Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 518
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहार सूत्रम् पंचम उद्देशकः १०३८ (A) "असणं पाणगं चेव खाइमं साइमं तहा । जे भिक्खू सन्निहिं कुज्जा, गिही पव्वइए न से"॥[ ] इति। तदिदानीं विरोधितं विरोधमापादितं, सन्निधेरिदानीं त्वयाऽभ्युपगतत्वात् १ ॥२३९७॥ परिग्गहे निजुजंता, परिचत्ता उ संजया । भारादिमाइया दोसा, पेहाऽपेहाइया इय॥२३९८ ॥ संयता: परिग्रहे नियुज्यमानाः परित्यक्ताः, संसारे पातनात्। किञ्चान्यत् इहलोके भारादयो भारवहनादयो दोषाः, आदिशब्दात् कायक्लेश-सूत्रार्थहान्यादिदोषपरिग्रहः । तथा प्रेक्षाऽप्रेक्षादिकाश्च। तथाहि-यदि सर्वं प्रत्युपेक्षते ततः सूत्राऽर्थपरिमन्थः, अथ न प्रत्युपेक्षते तर्हि संसक्तिभावः, आदिशब्दात्तत्परितापनादिदोषपरिग्रहः ।। २३९८ ॥ गाथा X ४२३९८-२४०४ औषध|सञ्चये दोषाः १०३८ (A) . १. दशवैकालिक [६।१९] इत्थं पाठः दृश्यते-"लोहस्सेस अणुण्फासे, मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहिं कामे, गिहि पव्वइए न से ॥" For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540