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इस कहानी से भी साफ मालूम होता है कि अशोक के काल में अर्थात् ईसा पूर्व तीसरी शती में पुण्ड्रवर्धन नगर में निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय सुप्रतिष्ठित था । जो कि ईसा की सातवीं शती के मध्यभाग तक उत्तरी बंग में इस सम्प्रदाय का प्रभाव बहुत प्रबल था, इसका प्रमाण हिउयेन सांग के विवरण से ही मिलता है । उनके काल में भी पुण्ड्रवर्धन नगर में दूसरे धर्मावलम्बियों की अपेक्षा निर्ग्रन्थों की संख्या बहुत अधिक थी ।
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- साहित्य परिषद् पत्रिका ( ४६ । १) बंगला सन् १३४६ से अनुदित
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तुलसी प्रज्ञा
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