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त्वया जगन्ति पुण्यानि त्वय्यपुण्या जनोक्तयः ।
नाथवन्तस्त्वया लोकास्त्वमनाथा विपत्स्यते । सीता विषयक लोकापवाद को सुनकर राम किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए हैं। उन्होंने पौरजनपदों में सीता के विषय में ऐसे कुत्सित विचार क्यों आये ? इसके मूल में क्या कारण है ? इसके पीछे कौनसी शक्ति काम कर रही है ? आदि की खोज नहीं की। विचारणीय प्रश्न यह है कि समाज में समान रूप से लाग होने वाला न्याय, क्या समाज की सदस्या सीता को प्राप्त हुआ? राजा का न्याय तो मिथ्या-अपवाद फैलाने वाले लोगों को दंड देने में था, जिससे भविष्य में फिर कभी पतिव्रता स्त्री के पातिव्रत्य पर अपवाद की भ्रान्त धारणा, कुत्सित मनोवृत्ति को दुहराया नहीं जाता। किन्तु राम राज-पद की लिप्सा के भंवर में फंस गये और राजत्व का मद उन पर हावी हो गया है । धर्मशास्त्र के विधि-विधानों को भी वे विस्मृत कर गये, जबकि शास्त्र तो राजा को पतिव्रता स्त्रियों के सम्मान एवं रक्षा का आदेश देता है।
राम ने लोक-भावना का आदर करते हुए स्वयं अपनी पत्नी को त्याग कर समाज में स्वच्छ छवि बनायी है परंतु इसके मूल में जाकर वस्तुस्थिति का मनन किया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि राम का आदर्श कोरा राजनीतिक आदर्श है। राज्य के लोभ व पद-लिप्सा में परितः शुद्ध एवं निष्पाप पत्नी को अनुचित दंड देकर स्त्री के स्वाभिमान व पवित्रता का गला घोंट दिया गया। राम के निर्णय पर दुर्मुख जैसे सामान्य अनुचर को भी आश्चर्य होता है :---
'हां, कहं अग्नि परिसुद्धाए गर्भट्ठिद पवित संताणाए
देवीए दुज्जणं वअणादो एवं ववसिदं देव्वेण ?" . 'हां, अग्नि (परीक्षा) से परितः शुद्ध, जिसके गर्भ में पवित्र संतान है (ऐसी) महारानी सीता के विषय में दुर्जन के कथन से महाराज ने यह कैसे निश्चय किया ?'
उत्तररामचरित्र के कथा के विकास के साथ-साथ उसके सामाजिक एवं राजनैतिक घटनाक्रम का अनुशीलन करने पर अनेक प्रश्न उठ खड़े होते हैं
१. राम ने सीता का परित्याग कर किस कर्तव्य का निर्वाह किया है(अ) राजा का, (ब) पति का, (स) गर्भस्थ शिशु के पिता का ।
२. राम ने किसका परित्याग किया है. . (अ) सम्राज्ञी का (ब) पत्नी का (स) प्रजा के रूप में प्रतिव्रता स्त्री का । ..... ३. राम ने लोकापवाद का दंड किसे दिया है--
.. (अ) सीता को (ब) सीता के गर्भस्थ शिशु को (स) सीता और गर्भस्थ शिशु दोनों को।
दुर्मुख के मुख से लोकापवाद को सुनकर राम तिलमिला जाते हैं। दुर्मुख ग़म को लोकापवाद की सूचना देता है तब सीता चित्र-दर्शन से थकी-मांदी पति के हाथ को तकिया बनाकर विश्वासपूर्वक सो रही है। समाज-धर्म की रक्षा में बाधक व्यक्ति
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... तुलसी प्रज्ञा
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