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उपदेश पुष्पमाला/63
बाले वृद्धे नपुंसके च, क्लीवे जड़े च व्याधिते। स्तेने राजापकारिणि च, उन्मत्ते च (अदंसने)।। 1241।
दासे दुढे य मूढ य, अ(रि)णेत्ते जुंगिए इय। ओबद्धए य भयए, सेहनिप्फेडिया इय ।। 125 ।। दासे दुष्टे च मूढ़े च ऋणार्ते जुङ्गिते इति।
अवबद्धे च भृतके शैक्षकनिस्फेटिका च।। 125 ।। दीक्षा के अयोग्य पुरुष के अठारह प्रकार निम्न है - बाल, वृद्ध, नपुंसक, क्लीब, जड़, रोगी, चोर, राजद्रोही, उन्मत्त, अंधा, दास, दुष्ट, मूढ़, कर्जदार, निन्दित-कुल आदि वाले परतंत्र (नौकर) एवं शैक्षनिःफेटिका (अर्थात् अपहरण किया हुआ)।
इय अट्ठारस भेया, पुरिसस्स तहित्थियाए ते चेव। गुविण सबालवच्छा, दोन्नि इसे होति अन्ने वि।। 126 ||
इति अष्टादश भेदा पुरूषस्य स्त्रियायाः ते चैव। गुर्विणी सवालवत्सा, द्वौ इमौ भवतः अन्यावपि।। 126 11 दीक्षा के अयोग्य स्त्रियों के बीस प्रकार है जो अठारह दोष अयोग्य पुरुषों के है वे स्त्रियों के भी समझना चाहिये, इसके अतिरिक्त गर्भवती और बाल-वत्सा अर्थात् जिसका बच्चा स्तनपान करता हो ये दो भेद जोड़ने पर दीक्षा के अयोग्य स्त्रियों के कुल बीस भेद होते हैं।
__ पंडए वाइए कीबे, कुंभी ईसालुए त्ति य। सउणी तक्कम्मेसवी य, पक्खियापक्खिए इय।। 127 ।। पण्डकः वातिकः क्लीवः कुंभी ईर्ष्यालुकः इति च। शकुनि तत्कर्मसेवी च पाक्षिकापक्षिको इति।। 127 ||
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