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अन्य-यह असंभव है।
मद्रुक-आयुष्मान् ! क्या अरणी की लकड़ी में रही हुई अग्नि का रूप देखते हो?
अन्य -- यह शक्य नहीं है। मद्रुक–आयुष्मान् ! समुद्र के उस ओर मूर्त पदार्थ है ? अन्य हां, है। मद्रुक-आयुष्मान् ! क्या तुम उनके रूप को देखते हो? अन्य-देखना संभव नहीं है । मद्रुक --- क्या स्वर्ग (देवलोक) में मूर्त (रूपी) पदार्थ है ? अन्य-हां, है। मद्रुक-आयुष्मन् ! क्या तुम देवलोकगत पदार्थों के रूपों को देखते हो ? अन्य-देखना संभव नहीं है । ६
मद्रुक ने इन प्रश्नों के अनन्तर प्राप्त उत्तरों के आधार पर कहा कि जिस प्रकार हवा, गन्धगत पुद्गल, अरणि में स्थित ज्वाला, समुद्र के दूसरे छोर पर रही हुई वस्तुएं, देवलोक के पदार्थ आदि प्रत्यक्षगम्य नहीं होने पर अन्य मतवादी उनके अस्तित्व को स्वीकार करते हैं । तब पंचास्तिकाय का अस्तित्व अदृश्यमान् होने मात्र से अमान्य कैसे हो सकता है। यदि इन्द्रियगोचर नहीं होने मात्र से अस्तित्व शून्यता सिद्ध होती है तब तो संसार से बहुत पदार्थों का अभाव हो जाएगा। अतः अतीन्द्रिय और प्रज्ञा के विषय भूत धर्मास्तिकायादि का अस्तित्व उनके कार्यों के आधार पर (अनुमान प्रमाण से) मानना व जानना चाहिए ।?"
भगवती सूत्र में प्राप्त इन प्रमाणों के अनुसार पंचास्तिकाय का अस्तित्व दो दृष्टिकोणों से सिद्ध होता है । निरपेक्ष सत्ता (Absolule Being) के आधार पर जिसका साक्षात्कार सर्वज्ञ महावीर ने किया। दूसरा मद्रक के वैज्ञानिक हेतुवाद "व्यवहार" (Behaviour) के आधार पर । आधुनिक विज्ञान ने भी परमाणु के अस्तित्व की सिद्धि विविध व्यवहारों के आधार पर की है । परमाणु जैसे सूक्ष्म और अविभाज्य अंश' को नेत्र अथवा उपकरणों के माध्यम से देख पाना असंभव है। यंत्रों को कितना ही संवेदनशील बना लिया जाय सूक्ष्म जगत् को जानना वस्तुतः दुःसाध्य कार्य है । अलबर्ट आइंस्टीन के शब्दों में "यह आशा करना भी घातक साबित होगा कि और अधिक सूक्ष्म यंत्रों के निर्माण से मनुण्य सूक्ष्म जगत् में अधिक गहराई से प्रवेश पा सकेगा।"
धर्मादि पांच द्रव्यों को "अस्तिकाय" कहने का तात्पर्य है ये सावयवी हैं।" तर्क की भूमिका पर “यत्-यत् सावयवं तत्वदनित्यम्"-यह न्याय प्रचलित है । किन्तु भगवती में आये हुए तत्त्व वर्णन को देखने से पता चलता है कि यह तर्क कृतक सावयवी पदार्थों के संदर्भ में ही अपनी अर्थवत्ता सिद्ध करता है । अकृतक सावयवी में ऐसा नियम नहीं है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह कहा जा सकता है कि ये सारे नियम
तुलसी प्रज्ञा
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