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शान्ति-शिक्षा-सैद्धांतिक प्रस्ताव
शांति शिक्षा के मुख्यतः तीन सैद्धांतिक प्रस्ताव हैं१. शांति-शिक्षा की वैधता २. शांति-शिक्षा एवं निःशस्त्रीकरण ३. शांति-शिक्षा की दुविधाएं
१. शांति-शिक्षा की वैधता
यह शांति शिक्षा की औचित्यता का दृष्टिकोण है जो शांति शिक्षा की विषय-वस्तु व व्यवहार के अन्तर पर निर्भर है। इसमें निम्नांकित सिद्धांत सम्मिलित
(अ) इस प्रकार की शांति शिक्षा हिंसा का विरोधकर सैनिक विरोधी अभि
वृत्ति का निर्माण करती है तथा युद्ध सम्बन्धी खेल, खिलौनों तथा हिंसक
प्रचार का निषेध करती है। (ब) यह आक्रामकता को कम करने हेतु इसके कारणों का पता लगाकर, इन
पर कैसे काबू पाया जाए ताकि समाज को कम से कम क्षति हो, इसकी
प्रक्रिया सिखाती है। (स) यह संघर्ष को शांति शिक्षा का अंग मानती है तथा इसका लक्ष्य लोगों को
यह बताना है--संघर्ष मानव-समूहों और समाज का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। संघर्ष का भय व्यक्ति को निषेधात्मक परिणामों की तरफ ले जातः है। शान्ति शिक्षा लोगों को यह बतलाए कि संघर्ष से कैसे निपटा
जाए ? (द) पूर्वाग्रहों तथा शत्रु के प्रति विरोधात्मक रवैये को समाप्त कर व्यक्तियों
व संस्कृतियों के प्रति स्वस्थ-समझ को विकसित करना। (य) प्रत्येक राष्ट्र द्वारा स्वयं अपने ही हितों की पूर्ति युद्ध का एक प्रमुख
कारण है। इस समस्या के निराकरण हेतु विश्व नागरिकता को प्रोत्साहन तथा विश्व सरकार को राज्यों द्वारा अपनी-अपनी संप्रभुता सौंप देना
आवश्यक है। (र) इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं युद्ध और शांति के लिए कार्य
कर सकते हैं । वे सत्ता व प्रभाव के उन क्षेत्रों को उखाड़ फेंके जो अशांति पैदा करते हैं तथा वे अपनी रचनात्मक सहभागिता, सहयोग, आत्मविश्वास
एवं ज्ञान से समाज में परिवर्तन करें। २. शांति शिक्षा और निःशस्त्रीकरण (अ) आदर्शवादी संकल्पना-इस विचार का विकास यूनेस्को के उस घोषणा
पत्र से हुआ, जिसमें यह कहा गया है- "युद्ध मानव-मस्तिष्क में जन्म बंड २१, अंक १
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