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जैन दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शनों में
मोक्ष तत्त्व
श्री उदयचन्द्र जैन
भारतीय दर्शन का एक निश्चित उदेश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये वह सदा प्रयत्नशील रहता है, साथ ही इस उद्देश्य की प्राप्ति के उपाय भी बतलाता है। संसार में चार बातें ऐसी हैं जिनको प्राप्त करना पुरुष का परम कर्तव्य है। उनका नाम पुरुषार्थ (पुरुष का अर्थ अर्थात प्रयोजन) है। धर्म, अर्थ काम
और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ कहे गये हैं। इन में से मोक्ष या मुक्ति सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है इस संसार में समस्त प्राणी आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक इन तीन प्रकार के दु:खों से सदा सन्तप्त रहते हैं और दर्शनशास्त्र इन दुःखों से मुक्ति का उपाय बतलाता है। दु:खों से छुटकारा पाना ही पुरुष का अन्तिम लक्ष्य है, और इस लक्ष्य की प्राप्ति करना दर्शनशास्त्र का काम है । इसीलिए दर्शनशास्त्र को मोक्षशास्त्र भी कहा गया है । यद्यपि मोक्ष के स्वरूप तथा साधनों के विषय में दार्शनिकों में मतभेद है, किंतु मोक्ष नामक तत्त्व की सत्ता के विषय में सब का मतैक्य है। उस मोक्ष की प्राप्ति के लिए विभिन्न दार्शनिकों ने विभिन्न मार्गों को बतलाया है, किन्तु उन सबका लक्ष्य एक ही है ।
. मोक्ष के विष य में जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि संसारी जीव अनादिकाल से कर्मबद्ध है। अन्य दर्शनों की तरह जैनदर्शन भी जीव और कर्म के सम्बन्ध को अनादि मा नता है। ऐसा किसी ने भी नहीं माना है कि किसी समय जीव सर्वथा शुद्ध था और उसके साथ कर्मों का सम्बंध बाद में हुआ । यदि सर्वथा शुद्ध जीव के भी कर्म का बन्ध माना जाय तो मुक्त जीव के भी कर्म का बन्ध मानना पड़ेगा। तब फिर कोई जीव मुक्ति के लिए प्रयत्न ही क्यों करेगा ? अात्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादिकाल से है और यह आत्मा कर्मों द्वारा कलुषित तथा परतन्त्र
तुलसी प्रज्ञा
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