Book Title: Vardhaman Deshna Part 02
Author(s): Jain Dharma Prasarak Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 14
________________ श्री चतुर्थ वर्षमान उन्नास देशना। ॥४ ॥ वि. संदरिसर जस मोडराए सवसार वित्राणं, किन निवाओ पर होइ ॥ ५३ ॥ अत्थि ममं सामत्थं, जामाउ ! गाउमुच्छहे हेउं । वाहीए विनाणं, विणा तिगिच्छा ण हु हवेइ ॥ ५४ ॥ छम्मासते भावी, मरणं मह तक्खगाहिओ माय ! । सो चउराए सवसी-को बलेणं कुणइ एवं ॥ ५५ ॥ मा बीहेसु तुम सुम, पुत्तिजुना तुह सुहं करिस्सामि । सहरं मुंजसु भोए, चिट्ठसु सुहमवहरतु संकं ॥ ५६ ॥ णो काई सो सल्लं, सिहलं चउराकयस्थियो बाढं। तह वि हु सुंदरिसद्धिं, चिढेइ भ मच्चुभीरू सो ॥ ५७॥ माऊए पुत्तीए, पुढो गिहद्दारकुडमाएसु । प्रालिहिया दो मोरा, पच्चक्खं जंगमा व वरा ।। ५८ ॥ वेइप्रमुवविसिऊणं, तामो सुईभूय मायपुत्तीओ । ते मोरे पूनंती, पणजावपरायणाउ तया ।। ५६ || तम्मि दिणे जमरूविणि, समागए मच्चुभीरुओ सूरो । मर्ज पहजपेई, मज्झन्हे मम धुवं मरणं ।। ६० ।। सा भणइ सामिप्र! तुमं, पिच्छसु अम्हाण सचिसामत्थं । धीरत्तणमवलंबिल, परं भवति ॥ १३ ॥ अस्ति मम सामय जामातृक ! ज्ञातुमुत्सहे हेतुम् । व्याधेर्विज्ञानं विना चिकित्सा न हि भवति ॥१४ ।। पण्मास्यन्ते भावि मरणं मम तक्षकाहितो मातः !। स चतुरया स्ववशीकृतो बलेन करोत्येवम् ॥ ५५ ॥ मा विभीहि त्वं सुत ! पुत्रीयुता तव सुखं करिष्यामि । स्वैरं भुग्धि भोगान् तिष्ठ सुखमपहर शङ्काम् ॥५६॥ नोऽकार्षीत्स शल्यं शिथिलं चतुराकदर्थितो बाढम् । तथापि हि सुन्दरीसाधं तिष्ठति च मृत्युभीरुः सः ॥१७॥ मात्रा पुत्र्या (च) पृथग्गृहद्वारकुड्यभागयोः। आलिखितौ द्वौ मयूरो प्रत्यक्षं जङ्गमाविव वरौ ॥ ५८ ॥ वेदिकामुपविश्य ते शुचीभूय मातृपुत्र्यो । वो मयूरौ पूजयन्त्यौ घनजापपरायणे तदा ( जाते)॥१९॥ तस्मिन् दिने यमरूपिणि समागते मृत्युभीरुकः सूरः । भार्या प्रति जल्पति मध्याहे मम ध्रुवं मरणम् ॥ ६॥ सा भणति स्वामिन् ! त्वं प्रेक्षस्वावयोः शक्तिसामर्थ्यम् । धीरत्वमवलम्ब्य चित्रकरं शीघ्रविघ्नहरम् ॥ ६१॥ * ॥४॥ Jan Education in For Private & Personal Use Only w.jainelibrary.org

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