Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 501
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् पंचम उद्देशकः १०२९ (B) आयंबिल-खमगाऽसइ,लद्धाण चरंतएण उ विसेण । बिइयपदे जयणाए, कुणमाणि इमा उ निद्दोसा ॥२३६५॥ न च तत्र कोऽपि क्षपक आचाम्लो वा आसीत् यो विषादुद्धरति, ततः क्षपकानामाचामाम्लानां च असति अभावे तेषां च साधूनां चरता संचरिष्णुना विषेण लब्धानां मृतानामित्यर्थः। मार्या वा समुपस्थितया मृतानां द्वितीयपदे इयं संयती यतनया वैयावृत्त्यं कुर्वाणा निर्दोषा ॥ २३६५ ॥ कीदृशी पुनर्वैयावृत्त्यकरणे योग्या? इत्यत आहसंबंधिणी गीयत्था, ववसायि थिरत्तणा य कयकरणा। चिरपव्वइया य बहुस्सुया य परिणामिया जा य ॥२३६६॥ गंभीरा मद्दविया, मियवादी अप्पकोउहल्ला य । साहुं गिलाणगं खलु, पडिजग्गति एरिसी अज्जा ॥२३६७॥ या आर्या ग्लानस्य प्रतिजागर्यमाणस्य भगिन्यादिनात्रकेण सम्बन्धिनी। तथा गीतार्था गाथा २३६१-२३६७ अपवादे विपक्षे वैयावृत्त्यम् १०२९ (B) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540