Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्ट व०स्तो दर्पणे पदार्यानांप्रस्तुतानामन्येषांवायदाभवेत् एकधर्माशिसंबंधःस्यात्तदातुल्ययोगितति धर्मोगुणक्रियारूपइतिव्या / टीका ख्या अकारमात्रेण दतइतिव्याख्यानेतु कृपणस्यकृपाणस्यचकेवलमाकारतोजदइत्यादिवट्यतिरेकः लक्षणत्वाहदंडी // 29 // शब्दोपात्तेप्रतीतेवासादृश्येवस्तुनोर्द्वयोः तत्रयनेदकथनंव्यतिरेकासकथ्यतइति अतिरुचिरावृत्तं चतुग्रहरतिरुचिराजमौ / स्जगाइतितल्लक्षणात् // 23 // अथवैष्णवविबुधैर्जयध्वनिःकृतइतिवणयंतःस्वयमपिवंदंते वंदेविअमिति विझुनिग्रहा वंदेवि यद्वचनाहतेद्राग्ध्वस्तेबुधैायिमतेवितेने तजेतुकामैर्जयगीर्यथोच्चैःमागिंद्रवजाहतइंद्रशत्रौ // 24 // नयहादौसर्वत्रसमर्थश्रीवल्लवंदे कीदृशंविfमायिमतेमायावादसिद्धांते यद्वचनैःआहते तिरस्कृते ततएवद्राकशीघ्रध्वस्ते / प्रमाणशून्यतयानिर्मूलपायताप्राप्तचसति तत् मायिमतं जेतुकामैः प्रथमतएवतज्जिगीषावद्भिः बुधैः वैष्णवविद्वद्भिः जयगीः जयजयेतिरूपा जयस्यप्रतिपादिका वाक् उच्चैः वितेने चक्रे तमितिशेषः अत्रदृष्टांत यथेत्यादि यथापा श्रीमदाचार्यकर्तृकेण मायावादखंडनेन रामानुजादिसर्ववैष्णवानास्वतोजयसिद्धचनंतर, रस्टर 288233 For Private and Personal Use Only

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