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श्रीफल, मानदेय अर्पित कर उनका सम्मान किया। इस दिन के व्याख्यान सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रेमसिंह ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने शौरसेनी प्राकृत के साहित्य का देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद कर उसके व्यापक प्रचार-प्रसार की प्रेरणा दी।
____ ज्ञातव्य है कि नई दिल्ली स्थित श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ में जैनदर्शन विभाग के तत्त्वावधान में यह व्याख्यानमाला आचार्य श्री विद्यानंदजी की प्रेरणा से श्री कुन्दकुन्द भारती न्यास ने शुरू की है। एतदर्थ विद्यापीठ में एक लाख रूपयों का एक ध्र वफण्ड बनाया गया है, जिसके ब्याज से प्रतिवर्ष शौरसेनी प्राकृत के किसी एक विशिष्ट विद्वान् के दो व्याख्यान आयोजित कराये जायेंगे। आचार्य श्री विद्यानंदजी के सान्निध्य में सम्पन्न इस प्रथम व्याख्यानमाला में अनेकों विशिष्ट विद्वानों, विचारकों, विद्यापीठ के समस्त अध्यापकों व छात्रों की सक्रिय उपस्थित रही । सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि दोनों दिन तीन-तीन घंटों तक संपूर्ण सभाजन बिना किसी आकुलता के अनवरतरूप से ज्ञानलाभ लेते रहे। व्याख्यान माला के संयोजक व संचालक जैनदर्शन विभागाध्य डॉ० सुदीप जैन ने आचार्य श्री, अभ्यागत विद्वानों, अतिथियों एवं संभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रथम प्रयास में सभी लोग शौरसेनी प्राकृत के नाम व महिमा से परिचित हुए हैं तथा इसके विषय में उनकी जिज्ञासा बढ़ी है ।
-श्री कुन्द कुन्द भारती १८-बी स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया
नयी दिल्ली-११००६७
खण्ड २१, अंक १
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