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इस संदर्भ में आप साधना की आवश्यकता पर पुनः विचार कीजिए। वह केवल मुमुक्ष के लिए ही आवश्यक नहीं है। उन सब लोगों के लिए भी आवश्यक है, जो सामाजिक जीवन जीते हैं, सम्बन्धों की दुनिया में रहते हैं।
मुमुक्ष अपनी आंतरिक आवाज को सुन लेता है, आंतरिक योग का अनुभव कर लेता है । उसके लिए स्वतंत्रता या समाधि की साधना स्वत: प्राप्त हो जाती है । सम्बन्धों का जीवन जीने वाला वैसा नहीं कर पाता इसलिए इसकी साधना प्रेरित साधना होती है। उसकी साधना से फलित होता है समर्पण और समरसता ।
___ व्यक्ति समूह के प्रति समर्पित होता है, समूह के साथ समरस होता है, पर तभी होता है या हो सकता है, जब उसके जीवन में समता का भाव सध जाता है । विषमता की मनः स्थिति में अहंकार और ममकार प्रबल होते हैं। उनकी प्रबलता समर्पण और समरसता की स्थिति को निष्पन्न नहीं होने देती।
साधना का अर्थ जंगल में भाग जाना या समूह से कट कर अकेला हो जाना ही नहीं है । भगवान् महावीर ने कहा है-'साधना गांव में भी हो सकती है, जंगल में भी हो सकती है। वह गांव में भी नहीं होती, जंगल में भी नहीं होती। वह समूह में भी हो सकती है, अकेले में भी हो सकती है । वह समूह में भी नहीं होती, अकेले में भी नहीं होती। यदि साध्य के प्रति उत्कृष्ट भावना और उपयुक्त साधन का चुनाव होता है तो वह गांव या जंगल, समूह या अकेले में कहीं भी हो सकती है। और यदि ऐसा नहीं होता है तो वह कहीं भी नहीं हो सकती।'
साधना का पहला चरण है भावना का अभ्यास । हमारे मन में प्रलंब अतीत के संस्कार जमे रहते हैं । उनमें कुछ संस्कार शत्रता के हैं, कुछ ईर्ष्या के हैं, कुछ क्रूरता के हैं, कुछ विग्रह के हैं, कुछ अहं के हैं और कुछ ममत्व के हैं । हम जब समूह के प्रति समर्पित या समरस होने की तैयारी करते हैं, तब इनमें कोई न कोई संस्कार जाग उठता है और हमारी तैयारी के सामने अवरोध उत्पन्न कर देता है।
इन संस्कारों से निपटने के दो मार्ग हैं-ध्यान और फलभोग । संस्कार का फल भुगतने पर वह समाप्त हो जाता है पर उसमें बहुत लम्बा समय लगता है । उस लम्बी अवधि में हमारी साधना की भावना कुठित हो जाती है और हम उससे निराश हो जाते हैं । ध्यान संस्कारों की समाप्ति का त्वरित मार्ग है। हम ध्यान करने वाले हर आदमी से शिकायत की भाषा में यह सुनेंगे कि जैसे ही मैं ध्यान करने बैठता हूं, मन को एकाग्र करने का प्रयत्न करता हूं, वैसे ही मन विचारों से भर जाता है। उस समय कभी नहीं आने वाले विचार आने लग जाते हैं। ऐसा होता है, यह स्थिति है । पर क्यों होता है, वह विमर्श मांगता है। मेरी दृष्टि में इसका विमर्श बहुत जटिल नहीं है । घर सूना है, उसमें चोर घुस गये हैं। घर का मालिक आता है, चोर भाग जाते हैं । घर का मालिक सो रहा होता है, घर में
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तुलसी प्रज्ञा
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