________________
13. वाराणसी में मरने के विषय में भी यही बात आदिपुराण में कही है: चिकिसकों ने जिसकी चिकित्सा का त्याग कर दिया है वह व्यक्ति यदि वाराणसी में गंगा के जल में प्रविष्ट हो काष्ठ और पाषाण के बीच मरण करता है तो साक्षात् शंकर उसके कान में धीरे से प्रणव तारक मन्त्र सुनाते हैं। ऐसी स्थिति वहां मरनेवाले व्यक्ति के सिवा किसी अन्य को प्राप्त नहीं होती।"13 क
ऊपर के उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि पवित्र माने जानेवाले किसी भी क्षेत्र में, किसी भी प्रकार से, निरोग-अनिरोग किसी भी अवस्था में एवं किसी भी आयु में मरण प्राप्त करना हिन्दूशास्त्रों में विशेषत: पुराणों में स्पष्ट रूप से स्वीकृत है।
14. जो इस तरह आत्मघात करता उसे मन्त्र उच्चारण करना पड़ता था। वायुपुराण में कहा है कि महाप्रस्थान यात्रा करता हुआ या प्रज्वलित अग्नि में प्रविष्ट होता हुआ व्यक्ति मन को समाधिस्थ कर निम्नलिखित मन्त्र शनैः शनैः उच्चारण करे ।
त्वमग्न रूद्रो असुरो महोदिपस्त्व शो मरुतं पृक्ष ईशिये ।
श्त्वं वातैररुणैर्यसि शंगपस्त्वं पूषा विधतः पासि नुत्मना । 11 अन्वारोहण और अनुगमन
__ स्त्रियों के लिए अन्वारोहण और अनुगमन हिन्दूशास्त्रों में परम धर्म के रूप में स्वीकृत है । इस विषय की स्थिति नीचे के विवेचन से स्पष्ट होगी।
(1) विष्णुधर्मसूत्र 25/14 में कहा है :" पति के मरजाने पर स्त्री ब्रह्मचर्य का पालन करे अथवा अन्वारोहण।"130
स्मृतिचन्द्रिका में कहा है :" ब्रह्मचर्य और अन्वारोहण में अन्वारोहण जघन्य है क्योंकि विष्णु द्वारा वह बाद में कथित है। इसका फल ब्रह्मचर्य से निकृष्ट
है 10
ब्रह्मज्ञानं तदेवाहं
काशीसंस्थितभागिनाम् । दिशामि तारकं प्रान्ते
मुच्यन्ते ते तु तत्क्षणात् ॥ 138 क. वाराणस्यां म्रियेद्यस्तु प्रत्याख्यातभिष्क्रियः ।
काष्ठपाषाणमध्यस्थो जाह्नवीजलमध्यगः ।। अविमुक्तोन्मुखस्तस्य कर्णमूलगतो हरः।
प्रणवं तारकं ब्रूते नान्यथा कस्यचित्क्वचित् ।। 138 ख. यो वाहिताग्निप्रवरो वीराध्वानं गतोपिवा।
समाधाय मनः पूर्व मन्त्रमुच्चारयेच्छनः ।। 139. मृते भर्तरि ब्रह्मचर्य तदन्वारोहणं वा । 140. यत्तु विष्णुना धर्मान्तरमुक्त मृते भर्तरि ब्रह्मचर्य तदन्वारोहणं वा......तदेतद्धर्मान्तरमपि ब्रह्मचर्यधर्माज्जघन्यम् । निकृष्टफलत्वात् ।
(स्मृति च० द्वारा व्यव० पृ० 254 पर)। खं. ३ अं. २-३
६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org