Book Title: Vyavahar Sutram Part 03
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहार सूत्रम् पंचम उद्देशकः १०१७ (A) कीकम्मस्स य करणे८, वेयावच्चकरणे इय९ । समोसरण१० सन्निसेज्जा११, कहाए य पबंधणे१२ ॥२३३३॥ ओघसम्भोगो द्वादशप्रकारः तद्यथा-उपधिविषयः १, श्रुतविषयः २, भक्तपानविषयः३, अञ्जलीप्रग्रहविषयः ४, दावणाए त्ति दापना शय्याऽऽहारोपधिस्वाध्यायशिष्यगणानां प्रदापनं तद्विषयः ५, निकाय त्ति निकाचो निकाचनं छन्दनं निमंत्रणमित्येकार्थाः, तद्विषयः ६, अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे अपरेऽभ्युत्थानविषयः ७, कीकम्मस्स य इत्यादि, कृतिकर्म वन्दनकं तत्करणविषय: ८, वैयावृत्त्यकरणविषयः ९, समवसरणविषयः १०, सन्निषद्याविषयः११, कथाप्रबन्धनविषयश्च १२ ॥ २३३३॥ तत्रोपधिसम्भोगः षट्प्रकारस्तथा चाहउवहिस्स य छब्भेया, उग्गम १ उप्पायणेश्सणासुद्धो ३ । परिकम्मण४ परिहरणा ५, संजोगो६ छट्ठओ होइ ॥२३३४॥ उपधेः उपधिसम्भोगस्य षड् भेदा भवन्ति, तद्यथा-उद्गमशुद्धः १, उत्पादनाशुद्धः २, सूत्र १९ गाथा २३२४-२३२९ आलोचनाग्रहण विधि: १०१७ (A) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540