Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री व्यवहार
सूत्रम् पंचम
उद्देशकः १०३८ (A)
"असणं पाणगं चेव खाइमं साइमं तहा । जे भिक्खू सन्निहिं कुज्जा, गिही पव्वइए न से"॥[ ] इति। तदिदानीं विरोधितं विरोधमापादितं, सन्निधेरिदानीं त्वयाऽभ्युपगतत्वात् १ ॥२३९७॥
परिग्गहे निजुजंता, परिचत्ता उ संजया । भारादिमाइया दोसा, पेहाऽपेहाइया इय॥२३९८ ॥
संयता: परिग्रहे नियुज्यमानाः परित्यक्ताः, संसारे पातनात्। किञ्चान्यत् इहलोके भारादयो भारवहनादयो दोषाः, आदिशब्दात् कायक्लेश-सूत्रार्थहान्यादिदोषपरिग्रहः । तथा प्रेक्षाऽप्रेक्षादिकाश्च। तथाहि-यदि सर्वं प्रत्युपेक्षते ततः सूत्राऽर्थपरिमन्थः, अथ न प्रत्युपेक्षते तर्हि संसक्तिभावः, आदिशब्दात्तत्परितापनादिदोषपरिग्रहः ।। २३९८ ॥
गाथा
X
४२३९८-२४०४
औषध|सञ्चये दोषाः
१०३८ (A)
.
१. दशवैकालिक [६।१९] इत्थं पाठः दृश्यते-"लोहस्सेस अणुण्फासे, मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहिं कामे, गिहि पव्वइए न से ॥"
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