Book Title: Vardhaman Deshna Part 02
Author(s): Jain Dharma Prasarak Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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श्री
चतुर्थ
उद्धासः।
वर्षमानदेशना।
होऊण तए सद्धिं, झुझंति परुप्परं पाई ॥६६॥ उप्पडिउप्पडिऊणं, पडंति मिह मुग्छिाउ भूमौए। कंदति कुसदेणं, नहदंतवणाउलाओ अ॥७॥ चउरामतबलेणं, विहुरत्तणमागयाउ ताउ दुवे । निजिणिऊणं नूणं, तयंगणे नचिऊण गया ॥५१॥ तं सव्वं पिच्छित्ता, सूरो भयभीमाणसो भणइ । किं जुज्ज्ञह मे एवं ?, सिमरूवा का णही एसा? ॥७२॥ एगाइ तए तुब्भे, दो वि पहाराउ जजरकयाभो । सिलवण्णा का एसा १, को तुम्ह इहं वइरहेऊ? ॥ ७३ ॥ सुंदरिया भणइ इमं, चउरा तुह सिद्धसाइणी अस्थि । आहुणिआऽहं निपला-सिणी (2) सजणणी इह जाया ॥ ७४ ॥ घणमंततेअवलओ, सपत्तिवहरेण मंच माय जुनं । चउरा हणिस्सई ही, पइणो इस साहिअइ दुसहा ॥७५ ।। तं सुणिम संकिममणो, सूरो चिंतेइ इभ मणे ही ही । महकूडनिवासे इं, पडिओ साइणिसमूहम्मि ॥ ७६ ॥ मासंते पुण पत्ता, चउरा मजाकुशब्देन नखदन्तव्रणाकुलाश्च ॥ ७० ॥ चतुरामन्त्रबलेन विधुरत्वमागते ते द्वे । निर्जित्य नूनं तदङ्गणे नर्वित्वा गता ॥ १ ॥ तत्सर्व प्रेक्ष्य सूरो भयभीतमानसो भणति । किं युध्येथे युवाम् एवं १ सितरूपा का नखी एषा ? ॥ ७२॥ एकया तया युवां द्वे अपि प्रहाराजर्जरीकृते । सितवर्णा कैषा ? को युवयोरिह वैरहेतुः ॥७३॥ सुन्दरी भणतीमं चतुरा तव सिद्धशाकिन्यस्ति । आधुनिकाऽहं निःपलाशिनी (1) सजननीह जाता॥ ७४ ॥ घनमन्त्रतेजोबलतः सपत्नीवरेण मां च मातृयुत्ताम् । चतुरा हनिष्यति हि पत्युरिति कथयति दुस्सहा ॥ ७५ ॥ तच्छ्रुत्वा शङ्कितमना: सूरश्चिन्तयतीति मनसि ही ही । महाकूटनिषासेऽहं पतितः शाकिनीसमूहे ॥ ७६ ॥ मासान्ते पुनः प्राप्ता चतुरा मार्जारिका ग्लानत्वम् । नयति कृष्णे इमे पूर्वमिवाहो ! कषायबलम् ! ॥ ७७॥ प्रगता
मार्जारी.
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