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भारतीय एवं टालमीय ज्योतिष का तुलनात्मक अध्ययन
जगदीशसिंह सिसोदिया, शक्तिधर शर्मा, सज्जनसिंह लिश्क
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों द्वारा ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति के बारे में अपने अपने दावे प्रस्तुत किये जाते आ रहे हैं । भारतीय ज्योतिष शास्त्र को प्राचीन व मौलिक न मान कर उसे अन्य देशों से नकल किया हुआ शास्त्र माना जाता हैं जिनमें विशेष रूप से ग्रीक, चीन, अरब आदि देशों की नकल भारतीय ज्योतिष में अधिक मानी जाती है । इनमें भी सबसे अधिक प्रभाव भारतीय ज्योतिष पर टालमीय ज्योतिष ( Tetrobiblos) का कई विदेशी शोधकर्त्ता बतला रहे हैं ।
इस निबन्ध में भिन्न-भिन्न विद्वानों के निष्कर्षों एवं शोध कार्यों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि भारतीय ज्योतिष पर किसी भी विदेशी ज्योतिषशास्त्र का और विशेष कर टालमीय ज्योतिष का कोई प्रभाव नहीं है और यह विश्व का प्राचीनतम एवं मौलिक भारतीय शास्त्र है जो अपने आप में विश्व के अन्य देशों को अद्भुत देन है जिसको कि उन्होंने भारत से सीख कर उसे श्रागे बढ़ाया और धीरे-धीरे इस शास्त्र के उत्पत्तिदाता ही बन बैठे ।
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जब हम प्रकाश की ओर दृष्टि डालते हैं तो हमें कई तारे, ग्रह, नक्षत्र श्रादि दिखाई देते हैं । ये सभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते हैं । कई तारे टूटते हैं, कई पुच्छलतारे विलीन हो जाते हैं । सूर्य प्रतिदिन पूर्व दिशा में ही उदित होता है, ऋतुएँ क्रमानुसार प्राती हैं, सूर्य व चन्द्र ग्रहण होते रहते हैं । ये सब बातें क्यों, कैसे व कब होती हैं इसका उत्तर मनुष्य अपने मानव स्वभाव के कारण जानना चाहता है । इसी
तुलसी प्रज्ञा
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