Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 460
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् पंचम उद्देशक: १००९ (A) ܀܀܀܀܀܀ www.kobatirth.org तमेवाह एवं दप्पपणासिते ण वि दिंति गणं पकप्पमज्झयणे । आबाहेणं नासिए, गेलण्णादीण दलयंति ॥ २३०८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं पूर्वोक्तदृष्टान्तप्रकारेण दतो धर्मकथाध्ययनतो व्याकरणाध्ययनतो निमित्तशास्त्राद्यध्ययनतो वा इत्यर्थः । प्रणाशिते प्रकल्पनाम्यध्ययने यावज्जीवमाचार्यास्तस्या गणं न ददति । आबाधेन ग्लानत्वादिना पुनर्नाशिते भूयोऽप्युज्ज्वालिते दलयन्ति प्रयच्छन्ति ॥२३०८ ॥ एतदेव सप्रपञ्चं भावयति गेलणे असिवे वा, ओमोयरियाए रायदुट्ठे वा । एहिं नासियम्मी, संधेमाणीए देंति गणं ॥२३०९॥ ग्लानत्वे वा जाते, ग्लानप्रतिजागरणे वा कृते, अशिवे वा समुपस्थिते, अवमौदर्ये वा दुर्भिक्षे जाते भिक्षापरिभ्रमणतः, राजद्विष्टे वा पलायनतो, यदि नष्टं प्रकल्पनामकमध्ययनं, तत एतैः कारणैः नाशितेऽपि पुनः सन्दधत्या गणं ददति प्रयच्छन्ति ॥२३०९ ॥ For Private and Personal Use Only ** गाथा | २३०६-२३१० प्रमोद दृष्टान्ता: १००९ (A)

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