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शांति-शिक्षा का स्वरूप और विकास
डॉ० बच्छराज दूगड़
एक समस्या पर किया जाने वाला अध्ययन उस तत्त्व की ओर इंगित करता है जो अशांति के लिए जिम्मेदार है तथा जो व्यक्त और अव्यक्त हिंसा से लड़ने के लिए कदम निर्धारित करने में सहयोग करे और सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास को आगे बढ़ाये, ऐसे कार्य को शांति-शिक्षा कहा जा सकता है।
पाश्चात्य विचारक गुनार माइडल के अनुसार 'शांति-शिक्षा समाज विज्ञानों के . विभिन्न क्षेत्रों में एक व्यवस्थित अध्ययन है जो संघर्ष, तनाव और युद्धों के बारे में हमारी समझ और सोच में सुधार लाता है।" इस अर्थ में शांति के लिए शिक्षण संबंधी विचार ही सन्निहित हैं ।
__ वर्तमान में शांति-शिक्षा की अभिरूचि केवल शांति और युद्ध की समस्या तथा राजनैतिक संघर्षों तक ही सीमित है। शांति की नवीन परिभाषा के अनुसार युद्ध या हिंसा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों में सतत विद्यमान है । क्योंकि कुविकास (Mal development) गरीबी, आंतरिक हिंसा और युद्ध में एक निकट सम्बन्ध देखा जा सकता है । इसलिए युद्ध विरोधी साधनों का विकास व खोज आवश्यक है। इन युद्ध विरोधी साधनों का उद्देश्य केवल युद्ध और हिंसा को समाप्त करना नहीं है अपितु सभी प्रकार की हिंसा और समाज में सभी स्तरों में व्याप्त सभी प्रकार के शोषण को समाप्त करना है । इसलिए शांति शिक्षा का आंदोलन वस्तुतः सम्पूर्ण व मूलभूत परिवर्तन का है । अहिंसा हिंसा का विरोध मात्र नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की संपूर्ण शक्ति है । इस प्रकार शांति शिक्षा का विचार नये समाज के निर्माण के लिए है। शांति शिक्षा में शांति के इस नवीन संप्रत्यय को सम्मिलित करना होगा। जिससे समाज परिवर्तन के साथ अन्तर्राष्ट्रीय परिवर्तन व कलह-शमन भी सम्भव हो सके।
गाल्लुंग ने अपने एक निबन्ध ---"ए क्रिटिकल डेफिनेशन ऑफ पीस" में कहा है-शांति शिक्षा उन स्थितियों को समझने का प्रयास है जो हमें अन्तर्राष्ट्रीय सामूहिक हिंसा को रोकने में योगदान करती है तथा राष्ट्रों और जनता के बीच सांमजस्य-पूर्ण तथा रचनात्मक सम्बन्धों के विकास में सहायक होती है । शांति शिक्षा के विचार का विकास
पाश्चात्य जगत् में शांति शिक्षा का विचार सर्वप्रथम कोमेनियस ने १९६७ में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'एंजेल ऑफ पीस' में रखा था। बाद में रूसो शांति शिक्षा
खण्ड २१, अंक १
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