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समानता नहीं है और साथ ही साथ ये टालमी से नहीं लिए गये है वरन् ये भारतीयों की स्वयं की खोज है।
(3) इसके अतिरिक्त जब हम नक्षत्र प्रदक्षिणाकाल की भारतीय एवं टालमी के सिद्धान्त से तुलना करते हैं तो निम्न अन्तर दिखाई देता है। 35 देखें सारिणी-3
उपरोक्त सारणी से ज्ञात होता है कि आधुनिक योरोपियन सिद्धान्त का वर्षमान हमारे सूर्य सिद्धान्त से लगभग 8 पल 34.5 विपल अधिक है और ब्रह्मगुप्त सिद्धान्त का वर्षमान 7 पल 25.6 विपल अधिक है। टालमी का सिद्धान्त ] पल 34.63 विपल अधिक है जो कम अशुद्ध है। यदि भारतीय टालमी के सिद्धान्त का अनुसरण करते तो इतना अन्तर नहीं आता व टालमी के सिद्धान्त से मिलता-जुलता होता पर वास्तव में ऐसा नहीं हुआ है। यहां यह कहना भी अनुपयुक्त नहीं होगा कि स्वयं टालमी ने हिपार्कस व भारतीय सिद्धान्तों को ध्यान में रख कर अपने वर्षमान व अन्य नक्षत्र प्रदक्षिणा काल निश्चित किये हैं जिससे कि वे कम अशुद्ध हैं। इससे सिद्ध होता है कि टालमी के ग्रंथ की ग्रहगति स्थिति हमारे सिद्धान्तों में नहीं ली गई है व भारतीय सिद्धान्त प्राचीन व मौलिक हैं ।
(4) जब हम पृथ्वी से ग्रहों की दूरी ज्ञात करते हैं तो ग्रह माला के मध्य से ग्रहों के अन्तर भिन्न-भिन्न सिद्धान्त के अनुसार भिन्न-भिन्न आते हैं । यह बात निम्न सारणी से स्पष्ट है ।38
मालामध्य से ग्रहों के अन्दर की सारणी (मन्दकर्ण)
(सारणी नम्बर 4)
सूर्य सिद्धान्त
टालमी
आधुनिक सिद्धान्त
सिद्धान्त
युग्मपदान्त में | ओजपदान्त में
-
पथ्वी
बुध शुक्र
-3694 . '7278 1:5139 5.1429 9.2308
.3667 .7222 1.5517
मंगल
.3750 .7194 1.5190 5:2174 9.2308
.3871 .7233 1:5237 5:2028 9.5388
36. झारखण्डी, शिवनाथ, भारतीय ज्योतिषि, पृ० 422 (1975)
खं, ३ अं. २-३
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