Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Sheikossagarsuri Gyanmar WINDORE व०स्तो . श्रुतेरनेकार्थत्वांगीकारात् अतएवचत्वारिशृंगेतिश्रुतिःशब्दशास्त्रपरत्वेनव्याख्यातामहाभाष्ये यास्केनत्वाग्निपरत्वेन टीका IA पूर्वोक्तश्रुतेरापनिरुक्तेऽन्यथाब्याख्यानदृश्यते तत्त्वस्मदुक्तानुगुणमेव नन्वेवमपिमतांतरसत्त्वेसर्वजनीनःप्रत्ययःकयंभवे / दितिचेदत्राहुः उत्पथोत उत्पथाअसन्मार्गास्तेषांकद यस्मात्तं एवंकरणात्फलितमाहुः श्रेयइति श्रेयसःकल्याणस्यस दनंगृहमाश्रयमितियावत् अतःसर्वेषांश्रेयोभविष्यतीतिफलितं विशेष्यस्वरूपमाहुः विध्विात विधो गवतोवदनंमुखंतद्रूपं / तेनाग्नित्वाद्वाक्पतित्वमपिसमर्थितंबोध्यं अतोनकाप्यनुपपत्तिरित्यर्थः यद्वाभगवतोवदनमिववदनंवचनयस्यतं तेन / यथागीतादिनासर्वश्रुतिसिद्धांतोदर्शितस्तोंनेनापितत्त्वदीपादिनेतिभावः अथवा विधुश्चंद्रइवमुवंयस्यतं तेनदर्शनात्ताप हानि:सुलोतिभावः विधुःशशांककपूरेन्दृषीकेशेपीतिविश्वः तादृशमाचार्यनमार्मातिसंबंधः अत्रापिकाव्यलिंगमलंकारः वि। मशेषणगीकृतैर्हेताभिःपूर्वपूर्वार्थसमर्थनदर्शनात् सचानेकपदार्थहेतुकःउक्तंचकाव्यप्रकाशे काव्यलिंगहेतोर्वाक्यपदार्थतेति एतव्याख्यायां हेतोर्वाक्यार्थतापदार्थताचेत्यर्थः अंत्याप्येकानेकपदार्थत्वेनद्विधा एवंत्रिविधमितिकमलाकरभट्टः त त्रापिपूर्वपूर्वविशेषणार्थस्योत्तरोत्तरविशेषणाथैःसमर्थनदर्शनात्कारणमालाध्वनिगर्भतयाविच्छित्तिविशेषशात्ययं कदनंस दनमित्यादौछेकानुप्रासःशब्दालंकार: लक्षणंतुचंद्रालोके स्वरव्यंजनसंदोहव्यूहाऽमंदोहदोहदा गौर्जगज्जाग्रदुत्सेकाछेकानु। 1 श्रीकृष्णेन. 2 श्रीमदाचार्येणापि, Beneeseree Bewwwse For Private and Personal Use Only

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