Book Title: Tulsi Prajna 1995 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 19
________________ उनके अनुसार यथार्थज्ञान ईश्वर विषयक होता है। परमात्मा का ज्ञान ही सर्वोत्तम ज्ञान है । अन्य सभी सांसारिक या व्यावहारिक ज्ञान है । ईश्वर से अलग किसी ज्ञान का स्वतः अस्तित्व नहीं है। सन्त ऑगस्टाइन के अनुसार ज्ञान तीन प्रकार का है-ऐन्द्रिय ज्ञान (Sense Knowledge), बौद्धिक ज्ञान (Rational Knowledge) एवं अन्तर्प्रज्ञा (Wisdom)। ऐन्द्रिय ज्ञान संवेदनात्मक होता है। यह ज्ञान इन्द्रिय तथा विषय के सम्पर्क से उत्पन्न होता है। इसको इन्होंने निम्न स्तर का माना है । बौद्धिक ज्ञान, इन्द्रिय ज्ञान एवं अन्तर्ज्ञान के मध्य की अवस्था है। यह शुद्ध बुद्धि का व्यापार है। ऑगस्टाइन के अनुसार इन्द्रियां भौतिक वस्तु का ज्ञान करवाती हैं एवं बुद्धि से अभौतिक वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ सुन्दर वस्तु का ज्ञान ऐन्द्रियिक एवं सौन्दर्य का ज्ञान बौद्धिक है। बौद्धिक ज्ञान नित्य, अपरिणामी सत्यों (eternal and immutable truths) का ज्ञान है । आन्तर ज्ञान यह उच्चतम ज्ञान है। ऑगस्टाइन इसे 'प्रज्ञा' कहते हैं। यह बुद्धि का सर्वोत्तम स्वरूप है। बुद्धि निर्णय करती है परन्तु निर्णय की शक्ति प्रज्ञा से प्राप्त होती है। प्रज्ञा ध्यानपरक ज्ञान है।" वह आत्मज्ञान है। ज्ञान स्वरूप एवं ज्ञान की प्रामाणिकता स्पिनोजा की ज्ञान-मीमांसा के महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । स्पिनोजा स्वतः प्रामाण्यवादी हैं। उनकी प्रसिद्ध उक्ति है कि ज्ञान स्वत: प्रकाश है, उसे प्रकाशित करने के लिए किसी दूसरे ज्ञान की आवश्यकता नहीं है । स्पिनोजा भी ज्ञान के तीन स्तर बताते हैं । इन्द्रियजन्य ज्ञान, बौद्धिक ज्ञान एवं प्रज्ञाजन्य ज्ञान । जैनदर्शन के अनुसार स्पिनोजा स्वीकृत प्रथम दो ज्ञानों का समावेश मति, श्रत ज्ञान में तथा प्रज्ञाजन्य ज्ञान का समाहार पारमार्थिक प्रत्यक्ष में किया जा सकता लॉक के दार्शनिक विचारों का प्रारम्भ उनके ज्ञान सिद्धांत से होता है। लॉक ज्ञान-मीमांसा को सभी दार्शनिक विचारों की आधारशिला मानते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि ज्ञान-मीमांसा से लॉक का तात्पर्य ज्ञान की उत्पत्ति तथा ज्ञान के प्रामाण्य से है । इन दोनों के आधार पर लॉक ज्ञान के स्वरूप का निश्चय करते हैं ।२४ लॉक के अनुसार समस्त ज्ञान अनुभव जन्य है तथा उसकी प्रामाणिकता भी अनुभव पर आश्रित है। उनके अनुसार कोई भी प्रत्यय, धारणा जन्मजात नहीं है। लॉक ज्ञान पक्ष में बुद्धिवाद का खण्डन करके अनुभववाद का समर्थन करते हैं। वर्कले भी अनुभववादी हैं । लॉक ने अनुभववाद का प्रारम्भ किया तथा वर्कले ने उसे परिष्कृत किया । देकार्त बुद्धिवादी हैं । इनके अनुसार बुद्धि ही यथार्थज्ञान की जननी है । यह यथार्थज्ञान सार्वभौम, सुनिश्चित और अनिवार्य है। यही ज्ञान का स्वरूप है। इस प्रकार के ज्ञान का आदर्श गणित शास्त्र है । देकार्त के अनुसार यथार्थ ज्ञान प्राप्ति के दो साधन हैं.....--- सहज ज्ञान एवं निगमन । सहज ज्ञान तो सद्यः अनुभूति है तथा निगमम अनुमानजन्य ज्ञान है। देकार्त का मानना है कि सब ज्ञानों का आधार तो सहजज्ञान है, परन्तु निष्कर्ष निगमनात्मक ज्ञान है। देकार्त आत्मज्ञान को सहज-बोध, स्वत:सिद्ध मानकर अन्य विषयों का ज्ञान आत्मज्ञान पर आधारित मानते हैं। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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