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को यह भी पता नहीं है कि उसने सीता का परित्याग क्यों किया ? बस लोगों ने कहा और उसने कर दिया ।
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भवभूति ने उत्तररामचरित में पत्नी - परित्याग की इस समस्या को दृढ़तर शब्दों में उठाया है । स्त्री के त्याग से और भी अनेक नये प्रश्न उठ खड़े होते हैं, उनका तात्त्विक वर्णन कर कवि ने इस समस्या पर चिन्ता जतायी है । जैसे, सीता - निर्वासन के दुःख से आहत एवं असह्य प्रसववेदना की पीड़ा से व्याकुल होकर गंगा के प्रवाह में कूदकर जीवन - लीला का अन्त करने की चाह, ' दो कुलों के सम्बन्धों में तनाव, एवं वैमनस्य का जन्म । कौशल्या को समधी जनक से मिलने तक का साहस नहीं है । वह अत्यन्त लज्जित है । जनक को कौशल्या के दर्शन से असह्य पीड़ा होती है और वे कहते हैं कि "क्षते क्षारमिवासह्य जातं तस्यैव दर्शनम् । पुत्री के चरित्र पर कलंक और पति राम द्वारा उसके निर्मम परित्याग से सीता विषयक शोक उनके मर्मस्थल को आरे की भांति चीर डालता है । १५ वे इतने दुःखी हैं कि पुत्री के असह्य शोक से मुक्ति के लिए आत्महत्या तक का विचार करते हैं । सम्बन्धी जन सुशील एवं निर्दोष पत्नी का प्रत्याख्यान करने वाले पुरुष की निन्दा भी करते हैं । TO इस तरह पत्नी - परित्याग से कुटुम्ब में पति-पत्नी के प्रेम-सम्बन्ध में टूटन, उभयपक्षीय स्वजनों में वैमनस्य, कन्या के पितृ पक्ष की सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति आदि प्रश्न ज्वलंत समस्या का रूप ले लेते हैं । उत्तररामचरित में राम के सीता-त्याग के निर्णय की तरह ही शम्बूक - वध का निर्णय भी उतना ही चिन्ताजनक है ।
उत्तररामचरित के शम्बूक-वध प्रसंग में अन्यायपूर्ण वर्ण-व्यवस्था, जटिल जातीय बन्धन तथा वर्ग-विशेष के प्रति तुच्छ दृष्टिकोण; जातीय द्वेष के दर्शन होते | यह प्रसंग शक्ति एवं ऐश्वर्य सम्पन्न, प्रतिष्ठा प्राप्त लोगों की अपराधी मनोवृत्ति और अत्याचार के सत्य को उजागर करता है । उत्तररामचरित में ब्राह्मण अपने मरे हुए पुत्र को राजद्वार पर लाकर रखता है और छाती पीट-पीटकर रोता है - 'ब्राह्मणों पर महान् अनर्थ है ।' तब राम के प्रति तप कर रहे शम्बूक का वधकर मृत ब्राह्मणपुत्र को जीवित करने के लिए आकाशवाणी गुंजित होती है" और दण्डकारण्य में प्रवेश के समय राम जनस्थान में पैर ऊपर और सिर नीचे करके केवल धुंए का पान समाज में प्रत्येक व्यक्ति नैतिक
पुनीत कर्म को कर सकता था । कोई भी करे;
तप तो आत्म
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करते हुए तप कर रहे शम्बूक का वध कर देते हैं। शक्ति एवं आचरण की पवित्रता के लिए तप त्याग के तप का किसी वर्ण - विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है । तप शुद्धि का कर्म है, शक्ति है, निर्मल प्रकाश है, ज्ञान है, शुद्धाचार है वेदाध्ययन से वंचित वर्ग का तप कर्म शास्त्र सम्मत है ।" राम जैसे शासक ने तप और तप के प्रभाव के विषय में, कारण और कार्य के विषय में सोचा तक नहीं । तप का किसी वर्ण से और तापस की साधना का किसी की मृत्यु से कोई सम्बन्ध नहीं है । शम्बूक का तप कर्म सुविधाभोगी उच्च वर्ग के समझ एक चुनौती थी; नहीं तो तप ब्राह्मण करे या शूद्र तप करने से कभी कोई मरा है ? और तप करने वाले का वध करने से क्या कोई मृत व्यक्ति कभी जीवित हुआ है ? शम्बूक के वध में निश्चय ही उच्चवर्ग
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तुलसी प्रज्ञा
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