Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir tweepende2008 प्रासमासुरोति गीतिरादित्तं लक्षणंत्वाहकालिदासः आर्यापूर्वार्द्धसमंद्वितीयमपिभवतियत्रहंसगते छंदोविदस्तदानीं गीर्तिताममृतवाणिभाषेतइति // 14 // एवमवरतामध्ययनंचोक्वातत्रमुख्यप्रयोजनमाहुः विलोक्येति विझुं सर्वकरणेसमर्थतंवल्लनिरंतरंउपास्महे अजामहइत्यर्थः तं कं यः ग्रसदिति ग्रसंतः अधर्मरूपायेन : क्रामकराः तेषामाकरेउत्पत्तिस्थानेनकामतीतिनऋतिनामव्युत्पत्त्यातत्त्वारोपेण अधर्माणामपिनैश्चल्यंसूच्यते विलोक्यकलिसागरेग्रसदधर्मनकाऽऽकरे पतज्जननिमजनकरुणयावतीर्णःक्षितौ // तदुत्तरणकारणंचरणभक्तिसेतुंहरेरचील्लुपदुपास्महेतमनिशंविध्रुवल्लभम् // 15 // अधर्माणांबहुत्वंतुकायिकादिभेदात् तादृशेकलियुगरूपेसागरे दुस्तरत्वादिधर्मसाम्यात्कलौसमुद्रत्वारोपः पतदिति पतांनौकादिस्थानापन्नात्स्वधर्मातच्यवमानानांजनानांनितरांतलपर्यंतमज्जनविलोक्यस्वाभाविकधर्मभूतयारूपयाक्षि तौजूमाववतीर्णःसन्तस्यसमुद्रस्यउत्तरणेकारणहेतुहरेश्वरणशक्तिरूपसेतुं अचीक्लपत्रचितवान् ण्यंतस्यकपू सामर्पेइत्यस्यलुडिरुपं अनादिसिद्धंभक्तिमार्गआविष्कृतवानित्यर्थः एकादशस्कंधेद्वितीयाध्याये यैवैभगवता प्रोक्तान्युपायाआत्मलब्धये अंजःपुंसामविदुषांविद्धिभागवतान्हितान् यानास्थायनरोराजन्नप्रमाद्येत कर्हिचित् Resumercensesamere RUPERE For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172