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________________ ६५६ देवउक्कलिया-देवत्त से ४४,४६ से ४६,५४ से ६५,६८,६६,७१ देवउक्कलिया [देवोत्कलिका जी०३१४४७ से ७४, ११८ से १२०,१२२.१२४,१२६, देवउल | देवकुल ] रा० १२ १८५ से १८७,२४०,२४६.२६६,२६८,२७०, देवकज्ज [देवकार्य ] जी० ३।६१७ २७४ से २६१,६५४ से ६६७,६६८,७५२,७५३, देवकम्म [देवकर्मन् ] जी० ३।१२६६,८४० ७७१,७८६,७९७ से ७६६.८१५. जी० ११५१, देवकहकह [देवकहकर] जो० ३।४४३ ५४,५६,६१,६५,८२,८७,६१,१०१,११६, देवकहकहग | देवकहकहक रा० २८१ १२३,१२८,१३५,१३६; २१२,१५ से १६ देवकिबिसिय | देवकिल्विपिक ! ओ० १५५ ३५ से ३:३६ से ४७,६२,६७,६८,७१,७२, देवकिदिबसियत्त | देवकिल्विषिकत्व ओ० १५५ ७५,७८,८१,६० से ६३,६५,६६,१४४,१४५, देवकुमार ( देवकुमार] रा० ६६,७१ से ७५,७६ १४८,१४६,१५१: ३३१,८६,१२७,१२६२, से ८१,८३,११२ से ११८ १७६, १७८,१८०,१८२,१८४,१६४,१६८ से देवकुमारिया [ देवकुमारिका ] रा० ८३, ११५ से २०६,२१७,२३० से २३४,२३६,२३८,२३६, २४२ से २४४,२४६,२४७,२४६ से २५२, देवकुमारी | देवकुमारी | रा०७० से ७५,७६ से २५५ से २५७,२६७,२६८,३३६ से ३४५, ८१,११२ से ११४ ३५०,३५१,३५८ से ३६०,३७२,४०२,४१०, दवकुरा [दवकुरु] जा० २।१३, ३१९१६,६३७ ४२६,४३२,४३५,४३६ से ४५७,५५४ से ५६५ देवकुर ! देवकुरु | जी० २१३३,६०,७०,७२,६६, ५६७,५६८,६३५,६३७,६३८,६५६,६६४, १३७,१३८,१४७,१४६; ३३२२८,७६५ ६६६,६८०,७००,७०१,७१०,७२१,७२४, देवकुल [देवकुल ] ओ० ३७. रा० ७५३ ७३८,७४१७४३,७४६,७६०,७६३,७६५, देवगइ [देवगति] रा० १०,१२,५६,२७६ ३.७८,७६५,८०८,८१६,८२६,८४०,८४२, देवगण | देवगण | रा०६९८,७५२,७५६. ८४३,८४५,८४६,८५४,८५७,८६०,८६३, जी० ३६११२० ८६९,७२,८७५,८५,६१७,६२३,६२५, देवगति | देवगति ] जी० ३१८६,१७६,१७८,१८०, १८२,४४५ ६२७ से ६३५, ६३८ से ६४०,६४२ से ६४५, ६४७,६५०,६५१,६५४,६८८ से ६६७,६६६, देवगुत्त [ देवगुप्त | ओ०६६ देवच्छंदग | देवच्छन्दक जी० ३।६०७ १०१५,१०१७,१०२५,१०२७,१०२६,१०३१, देवच्छंदय | देवच्छन्दक | रा०२५३,२५८,२६१. १०३३,१०३५,१०३८,१०३९,१०४१ से जी० ३४१४,४१५,४१६,४५७,६७५,६७६, १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ स १०५६, ६०७,९०८ १०८२,१०८३,१०८५ से १०८७,१०८६ से देवजुइ । देवधुति | रा० ६३,६५,११६ १०६३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५. ११०७,११०६ से १११२,१११४ से १११७, देवजुति [देवद्युति] रा० ५६,७३,११८,७६७ १११६ से ११२४,११३२,११३३,११३७, देवज्जुइ । दवद्युति ] रा० ६६७ ११३८, ६६१,५,७,८,१२, ७.१,७,८,१६ से देवज्जुति [देवधुति ] रा० १२२ देवता | देवतः] जी० ३१७३७ २१,२३, ६।१५६,१५८,२०६,२१३,२१८,२२०. २२०, देवत्त देवत्व ओ० ७२,७३,८६ से ६५,११४, २२१,२२६,२२६,२३१,२३२,२४८,२५४,२६७, ११७,१४०,१५७ से १६०,१६२,१६७. २७४,२८३,२८६,२६१,२६३ ।। रा० ७५२,७५३. जी० ३.११२८,११३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003568
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size8 MB
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