Book Title: Tulsi Prajna 1977 04
Author(s): Shreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 140
________________ संदर्भ 1. कम्मस्सका माणव सत्ता कम्पदायादा कम्मयोनी कम्मबन्धकम्मपटिसरणा, कम्मं सत्ते विभजति यदिदं हीनपणीततायाति ।" -चूल-कम्मविभंगसुत्तन्त (मज्झिम. 3, 4, 5) 2. महाकम्म विभंगसुत्तन्त (म. नि. 3, 4, 6) 3. सालेय्यसुत्तन्त, वेरजकसुत्तन्त (म. नि. 1-5-1, 1-5-2) 4. दिसुत्त-इत्तिबुत्तक । 5. कम्मा विपाका वत्तन्ति विपाको कम्म सम्भवो। कम्मापुनब्भवो होति एवं लोको पवत्ततीति ।। विभंग पृ. 4261 कित्ति सुत्तन्त (म. नि. 3-1-3), इन्द्रियभावनासुत्तन्त (म. नि. 3-5-10) 7. द्रष्टव्य, मेहता, मोहनलाल, जातककालीन भारतीय संस्कृति 8. मेहता, मोहनलाल, जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग 4 9. भगवई, जैन विश्व भारती प्रकाशन, 1974, सूत्र 1, 2, 34 10. ठाणांग, 4-92 एवं प्रज्ञापना 23-1-290 । 11. जीवा पुग्गलकाया अण्णोण्णागाढगहणपडिबद्धा । काले विजुज्झाणा, सुहदुक्खं दिति भुंजन्ति ॥ -पंचास्तिकाय, गा. 67। 12. पाओदएण अत्थो हत्थं पत्तो वि णस्सदि णरस्स । दूरादो वि सपुण्णस्स एदि अत्थो अयत्तेण ।। भगवती आराधना गा. 1731 १३४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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