Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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Page 58
________________ Shri Maa Jain Aradhana Kendra www.kobatit.org Acharya Shei Kalassagarsuri Gyarmandie व०स्तो चक्रमायुधविशेषसुदर्शनाख्यधारयतीतिचतथा डुब्धारणपोषणयोःश्लुविकरणःचक्रमहरणेगणे कुलालाद्युपकरणेरा टीका सैन्यरथांगयोरितिहमः सः कः यदागमाद्यस्यागमनाद्धेतोःसमितिपदेसभास्थानेसक्षारक्षणनिमित्तंवा पक्षेसमितेःसमुद्र, // 28 // मथनोत्तरंतत्तीरेअमृतार्थप्रवृत्तस्यदेवासुराख्यसंग्रामस्यपदेस्थाने तादृशयुद्धरुपेव्यवसायेवा समितिःसांपरायेस्यात्सभा यांसंगमेपिचेतिमेदिनी पदंशब्देचवाक्येचब्यवसायापदेशयोःपादतच्चिन्हयोःस्थानत्राणयोरंकवस्तुनोरितिविश्वःसदाश्रि तैःसंतंवेदमाश्रयाद्भः उषित्वादिश्यसन्मार्गमित्यादौसच्छब्दस्यवेदपरत्वंप्रसिद्धं अथवा सत् सत्कार्यवादादिरूपंमतमा श्रितैः पक्षेसदानिरंतरश्रितैःअथवासदितिक्रियाविशेषणं सम्यगाश्रितैः देवानाभगवदेकशरणत्वात बुधैःवैष्णवविद्वद्भिः पक्षेदेवैश्च तथाचपुनः असत्परैःअसत्कार्यवादतत्परैः असमीचीनबादप्रवणैर्वाअवैदिकवादपरैर्वा पक्षेअसमीचीनकार्य। परैः परैःवैष्णवेतरैर्मायावादिभिः पक्षेशत्रुजित्यैः परःस्यादुत्तमात्मान्यवैरिदृरेषुकेवलइतिविश्वः अपीतिसमुच्चये उभयैरपि / युगपदेवपरमजयः ययेपापे ननुउआयेषामपिकथंपरमजयःसंभवति अन्यतरपराजयस्यावश्यंभावादित्याशंक्य उपयसा धारणहेतुमाहुः अदतइति तथाचशद्धतया अद्वैतस्यप्रतिपादनात् वैष्णवसिद्धांतानांपरस्परविलक्षणत्वेपिभगवदे| कतात्पर्यकत्वादिनासर्वेषामैक्यप्रतिपादनाद्वा वैष्णवैःसुरैश्चपरमउत्कृष्टोजयात्रापे इतरैस्तुओदतःअस्यअकारस्यो 18 दतःपदकरणावसरेपरंअजयइतिछेदात् स पापे तथाचजयविरुद्धःपराजयएवतैःप्राप्तइत्यर्थः अमित्रादिशब्दवदिहविरो STORRRRRRRRRRRRRITATIVILLLLLLLtinue deseeseeeeeeeeeeeeeeeBBBBBBBDO For Private and Personal Use Only

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