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60 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
किं चरणं ? कतिभेदं ? तदर्हां प्रतिपत्ति विधि प्ररूपणा । उत्सर्गापवादैः : च तत् कस्य फलं वा किं तस्य ? ।। 113 ।। चारित्र का स्वरूप क्या है ? चारित्र के कितने भेद है ? चारित्र के योग्य कौन है ? प्रतिपत्ति विधि की प्ररूपणा क्या है ? उत्सर्ग एवं अपवाद - मार्ग क्या है ? तथा उनका फल क्या है ? ये सभी जानना चाहिये ।
सावज्जजोगविरई, चरणं ओहेण देसियं समए ।
भेएण उ दुवियप्पं, देसे सव्वे य नायव्वं ।। 114 ।। सावद्ययोग - विरति, चरणं ओघेन देशितं समये । भेदेन तु द्विविकल्पं देशे सर्वस्मिन् च ज्ञातव्यं । । 114 ।। सावद्य योग का परिहार सम्यक्चारित्र है । सामान्यतः देशचारित्र एवं सर्व चारित्र इसके दो भेद है।
देसचरणं गिहीणं, मूलुत्तरगुणविअप्पओ दुविहं । मूले पंच अणुव्वय, उत्तरगुण दिसिवयाईआ ।। 115 || देशचरणं गृहीणाम् मूलोत्तरगुणविकल्पकः द्विधिम् । मूले पंच अणुव्रतानि, उत्तरगुण दिव्रता- द्या: ( सप्त ) । । 115 ।। देशचारित्र का अधिकारी गृहस्थ है । देशचारित्र मूलगुण व उत्तरगुण के भेद से दो प्रकार का है। मूलगुण पांच अणुव्रत है तथा उत्तरगुण दिशाव्रत आदि
है ।
पंच य अणुव्वाइं, गुणव्वयाइं च होंति तिन्नेव । सिक्खावयाइं चउरो, सव्व चिय होइ बारसहा ।। 116 ।।
पंच च अणुव्रतानि, गुणव्रतानि च भवन्ति त्रीण्येव । शिक्षाव्रतानि चत्वारि, सर्व एव भवति द्वादशधा ।। 116 || पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत इस प्रकार श्रावक व्रत के बारह भेद होते हैं
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