________________
24 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
पुरोवाक्
नमामि सूरि कुशलम्
दादा श्री जिनकुशलसूरि गुरुदेव एवं पू. संघरत्ना श्री की कृपा का ही परिणाम है कि जिसके द्वारा यह दुरूह कार्य भी मुझसे सहज बन सका और संयोग की बात कि साध्वी श्री कनकप्रभाश्रीजी और श्री सम्यक् प्रभाश्रीजी का शोधकार्य डॉ. सागरमलजी सा. के निर्देशन में कराने हेतु शाजापुर आने का कार्यक्रम बना । तब पू. गुरुवर्य्याश्री का आदेश हुआ कि इन्हें अध्ययन करवाने हेतु तुम्हें साथ जाना है गुरुवर्य्याश्री के सान्निध्य को छोड़ने की इच्छा न होते हुए भी आज्ञा शिरोधार्य कर शाजापुर के लिए प्रस्थान हुआ, यहाँ पहुँचने के पश्चात् पू. गुरुवर्य्याश्री का आदेश आया कि तुम्हें भी किसी भी एक ग्रन्थ का अनुवाद करना है, क्योंकि अभी सामाजिक हलचल से निवृत्त हो, अतः वहाँ रहने का सदुपयोग करना है पू. गुरुवर्य्याश्री की आज्ञानुसार डॉ. साहब से मैंने पूछा कि किस ग्रन्थ का अनुवाद करना चाहिए, जो मुझे अनुवाद करने में सरल हो और लोगों को पढ़ने में भी रुचिकर, सरल हो । सरलमना डॉ. साहब ने सरलता से कहा मल्लधारी हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित पुष्पमाला पर खरतरगच्छ भूषण साधु सोमगणि द्वारा रचित टीका है, उसी को आधार बनाकर मूलग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद करो ।
दादा गुरुदेव का नाम लेकर कार्य प्रारम्भ किया और वह कार्य गुरुदेव व गुरुवर्याश्री की कृपा से पूर्ण भी हो गया। बीच-बीच में जहाँ भी कठिनाइयाँ उपस्थित हुईं, जहाँ भी अर्थ करने में कठिनाई आई, वहाँ डॉ. साहब से कहती यह समझ में नहीं आ रहा है डॉ. साहब तुरन्त सरलता से अर्थ का समाधान कर देते
T
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org