________________
उपदेश पुष्पमाला/ 161
इस लोक में नमस्कार मंत्र के माहात्म्य के लिये त्रिदण्डी का उदाहरण ज्ञातव्य है। नमस्कार के प्रभाव से देवता का सान्निध्य भी प्राप्त किया जा सकता है। इससे विशुद्ध चित्त वाले भक्तों को धनागम भी हो सकता है। यह दृष्टान्त से जाना जा सकता है। नमस्कारमंत्र के पारलौकिक माहात्म्य के सम्बन्धमें चण्डपिंगल कथानक एवं हुण्डिक यक्ष का कथानक ग्रन्थों में वर्णित है। अतः नमस्कार मंत्र का स्मरण अत्यन्त परमावश्यक है।
11. अनायतन त्यागद्वारम्
सज्झायं पि करेज्जा, वज्जंतो जत्तओ अणाययणं। तं इत्थिमाइयं पुण, जईण समए जओ भणियं ।। 435 ।।
स्वाध्यायं अपि कुर्यात्, वर्जयन् यत्नतः अनायतनं। तं स्त्रियादिकं पुनः, यतीनां समये यतः भणितं ।। 435 ।। ऐसे महत्वपूर्ण स्वाध्याय को प्रयत्न पूर्वक गुरु के चरण मूल का आश्रय लेकर ही करना चाहिये, अन्य के सान्निध्य में नहीं। स्त्रीजन आदि का सान्निध्य अनायतन है। यति के लिये स्त्री-जनादि का आयतन कुत्सित है। ऐसा सिद्धान्त ग्रन्थों में कहा गया है।
विभूसा इत्थिसंसग्गी, पणीयं रसभोयणे। नरस्सऽत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा।। 436 ||
विभूषा स्त्रीसंसर्गी, प्रणीतरसभोजनं। नरस्यात्मगवेषिणः, विषं तालपुटं तथा।। 436 || आत्म कल्याण चाहने वाले स्वाध्यायी मुनि के लिये विभूषा (शारीरिक श्रृंगार) स्त्रीसंसर्ग एवं प्रणीतरस-भोजन (अति सरस भोजन) ये तीनों तालपुट-विष के समान अहित कर माने गये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org