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________________ १४८ अंतोमुहुत्त-अकसाइ ७७२. जी० १११२७, ३१७७,१११,११८,२१४, अंबरतल [अम्बरतल] ओ० ५२. रा०६८८ २७७,२६८,३००,३०७,३०६,३३६,३५२, अंबसालवण | आम्रशालवन | रा०२,८ से १०, ३५९,३६०,३६४,३६८,३६६,३६६,४१५, १२,१३,१५,५६ ६४८,६७३,७५५,७५७,८३८११५,८३६,८४०, अंबिल [अम्ल जी० ११५, ३१२२ ८४२,६०५ अंबिलोदय [अम्लोदक ] जी० ११६५ अंतोमुहुत अन्तर्मुहूर्त | जी० ११५२,५६,६५,७४, अंबुभक्सि अम्वुभचिन् ] ओ० ६४ ७६,८२,८७,८८,१० १,१०३,१११,११६,१२१, अंसुय [अंशुक जी० ३१५६५ १२३ से १२५,१२७,१२८,१३३,१३७ से अकंटय [अकण्टक ] ओ०६,१४. रा० ६७१. १४०,१४२; १२० से २२,२४ से ३४,४६, जी० ३।२७५ ५०,५३ से ६१,६३,६५ से ६७,७६,८२ से अकंडुयय अकण्डयक ओ० ३६ ८४,८७,८८,१०,११,१०७,१०६ से १११, अकंत अकान्त] T० ७६७. जी. १९६५३।६२ ११३,११४,११६,११६ से १३३; ३३१५६, अकंततरक [अकान्तत क जी० ३१८४ १६१,१६२,१६५,१८६ से १६१,२१४,११३२, अकक्कस अकर्कश] ओ० ४० ११३४ से ११३७, ४१३ से ११,१६,१७, १५, अकडुय [अकटुक ओ० ४० ७,८,१० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६३, अकण्ण | अकर्ण जी० ३।२१६ ८ से ११;७१ १३, १४ ; ६॥२३ से २६,३१,३३, अकम्मभूमक [अकर्मभूमक] जी० २११३३ ३४,३६,४१,४७,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, अकम्मभूमग [अकर्मभूमक] जी० ११५१,५५, ७५,७८,८०,८३,८५,८६,९०,६२,६३,६६,६७, १०१,११६,१२६; २।३०,३२ से ३४,७७,८५, १०२,१०३,१०५,११४,११५,११७,११८, ६६,१०६,११६,१२४,१३७,१४७,१४६; १२३,१२५,१२६,१२८,१३२,१३६,१४४, ३।१५५,२१५,२२८,८३६ १४६,१५०,१५२,१५३,१६०,१६४,१६५, अकम्मभूमि [अकर्मभूमि ] जी० २११३७ १७२,१७३,१७६ से १७८,१८६ से १६१, अकम्मभूमिक [अकर्मभूमिज,°क] जी० २।५७,५८, १६३,१६४,१६८,२०२,२०४,२०७,२११, २१६ से २१८,२२२,२२३,२२५,२२८,२२६, अकम्मभूमिग [अकर्मभूमिज,°क ] जी० २१५६ से २४१,२४२,२५७ से २६०,२६२,२६४,२७७, ६१,६६,७०,७२,१३८,१४७,१४६ २७८ अकम्मभूमिय अकर्मभूमिज जी० ११०१ अंतोमुहुत्तिय [अन्तर्मुहर्तिक | ओ० १७३,१८२ अकम्मभूमिया [अकर्मभूमिजा] जी० २।११,१३, अंतोसल्लमयग [अन्तर्शल्यमृतक ] ओ०६० ७०,७२,१४७,१४६ अंदोलग [अन्दोलक] रा० १८०. जी० ३।२६२ अकयत्य अकृतार्थ रा० ७७४ अंदोलय [अन्दोलक] रा० १८१ अकयलक्खण [अकृतलक्षण] रा० ७७४ अंधकार [अन्धकार] ओ० ४६ अकरंडुय | अकगण्डक ] ओ० १६. जी० ३१५६६, अंधयार [अन्धकार | ओ० ५,८,५७. जी० ३१२७४ अंधिया [अन्धिका | जी० १८६ अकरण | अकरण ] ओ० ७८ से ८१ अंब [आम्र] जी० ११७१ अकरणिज्ज अकरणीय ] ओ० ११७. रा० ७६६ अंबड [अम्बड] ओ०६६ अकसाइ | अकपायिन् ] जी० १३१३१६२८, अंबपल्लवपविभत्ति [आम्रपल्लवप्रविभक्ति] रा०१०० १४८,१५१,१५४,१५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003568
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size8 MB
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