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संकट के प्रतिक्रिया स्वरूप उठाया गया, जिसका पूर्ण विकास १९७० में हुआ तथा राजनैतिक शिक्षा की स्वीकृति हुई। यद्यपि शिक्षा शास्त्रियों द्वारा शांति शिक्षा के विचार को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया गया। अधिकांश लोगों की मान्यता थीशांति राज्य का मामला है, इसलिए सरकार से सम्बन्धित है।
अन्तर्राष्ट्रीय समझ के प्रति घटती आशा के बावजूद परमाणु शस्त्रों के खतरे एवं शांति आंदोलनों के अनुभव-इन दो तत्त्वों ने शांति शिक्षा के इस नये स्वरूप को उजागर किया। नये स्वरूप के विचार में यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अनुभव था कि शांति की दिशा में संरचनात्मक परिवर्तन राजनैतिक परिवर्तनों का
परिणाम है।
शांति शिक्षा के इस संप्रत्यय का प्रबल पक्षधर गियासेकी (Giesecke) था, जिसने १९६० में अपना सिद्धांत विकसित कर समाज के सभी स्तरों के मूलभूत प्रजातंत्रीय ढांचे पर बल दिया। गियासेकी ने अपने सिद्धांत के व्यावहारिक रूप को व्याख्यायित करते हुए शांति शिक्षा के निम्न उद्देश्यों की चर्चा की
१. संघर्षों को विश्लेषित करना सीखना । २. सामाजिक संदर्भो में संघर्षों का परीक्षण करना। ३ ऐतिहासिक चेतना को उभारना ।
४. राजनंतिक सहभागिता के अनुभव का चातुर्य प्राप्त करना । वैश्विक शिक्षा
१९७० के पश्चात् यह विचार सामने आया कि सत्ता के समान खण्ड एवं संसाधनों के समान बंटवारे के बिना शांति कभी भी प्राप्त नहीं की जा सकती। यह विचार जो न्याय व संरचनात्मक हिंसा के विश्लेषण पर आधारित था- शांति शिक्षा के क्षेत्र में एक नया विकास था, इसे ही वैश्विक शिक्षा का नाम दिया गया।
गाल्टंग के विचार में वैश्विक शिक्षा राष्ट्रों के बीच रचनात्मक सहयोग पर बल देती है तथा अत्याचारियों द्वारा आरोपित प्रतिस्पर्धा एवं विरोधों को समाप्त करतो है। इसी संदर्भ में फेयरी (Freire) का कहना है-मनुष्य विश्व को आलोचनात्मक दष्टि तथा स्वयं की चेतना के आधार पर स्वयं अपने विश्व की रचना कर सकता
गाल्लुंग व फेयरी के इन्हीं विचारों पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय शांति-शोध एसोसियशन के शांति शिक्षा कमीशन से ऐसे लोगों ने संचार की एक कार्य-योजना तैयार की है जो इस अत्याचार की प्रक्रिया के अंग है। नेपल्स, बैंग्लोर, न्यूयार्क, अमस्टरडम, मेलबोर्न की गन्दी बस्तियों में रह रहे लोग अत्याचार के इस तंत्र के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं तथा अपनी स्थितियों को सुधारने हेतु संगठन एवं संचार का प्रयत्न कर रहे हैं । इसके कार्यों में नेपल्स व बैंगलोर के संगठन सहायता व मार्गनिर्देशन कर रहे हैं।
तुलसी प्रज्ञा
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