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लिए हो तो वर्ज्य हैं श्रन्यथा नहीं। इस सम्बन्ध में एक श्लोक इस रूप में प्राप्त भी है : "जो इच्छापूर्वक महापाप करता है उस मनुष्य की उस पाप से निष्कृत्ति गिरिपतन अथवा अग्नि में प्रवेश करने से नहीं होती । "' 172
शुद्धितत्त्व में कहा है : "कलियुग में जल-प्रवेश आदि शूद्र तक ही सीमित हैं । ब्राहमणादि के लिए कलियुग में उनका निषेध है।" 173
172. य: कामतो महापापं नरः कुर्यात्कथंचन ।
न तस्य निष्कृतिर्दृष्टा भृग्वग्निपतनादृते ॥
(मिताक्षरा द्वारा याज्ञ0 3 / 226 पर उद्धृत) 173. जलप्रवेशादिक तु कलो शूद्रस्यैव । ब्राह्मणादीनां तु आदित्यपुराणेन सगुणाद्यशौच प्रकरणोक्तेन निषेधात् ।
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तुलसी प्रज्ञा
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