Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir maffetra Rattatreeneemte titte ताचार्यज्ञावप्रकरणाच्छ्रीवल्लभाख्यः अवि विजयते विशेषतःसर्वप्रतियोगिकोत्कर्षणवर्ततेविपराभ्यांजेरित्यात्म : नेपदम् इतःप्रभृत्व श्रीमदाचार्येष्वाचार्यशब्दव्यवहारोलोकेप्रवृत्तइतिज्ञापनायास्मिन् ग्रंथे आचार्यशब्दप्रथममिहै / वोक्तः इहराज्ञोदर्शनाऽतृप्तिवर्णनाच्छ्रीमदाचार्यवपुषआसेचनकत्वंध्वनितं अत्र समृद्ध्यतिशयवर्णनादुदात्तम लंकार: लक्षणंतुकुवलयानंदे उदात्तमृद्धेश्चरितंश्लाघ्यंचान्योपलक्षणमिति इहविजयतइतिवर्तमानप्रयोगेण भूत स्पापितात्कालिकोत्सवस्य कविमनसा साक्षात्कृतत्वप्रतीत्याभाविकमप्यलंकारः लक्षणंतुकाव्यप्रकाशे प्रत्यक्षाइवय द्भावाः क्रियतेभूतभाविनः तद्भाविकमिति सुताश्चमाविनश्चेतिद्वंद्वः भावाअाइतिकमलाकरः मुनिर्जयतियोगींद्रोमहा स्माकुंअसंभवइलिसाहित्यदर्पणोदाहरणमप्येवंसंगच्छते पूर्वोत्तरार्द्धयोरंत्योनुपासः मंदाक्रांतावृत्तम् लक्षणतूक्तं // 25 // अथाभिषेकसुवर्णमेतदमाकामितिविज्ञापितसतिस्नानसीललसदृक्षभास्माभिरिदमादीयतइत्युक्तवंतः श्रीमदाचार्या: ततःक्षितीशेन लद्धिरपपंधरणीगीवाणेभ्योविभज्यवितीर्यमहत्तरेकनकभाजनेभृत्वा अपरस्मिन्स्वर्णमुद्राराशौनिवदिते सति समग्रव्यस्याऽऽसुरत्वं दृष्ट्वाततोऽन्विष्यसप्वदैवद्रव्यभूतामुद्राः स्वीकृत्यवैष्णवत्वमाजिलपतोराज्ञोपिमनोरथंशरणम / बोपदेशेनतूर्णपूर्णकृत्वापांडुरंगपुरंपस्थितवंतोजगवंतइत्याहुः ततइति आप्तोयथार्थसिद्धांतवादी यः ततः अभिषेकानं| / तदासेचनकं तृप्तेनस्त्वितोपस्यदर्शनादियमरः Receरय For Private and Personal Use Only

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