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इस उपरोक्त सारिणी से ज्ञात होता है कि बुध-शुक्र के आधुनिक मानों से भारतीय ग्रंथों के मानों की तुलना करना ठीक नहीं है क्योंकि उनके आधुनिक मान सूर्य बिम्बस्थ द्रष्टा की दृष्टि और भारतीय भूस्थ द्रष्टा की दृष्टि से दिये गये हैं। पर यह बात निश्चित है कि टालमी के उपयुक्त मन्दफल भारत के किसी भी सिद्धान्त से नहीं मिलते हैं । भारत के किसी भी सिद्धान्त से टालमी का कोई सम्बन्ध नहीं है, इसके अनेक प्रमाणों में से एक यह भी है। 39
भारतीय ज्योतिष व टालमी के ज्योतिष की जब हम तुलना करते हैं तो उपरोक्त तथ्यों में तो स्पष्ट है ही कि भारतीयों ने टालमी से कुछ भी नहीं लिया है पर टालमी ने अवश्य भारतीय सिद्धान्तों की मदद अपने सिद्धान्तों को बनाने में ली है। साथ ही साथ जब हम भारतीय ज्योतिष शास्त्र के साहित्य का वर्गीकरण करते हैं तो निम्न बातें और हमारे सम्मुख उपस्थित होती हैं
(1) भारतीय ज्योतिष शास्त्र के साहित्य को तीन भागों में बांटा जा सकता है, जो निम्न हैं
(अ) वैदिक साहित्य एवं ब्राह्मण-इसमें 800 B.C. के पूर्व का साहित्य है।
(ब) वेदांग, ज्योतिष, सूत्र, ग्रह, धर्मसूत्र, मनु, गर्ग, जैन साहित्य जैसे सूर्य प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति आदि जो 3 ई. स. तक का साहित्य है।
(स) सिद्धान्त, आर्यभट्ट, वराहमिहिर व ब्रह्मगुप्त एवं उसके बाद के विद्वान् ।
इस वर्गीकरण से यह सिद्ध होता है कि वैदिक संहिता और ब्राह्मण व वेदांग ज्योतिष, जैन साहित्य आदि टालमी के कार्य काल से प्राचीन है । अतः उनमें जो तथ्य हैं वे टालमी से पहले के हैं । इसलिए टालमी उनसे मदद ले सकता है पर भारतीय उससे मदद नहीं ले सके ।
इतना ही क्यों जेकोबी, दीक्षित व तिलक ने वैदिक काल 4000 B.C. व उससे पहले का माना है। विन्टरनीज (Winternitz) इसे 2500 B.C. से मानता है जबकि मंक्समूलर व अन्य पाश्चात्य शोधकर्ता वैदिक काल को 1500 से 800 B.C. तक मानते हैं। यदि हम तीसरा काल भी सही मानें तो भी यह काल टालमी के काल से (70 A.D. से 147 AD) बहुत प्राचीन है जिससे टालमी के सिद्धांतों का प्रभाव वैदिक काल के ज्योतिष पर किसी भी हालत में नहीं पड़ सकता है। इसलिए हम निःसंकोच कह सकते हैं कि भारतीय ज्योतिष टालमी के ज्योतिष से प्राचीन व मौलिक है । इस बात की पुष्टि बर्जेस ने सूर्य सिद्धांत के अंग्रेजी अनुवाद में की है कि “भारत का ज्योतिष टालमी के सिद्धांतों पर आश्रित नहीं है, किन्तु इसने ई० सन् के बहुत पहले ही इस विषय का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 40
39. झारखण्डी, शिवनाथ, भारतीय ज्योतिष, 1975 पृ. 479 40. पचसिद्धान्तिका की भूमिका : पृ: LIII-LY
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तुलसी प्रज्ञा
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