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________________ देवदीव-देस ६५७ ५६,५८,६०,६२,११७,११८,१२०. स०६,१०. १३,१४,१७,५८,६३,६५,७२,७३,२७६,२७८, ६ ५४,६८१,६८७ से ६६०,६६५,७०४,७०६, ७१३,७१४,७१८,७२०,७२३,७५१,७६५, ७६८,७७४,७७५,७७७,८०२. जी० ३.४४२, देवदीव [देवद्वीप जी० ३१७७६,७७७४ देवदीवग [देवद्वीपक ] जी० ३१७७६,७७७ देवदुहहग देवदुहदुरका रा०२८१. जी० ३२४४७ देवदूस | देवदृष्य रा० २७४,२८५,२६१,७५६. जी० ३।४३६,४४३,४५१,४५७ देवदार | देवद्वार] जी० ३:८८५ देवद्दोवग देवद्वीपक] जी० ३१७७६,७७७ देवपरिसा [देवपरिषद् ओ० ७१. ६० ६१ देवभद्द [देवभद्र] जी० ३:९४२.६५१ देवमहाभद्द | देवमहाभद्र) जी० ३।६४२,६५१ देवमहावर [देवमहावर जी० ३६५१ देवय दैवत ] ओ० २,५२,१३६. रा० ६,१०,५८, २४०.२७६,६८७,७०४,७१६,७७६. जी० ३१४०२,४४२ देवया [देवता] ओ० १३६ देवरमण देवरमण] रा० ७८,८०,८२,११२ देवराय [देवराज] जी० ३।६१६ से १२२,१०३६ से १०४४ देवलोग [देवलोक] ओ० ७४१२,१४१. रा० ७६६. जी० ३१६३० देवलोय [ देवलोक ] ओ०७१,७२,७४१२,८१ से ६३. रा० ७५२,७५३. जी० ३.६३० देववर | देववर जी० ३६५१ देवविमाण [देवविमान] रा० १८७ देवसणिवाय [ देवसन्निपात रा० २८१ देवसन्निवाय [देवसन्निपात] जी० ३।४४७ देवसमवाय [देवसमवाय जी० ३।६१७ देवसमिति [देवस मिति ] जी० ३१६१७ देवसमुदय [देवसमुदय] जी० ३१६१७ देवसमुद्दग देवसमुद्रक] जी० ३१७७८ देवसयणिज्ज [देवशयनीय] रा० २४५,२४६,२६१, ३५३,४१४,७६६. जी० ३।४०७,४०८,४२३, ४३६,४४३,५१६,५२६,६५०,६७३,७५६ देवसोक्ख देवगौख्य ] ओ० ७४१२ देवाणुप्पिय [देवानुप्रिय] २०,२१,५२,५३,५५, देवाणुभाग | देवानुभाग] र!० ६६७ देवाणुभाव | देवानुभाव] रा० ५६,६३,६५,७३, ११८,११६,१२२.७६७ देविंद देवेन्द्र] जी० ३१६१६ मे १२२,१०३६ से १०४४,१०५५ देविडि [देवधि ] ओ० ७४१२. ग० ५६,६३ ६५, ७३,११८,११६,१२२,६६७ ७६ 3 देवित्त (देवीत्व] जी० ३१ ११२८ से ११३० देवी [देवो ] ओ० १५,५५,५८,६२,७०,०१,८१. रा०५,७,१५ से १७,४८,५४ से ५८,१८५, १८७,२४०,२७६,२८०,२८२,२८६ से २६१. ६५७,६७२,६७३,७५१,७७६,७६१ से ७६४, ७६६. जी० ३११६८ से २०६,२१७,२३७, २३८,२४३,२४६,२४७,२४६,२२०,२५६,२६७, २६८,३५०,३५८.३६०,४०२,४४२,४४६,४४८, ४५५ से ४५७,५५७,५६३,६३७,६५६,७६०, ७६३,१०२३,१०२५,१०२८,१०३.,१०३२, १०३४,१०३६,१०४१,१०४२,१०४४,११२२, ११२६, ६।१,६,७,१२,६।२०६,२१४,२१८, २२० देधुक्कलिया [देवोत्कलिका ] रा० २८१ देवुज्जोय (देव द्य त] रा० २८१. जी० ३६४४७ देवोद [देवोद] जी० ३१७७६,७७७,६४३,६४४ देवोदग | देवोदक | जी० ३१७७८,७७६ देस [ देश] ओ० १६,१६५।१०. रा० १७४,१८०, १८२,१८४,१८८,१६२ से १९७,७६५,७७४, ८०४. जी० ११४,५; ३१२६६ से २६६,२८६, २६२,२६४,२६६,५७६ से ५६६,६४०,६५९, ६६४,७०२,७२६,८०८,८२६,८५७,८६३, ८६६,८७५,८८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003568
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size8 MB
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