________________
साहित्य-समीक्षा
जैन न्याय का विकास
प्रवक्ता-मुनि श्री नथमल प्रकाशक-जन विद्या अनुशीलन केन्द्र
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, 1977
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, में स्थापित 'जैन विद्या अनुशीलन केन्द्र' द्वारा आयोजित जैन न्याय के विषय पर प्रथम भाषण माला के अन्तर्गत मुनि श्री नथमलजी ने जो व्याख्यान दिये उन्हीं का संग्रह प्रस्तुत नथ के रूप में प्रकाशित हुआ है। राजस्थान विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. गोविन्द चन्द्र पाण्डे के शब्दों में "न्याय के सूक्ष्म और जटिल प्रकरणों में मूल तत्त्वों का सरल और मौलिक प्रतिपादन मुनि नथमलजी ने अपने व्याख्यानों में किया है। उन के प्रतिपादन में गंभीरता के साथ-साथ प्रसादगुण अद्भुत रूप से विद्यमान है जो कि उन की तलस्पर्शी विद्या का द्योतक है।"
जैन न्याय के विकास पर प्रकाश कई विद्वानों ने डाला है। इस विषय पर पंडित सुखलालजी, पंडित दलसुख मालवणिया तथा स्वर्गीय पंडित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य की देन उल्लेखयोग्य है । किन्तु इस विषय पर एक स्वतंत्र ऊहापोह की आवश्यकता थी, जिसकी संपूर्ति विशेष प्रकार से प्रस्तुत निबंध करता है।
लेखक का यह स्पष्ट अभिमत है कि आध्यात्मिक दर्शनों में तर्कशास्त्र का विकास तभी होता है जब उनमें साधना की ओर झुकाव क्रमशः कम होने लगता है। इस दृष्टि से जैन परम्परा में तर्कशास्त्र का विकास बौद्धों के बाद हुआ, कारण बौद्धों की अपेक्षा जैन आचार्य अधिक समय तक प्राध्यात्मिक साधना में ही संलग्न रहे।
खं.३ अं. २-३
१४१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org