Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहारसूत्रम्
पंचम
उद्देशकः १०२९ (B)
आयंबिल-खमगाऽसइ,लद्धाण चरंतएण उ विसेण । बिइयपदे जयणाए, कुणमाणि इमा उ निद्दोसा ॥२३६५॥
न च तत्र कोऽपि क्षपक आचाम्लो वा आसीत् यो विषादुद्धरति, ततः क्षपकानामाचामाम्लानां च असति अभावे तेषां च साधूनां चरता संचरिष्णुना विषेण लब्धानां मृतानामित्यर्थः। मार्या वा समुपस्थितया मृतानां द्वितीयपदे इयं संयती यतनया वैयावृत्त्यं कुर्वाणा निर्दोषा ॥ २३६५ ॥
कीदृशी पुनर्वैयावृत्त्यकरणे योग्या? इत्यत आहसंबंधिणी गीयत्था, ववसायि थिरत्तणा य कयकरणा। चिरपव्वइया य बहुस्सुया य परिणामिया जा य ॥२३६६॥ गंभीरा मद्दविया, मियवादी अप्पकोउहल्ला य । साहुं गिलाणगं खलु, पडिजग्गति एरिसी अज्जा ॥२३६७॥ या आर्या ग्लानस्य प्रतिजागर्यमाणस्य भगिन्यादिनात्रकेण सम्बन्धिनी। तथा गीतार्था
गाथा २३६१-२३६७
अपवादे विपक्षे वैयावृत्त्यम्
१०२९ (B)
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