SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समोसरण-पयरगं कोमलुम्मिलियंम अहपंडुरे' पहाए रत्तासोगप्पगास - किसुय सुयमुह - गुंजद्ध - रागसरिसे कमला रडवोह उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते' जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुणभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि हित्ता' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || समण- वण्णग-पदं २३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवाओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो - अप्पेगइया उग्गपव्वइया भोगपव्वइया राइण्ण णाय कोरव्व खत्तियपव्वइया भडा जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्ठी इब्भा अण्णे य बहवे एवमाइणो उत्तमजाइ-कुल- रूव-विणयविण्णा वण्ण- लावण्ण- विक्कम- पहाण-सोभग्ग-कंतिजुत्ता 'बहुधण धण्ण- णिचयपरियाल - फिडिया" परवइगुणाइरेगा इच्छियभोगा सुहसंपल लिया किंपागफलोवमं च मुणियविसयसोक्खं, जलबुब्बुयसमाणं कुसग्ग-जल बिंदुचंचलं जीवियं य णाऊण, अद्धवमिगं रयमिव पग्गलग्गं संविधुणित्ताणं, चइत्ता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धणं एवं --- धणं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं रज्जं रठ्ठे पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिलप्पवाल- रत्तरयणमाइयं संत-सार-सावतेज्जं, विच्छडुइत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइया -- अप्पेगइया अद्धमासपरियाया अप्पेगइया मासपरियाया अप्पेगइया दुमासपरियाया अप्पेगइया तिमासपरियाया जाव अप्पेगइया एक्कारसमासपरियाया अप्पेगइया वासपरियाया अप्पेगइया दुवासपरियाया अप्पेगइया निवासपरियाया अप्पेगइया अणेगवासपरियाया - संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणा विहरंति || निग्गंथ-वण्णग-पदं २४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो - अप्पेगइया आभिणिवोहियणाणी" "अप्पेगइया सुयणाणी अप्पेगइया ओहिणाणी अप्पेगइया मणपज्जवणाणी अप्पेगइया केवलणाणी अप्पेगइया मणबलिया अप्पेiser arबलिया अप्पेगइया कायबलिया' अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्या अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया १. अहापंडरे ( क ) ; अहापंडुरे ( ख ) । २. जलते असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्टगंसि परत्याभिमु पलियंक निसन्ने अरहा जिणे केवली समणगणपरिबुडे ( क ) ; 'संपलियंकनिसन्ने' इदं च वाचनान्तरपदम् (वृ ) । ३. ओगिण्हित्ता आगासगएणं चक्केणं जाव सुहंसुहेणं विहरमाणे ( क ) 1 ४. परिवार (ग.) । ५. बहुघणघणणिचय (वृपा) । Jain Education International - परिवारठिइगिहवासा १७ ६. आचारचूलायां (१५।१३) 'दाय' इति पाठः स्वीकृतोस्ति प्रस्तुतप्रकरणे एष एव पाठ: समीचीनः प्रतीयते किन्तु प्रस्तुतसूत्रादर्शेषु 'दाय' इति पाठ: क्वापि नोपलब्ध:, तेन 'दाणं' इति पाठ: स्वीकृत: । ७. सं० पा०--- आभिणिबोहियणाणी जाव केवलीणाणी । ८. नाणबलिया दंसणबलिया वाचनान्तराधीतं चेदं विशेषणत्रयम् (बु) । चारितबलिया' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003568
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy