Book Title: Tulsi Prajna 1995 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 66
________________ क दंड देना राजा का कर्तव्य है, परंतु दंड अपराधी को दिया जाता है और वह भी उचित समय व स्थल को दृष्टि में रखकर । राम जब सीता के निर्वासन का निश्चय करते हैं तब सीता आसन्न प्रसवा है । राम ने यहां दंड अनुचित समय पर एवं निरपराधी को दिया है । यह अनुचित दंड सीता के साथ उसके गर्भस्थ शिशु को भी मिला है। इससे स्त्री-त्याग के विषय में पुरुष की निरंकुश सत्ता सूचित होती है । राम ने निरपराधी स्त्री पात्र को दंड देकर उसकी आवाज (स्वतंत्रता) को दबा दिया है । लोकमत को विश्वास में रखकर राम ने सीता का परित्याग किया है। सीता को दंड देना ठीक है, यह मान भी लें तो गर्भस्थ शिशु को दंड का भागीदार बनाना कहां ठीक है ? सीता के अपराध का दंड उसकी संतान को तो नहीं मिलना चाहिए। इस प्रकार सीता के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु को दंड देकर राजा ने सामाजिक न्याय व धर्मशास्त्र की अवहेलना की है। धर्मशास्त्र तो राजा को गर्भवती स्त्री की सहायता का आदेश देता है । ' राजा ने जिस दंड का निर्धारण सीता के लिए किया है, वह बिना सोचे-समझे एवं अतिशीघ्र निर्णय के आधार पर किया है । दण्डित सीता आसन्नसत्त्वा है, अत: दंड ही देना था तो प्रसव भार के टल जाने पर दिया होता तो उचित था । परंतु लोकानुरंजन के मोह में प्रजा का पक्ष लेकर नारी की अन्तर्वेदना एवं प्रसवकालीन पीड़ा को विस्मृत कर, उतावलेपन में निरपराधिनी आसन्नप्रसवा पत्नी के साथ अन्याय किया है । और दूसरी तरफ दंड और अपराध के अनुपात को भुला दिया है । इसे निम्न प्रकार देखा जा सकता है- १. सीता का अपराध - मात्र लोकापवाद (लोगों के लाञ्छन लगाने की जन्मजात प्रवृत्ति) २. इस अपराध का दंड = परित्याग ३. अपराध ४. दंड नगण्य = अक्षम्य । इससे स्पष्ट होता है नवोदित राजा को दोषी निर्दोषी, अपराधी - निरपराधी की पहचान नहीं है और अपराध के अनुपात में दंड का ज्ञान नहीं है । राजा चाहता तो अपराधी को अपराधी और दोषी को दोषी सिद्ध कर सकता था। वह असली अपराधी को जनमंच पर लाकर सीता पर लगाये गये मिथ्यापवाद को धो सकता था, क्योंकि सीता के सतीत्व का साक्षी वह स्वयं था । परंतु कोरे राजनैतिक स्वार्थ के लिए राम मे सीता को ही बली का बकरा बना दिया । सीता निर्दोष है यह जानते हुए भी वह चुप रहा और एकान्त में आकर सीता विषयक अपने निर्णय पर पश्चाताप किया ।" सीता की अन्तरंग सखी वासन्ती राम को सीता का परित्याग क्यों किया ? ऐसा पूछती है तब राम का उत्तर इतना ही होता है कि लोग सीता का मेरे राजप्रासाद में रहना पसन्द नहीं करते हैं । वासन्ती पूछती है- 'ऐसा क्यों ?' राम कहते हैं'इसका क्या कारण है इस बात को वे लोग ही जानते हैं ।' इसका अर्थ है कि राम ११ खंड २१, अंक १ ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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