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उपदेश पुष्पमाला/ 77
आलम्बने च काले, मार्गे यतनायां चतुर्भिः स्थानैः। परिशुद्धं रीयमाणः ईर्यासमितिमान् भवति साधुः।। 171 ।। आलंबन, काल, मार्ग और यतना इन चारों के द्वारा परिशुद्ध पर्यटन (विहार) करने वाला साधु ईर्यासमिति का शोधक कहलाता है।
नाणाई आलंबण-कालो दिवसो य उप्पहविमुक्को। मग्गो जयणा य पुणो, दव्वाइ चउव्विहो इणमो।। 172 ||
ज्ञानादि आलम्बन-काल दिवसः च उपाश्रयविमुक्तः। मार्गः यतना च पुनः द्रव्यादि चतुर्विधः इमं (वक्ष्यमाणेति)।। 172 || साधुओं द्वारा ज्ञानादि की प्राप्ति निमित्त यात्रा को आलंबन रूप कहा जाता है। काल की अपेक्षा से दिन में गमन करना यतियों के लिये विहित है। मार्ग की अपेक्षा से उन्मार्ग को छोड़कर सम्यक् मार्ग से यात्रा करना चाहिये। द्रव्यादिक विषयक यतना चार प्रकार की है, जो इस प्रकार है
जुगमित्तनिहियदिट्ठी, खेत्ते दव्वम्मि चक्खुणा पेहे। कालम्मि जाव हिंडइ, भावे तिविहेण उवउत्तो।। 173 ।।
युगमात्र निहित दृष्टिः, क्षेत्र द्रव्ये चक्षुषा प्रेक्षेत। काले यावत् हिण्डते, भावे त्रिविधेन उपयुक्तः।। 173 || क्षेत्र से युग मात्र दृष्टि से देखते हुये चलना क्षेत्र विषयक यतना होती है। मार्ग में सूक्ष्म जीवादि को देखते हुये चलना क्षेत्र यतना है। सूक्ष्म जीवादि को देखते हुये चलना द्रव्य-यतना है। काल की अपेक्षा से दिन में ही यात्रा करना काल यतना है मन-वचन-काया से सजग होकर सावधानी पूर्वक गमन करना भाव यतना कहलाती है।
उद्धमुहो कहरत्तो, हसिरो सद्दाइएसु रज्जंतो। सज्झायं चिंतंतो, रीएज न चक्कवालेणं ।। 174।।
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