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________________ " 23 か 71 " ܙ " ار 33 " 22 31 13 1) " 13 21 " " " ६३ ६३ " ६३ ६३ 2, १०५ ,,, ११७ " ६४ ૬૪ ६४ , १५८ १५६ " १६४ १७० १७५ ६७ ६८ ७१ ८२ ८२ ८६ ६० ६२ ६२ ६५ ६७ १६५ अभिहि 'मिसिमित 'सुसि लिट्ट 'वी इयंगे Jain Education International कूवग्गाहा 'तुरगाणं सखिखिणी 'मुइंग भट्टितं "कोंच" वइर •णिघस वैयणिज्जं से जे से जाओ 'उरियाओ कुक्कुइया 'अहव्वण अलाउ चरिमेहि 'वेंटिया भूइ अणगारा तेल्ला वय' ग. १ पट्टिया २० अभंगेहि 'मिस मिसंत 'सुस लिट्ट वीजियंगे For Private & Personal Use Only कूतुयग्गाहा तुरंगाणं सकिंकिणी" 'मुदंग' भट्टतं "कुंच" वज्ज 'निकस' वेदणिज्जं सेज्जे सेज्जाओ पुरियाओ कोकुइया "अथव्वण" लाउ चरमेहि 'वंटिया भुई (ग) (क, ग) (ग) (ग) (क) (ग, वृ) (ख) (क, ग) (क, ख (क, ख) (क, ग) ( ख, ग ) (क, ख, ग ) (ग) (क) प्रति- परिचय (क) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४० तथा पृष्ठ ८० है । प्रत्येक पत्र ११ | | | इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में ४ से १३ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४६ तक अक्षर हैं । पत्र के चारों ओर सुक्ष्माक्षरों में टीका लिखी हुई है । प्रति सुन्दर, कलात्मक तथा पठित मालूम होती है । प्रति के अंत में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है : (क, ख, ग ) अणकारा (क, तिल्ल ( क ) ; तेल (ख) (क, ख, ग ) ( क, ख ) वइ° पत्तिट्ठिया इति श्री उववाईसूत्रं समाप्तं ॥ ग्रन्थ १९६७ ॥ छ। संवत् १६२३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ दिने । आगरा नगरे | पातिसाह श्री अकबर जलालदीन राज्य प्रवर्त्तमाने ॥ श्री बृहत् खरतर गच्छालंकार श्री पूज्यराज ६ जिनरि. घसूरिविजयराज्ये पंडित श्रीलब्धिवर्द्धन श्री www.jainelibrary.org
SR No.003568
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size8 MB
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