Book Title: Updesh Pushpamala
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 185
________________ उपदेश पुष्पमाला/ 183 पायं धम्मत्थीणं, मज्झत्थाणं सुनिउणबुद्धीणं। परिणमइ पगरणमिणं, न संकिलिट्ठाण जंतूणं ।। 496 ।। प्रायः धर्मार्थिनां, मध्यस्थानां सुनिपुणबुद्धिनां। परिणमति प्रकरणमिदं, न संक्लिष्टानां जन्तूनाम् ।। 496 ।। यह प्रकरण मुख्यतः माध्यस्थभाव वाले विचारशील धार्मिक व्यक्तियों अर्थात् सुज्ञ पाठकों के लिये तो रूचि कर होगा। परन्तु राग-द्वेष ग्रसित संक्लिष्ट भाव वाले व्यक्तियों के लिए रूचिकर नहीं भी हो सकता हैं। हेममणिचंददप्पण-सूररिसिपढमवण्णनामेहिं। सिरिअभयसूरिसीसेहिं, विरइयं पयरणं इणमो।। 497 || हेम मणिचन्द्रदर्पण सूरऋषिप्रथमवर्णनामभिः । श्रीअभयसूरिशिष्यैः, विरचितं प्रकरणं इदम् ।। 497 ।। हेम मणिचन्द्र दर्पण सूर और ऋषि इन पदों के प्रथम अक्षर से निष्पन्न नामधारी मैं हेमचन्द्रसूरि जो अभयदेवसूरि का शिष्य हूँ उसके द्वारा यह प्रकरण विरचित हैं। उवएसमालानाम, परियकामं सया पढंताणं। कल्लाणरिद्धिसंसिद्धि-कारणं सुद्धहिययाणं।। 498 ।। उपदेशमालानामकं, पूरितकामं सदा पठंतानाम् । कल्याणऋद्धिसंसिद्धि-कारणं शुद्धहृदयानाम् ।। 498 ।। उपदेश माला नाम का यह प्रकरण सदा पाठकों के मनोरथ को पूर्ण करने वाला है और शुद्ध हृदय वालों के लिये कल्याण रूप रिद्धि-सिद्धि प्राप्त कराने वाला हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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