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दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आन्दोलन
[] अनिल धर
१० मई १९९४ को दक्षिण अफ्रीका का रंगभेद नीतिगत शासन प्रथम बार गैर जातीय आधार पर हुए चुनाव में विजय प्राप्त अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. नेलसन मंडेला के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के साथ प्रतीकात्मक रूप से समाप्त हो गया। इसका आधार १९१२ में पड़ चुका था जब ए. एन. सी. के संस्थापक पिक्सले सेम' ने प्रथम अधिवेशन में न्याय, स्वतंत्रता और समानता को अपना मौलिक अधिकार मानते हुए सब अफ्रीकी राष्ट्रवादियों को एक होने का आह्वान किया था। इसके साथ ही दक्षिण अफ्रीका की स्वतंत्रता के आन्दोलन का इतिहास शुरू हुआ । प्रस्तुत पत्र का विषय यही इतिहास है। इससे पूर्व रंगभेद की समस्या के लिए उपनिवेशवाद व दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोध में गांधी के योगदान को उल्लिखित करना घटनाक्रम को ठीक तरह से समझने में सहायता देगा।
संक्षिप्त इतिहास
चौदहवीं और पंद्रहवी शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों के अफ्रीका आने से उपनिवेशवाद की नींव पड़ी जो कि १९३५ तक मुसोलनी के इटली द्वारा इथोपिया पर आक्रमण तक चलता रहा । उपनिवेशवाद के संस्थापक पुर्तगालियों ने १४८२ व १५०५ में अंगोला व मोजम्बीक में अपने आप को स्थापित कर अपनी स्थिति सुदृढ़ की । इसके उपरांत अफ्रीका में योरपीय समुदाय के उपनिवेश का जाल फैलता गया। इसी क्रम में फ्रांस ने १६३७ में, सिनेगल १६४३ में, रियूनियन १७१५ में, मारिशस १८३० में, अल्जीरया १८४० में, इक्यूटोरियल अफ्रीका १८८१ में, टयूनिस १८८२ में, आश्वरी कोस्ट १८९४ में अपने उपनिवेश स्थापित किये।
ब्रिटेन ने १७८७ में अपने पूर्व दासों को पुर्नस्थापित करने के लिए अफ्रीका का सियरा लोन चुना तथा बाद में इसे अपने उपनिवेश की संज्ञा दी। १८४३ में नाटाल, १८६८ में वासुटोलेंड (बोस्टवाना) , १८७३ में घाना तथा १८७७ में ट्रांसवाल में उपनिवेश स्थापित किये जिनका विस्तार १८८९ में सूडान, १८९० में दक्षिण रोडेशिया (जिबाववे), १८९१ में उत्तरी रोडे शिया (जांबिया) तथा न्यास लैंड, १८९५ में कीन्या तथा १९०० में नाइजीरिया में उपनिवेश स्थापित करने से हुआ ।'
अफ्रीका के उपनिवेश के इतिहास में जर्मनी की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है।
खण्ड २१, अंक १
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