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(3) पति के देशान्तर में मरण प्राप्त होने पर सूचना पाने पर उसकी स्त्री अनुगमन या अनुमरण कर सकती थी। ब्रह्म-पुराण में कहा है :" यदि पति का देहान्त देशान्तर में हो तो स्त्री उसके पादुका आदि के साथ अग्नि में प्रवेश करे । ऐसा करने वाली साध्वी स्त्री ऋग्वेद के प्रमाण से आत्मघातिनी नहीं होती ।"148
(4) हारीत ने पतिव्रता स्त्री की परिभाषा करते हुए कहा-"जो पति के दुखित होने पर दु:खी, मुदित होने पर मुदित, उसके दूर रहने पर मलिन और कृश रहती है और जो पति के मरने पर स्वयं भी मर जाती है उसे पतिव्रता स्त्री समझना चाहिए।"149
(5) आपस्तम्ब कहते हैं-"जो पहले अनुगमन का विचार कर बाद में मोह से विचलित हो जाती है उसकी इस पाप से शुद्धि प्राजापत्य तप से होती है ।"150
(6) शंख और अंगिरस कहते हैं-"पति चाहे ब्रह्मघाती हो, कृतघ्न हो, मित्रघाती हो जो स्त्री उसे लेकर मरती है वह उसे पुनीत कर देती है। जो स्त्री पति के मरने पर अग्नि में समारोहण करती है वह आचार में अरुन्धती के समान है। वह स्वर्गलोक में पूजित होती है । जब तक स्त्री पति के मरने पर अपने को उसके साथ जला नहीं डालती तब तक स्त्री-शरीर से मुक्त नहीं हो सकती; बार-बार स्त्री रूप में ही उत्पन्न होती है ।''151
148. देशान्तरमृते तस्मिन्साध्वी तत्पादुकाद्वयम् ।
निधायोरसि संशुद्धा प्रविशेज्जातवेदसम् ।। ऋग्वेदवादात्साध्वी स्त्री न भवेदात्मघातिनी ।
यहाच्छौचे तु निवृत्ते श्राद्ध प्राप्नोति शाश्वतम् । 149. आप्ते मुदिते हृष्टा प्रोषिते मलिना कृशा।
मृते म्रियते या पत्यौ सा स्त्री ज्ञेया पतिव्रता ॥ 150. चितिभ्रष्टा तु या नारी मोहाद्विचलिता ततः । प्राजापत्येन शुध्द्येत तस्माद्वैपापकर्मणः ।।
(अपरार्क द्वारा पृ० 1193 पर उद्ध त, शु द्धितत्त्व पृ० 243) 151. ब्रह्मघ्नो वा कृतघ्नो वा मित्रघ्नो वा भवेत्पतिः ।
पुनात्यविधवा नारी तमादाय मृता तु या ।। मृते भर्तरि या नारी समारोहेद्धताशनम् । सारुन्धतीसमाचारा स्वर्गलोके महीयते ।। यावच्चाग्नौ मृते पत्यौ स्त्री नात्मानं प्रदाहयेत् । तावन्न मुच्यते सा हि स्त्रीशरीरात्कथंचन ॥
खं. ३ अं. २-३
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