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१६५
अभिहि
'मिसिमित
'सुसि लिट्ट
'वी इयंगे
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कूवग्गाहा
'तुरगाणं
सखिखिणी
'मुइंग
भट्टितं
"कोंच"
वइर
•णिघस
वैयणिज्जं
से जे
से जाओ
'उरियाओ
कुक्कुइया
'अहव्वण
अलाउ
चरिमेहि
'वेंटिया
भूइ
अणगारा
तेल्ला
वय'
ग. १ पट्टिया
२०
अभंगेहि
'मिस मिसंत
'सुस लिट्ट
वीजियंगे
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कूतुयग्गाहा
तुरंगाणं
सकिंकिणी"
'मुदंग'
भट्टतं
"कुंच"
वज्ज
'निकस'
वेदणिज्जं
सेज्जे
सेज्जाओ
पुरियाओ
कोकुइया
"अथव्वण"
लाउ
चरमेहि
'वंटिया
भुई
(ग)
(क, ग)
(ग)
(ग)
(क)
(ग, वृ)
(ख)
(क, ग)
(क, ख
(क, ख)
(क, ग)
( ख, ग )
(क, ख, ग )
(ग)
(क)
प्रति- परिचय
(क) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४० तथा पृष्ठ ८० है । प्रत्येक पत्र ११ | | | इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में ४ से १३ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४६ तक अक्षर हैं । पत्र के चारों ओर सुक्ष्माक्षरों में टीका लिखी हुई है । प्रति सुन्दर, कलात्मक तथा पठित मालूम होती है । प्रति के अंत में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है :
(क, ख, ग )
अणकारा
(क, तिल्ल ( क ) ; तेल (ख) (क, ख, ग ) ( क, ख )
वइ° पत्तिट्ठिया
इति श्री उववाईसूत्रं समाप्तं ॥ ग्रन्थ १९६७ ॥ छ। संवत् १६२३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ दिने । आगरा नगरे | पातिसाह श्री अकबर जलालदीन राज्य प्रवर्त्तमाने ॥ श्री बृहत् खरतर गच्छालंकार श्री पूज्यराज ६ जिनरि. घसूरिविजयराज्ये पंडित श्रीलब्धिवर्द्धन
श्री
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