Book Title: Vardhaman Deshna Part 02
Author(s): Jain Dharma Prasarak Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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श्री
चतुथे उखासः॥
वधमानदेशना।
॥
३
॥
मह भजा॥३६ ।। सा बंधणेहिं बंधिन, खरं कसाघायविहुरिओ()कुणई । जह भयभंतो संतो, अइकलुसं पारडेइ खरो | ॥ ३७॥रे! जासि सुंदरिगिह, घाए पाए निभच्छइ तमेसा । मरमाणं दुदृणं, जया विमुंचेइ करुणाए ॥ ३८ ॥ जडभारभरकतो, घणडकाडमरमंडिओ ताव । भस्सविभूसिअदेहो, संजाओ भरडओ झत्ति ॥ ३९ ॥ तं ददृणं चउरा, भयभीत्रा से पएसु निवडेइ । भणइ जडी मुद्धि ! इमो, सच्चो आमाणो जाओ ॥ ४० ॥ खाएइ जो करवं, को वि विडंबणमिहं सहइ सो वि । खामिश्र दवं दाउं, भत्तं च विसजिओ तीए ॥४१॥ सा चित्ते चिंतेई, चरिश्र मह जाणिभं च दइएणं । मारेमि उवाएहि, मिन्नसिणेहे को सुक्खं ? ।। ४२ ॥ न्हविअंगणे तो सा, घणगोमयमंडलं पि काऊणं । ढोभइ णेवजाई, सिप्रवत्था विहिबहुधूवा ॥४३॥ घयजुअगुग्गलगुडिया-लोहिअकणवीरएहिं सा होमं । एगग्गमणा पकुणइ, घणहूंकइभीसणा चउरा ॥४४॥ पजताहुइभंते, पच्चक्खो तक्खगोभ से जाओ । मुद्धि ! किमत्थं सरियो ?, तुट्ठो हं तं वरं खरः ॥ ३० ॥रे! यासि सुन्दरीगृहं घाते घाते निर्भर्त्सयति समेषा । म्रियमाणं दृष्ट्वा यदा विमुञ्चति करुणया ।। ३८ ।। जटाभारभराक्रान्तो घनडाकाडमरुमण्डितस्तावत् । भस्मविभूषितदेहः संजातो भरटको झटिति ॥ ३९ ॥ तं दृष्ट्वा चतुरा भयभीता तस्य पादयोनिपतति | भणति जटी मुग्धे ! अयं सत्य आमाणको जातः ॥ ४०॥ खादति यः करम्ब कोऽपि विडम्बनामिह सहते सोऽपि । क्षमयित्वा द्रव्यं दत्त्वा भक्तं च विसृष्टस्तया ॥४१॥ सा चित्ते चिन्तयति चरितं मम ज्ञातं च दयितेन | मारयाम्युपायैर्भिन्नस्लेहे कुतः सौख्यम् ॥ ४२ ॥ स्नात्वाऽङ्गणे ततः सा घनगोमयमण्डलमपि कृत्वा । ढोकते नैवेद्यादि सितवत्रा विहितबहुधूपा ॥ ४३ ॥ घृतयुतगुग्गुलगुटिकालोहितकरमवीरैः सा होमम् । एकाप्रमनाः प्रकरोति धनहुकृतिभीषणा चतुरा ॥४४॥ पर्यन्ताहत्यन्ते प्रत्यक्षस्त
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