ्क्रमण] जी० ३३८३८।१२ संकला शृङ्खला] रा० १३५,२७०. जी० ३१३०५,४३५ संकसमाण [सङ्कसत जी० ३३११८,११६ संफिट्ट [सङ्कृष्ट ] ओ० १ संकिलिस्स ! सं+क्लिश् ] ----संकिलिस्संति. ओ० ७४१४ संकु [शङ्कु) रा० २४. जी० ३।२७७ संकुइय [शङ्कुचित] ओ० ६६. जी० ३८० संकुचियपसारिय [सङ्कुचितप्रसारित] रा० १११, २८१. जी० ३।४४७ संकुय [सङ्कुचजी० ३८३८११५ संकुल सङ्कुल ] ओ० ४६. रा० १४ संकुसुमिय [ सकुसुमित] र१० ४५ संख शङ्ख] ओ०१६,२३,२७,४७,६७,१६४. रा० १३,२६,३८,७१,७७,१६०,२२२,२५६, ६५७,६६५,८१३. जी० ३२८२,३१२,३३३, ३८१,४१७,४४६,५६६,५६७,६०८,७३४, ७३५,७४२ से ७४४,८६४ संखसाङ्ख्य] ओ०६६ संख (पाय) [शङ्खपात्र] ओ०१०५.१२८ संख (बंधण) शिबन्धन | ओ० १०६,१२१ संखतल [शङ्कतल] रा० १३०. जी० ३।३०० संखषमग [शङ्खमायक] ओ०६४ संखमाल [शङ्कमाल ] जी० ३१५८२ संखवाणिय [ शङ्खवणिज्] रा० ७३७ संखवाय शङ्कवादक] रा० ७१ संखाण [सङ्ख्यान] ओ०६७ संखादत्तिय [सङ्ख्यादत्तिक],ओ० ३४ संखिज्ज [नङ्ख्येय] जी० ४१११ संखित्त सिक्षिप्त ] रा० १२३. जी० ३।२६१, ३५२,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६,८८२ संखित्तविउलतेयलेस्स सिक्षिप्तविपुलतेजोलेश्य ओ० ८२. रा०६८६ संखिय [शाजिक) ओ०६८ संखियवाय [शङ्खिकावादक | रा० ७१ संखिया [शङ्खिका] रा० ७१,७७. जी० ३।५८८ संखेज्ज [ सङ्ख्येय] स० १०,१२,१८,६५,२७६. जी० ११५८,७३,७८,८१,१०१,१३४,२१६३, १२१,१२६, ३१८१,८२,८६,११०,४४५,८५०, ८५२,८५५,८५८,८६१,८६४,८६७,८७०, ८७६,६२४,६२६,१०७३,१०७४,१०५३, १०८४,१११५:४८,१२ से १४,१६, ५.१०, १२ से १५,२९,४१ से ५०,५६,५८,८१३; ६।३,४,२२३,२२८,२५६ संखेन्नइभाग [सङ्ख्येयतमभाग] जी० १।६४, १२४,१३५ संवेज्जगुण [सङ्ख्येयगुण] जी० २१६६ से ७२, ६५,१६,१३६ से १३८,१४१ से १४६; ३।७३, ७५,१०३७,४१२२,२५; ११६,२०,२६,२७, ३५,३६,५२,५८,६०।६।१२,६।३७,६४,१३०, १६६,२२० संखेज्जतिभाग [मड्ड्येयतमभाग] जी० ३१६१, १०८७ संखेज्जभाग [संख्येयभाग] जी० ३.६१ संखेज्जहा [संख्येयधा] रा० ७६४,७६५ संग सङ्ग] ओ० १६८ संगत मङ्गत] जी० ३१५६६,५६७ संगतिय [साङ्गतिक ] जी० ३१६१३ संगय [सङ्गत] औ० १५.१६ रा०६६,७०,७५. ६७२,८०६,८१० जी० ३५९७ संगामिय [साङ्गामिक ओ० ५७ संगल्लि [दे०] ओ० ६६ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगोवंत-संठिति संगोवंग [ साङ्गोपाङ्ग ] ओ०६७ संघ | सङ्घ] ओ० ४० रा० ३२,२०६२११ जो० ३७२ संघण [संहनन | ०८२,१८५०१११४, १७,८६,६५१२८, १३५ ३६२, १२७/३, ५६८, १०६० संघयणिन् जी० १३६५, १०१,११६, १३०. ३६२,१०६० संघरिसस | संघर्षमुत्थित] जी० ११७८ संघाच्च नृत्य ] ओ० ४१ संघाइम | सङ्घातिए | ओ० १०६,१३२, रा० २८५ ० ३१४५१,५६१ संघाड [ बाद ] रा० १४१,१६२ जी० ३।२६४ २६६.३१८,३५५ संघाडग[स | श० १६० संघात (तत्व) जी० ३।१०६० संधाय [ङ्घात] ओ० ४७,७२. जी० ११७२।२,३ संघात [ ] जी० १११३५; ३३९२ संचय [य] ओ० ४६ जी० ३३५६८ √ संचाय [ सं + शक् ] -- संचाएइ. रा० ७५१ - संचाति रा० ७७४ संच एज्जा. डी० ३।११६ -संचाएति. रा० ७५३ जी० ३३११५- संचाएमि रा० ६६५ √ संचिट्ठ [ सं + ष्ठा ] संचिड. रा० ७०१ -पंचिति. रा० ३४ जी० ३.७२५ संचिणा [ संस्थान ] जी० ११४१ २१६२,८३, ८५,१५०, १५१ : ५१२६; ६.७ ७३६,८१३ १३,१६,३६,१५७,१६८, १८३,२६३ संछण्ण [ सञ्छन्न ] जी० ३ ११८,११६,२८६ संछन्न | सञ्छन्न | रा० १७४ संजताजत | संयतासंयत | जी० ९.१४४ संजम ०२१ से २४,४५,४६,५२,८२ ० ८, ६, ६८६,६८७,६८६,७११,७१३,८१४, ८१७ संजमा संजम | संयमासंयम | जो० ७३ संजय [संगत! ० ४६ जी० ६ १४१,१४२,१४६ १४७ संजया संजय [संयतासंयत | जी० ९११४१, १४६, १४७ संजायको हल्ल [संजातकोतूहल | ओ० ८३ संजाय संसय ( सञ्जातसंशय | ओ० ८३ संजायसड्ड [ सञ्जातश्रद्ध ] ओ० ८३ संजुत [ संयुक्त ] रा० ७५३,७६५ जी० ३१५६२ संजोग [ संयंग] ओ० २८,४६ ७४३ संझभराग [ वन्ध्याराग | रा० २० जी० ३२८० संज्ञा | सन्ध्या | जी०३३६२६ संज्ञाविराग | सन्ध्यादिराग] जी ३५८६ संठाण [ संस्थान ] ओ० ४७,५०,०२,८२, १७०, १८६,१४,१६५३, ४, ८ रा० १२४, १२७, १३२,१८५ जी० ११५, १४,७२, १२८,१३६; ३२२,४८ से ५०,७८, ८६, १२७१, ३, १२६/३, ४,२५७,२६०,२६१, २६७,३०२, ३५२,५७७, ५१८,६०४,६३२,६६१,६८,७०४, ७२३, ७२६,७३६,७९६,८१०,८२१,८३१,८३६, ८४१,८४२,८४५,८४८, ८५७,८५६,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४,८७७, ८५०, ८८२, ६११,६१८,६२५,१००८, १०७१, १०६१, १०६२ ठाणओ | संस्थानतस् ] जी० ३१२५६ संठाणतो [ संस्थानतस् ] जी० ३।२२ विजय [संस्थानविचय ] ओ० ४३ संठित [ संस्थित] रा० १२४ जी० ३१२८ से ३२, ४८ से ५०, ७८ ७६,८६,६३,२६०,२६१, २१७,३०२,३५२,५७७,५६७,६३२,६६१, ७०४,७०५, ७६३, ७६६,७६७, ८१०, ८११. ५२१, ८२२,८३१,८३६८४२,८४५, ८४८, ८४६,५७,८५६,८६२,८६५,८६८, ८७१, ८७४,८७७,८०८०२, १११, ६२५, १००८, १०६१,१०६२ संठिति [ संस्थिति ] जी० ३१८११ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ if | संस्थित | ओ० १,१३,१६,५०,८२, १७०, १०४. २०३२, ५२, ५६, १२७, १३२, १३३, १८५,२३१,२४७. जी० १।१८,६४,६५,६७, ७४,७७,७६, ८६,६६,११०,११६, १३०,१३६; ३१३०,५०,७८, २५७, २५६, २६७, ३०३,३०७, ३७२,३६३,४०१,५६४, ५०६ से ५६८, ६०४, ६८९, ७२३, ७२६,७३६,७९३,८३८२,१५, १५, १८, १०७१ संड [ षण्ड ] ० २२. रा० ७७७,७७८,७८८ संडास [ मंदंशक] जी० ३१११८,११६ संडेय [ षण्डय ] आं० १ संनिखित्त | सन्निक्षिप्त ] जी० ३१४१५ संत [ सत् ] ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३०६०८ संत | श्रान्त] ओ० ६३. २० ७६५ संताण | सन्तान | ओ० ४६ संति [ सत् ] जी० १२७२/३ / संघर [ सं + स्तृ] – संथरइ. रा० ७६६. - संभरति. ओ० ११७ संथरित्ता | सस्तृत्व | ओ० ११७ संधार [संस्तार ] रा० ६६८, ७०४,७०६, ७५२, ७८६ संधारण | संस्तारक ] ओ० ३७,१२० रा० ७११ i संभार | संस्तारक ] ओ० १६२,१५०. ० ७१३, ७७६ √ संथुण [ सं + स्तु ] – संथणइ रा० २९२. जी० ३१४५७ संधुणित्ता [ संस्तुत्य ] रा० २९२. जी० ३।४५७ संबद्ध [ सन्दष्ट ] जी० ३।३२३ संमाणिया [ स्यन्दमानिका ] ओ० १,५२, १००, १२३. रा० ६८७ से ६८६. जी० ३।२७६, ५८१,५८५,६१७ संदमाणी | स्यन्दमानी ] रा० १७३ संदभाणीया | स्यन्दमानिका ] जी० ३२२८५ संदिट्ठ [ सन्दिष्ट ] रा० १५० / संदिस [ सं -+-दिश् ] -संदिसंतु स० ७२ संधि [ सन्धि ] ओ० १६. रा० १६,३७,१३०, संठिय-संपरिविखत्त १५६,१७५,१६०,२४५,६६४. जी० ३१२६४, २८७, ३००, ३११३३२,४०७, ५६२,५६६, ५६७ संधिवाल | सन्धिपाल ] ओ० १८,६३. १० ७५४, ७५६,७६२,७६४ संक्a | मं+ धुक्षू ] --- संधुक्खेद. रा० ७६५ निकास | सन्निकाश | जी० ३१३०३ संनिविखत | सक्षिप्त | जी० ३२८०२, ४१०, ४१८, ४१६,४२६, ४३२, ४३५, ४४२ संनिखित | सन्निक्षिप्त | रा० २४०, २४६, २५४, २५३.२५८, २६६,२६८, २७६ संनिवि | सन्निविष्ट | जी० ३ २८५,३७२,३७४, ६४६,६७३,६३४,८८४,८८७ संपत [ सम्प्रयुक्त ] ओ० १४,२१,४३,६४, १४१. रा० ६७१,७१०,७७४, ७६६ संपओग | प्रयोग] ओ० ४३. रा० ६७१ संपवखाल | सम्प्रक्षाल | ओ० ६४ संपगाढ | सम्प्रगाढ | जी० ३ १२६१७ संपट्टिय | सम्प्रस्थित ] मो० ६४, ११५ संपणाइय सम्प्रनादिन | रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२, ६४६ संपण | सम्पन्न ] जी० ३५६८ संपत्त | सम्प्राप्त ! अ० २१,५२, ५४, ११७,१४४. रा०८, २९२,६८७, ६-६,७१३, ७१४,७६६, ८०२. जी० ३१४५७ संपत्ति | सम्पत्ति संप्राप्ति ] जी० ३।१११६ संपत्थिय | सम्प्रस्थित ] रा० ४१ से ५४,७७४ संपन्न [ सम्पन्न ] जी० ३२७६५,८४१ √ संपमज्ज | संप्र + मृज् ] संपमज्जइ. ओ० ५६. -- संपमज्जेज्जा. रा० १२ संपमज्जेत्ता [ सम्प्रमृज्य ] ओ० ५६ संपरिक्खित | सम्परिक्षिप्त ] ओ० ३,६,११. रा० १२७, २०१२६३. जी० ३१२१७,२६०, २६२, २६५, ३१३, ३५२, ३६२,३६८ से ३७१,३८८, ३६०,६३६, ६५२,६५८, ६६८, ६७८, ६७६, ६८१,६८९, ७०४,७०६,७३६, ७५४,७९६. Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपरिक्खित्ताण-संवृत्त ७४५ ७६८,८१०,१२,८२१,८२३,८३३,८३६, ८४८,८५०,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८८०,६२५ संपरिक्खिताणं [सम्परिक्षिप्य ] जी० ३।४८ संपरिखित्त सम्परिक्षिप्त | रा०४०,१८६,१६१ २०५ से २०८ संपरिवुड [गम्परिवृत] ओ० १८,१६,६३,६८, ७०. रा०९,१३,४७,५६,५८,१२०,२६१, ६५७,६८३,६८६,७११,७५४,७५६ ७६२, ७६४,७७७,७७८,८०४. जी० ३१४५७,५५७, १०२५ संपललिय | सम्प्रललित] ओ० २३ संपलियंक [सम्पर्य] ओ० ११७. रा० ७६६.. जी० ३१८६६ संपविट्ठसम्प्रविष्ट] रा० ७६५ संपाविउकाम | सम्प्राप्तुकाम | ओ० १६,२१,५४, ११७. रा०८ संपिडिय | सम्पिण्डित] ओ०६. जी० ३२७५ संपुच्छण [सम्प्रश्न ] जी० ३।२३६ संपुड [सम्पुट ] जी० ३१७६३ सिंह [सं+ प्र+ईक्ष् ]-संपेहेइ. रा०६ संहिता [सम्प्रेक्ष्य] रा०६ संयेहेत्ता सम्प्रेक्ष्य ] रा० ६८८ संबंषि सम्बन्धिन् ] जी० १५०. रा० ७५१,८०२ संभिग्णसोय [ सम्भिन्नस्रोतस् ] ओ० २४ संभोग [सम्भोग] ओ० ४० संमज्जण [सम्मार्जन] रा० ७७६ संमज्जिय [सम्मार्जित रा० २८१,८०२ संमट्ट सम्मृष्ट ! रा० २०१ | संमय [सम्मत | ओ० ११७. रा० ७६६ V संमुच्छ |सं--- मूच्र्छ ।- समुच्छंति. जी० ३.१२७ संमुच्छिम [सम्मूच्छिम, सम्मूर्छनज] जी० १।६६ से ६८,१०१ से १०५,११२,११,१२६ से १२८ ; ३११३८,१३६,१४२,१४५ से १४७, १४६,१६१,१६३,१६४,२१२ से २१४ संमुहागय | सम्मुखागत ] जी० ३।२८५ संलख [संलब्ध] रा०७६८ संलाव | संलाप] आं० १५. १०७०,६७२. जी० ३१५९७ संलेहणा | संलेखना] ओ० ७७,११७,१४०,१५४ संवच्छर [संवत्सर] जी० ११८७; १९७; ३.८४१,४।४ संवच्छरपडिलेणग [संवत्सरप्रतिलेखनक] रा० ८०३ संवट्ट [सं+वर्तय् ] --संवटेइ. ओ० ५९ संवट्टगवाय [संवर्तकवात] जी० १११ संवट्टयवाय [संवर्तकवात ] रा० १२ संवदे॒त्ता [संवर्त्य ] ओ० ५६ संवड्डिय [संबंधित] रा० ८११ संबर | मवर] औ० ४६,७१,१२०,१६२. रा०६९८,७५२,७८६ संवाह (संवाह ] ओ०६८ संविकिपण संविकीर्ण] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२ संविद्धणित्ता [संविधूय ] ओ० २३ संवड [ संवृद्ध | ओ० १५०. रा० १११ संवुत संवृतजी० ३।४०७ संवत्त [संवृत्त] रा० ७७१ संबद्ध [सम्बद्ध] जी० ३.११०,१११५ संबाह सम्बाध | ओ०८६ से १३,६५,६६.१५५, १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६३ संबाणा | सम्बाधना । ओ०६३ संबाहिय [सम्बाधित | ओ० ६३ संबुद्ध [सम्बुद्ध] रा० ७७५ संभम | सम्भ्रम] ओ०६७. रा० ५,१३,६५७, ७१४. जी० ३१४४६ संभार (सम्भार] जी० ३१५८६ संभिषण [ सम्भिन्न ] जी० ३१११११२३ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवय | संवृत] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ संग | सवेग ओ०६९ संवेयणी [संवेदनी ओ० ४५ संवेल्लित [दे०] जी० ३१३०३ संवेल्लिय | दे०) रा० ६६,७०,१७३ संसट्टचरय संसृष्टच रक] अ० ३४ संसत्त संसक्त] ओ० ३७. जी. ३१८४ संसार | संसार ] ओ० २६,४६,१६५ संसारअपरित्त (संसारापरीत ] जी०६७६ संसारपरित्त [संसारपरीत। जी. ७६,७८,८४ संसारविउस्सग्ग [ संसारव्युत्सर्ग] ओ० ४४ संसारसमावण्ण [संसारसमापन्न | जी० ११६,१० संसारसमावष्णग संसारसमापन्नक] जी० १११०, ११,१४३; २।१,१५१ ; ३११,१८३,११३८; ४११,२५, २१,६०, ६.१,१२,७११,२३; ८.१,५; ६।१.७ संसारसमावण्णय संमारसमापन्नक] जी० १११० संसाराणुपेहा [संसारानुप्रेक्षा] ओ० ४३ । संसारापरित्त [संसीरापरीत] जी०६।८१,८६ संसुद्ध [संशुद्ध] ओ० ७२ इससेय [सं+ स्विद् ! --संसेयंति. जी० ३३७२६ संहत [संहत] जी० ३।५६७ संहरण [संहरण] जी० २१३० से ३४,५७ से ६१, संवुय-सची सक्कय [ संस्कृत ] जी. ३ ५६५ ।। सक्करप्पभा [शर्कराप्रभा] जी० २१०० ३।४, ११,२०,२१,२७,३१,३२,३४,४०.४३,४४,४६, ६८,१०७ सक्करा शर्क] रा० ६,१२. जी० ३।६०१, ६२२ सक्करापुढवी [शर्करापृथ्वी ] जी० ३।१८५,१६० सिक्कार मित्+कृ] ...सक्कारिस्पति रा०७०४ --- सक्कारेइ. ओ० २१. रा०६८४ ---सरकारेज्जा. रा०७७६ -- सक्कारेमि. रा० ५८ ----सक्कारेमो. ओ० ५२. रा०१०.-सक्कारेस्संति. रा० ८०२. -सक्कारेहिति. ओ० १४७ सक्कार | मत्कार, ओ० ४०,५२. रा०१६,६८७, ६८६,८०३,८०५. जी. ३१६०६ सक्कारणिज्ज [स कारणीय] ओ० २. रा० २४० २७६. जी० ३।४०२,४४२ सक्कारित्तए [सत्कर्तुम् ] ओ० १३६. रा०६ सरकारेत्ता [सत्कृत्य ] ओ० २१ सक्कुलिकण्ण [शष्कुलिकर्ण] जी० ३१२१६,२२५ सक्कुलिकण्णदीव [शष्कुलिकर्णद्वीप] जी० ३१२२५ सग स्वक] जी० ३१७६८,७६६,७७२,७७३,७७६ से ६७६,११११ सगड [श कट] ओ० १००,१२३. जी. ३१२७६, ५८१,५८५,६१७,६३१ सगडवूह [राकटब्यूह] ओ० १४६. रा०८०६ सगल [सकल | जी० ११७२, ३।५९२ सगल [शक] जी० ३१५६६ सगेवेज्ज [सगवेय] १० ७५४,७५६,७६४ सग्ग [स] ओ०६८ सचित्त सचित] ओ० २८,४६,६९,७०. रा. संहित' [संहित] जी० ११७२१३; ३१५६६,५६७ संहिय [संहित] रा० १७३. जी० ३४५६७ सक [स्वक] ३१७६५,७७० । सकक्कस [सकर्कश ओ० ४० सकसाइ [सकपायिन् ] जी० ६३२८ सकाइय [सकायिक] जी०६।१८ से २० सकिरिय [सक्रिय] ओ० ४०,८४,८५,८७ सक्क [शक] जी० ३१६२०,९२१,६३७,१०३६ से १०४२,११११ १. संहितौ- मध्यकायापेक्षया विरली ७७८ सिचित्तीकर [ सचित्तीकृ]- सचित्तीकरेइ. रा० ७७२ सची [शची] जी० ३१९२० Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्च-सह सच्च [सत्य] ओ० २,२५,७२,११८. रा०६८६ समिच्छर [शनैश्चर] ओ० ५० सच्चमणजोग [ सत्यमनोयोग] ओ० १७८ सण्णव [सन्नद्ध] ओ० ५७. रा० ६६४,६८३ सच्चवइजोग [सत्यवाग्योग] ओ० १७६ सग्णय [सन्नत] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ सन्चामोसमणजोग (सत्यमृषामनोयोग] मो० १७८ सण्णव [संज्ञापय] --सण्णवेइ. रा० ७६६ सच्चामोसवइजोग [सत्यमृपावाग्योग] ओ० १७६ सण्णा (संज्ञा रा० ७४८ से ७५०,७७३. सच्चोवात [सत्यावपात] ओ० २ ओ० १११४,२०,५६,६६,१०१,११६,१२८, सच्छद [स्वच्छन्द] ओ० ४६ २३६, ३।१२८२ सच्छड [संस्तृत] रा० ७७४ सिण्णाह [सं+नहन-सण्णाहेहि. ओ० ५५ सजोगि [सयोगिन् ] ओ० १८१. जी० ६.२१,४६, सण्णाहिय [सन्नद्ध] ओ० ६२ ४८,५२ सण्णाहेत्ता [संन ह्य] ओ० ५६ सज्ज [सज्ज] ओ० ६४. रा० १७,१८,१७३, सणि संज्ञिन्] ओ० १५६,१८२. रा० १११४, ६८१,६८२,६६१. जी० ॥२८५ २४,८६,९६,१०१,११६,१३३,१३६६।१०१, सज्ज [सद्यस्] जी० ३१८७२ १०२,१०५,१०८ सिज्ज [सस्ज्-सज्जावेइ रा०६८०. -सज्जिहिति. ओ० १५०. रा०८११. सणिकास [सन्निकाश] जी० ३३३३३,३८१,४१७, -सज्जेइ. रा०६६६ ८६४,११२२ सन्जावेत्ता [सज्जयित्वा ] रा० ६८० सणिखित्त [सन्निक्षिप्त जी० ३३१०२५ सणिणाय [सन्निनाद] ओ० ६७. रा० १३, सज्जिय [सज्जित] जी० ३१५६२ ६५७. रा० ३।४४६ सज्जीव [सजीव] ओ० १४६. रा०८०६ सज्जेत्ता [सज्जित्वा] रा० ६६६ सणिपंचिबिय [संज्ञिपञ्चेन्द्रिय] ओ० १५६ समाय [स्वाध्याय ] ओ० ३८,४२ सण्णिभ [सन्निभ] रा० १६,४७,६३,६५. सट्ठाण [स्वस्थान] जी० ६।१६६,२०८ जी० ३१५९६ सणिमहिय [सन्निमहित ] ओ० १ सहि षष्टि] ओ० १४०. रा० २३१. सण्णिवाइय [सन्निपातिक] ओ०७१,११७. जी. ३११८ रा०६१,७६६ सद्वितंत [षष्ठितन्त्र] ओ०६७ सणिविदुः [सन्निविष्ट] ओ० १. रा० १७,१८, सडंगवि षडङ्गविद् ] ओ० ६७ २०. जी. ३।२८८ सङ्घा श्राद्धकिन्] ओ० ६४ सग्णिवेस [सन्निवेश] ओ०६८,८६ से ६३,६५, सण [सन] ओ० १३ ६६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. सणंकुमार [सनत्कुमार] ओ० ५१,१६०,१९२. रा०६६७ जी० २६६,१४८,१४६; ३३१०३८,१०४५, मणिमटा सतिसादात १०४६,१०५८,१०६६,१०६८,१०८८,१०६४, सण्णिसण्ण [सन्निषण्ण] रा०८,४७,६८,२७७, ११०२,११११,११२६ २८३. जी० ३।४४३,४४६,४५२,५५७,८३६ सणप्फई [सनखपदी] जी० २।६।। सणिहिय [सन्निहित] ओ०२ सणफय [सनखपद] जी० ११०३ सह श्लिक्ष्ण ओ० १२,१६४. रा०२१ से २३, सणिचर (शनैश्चर जी० ३१६३१ ३२,३४,३६,३८,१२४,१३०,१३७,१४५,१५७, Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ सण्हपुढवी-सह १५४,२६१. जी० ११५७,५८, ३२६१,२६२, सत्तम [सप्तम] ओ० १७४,१७६,१८६ २६६,२६६,२८६,२६०,३००,३०७,३६५, सत्तमा [सप्तमी] जी० ३३२,४,७२,७५,७७,६१, ४२५,४५७,५६२,६३६,८३६ सण्हपुढवी श्लक्ष्णपृथ्वी] जी० ३.१८५,१८६ ससमासिया [सप्तमासिकी ओ० २४ सत [शत) रा० १२६. जी० ३८२,१७२,१७३, सत्तमी [ सप्तमी) जी० ३।३६,८८,१११११३ १६७,२२६,२४६,२५५,२५७,२६०,२८५, सत्तरस [मप्तदशन् ] जी० ३१३५६ ३३५,३५३,३५४,३५७,३५८,३६१३७२, सत्तरि [सप्तति ] जी० ३६२४६ ४१५,४१६,४४२,५७७,५६८,६३२,६३६, सत्तवण्णव.सय [सप्तपर्णावतसक] रा० १२५ ६४६,६४७,६४६,६५२,६६१,६६६,६६८, सत्तवण्णवण सप्तपर्णवन] रा० १७०. जी० ६७३,६७४६७६,७०३,७१४,७२४ से ७२६,७२८,७३३,७३६,७५०,७५६,७८८, सत्तविध सप्तविध | जी०२११००३२६१८२ ७६४,७६५,७६८,८०६,८१२,८१५,२०, सत्तविह [सप्तविध | ओ० ४०. जी० १११०,५८, ८२७,८३०,८३२,८३५,८३७,८३६,८४१, ६२, ६।१,१२, ६।१८५,१६६ ८४५,८८२,८८४,८८७,९०१,६०८,६११, सत्तसत्तमिया | सप्तसप्तकिका] ओ० २४ ६१८,९७०,१००० से १००४,१००६,१०१६, मनमिळावा सत्तसिक्खावय [सप्तशिक्षावतिक] ओ०५२,७८ | सप्तशिधानिक १०३०,१०३८,१०४४,११३७; श२६; सत्ताणउति [सप्तनवति ] जी० ३।१०३८ ६।११,७४१६६८६,१०२,२१७ सत्तावीस [सप्तविंशति ] ओ० १७०. रा० १८८. सतपत्त [शतपत्र] रा० २३. जी० ३६२५६,२६१ जी० ३८२ सतसहस्म । शतसहस्त्र | जी० ११५८; ३।२२,२७, सत्तावीसतिगुण सलविंशतिगुण] जी० २।१५१ ६७ से ७२,८६,१६१,१६७,१६६,१७४,२५७, सत्तावीसय [सप्तविंशति] जी० २।१५१ २६६,६०२,६५८,७०३,७०६,७१४,७२३, ७६४,७६५,७६८,८२३,८३६,६१०,६६६, सत्तिवण्ण [सप्तपर्ण । ओ०६,१०. जी० ३१३५६, ६६८,१०३८,१०८७,१०८८,११२८ ३८८,५८३ सताउ [शतायुए] जी० ३१५८६ सत्तिवण्णवण (सप्तपर्णवन] जी० ३।३५८ सति [स्मृति जी० ३३११८,११६ सत्त [शत्रु] ओ० १४. रा० ६७१ सतिय [शतिक ] जी० ३१६७३,६७४ सत्तुपक्ख [शत्रुपक्ष] जी० ३।४४८ सत्त [सप्तन् ] ओ० २१. रा० ७. जी० ११६५ सत्य {शास्त्र] ओ० ६७ सत्त [सत्व ] जी० ३११२७,७२१,६५५,११२८, सत्य [शस्त्र] १० ७६१ ११३० सत्यवाह [सार्थवाह ] ओ० १८,४६,५२. रा० सत्तरंग | शक्त्यन] जी० ३८५ ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. सत्तघरंतरिय | सप्तगृहान्तरिक ] ओ० १५८ जी० ३१६०६ सत्तट्टि [सप्तषष्टि] जी० ३१७२२ सत्थोवाभियग | शस्त्रावपाटितक ओ०६० सत्तणय [सप्तनति] जी० ३।२२६ सदारसंतोस [स्वदारसन्तोष ] ओ० ७७ सत्ततीस | सप्तत्रिंशत् ] जी० ३३३५१ सदेस | स्वदेश ] ओ० ७०. रा० ८०४ सत्तपण्ण [सप्तपर्ण] रा० १८६ सद्द [शब्द ] ओ० ६,१५,६३,६४,६७,६८,१६१, सत्ति [शक्ति] ओ०६४ सत्तपतत्रिशत०३ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्दह-समचउरंस ७४६ १६३. रा०१३ से १५,३२,४०,१३२,१३५, सपज्जवसित [सपर्यवसित] जी० १।२४,३१,६८, १७३,२०६,२११,२८२,६५७,६७२,६८५, ६६,८१,१२५,१७४,२०२ ७१०,७३२,७३७,७५१,७५५,७७१,७७४. सपज्जवसिय [सपर्यवसित] जी० ६।११,१३,१६, जी० ३.११८,११६.२६५,२७५,२८५,२८६, २३,२५,२६,३१,३३,३४,५८,६०,६४,६८,६६, २६८,३०५,३६०,३७२,४४६,४४८,५७८, ७१,७२,८६,११०,१२५,१३३,१४६,१६४, ६३६.६४६,६६०,८५७,८६३,६०५,६७७, १६५,१७९,२०२,२०६ ६८२,१११७,१११८,११२४,११२५ सपडिफम्म [सप्रतिकर्मन् ] ओ० ३२ सिद्दह श्रित्+धा] -सदहामि. रा० ६६५. सप्पि [सर्पिस् ] ओ० ६२,६३ -सदहाहि. रा० ७५१..-.-सदहेज्जा. रा० ७५० सप्पियासव [सपिराश्रव] ओ० २४ सदहमाण [श्रद्धान] जी० ११ सफल [सफल] ओ०७१ सद्दाल' [दे० जी० ३१११२२ सबरी [शबरी ओ० ७०. रा०८०४ सभा [सभा] रा०७,१२ से १४,२०६,२१०,२३५ सद्दाव [शब्दय]—सद्दावेइ. ओ०५८. रा०६. से २३७,२५०,२५१,२७६,३५१,३५६,३५७, -~- सहावेंति. ओ० ११७. रा० २७८, जी० ३७६,३९४,३६५,६५६,६५७. जी. ३१३७२, ३१४४४. - सदावेति. रा० १३. जी. ३१५५४ ३७३,३६७ से ३९६,४११,४१२,४२६,४४२, सद्दावति [शब्दापातिन् ] जी० ३१७६५ ५१६,५२१,५२२,५२४,५२५,५५६,५५७, सद्दावाति | शब्दापातिन् । रा० २७६. जी० ३।४४५ सद्दाविय [शब्दायित, शब्दित] रा० ७२ १०२४,१०२५ सहावेत्ता [शब्दयित्वा ] ओ० ५८. रा० ६. सभाव [स्वभाव ] जी० ३१५६७ जी० ३४४४ सम [सम] ओ० १६,२६,५६,१७१,१९२. रा० ७०,७५,७६,८०,११२,१३३,१७३ १७४,७७२. सदिय [शब्दित] ओ०२ जी० ३५२,११८,११६,२८५,२८६,३०३, सबदल (शार्दल] ओ०१६. जी०३५६६ सद्ध [श्राद्ध जी० ३।६१४ ३६२,३८७,५८६, ५६६,५६७,७०५,७२४, सद्धि [सार्द्धम् ] ओ० १५. रा० ७. जी० ३३२३६ ७२७,७३२,७८४,७८७,७९७,८११,८२२, सन्नद्ध [सन्नद्ध] जी० ३१५६२ ८४६,६१०,६११,६१८,६६८,११२२ सन्निकास (सन्निकाश | रा० १३३. जी० ३१३१२ सम [श्रम रा० ७२६.१३१,७३२ सन्निविखत्त (सन्निक्षिप्त] जी० ३१४४२ समकंत [समतिक्रान्त] ओ० ४७ सन्निखित्त सन्निक्षिप्त ] रा० २२५,२७० समइच्छमाण समतिक्रामत् ] ओ०६६ सन्निगास [ सन्निकाश] रा० ३८,१६० २२२,२५६ समइय [सामयिक ] ओ० १७३,१७४,१८२. जी० सन्निभ सन्निभ] ओ० १६. जी० ३१५९६ सन्तिविट्ट सन्ति विष्ट रा० ३२,६६,१३८,२०६, समंता [समन्तात् ] ओ० ३. रा०६. जी०३१४४ २११. जी. ३.७५६। समक्खाय [समाख्यात] जी० ३।१६७ से १६६ सन्निवेस [सन्निवेश] जी० ३६०६,८४१ समग्ग [ समग्र] ओ०६८ सन्निवेसमारी सन्निवेशमारी जी० ३१६२८ समचउरंस [समचतुरस्र ] ओ० ८२. जी० २१११६, सन्निसन्न [सन्निषण्ण] रा० १७३ १३६ ; ३३५६८,१०६१,१०६२ १. नूपुर, किंकिणी। १. हे० ४११६२ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समजोतिभूत-समय समजोतिभूत [समज्योतिभूत] जी० ३।११८ समणुबद्ध [समनुबद्ध] रा० १४६,६७०. समज्जिणित्ता [समय॑] रा० ७५० जी० ३६३२२,५६१ समज्जुइय [समद्युतिक] जी० ३३११२० समणोवासग [श्रमणोपासक] ओ० १६२ समट्ट [समर्थ ] ओ० ८६ से १५,११४,११७,१२०, समणोवासय [श्रमणोपासक] ओ० ७७,१२०,१४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१६६,१७०, १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ से ७६१ १७२,१७७,१८१,१८६ से १६१. रा० २५ से समणोवासिया [श्रमणोपासिका] ओ० ७७. ३१,४५,१७३,७५१,७५३,७५५,७५७,७५६, रा० ७५२ ७६१,७६३,७७१. जी० ३०८४,८५,११८, समण्णागय [समन्वागत ] ओ० ४३. रा० १२, १९८ से २०३,२७८ से २८५,६०१,६०२, ७५८,७५६. जी० ३.११८,२८५ ६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से ६१७, समतल [समतल ओ०१६. जी० ३१५९६ ६२२ से ६२४,६२६,६२८,७८२,७८६,८६०, समताल समताल ] ओ० १४६. रा० ८०६ ८६६,८७२,८७८,६६० से ६६२, ६६४ से समतुरंगेमाण समतुरङ्गायत् ] जी० ३.१११ ६६६,१०२४ समत्त समस्त ] ओ० ६३. जी. ३१७०१ समत्तगणिपिडग | समस्तगणिपिटक | ओ० २६ समण [श्रमण ] अं० १६ से २५,२७,३३,४६ से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३.९५,११७, समत्थ | समर्थ ] ओ० १४८,१४६. स० १२,७३७, ७५८,७५६,७७०,८०६. जी० ३३११८ १२०,१५५,१५६,१६२,१७०. रा०८ से १३, १५,५६,५८ से ६५,६८,७३,७४,७६,८१,८३. समन्नागय [समन्वागत ] रा. १७३ समप्पभ [समप्रभ ] रा० २०५. जी० ३१४५१ ११३,११८,१२०,१२१,१३१,१३२, १४७ से १५१, १८५,१६७,६६७,६६८,६७१,६६८, समबल [समबल ] जी० ३।११२० ७१८,७१९,७३६,७४८ से ७५०,७५२,७८७ से . समभिजाणित्ता [समभिज्ञाय] रा० २७६. जी० ३।४४२ ७८१,८१७. जी० ११५६,६२,६५,८२,६६, १२८, २१४०; ३३१७६,१७८,१८०,१८२, सिमभिलोय [सं+अभि+ लोक्] —समभिलोएइ. रा० ७६५—समभिलोएति. रा०७६५. २५६,२६६,२६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४, --समभिलोएमि रा० ७६४ ५८२,५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से समय समय | ओ० १,१८,१६,२३ से २५,२७, ६०७,६०४ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५, २८,४५,४७ से ५१,८२,११५,१७३,१७४, ६२७,६२८,६३०,७६५,८४१,९६५,१०५६, ११२० १८२,१६५६३. रा० १,७,७६,१७३,२७४, ६६८,६७६,६८५,६८६,७७१. जी० ११९,३३; समणी [श्रमणी जी० ३१७९५,८४१ २१४८,५४ से ५६,६५,८६,८८,८६,११७, सिमणु गच्छ सम् + अनु+ गम् ]-~-समणुगच्छंति १२३,१३२:३१८६,६०,११८,११६,२१०, रा० ५५ २११,२८५,४३६,५८८,५८६,८४१,८४४. समणुगम्ममाण [समनुगम्यमान] ओ० ६५. ८४७,६७३,१०८३,१०८५,१०८६७।१ से ___जो० ३११७४ ६, ६ से १८, २० से २३; ६०१ से ७, २४, समणुगाहिज्जमाण [समनुग्राह्यमान] जी० ३ १७४ २५,४०,४३,४८ से ५१,५७,६०,११४,११८, समणुचितिज्जमाण [समनुचिन्त्यमान ] जी० ॥१७४ १२४,१२५,१२७,१३४,१३८,१४२,१४६, समणुपेहिज्जमाण [समनुप्रेक्ष्यमान | जी० ३।१७४ १५०,१५२,१६१,१६२,१७१,१७२,१७६, Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय-समुग्घाय १९६,२००,२०३,२३२ से २३८, २४१ से २४८, २५० से २५३,२५५, २६७ से २७३, २७५ से २८२,२८४ से २६३ समय समक] जी० ३१२७३,२६८ समयओ [समयतस् ] रा० ६६४ समयखेत्त [समयक्षेत्र रा० २७६. जी. ३१४४५ समयग समयक] जी०७४ समयतो [समयतस ] जी० ३।५६२ समयस समयशस् ] जी० ३.११२० समयिक | सामयिक जी० ६।२ से ५ समयिग [सामयिक ! जी० ६६ समरस समरस] रा० २२८. जी० ३१३८७ समरसोद [समरसोद | जी० ३२८६ सिमलकर [सं-- अलं-/- कृ]-समलंकरेइ. - ओ० ५६ समलंकरेत्ता [समलङ्कृत्य] ओ० ५६ समल्लीण [समालीन] ओ०१३. रा०४ समवायघर [समवायधर] ओ० ४५ समसोक्ख समसौख्य ] जी० ३.११२० समहिदिन्जमाण [समधिष्ठीयमान ] रा० ७५१ । समाइण्ण समाकोणे ] अ० ७१. रा०६१ समाउत्त [समायुक्त ] ओ० ६४. रा० ५१ समाउल सिमाकूल] रा०१३६. जी० ३१३०६ समाण सत] ओ०२०,५२,५६,६३,६४,९८, ११७,१४२,१४४,१५७. रा० १०,१२ से १५, १८,४६,६०,६३,६४.७२,७४,२७४,२७५, २७६,२८३,२८६,६५५,६८१,६८५,७००, ७०१,७०३,७०७,७१०,७१३,७२५,७२८, ७५७.७६५,७७४,७६२,७६७,८००,८०२. जी० ३३११८,११६,४४०,४४१,४४५,४४६, ४५२,५५५,६१७,६८६ समाण समाना ओ० २३,२६,२६,११७. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१९७.२८८, ७५० से ७५३,७६६, जी० २।७४,६८,१४०%; ३।१११,११८.११९,२६६,३०१,३०२,३२१ से ३२४,४५४ समाणुभाग [ समानुभाग] जी० ३।११२० समादाण [समादान] जी० ३३११७ समामेव [समकमेव] रा० ७५ सिमायर [समा+चर]- समायरह. रा० ७५१ समायरित्ता [समाचर्य ] रा० ६६७ समायरेता समाचर्य रा० ७५१ समारंभ [समारम्भ ] ओ०६१ से १३,१६१,१६३ समावडिय सिमापतित | ओ०४६ समावण्णग समापनक] जी० ३१८४२,८४५ समास [समास] जी० ३१८३८।१ समासओ समासतस् ] जी० ११५,५८,६५,७३, ८४,८८,८६,६२,१००,१०३,१११,११२,११६, ११८,१२१,१२६,१३५ समासतो समासतस् ] जी० ११७८,८१; ३।२२६ समाहय (समाहत] ओ० ४६. रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३११८ समाहि [समाधि] ओ० ११७,१४०,१५७,१६२. रा०७६६ समिडीय समधिक जी० ३।११२० समिता [समिता] जी० ३६२३५.१०४०,१०४४, १०४६ समिद्ध [समृद्ध] ओ० १,१४. रा० १,६६८ से ६७१,६७६,६७७ समिया [समिता] जी० ३।२३६,२४१ समग्ग [ममुद्ग] ओ० ७४१५. रा० १६१,२५८, २७६,३५१. जी० ३१३३४,४१६,४४५,५९६ समुन्गक [समुद्गक ] जी० ३।४०२,५१६ समुरंगग समुद्गक ] जी० ३१३०० समग्गपक्खि [समुद्गपक्षिन् ] जी० १।११३,११६ समग्गय सिमुद्गक ] ओ० १७०. रा० १३०,२४० २७६,३५१. जी० ३।४०२,४४२,५१६,१०२५ समुग्धात [समुद्घात ] जी० ३.१०८,१५७,१११८ समग्घाय [समुद्घात] ओ० १७१,१७२,१७५, १७७. जी० १११४,२३,८२,८६,६६,१०१, ११९,१३३,१३६, ३११२७१४,१६० Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ मुणकर | समुच्छिन्नक्रिय ] ओ० ४३ समुट्ठित [ समुत्थित ] जी० ३।३०३ मुट्ठि [ समुत्थित ] रा० १३३,६७१ समुदय [समुदय] ओ० ६७. रा० १३,४०, १३२, ६५७,८०३, ८०५. जी० ३।३०२, ४४६,५६१ समुद्द [ समुद्र ] ओ० १७०. रा० १०,१२,५६, २७६,६८८. जी० ३३८६, २१७,२१६ से २२७, २५६,२६०,३००,३५१, ४४५, ५६६,५६६, ५७१ से ५७६,६३८,७०४ से ७०८, ७१०,७११, ७१३ से ७२३,७२६,७२८ से ७३१,७३३,७३६, ७३० से ७४१,७४५, ७४७, ७५०, ७५४, ७६१, ७६२,७६४ से ७६६,७७२ से ७६६,८००, ८०३,८०४, ५०६,८१० से ८१६,८१८ से ८२१, ८३८२६,८४८ से ८५१,८५४ से ८५६, ७५६,८६०,८६२,८६५, ८६६,८६८,८७१, ८७२,८७४,८७७, ८७८, ८८०,६२५, ६२७, से ६३५,६३८, ८३६,६४३ से ६४६, ६४६ से ६५२,६५५,६५८,६६९,६६३ से ४६६,९६९, ६७२ से ६७५ समुद्दग [ समुद्रम ] जी० ३१७७५,७७८ समुद्दलक्खा [ समुद्रलिक्षा ] जी० ११८४ समुपविट्ठ [ समुपविष्ट ] जी ३२२८५ √ समुपज्ज [ सं + उत् + पद् ] – समुपज्जित्या. रा० ६ - समुप्पज्जइ, ओ० १५६ - समुप्प ज्जति जी० ३३५६६ - समुपज्जित्था. रा० ६८८. जी ३३४४१. – समुप्यज्जिहिति. ओ० १५३. रा० ८१४ पण [ समुत्पन्न ] ओ० ११६ १५७. रा० २७६, ७३८, ७४६. जी० ३१४४२ समुप्पण्णको कहल्ल[समुत्पन्नकौतूहल ] ओ० ८३ समुपसंसय [समुत्पन्नसंशय ] ओ० ८३ समुप्पण्णसङ्घ [ समुत्पन्नश्रद्ध] यो० ८३ समुप्पन्न [ समुत्पन्न ] जी० ३।२३६ समुवागत [समुपागत ] जी० ३१६१७ समुवि [ समुपविष्ट ] रा० १७३ समुतिय [समुत्सृत] रा० ५१ समुच्छिष्णकिरिय- सम्मत्त किरिया समूसिय [समुच्छ्रित] ओ० ६४ समूह [ समूह ] रा० १२३ समोगा [ समवगाढ] ओ० १६५६. जी० ३।८४५ √ समोर [ सं + अ + तृ] - समोयरंति. जी० ३।१७४ समोस [ समवसृत ] ओ० ५२, ५३. रा० ६, ६८७,६८६,७१३ √ समोर [ सं + अव + सु ! समोसरह रा० ७०० समोसरिज्जा. ओ० २१ समोसरिस्सामि रा० ७०३ रामोरिस्सामी. रा० ७०५ समोसरण [ समवमरण] रा० ७५,८०,८२,११२, ७४५ से ७५०,७७३ समोसरिउकाम [ समवसर्तुकाम ] ओ० १९,२० समोहण [ सं + अव ! हन् ] - रामोहणंति, ओ० १७१ - समोहणिसु. जी० ३।१११३ --- समोहणिस्संति. जी० ३।१११३ समोहणित्ता [ समवहत्य ] रा० १० जी० ३१४४५ मोहण [ सं + अव ! हन्] - - समोहण्णइ रा० १८- समोहणंति. रा० १०. जी० ३।४४५ समोहत [ समवहत ] जी० १११२८ ३१५८, २००, २०१,२०६, २०७ मोहतास मोहत | समावहतासमवहत ] जी० ३२०२, २०३,२०८, २०६ समोहय | समवहत ] ओ० १६६. जी० ११५३,६०,८७ सम्मं [सम्यक् ] ओ० १६२. रा० ६७१,६६८, ७०३, ७१८, ७२६,७३१, ७३२,७३७,७५० से १५२,७७७, ८७८ ७८६ सम्मज्जग [ सम्मग्नक ] ओ० ९४ सम्मज्जित [ सम्माजित ] जी० ३२४४७ सम्मज्जिय] [ सम्माजित ] ओ० ५५, ६० से ६२. जी० ३१४४७ सम्मट्ठ [ सम्मृष्ट ] ओ० ५५. जी० ३।४४७ सम्मत्त | सम्यक्त्व ] ओ० ४६ सम्म किरिया [ सम्यक्त्वक्रिया ] जी० ३।२१० २११ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मदिट्ठि-सयवत्त सम्मदिट्टि [सम्यग्दृष्टि ] रा० ६२. जी० १।२८, १०१४,१०१६,१०२२,१०४१,१०५२,१०५३, ८६; ३:१०३,१५१,११०५,११०६,६६७, १०५५,१०६५ से १०७०,४१५:५।१६,२६% ६८,७१,७४ ६१६३,१०६,१२३,१२८,१४४ सम्मय [मम्मत] रा० ७५० से ७५३ सय {स्वक] ओ० २०,५३. रा ० ५४,६७१,६८१, सम्माण सम्मान ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७, ७१०,७१८,७५०,७७४ ६८६ सिय |शी —सयंति रा० १८५. जी० ३।२१७ सम्माण सं| मानय —सम्माणिस्संति. रा० सयंपभा [स्वयंप्रभा] जी० ३।१०७७ ७०४....सम्माणेइ. ओ० २१. ७०६--सम्मा- सयंबुद्धसिद्ध [स्वयंबुद्धसिद्ध] जी० ११८ ज्जा. रा० ७७६ ..सम्माति. रा०६८४ सयंभुमहावर | स्वयंभूमहावर जी० ३१६५१ सम्माणमि. रा०५८---सम्माणे मो. ओ० सयंभुरमण स्वयंभूरमण जी० ३.२५६,६४६ से ५२. रा. १० . सम्माहिति. ओ० १४७ ६५१,६६२,६६४,६६५,९६८ सम्माणिज्ज [सम्माननीय ] ओ० २. जी० सयंभूवर स्वयंभूवर ] जी० ३।६५१ ३१४०२,४४२ सयंभूरमण स्वयंभूरमण] जी० ३।९७१ सम्माणित्तए [सम्मानयितुम् ] ओ० १३६. रा० सयंभूरमणग [स्वयंभूरमणक] जी० ३१७८० संयंसंबुद्ध स्वयंसंबुद्ध रा० ८,२६२. सम्माणेत्ता [सम्मान्य ] ओ० २१ ___ जी० ३१४५७ सम्मामिच्छदिट्टि [सम्यमिथ्यादृष्टि ] जी० सयन्धि [शतघ्नि ] ओ०१ ११२८,८६; ३१११०५,११०६ सयण शयन] ओ०१४,१४१,१४६,१५०. सम्मामिच्छादिट्टि (सम्यमिथ्यादृष्टि] जी० रा० १८५,६७१,६७५,७६६,८१०,८११. ३.१०३,१५१,६४६७,७०,७३,७४ जी० ३।२६७,८५७.११२८,११३० सयण स्विजन] ओ० १५०. रा० ७५१,८०२, सम्मुह सम्मति जी० ३१२३६ ८११ सय | शत] ओ० ६३,६४,६८,७१,११५.११८, सयणविहि [शयन विधि ] ओ० १४६. रा० ८०६ ११६,१७०,१६२,१६५।५. रा. १७,१८,३२, सयणिज्ज [शयनीय रा० २६१,२७७. ६१,६६,६६ से ७१,१२४,१२७,१२६,१३७, जी० ३३६५०,६८२ १६२,१७०,१७३,१८६,१८८,२०४ से २०६, __ सयपत्त [शतपत्र ] ओ० १२,१५०, रा० ८११. २०६,२११,२३३,२५१,२५४,२५५,२६२, जी० ३।११८,११६,२८६ २६२,६८१,६८६,७११,७५३. जी० १४६४; सयपाग [शतपाक] ओ० ६३ २१४१,४८,७३,६२,६७,१२५,१२८; ३३८२, सयपोराग [शतपर्वक] जी० ३११११ ६१,१२६।६,१७४,२१७ से २२६,२२६६१,३, सयमेव [स्वयंमेव रा० ६७४,६८०,६६८,७५४, ६,२२७,२३७,२४६,२४६,२५५,२५७,२६०, ७६१ २६२,२६३,३५१,३५८,३६१,३७४,४१६, सयराई [सप्तति] जी० ३३१००० ४५७,६३२,६४७,६४६,६७४ से ६७६,६८३, सयराह [दे०] अकस्मात् ओ० १२२ ७०३,७०६,७२२,७३६,७५४,८०२,८०६ सयल [शकल] ओ० १६,४७ ८२०,८२३,८३०,८३४,८३७,८३८१६,६,३१, सयवत [शतपत्र] ओ० ४७. रा० १३७,१७४, ८३६,८८७,९०८,६१८,६६६.१००३,१००५, १९७,२७६,२८८. जी० ३१३०७ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B** ससस्स [ गतसहस्र ] ओ० १,२१,४६,५४,६८, ६४,६५,१७०,१६२. रा० १४, १७, १८, १२४, १२६,१७०,१८८. जी० ११७३,७५,८१,१३५; ३।१२,६३ से ६६,७७, ८२, १२७, १६०, १६२, १६६ से १६८, १७१,२३२,२६०, ७०६, ७१०, ७२२,७२३,७६४,८०२,८०६,८१२,८१५, ८२०,८२३,८२७,८३०, ८३२, ५३४,८३५, ८३७,८३८१२८,८३६, ८४१,८५०, ८५२,६४०, ६४४,६६६, १०२७,१०३८, १०३६, १०७४ सय साहस्तिय [ शतसाहस्रिक ] रा० ५६ साहसी [ शतसाहस्री | जी० ३।६५८ सर | शर] ओ० ६४. रा० १७३,६८१,७६५. जी० ३३२८५ सर [स्वर] ओ० ६,७१. रा० १७, १८, २०, ६१. जी० ३३११८, ११६, २७५, २८५, २८६,८५७, ८६३ सर [सरस्] ओ० ९६ सरंधी [ दे० ] जी० २/६ सरग [ सरक] जी० ३५८७ सरग [ स्वरगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ सरडी [सरटी ] जी० २६ सरण [ शरण] ओ० १६,२१,५४. जी० ३।५६४ सरणय [ शरणदय ] ओ० १६,२१,५४. रा०८, २६२. जी० ३।४५७ सरतल [ सरस्तल ] रा० २४. जी० ३।२७७ सरपंतिया [सरः पङ्क्तिका ] रा० १७४, १७५, १८०. जी० ३।२८६ सरम [ शरभ ] ओ० १३. ० १७,१८,२०,३२, ३७, १२६. जी० ३१२८८,३००,३११,३७२ सरमह [सरोमह] रा० ६८८ सरय [ शरद् ] जी० ३।५६० सरल [ सरल ] जी० ११७२ सरलवण [ सरलवन ] जी० ३।५८१ सरस [ सरस ] ओ० २,५५, ६३. रा० ३२, २७६,२८१, २८५, २६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२, ३५१, ३५५, ५६४. जी० ३१३७२, ४४५, ४४७, ससस्स - सरीरग ४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६, ५२०,५४७,५५४ सरसरपंतिया | सरःसरःपङ्क्तिका ] रा० १७४, १७५, १८० जी० ३।२५६ सरसी [सरसी ] रा० १७४, १७५, १८०. जी० ३३२८६ सरसई [सरस्वती ] ओ० ७१. रा० ६१ सरागसंजम | सरागसंयम ] ओ० ७३ सामण ( शरासन] रा० ६६४,६६३. जी० ३।५६२ सरि [ दृश् ] जी० ३३६६६,७७५ सरिता [रिता ] जी० ३१४४५ सरितय [सदृक्त्वच् ] २१० ६६,७० सरिव्वय [सदृग्वयस् ] रा० ६६,७० सरिस [ सदृश ] ओ० १६,२२,४७. रा० ६६,७०, २७०, ७७७,७७८,७८८. जी० ३१११०,४१२, ५६६ से ५६८,६८२,७०८,७१०,८१४,६२८, ६४६, १११५ सरिसक [ सदृशक ] जी० ३।६६६ सरिसय [नदृशक] ७६२ ० ६६,७० जी० ३१६६५, सरिसव [सर्षप ] जी० ११७२ सरिसव विग [सर्वपविकृति ! ओ० ६३ सरिसिव [ सरीसृप ] रा० ६७१ सरीर [ शरीर ] ओ० १५,२०,५२, ५३, ८२.११७, १४३. रा० १२२,१२३, ६७२,६७३,६८६ से ६८६,६६२,७००,७१६, ७२६, ७२८, ७३२, ७३७,७४८ से ७६४,७७० से ७७३.७६५, ७६६,८०१. जी० ११४,१६ से १८, ५०, ७२१२,३,७४,८६,८८,९०,६४ से ६६,१०१, १११,११२,११६,११६, १२१,१२३, १२४, १३०, १३५ ३।६१ से ६३,१२६६४, १०, ५६८, ६६६,१०८७,१०८ से १०६२ सरीरंग [ शरीरक ] रा० ७६५. जी० १।१५,५६, ७४,७७,७६,८०, ८२, ८५, १०,६३,१०१, १०३, ११६,१२८, १३०,१३५; ३ ६४, १३६, १०९०, Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीरस्थ-सव्वभासाणुगामि १०६१,१०६३,१०९७,१०६८ सव्वंग [सर्वाङ्ग] ओ० १५. रा० ६७२,६७३, सरीरत्य शरीरस्थ] ओ० १७४ ८०१. जी. ३.५६६,५६७ सरीरपज्जत्ति [शरीरपर्याप्ति) रा० २७४,७६७. सव्वकामगुणिय सर्वकामगुणित] ओ० १६५।१८ ___ जी० १०२६ ; ३,४४० सम्वकाल [सर्वकाल] ओ० १६५।१६ सरीरय । शरीरक] जी० ११६४ ; ३।१२,६५,६६, सध्वखरसण्णिवाइ [सर्वाक्षर:न्निपातिन् ] ओ० २६ सरीरविउस्सग्ग [शरीरव्युत्सर्ग] ओ० ४४ सव्वग्ग [सर्वाग्र) रा० २२७. जी० ३.३८६,६४२, सरीरि [शरीरिन] जी० ६।६६ ६५३,६७२,६७६,७६४,७६५ सरीसिव [सरीसृप] जी० ३।८८ सव्वट्ट [ सर्वार्थ ] जी० ३।६३४ सलिल [सलिल] ओ० २७,४६. रा० १७४,२८८. सय्वसिद्ध [सर्वार्थसिद्ध ] ओ० १६७, १९२. जी० ३.११८,११६,२८६,४५४ जी० २१७८,८१,३११८४,१६२ सलिला [सलिला } रा० २७६. जी० ३।४४५ सव्वट्ठसिद्धग [सर्वार्थसिद्धक] जी० २।८५,९६; सलील [सलील] रा० २५५,२५६. जी० ३१४१६, ३१२३१ ४१७ सव्वण्णु [सर्वज्ञ ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. सलेस [गलेश्य] जी० ६२६ जी० ३।४५७ सलोद्द [सले.त्र] रा० ७५४,७५६,७६४ सव्वतो [ सर्वतरा रा० १२,४५,१६१,२०८,७५५, सल्ल [शल्य ] ओ० ७२ ७६४,७६५,७७२,७७४. जी० ३।४६,५०, सल्लई [सल्लकी] जी० ३१८७२ २६०,२६२,२६५,२८३,२८५.३०२,३०५, सल्ली [दे० ] जी० २१९ ३१३,३२७,३५२,३६२,३६८ से ३७१,३६०, सवण धवण] ओ०१६. रा० २५४. ३६८,४४७,५६१,६३६,६५२,६५८,६६८, जी० ३४१५,५६६,५६७ ६७८,६७६,६८१,६८६,७०४,७०६,७३६, सवणया [श्रवणता] ओ० २०,५२,५३. रा० ६८७, ७४१,७५४,७७०,७७२,७६६,७९८,८१०, ७१३, ७१९,७५० से ७५३ ८२१,८३३,८३६,८४५.८४८,८५६,८६२, सवियारि [सविचारिन् ] ओ० ४३ ५६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ सविसय [सविषय] जी० १२४७ सव्वत्ता [सर्वता] ओ० ७६ सविवेस सिविशेष] जी० ३३१०१०,१०१४ सव्वत्थ सर्वार्थ ] ओ० ४० सवेदग [सवेदक] जी० ६१२२,२५,२७ सम्वत्य [सर्वत्र जी० २१८५ सवेदय [सवेदक] जी० ६२३,२८,३२ सव्वदरिसि [सर्वशिन् ओ० १६,२१,५४. सव सर्व ओ० २७. रा० ६. जी० ११५० रा० ८१२६२. जी० ३१४५७ सव्वओ [सर्वतस् ] ओ० ३,६,२७,७६,११७. सम्वद्धपिडिय [सर्वाध्वपिण्डित] ओ० १६५१४, रा० ६,१२,३०,४०,६३,६५,१२७,१३२, १३५,१५४,१५३,१८६,२०१,२०५ से २०७, सम्बद्धा सर्वाध्व] जी० ३।१६३,१६४ २३६,२६३,२८१,६७०,८१३. जी० १२१७, सव्वपाणभूयजीवसत्तसुहादहा {सर्वप्राणभूतजीव. ३८८,८१२,८२३,८५० सत्त्वसुखावहा] ओ० १६३ सब्बओभद्द [सर्वतोभद्र ओ० ५१ सम्वभाव [सर्वभाव ओ० १६५।१२ सम्वओभद्दपडिमा [सर्वतोभद्रप्रतिमा ] ओ० २४ सव्वभासाणुमामि [सर्वभाषानुगामिन् ] ओ० २६ . Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ सव्वभासानुगामिणी [ सर्वभाषानुगामिनी ] ओ० ७१. रा० ६१ सव्वरता [ सर्व रस्ता ] जी० ३६२२ सवागास | सर्वाकाश ] ओ० १६५।१५ सदिय [ सर्वेन्द्रिय ] जी० ३।६०२,६६०,८६६, ८७२,८७८ सव्व दिया जो गजुंजण्या [सर्वेन्द्रियकाययोगयोजना ] बो० ४० सम्वोउय [ सर्वर्तुक ] मो० ४६. रा० १५६,६७०. जी० ३।३३२ सव्वीस पित्त [ सर्वोषधिप्राप्त ] ओ० २४ सस [शश ] रा० २७ संभम [ ससम्भ्रम ] ओ० २१,५४ ससक [ शशक] जी० ३।२८० सक्खं | ससाक्ष्य, ससाक्षात् ] रा० ७५४, ७५६, ७६४ ससग [ शशक ] जी० ३।६२० सण [ श्वसन] ओ० १६. जी० ३।५९६ ससरोरि [ सशरीरिन् ] जी० ६१६२ सति [ शशिन् ] ओ० १५,१६,४७,६३,१४३. रा० ६७२,६७३,८०१. जी० ३१५६३,५६६, ५६७,८०९, ८३८१३,२४,२६,२८,३०.३१, १००० ओ० ६२ ससुर कुलरक्खिया [ श्वसुरकुल रक्षिता ] सस्सिरीय [सश्रीक] ओ० ६३. रा० १३६,२२८. जी० ३।३०६, ३८७,५६६,६७२ afratea [ सश्रीकरूप] रा० १७,१८,२०,३२, १२६,१३०,१३७. जी० ३।२८८, ३००, ३०७, ३७२ सह [सह ] जी० ३।६११ सहसंबुद्ध [ स्वयंसम्बुद्ध ] ओ० १६,२१,५२,५४ सहसा [ सहसा ] जी० ३।५८६ सहस [ सहस्र ] ओ० १६,६८,६६,८६ से ९३, १७०,१६२. रा० १७, १८, २०, २४,३२,५२, ५६,१२४, १२६,१२६, १५६,१६३, १६६, सभासानुगामिणी सहस्ससो १८८, २३१,२४७, २७६, २८०, ७८७,७८८. जी० ११५८, ५६, ६५, ७३,७४,७८,८१,९४, ६, १०१, १०३,१११, ११२, ११६, ११६, १२३, १३६,१३७२ ३५ से ३६,६६, १०८, ११०,१११, ११८, १२८, १२६,१३६; ३१४ से २१, २३ से २७,५१,६० से ६३,७७,८० से ८२,६१, ११८, १७४,१५६ से १६२,२२६/६, २४२, २४६,२६०,२७७,२८८, ३००, ३३२, ३३५, ३३६,३५१,३५५,३५८,३६१,३७२, ३ε३,३६८,४४५,४४६, ४४८,५६६, ५६८ से ५७०,५७७, ५६०, ५६८,६३२,६३८,६३६, ६६०, ७०३, ७०६,७१४, ७२२, ७२३, ७२५, ७२६,७२८,७३२,७३३,७३६,७३६,७४०, ७४२,७४५,७५०,७५४, ७६१, ७६२, ७६४ से ७७६,७८८ से ७६२, ७६४, ७६५, ७६८, ८०२,८०६, ८१२,८१४,८१५, ८२०,८२३, ८२७,८३०, ८३२,८३४,८३५,८३७,८३८१२७, ३१,८३६, ८४१, ८८२,६११,६१८, ६७१, १०००,१०१५.१०१७ से १०१६, १०२२, १०२३,१०२८, १०२६,१०३८, १०५१, १०७३, १०७४, ११३१४३, ६, ६, ११, १६; ५०५, ६, १०, १२, १४, १५, २५, २६; ६२, ६,७१३,१३, ८ ३ ६ २ से ४,१३२,२१०, २१४,२२४,२२८, २३४,२४१,२६०, २६६, २७७ सहस्तपत्त [ सहस्रपत्र ] ओ० १२,१५० रा० २३, १७४, २२३,२७६,२६१,२८८,२८१६,६११. जी० ३।११८, ११६, २५६,२६६.२८६,२६१, ३१५, ४४५, ४४७, ४५४, ४५५, ६३६, ६३७, ६५१,६५६,६७७,७३८,७४३,७६३, ८१४ सहस्सपाग [सहस्रपाक] ओ० ६३ सहभाग [ सहस्रभाग] ओ० २ सहस्सरस्सि [सहस्ररश्मि ] ओ० २२. रा० ७२३, ७७७,७७८,७८८ सहसवत [ सहस्रपत्र ] रा० १६७,२७६ सहस्तसो [सहस्रशस् ] जी० ३।१२६६ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्सार सामरियाग सहस्सार [महस्रार ] ओ० ५१,१५७,१९२. जी० ११११६, १२३; २६१,६६, १४८, १४६; ३११०३८, १०५२,१०६१, १०६६, १०६८, १०७६, १०५३, १०८५१०८८ सहस्सारग [ सहस्रारक ] जी० ३१११११ सहा [ सभा ] ओ० ३७. जी० ३।४१२ सहिग [ श्लक्ष्णक] जी० ३१५६५ सहित] [ सहित ] जी० २ १०५; ३ २८५,९२७ सहि [ संहत] ओ० १६ सहिय [सहित ] रा० ७५. जी० ३८३८६२५ सही [ सखी ] जी० ३१६१३ सहोद [ सहोढ ] ० ७५४,७५६,७६४ साइ [ साचि] ० ६७१ / साइज्ज [ स्वाद् ] - साइज्जामो ओ० ११७ साइज्जण्या [ स्वादन ] ओ० ३३ साइज्जित [ स्वादयितुम् ] ओ० ११७ साइम | स्वाद्य ] ओ० ११७,१२०, १४७, १६२. रा० ६६८, ७०४,७१६,७५२, ७६५, ७७६, ७८७ से ७८६,७६४,७९६,८०२,८०८ साइरेग [ सातिरेक ] ओ० २३, १४५, १८८. रा० १७०, २११,२२२, २२७,२५३. जी० २२६३३३२५०, ३५८, ३७४,३७६, ३८६, ४१४,६५३,६७५,८८२, ८८७,८९४ ६३४, ८६,६३,१३४,१६०, १६१, १६५ साउ [ स्वादु ] ओ० ६. जी० ३.२७५ सागर [ सागर ] ओ० २७,४६,७४३५.६६, १६५३२२. रा० २४,७६५, ८१३. जी० ३।२७७, ५६६,८३८/२३ सागरनागरपविभत्ति [ सागरनागरप्रविभक्ति ] रा० ६२ सागर विभत्ति | सागरप्रविभक्ति ] रा० ६२ सागरमह [ सागरमह] रा० ६८८,६८६ सागरोवम [सागरोपम] ओ० ११४,११७, १४०, १५५,१५७ से १६०, १६२, १६७. रा० २८२. जी० ११६६,१३६,१३८ २७३,७६,८२, ३,९७,१०७, १०८, ११८, १२५, १२७,१२६, १३६; ३११६२, १६७, ४४८, ८४१, १०४६, १०४७, १०४९ से १०५३,१०५५, ११३१, ११३७; ४/४,६,१५, १६ : ५१६, १०, १६२८, २६; ६२, ११; ७३३, १६; ८३; १२ से ४, ३१,३४,६८,७२,८६,६३,१०२, १०६, १२३, १२८,१३२,१३४,१६०,१६१, १६५, १७२, १७६,१०६ से १६१, १६३, १६८, १६६, २०३, २०६,२१०,२१७,२२४,२२८,२३४, २४४, २६०,२६६,२८० सागर [ साकार ] ओ० १८२, १९५३११. जी० ११३२,८७,३३१०६,१५४,१११०; ६३६, ३७ साक्कोसिया [ सानुक्रोशता ] ओ० ७३ सातासोक्ख [ सातसौख्य ] जी० ३ १११७ साति [ साचि ] जी० १११६ साति [ स्वाति ] जी० ३ १००७ सातिरेग [ सातिरेक ] रा० ८०५. जी० १।७४; २१४३, ४४, ४७,८२, १२५, १२८ ३२४७, २५६,३८१,६४२,६७२,६७६, ६६६, ६०७, १०३४,१०३६,११३७ ४ / ६, १५ : ५३१६. २६; ६११७१६; ८१३ ६ ३ ३१, ६८, ७२, १०२, १०६, १२३, १२८,१३२, १६८, १६६, २०६,२१७,२४४,२६०,२८० सादीय [शादिक ] मो० १८३,१८४,१६५. শুধু७ जी० ६ २४,२५,३१,३३,३४,८२, ११०, १२५, १६३,१६२, १६५,२०१,२०२,२०५,२०६, २१५.२१६,२२७,२३०, २४०, २४६, २६१, २६५, २७६,२८५ साभावि [ स्वाभाविक ] १० २७६,२८०. जी० ३।४४५, ४४६ साम [ सामन् ] रा० ६७५ सामंत [ मामन्त ] रा० ७५३ सामण्णपरियाग [ श्रामण्यपर्याय ओ० ६५, १५५, १५६,१६० Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ सामन्नमोविणिवाइय-साला सामन्नओविणिवाइय [सामान्यतोविनिपातिक] सार [सार ओ०१४,२३,४६. रा० ३७,१७३, रा० ११७,२८१ ६७१,६७६,६६५. जी० ३।२८५,३११,५८६, सामन्नतोविणिवातिय [सामान्यतोविनिपातिका जी० ३1४४७ सारइय [शारदिक] जी० ३१२८२,८७२,६६० सामलतामंडवग [श्यामलतामण्डपक] सारक्सणाणुबंषि [सॉरक्षणानुबन्धिन ] ओ० ४३ जी० ३८५७ सारग [सारक, स्मारक'] ओ०६७ सामलतामंडवय [श्यामलतामण्डपक] सारतिय [शारदिक] रा० २६ जी० ३१८५७ सारय [शारद] ओ० २७,७१. रा० ६१. सामलया [एयामलता) मो० ११. रा० १४५. जी० ३१५९२,५६७ जी० ३।२६८,३०८,३७७,३६०,५८४ सारयसलिल [शारदसलिल] रा०८१३ सामलयापविभत्ति [श्यामलताप्रविभत्ति] रा० १०१ सारस [सारस ] ओ० ६. जी० ३।२७५ सामलयामंडवग [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२६६ सारहि [सारथि] ओ०६४. रा० १७३,६७५, सामलयामंडवय [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२६७ ६८०६८१,६८३ से ६८५,६८८ ले ६६०, सामलि [शाल्मली] जी० ३१५९६ ६६२,६६३,६६५ से ७१०,७१३,७१४,७१६ सामवेद सामवेद] ओ० ६७ से ७३४,७३६,७४८. जी० ३१२८५ सामाइय [सामायिक ] ओ० ७७ सारा [दे० ] जी० २।६ सामाइयचरित्तविणय [सामायिकचरित्रविनय] सारिज्जंत सार्यमान रा० ७७ ओ०४० सारीर [शारीर] ओ०७४ सामाणिय [सामानिक] रा० ७,४१,४८,५६ से । साल शाल] ओ० ६,१०. जी० ११७१; ३१५८३ ५८,२७६ से २८०,२८२,२८४,२८७,२८९, सालघरग [शालागृहक ] रा० १५२,१८३. २६१,६५७,६५८,६६६. जी० ॥३३६,३५०, ३५६,४४२ से ४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, जी० ३१२६४ सालगग [शालनक] जी० ३१५६२ ५५८,५६३,५६५,६३५,६३७,६५७,६५९,६८०॥ सालभंजिया [शालभजिका] रा० १३३,१३६, ७००,७२१,७३८,७६०,७६३,८४३,८४६, २६४,२६६ से २६६,३१२,४७३. जी० ३१३००, १०२५ ३०३,३१६,३५५,३७२,४५६,४६१,४६२, सामाय [श्यामाक] रा० २६. जी० ३।२७६ ४७७,५३२ सामि [स्वामिन् ] ओ० ५६, रा० ६,६८१,७०७, सालभंजियाग [शालभजिकाक] रा० १७,१८, ७२३,७२६,७३१,७३३ से ७३५,७५१,७५३ ३२,१३० सामित्त [स्वामित्व] ओ० ६८. रा० २०२. सालमंत [शाखावत् ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ जी० ३१३५०,५६३,६३७ सालवण [शालवन] जी० ३१५८१ सामुग्ग [समुद्ग] ओ० १६ साला [शाखा] रा० १३३,२२८. जी०३०३,३८७, सामुच्छेइय [सामुच्छेदिक] ओ० १६० ५८०,६२१,६७२ से ६७४ सामुद्दग सामुद्रग] जी. ३१७८० साय [सात] जी० ३।१२६६ १. 'सारय' ति अध्यापनद्वारेण प्रवर्तकाः स्मारका साया [सात] जी० ३।११८,११६ वा अन्येषां विस्मृतस्य स्मारणात् (वृ)। Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालि - सिंगार सालि [शालि ] ओ० १. रा० १५० जी० ३।६२१, साहरण [ संहरण ] जी० २।११६,१२४ ६३१ सालि पिट्ठ [शालिपिष्ट ] रा० २६. जी० ३१२८२ सालिसय [सदशक ] रा० २४५. जी० ३।४०७ सावएज्ज [ स्वापतेय ] रा० ६६५. जी० ३१६०० सावज्ज [सावद्य] ओ० ४०, १३७,१३८ सावज्जजोग [सावद्ययोग ] मो० १६२,१६३ सावतेज्ज [ स्वापतेय ] ओ० २३ सावत्थी [ श्रावस्ती ] रा० ६७५,६७७ से ६८० ६८३,६८५ से ६८६,६६२,७००,७०६, ७११ सावय [स्वापद ] ओ० ४६. जी ३१६२० सावय [ श्रावक ] जी० ३७९५,६४१ सावाणुग्गहसमत्य [शापानुग्रहसमर्थ ] ओ० २४ साविया [ श्राविका | जी० ३१७९५, ८४ १ सार्खेत [ श्रावयत् ] मो० ६४ सास [ श्वास ] जी० ३१६२८ सात [ शासत् ] ओ० ६४ सासत [ शाश्वत ] जी० ३१५७,५८,८७,७०२, ७६० सालय [ शाश्वत ] ओ० १८३, १८४, १६५।१६,२१. रा० १३३,१६८ से २०० जी० ३१५६, १२७१२,२७० से २७२,३०३,३५०, ७२१, ७२४, ७२६,७६०, १०८१ frer [स्वाशा, शास्या ] ओ० ४६ / साह [ कथय, शास् ] - साहिति. रा० ११ -- साहति. रा० २८१. जी० ३।४४७ - साहेह. रा० ९ / साह [ साधू ] - साहेइ रा० ७६५ – साहेज्जासि. रा० ७६५. – साहेमि. रा० ७६५ साह [ संहृत्य ] ओ० २१ / साहण [ स + हन् ] --- साहणेज्जा. जी० ३।११८ साहम्मियत्रेयावच्च [ साधर्मिकवैयावृत्य ] ओ० ४१ साहय ( संहत ] ओ० १६. जी० ३।५१६,५६७ / साहर [ सं + हृ] - साहरति जी० ३१४५७ ७५६ साहरणसरीर [साधारणशरीर ] जी० ११६८,७३ साहरिज्माण [संह्रियमाण ] रा० ३०,८०४. जी० ३१२८३ साहरिज्जमाणधरय [संह्रियमाणचरक ] ओ० ३४ साहरिता [ संहृत्य ] जी० ३।४५७ साहसिय [साहसिक ] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० साहस्ति [ साहस्रिक ] जी० ३१८४२ साहस्तिय] [ साहस्रिक ] रा० ५६. जी० ३१८४२, ८४५ साहसी [ साहस्री ] ओ० १६. रा० ७,४१ से ४४, ४८,५६ से ५८, २३५, २३६, २८०, २८२,२८६, २६१,५६८,६५७,६५८,६६० से ६६२,६६४. जी० ३:२३६,२४६, २५५, ३३६, ३४१ से ३४५,३५०, ३६७, ३६८, ४४६, ४४८, ४५५, ४५७,५५७,५५८,५६०,५६२,५६३,६३५, ६३७,६५७ से ६५६,६८०,७००, ७२१,७३३, ७३८,७६० से ७६३, १०२, १०३, १०२५, १०३८,१०४१, १०४४,१०४६, १०४९ से १०५२ साहस्सीय [साहस्रिक ] रा० ६७१ साहा [ शाखा ] मो० ५८. रा० २२८. जी० ३१२७४, ३८७, ६७२ साहित्ता [ कथयित्वा ] To e साहिय [साधिक] ओ० १६५४७ साहिय [सहित ] जी० ३१६२५ साहिय [साधित ] रा० ७६५ साहू [ साधु ] ओ० ४६,१६१,१६३ सिंग [ शृङ्ग ] रा० ७१,७७ सिंगबेर [शृङ्गवेर ] जी० ११७३ सिगमेद [ शृङ्गभेद ] ओ० १३ सिगमाल [श्रृङ्गमाल ] जी० ३।५८२ सिंगवाय [श्रृङ्गवादक ] रा० ७१ सिंगार [ शृङ्गार ] ओ० १५. रा० ७०,७८,१३३, ६७३,८०६,८१०. जी० ३।३०३, ५६७, ११२२ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० सिंघाड [श्रृङ्गाटक] ओ० १, ५२, ५५. रा० ६८७, ७१२. जी० ३।५५४,५५५ सिंघाडय [ श्रृङ्गाटक ] रा० ६५४,६५५ सिंदुवार [ सिन्दुवार ] जी० ३।२८२ सिंदुवार गुम्म [ सिन्दुवारगुल्म ] जी० ३१५८० सिंधु [ सिन्धु ] रा० २७६. जी० ३/४४५, ५६५ ६३७ सिभिu [ श्लैष्मिक ] ओ० ११७. रा० ७९६ सिंह [ सिंह | जी० ३७८१,७८२,१०३८ सिंहली [ सिंहली ] ओ० ७०. ० ८०४ feena [ शिक्यक ] ग० १३२,१५३,२३६,२४०. जी० ३१३२६, ४०२ सिक्क [ क्या ] ० १३२, १४०, ७६१. जी० ३।३०२,३२६,३६८, ४०२ सिक्खा | शिक्षा | ओ० ७६,७७, ६७ सिक्खाव [ शिक्षय् ] - सिक्खाविहित ओ० १४६ - सिक्खावेहि, रा० ८०६ fararan [ fशक्षाव्रत ] ओ० ७७ वित्त [ शिक्षयित्वा । ओ० १४६ सिक्खवेत्ता [ शिक्षयित्वा ] रा० ८०७ सिग्ध [ शीघ्र ] रा० १०, १२,५६,२७६. जी० ३१८६,१७६,१७८, १८०,१८२,४४५ सिग्धगति [ शीघ्रगति ] जी० ३६८६, १०२० सिग्धगमण [ शीघ्रगमन ] रा० १७,१८ V सिज्न | सिध् ] - सिज्झइ. ओ० १७७--- सिज्झई. ओ० १६५/१२ - सिज्यंति. मो० ७२. जी० १११३३ - सिज्झिहिति. ओ० १६६ सिज्झिहिति ओ० १५४ रा० ८१६ सिज्झमाण | सिध्यत् | ओ० १८५ सिढिल [ शिथिल ] रा० ७६०, ७६१ सिणाइत्तए [ स्नातुम् ] ओ० १११ सिणेह [ स्नेह ] ओ० १६८. जी० ३।२२ सिता [ स्यात् ] जी० ३ ६०, १०६, ११८, ११६, १७६,१७८, १००, १८२.१६५,१६६ •सित [ सिक्त ] ओ० ५५. जी० ३३५६२ सिंघा - सिय सित्थ [ सिक्थ ] जी० ३।५६२ सिद्ध [ सिद्ध] ओ० ७१,७४१३,६,१८३,१८४, १८६ से १६२, १६५३१.२, ४ से ११,१३,१५, १७, १६ से २१. जी० ११६; ६६, १०, १२, १४,१६,२६,४४,४५, ५४,६२,६६,१५६, १५८, २०६,२१५, २१६ से २२१,२२७,२३० से २३२,२४०, २४६, २६५, २६७, २७५, २७६, २८४ से २५७,२६२.२६३ सिद्धकेवलणाण [सिद्ध केवलज्ञान ] रा० ७४५ सिद्धस्य | सिद्धार्थ ] रा० १५६, १५७,२५८, २७६. जी० ३१३२६, ४१६, ४४५ सिद्धत्य [सिद्धार्थक ] रा० २७६,२८०. जी० ३१४४५, ४४६,४४८,५६३ सिद्धवसहि सिद्धति ओ० ७४१३ सिद्धाण | सिद्धायतन | रा० २५१, २५२,२५६, २६०,२७६,२६८,२६१, २६३,२६४,३१३, ३३१,३३२. जी० ३३४१२,४१३,४२०, ४२१, ४५४,४५७ से ४५६,४७८, ४६६, ४६७, ६७४, ६७६,६७७,६६१ से ६६८,८२५८८४,१०१ से ६०५, ६०६, ६१३ सिद्धालय [ सिद्धालय ] ओ० ७४ ६, १९३ सिद्धि | सिद्धि ] ओ० ७१,१७२,१६३ सिद्धिगइ [ सिद्धिगति ] ओ० १६,२१,५४,११७. रा०८, २६२,७१४,७६६. जी० ३१४५७ सिद्धिमग्ग | सिद्धिमार्ग ] मो० ७२ सिद्धिमहापट्टणाभिह | सिद्धिमहापत्तनाभिमुख ] ओ० ४६ सिप्प [ शिल्प ] ओ० ६३. रा० १२,७५८ से ७६१. जी० ३ ११८, ११६ सिप्पायरय | शिल्पाचार्य ] रा० ७७६ सिप्पि | शिल्पिन् ] ओ० १ सिप्पि | शुक्ति ] जी० ३।७६३ सिप्पिय | शिल्पिक] जी० ३१५६१ सिबिया [ शिविका ] ओ० ५२ सिय [सित ] ओ०४६ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिय-सीओसिणवेदणा सिय [स्यात् ] जी० ११४६,७३,८२; ३१५७,५८, २७० सियरत सितरक्त] ओ० ४७ सिया [स्यात् ] जी० ३८४,८५,११८,१६७, २७८ से २८५,६०१,६०२,८६०,८६६,८७२ से ८७८,६८२,१०८५,१०८६ सियाल [शृगाल ] जी० ३१६२० सिर शिरस् ] ओ० ५२,७१. रा० ६१,७६,६८७ से ६८९ सिरय ! शिरोज] ओ० १६,५१. रा० १३३. ___ जी० ३१३०३,५६६,५६७ सिरय | शिरस्क | ओ० ६३,६५ सिरसावत्त [शिरसावतं] ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,११७. रा०८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२,७४,११८,२७६,२७६,२८२,२६२.६५५, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी. ३१४४२,४४५,४४८,४५७, जी० ३१२८४,३८८,५८३ सिरीसव सरीसृप] रा०७१८. जी. ३१७२१ सिरोसिव सरीसृप रा० ७०३ सिरोवेदणा [शिरोवेदना] जी० ३।६२८ सिलप्पवालमय [शिलाप्रवालमय रा० २५४. सिला [शिला मो० १६,२३,४७. रा० २७, ६६५,७५५,७५७. जी० ३३२८०,५९६,६०८ सिलातल [शिलातल] जी० ३३५६६ सिलायल [शिलातल] ओ० १६ सिलिष सिलिन्ध्र ओ०४७ सिलेस [श्लेष] जी० ११७२१५ सिलोय श्लिोक ओ० १४६. रा० ८०६ सिव [शिव] ओ० १४,१६,२१,५४. रा०८, २९२,६७१. जी० ३।४५७ सिवग [शिवक] जी० ३।७४० सिवमह {शिवमह] रा० ६८८. जी० ३६१२ सिवय [शिवक] जी० ३१७३४,७४१ सिवा {शिवा] जी० ३।६२०११,९२२ सिविया ! शिविका] जी० ३।७४१ सिविया [शिविका] ओ० ७,८,१०. ०० ६८७ से ६८६. जी० ३.२८५ सिस्स [शिष्य ] जी० ३१६१० सिस्तिरिली [दे०] जी० ११७३ सिहंडि [शिखण्डिन्] ओ०६४ सिहर [शिखर] ओ० ५. रा० ५२,५६,१३७, २३१,२४७. जी० ३.२७४,३०७,३७३ सिहरि [शिखरिन्] रा० २७६. जी. ३१२२७, ४४५,७६५ सोउंढी दे०] जी० ११७३ सीओदा [शीतोदा] जी० ३१५६८,७०८ सीओभास [शीतावभास] ओ० ४. रा० १७०, १७३. जी. ३२७३ सोओया [शीतोदा] जी० ३।४४५ सीओसिणवेदणा [शीतोष्णवेदना] जी० ३।११२, ११३,११४ सिरिकता [श्रीकान्ता] जी० ३३६८८ सिरिचंदा [श्रीचन्द्रा] जी० ३१६८८ सिरिणिलया [श्रीनिलया] जी० ३।६८८ सिरिदाम [श्रीदामन् ] जी० ३४५६७ सिरिधर [श्रीधर] जी० ३८५४ सिरिप्पम श्रीप्रभ] जी० ३।८५४ सिरिमहिया [श्रीमहिता] जी० ३१६८८ सिरिली दे० श्रीली] जी० ११७३ सिरिवच्छ [श्रीवत्स ] ओ० १२,१६,५१,६४. रा० २१,४६,२५४,२६१. जी० ३।२८६, ३४७,४१५,५६६१ सिरी [श्री रा०४०,१३२,१३५.२३६,७३२, ७३७,७७४,७८२. जी० ३१२६५,३०२,३०५, ३१३,३६८,५८०,५८१,५६१ सिरीस [शिरीष] ओ० ६,१०. रा० ३१. १. श्रीवृक्षणाङ्कितं- लाञ्छितं वक्षो येषां ते श्रीवृक्षलाञ्छितवक्षसः (व० पत्र २७१) । Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीत-सीहासण ७६२ सीत [शीत] जी० ३:२२,११३,११४,११८, ११६ सोतल [शीतल ] जी० ३।११८,११६ । सीतवेदणा [शोतवेदना जी० ३१११२ से ११४, सीता शीता] रा० २७६. जी० ३।३००,६३२, ६३६,६६८,७४६ सोतीभूय शोतीभूत ] जी० ३११८ सीतोदय [शीतोदक ] जी० १९६२ सीतोदा [शीतोदा ] रा० २७६. जी० ३१७४६, । सोसोसिण [शीतोष्ण] जी० ३३११२,११५ सीषु [सीधु] जी० ३१५८६,८६० सोमंकर [ सोमङ्कर] ओ० १४. रा० ६७१ सोमंतोवणयण सीमन्नोपनयन] जी० ३१६१४ सोमंधर [सीमन्धर ] ओ० १४. रा० ६७१ सीमा सीमा] ओ०१ सीय शीत ओ० ४,८६,११७. रा० १७०,७०३, ७९६. जी० ३.११२,११३,११५,११८,११६, २७३ सीय [सित] ओ० १६५ सीयच्छाय शीतच्छाय] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३३२७३ सीयकूड [शीतकूट] जी० ३.११६ सीयपडल [शीतपटल] जी० ३।११६ सोयपुंज शीतपुञ्ज] जी० ३।११६ सोयभूय [शीतीभूत ] जी० ३।११८,११६ सीयल [शीतल] रा० १५६,१७४,६७०. __ जी० ३१२८६,३३२,६०४ सोयवेदणिज्ज [शीतवेदनीय] जी० ३१११६ सीयवेयणिज्ज [शीतदनीय] जी० ३।११६ सीया [शीता जी० ३१४४५,८०० सोया [शिबिका] ओ० १,१००,१२३. रा० १७३. जी० ३२७६,५८१,५८५,६१७ सील [शील] ओ० ४६ सीलइ [शील जित् ] ओ०१६ सीलव्वय [ शीलवत] ओ० १२०,१४०,१५७. रा०६९८,७५२,७८७,७८९ सीवण्णी [श्रीपर्णी] जी० ११७१ सोसगपाय [मीराकपात्र] ओ० १०५,१२८ सीसगबंधण [सीमकबन्धन ] ओ० १०६.१२६ सीसगभारग [सोराकभारक] रा० ७६०,७६१ सीसघडी [ शीर्ष घटी] रा० २५४. जी० ३३४१५ सोसछिण्णा [ शीर्षछिन्नक] ओ०६० सीसछिण्णय शीर्षछिन्नक| रा० ७६७ सोसपहेलियंग [शीर्षग्रहेलिकाङ्ग] जी० ३१८४१ सीसपहेलिया [शीर्षप्रहेलिका] जी० ३८४१ सीसागर [सीसाकर] जी० ३।११८ सीह [शीघ्र] जी० ३१९८६ सीह सिंह] ओ० १६,२७,४८. ग० २४,३७, ८१३. जी. ३१८४,८८,२७७,३११,५६६, ५६७,६२०,६३१,७८२,१०१५ सोहकण्ण [सिंहकर्ण जी० ३।२१६ सीहकण्णी [ सिंहकर्णी] जी० ११७३ सोहमति शीघ्रगति] जी० ३९८६ सोहघोस (सिंहघोष | जी० ३१५६८ सोहन्सय [सिंहध्वज] रा० १६३. जी० ३।३३५ सोहणाय [सिंहनाद ओ० ५२. रा० ६८७,६८८. जी० ३1८४२,८४५ सोहणिक्कोलिय सिंहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सीहणिसाइ [सिंह निषादिन् ] जी० ३१८३६ सोहनाद [सिंहनाद] जी० ३१४४७ सोहनाय [सिंहनाद } १० २८१ सीहनिक्कोलिय [गिहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सोहपुच्छियग [ सिंहपुच्छितक | ओ०६० सोहमंडलपविभत्ति सिंहमण्डलप्रविभक्ति रा०६१ सोहमुह [सिंहमुख) जी० ३।२१६ सोहस्सर [सिंहस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५, ५६८ सोहासण [सिंहासन] ओ०१३,१६,२१,५४,६४. रा० ७,८,३७,३६,४१ से ४४,४७,५१,६७, Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरक्खाय-सुजात ६८,१५८,१६४,१८१.१८३,१८६,२०४ से २०७,२१६,२४३,२६५,२६७,२६६,२७७, २७६,२८३,२८६,२८८,३००,३२१,३३८, ३५२.४७४,५३४,५६५,६५७. जी० ३।२६३, ३११,३१२,३३१,३३६.३४५,३५५,३५६, ३५६,३६६,३६८,३७८,४०५,४१६,४२८, ४३१,४३४,४४३,४४५,४४६,४५२,४५४, ४६५.४८६,५०३,५१७,५३३,५४०,५४८ , ५५७,६३४,६३५,६६३,६७३,६८५,७३७, ७४०,७४२,७४५,७५०,७६२,७६५,७६८, ७७०,८६२,१०२४ से १०२६ सुअक्खाय [स्वाख्यात] ओ०७६ से २१ सुअलंकित [स्वलङ्कृत] जी० ३।३०३ सुअलंकिय (स्वलकृत रा० १३३ सुइ [शुचि ] ओ० १६,५५,६३,९८. रा०१६, २८१. जी० ३.४४७,५६६,५१७ सुइभूय {शुचीभूत] ओ० २१. रा० ७६५,६०२ सुझसमाचार [शुचिसमाचार बो० १८ सुईभूय [शुचीभूत] यो० ५४. रा० २७७ सुउत्तार {सुखोत्तार] रा० १७४, जी० ३१२८६ सुउमाल [सुकुमार] ओ० ६३ सुओयार [सुखावतार] रा० १७४ सुंक [शुल्क] रा० ७२७ संबर [सुन्दर] ओ० १५,१६,१४३. रा० ६७३, ८०१. जी० ३१५६६,५६७ सुंबरंगी [सुन्दराङ्गी] मो० १५. रा० ६७२ सुंसुमार [शंशुमार, शिशुमार] जी० ११६६,११८ सुंसुमारिया [शिशुमारिका] रा० ७७ संसुमारी [शुशुमार, शिशुमारी] बी० २१४ सुक {शुक] जी० ३५९७ सुर्फत [सुकान्त] जी० ३६७२ सुकठित [सुक्वथित ] जी० ३१८७२ सुरुढिय [सुक्वथित] जी० ३१८६६ सुकय [सुकत] ओ० २,१२,१५,५३ ६५. रा० ३२,१७३,२८१,६८१,६८७,६८९. जी० ३१२८५,३७२,४४७ सकुमाल सुकुमार] ओ०५,८,१५,१६,६३, १४३. रा० २२८,२८०,६७२,६७३,८०१. जी० ३३३८७,४४६,५६६,५६७,६७२,१०६८ सुक्क [शुक्र] ओ० ५०. जी० ३.११११ सुक्क [शुरुक] रा० २६,७८२ जी० ३१२८२ सुक्क [शुक्ल] जी० ६।१५४ सुक्क (झाण) [शुक्लध्यान] ओ० ४३ सुक्कपक्ख शुक्लपक्ष] जी० ३१८३८१८ सुक्कलेस [शुक्ललेश्य] जी० ६।१६१ सक्कलेसा [शुक्ललेश्या] जी० ३११५० सक्कलेस्स [शुक्ललेश्य ] जी० ३१८५,१६६ सुक्कलेस्सा {शुक्ललेश्या जी० ३१११०३ सुक्किल [शुक्ल] ओ० १२. रा० २२,२४,२६, १२८,१३२,१५३. जी० ११५,३४,३५,५०, १३६, ३१२२,४५,२७८,२८२,२६०,३०२, ३२६,३५३,३९७,५६५.१०७५,१०७६,१०६५ सुक्किलग [ शुक्लक ] जी० ३।२८२ सुक्ख [सौख्य ] ओ० १६२१ सुगंध [सुगन्ध] ओ० २,५५,६३. रा० ६,१२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७,४५१,५६२,५६६ सुगंधि [सुगन्धि] ओ० ७,८,१०. रा० १५६. जी० ३.२७६,३३२ सुगंधिय [ सौगन्धिक] ओ० १५०. रा० २७९, ८११. जी. ३१४४५।। सुगुन्सदेस [ सुगुह्यदेश | ओ० १६ सुगूढ [ सुगूढ | जी० ३४५६७ सुघोसा [सुघोषा] रा० ७७. जी० ३।७८,५८८ सुचरिय [सुचरित] रा० ८१४ सुचि [शुचि जी० ३।५६६ सुचिग्ण [सुचीर्ण] ओ० ७१. रा० १८५,१८७. जी० ३१२१७,२६७,२६८,३५८,५७६ सुजात [सुजात] जी० ३१३८७, ५८६,५६६,५६५ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ सुजाय-सुपतिट्टित सुदंसणा सुदर्शना] जी० ३।६६८,६७२.६७३, ६७८ मे ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, ७६५,६१० ६२१ सुदुत्तार [सुदुस्तार] ओ० ४६ सुद्ध [शुद्ध] ओ० २७. रा० ७६,१७३,८१३. जी० ३।२८५,५८५ सुद्धदंत [शुद्धदन्त] जी० ३।२१६ सुखदंता [शुद्धदन्ता] जी० २११२ सुखप्पावेस [ शुद्धप्रावेश, शुद्धपावेश्य, शुद्धात्मवेश] ओ० २०,५३. रा०६८५,६६२.७००,७१६, सुजाय [सुजात] ओ० ५,८,१४,१५,१६,१४३. रा० १७४,२८८,६७१ से ६७३,८०१. जी० ३१११८,११६,२७४,२८६,५६६,५६७, ६७२ सुजाया [सुजाता] जी० ३१६६६०२ सुज्म [दे०] रा० १७४. जी० ३.२५६ सुट्रिय [सुस्थित] जी० ३.५६४,७२१,७५४,७५६, ७६०,७६१ सुटिया [सुस्थिता] जी० ३१७६१ सुण [१]--सुणंतु. रा० १५-सुणह. ओ० १६५।१७--सुणिस्सामो .रा० १६ -~~~-सुणेस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७ सुण [श्वन् । जो० ३१८४ सुणग [शुनक] जी० ३१६२० सुणति सुनति रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ सुणिउण [सुनिपुण] रा० ५७ सुणिद्ध [सुस्निग्ध] ओ० १६ सुणिम्मिय सुनिमित] जी० ३१५६७ सुणिसिय [ सुनिशित] जी० ३१४१० सुणेत शृण्वत् ] रा० ७७४ सुणेत्ता | श्रुत्वा] रा० ६८८ सुहा | स्नुषा] जी० ३१६११ सुतिक्खधार | सुतीक्ष्णधार] रा० २४६. जी० ३१४१० सुत्त [सूत्र] रा० १३२,१५३,२३५. जी० ३.३०२, ३२६,३६७ सुत्त सुप्त] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० सुत्तओ | सूत्रतस् ] मो० १४६. रा० ५०६,८०७ सुत्तग [ सूत्रक] जी० ३१५६३ सुत्तखेड्ड' सूत्रखेल | ओ० १४६. रा० ८०६ सुत्तरुइ [सूत्ररुचि ] ओ० ४३ सुति [शुक्ति जी० ३१५८७ . सुत्थिय [सुस्थित ] जी० ३१७६१ सुवंसण (सुदर्शन ] जी० ३१८०६ १. सूत्रखेल - सूत्रक्रीडा, अत्र खेल शब्दस्य 'खेड्ड' इत्यादेशः (जंबु. वृत्ति) सुद्धपुढवी [ शुद्धपृथ्वी] जी० ३।१८५,१८७ सुद्धवात [शुद्धवात] जी० ३१६२६ सुद्धवाय शुद्धवात | जी० १२८१ सुद्धागणि [शुद्धाग्नि] जी० ११७८,८५ सुद्धसणिय [शुद्धषणिक ! ओ० ३४ सुद्धोदय [ शुद्धोदक] ओ० ६३. जी० ११६५ सुषम्मा [सुधर्मा] रा० २६७,६५६.जी० ३१३७२, ३६६,४१२,४२१,४२६,४४२,१०२४,१०२५ सुनिउण [सुनिपुण] रा० १२ सुनिवेसिय [सुनिवेशित ] ओ०६. जी. ३१२७५ सुपइट्ट [सुप्रतिष्ठ] रा० २५८ सुपइटक [सुप्रतिष्ठक | जी० ३१५६७ सुपइट्ठग सुप्रतिष्ठक] रा० १५२. जी० ३१५८७ सुपहटिय [सुप्रतिष्ठित ] रा १३३,१७३,२२८, ७५०,७५२,७५८. जो ३।२८५,३०३,६७६ सुपक्क [सुपरव] जी० ३१५८६,८६० सुपडियाणंद [सुप्रत्यानन्द ] ओ० १६३ सुपण्णत्त [सुप्रजप्त ] ओ० ७६ से ८१ सुपण्ह [सुप्रश्न ] ओ० ४६ सुएतिट्ट [सुप्रतिष्ठ] रा० २७६. जी० ३१३५५ सुपतिटक [सुप्रतिष्ठक | जी० ३।४१६,४४५ सुपतिट्टग [सुप्रतिष्ठक] जी० ३१३२५ सुपतिहित | सुप्रतिष्ठिन] जी० ३।३८७,३६३, ४०१ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुतिद्वि-सुरभि सुपतिट्ठिय [सुप्रतिष्ठित ] रा० ५२,५६,२३१, २४७,७५४,७५६,७६०,७६२,७६४. जी० ३०५९६,६७२ सुपरक्त [ सुपराक्रान्त ] रा० १८५,१५७. जी० ३।२१७, २६७, २६८, ३५८, ५७६ सुपरिणियि | सुपरिनिष्ठित ] ओ० ६७ सुपस्सा [ सुपश्या ] रा० ८१७ सुपिणद्ध | सुपिनद्ध ] जी० ३१२८५ सुपट्टिय [सुप्रतिष्ठित ] ओ० १६ सुप्पडियाद [ सुप्रत्यानन्द ] ओ० १६१ सुप्पबुद्धा [ सुप्रबुद्धा ] जी० ३,६९६ सुपभ [ सुप्रभ] जी० ३१८७५ सुप्रभा [ सुप्रभा ] ओ० १९४ सुप्पमाण | सुप्रमाण ] ओ० १३,१६. जी० ३३५९६, ५६७ सुप्पसारिय [सुप्रसारित ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ सुष्वसूय [सुप्रसूत ] आ० १४. रा० ६७१ सुफाल [ सुस्पर्श ] जी० ३।६८१,६८७ सुबद्ध [ सुबद्ध] ओ० १६. रा० १७४. जी० ३२२८६, ५६६, ५६७ सुबह [ सुबहु ] रा० २६६, २६८,७५० से ७५३, ७७४. जी० ३१४३२, ५३४,५४१ सुभिगंध [ सुगन्ध ] जी० ११५,३६,३७,५०, ३६७६,६८५ सुभित्त [ सुगन्धत्व ] जी०३६८५ सुन्भिसद्द [ सुशब्द ] जी० ३१६७७,९८३ सुम्भसद्दत [ सुशब्दस्व ] जी० ३३६८३ सुभ [ शुभ ] ओ० ५१,११६,१५६. १० १८५, १८७,६७० जी० १ १३४; ३ २१७,२६७, २६८,३५८,५७६,६७२,१०६०,१०६६ सुभग [ सुभग | ओ० १२,१५०. ० २३,१७४, १६७,२७६,२८८,८११. जी० ३।११८, ११६, २५६,२८६,२६१ सुभकं [ शुभचक्षुः कान्त ] जी० २०९३३ सुभद्द [ सुभद्र ] जी० ३९२८ सुभद्दा | सुभद्रा ] ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. जो० ३१६६६ ७६५ सुभावि [ सुभावित ] ओ० ७६ से ८१ सुभासि [ सुभाषित] ओ० ७६ से ८१ सुभिक्त | सुभिक्ष] ओ० १,१४. ० ६७१ सुभूम | तुभूम ] जी० ३।११७ समझ [ सुमध्य ] रा० १३३. जी० ३१३०३ सुमन | सुमनस् | जी० ३।६२५,६३४ सुमणदाम [ सुमनोदामन् | रा० २७६,२८५. जी० ३१४४५, ४५१ सुमणभद्द [ सुमनोभद्र ] जी० ३१६२८ सुमना | सुमनसी | जी० ३१६६६,६२० सुमहग्घ [सुमहार्घ्य ] ओ० ६३ सुख [ शुक] ओ० ६. जी० ३१२७५ सुम [ श्रुत] ओ० ५२. रा० १६,६८७,६८६ सुयअण्णाणि [ श्रुताज्ञानिन् ] जी० १ ३०,८७,९६, ३३१०४,११०७ ६ १६७,२०२, २०६,२०८ सुवणाण [ श्रुतज्ञान] ओ० ४०. रा० ७३६,७४२, ७४६ सुयणाणविजय [ श्रुतज्ञानविनय ] ओ० ४० सुयणाणि ( श्रुतज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११८७, ६६,११६,१३३; ३ । १०४,११०७ ६ १५६, १६०,१६५. १६६, १६७, १६८, २०४, २०८ सुयदेवया [ श्रुतदेवता ] रा० ८१७ सुयनाणि [ श्रुतज्ञानिन् ] जी० १११३३ सुपिच्छ | कपिच्छ ] रा० २६. जी० ३।२७६ सुमुह [ शुकमुख ] ओ० २२. रा० ७७७,७७६, ७८८ सुरइ | सुरति ] रा० ७६, १७३ सुरइय [सुरचित] ओ० ४६ सुरति [ सुरति ] जी० ३।२८५ सुरभि [ सुरभि ] ओ० २,७,८,१०,४६,५५. रा० ३२, १३१, १४७, १४८, १५६,२२८,२८०, २८१,२८५,२६१,३५१,६७०. जी० ३१२२, २७६, ३०१,३३२,३७२, ३८७,४४६, ४४७, ४५१,५६८ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरभिगंध-सुसिर सुरभिगंध [सुरभिगन्ध] रा० ६,१२ सुदामरुप्पामय [सुवर्णरूप्यमय] रा० १६,१५३, सुरम्म {सुरम्य ] ओ० १,६ से ८,१०,१३. १६०,२३५,२३६,२४०,२७५,२८०. रा० २२,३७,२४५. जी० ३।२७५,२७६, जी० ३।२६४,२८७,३२६,३६७,३६८,४४५ ३११,३८६,४०७,५८१,५८५ सवण्णागर | सुवर्णाकर रा० ७७४. जो० ३.११८ सुरवर [सुरवर] रा० ८,६,१२ सुवयण [सुवचन] ओ० ५२. रा० ६६७,६८७ सुरस | सुरस] जी० ३१६८०,६८६ सुवासित [सुवासित ] जी० ३१८७८ सुरहि । सुरभि] ओ० ६३. जी० ३१६७२ सुविणीय [सुविनीत] रा० ७६ से २१ सुरा [सुरा] जी० ३१५८६ सुविभत्त {सुविभक्त] ओ० १,५,८,१०,१६. सुरूव [सुरूप] ओ०१५,४७ से ५१,१४३. ग० ३२,१४५. जी० ३१२६८,२७४,३७२, रा० ५३,६७२,६७३,८०१. जी० ३।२६०, ५६६,५६७ ६७८,६८४ सुविरइय [सुविरचित रा० ३७,२४५. सुरुवग [सुरूपक जी० ३५९६ जी० ३।४०७,५६६,५६७ सुरूवत्त [सुरूपत्व] जी० ३६८४ सुविरचित { सुविरचित] जी० ३१३११ सुलभबोहिय [सुलभबोधिक] रा० ६२ सुविहि सुविधि] जी० ३६५६४ सुललिय [सुललित] रा० १७३. जी० ३१२८५ सुव्वत्त { सुव्यक्त] ओ० ७१. रा० ६१ सुवण्ण | सुवर्ण] ओ० २३,५२,६३. रा० ४०,१३२, सुव्वय [ सुबत] ओ० १६१,१६३ १७४,२८१,६८७ से ६८६. जी. ३१२६५, सुसंपउत्त [सुसम्प्रयुक्त] ओ० ४६,६४. रा० ७६, २८६,३०२,३१३,४४७,६०८,८४०,८८५, १७३,६८१. जी. ३१२८५,५८८ ११२२ सुसंपग्गहित [सुसम्प्रगृहीत ] जी० ३१२८५,३०२ सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ० ६४. रा० १३२, सुवण्ण [सुपर्ण] मो० ४८,१२०,१६२. रा०६६८, १७३ ७५२,७८६. जी० ३१२३२ सुसंपरिंगहित [सुसम्परिगृहीत | जी० ३।२८५ सवण्णकला [सुवर्णकूला रा० २७६. जी० ३१४४५ सपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत] रा० १७३.६८१ सुवण्णजुति [सुवर्णयुक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसंपिणद्ध [सुसंपिनद्ध] रा० १७३,६८१ सुवण्णजूहिया [ सुवर्णयूधिका] रा० २८. सुसंभास [सुसंभाष] ओ० ४६ ___ जी० ३१२८१ सुसंवय [सुसंवृत] ओ०६३ सुवण्णदार [सुपर्णद्वार] जी० ३१८८५ सुसंहय ! सुमंहत] ओ० १६ सवण्णपाग [सुवर्णपाक] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसस्कय [सुसंस्कृत] जी० ३।५९२ सुवण्णमणिमय [सुवर्णमणिमय] रा० २७६,२८०. सुसज्ज [ सुसज्ज] ओ० ५७. रा० ५३ जी० ३१४४५ सुसमाहिय [सुसमाहित] ओ० ३७ सुवण्णरुप्पमणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय ] रा० २७६, सुसवण [सुश्रवण ] जी० ३१५६६ २८०. जी० ३१४४५ सुसव्व [सुगर्व] रा० १५२. जी० ३३२५ सुवण्णरुप्पमय [सुवर्णरूप्यमणिमय रा० १७५. सुसामण्णरय सुश्रामण्यरत ] ओ० २५,१६४ जी० ३.४०२,६०२ सुसाहत सुसंहत] जी० ३।५६६ सवण्णरुप्पामणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] सुसिणिद्ध [सुस्निग्ध] जी० ३।५९७ जी०-३२४४५ सुसिर शुषिर] रा० ११४२८१ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिलिट-सुहमवणस्सतिकाइय ७६७ सुसिलिट्ट सुश्लिष्ट ओ० १६,६३,६४. रा० ३२, सुहिरण्ण [सुहिरण्य] रा०२८ ५२,५६,२३१,२४७. जी० ३।३७२,३६३,४०१, सुहिरण्णया सुहिरण्यका) जी० ३१२८१ सुहम सुक्ष्म] ओ० ४७,१७०,१८२. रा० १६०, सुसील [सुशील ] ओ० १६१,१६३ २५६. जी० ३६१३३,३३३,४१७,५६६ : सुसुइ सुश्रुति ] ओ०४६ ५१२१ से २३,२५ से २७,३४ से ३६,५१,५२, सुस्सर | सुस्वर] रा० १३५. जी० ३१३०५,५९७, ५७ से ६०; 818५,६६,६६,१०० ५१८ सुहुमआउ [सूक्ष्माप्] जी० ५।२५ सुस्सरधोस [सुस्वरघोष रा० १३५. जी० ३।३०५ सुहमआउकाइय सूक्ष्मा कायिक] जी० ५।२७,३४ सुस्सरणिग्घोस [सुस्वरनिर्धाप ) जी० ३३५६८ सुहमआउक्काइय [सूक्ष्माकायिक जी० ११६३,६४ सुस्सरा [सुस्वरा} रा० १४ सुहुमकाल [सूक्ष्मकाल] जी० ६६६ सुस्सषण [सुश्रवण | ओ० १६ सुहुमकिरिय सूक्ष्मक्रिय ] ओ० ४३ सुस्सूसणाविणय सुश्रूषणाविनय ] ओ० ४० सहमणिओद {सूक्ष्मनिगोद | जी० ५१३८,३६,४४ सुस्सूसमाण (शुश्रूषमाण] ओ० ४७,५२,६६,८३. से ४६,५२,६० रा० ६०,६८७,६६२,७१६ सुहमणिओदजीव [ सूक्ष्मनिगोदजीव जी० ५।५३, ५४,५६,६० सुह [सुख ] ओ० १,२३,२६,५२,१६५।१५,१६, सुहमणिओय [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२१,२२,२५, २२. रा० १५,२७५,२७६,६८३,६६७. २७,३४,३५ जी० ३११२६३६,४४१,४४२,५६४,६०४, सुखमणिगोद [सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।४४ ५३८४१३ सुहमणिगोदजीव सूक्ष्मनिगोदजीव] जी० ५१६० सुह [शुभ ] ओ० ६ से ८,१०. जी० ३१२७५,२७६ सुहमणिगोय [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५१२६,३६ सुहंसुह सुखंसुख] ओ० १९. रा० ६८६,७११, सुहमतेउकाइय [ सूक्ष्मतेजस्कायिक जी० ५।२५, ८०४. जी. ३१६१७ २७,३६ सुहफास [सुखस्पर्श, शुभस्पर्श ] रा० १७,१८,२०, सुहुमतेउक्काइय [सूक्ष्मतेजस्कायिक] जी० ११७६, ३२,१२६,१३०,१३७. जी० ३:२८८,३००, ७७; ५१३४ ३०७,३७२ सुहमनिओग [सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२४ सुहम्मा [सुधर्मा] रा० ७,१२ से १४,२०६,२१०, सुहमनिओय [ सूक्ष्म निगोद] जी० ५॥३४,३५ २३५ से २३७,२५०,२५१,२७६,३५१,३५६, सुहमनिगोद { सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।३४ ३५७,३७६,३६४,३६५,६५७,७६५,७६४, सुहमपुढविकाइय [सूक्ष्मपृथ्वीकायिक] जी० ११३६ ८०२. जी. ३।३६७,३९८,४११,४१२,५१६, १४,५६; ३।१३२,१३३, ५५२,३,२४,२५, ५२१ से ५२५,५५६,५५७ सुहलेसा [शुभलेश्या] जी० ३।६३८१२६ सुहमपुढवी [सूक्ष्मपृथ्वी] जी० ॥२७ सुहलेस्सा [शुभलेश्या] जी० ३१८४५ सुहुमवणस्सइकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक] सुहविहार [सुखविहार जी० ३।५६४ जी० ११६६,६७; श२७,३४,३६ सुहासण | सुखासन] रा०७६५,७६४,८०२ सुहमवणस्सति [ सूक्ष्मवनस्पति ] जी० ५५२४ सुहि । सुखिन् ] ओ० १६१६,२२ । सुहमवणस्सतिकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक सुहिय [सुहृद् ] जी० ३१६१३ जी० ५२२५,२७,३६ २७,३४ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६५ सुहमवाउकाइय-सूरिल्लिमंडवग ५६० सुहुमवाउकाइय सूक्ष्मवायुकायिक] जी० ५।२७, सूरवीव [सूरद्वीप] जी० ३।७६५,७६९,७७१,७७७ सूरद्दीव [ सूरद्वीप] जी० ३।६३७ सुहुमवाउक्काइय सूक्ष्मवायुकायिक] जी० १८० सूरपरिएस [ सूरपरिवेश] जो० ३।८४१ सुहमसंपरायचरित्तविणय | सूक्ष्मसम्परायचरित्र- सूरपरिवेस | सूरपरिवेश] जी० ३।६२६ विनय | ओ० ४० सूरप्पभा [ सूरप्रभा जी० ३।७६५,१०२६ सुहुमसरीर [ सूक्ष्भशरीर | जी० ३११२६६ सूरमंडल [ सुरमण्डल ] रा० २४. जी० ३१२७७, सुहय | सुहुत] भो० २७. रा. ८१३ महोत्तार [सुखोत्तार जी० ३।५९४ सूरमंडलपविभत्ति | सूरमण्डल प्रविभक्ति] रा० ६० सुहोदय {शुभोदक, सुखोदक | ओ० ६३ सूरवर्डसय [ सूरावतंसक ] जी० ३।१०२६ सुहोयार | सुखावतार | जी० ३१२८६ सूरवरोभास | सूरवरावभास] जी० ३।६३८ सूइभूत सूचीभूत ] जी० ३१४४३ सूरविमाण | मूरविमान] जी० २४१, ३३१००३ सूई । शुबी] रा० १६,१३०,१७५,१८०,१६७. से १००५,१००६,१०११,१०२६ जी० ३।२६४,२६६,२८७,३०० सुरागमणपविभत्ति [सूरागमनाविभक्ति] रा० ८७ सूईकलाव शूचीकलाप] जी० ११७७,७६ सूराभिमुह | स राभिमुख ] अं० ११६ सूईपुडंतर [शुचोपुटान्तर | रा० १६७. सूरावरणपविभत्ति | सुरावरणप्रविभक्ति रा.८८ जी० ३।२६६ सूरावलिपविभत्ति सूरावलिंप्रविभक्ति रा०८५. सूईफलय | शूचीफलक[ रा० १६७. जी. ३१२६६ सूरिय सूर्य ओ०१६२. रा० ४५,१२४. सूईभूय | शूचीभूत] रा २८८ जी० ३११७६,१७८,१८०,१८२,२५७,७०३, सूईमुख {शूचीमुख ] रा० १६७ ७२२,८०६,१२०,८३०, ३४,८३७,८४१,८४२. सूईमुह : शूचीमुख ] जी० ३३२६६ ८४५,६८८ से १०००,१०२०,१०३७,१०३८ सूचिकलाव [ शूचिकलाप] जी० ३८५ सरियकंत सूर्यकान्त ] रा०६७३,६७४,७६१ से ७६३ सूणगलंछणय [सूणालाञ्छणक | रा० ७६७ सूरियकता । सूर्यकान्ता] रा० ६७२,६७३,७५१, सूमाल (सुकुमार] रा० २८५. जी० ३१२७४,४५१ ____ ७७६,७६१ से ७६४,७६६ सूयगडघर [सूत्रकृतधर] ओ० ४५ सूरियाभ सूर्याभ] रा०७,९,१०.१२ से १८,४१ सूयपुरिस [सूपपुरुष] जी० ३।५६२,५९७ से ४४,४६ से ४६.५५ २४ ६५,६८,६६,७१ से सूर | सूर] ओ० १६,२२,२७,५०, रा० १३३, ७४,११८ से १२०,१२२,१२४ १२६,१२६, ७७७,७७८,७८८,८०३,८१३. जी. २०१८) १६२,१६३,१६,१७०,१८७,२३४०,२५,२६६ ३।२५८,३०३,५८६,५६३,५९६,७६५,७६७, २६८,२७०,२७४ से २६१,६५४ से ६६७, ७६६,७७१,७७३,७७५,७७७,७७६,८३८१४, ७९६ से ७६E १०,१५,२१,२३,२४,२७,२८,२६,३२,६३७, सुरियाभविमाणपइ । सूर्याभविमानपति] २१ ९५०,६५३,१०१६,१०२०,१०२१,१०२६, सूरियाभविमाणवासि | सूर्याविमा वासिन् ११२२ स० ७,१५ से १७,५५,५६,५८,२८०,२८२, सूरकतमणि [सूरकान्तमणि] जी० ११७८ २८६,२६१,६५७ सरणकद [शूरणकन्द] जी० ११७३ सूरिल्लिमंडवग [दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८४. सूरत्यमणपविभत्ति [सूरास्तमनविभक्ति] रा० ८६ जी० ३।२६६ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरिल्लिमंडवय-सोइंदिय ७६६ सूरिल्लिमंवय | दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८५ सेय [सेक] जी० ३४५६२ सूरुग्गमणपविभत्ति [सूरोद्गमनप्रविभक्ति रा० ८६ सेयकणवीर श्वेतकणवीर] रा० २६. सूरोवराग [ सूरोवराग] जी० ३।६२६,८४१ जी० ३१२८२ सूल | शूल] ओ० ६४. जी. ३.११० सेयबंधुजीव [ श्वेतबन्धुजीव] रा० २९. सलग शूलाग्र जी० ३.८५ जी० ३१२८२ सुलभिण्णग [ शुलभिन्नक] ओ० १०. रा० ७५१ सेयमाल [श्वेतमाल ] जी० ३१५८२ सूलाइग ! शुलातिग | रा० ७५१ सेयविया [श्वेतविका] रा० ६६६ से ६७१,६८१, सूलाइय [मूलातिग रा० ७६७ ६८३,६९६,७००,७०२ से ७०४,७०६,७०८, सूलाइयग शूलाचितक, शूलातिग] ओ०६० ७१० से ७१३,७१६,७२६,७५० से ७५३, से | दे० ] ओ० ३१. रा० १२. जी० ११२ ७७५,७७६,७८०,७८७,७८८ सेउ [सेतु } ओ० १,७,८,१०. जी० ३३२७६ सेयासोग श्वेताशोक रा० २६ सेउकर [ सेतुक र ओ० १४. रा० ६७१ सेरियागुम्म [ सेरिकागुल्म] जी० ३१५८० सेज्जा [शय्या ] ओ० ३७,१२०,१६२,१८०. सेल [शल ओ० ४६. जी० ३३५९४ रा०६६८,७०४,७०६,७११,७१३,७५२,७७६, सेलपाय शैलपात्र ओ० १०५,१२८ ७८९ सेलबंधण [शैलबन्धन] ओ० १०६,१२६ सेटि दे० श्रेष्ठिन् । ओ०१८,२३,५२,६३. रा० ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२, सेला [शैला जी० ३।४ सेलु [शेलु जी० ११७१ ७६४. जी० ३१६०६ सेढी श्रेणी ओ० १६,४७. रा० २४,७६०,७६१. सेलेसी [शैलेसी] ओ० १८२ जी० ३१२७७,५९६,७२३,७२६ सेवालगुम्म [शैवालगुल्मी जी० ३१५८० सेणा | सेना] ओ० ५५ से ५७,६२,६५ सेवालभक्खि [शैवालभक्षिन् ] ओ० ६४ सेणावई [सेनापति ] ओ० १८,२३,५२,६३. सेस शेष] ओ० १२०,१६२. रा० २३६,६६८, रा०६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४ ७५२,७८६. जी० ११६४,६५,७७,७६,८२, सेगावच्च सेनापत्य ओ० ६८. रा० २८२. ८८,६०,१०१,१०३,१११,११२,११६,१२१, जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ १२३,१२४,२१३७,८६,१२०; ३६८ से ७२, सेणावति | सेनापति] जी० ३६६०६ १६१,१६५,२१६ से २२६,२४३,२५८,३५५, सेत श्वेत जी० ३१३००,३५४,४५४,८८५ ६८७,७०६,७११,७४१,७५०,७६२,७६५, सेतासोय श्वेताशाक] जी० ३।२८२ ७६६,७६६,७७०,७७२,८३८४२२,८५१, सेधा [दे० जी० २६ ६१४ से ६१६,६३६,६५०,६६२,११२२, सेय [श्वेत] ओ० ५१.६५,६७,१९४. रा० १२६, ५:३१,३४; ६।४,६ १३०,१६२.१६०,२१०,२१२,२२२,२८८. सेहवेयावच्च [शैक्षवैयावृत्य] ओ० ४१ जी. ३।२६४,३००,३१२,३३५,३७३,३८१, सेहाव [शिक्षय ]-सेहाविहिति. ओ० १४६. ६४७ --सेहावेहिइ. रा० ८०६ सेय [स्वेद] ओ० ८६,९२. जी० ३।५६८ सेहावित्ता [शिक्षयित्वा ] ओ० १४६ सेय श्रेयस् | ओ० ११७. रा०६,२७५,२७६, सेहावेत्ता [शिक्षयित्वा! रा०८०७ ७७४,७७७,७८१. जी० ३।४४१,४४२ सोइंदिय [श्रोत्रेन्द्रिय] ओ० ३७. जी० १११३३ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० सोडियालिछ-सोमाकार सोंडियालिछ [शुण्डिकालिञ्छ] जी० ३३११८ सोधम्म [सौधम] रा० ५६०. जी० २०६६,१४८, सोंडीर {शीण्डीर | ओ० २७. रा० ८१३ १४६; ३३१०३८,१०३६ सोक्ख सौख्य ओ० २३,१६५।१३,१४,१७. सोधम्मक | सौधर्मक] जी० २१४८,१४६ जी० ३.११८,११६ सोधम्मग [सौधर्मक] जी० ३११०३६ सोग | शोक ओ० ४६. रा० ७६५. जी० ३०१२८ सोधम्मव.सग [सौवर्मावतमक | रा० १२६ सोगंधिय | मौगन्धिक ] ओ० १२. रा० १०,१२, सोधम्मवडेंसय [ सौधर्मावतंसक रा० १२५ १८,२३,६५,१६५,१७४,१६७,२८८.. सोपाण [सोपान | जी० ३४५४,५९४ जी० ३।११८,११६,२५६,२८६,२६१ सोभ | शोभ | ओ० ६३. जी० ३७२२,८२०,८३०, सोच्चा | श्रुत्वा ओ०२१. रा. १३. ८३४,८३७,८५५ __ जी० ३१४४३ सोभ [शोभय --सोभति. जी० ३७०३. सोणंद (दे० विपदिका ओ० १९. जी० ३१५९६ सोभिसु. जी० ३१७०३.-सोभिस्मंति. सोणि | श्रोणि] जी० ३१५६७ जी० ३१७०३.--सोभेसु. जी० ३१८०५ सोणिय {शोणित] रा० ७०३ सोभंत [शोभमान ] ओ० ४६. रा० ६६. सोसुणित्तग धोणिसूत्रक] जी० ३१५६३ ___जी० ३१३०६,५६७ सोत [श्रोतस्] जी० ३१७४६ सोभग्ग [सौभाग्य] ओ० २३ सोतिदिय [श्रोत्रेन्द्रिय | जी. ३१९७६,६७७ सोमण [शोभन ! ओ० १४५. रा० ८०५ सोत्थि स्वस्ति जी० ३११७७ सोभमाण [शोभमान [ जी० ३।५६१ सोथिकूड स्वस्तिकूट जी० ३।१७७ सोभिय शमित ] ओ० १ सोत्थिय स्वस्तिक] रा० २१,२४,४६,८१,२६१. सोभेमाण [ शोभमान ] जी० ३१५८६ जी० ३१२७७,२८६,३१४,३४७,३५५,५६७ सोम सौम्य ] ओ० १५.१६. रा० ७०,१३३, ६७२ जी० ३।३०३,५६६,५६७,११२२ सोत्थियकत [स्वस्तिककान्त जी० ३।१७७ सोमणस नोमन] ओ० ५१. जी० ३.९२५,९३४ सोत्थियज्झय ग्वस्तिक ध्वज जी० ३।१७७ सोमणसवण [सामनमवा] रा० १७३,२७६. सोत्थियपभ [स्वस्तिकप्रभ] जी० ३३१७७ जी० ३१२८५,४४५ सोस्थियलेस स्वस्तिमलेश्य ] जी० ३।१७७ सोमणसा [सौमनसा] जी० ३१६६६,९२० सोस्थियवण्ण स्विस्सिकवर्ण | जी० ३६१७७ सोमणस्सिय सोमनस्यित, मोमनस्यिक] ओ०२० सोत्थियसिरिवच्छनंदियावत्तवद्धमाणगभद्दासण २१,५३,५४,५६.६२,६३,७८,८०,८१. रा०८, कलसमच्छदप्पणमंगलभत्तिचित्त स्विस्तिक १०,१२ से १४,१६ से १८,४७,६०,६२,६३, श्रीवल्सनन्द्यावर्तवर्धमानभद्रासनकलशमत्स्य ७२,७४,२७७,२७६,२८१,२६०,६५५,१५१, दर्पणमङ्गलभक्तिचित्र रा०७६ ६८३,६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३, सोत्यियावत्त [स्वस्तिकावर्त ] जी० ३.१७७ ७१४,७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८. सोथिसिंग [ स्वस्तियङ्ग] जी० ३:१७७ जी० ३४४३,४४५,४४७,५५५ सोत्थिसिट्ट [स्वस्तिशिष्ट] जी० ३११७७ सोमलेस | संमलेश्य ] ओ० २७. रा० ८१३ सोत्युत्तरवाडसग [स्वत्युत्तरावतंसक | सोमाकार [सौम्याकार] ओ० १५,१४३. जी० ३३१७७ रा० ६७२,६७३,८०१ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाण- हत्थ सोमाण [ सोपान | रा० ४७, १७५ से १७६, ६५६. जी० ३.५५६,६४०,६४१,८५७ सोय [ शौच ] ओ० २५. ० ६८६ सोय [ श्रोतस् ] ओ० १२२ सोयंघिय [सौगन्धिक ] जी० ३१७ सोयणा | शोचनता ] ओ० ४३ सोम [ शोचधर्म ] ओ० ६७ सोसविध | पोडशविध ] जी० ३१७,३५७ सोलसहि [ पोडशविध रा० १६५. जी० ३/३४६ सोलसिया [पोशिका ] ० ७७२ सोल्लिय [ पक्व ] अ० १६४ सोवणिय [ सर्वाणि ] ० ३७,२४५, २७६,२८०. जा० ३।३११,४०७,४४५,४४६,४४६ सोत्थिय [ वस्तिक ] ओ० १२,६४. रा० २४. जी० ३।२७७.५६६ सोवाण | सोपान ] रा० १६,२०४८,५६,५७, २०२,२३४, २६४, २७७,२८८, ३१२, ४७३. जी० ३१२०७.२८८, ३६३.३९६,४४३, ४४७, ५३२, ५७६, ६६६.६८४ हंत | हन्त ] रा० १५ सोल (पोडश | जी० ३1२२६/२ हंता [ हन्त] त्रो० ८४. रा० १७३. जी० ३।१३ सोलस | पोडशन् | ओ० ३३. १० ७. जी० ३११४ हंस [ हंस ] ओ० ६६. रा० २६. जी० ३३२८२, ५६७ सोलसग [ पोडशक | जी० ३६५ सोलसभत्त [ पोडशभक्त ) ओ० ३२ सोस [ शोष ] जी० ३३६२८ सोह शोभ] ओ० ५२. रा० ६०७ से ६८६ सोहंत [शोभमान ] रा० १३६ सोहाग [ सौभाग्य ] ओ० ६६ सोहम्म | सौधर्म ] ओ० ५१,६५,१६०,१६२. रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. जी० १२५६; २११६,४६, १४६ ३ ६३७,१०३८,१०५७, १०६५, १०६७,१०७१, १०७३, १०७५, १०७७ से १०८३, १०८५, १०८७,१०६०, १०६१, १०६३, १०६७ से १०६६, ११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११७, ११६,११२१, ११२२, ११२४,११२८ सोहम्मा [ सुधर्मा ] जी० ३१३७३ सोहि [ शोधि ] ओ० २५ सोहिय | शोभित | ओ० ५,६,८,१६४ जी० ३।२७४, २७५ ७७ ह हंसगब्र्भ [ हंसगर्भ ] रा० १०,१२,१८,६५ १६५, २७६. जी० ३७,२८४ हंसगन्भतुलिया | हंसगर्भतूलिका ] रा० ३१ हंसन्तुली | हंसगर्भतुली | जी० ३३२८४ हंसगमय | सगर्भमय ] रा० १३० जी० ३।३०० हंसस्सर [हंस ] रा० १३५. जी० ३२३०५, ५६८ हंसापिविभत्ति | हंसावनिप्रविभक्ति ] रा० ८५ हंसासन [ हंसासन रा० १८१,१८३,१८५. जी० ३१२६३, २६५, २६७,८५७ ~ हवकार [ आ + कारय् ] - हक्कारेति रा० २८१. जी० ३१४४७ हृष्ट ] मो० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ६८,७८,८०८१. ० ८, १०, १२ से १४, १६ से १८, ४७.६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, २७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५, ७००, ७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८, ७२५, ७२६, ७७४,७७८. जी० ३,४४३, ४४५, ४४७,५५५ हडप्पाह [हडप्पग्राह] ओ० ६४ sea [ हडिवद्धक ] ओ० ६० v हण [ घातय् ] -हण रा० ७६१ ह [हनु] ओ० १६ हणुया [ हनुका ] जी० ३२५९६,५६७ हत्य | हस्त ] ओ० २१,५४,६६,१११ से ११३, १३७,१३५. १० १३३,२८१,२८८ से २६०, ६५६,७१६,७५३,८०४. जी० ३१४४७, ४५४ से ४५६,५६७ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ हत्थ | दे० ] ओ० ५७ हत्थग [ हस्तक ] ओ० १२. जी० ३।२६१,३१५, ६३६, ६५१,६७७,८६४ हत्य | हस्तच्छिन्नक ] रा० ७५१ हत्यच्छिण्णय हस्तच्छिन्नक ] रा० ७६७ हत्य छिण्णग | हस्तच्छिन्नक | ओ० ६० हस्थतल [ हस्ततल ] रा० २५४. जी० ३।४१५ हत्थमाला | हस्तमालक) जी० ३५६३ हत्थय | हस्तक ] रा० २३,२२३ हत्याभरण | हस्ताभरण] ओ० ४७,७२ हत्थि [ हस्तिन् ] ओ० १०१,१२४. रा० ७७२. जी० ३१८४,६१८ हत्यिक हस्तिस्कन्ध | ओ० ६५ हथिगुलगुलाइ हस्तिगुलगुलायित ] रा० २८१. जी० ३।४४७ हत्यितावस [ हस्तितापस | मो० ६४ हहि [ हस्तिमुख ] जी० ३।२१६ हस्थिरयण | हस्तिरत] ओ० ५५ से ५७, ६२ से ६४,६९ terrata [कर्णद्वीप | जी० ३१२२२ जोहि [योधिन्] ओ० १४८, १४९. ० ८०६,८१० हलक्खण [हयलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ ह्यविलंबिय | ह्यविलम्बित ] रा० ६१ विसिय [ विलसित ] रा० ६१ हत्य -हल यहेसिय [ यहेसित ] रा० २८१. जी० ३।४४७ हरतय [ हरतनुक ] जी० १२६५ हरय | हृद | रा० २६२ से २६५, २७३, २७७, ४७३. जी० ३१४२५, ४२६, ४३८, ४४३, ५३२ हरि | हरित् ] रा० २७६. जी० ३१४४५ हरिओभास | हरितावभास] २१० १७०,७०३. जी० ३।२७३ हरिकंता | हरिकान्ता] १० २७६. जी० ३२४४५ हरितकाय [हरितकाय ] जी० ३।१७४ हरितग | हरितक ] जी० ३।३२४ हरिताभ [ हरिताभ | बी० ३६ हरिताल | हरिताल ] जी० ३३८७८ हरिय [ हरित ] ओ० ४, ५, ८, १०३,१२६.१३५. रा० १७०,७०३. जी० ११६६ : ३३२७३, २७४ हरिय [ भरित ] जी० ३२२८५ after [aftcore ] जी० ३।१७४ हरियग [ हरितक ] रा० १५१,७८२ हरियच्छाय [हरितच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३१२७३ हत्थिवाउय [ हस्तिव्यापृत ] ओ० ५६, ५७ हस्थिसोंड [ हस्तिशौण्ड ] जी० ११८८ हम्म | हर्म्य ] जी० ३।५६४,६०४ [म] ओ० १६,४८,५१, ५२, ५५ से ५७,६२, ६५. ० १४१ से १४४,१६२ से १६५, २८५,६८७ से ६८६. जी० ३।२६६, २६७, ३१८,३५५, ४५१,५६६ कंठ | कण्ठ ] रा० १५५, २५८. जी० ३।३२८ हरिवाहण [ हरिवाहन | जी० ३।९२३ हयकंठग [ हथकण्ठक ] जी० ३।४१६ कण्ण [कर्ण] जी० ३।२१६,२२२ से २२५, २२६।३ हरियाल | हरिताल ] रा० २८, १६१,२५८, २७६. जी० ३२८१,३३४, ४१६ हरियालिया [हरितालिका ] रा० २८ हरियो भास | हरितावभाव ] ओ० ४ हरिवास [ हरिवर्ष ] ० २७६. जी० २११३,३२, ५६,७०,७२,६६, १४७, १४६ : ३ २२८, ४४५, ७६५ हरि | हर्ष ] ओ०२०,२१,५३,५४,५६,६२,६३,७८, ८०, ८१. ० ८, १०, १२ से १४,१६ से १८, ४७,६०,६२, ६३,७२, ७४, २७७, २७६,२८१, २६०,६६५,६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००,७०७, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६, ७७४, ७७८. जी० ३।४४३, ४४५,४४७,५५५ हरिसय [हपंक ] जी० ३।५६३ हरिसिय [हर्षित ] रा० १७३. जी० ३२२८५ हल [ हल ] ओ० १. जी० ३।११० Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलधर-हिययसूल ७७३ हलघर [हलधर] ओ० १३. रा० २६. जी० १६३५ जी० ३।२७६ हारवरोभासमहावर [ हारवरावभासमहावर हलिद्दा [हरिद्रा] रा० २८. जी० ३।२८१ जी० ३१६३५ हिव [भू]-हवंति ओ० १८३. जी० ३।१२ हारबरोभासवर [हारवरावभासवर] -हवेज्ज ओ० १६१४.--हवेज्जा जी० ३।९३५ ओ० १६५।१५ हालिद्द [हारिद्र] ओ० १२. रा० २२,२४,२८, हव्व [अर्वाच] ओ० ५७ १२८,१३२,१५३. जी. ११५,१३६, ३।२२, हव्वं [अर्वाच्] ओ० १७०, रा० ७२०. जी० ३१८६ ४५.२८१,२६०,३२६,१०७५,१०७६ हिस हस् ] -- -हसं ति रा० १८५.---हसिज्जइ हालिग [हारिद्रक) जी० ३१२८१ रा० ७८३ हास [हास] ओ० २८,४६,५१ हसंत [हयत् ] ओ० ६४ हास ह्रिस्व जी० ३७८१,७८२ हसिय हसित ] ओ० १५,४६. रा० ७०,६७२, हासकर हासकर ओ०६४ ८०६,८१०. जी० ३१५६७ हिगुलय [हिङ गुलक] रा० १६१,२५८,२८१. हस्स ह्रस्व] ओ० १८२,१६५०४ जी० ३३३३४,४१६ हाय हा ]----हायइ जी० ३१७३१.. -हायति हिंसप्पयाण [हिंस्रप्रदान ] ओ० १३६ जी० ३।७२३ हिसाणुबंधि [हिंसानुबन्धिन् ] ओ० ४३ हायण [हायन] जी० ३३११८,११६ हिटिमय [अधस्तन ] जी० ३१५ हार हार] ओ० २१,४७,५२,५४,६३,६५,७२, हित [हित] जी० ३।४४१,४४२ १०८,१३१,१६४. रा० ८,२६,४०,१३२, हिम [हिम रा० २५५. जी० ११६५; ३३११६, २८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१२६५, २८२,३०२,५६२,६३५,११२१ हिमकूड [हिमकूट] जी० ३।११६ हारपुण्य (पाय) [हारपुटकपात्र] ओ० १०५, हिमपडल [हिमपटल] जी० ३.११६ १२८ हिमपुंज [ हिमपुज] जी० ३१११६ हारपुड्य (बंधण) हारपुटकबन्धन] ओ० १०६, हिमवंत [हिमवत् ] ओ० १४. रा० १७३,६७१, १२६ हारभद्द {हारभद्र ] जी० ३१६३५ हियउप्पाडियग [उत्पाटितकहृदय ] ओ० ६० हारमहाभद्द [हारमहाभद्र] जी० ३१६३५ हिए [हित ] ओ० ५२. रा० १५,२७५,२७६,६८७ हारमहावर [हारमहावर] जी० ३।६३५ हियय हृदय ] ओ० २०,२१,२७,५३,५४,५६,६२, हारवर [हारवर] जी० ३।६३५ ६३,६६,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, हारवरभद्द [हारवरभद्र] जी० ३६३५ १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, हारवरमहाभद्द [हारवरमहाभद्र] जी० ३१६३५ २७६.२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०, हारवरमहावर [हारवरमहावर] जी० ३।६३५ ६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६, हारवरोभास [हारवरावभास] जी० ३।६३५ ७१८,७२५,७२६ ७५० से ७५३,७७४,७७८, हारदरोभासभद्द [हारवरावभासभद्र] ८१३. जी० ३।४४३,४४५,४४७,५५५ जी० ३१९३५ हिययगमणिज्ज हृिदयगमनीया ओ०६५ हारवरोभासमहाभद्द हारवरावभासमहाभद्र ] हिययसूल [हृदयशूल] जी० ३१११६,६२८ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ لاوان हिरण-हस्सीकरितए हिरण्ण [हिरण्य] ओ० २३. रा० २८१,६६५. हेटिमगेविज्ज [अधस्तनौवेय] जी० २०६६ जी० ३।४४७,६०८,६३१ हेछिमगेवेज्जग [अधस्तनौवेयक ] जी० ३३१०५६ हिरण्णजुत्ति [हिरण्यरक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ हेटिममज्झिमिल्ल [अधस्तनमध्यम] जी० ३।७२६ हिरण्णपाग [हिरण्यपाक ] ओ० १४६. रा० ८०६ हेटिल्ल [अधस्तन] जी० ३१६०,६२ से ७१,७२५, हिरण्णवय [हिरण्यवत] जी० ३१२८८ ७२८,७२६,१००३,१००४,१००७,११११ हिरिलि दे०] जी० ११७३ हेदिल्लमझिल्ल [अधस्तनमध्यम ] जी० ३१७२६ हिरी [ह्री] रा०७३२,७३७,७७४ हिडिल्लातो [अधस्तनतस् ] जी० ३१६६,७२ होण हीन ] ओ० १६५॥४. रा० ७७४, हेमंतिय [हैमन्तिक] ओ० २६. रा० ४५ जी० ३१७३ हेमजाल हेमजाल ] रा० १३२,१७३,१६१,६८१. होर हीर] जी० ३१६२२ जी. ३१२६५,२८५,३०२,५६३ हीरय [ हीरक जी० ३१६२२ हेमप्प [हेमात्मन् ] जी० ३६५६५ हीलणाहीलना] ओ० १५४,१६५,१६६, हेमवत [हैमवत] जी० २।६६,१४७,१४६ ; ३७६५ रा०८१६ हेमवय हैमवत] ओ० ६४. रा० १७३,२७६,६८१. हु [भू] टुति. जी० १।१४ जी०२।१३,३१,५८,७०,७२: ३।२२८,२८५, हुंड [हुण्ड] जी० ११८६,६५,१०१,११६; ३१६३, ४४५ १२९३,४ हेरण्णवत [हैरण्यवत। जी० २१६६,१४७; ३।७६५ हुंबउ? [दे०] ओ०६४ हेरण्णवय [हैरण्यवत] जी० २११४६ ; ३।४४५ हुडुक्क [हुडुक्क ] ओ०६७. रा० १३,६५७. हेरु हेरु] जी० ३१६३१ जी० ३।४४६ हेरुयालवण [हेरुतालवन] जी० ३३५८१ हुडुक्की [हुडुक्की] रा० ७७ हो [भ]-होइ ओ० १६५।५. रा० १३०. हुतवह !हुतवह ] जी० ३१५६६ जी० १११३६-होई. जी० ३११२६३ हुयवह [हुतवह ] ओ० १६,४७. जी० ३१५६० ---होउ. ओ० १४४. रा०७३०-होति. हुयासण [हुतासन] ओ० २७. रा० ८१३ रा० १३०. जी० १७२-होति. ओ० १६५।८. हड्डय [हुहुक] जी० ३१८४१ जी० ३.१६४---होज्ज. रा० ७५४. हहयमाण [दे० जाज्वल्यमान] जी० ३।११८ जी० ३।५६२.--होज्जा. रा० ७१८,-होत्था हेउ [हेतु] ओ० ११६. रा० १६,७१९,७४८ से ओ० १. रा० १ ७५०,७७३ होत्तिय [होत्रिक] ओ०६४ हेट्टा [अधस् ] ओ०१३,१८२. रा० ४,२४०, होरंभा हिोरम्भा] स० ७७. जी० ३१५८८ जी० ३७७,८०,३५६,४०२ हिस्सीकर ह्रस्वीकृ]-हस्सीक रेज्ज हेट्टि [अधस ] जी० ३१६६८ जी० ३१६६७ हेट्ठिम अधस्तन] जी० ३१७० से ७२,१११११३ ह्रस्सीकरित्तए [ह्रस्वीकर्तुम् ] जी० ३१६६४ कुल शब्द ६६३१ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू० '३ १६ १७ २७ ३६ ५६ ६७ ८४ ८३ ६३ १०५ ११६ २७३ २६७ ३१५ ३१५ ३२० ३७५ ३८१ ४२६ ४५७ ४६५ ४७३ ६७६ पं० १२ १७ ६ g ३ ७ १२ २२ ३ १२ २ ६ १५ १ ११ टि० १३ का अन्तिम पं० ११ टि० १२ पं० १६ पं० ६ पं० ६ पं० ह पं० ४ शुद्धि-पत्र अशुद्ध बस संडे जं धम्मोप भगवाओ विउसम्मे विहणि तुंब विणिपेच्छा सयमेब जायमेव घोसेडिया पोडरिय डिडिमाष रुच्छ तुब्बने ऊसिता सुब्भ विव्वु ३।६८६ पत्तयं उबवेता बाघा इमे अणत्तरी' तिरक्खि पमोकक्ख 'शुद्ध वणसंडेण धम्मोव भगवओ विउस्सये विहणि तुंबविणयपेच्छा सयमेव जीयमेव घोसाडिया पोंडरीय डिडिमाण मच्छ सुब्ब कसिता सुज्झ 'सुवण्णसुज्झरययवालुयाओ' इति सुवर्ण - पीतकान्तिहेम सुज्भं— रूप्यविशेषः रजतं — प्रतीतं तन्मय्यो वालुका यासु ताः सुवर्णसुज्यरजतवालुका (मवु ) ●णि इ° ३१८६६ पत्तयं उववेता वाघाइमे अणुत्तरो तिरिक्ख मोक्ख Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Internatione For private & Personal use only www.jainelibrary og