Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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व्यवहारसूत्रम्
पंचम
उद्देशकः १०१६ (B)
साम्भोगिक इति भणिते सम्भोगो विचार्यते। तत्राऽऽदौ सम्भोगः षड्विधो भवति ।। भेदप्रभेदतोऽपि च एकैकस्य भेदस्य प्रभेदतः पुनरनेकविधो भवति ॥ २३३०॥ तत्र प्रथमतः षड्विधमाह
ओह१ अभिग्गहर दाणग्गहणे३ अणुपालणाए४ उववाए५ । संवासम्मि य छट्ठो६, संभोगविही मुणेयव्वो ॥२३३१॥
ओघे उपध्यादौर, अभिग्रहेर दानग्रहणे३ अनुपालनायाम् ४ उपपाते ५। एवमेते पञ्च सम्भोगा भवन्ति, षष्ठः सम्भोगविधिः संवासे ज्ञातव्यः ६॥ २३३१ ॥
तत्र 'यथोद्देशं निर्देशः' इति न्यायात् प्रथमत ओघसम्भोगविधिमभिधित्सुराहउवहि सुयर भत्त-पाणे३, अंजलिपग्गहे ४इय । दावणाय५ निकाए य६ अब्भुट्टाणेत्ति आवरे ७ ॥२३३२॥
गाथा २३२४-२३२९ आलोचनाग्रहण विधिः
१०१६ (B)
१. मु. मध्ये अत्र 'ओघो पुण वारसहा' गाथाऽस्ति ।
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