Book Title: Tulsi Prajna 1995 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 91
________________ कालिदासस्य' की सूक्ति साहित्य-संसार में प्रसिद्ध है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ भी उपमा प्रयोग में प्रवीण हैं। इनकी उपमाएं सहज एवं स्वाभाविक हैं । लोक, शास्त्र, प्रकृति, जगत् से सम्बद्ध उपमाओं का सुन्दर विनियोजन हआ। अमूर्त-मूर्त्त, मूर्त-अमूर्त उपमेयोपमानों का सौन्दर्य-चर्व्य है । कुछ उदाहरणों का विवेचन अधो-विन्यस्त है :इतश्च दन्ति प्रवरेण शुण्डा दण्डं समुत्पाटयतोपयातम् । तदेभ शिक्षा प्रवणेन राज्ञा सस्तम्भितस्तत्त्वविदेव वादी ॥3 इधर हाथी अपनी सूंड को ऊपर उठाकर राजा की ओर झपटा। राजा हस्तिशिक्षा में प्रवीण था। उसने हाथी को वैसे ही स्तम्भित कर दिया जिस प्रकार तत्त्वविद् अपने वादी को । यहां पर राजा उपमेय, तत्त्वविद् उपमान, 'इव' सादृश्यवाचक शब्द है। यह पूर्णोपमा का सुन्दर उदाहरण है। राजा की हस्ति-शिक्षा की प्रवीणता को उदघाटित करने के लिए तत्त्वविद् को शास्त्रीय उपमान के रूप में उपन्यस्त किया गया है। अनेक स्थलों पर दार्शनिक जगत् से उपमान का संग्रहण किया गया है :किं हन्यतेऽस्मत् प्रभुरेष एवा स्माभिः कृतघ्न रिति चिन्तयातः । मुक्तो गतो दूरतरं यथात्मा, ___ लोकान्तमुद्गच्छति कर्ममुक्तः ।। ('वधिकों ने सोचा') क्या हम ही अपने स्वामी का वध करें? क्या ऐसा कर हम कृतघ्न नहीं होंगे ? इस चिन्ता से दुःखी होते हुए उन्होंने राजा को छोड़ दिया। वह मुक्त होते ही बहुत दूर चला गया जैसे कर्मों से मुक्त आत्मा लोकान्त में पहुंच जाता है । यह मूर्त उपमेय बन्धन मुक्त राजा के लिए अमूर्त उपमान आत्मा का प्रयोग किया है। जैसे कर्ममुक्त आत्मा लोकान्त अर्थात् सुरक्षित स्थान पर चला जाता है, फिर उसे कर्मों का भय नहीं सताता उसी प्रकार वधिकों से छोड़े जाने पर राजा सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया । इस तथ्य का उद्घाटन किया गया है । लौकिक जगत् से संग्रहित उपमान युक्त उपमा का लावण्य सुन्दर है :विचारगर्भा धिषणालसाऽभूद्, मेधाविनो गर्भवती मृगीव ।५ उस मेधावी राजा की बुद्धि विचारों में डूबकर गर्भवती मृगी की तरह मंद हो गयी। यहां अमूर्त उपमेय के लिए मूर्त उपमान का प्रयोग हुआ है। गर्भवती मृगी चलने में, चंक्रमण करने में असमर्थ हो जाती है, उसी प्रकार बुद्धि, विचारों या चिता में डूबकर अपने कार्य में अक्षम हो जाती है। अक्षमता रूप साधारण-धर्म का प्रतिपादन किया गया है। तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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