Book Title: Tulsi Prajna 1977 04
Author(s): Shreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 150
________________ का निर्देश अक्षरानुक्रम से न करके संख्यानुक्रम से किया गया या धार्मिक तत्त्वों के भेद-प्रभेद संख्या के आधार पर किये गए हैं। (अध्ययन) हैं । पहले स्थान में एक संख्यावाची विषयों का, दूसरे में दो का, तीसरे में तीन का एवं इसी प्रकार दशवें में दस संख्यावाची विषयों का परिगणन है । भेदों का यह परिगणन यान्त्रिक नहीं है, विवेचनपूर्ण और सरस है । इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें धार्मिक विषय ही न होकर अनेकानेक उपयोगी लौकिक विषयों का भी समावेश है । उदाहरणतः भूगोल, गणित, मनोविज्ञान, संगीत, जीवविज्ञान, प्राचीन इतिहास, समाजशास्त्र इत्यादि विषयों पर यह ग्रन्थ विपुल प्रकाश डालता है । इसीलिए यह ग्रन्थ जैन धर्म-दर्शन के अध्येताओं के लिए तो कल्पवृक्ष के समान है ही किन्तु जिनकी धर्म-दर्शन में रुचि नहीं है उन्हें भी इसके अनुशीलन से ऐसे अनेक लौकिक सत्य मिलेंगे जो शायद अन्यत्र कहीं उपलब्ध न हों । ऐसे अमूल्य ग्रन्थ को आज तक इस प्रकार प्रस्तुत नहीं किया गया था कि बह सभी के लिए सुगम हो सके । प्रस्तुत संस्करण में मूल प्राकृत पाठ, संस्कृत - छाया और हिन्दी अनुवाद एक-दूसरे के सामने इस प्रकार दिये गए हैं कि प्राकृत न जानने वाला भी मूल ग्रन्थ को पढ़ सकता है । प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में उस अध्याय के विवेच्य विषय पर एक आलोचनात्मक आमुख दिया गया है । यह आमुख हमें स्वतंत्र चिन्तन करने के लिए प्रेरित करता है । अध्याय के अन्त में दी गई टिप्पणियाँ केवल व्याख्या न होकर तुलनात्मक दृष्टि से की गई खोज का अंश है । इन टिप्पणियों में जैन दर्शन के तत्त्वों को सहवर्ती वैदिक तथा बौद्ध दर्शन के आलोक में विधिवत् देखने का प्रशंसनीय प्रयास किया गया है । इस कारण 'ठाणं' के इस संस्करण का अध्ययन वैदिक और बौद्ध परम्परा में अनुसंधान करने वालों के लिए भी परमोपयोगी होगा । इन टिप्पणियों में वैदिक और बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों का उपयोग भी इतनी बहुलता से हुआ है कि इस संस्करण को एक अर्थ में पूरी भारतीय संस्कृति का विश्वकोष कहा जा सकता है । सम्पादक के अपने निष्कर्षो से कहीं कोई सहमत हो या नहीं, किन्तु उसकी बौद्धिक ईमानदारी में किसी प्रकार के सन्देह का स्थान नहीं है । इस नाते प्राचीन भारतीय साहित्य और संस्कृति के अध्येता सामान्यतः और जैन धर्म के अध्येता विशेषतः इस संस्करण का अभिनन्दन करेंगे | जैन आगमों के इस प्रकार के संस्करण जैन विद्या के अनुसंधान के मार्ग में मील के पत्थर सिद्ध होंगे। । इसमें दार्शनिक इसमें दस स्थान कागज, मुद्रण तथा गैटअप की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अपने विषय की गम्भीरता के अनुरूप ही बन पड़ा है । - डा. दयानंद भार्गव १४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org

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